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में अधिक फैली. परन्त छाणी वाले आचार्य श्री भी विद्वान एवं तपस्वी थे। छाणी वाले आचार्य श्री तेरहपंथ परम्परा के अनुयायी थे और दक्षिण वाले आचार्य श्री बीसपंथ परम्परा के अनुयायी थे, तथापि दोनों में मतभेद नहीं था। जब दोनों आचार्य मुरेना से प्रस्थान करने लगे तब दोनों ने समाज को संदेश दिया था कि आज समाज के लोग चाहें बीसपंथ परम्परा को मानें चाहे तेरहपंथ परम्परा को। यह तो उपासना की पद्धतियाँ हैं। इससे सिद्धान्त में कोई अंतर नहीं पड़ता। अतः इन बातों को लेकर समाज में मतभेद या मनभेद नहीं होना चाहिए।
स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन के इस युग में आचार्य श्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर यदि कछ न लिखा जाता तो यह दि. जैन समाज की एक बहुत बड़ी भूल होती। प्रशममूर्ति, शान्ति के सिन्धु 108 आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी के श्री चरणों में, मैं विनयावनत होता हूँ। सनावद (म.प्र.)
डॉ. मूलचन्द जैन शास्त्री
उच्च आदर्श
आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) के सम्बन्ध में एक विशाल ग्रन्थ का प्रकाशन एक ऐसा अनूठा कार्य है, जो कुछ क्षणों के लिए हमें अपने हृदयों को टटोलने का अवसर प्रदान करता है और अहिंसा तथा त्याग के महान् आदर्श के महत्त्व को प्रकाशित करता है। दैनिक जीवन में अहिंसा और त्याग को एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त के रूप में पूज्य आचार्य छाणी जी महाराज ने अपने जीवन में उतारा और जैन सिद्धान्त को सर्वत्र फैलाया तथा आध्यात्मिकवाद के बहुत ऊँचे आदर्शों को सामने रखा। आचार्य श्री एकान्त में ध्यान करने के कारण प्रसिद्ध हैं।
पूज्य छाणी जी महाराज के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। स्मृति ग्रन्थ के प्रकाशन से समाज को उनके बारे में बहुत कुछ जानकारी प्राप्त होगी और लोक मानस में उनकी प्रतिष्ठा स्थापित होगी। उन्होंने बांसवाड़ा के ठाकुर क्रूरसिंह जी साहब को जैन धर्म में दीक्षित करके एक आदर्श कार्य किया था।
ग्रन्थ प्रकाशन की सफलता के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। LE मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
सुमेरचन्द जैन
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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