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अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी परमपूज्य प्रातः स्मरणीय, त्रिकालवन्दनीय, सिद्धान्तपारंगत, सम्यवत्व- शिरोमणि, महान तपस्वी, आध्यात्मिक सन्त, प्रशान्तमूर्ति, तपोनिधि आचार्य श्री
शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) परम्परागत आचार्य परम्परा के पोषक थे। लौकिक व्यवहार और आध्यात्मिक विषयों के मर्मज्ञ थे। ____ आचार्य श्री महान तपस्वी, अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी, महान् धर्मप्रभावक, वात्सल्य की प्रतिमूर्ति थे।
आपने मिथ्यात्व और पन्थवाद के विरुद्ध संघर्ष किया और परमपूज्य कुन्दकुन्द आचार्य द्वारा चली आ रही विशुद्ध परम्परा का स्वयं पोषण कर भारतीय दिगम्बर समाज को हमेशा-हमेशा मिथ्यात्व से बचने का उपदेश देकर असंख्य भव्यजीवों का उपकार किया।
मैं ऐसे तृतीय आचार्य परमेष्ठी को त्रिकाल मन, वचन, काय से नमस्कार 51 करता हुआ उनके बताये हुये मार्ग पर चलने की कोशिश करता रहूँगा। मैं
यदि उनके दिये गये उपदेश पर थोड़ा सा भी चल सका तो यही मेरी उनके प्रति सच्ची श्रद्धा-आस्था-भक्ति तथा श्रद्धाञ्जलि होगी। हस्तिनापुर
पं. सरमनलाल जैन
श्रद्धासुमन जब हम वर्तमान शताब्दी के प्राचीन आचार्यों की चर्चा करते हैं और आचार्य शान्तिसागर जी छाणी महाराज का नाम आता है, तो उनके प्रति सहज श्रद्धा उमड़ पड़ती है। वे युग सन्त थे और अपने अलौकिक जीवन में कितने ही प्राणियों को सुपथ पर लगाया था। उनके शिष्य प्रशिष्यों में से परमपूज्य उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज चतुर्थ कालीन सन्त हैं। उन्होंने ही आचार्य श्री के विस्तृत व्यक्तित्व को पुनः उजागर किया है।
मैं आचार्य श्री के चरणों में अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करती हूँ। - सेठी कालोनी, जयपुर
डॉ. श्रीमती कोकिला सेठी 卐73
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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