________________
15454545454545454545454545454545
किया था। ग्राम में ही अध्ययन किया, युवा हुए किन्तु सांसारिक भोगों से
उदासीन रहे। संस्कार बढ़ते गये। आपने भरी जवानी में ब्रह्मचर्यव्रत ले लिया। - फिर भी आपको संतोष नहीं हुआ पुनः क्षुल्लक पद ले लिया और अन्त में । " आपने परम निःस्पृही वीतरागी दिगम्बर मुद्रायुक्त दिगम्बरी मुनि दीक्षा ली। 4.
तब आपको संतोष हुआ। अब आपने उग्र तपस्या करना प्रारंभ किया। उग्र तपस्वी बने और यत्र-तत्र विहार किया। आपकी अमृतमयी वाणी में कुछ
ऐसा प्रभाव व आकर्षण था कि जहाँ भी आप प्रवचन करते थे, वहाँ की जनता - उसे मंत्रमुग्ध होकर सुनती थी और कुछ न कुछ व्रत स्वयं ही ग्रहण करती
थी। आपका कोई आग्रह नहीं होता था लेकिन आपका प्रवचन ही प्रभावक LE और वस्तुस्थिति को बताने वाला होता था। संयोगवश एक चार्तुमास पू.
आचार्य श्री शान्तिसागर जी दक्षिण के साथ आ. 108 श्री शांतिसागर जी 'छाणी' 51 का भी चार्तुमास व्यावर में हुआ था। उस समय सारे नगर में चतुर्थ काल
जैसा वातावरण दिखता था। तभी मैंने उनके पुण्य दर्शन किये थे व उनके
प्रवचन सुने थे। ऐसे महान आचार्य श्री का समाधिमरण होने से उनका स्मरण 57 भी कुछ-कुछ लुप्त सा हो गया था। लेकिन धन्य हैं वे परम पूज्य उपाध्याय
मुनि ज्ञानसागर जी महाराज जिन्होंने प्रातः स्मरणीय आकर्षक व्यक्तित्व के - धनी आचार्य शान्तिसागर जी महाराज छाणी के द्वारा किये हुए अनेक उपकारों 51 के कृतित्व को पुनः आलोकित कर दिया है। उनके पुण्य स्मरण से न जाने 51 LE कितने भव्य नर नारी मुक्ति के मार्ग का अनुसरण करेंगे और अक्षय सुख LE
- को प्राप्त होंगे। अन्त में हम परम पज्य श्रद्धेय श्री शान्तिसागर महाराज के 11 त्रिकालवन्द्य पवित्र चरणों में श्रद्धाञ्जलि तथा पूज्य उपाध्याय मुनि ज्ञानसागर FT
जी महाराज के पावन चरणों में नमोस्तु करता हूँ।
नवाई
राजकुमार शास्त्री
-
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
5555555595959595959559