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श्रमण संस्कृति में युगों-युगों से अनेक ऐसे अवसर होते आए हैं, जिन्होंने 51 अपने जीवन और दर्शन द्वारा जन-जन को प्रेरणा देने का महत्त सम्पन्न किया। बीसवीं शताब्दी में आचार्य शान्तिसागर (गणी) के रूप में ऐसे सूर्य का उदय हुआ, जिसने अपने अनुत्तर जीवन द्वारा जन-जन में जो ज्ञान और चारित्र की किरणें विकीर्ण की, वे युगों-युगों तक लोगों को आलोकित करती रहेंगी। वे तपः शूर, परमसंयमी, ज्ञानी, ध्यानी, वैरागी एवं निस्पृही साधु थे। उन्होंने बीसवीं सदी में क्षीण होती हुई जैन श्रमण परम्परा को आगे बढ़ाने का गुरुत्तर दायित्व सम्पन्न किया। वे युगपुरुष थे। उनका LE जीवन चरित्र स्वयं में एक काव्य है। उस काव्य से प्रेरणा ग्रहण कर प्राणी जो अपूर्व रस का आस्वादन करता है, वह अनुपमेय है। उनका लोकोत्तर जीवन मेरे जीवन में भी नया प्रभात लाए तथा ऐसे ऋषियों का मैं निरन्तर ध्यान करता रहूँ, इसी भावना के साथ मैं उनके प्रति हार्दिक श्रद्धा अर्पित का करता हूँ। अध्यक्ष, संस्कृत विभाग
रमेश चन्द जैन बिजनौर (उ.प्र.)
वर्द्धमान कॉलेज
हार्दिक विनयाञ्जलि बीसवीं शताब्दी में दिगम्बर मुनिपरम्परा के उन्नयन में आचार्य शान्तिसागर छाणी का महनीय अवदान है। उत्तर भारत में मुनि-मार्ग को पुनः स्थापित करने वाले, महान् उपदेष्टा पूज्य आचार्य श्री के चरणों में मेरी हार्दिक विनयाञ्जलि है। अध्यक्ष संस्कृत विभाग
डॉ. कपूरचन्द जैन के. के. जैन कालेज
खतौली (उ.प्र.) 377
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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