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अविस्मरणीय प्रभावक आचार्य
उन्नीसवीं शताब्दी में अवरुद्ध हो चुकी निर्ग्रन्थ-परम्परा को पुनः प्रारंभ करने वाले आचार्यद्वय में चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (दक्षिण) के समान ही प्रशममूर्ति आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) का महनीय अवदान है। वर्ष 1990 के दशलक्षणप्रवास में व्यावर (राजस्थान) वासियों ने आचार्य श्री के चमत्कारी स्वरूप का जो अतिशय वर्णन मेरे समक्ष किया था, वह आज भी मेरे स्मृति पटल पर चित्रित है। अनेक विद्यालय एवं आश्रमों की स्थापना द्वारा उन्होंने उत्तर भारत पर जो अपना चिरस्थायी प्रभाव डाला, वह अविस्मरणीय है। ऐसे तपस्वी निर्ग्रन्थाचार्य को शत-शत वन्दन करते हुए मैं अपने को धन्य समझ रहा हूँ।
मुझे विश्वास है, इस स्मृति ग्रन्थ के माध्यम से कृतज्ञ जैन समाज उनका स्मरण करेगा तथा उनकी निर्दोष निर्ग्रन्थ परम्परा को आगे कायम रखेगा। स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर मेरी विनम्र श्रद्धाञ्जलि। 261/3 पटेलनगर
डॉ. जयकुमार जैन
मुजफ्फरनगर
एक मार्ग-दर्शक महामुनि
दिगम्बर मुनियों/आचार्यों के इतिहास में आचार्य शान्तिसागर छाणी महाराज का नाम बीसवीं शताब्दी के मार्ग-दर्शक आचार्यों में गिना जायेगा। इस शताब्दी के दूसरे-तीसरे दशक में, जब दिगम्बर मुनियों का दर्शन प्रायः दुर्लभ था, तब जहां एक ओर आचार्य शान्तिसागर जी का दक्षिण-भारत में उदय हो रहा था, वहीं उत्तर भारत में आचार्य शान्तिसागर जी छाणी का यग प्रारंभ हो रहा था।
सन 1905 ईसवी में बनारस विद्यालय की स्थापना करके पूज्य गणेशप्रसाद वर्णी ने जैन-विद्या की शिक्षा का जो श्री गणेश किया था. बीस
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ