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1 वर्ष बाद उसे बागड़ प्रदेश से लेकर दूर-दूर तक फैलाने में छाणी महाराज LF का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। उन्होंने जैन समाज की वास्तविक पीड़ा
को पहचाना था। अशिक्षा और सामाजिक कुरीतियाँ ही उस समय अभिशाप के रूप में समाज को केंसर की तरह खोखला बना रही थीं। परस्पर मालिन्य और फूट का कारण बन रही थीं।
स्वयं-प्रबुद्ध और स्वयं-दीक्षित छाणी जी ने अपनी साधना के लिये स्वयं का मार्ग-दर्शन तो किया ही, परन्तु जन-मानस में व्याप्त अनेक कुरीतियों से उबर कर शिक्षा, और खासकर नारी शिक्षा की ओर अग्रसर होने में समाज को भी बड़ी प्रेरणा दी। मांस-भक्षण का त्याग कराने के लिये भी उन्होंने बड़ा श्रम किया। यही कारण था कि उत्तर भारत में उनको बड़ी मान्यता मिली और उस समय के अच्छे अच्छे विचारकों, विद्वानों और त्यागियों ने उन्हें अपूर्व TE सम्मान दिया।
छाणीजी के व्यक्तित्व को समग्र इतिहास में रेखांकित करने का यह TE: प्रयास सराहनीय है। गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता घोषित करने के ऐसे प्रयत्नों TE CI में हर श्रावक को सहयोगी बनना चाहिये। यही उन मनीषियों के प्रति हमारी
सच्ची आदरांजलि है।
सतमा.
नीरज जैन
वन्दों दिगम्बर गुरुचरण
पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से आज का मानव भौतिकवादी हो गया। भौतिक सुख वृद्धि के लिये उसे अर्थ चाहिए, हर जगह एक ही भावना दिखती है-खूब द्रव्य जोड़ो तातें जग यश छाए जात। द्रव्य संचय में न्याय अन्याय की कल्पना भी मानव भूल गया। हिंसा से, कपट से, छल से, झूठ से धन संचय की लालसा रहती है और धन पाकर और ज्यादा दुखी हो रहा है।
आज विज्ञान का युग है। विज्ञान ने हमें भौतिक सविधाएं तो खब प्रदान की. । लेकिन आत्मशांति तो लुप्त हो गई है। विज्ञान के युग में हर जगह अनैतिकता
का वातावरण है। सद्गुणों की प्रतिष्ठा एकदम क्षीण होती जा रही है। मन
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- प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ । Iકાનના નમુનાનાનાનાનાનાપમાન SEFIFIEFIETRIFIEIFIFIEMEIFIED.