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पवित्र एवं स्पष्ट थे कि उनसे जन-जन प्रभावित था। इसीलिए उन्होंने सम्पूर्ण बागड प्रान्त से प्रत्येक वर्ग के मानव को दिगम्बर जिनधर्म के प्रति श्रद्धावान एवं विनयशील बना दिया था। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि मनुष्य जीवन की सार्थकता रागरंगो को पाकर भी इनसे अनासक्त रहने में है। अनियंत्रित विषय सेवन से शान्ति, क्रान्ति, स्मृति, बुद्धि, ज्ञान आदि गुणों का हास होता
आत्म साधना के महान साधक आचार्य श्री शान्तिसागर "छाणी" के गुणों को शब्दों में व्यक्त करने की क्षमता नहीं है। अतः संयम प्रतिष्ठित उन आचार्यवर्य के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हुआ यही भावना करता हूँ कि उनके आचार-विचार की अविरल धारा सतत प्रवाहित रहे। महामंत्री-अ. भा. दि. जैन
डॉ. श्रेयान्सकुमार जैन शस्त्रि-परिषद बड़ौत
संस्मरण मानव का स्वभाव विस्मरणशील है। पूज्य 108 आचार्य शांतिसागर जी छाणी (राजस्थान) को जैन समाज भूल सा चुका था। उसे बुढाना (मु. नगर, उ.प्र.) का आभार मानना चाहिए, जहां के जैन समाज ने प्रस्तुत आचार्य श्री की स्मृति ताजी कर दी और इसके स्थायित्व के लिए आपके नाम से ग्रन्थ की माला स्थापित कर दी तथा तुरन्त ही प्रकाशन भी चालू कर दिया। प्रथम पुष्प के रूप में प्रकाशित प्रभाचन्द कृत आराधना कथा प्रबन्ध के प्रारम्भ में पू. आचार्य शान्तिसागर जी छाणी का सचित्र संक्षिप्त परिचय भी प्रकाशित किया गया है।
इन पंक्तियों के लेखक ने अपने बचपन में 108 आचार्य शान्तिसागर जी छाणी के दर्शन किये थे। उनकी छवि और भक्तों की अपार भीड़ अब तक मेरी चित्तभित्ति पर अंकित है। पैंसठ-सत्तर वर्षों से भी पहले की बात है। ललितपुर (उ.प्र.) में आपका चातुर्मास हुआ। आपके साथ दो मुनि और थे-अनन्त सागर जी और सूर्य सागर जी। आप तीनों को स्वाध्याय कराने के लिए सर सेठ हकमचन्द जी ने इन्दौर से अपने विद्यालय के प्राचार्य
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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