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दृढ़तपस्वी
जिस समय मुनियों का अभाव सा हो गया था, उसी समय एक साथ दो सूर्यों का उदय हुआ। एक दक्षिण में जो कि चारित्र चक्रवर्ती आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी के नाम से विख्यात थे, दूसरे छाणी (राजस्थान) में जो कि प्रशममूर्ति आचार्य 108 श्री शान्ति सागर जी छाणी के नाम से प्रसिद्ध थे। जिनको सभी ने विस्मृत कर दिया था, ऐसे छाणी जी के विस्मृत व्यक्तित्व को उजागर करने का श्रेय परमपूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज को है, जिन्होंने उनके अनूठे व्यक्तित्व को प्रकाश में लाकर जन-जन को परिचित कराया।
आप अडिग आस्थावान तथा दृढ़तपस्वी थे। ऐसे महाराज श्री के चरणारविंद में हम अपनी भावभीनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ।
सागर (म.प्र.)
गुलाबचन्द, पटनावाले
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जैन संस्कृति के सन्देशवाहक आध्यात्मिक जगत् में श्रमण संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने में 51 दिगम्बर जैनाचार्यों का विशेष योगदान रहा है। जैन संस्कृति के सन्देशवाहक LE बाल ब्रह्मचारी दिगम्बर जैनानार्य श्री 108 शान्तिसागर जी छाणी ने 19वीं सदी TH में लुप्त प्रायः दिगम्बर जैन मूल परम्परा को अपने तप की साधना से, ज्ञान 51 के प्रकाश से तथा संयम के प्रताप से पुनर्जीवित किया। तथा अनेक भव्य आत्माओं के लिये मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
ऐसे महान् आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक युग-पुरुष को शत-शत नमन।
TEहपुर (उ० प्र०)
बालेश जैन
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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