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45454545454545454545454545454545 卐में गिर गये। उन्हें कुए से निकालने का कोई साधन न देख कर हम दोनों TE नास्ता किये बिना सादूमल चले गये। । उस समय वहाँ सिं. पूरण चन्द जी के यहां मुनिराज का आहार हो
रहा था। यह सौभाग्य था कि एक दिगम्बर मुनिराज को हमने पहली बार
दिगम्बरचर्या के अनुसार आहार लेते देखा। वे खड़े-खड़े अपने हाथों की - अंजुली से आहार ग्रहण कर रहे थे और आस-पास के ग्रामों से आये सैकड़ों 4 भाई-बहन बड़ी श्रद्धा से मौनपूर्वक उनका आहार देख रहे थे। वह दृश्य बड़ा
अनुपम था। । मुझे अन्तः से बड़ी प्रसन्नता हो रही थी। आहार हो चुकने के बाद 4 मुनिश्री मंदिर जी में चले गये। सामायिक के अनन्तर दो बजे से मध्याह्न
में मुनिराज का धर्मोपदेश हुआ। सभी को बड़ा हर्ष हो रहा था। 21 वे मुनिराज थे-श्री 108 मुनि शान्तिसागर जी छाणी महाराज। हमें L: हर्ष है कि आज 70-75 वर्षों के बाद समाज बड़ी श्रद्धा के साथ उन्हें स्मरण
कर रही हैं और उन्हीं प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी महाराज का स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित कर रही है। इसके सत्प्रेरक उपाध्याय श्री 108 मुनि ज्ञान सागर जी महाराज हैं, जिन्होंने उनका स्मरण कराया।
हम उनके चरण-कमलों में परोक्ष श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए बड़े गौरव का अनुभव कर रहे हैं वे वस्तुतः प्रशममूर्ति एवं शान्ति की मूर्ति थे। मंगल भूयात्।
बीना (म.प्र.) 7 अक्टूबर 1991, (डॉ.) दरबारीलाल कोठिया, न्यायाचार्य
श्रद्धाञ्जलि
प्रशममूर्ति परमपूज्य आचार्य श्री शान्ति सागर जी छाणी स्मृति ग्रंथ के लिए शुभ कामनाएं या श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं उनके श्री चरणों में TE - आदर श्रद्धा और भक्ति सहित नमन करता हूँ, और इस ग्रंथ के द्वारा उनके ।
जीवन का इतिहास प्रगट होगा और इतिहास सदैव ही प्रमाण और साक्षी माना जाता है। इतिहास संस्कृति का संरक्षक होता है, हमारे आराध्य देवशास्त्र
गुरु हैं, आज हमें जो पूज्य मुनिवरों के चरण पूजन का, उनकी निकटता - + प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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