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5454545454545454545454545454545 卐 प्रक्षालन की भावना से असमय में वर्षा कर उनके अपार संयम-साधना का - प्रभाव जीवों तक पहुँचा रही थी। वह एक ऐसा सुखद संयोग था जबकि
- आचार्य श्री सूर्यसागर जी महाराज एवं मुनि श्री अनंत सागर जी के पद विहार 51 की चरण रज से बुन्देलखण्ड की भूमि धन्य हो रही थी। उस युग में मुनित्रय
के दर्शनार्थ नगर-नगर और गाँवों-गाँवों के प्रावक गण हजारों-हजारों की संख्या में आए और उन सन्तों की चरणरज मस्तक पर लगाकर धन्य हुए। आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी ज्ञान और तप के परम प्रभावी सन्त थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके संघ में दुर्लभ ग्रंथों का वाचन कर उनके अभीक्ष्ण ज्ञान को प्रवर्धित करने में सहकारी हो रहे थे, यह मुनिगण विद्वानों के प्रति तो अपार धर्मानुराग रखते थे। उनके विद्वत् अनुराग के कारण समीपवर्ती ग्रामों के श्रावकों ने जानकारी दी कि पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी महाराज की निवास भूमि मड़ावरा में श्री सिंघई गुलजारी लाल जी जैन सोरया उद्भट
विद्वान् हैं, जो वर्णी जी के सान्निध्य में समयसार जैसे महान ग्रंथ का सूक्ष्मता TE से विवेचन करते हैं। पूज्य गणेश प्रसाद जी जैसे महान् सन्त ने मेरी जीवन 1 गाथा में एक प्रसंग में लिखा है कि सर्वप्रथम मुझे 1919 में श्रीमान पं० सिं०
गुलजारी लालजी जैन सोरया ने भगवंत कुन्दकुन्द देव की मंगलवाणी समयसार का वाचन कर सूक्ष्म प्रतिपादन से मुझे प्रभावित किया। पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी भी आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज छाणी के परम
भक्त रहे हैं उन्हें गुरु तुल्य मानकर जीवन भर मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे। TE मुनित्रय के मड़ावरा आने पर मेरे स्वर्गीय पिता श्री मान पं० गुलजारी लाल
1 जी जैन सोरया ने उनकी भक्तिपूर्वक अगवानी की थी और 4-5 दिन तक ' लगातार 8-8 घंटे तक अध्यात्म की चर्चा करते रहे। मुनिराजों के TE मध्य सिद्धान्त की गहन चर्चा करने से उस युग में मेरे पिताजी का गौरव
क्षेत्रीय समाज में व्यापकता से फैल गया। महान् पुरुषों एवं सदगुरुओं का आशीर्वाद ही ऐसा होता हैं। वह एक ऐसा समय था जब युगों युगों के बाद
किसी निर्ग्रन्थ गुरुओं के दर्शनों, उनकी अमृतमय वाणी को सुनने का सौभाग्य - बुन्देलखण्ड को प्राप्त हुआ था। आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी एवं आचार्य 4 श्री सूर्यसागर जी महाराज ने अपनी तपः साधना एवं सम्यक् प्रभावी वाणी
से समाज पर जो अमिट प्रभाव डाला, आज भी नगर-नगर के वृद्धजन उस स्वर्णिम घड़ी की स्मृति कर उन महान् साधकों के चरणों में नत हो जाते प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ