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विनयाञ्जलि
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इतिहास के पन्नों पर अभी तक यही पाया जाता रहा कि आचार्य शान्तिसागर जी महाराज ही दक्षिण से उत्तर की ओर दिगम्बरत्व को लाये और उत्तर प्रदेशीय धर्मालु जनता ने प्रथम निर्ग्रन्थता के दर्शन किए परन्त ऐसी बात नहीं है। नाम साम्य संयम-घटनाक्रम-सामान्य से अब ज्ञात हुआ है कि राजस्थान में परम पूज्य आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) विद्यमान थे और उन्होंने संयम की सीढ़ियाँ स्वयं आत्म साक्षी से चढ़कर आचार्य पद से सुशोभित हुए थे। पूज्य आचार्य श्री का चातुर्मास भी व्यावर में हुआ था। मेरी पूज्या दादीजी कहा करती थी कि मेरे पूज्य पितामह राय बहादुर सेठ टीकमचंद जी पूरे चातुर्मास तक सपरिवार आहारादिक क्रिया संपन्न करने के लिए प्रतिदिन ब्यावर जाया करते थे।
वह क्या ही धर्मोद्योत का समय रहा होगा जब राजस्थान के ब्यावर नगर में इन दो संयम की विभूतियों का समागम हुआ होगा और साधारण जनता ने दिगम्बरत्व को काल्पनिक न मानकर साक्षात् निर्ग्रन्थ मुनियों के
दर्शन किये होंगे और उनके दिव्य प्रवचनों को हृदयंगत किया होगा। आज TE यह सुखद स्मृति भी पुण्य स्मृति के रूप में आत्म साधना की ओर प्रेरित करती
है। मानव जीवन की सफलता इसी में है कि ऐसे गरूजनों के चरणों में जो भी जीवन की घड़ियाँ बीता जाय वे ही सार्थक हैं।
मैं सपरिवार उक्त दोनों ही आचार्यों के चरणों में अपनी विनयाञ्जलि समर्पित करता हूँ। अजमेर
निर्मलचन्द सोनी
निःस्पृही साधु
पूज्य श्री 108 आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) वयोवृद्ध, महान तपस्वी एवं निस्पही साधु थे। उनको नाम की बिल्कुल चाह नहीं थी। 45 वे उस जमाने के मुख्य आचार्यों में थे। उन्होंने अपने कई शिष्य बनाये और
हजारों प्राणियों को मोक्षमार्ग पर लगाया। उनको शास्त्र के तत्त्वों की गहरी पकड़ थी। उन्होंने उत्तर भारत में अधिकतर विहार किया।
मेरी उनको हार्दिक श्रद्धाञ्जलि है। 1 रामगंज मंडी
मदनलाल चांदवाड़ प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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