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श्रद्धाञ्जलि
प्रशम मर्ति, महान तपस्वी, आदर्श संयमी मोक्षमार्ग के प्रणेता, उत्कष्ट साधक परमपूज्य 108 आचार्य श्री शान्तिसागर जी (छाणी) अपने समय के आदर्श दिगम्बर संत थे। उत्तर भारत में आपने विलुप्त मुनि परम्परा को पुनर्जीवित करके वर्तमान शताब्दी में प्रथम मुनि दीक्षा धारण कर निर्ग्रन्थ
दिगम्बर मुनि का पद ग्रहण किया और पांच वर्ष मुनि पद की साधना में रहने 51 पर आपके त्याग और तपस्या के आधार पर समाज ने आपको आचार्य पद E से विभूषित किया।
आप एक अत्यन्त प्रभावी उपदेशक थे। आपकी मधुर वाणी सभी श्रोताओं को धर्म मार्ग पर बढ़ने में प्रेरक होती थी। छाणी में आपका अहिंसा पर प्रभावक उपदेश सुनकर वहाँ के जमींदार ने दशहरा के अवसर पर भैंसों की बलि देने की प्रथा को रोक दिया तथा राज्य में सभी प्रकार की हिंसा पर रोक लगा दी। समय-समय पर आपके ऊपर अनेक उपसर्ग हुए, पर आपने सभी को अपने समताभाव से सहन कर एक महान् दिगम्बर साधु का आदर्श सामने
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आपने अनेक भव्यजीवों को मुनि दीक्षा देकर मोक्षमार्ग पर लगाया। आपके शिष्यों में मुनि श्री ज्ञानसागर जी, मुनि श्री नेमिसागर जी, मुनि श्री वीरसागर जी आदि उल्लेखनीय हैं। आप आचार्य श्री शान्तिसागर जी (दक्षिण) के समकालीन आचार्य थे और कट्टरता के साथ 28 मूलगुणों का पालन करते थे।
सहारनपुर दिगम्बर जैन समाज के सभी स्त्री, पुरुष महाराज को अपनी - हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हैं एवं भावना करते हैं कि महान आचार्य
श्री 108 कुन्दकुन्द स्वामी द्वारा अष्टपाहुड में बताए गए मुनिधर्म पर चलने
की सभी दिगम्बर जैन सन्तों को उनके जीवन से प्रेरणा मिले एवं उन्हें अपने - साधना में बढ़ते हुए शीघ्र ही पंचम गति की प्राप्ति हो।
श्री दिगम्बर जैन पंचान समिति, मंगल किरण जैन, अध्यक्ष 1 जैन समाज, सहारनपुर
वीरेश्वर प्रसाद जैन, मंत्री 22
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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