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अनूठे तपस्वी ___प्रातः स्मरणीय परमपूज्य परम्पराचार्य गुरुवर 108 श्री शान्तिसागर जी - छाणी के चरणों में त्रिकाल नमोस्तु आप बड़े शांत स्वभाव वाले थे। सरल,
सहजता की मूर्ति थे। आपका जीवन प्रारंभ से ही त्यागमय था। आप जब क्षुल्लक जी बने तब आपकी तपस्या अपने आप में अनूठी थी। इसके बाद मुनि बने तब आप मुनियों में महान तपस्वी कहलाये और सारे भारत में भ्रमण करते हुए अज्ञान में भटके हुए जीवों को सन्मार्ग पर लगाया।
अतः ऐसे महान् ऋषि आचार्य महाराज के आशीर्वाद से हम भी उन जैसे बनकर उनके मार्ग के अनुयायी बनें इसी भावना से उनके चरणों में श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हैं। लखनादौन
विजय भूषण मुनि 30.3.92
संघस्थ-आचार्यकल्प सन्मतिसागर जी
मंगल-स्मरण परम पूज्य ज्ञानदिवाकर, अध्यात्म योगी, करुणामूर्ति, गुरूणां गुरु आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज ने उत्तर भारत वसुन्धरा के गर्भ
से अवतीर्ण होकर अहिंसा एवं स्याद्वादमय सत्यधर्म की पताका को ही नहीं - फहराया अपितु संपुटित हुए भव्य कमलों को प्रमुदित कर जनमानस को
सुरभित करते हुए नैतिकता एवं श्रमण संस्कृति के सजग प्रहरी बनकर जगह-जगह पाठशालाएं.गुरुकुल एवं आश्रम आदि संचालित कराकर रत्नमय सरिता को प्रवाहित कर दिया, जिसमें अवगाहन कर अनेकों भव्यात्मा मुक्ति पथ पर अग्रेषित हो गये।
आचार्य श्री द्वारा सं. 1982 के ललितपुर चातुर्मास में पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव की पावन बेला में उद्घाटित श्री शान्तिसागर दिगम्बर जैन कन्या पाठशाला में प्रारंभिक अध्ययन करने का मुझे भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। अतः हम भी उनकी गरिमा से गौरवान्वित होते हुए उनके चरणानुयायी बनकर आचार्य श्री के चरण-कमलों में श्रद्धाञ्जलि समर्पित करके हृदय वेदिका में कुछ भाव पुष्प संजोते हैं, कि उनके ही सदृश सम्यग्ज्ञान रूप सलिल प्रवाह को प्रवाहित करते हुए, समाधिमरण कर अमल धवल निजात्म स्वरूप को प्राप्त करें।
आचार्य श्री के चरणारविन्द में कोटिशः नमोस्त। लखनादौन
आर्यिका सरस्वती भूषण 30.3.92
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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