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* श्री लंबेचू समाजका इतिहास * यर आदि प्रदेश भदावर कहलाया हो यह भी एक अन्वेषण करनेको बात है। प्रमार वंशमें राजा विक्रम हुए जिनका संवत् चालू है उनके नाती (पोता) गुप्तिगुप्त मुनि थे जिन्होंने सहस्र परवार थापे ऐसा पट्टावलीमें लिखते हैं। और वे विक्रम संवत् २६ में हुए और उनके शिष्य प्रशिष्योंमें संवत् १४२ में लोहाचार्य लम्बेच हुए इन्हींने हिस्सारके पास अग्रोहामें अग्रवाल जैन स्थापे तथा बघेरवाल जैनी किये और पटिया लोगोंकी बहियोंमें परमारोंको भी यदुवंशी क्षत्रिय लिखा है। तथा राजा भोज और श्रीभद्रबाहु स्वामी पंचम श्रुतकेवली के शिष्य राजा चन्द्रगुप्त मौर्य वंशीय क्षत्रिय परमार वंशकी शाखाओंमें थे। जो चन्द्रगुप्त राजा विक्रमके वंशधर होते हैं परमार वंशकी शाखाएँ ३५ थी और वे श्री महावीर स्वामीके समकालीन राजा श्रेणिकके समयमें भी वर्तमान थीं ऐसा टाड साहबने लिखा है । और बिम्बसार राजा श्रेणिकके पुत्र कुणिक ( अजात शत्रु ) ने पाटलीपुत्र ( पटना ) राजधानी बनाई और आरा मसाढ ( महासार ) वैशाली कुन्डग्राम ये सब निकटवर्ती प्रदेश है इन उपयुक्त स्थान तथा क्षत्रिय राजाओंसे तथा इन