Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 04 Aavashyak 1 Niryukti Evam Churni Aagam 40
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म नमो नमो निम्मलदसणस्स म आग्रह पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरुभ्यो नमः भाग सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि । आगम - ४० "आवश्यक" नियुक्ति एवं चूर्णि: [१] | मूल संशोधक :- पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब अभिनव-संकलनकर्ता :- आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद र R करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्वर्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म. ही है। इस संघमें पूज्य साधू-भगवंत एवं साध्वी-महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर-साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म. की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है | AEE PISP EDITIESear दलदल RAHASHANT Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि मूल संशोधक अभिनव-संकलनकर्ता ESE AZAR पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहषि] Nomaniane w s प्रत-प्राप्ति और पेज-सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855798253062751 [3] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ si , ਬਸ ਬਸ ਬਸ ਹਰ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਹਰ ਸਾਲ ਹੀ ਗੁ ਰ ਗਈ आगम S ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿ ਨਗਰ [4] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग-3 [४०] श्री आवश्यक सूत्रम् (1) नमो नमो निम्मलदसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः आवश्यक नियुक्ति एवं चूर्णि: [३] मूल + भद्रबाहुस्वामी कृत् नियुक्ति, + भाष्य + जिनदासगणि रचिता चूणिः। R RRRRRRRRRRRRRRIES [आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ] (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com. M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि) 01/02/2017, बुधवार, २०७३ महा शुक्ल ५ 'सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-३ पूज्य आगमोद्धारकली संशोधिता भनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसबा४०) मलसत्र आवश्यक निर्यक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता यूर्णि।। [5] Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामाचारी-संरक्षक, ज्ञानधनी, आगम-संशोधक, तीव्र- मेधावी, समाधिमृत्यु प्राप्त, बहुमुखी प्रतिभाधारक पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब • जिन्होने शुद्ध-श्रद्धा, सम्यक् श्रुत आराधना, यथाख्यातचारित्र के प्रति गति और अंत समय देह-ममत्व के त्याग के द्वारा कायोत्सर्ग नामक अभ्यंतरतप कि मिशाल कायम कि है ऐसे बहुश्रुत आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज का परिचय कराना मेरे लिए नामुमकिन है, फ़िर भी गुरुभक्ति बुद्धि से श्रद्धांजली स्वरुप एक मामुली सी झलक पैस करने का यह प्रयास मात्र है | * चारित्र-ग्रहण के बाद अल्प कालमे जो अपने गुरुदेव की छत्रछाया से दूर हो गये, तो भी गुरुदेव के स्वर्ग-गमन को सिर्फ़ कर्मों का प्रभाव मानकर अपने संयम के लक्ष्य प्रति स्थिर रहते हुए अकेले ज्ञान-मार्ग कि साधना के पथ पर चले | पढाई के लिए ही कितने महिनो तक रोज एकासणा तप के साथ बारह किल्लोमिटर पैदल विहार भी किया | लेकिन अपने मंझिल पे डटे रहे, और परिणाम स्वरुप संस्कृत एवं प्राकृत भाषा का प्राचीन लिपिओ का, व्याकरणन्याय-साहित्य आदि का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया | जैन आगमशास्त्रो के समुद्र को भी पार कर गए | * एक अकेला आदमी भी क्या नहीं कर शकता? इस प्रश्न का उत्तर हमें इस महापुरुष के जीवन और कवन से मिल गया, जब वे चल पड़े देवर्द्धिगणी : क्षमाश्रमण के स्थापित पथ पर बिना किसी सहाय लिए हुए सिर्फ अकेले ही "जैन आगम शास्त्रो" को दीर्घजीवी बनाने के लिए अनेक हस्तप्रतो से शुद्ध-पाठ तैयार किये | दो वैकल्पिक आगम, कल्पसूत्र और निर्युक्तिओ को जोड़कर ४५ आगम-शास्त्रो को संशोधित कर के संपादित किया । फिर पालीताणामें आगम मंदिर बनवाकर आरस पत्थर के ऊपर ये सभी आगम साहित्य को कंडारा, सूरतमें ताम्रपत्र पर भी अंकित करवाए और "आगम मंजूषा" नाम से मुद्रण भी करवा के बड़ी बड़ी पेटीमें रखवा के गाँव गाँव भेज दिए | वर्तमानकालमे सर्व प्रथमबार ऐसा कार्य हुआ | • सिर्फ मूल आगम के कार्य से ही उन के कदम रुके नही थे, उन्होंने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, निर्युक्ति, अव चूरी, संस्कृत छाया आदि का भी संशोधन-सम्पादन किया | उपयोगी विषयो के लिए उन्होंने एक लाख श्लोक प्रमाण संस्कृत- प्राकृत नए ग्रंथों की रचना भी की । कितने ही ग्रंथो की प्रस्तावना भी लिखी | ये सम्यक्-श्रुत मुद्रित करवाने के लिए आगमोदय समिति, देवचंद लालभाई इत्यादि विभिन्न संस्था की स्थापना भी की | * ज्ञानमार्ग के अलावा सम्मेतशिखर, अंतरीक्षजी, केशरियाजी आदि तीर्थरक्षा कर के सम्यक दर्शन-आराधना का परिचय भी दिया । राजाओं को प्रतिबोध | कर के और वाचनाओ द्वारा अपनी प्रवचन प्रभावकता भी उजागर करवाई । बालदिक्षा, देवद्रव्य संरक्षण, तिथि-प्रश्न इत्यादि विषयोमे सत्य-पक्षमें अंत तक दृढ़ रहे | जैनशासन के लिए जब जरुरत पड़ी तब अदालती कारवाईओ का सामना भी बड़ी निडरता से किया था | * सागरानंदजी के नाम से मशहूर हो चुके पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजीने अपने परिवार स्वरुप ७०० साधू-साध्वीजी भी शासन को भेट किये | ...ये थे हमारे गुरुदेव "सागरजी”... .. मुनि दीपरत्नसागर... [6] . ...... Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयमैकलक्षी, उपधान-तप-प्रेरक, चारित्र-मार्ग-रागी, प्रवचन-पटु, सुपरिवार-युक्त पूज्य गच्छाधिपतिआचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब ... परमपूज्य आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी के पाट-परंपरामे हुए तिसरे गच्छाधिपति थे पूज्य आचार्य श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी, जो एक पून्यवान् आत्मा थे, दीक्षा ग्रहण के बाद अल्पकालमे ही एक शिष्य के गुरु बन गये | फिर क्या । शिष्यो कि संख्या बढ़ती चली, बढ़ते हए पुन्य के साथ-साथ वे आखिर 'गच्छाधिपति' पद पे आरूढ़ हो गए | इस महात्मा का पुन्य सिर्फ शिष्यों तक सिमित नही था, वे जहा कहीं भी 'उपधान-तप' की प्रेरणा करते थे, तुरंत ही वहां 'उपधान' हो जाते थे | प्रवचनपटुता एवं पर्षदापुन्य के कारण उन के उपदेश-प्राप्त बहोत आत्माओने संयम-मार्ग का स्वीकार किया | खुद भी संयमैकलक्षी होने के कारण चारित्रमार्ग के रागी तो थे ही, साथसाथ ज्ञानमार्ग का स्पर्श भी उन का निरंतर रहेता था | आप कभी भी दुपहर को चले जाइए, वे खुद अकेले या शिष्यपरिवार के साथ कोई भी ग्रन्थ के अध्ययन-अध्यापनमें रत दिखाई देंगे। ... ये तो हमने उनके जीवन के दो-तीन पहेल दिखाए | एक और भी अनुसरणीय बात उन के जीवन में देखने को मिली थी- 'आराधना-प्रेम'. कैसी भी शारीरिक स्थिति हो, मगर उन्होंने दोनों शाश्वती ओलीजी, [पोष)दशमी, शुक्ल पंचमी, त्रिकाल देववंदन, पर्व या पर्वतिथि के देववंदन आदि आराधना कभी नहीं छोड़ी | आखरी सालोमें जब उन को एहसास हो गया की अब 'अंतिम-आराधना' का अवसर नजदीक है, तब उन के मुहमें एक ही रटण बारबार चालु हो गया“अरिहंतनुं शरण, सिद्धनुं शरण, साधुनुं शरण, केवली भगवंते भाखेला धर्मनु शरण " इसी चार शरणो के रटण के साथ ही वे समाधि-मृत्यु-रूप सम्यक् निद्रा को प्राप्त हुए थे | ऐसे महान् सूरिवर को भावबरी वंदना | ... मुनि दीपरत्नसागर... अनुदान दाता संस्था:- "श्री परम-आनंद श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ" वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठककर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद करीब ५० साल पहेले परम पूज्य स्व. गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेंद्रसागरसूरीजी म.सा. ही है | इस संघमें पूज्य साधू भगवंत एवं साध्वीजीओ का उपाश्रय भी है जहा हर-साल चातुर्मास करवाके श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग्-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है | [7] Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -.. .. -.. -.. -..'सागर-समुदाय-एकता-संरक्षक, तीर्थ-उद्धार-कार्य-प्रवृत्त, गुणानुरागी' इस "सचर्णिक-आगम-सत्ताणि' श्रेणि भाग १ से ८ के संपूर्ण अनदान के प्रेरणादाता पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी महाराज साहेब ००००००००००००००००००००००००० पूज्यपाद स्व. गच्छाधिपति देवेन्द्रसागर-सूरीश्वरजी के विनयी शिष्य एवं दो गच्छाधिपतिओ के मुख्य सहायक के रुपमे 'सागर समुदाय' के सुचारु संचालक | पूज्य हर्षसागरसूरिजी, जिन की प्रेरणा से ये "स चर्णिक-आगम-सत्ताणि" के मद्रण के लिए संपूर्ण दव्यराशि प्राप्त हुई , उनका अत्यल्प परिचय यहां करेंगे । समुदाय-एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए ये महात्मा समुदाय के साधु-साध्वीजी की आवश्यकताओकी पूर्ती के लिए भी प्रवृत्त रहेते है, प्राचीन-अर्वाचीन तीर्थो के जीर्णोद्धार एवं विकाश के लिए भी उत्साहित रहेते है, ज्ञान-क्षेत्र अछूता न रहे इसीलिए अनुमोदना, अनुदान एवं समय मिलने पर शास्त्र-वांचनमें भी रूचि रखते है | समुदाय के जरूरतमंद साध्वीजी भगवंतो के आवास का विषय हो या साध्वीजी के विहारमें मजदूर का वेतन चुकाना हो, ऐसे छोटे-छोटे कार्यों के प्रति भी उन का लक्ष्य रहेता है | दर्शन-शुद्धि के लिए जब उन्होंने समग्र भारतवर्ष के १०० साल तक के पुराने जिनालयो में १८ अभिषेक की प्रेरणा की, उस वक्त । लगभग सभी अभिषेक-सामग्री की द्रव्य-शुद्धि का ख़याल रखते हुए अपनी मेधावी बुद्धि का परिचय दिया था, साथमे अनुकंपा भाव से पुजारी या विधि करानेवाले को यत्किंचित् बहुमान प्रगट करते हुए कुछ धन-राशि प्रदान करवाई। | ऐसे बहुगुण-संपन्न महात्मा पूज्य आचार्यश्री हर्षसागर-सूरिजी को हम भावभरी वंदना करते हुए इस श्रुतकार्य का प्रारंभ करने जा रहे है | ... मुनि दीपरत्नसागर [कात्रेजापूना, शंखेश्वर, कपडवंज, प्रभासपाटण आदि स्थानोमे आगममंदिर के प्रेरक, कर्मग्रंथ अभ्यासु, निस्पृह महात्मा पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागर-सूरीश्वरजी महाराज साहेब (एवं) अजातशत्रु, स्वाध्याय-रसिक, प्रशांतमूर्ती और अपने गुरु के प्रीतिपात्र परम पूज्य आचार्य श्री नंदीवर्धनसागर-सूरिजी महाराज साहेब इस पवित्र श्रुत-कार्यमे दोनो सूरिवरो का स्मरण करते हुए कोटि कोटि वंदना के साथ [8] Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक चूर्णे: मूल संपादने लिखित: विषयानुक्रमः पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि :- 1 विषयः मतिज्ञानं श्रुतज्ञानं अवधिज्ञानं मनः पर्यायः केवलज्ञानं आवश्यकनिक्षेपाः उपक्रमादयः नियुक्तौ मंगल मृगावतीकथा ज्ञानचरणसिद्धिः सम्यक्त्वलाभः चारित्रभेदाः उपशमश्रेणिः क्षपकश्रेणिः पृष्ठ १४ ३१ ४२ ७५ ७८ ८४ ८९ ९४ १०० १०४ १०७ ११० पृष्ठ ११४ पृष्ठ विषय. पृष्ठ ३८४ रागद्वेषकषायपरिषहोप ५१९ ३८७ गोः सदृष्टान्ताः - ४१७ सिद्धभेदाः बुद्धिभेदाः ५४५ ५७६ विषय. अनुयोगनिक्षेपाः उपोद्घाते - उद्देशानिदें १३१ निर्गमे श्रीवीरचरित्रं कु १३४ कराः ऋषभजन्मोत्सव १४२ श्रेयांसः भरतः मरीचि चक्रीवासुदेवादयः ऋष निर्वाण भवाः दीक्षामह उपसर्गाः समवसरणं ४२२ समुच्यतादि आचायोदयः फले दृष्टान्ताः सूत्रानुगमः ५९१ ४३६ १७० २२७ २७४ ३३१ ५९५ करणपदं कृताकृतादयः ५९८ ६०१ सामायिकस्य भेदाः स्वामिक्षेत्रादयः ४४२ चोल्लकादयः आलस्यादर ४५२ सामायिकस्य हेतवः ४५९ ३३५ तद्दृष्टान्ताच स्थित्यादय ४६० पर्यायेषु दृष्टान्ताच नमस्कारे उत्पन्यादयः ५१६ | सार्थवाहनिर्यामकमहाग ३४९ भयं सामायिकं सर्वमव ६०५ प्रत्याख्यानं योगाः (१४ ६०६ भेदाः) चालनाप्रसिद्धी निन्दा ६२० इत्यावश्यकचूर्णि पूर्वार्ध ६१६ ३५७ ३७२ पत्वं ३७९ गणधराः क्षेत्रकालौ सामाचार्यः आयुर्वेदादि कारणादयः विषय. वज्रस्वाम्यार्यरक्षितौ गोष्टामाहिलव निह्नवाः नयतः सामायिकं [9] नयाः •••चूर्णि के मूल संपादकने ये अनुक्रम बनाया था परंतु यहां दिये गये पृष्ठांको के मुद्रण या प्रूफ़ - रीडिंगमे विसंवादिता दिखाई दी | इसीलिए हमने यहाँ शुद्धिकरण कर के नया बॉक्स बनाकर उसमे सही पृष्ठांक दे दिये है। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाका : ५०+२१ आवश्यक मूल-सूत्रस्य विषयानुक्रम (भाग-१ से ३) दीप-अनुक्रमा: मलांक: अध्ययनं | पृष्ठांक सामायिक | पीठिका " ०१३ नियुक्ति | भाष्य भाग-11 1 २१८ --मंगलं ०१५ मलाक: अध्ययनं मूलांक: अध्ययनं २ | पृष्ठांक: ०१-०२ १-सामायिक 2/२९७ आवश्यक सटीकं (संक्षिप्त) विषयानुक्रम | नि./भा. --उपोदघात-निर्यक्ति: | पृष्ठांक | नि./भा. | अध्ययनं-१- सामायिक | पृष्ठांक: ०८१ -वीरआदिजिनवक्तव्यता । १४० ८९० नमस्कार-व्याख्या २११ ३४३ --भरतचक्री-कथानक १९४ ९१९ अर्हत, सिद्धादेः नियुक्ति: भा.०३९ --बलदेव-वासुदेव कथानकं । २२८ ९६० | सिद्धशिला वर्णनं २९२ भाग-21 ९९३ आचार्य-आदीनाम निक्षेपा: २९४ | -समवसरण वक्तव्यता ०३४ ५८८ --गणधर वक्तव्यता ०४३ १०१३ | सामायिक- व्याख्या, -दशधा सामाचारी ०५० | उद्देश-वाचना-अनुज्ञा आदिः ७५४ -निक्षेप, नय, प्रमाणादि ०८७ | सत्र स्पर्श भगा: ७७८ --निह्नव वक्तव्यता १२३ --- | सामायिक-उपसंहार: ७८९ -सामायिकस्वरुपम् १३९ ८१२ --गति आदि दवाराणि १४९. -ज्ञानस्य पञ्चप्रकारा: ०१३ --उपक्रम-आदिः ०९२ ६६६ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 [10] Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाङ्का : ५०+२१ .. आवश्यक मूल-सूत्रस्य विषयानुक्रम (भाग-१ से ३) दीप-अनुक्रमा: ९२ मुलाक: अध्ययनं पृष्ठांक पृष्ठांक: अध्ययनं ३-वंदनकं ६-प्रत्याख्यानं 3/ ११-३६ ४-प्रतिक्रमणं मलाक: अध्ययनं | पृष्ठांक । मलांक: ०३-०९ २-चतुर्विंशतिस्तव: 3/ ३७-६२ ५-कायोत्सर्ग ६३-९२ आवश्यक सटीक (संक्षिप्त) विषयानक्रम: नि./भा. अध्ययनं पृष्ठांक: नि./भा. 3/ अध्ययन नियुक्ति | भाष्य पृष्ठांक: अध्ययनं | पृष्ठांक: भाग-3 अध्ययनं-२सूत्रपाठः, कीर्तन, प्रतिज्ञा, --अर्हत: विशेषणं, --ऋषभादि नामानि, अध्ययन-५- कायोत्सर्ग: | सूत्रपाठः, कायोत्सर्गस्थापना श्रुतस्तव, सिद्धस्तवादि अध्ययनं-४- प्रतिक्रमणं नमस्कार व सामायिक-सूत्रं | चत्वार: लोकोतम-मङ्गल एवं -----------शरणभूत | संक्षिप्त व ईर्यापथ | शयन संबंधी प्रतिक्रमणं | भिक्षाचर्याया: प्रतिक्रमणं स्वाध्याय, असंयम आदि ३३सत्रोच्चारणे मिथ्यादष्कृतम् प्रवचनस्तृति, वंदना, अध्ययन-३- वन्दनं --गुरुवन्दन सूत्रपाठ: -मितावग्रह प्रवेशयाचना --क्षमापना, प्रतिक्रमण अध्ययन-६- प्रत्याख्यानं सम्यक्त्व एवं श्रावकव्रतप्रतिज्ञा विविध प्रत्याख्यानादिः ... आवश्यक-चूर्णि के विषयानुक्रममें हमने भाग का क्रमांक एवं पृष्ठांक दोनो लिख दिये है ... ल्याला दाल मारल्या पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 [11] Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आवश्यक-चूर्णि] इस प्रकाशन की विकास-गाथा यह प्रत सबसे पहले “आवश्यकसूत्र (पूर्वभाग)" के नामसे सन १९ २८ (विक्रम संवत १९ ८४) में रुषभदेवजी केशरमलजी श्वेताम्बर संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | वृत्ति की तरह चूर्णी के भी दूसरे प्रकाशनों की बात सुनी है, जिसमे ऑफसेट-प्रिंट और स्वतंत्र प्रकाशन दोनों की बात सामने आयी है, मगर मैंने अभी तक कोई प्रत देखी नहीं है। - हमारा ये प्रयास क्यों? - आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने उन सभी प्रतो को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर श्रुतस्कंध-अध्ययन-उद्देशक-मूलसूत्र-नियुक्ति आदि के नंबर लिख दिए, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन, उद्देशक आदि चल रहे है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके| हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रों के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस - दिए है और जहां गाथा है वहाँ || || ऐसी दो लाइन खींची है। इस आगम चूर्णि के प्रकाशनो में भी हमने उपरोक्त प्रकाशनवाली पद्धत्ति ही स्वीकार करने का विचार किया था , परंतु चूर्णि और वृत्ति की संकलन पद्धत्ति एक-समान नही है, चूर्णिमे मुख्यतया सूत्रों या गाथाओ के अपूर्ण अंश दे कर ही सूत्रो या गाथाओ को सूचित कर के पुरी चूर्णि तैयार हुई है, कई नियुक्तियां और भाष्य दिखाई नही देते, कोइ-कोइ नियुक्ति या भाष्य के शब्दो के उल्लेख है, उनकी चूर्णि भी है पर उस नियुक्ति या भाष्य स्पष्टरूप से अलग दिखाई नहि देते | इसीलिए हमें यहाँ सम्पादन पद्धत्ति बदलनी पड़ी है | हमने यहाँ उद्देशक आदि के सूत्रो या गाथाओ का क्रम, [१-१४, १५-२४] इस तरह साथमे दिया है, नियुक्ति तथा भाष्यो के क्रम भी इसी तरह साथमे दिये है और बायीं तरफ़ उपर आगम-क्रम और नीचे इस चूर्णि के सूत्रक्रम और दीप-अनुक्रम दिए है, जिससे आप हमारे आगम प्रकाशनोंमे प्रवेश कर शकते है। शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म.सा. की प्रेरणासे और श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनसंघ, पालडी, अमदावाद | की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि' भाग-३ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है। .......मुनि दीपरत्नसागर. [12] Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं HD मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [-1, भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रस्तावना ॥ श्रीजिनदासगणिमहत्त रकृता श्रीआवश्यकचूर्णिः ॥ प्रत सनाक आवश्यक चूर्णी नमो अरहंताणं । नमो सिद्धाणं । नमो आयरिआणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सवसाहणं । ॥ १ ॥ काउण णमोकारं तित्थकराणं तिलोकमहिताणं | आयरिउज्झायाणं णमिऊर्ण सव्वसाहणं ॥१॥ कोति सुसीसो आयरियकुलवासी जातिकुलरूवसुयायारसत्तविणयसंपण्णो म दुगुंछिओ अभीरू सत्तिजुओ विणीतो गंभीरो अदीणो ण रूसणो ण कुसीलो ण चवलो ण बहुभासी ण गारविओ ण तुरिओ असंपसारो ण पिसुणोण परोपतापी ण अत्तगुरुओ Mण मच्छरी ण अकयण्णू ण अहच्छंदो ण मंदो ण संदिद्धवादी ण सढोण दिण्णकयपसंसी ण दिण्णकयपच्छाणुताबी णातिणिहोण का पडिकूलो णालसो ण तहालू ण छुहालू ण असंतुट्टो नादेसकालण्णू ण थद्धो ण खुदो णाकालचारीण मूढो पणिज्जा ण नाण-13 ट्रास्स कारणे विप्पसवति एकाकी ण कंदप्पितो ण कोऊइतो ण मोहरितो ण आयारभावसुतबहतेणो उज्जुभावो बिसुद्धसमचो ढ-15 चरिचो दढाभिग्गहो सुगुत्तो समिओ समतण्णू दढोग्गहो दढीहो दढावाओ दढधारणो पायरियपरिभासी भत्तिजुत्तो अणूरत्तो NI॥१॥ का अपडिरूवो हितमी अणुलोमो गणसोमी संघसोभी छंद अवायष्णू सुहृदुक्खण्णू आबई अधुयचको विसेसष्णू उज्जुत्तो अपरितंतो बहुसुतो ग अंतरकहापुच्छी ण समइच्छियपुच्छी व उट्ठियपुच्छी सुहामशविषयपुच्छी मेली मिलि बिसुद्धचक्को पिषधम्मो द्रढ ॐॐॐॐ दीप अनुक्रम | पंच नमस्कार, चूर्णिकारेण कृतं आद्य मंगलं [13] Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं HD मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: -, भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रस्तावना श्री आवश्यक प्रत चूणों सत्राक २ ॥ RECARKARI धम्मो संविग्गो मद्दवितो अमाई चिरपब्वइतो सुपडिचोइओ अविसाई अपरिस्सावी पच्चतभूतो अणुण्णयमाणो सुत्तत्थभावपरिणामतो एवमाइएहिं गुणेहि उववेओ बहुपुरिसपरंपरागय चिरपरुळे जिणिंदवरसासणं काले आवस्सगं सोउकामो कंचि आयरिय VIआयारकुसलं एवं संजमपवयणसगहउवग्गहऽणुग्गहकप्पववहारपण्णांतदिहिवायससमयपरसमयकुसल आयास तयास बच्चास। जसंसिं दुद्धरिसं अलहुगवित्ति जितकोहपयारं ४ जितिंदियं जीबियासंसमरणभयविष्पमुक्कं जितपरिसई पुष्वरयपुव्वकीलियपुवसंथवविरहितं णिम्मम णिरहंकारं अणाणुतावि सकारासकारलाभालाभसुहदुक्खमाणावमाणसह अचवलं असबलं असंकि| लिह णिचणचरित्तं दसविहआलोयणादोसविहण्णू अट्ठारसयारहाणजाणगं अविहालोयणारिहगुणोवएसगं आलोयणारिहं सुतरहस्स अपरिस्साई पायच्छित्तकुसलं मग्गामग्गविणायगं उग्गहईहाअपायधारणापवरबुद्धिकुसलं अणुओगजाणयं णयविहिपणं आहरणहेउकारणणिदरिसणुवमाणनिरुत्तलई अदरिसिं बहुविहओपायायारोवएसगं इंगियायारणेगमभिलसितमगत्तमणुवइट्ठावायसच्छंदविकप्पविहिविहिन्नू लिविगणियसहत्यणिमित्तुष्पायपोराणपंडिच्चसहावजाणगं वसुइसम सीतघरममाणं पुक्खरपत्तमिव निरुवलेवं वायुमिव अपडिबद्धं पब्बयमिव णिप्पकर्ष सागरमिव अक्खोमं कुम्मो इव गुत्तिन्दियं जच्चकणगमिव जाततेयं चंदमिव सोम्म सूरमिव दित्ततेयं सलिलमिव सब्बजगनिव्वुइकर गयणमिव अपरिमितणाण मतिकेतुं सुतकेतुं सुदि- इत्थं सुपरिणिद्वितत्थं एगआयतसुहगवेसर्ग दुद्दोसजडं तिदंडविरतं तिगारवरहितं तिसल्लनिसलं तिगुत्तिगुतं तिकरणल विसुद्धं चउबिहविकथाविचज्जितमति चउकसायविजढं चउविधविसुद्धबुद्धिं चतुबिधाधारनिरालंबमति पंचसमियं पंचमहब्बय धारगं पंचणियंठणिदाणजाणगं पंचविहचरित्तजाणग पंचलक्खणसंपण छबिहविकहविवज्जियं छविहदव्वविधिवित्थर दीप अनुक्रम २ ॥ . [14] Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [-1. आयं -1 अध्ययन -L.. मूलं [- / गाथा-1, पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां ॥ ३ ॥ जाणगं छट्टाणविसुद्धपच्चक्खाणदेसगं छज्जीवकायदयापरं सत्तभयविष्यमुकं सत्तविहसंसारजाणमं सत्तविहगोत्तोवदेसगं अट्ठविद्यमाणमहणं अविबाहिरज्झाणजोगरहितं अद्वविधम्भंतरज्झाणजुत्तं अडविहकम्मगंठिभेदगं णवबंभचेरवावतिघातगं दसविहसमणधम्मजाणगं एक्कारसमातियक्खरविहिवियाणगं एकारसउवासगपडिमोवएसगं बारसभिक्खुपडिमाफासगं बारसंगतवभावणाभावियमति बारसंग सुत्तत्थघारगं एवमादिगुणोवबेयस्स णिग्गंथमहरिसिस्स सगलसकम्मं किइकम्मं काऊणं भणति भगवं ! बहुपुरिसपरंपरागत संसारणित्थरणोपायं आवस्सयाणुओगं सोतुमिच्छामि, तस्सायरिओ गुणमाहप्पं गच्चा आवस्याणुओगं परिकहेति । तत्थ आवस्सगं छन्विहं तंजहा सामाइयं चउवीसत्थओ बंदणं पडिकमणं काउस्सग्गो पच्चक्खाणमिति । एसा पुष्वायरिएहि रहया पुन्वाणुब्बी इति । तस् य पुब्बामेव मंगल मिच्छावेति, जम्हा 'मंगलाईणि सत्थाणि मंगलमज्झाणि मंगलावसाणाणि, मंगलपरिग्गहिया सिस्सा उग्गद्देहावायधारणासमत्था व अविग्घेणं सत्यस्स पारगा भवति, ताणि य सत्थाणि लोए विरायंति, वित्थारं च गच्छन्ति, ' एतेण कारणेणं आदिम मज्छंमि अवसाणे य मंगलं कीरइति । तत्थ आइमंगलेण सीसा अविग्घेण तस्स सत्यस्स पारगा भवंति, मज्झमंगलेण पउचेण तं सत्यं थिरपरिचितं भवति, अवसाणमंगलेण तं सत्यं सिस्सप सिस्साणं अव्वोच्छित्तिकरं भवति, अतो मंगलतियमिच्छिज्जति, तत्थ आदिमंगलं सामाइयज्झयणं, कम्हा ?, जम्हा तंसि सामाइयज्झयणे तित्थकरगणहरउप्पत्तिमाइणो बहवे अत्था परूविया, ते य जो सद्दहति, सद्दहित्ता य जो करणिज्जे करेति अकरणिज्जे य परिहरति सो तं सव्वमंगलनिहाणं निव्वाणं पाविहितित्तिकाऊण सामाइयज्झयणं मंगलं भवति । सुत्ततोऽवि मंगलं 'करेमि भंते ! सामाइयन्ति, कहूं?, जम्हा •••आदि-मध्य-अंत्य मंगलानां स्पष्टिकरणं [15] आदि मध्यान्त मंगलानि ॥ ३ ॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: -, भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप अनुक्रम सातत्य सव्वसत्तेसु समता कायचत्ति एतं पदण्णमारूहति साधू, अतो तमवि सामाझ्यसुत्तं व मंगल चेच, जो य समभावो सो कई | आदि आवश्यकता सम्यमंगलनिधाणं ण भविस्सति , तम्हा करेमि भंते ! सामाइयंति एयमादिसुत्तं मंगल चेव। मोवि मंगलं बंदणज्झयण, 15 मध्यान्त चूर्णी कह', जम्हा बंदमाणस्स णीयागोयकम्मक्खओ भवति, विनयमूलो जिणसासणे धम्मो परुविओ, अओ वंदणज्झयणं मज्झे मंगलं मंगलानि ॥ भवति, सुत्ततीवि 'इल्छामि खमासमणो ! बंदिउ' ति एसो सहो मंगलिओ दहब्बो, अहवा मज्झे मंगलं चउवीसत्थयादि, कहं,18 द जम्हा तित्थगरत्थयादि परूविज्जति, तेण य सम्मइत्ताइसुद्धी जायतिति, दरिसणादिविसुद्धो य जीवो सबप्पवरमंगलणिधाणो भवइ । अवसाणेऽवि पच्चक्खाणज्झयणं मंगलं, कम्हा, जम्हा संवरियासवदुवारस्स णवस्स पावस्स आगमो ण भवति, ततो । पुव्वसंचितं लहुं चैव वारसविधेण तवसा झोसिज्जति, अतो पच्चक्खाणज्झयणं मंगलं, सुत्ततोऽवि 'नमोक्कारसहियं पच्चक्खामि' ति, एक्माई अवसाणिय मंगलं भवति ।। ठा आह-जति आदी मझं अवसाणं च इमस्स सत्थस्स मंगलं तो जाणि पुण इमस्स अंतरालाणि ताणि कि अमंगलियाणि भिवंतु, आयरितो आह-ताणिवि मंगालियाणि, कहं १, जम्हा ताणिवि परूवणालक्खणाणि सव्वण्णुभासियाणि य, अतो ताणिवि मंगलियाणि भवंति, एत्थ दिढतो मोयगो- जहा अविरोधिदव्वाणं समवारण मादगो णिप्फण्णो सन्चो चेव मधुरो भवति, एवं ताणिवि अंतरालाणि सुषणाणाइसामत्थजुत्ताणि चेव काऊणं मंगलियाणि दडव्वाणि । दतं च मंगलं ४, तंजहा-णाममंगलं ठवणामंगलं दग्वमंगलं भावमंगल मिति तत्थ णाममंगलं जस्सण जीवस्स वा अजीघस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा मंगलंति णाम कीरइ से तं णाममंगलं, तत्थ जीबस्स जधा कस्सति मणसस्स मंग-12 मंगलस्य नाम-आदि निक्षेपा: [16] Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [-], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप अनुक्रम श्री_ लोचि णाम कीरइ, अथवा अग्गिस्स मंगलोत्ति णामं केसुबि देसेसु भवति, अजीवस्स जहा-वेणुपब्वमज्झस्स देसाविक्खाए, तदुभ- नामादिआवश्यक यस्स जहा तस्सेव मणूसस्स मुंजसीयदलमासाहयस्स, अहवा तस्स अग्गिणो वेणुपव्वमज्झसहियस्स, एवं पुहुत्तेवि विभासा | मंगलानि चूर्णी इयाणि ठवणामंगलं, तं च दुविहं, तं०-सम्भावतो असम्भावतो य, तत्थ सम्भावओ जथा-चित्तकम्मादिसु अरहंतसाधुणाणमा-1 याणि SAMAR THITI ॥५॥ दिगो ठाविता ते ठवणामंगलं भवंति, असभावओ. जथा-अक्खमादि णिवेसिज्जति, इंदलट्ठीवि इंदमि णिवेसिज्जइ, एवमादि ।। आह- णामठवणाणं को पइविसेसो ?, उच्यते, णाम पायसो आवकथितं, ठवणा इत्तिरिया वा होज्जा आवकाहिया वा, तत्थ इतिMरिया जथा-अक्खो इंदो वा सरतकालभूसितो, एवमादि, आवकहिता जथा जे देवलोकादिसु घडसुत्थियादिणो चित्तकम्मलिहिया, अहवा इमो विसेसो-जहा ठवणाईदो अणुग्गहत्थीहिं अमिथुव्यति ण एवं णामिदोत्ति २। दव्वमंगलं दुबिह-आगमतो णोआगमतो य, तत्थ आगमतो जाणए अणुवंउत्ते, णोआगमतो पुग तिविहं, तंजहा-जाणगलसरीरदब्वमंगलं भवियसरीर० तव्वतिरत्त०, तत्थ जाणगसरीरं जो जीवो मंगलपदत्याधिकारजाणओ तस्स जं सरीरं ववगयजीवं, पुष्वभावपष्णवणं पटुच्च, जहा-अयं घयकुंभे आसी, अयं महुकुंभे भविस्सति, एवं भवियसरीरविभासा कायव्या, तव्वतिरित्तं जहार सोधियसिरिवच्छादिणो अट्ठमंगलया सुवण्णदधिअक्खयमादीणि य भावमंगलनिमित्ताणित्ति दब्वमंगलं ३।। भावमंगलंपि दुविहं, तं-आगमतो गोआगमतो य, तत्व आगमतो जहा जाणए उपउत्ते, गोआगमतो पसत्थो आयपरिदणामो जह णाणादि, अहया 'वंदे उसमें अजितं संभवं' एवमादि जे यावष्णे भगवंते, अहवा 'जयह जगजीवजाणीवियाणभोप दि इत्यादि, अहवा 'सुधम्मं अग्गिवेसाणे' एवमादि जाव अप्पणो आयरियचि, अहवा पंचनमुक्कारो, अहवा जावतिया थया श्रुतीतो [17] Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत चूणा ६ ॥ सत्राक ॥ | य, अहवा भावनंदी, सव्वं तं नोआगमतो भावमंगलंति ॥ एत्व चोअओ चोअया, जहा-अहो भगवं! तुम्भेहिं अतिसुद्धं भासि-11 | ति, कह णाम जो जस्स उवओगो सो सो चेव भविस्सह, णो म खलु अग्गिंमि उवउत्तो देवदत्तो अग्गी चेव भवति, आय-15 रिओ भणति-अहो यच्छ ! तुम चेव अतिसुद्धाणि वयणाणि उल्लावयसि, णणु णाणंति वा संवेदणंति वा अहिगमोत्ति वा वेयणिति | वा भावोत्ति वा एगट्ठा, जीवलक्खणं च णाणं, ण उणाणाओ वतिरित्तो आया, जदि य चेयणातो जीवो अण्णो भवेज्ज ततो जीवदवं अलक्खणं चेव भविज्ज, ण वा बंधो मोक्खो वा अचेयणस्स जुत्तो, तेण जो सो णाता सो जंतं अग्गिरस सामत्थं दहणपयणपगासणादि तं जाणति, तओ अग्गिणाणाओ सो जाता अवतिरित्तो, तेण सो अग्गिसामत्थजाणओ भावग्गी चेव लम्भति, जम्हा य उप्पायद्वितिभंगजुत्ती आता अओ जम्मि उबउत्तो सो सो चेव भण्णा ॥आह-दव्यभावमंगलाणं को पइविसेसो ?, भाइ, दब्बमंगलं अणेगतिर्य अणच्चतियं च भवति, तत्थ अगतियं णाम किं (केसिं)चि तारिसं मंगलं भवति तं चैव अण्णेसिं न भवइ, अमंगलं वा भवइ, अणच्चतियं णाम जे पडिहणिज्जति, भावमंगलं पुण एगतियं अच्चंतियं च भवलि, इमं पूण सत्थजायं भावमंगल समोयरइ-जओ भावणंदीए अंतग्गतं, कहं एवं', गंदी चतुबिधा, तं०-णामनंदी ठवणानंदी दयनंदी भावनदी, णामठवणाओ परूवियब्वाओ, दव्वणंदी दुविहा तिचिहा य, केवलं तच्चारित्ता संखबारसंगाणि तूराणि, भावणंदी दुविहा-आगमओ जाणए उवउत्ते, णोआगमओ पुषण पंचविध णाण, तंजहा-. प६॥ आभिणियोहियनाणं०॥ १ ॥ एतं पंचविधमबि णाणं समासओ दुविहं पच्चवखं च परोक्ख , पच्चक्खी ताव अच्छतु, परोक्खं पुण अप्पतरगतिकाऊण पुव्वं वणिज्मइ ।। आइ-कः अनयोर्विशेषः, उच्यते, अक्खो-जीवो तस्स जं RECRecCRORECAX दीप अनुक्रम | 'नन्दी' चतुर्विध-भेदे, ज्ञानस्य द्वि-भेदाः (प्रत्यक्ष-परोक्षं च) [18] Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं [-/गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 THESECR प्रत सत्राक शानानि दीप अनुक्रम परतो तं परोक्ख, जंणो विणा इंदिरहि जाणतित्ति वृत्तं भवति, जं सयं चेव जीवो इंदिएण विणा जाणति तं पच्चक्वं भण्णति, आवश्यक प्रत्यक्ष चूर्णी कालोइआणं पुण अक्खाणि इंदियाणि भण्णति, तसिं परतो परोक्खं, जं पुण तेहिं उपलब्मति तं पच्चक्खं, तं च ण युज्जते, जेण परोक्षे इंदियाणि रूपाइणं विसयाण अगाहगाणि, जीयो च्चव चक्खुमादिएहिं रूवाईणं विसयसस्थाणं गाहतो, कही, जम्हा जीयोवओग-151 विरहियाणि इंदियाणि णो उवलमंति, अओ जं इंदिएहि उपलब्भति तं णाण लिंगित,लिंगिवंति वा चिंधीणफणंति वा करणनि-1 ॥ ७॥8 फण्णंति चा परनिमित्तणिप्फण्णति वा एगहुँ, एस विसेसो। तं च परोक्खं दुबिह-तं०-आभिणियोहियणाणं सुयणाणं च, जत्थ आभिणियोहितं तत्थ सुयणाण, जत्थ सुतं तस्थ आभिाणिबोहिय, कहं , जैमि चेव पुरिसे आभिणियोहियं तमि चेव पुरिसे सुतमपि अस्थि, जीम सुतं तमि आभिणियोहियतं अस्थि चेव, एवं एयाई दोषि अण्णमण्णमणुगयाई तहाऽवत्थ आयरिया एतण कारणेण तेसिं णाणतं पण्णवयंति, तं०-अभिणिबुज्झतीति आभिणियोहिजसुणेतीति सुतं, अविसेसिया मती, विसेसिया सम्मदिहिस्स मती आभिणियोहियणाणं, मिच्छदिडिस्स मती मतिअण्णाय, अविसेसितं सुतं, विससितं सम्मदिद्धिस्स सुर्य सुचनाणं, मिच्छदिहिस्स सुतं सुयअण्णाणं । एत्थ सीसो आह- भगवं!12 कि मणि होति अभिणिबुझातीति आभिणियोहियं सुणेतीति सुतं , आयरिओ आह-जमत्थं ऊहिऊण यो निद्दिसति तं आभिाणबोरिया भण्णति, एत्थ निदरिसणं, जहा- कस्सइ मंदपगासाए रवणीए पुरिसप्पमाणमेनं खाणुं दट्टण चिंता समुष्पज्जति- ॥७ ॥ किं पुष फस पुरिसो भविज्ज उदाहु खाणुत्ति ?, ततो तं खाणु बल्लीविणदं दट्टण पक्खिं वा तहि णिलीणं पासिऊणे आभिणि-11 लामोसो भवति जहा एतं खाशत्ति, तं च जइ अभिमुहमत्थं जाणति णो विवरीयं ततो आभिणियोहियं भवति । अभिमुहम-1 SACROSASURRORARNE [1] Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [१], भाष्यं [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां ज्ञानानि || 2 || | रथं गाम जो खाणुं खाणुं चैव अभिणियुज्झति, ण पुण खाणुं पुरिसं मण्णति, एवं अभिमुहमत्थं भण्णा, जं च अभिमुहमत्थं तं मतिश्रुतआभिणिचाहियं णो विवरीयति । जो पुण अत्थं ऊहिऊण निद्दिस तं सुगणाणं भष्णइ, जम्हा सुयणाणेऽचि ऊहा अत्थि ततो सुतणाणं आभिणिचोहितणाणसहितं चैव ददुव्वन्ति १ ॥ अहवा आभिणित्रोहियणाणसुतणाणाणं इमो विसेसो, तं०-आभिणिबोहियणाणं ताव मतिविसयं परिणायव्वंति, सुयणाणं पुण महपुव्वगं चैव दुमेयं ददुच्वंति, तं० अंगपनि अंगबाहिरं च तत्थ जं वं अंगबाहिरं तं अणेगभेयं, आवस्सयं दसवेयालियं उत्तरज्झयणाई दसाओ कप्पो एवमादि, तत्थ जं तं अंगपचि तं दुबालसविहं, तंजहा- आयारो जाब दिट्टिवादो । आह-भगवं ! तुले चैव सव्वण्णुमते को बिसेसो जहा इमं अंगपविडं इमं अंगवाहिरन्ति ?, आयरिओ आह- जे अरहंतेहिं भगव॑तेहिं अईयाणागय्वमाणदव्वखेत्तकालभावजथावत्थितदसीहिं अत्था परूविया ते गणहरेडिं परमबुद्धिसन्निवायगुणसंपण्णेहिं सयं चैव तित्थगरसगासाओ उचलभिऊणं सव्वसत्ताणं हितद्वयाय सुतत्तेण उवणिवद्धा ते अंगपविई, आयाराइ दुवालसविहं । जं पुण अण्णेहिं विसुद्धागमबुद्धिजुचेर्हि थेरेहिं अप्पाउयाणं मणुयाणं अप्पबुद्धिसत्तीणं च दुग्गाहकंतिणाऊण तं चैव आयाराइ सुवणाणं परंपरागतं अत्थतो गंथतो य अतिबहुतिकाऊण अणुकंपाणिमित्तं दसवेतालियमादि परूवियं तं अणेगभेदं अणंगपविद्धं, जम्हा य सुयणाणस्सवि अत्थो अणूहितो णो गज्जह अओ मातेपुव्वगं सुयणाणं भण्णतित्ति २ । अहवा आभिणिबोहियसुतणाणाणं इमो विसेसो तंजहा- 'सोइंदिओवलद्धी भवति सुतं, सेसयं तु मतिणाणं । मोत्तूणं दव्वसुतं अक्खरलंभो य सेसेसु ॥ १ ॥ जे सोइंदिएवि अत्था उबलब्भति तं सुतं, सेसेसु पुण चक्कुमादीहिं जे अत्था उबलब्भति तं मतिगाणं भण्णति, जा य सा सोइंदिओवलद्धी तत्थ दव्वसुतं मोचूण मतिसहितं सुयणाणं भण्णति, दव्वसुर्य णाम जं भावय 'आभिणिबोहिय(मति)'ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते [20] ॥ ८ ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [१], भाष्यं [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 आवश्यक चूर्णां ज्ञानानि ॥९॥ 1966 निबंधणभूतं तं दब्वसुर्य भण्यति, जे विष सेसेहिं चक्माईहिं इंदिएहिं अत्था उपलब्भंति तत्थचि भगणाए मतिणाणं भवति, कई ?, जे चक्खुमाई हिं अत्थे उबलाहिऊण अक्खरलद्धीए भासति तं सुतं मतिसहितं भष्णति, जाव ण भासह ताव मारणं चैव मण्ण ३ अवा 'बुद्धीदि अत्थे जे भासन्ति तं सुतं मतीसहियं । इमरत्थवि होज्ज सुतं उवलद्धिसमं जदि भणिज्जा ॥ २ ॥ जे बुद्धीए दिट्ठे अत्थे भासति तं सुतं मतिसहितं भण्णति, मतिसहितं नाम मतिसहितंतिवा मतिअणुगयंति वा एगट्ठा, 'इयरत्थवि' आहिणिचोहियणाणे सुतं हविज्जा जदि उवलद्विमेत्तमेव अत्थं भासेज्जा, अहवा उवलद्धिसमं णाम जे उबलद्धा अस्था ते जति सक्केज्जा भासेडं तं सुतं भवति । आह उबलद्भावि अत्था किं न सक्कंति भासितुति १, उच्यते, आमं, 'पण्णवणिज्जा भावा अणन्तभागो उ अणभिलप्पाण । पण्णवणिज्जाणं पुण, अनंतभागो सुयणिबद्धो ॥ ३ ॥ जे पण्णवणिज्जा भावा ते अणभिलप्पार्ण भावाणं अनंतभागो, तेर्सि पुण पण्णवणिज्जाणं भावाणं अनंतइमो भागो सुगनिबद्धो, कहं ?- जं चोहसपुव्वधरा छडाणगया परोप्परं होंति । तेण उ अतभागो पण्णवणिज्जाण जं सुतं ॥ १ ॥ अक्खरलंभेण समा ऊणहिता होंति मविसेसेणं । तेऽवि यहु मतिविसेसे, सुअणाणन्तरे जाण ।। ५ ।। दोवि एयाओ गाथाओ कंठाओ ४ । अहवा इमो विसेसो फुडो चेव- जे अभिनिबुद्धे अत्थे ण ताव भासति तं आभिणिचोद्दियनाणं भण्णति, तं चैव भासितुं पवतो ततो सुयणाणं भवति, एत्थ सुबबलगदितो, जासिमा बलगा तारिसं आभिणिबोहितं, जारिसमें सुवं तारिसं सुतं, एवं जाय परि ॥९॥ ण्णाता अत्था ण भासति ताव आभिणित्रोहियं भण्णति, जाहे मासिउं पवतो ताहे सुतं मध्यति ५ । अहवा अणक्खरं आभिणिवोहितं सुयं अक्खरं वा होज्ज अणक्खरं वा, एस बिसेसो ६ । आमिनिबोधिक श्रुतयोर्वि शुषः [21] Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२,३], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक स अथवा आभिणिवाहियं अचाणं चेव एक्कं पगासेति, मुतणाणं पुण असाणं परं च दोऽवि पगासेति, पगासेतित्ति वा बुज्झा- मतिभुतआवश्यक है वेति वा पच्चाणेतित्ति वा एगत्था, एत्थ दिवतो- मूका अमूका, जहा मूको अत्ताण चेव एग पगासेति, अमूको पुण अत्ताणं पर A विशेष: चूणा च दोवि पगासेति, एवं आमिणिबोहियणाणं मूकसरिसं दहवं, सुपणाणं पुण अमूकसरिसंति ७। श्रुतनिधित ज्ञानानि भणिवो आभिणियोहियणाणसुतणाणविससो, याणि एतेसिं चेव दोण्हवि परूवणा भाणियव्वा । तत्थ पढम ताव आभिणि-18 मतिम ॥१०॥ रोहियणाणस्स परूवणं काहामि, जम्हा मुत्ते एतस्स चेव पढममुच्चारण कतं, तं च दुविध- सुयणिस्सितं असुतनिस्सितं च, तत्य जंतं अमुतनिस्सिर्य तं चउब्बिह-तंजहा-उप्पचिया १ वेणइया २ कम्मया ३ पारिणामिया ४, एसा चउव्विहा बुद्धी उपरि | णमोकारनिज्जुत्तीए भणिहिति, इह गंथलाघवत्यं ण भण्णति । तत्थ ज त मुयणिस्सितं तस्सिमा परूवणगाथा उग्गह इहावाओ य० ॥२॥ सुतनिस्सितं आभिणियोहियणाणं चउग्विहं भवति, तंजहा- उग्गहो ईहा अवाओ धारणा, एयाणि उग्गहाईणि चत्तारि आभिाणियोहियणाणस्स भेदबत्थणि समासेण दडब्बाणीति । तत्थ भेदो णाम भेउत्ति वा विकप्पोत्ति वा पगाराति वा एगट्ठा, वत्धुणाम मूलदारभेदोत्ति बुतं भवति, समासो णाम संखेवो ।। २ ॥ इदाणं एतेसिं चेव उग्गहाईण चउण्हं दाराणं विभाग भणामि-. अत्थाणं उग्गहमी॥३॥ तस्थ अत्था मुत्ता अमुत्ता पयत्था भण्णाति, एतेसिं जं ओगिणणं तमि उम्गहो, वियालणा|| लापुण ईहा, तत्थ बियालणंदि वा मग्गणति वा ईहणति वा एगहुँ, अबादो ववसाओ भण्णति, तत्थ ववसातो णाम बक्साउत्ति वा णिच्छयत्थपडिवत्तित्ति वा अवचोहोत्ति वा एगड्डा, धारणा णाम धरणति चुचं भवति, धारणं णाम जो उग्गहादीहि जाणितो | दीप अनुक्रम SEASE [22] Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक है अत्थो तं चैव अण्णमि काले पुणोऽनि संभरति, तत्थ जो सो उग्गहो तं अस्थालोयण भण्णति, अत्थालोयणं णाम जे अत्थस्साहाचा आवश्यक सामण्णण गहणं, सो य उग्गहो दुविहो-अत्थोग्गहो बंजणोग्गहो य, तत्थ अत्थोग्गहो छब्बिहो, तंजहा-सोइदियअयोग्गहो ५ मतिमेदाः चूर्णी चक्खुईदियअत्थोग्गहो पाणिदियअत्यो जिभिदियअत्थो० फासेंदियअत्थो० गोइदियअस्थो०, बंजणोग्गहो पुण चउबिहो, तंजहाज्ञानानि सोईदियवंजणोग्गहो पाणिदिय जिभिदिय० फासिंदियाईहाअवायधारणाओवि एवं चेव छव्विहाओ, चउब्बिहाओ ण भाणिय॥११॥ व्याओ ॥३॥ इयाणि एतसि उग्गहाईण चउण्हं दाराणं वित्थरतरएण कालस्स परूवणत्थं इमं गाहासुत्तं भण्णा, जहा-. उग्गह एक्कं समयं०॥४॥ एत्थ पुष्वं ता उग्गहस्स परूवणं करिस्सामि दोहि दिडतेहि, तंजहा- पडिचोहगदितण | मल्लगदिढतेण य । से किं तं पडिबोहगदिद्रुतणी, २ से जहा नामए के पुरिसे सुतं पुरिसं पडियोहिज्जा 'अम्बया अमुय'त्ति, तत्थ | चोदए पण्णवर्य एवं वयासी-कि एगसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छति दुसमय तिसमय जाब दससमय० संखेम्जसमय. असंखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छति ?, एवं वदंतं चोदयं पण्णवए एवं बयासी णो एगसमयपविद्वा पोग्गला गहणमागच्छति जाव णो संखेज्जसमयपविट्ठा०, असंखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छति, जहा को दिढतो?, से जहा णाम एकेड पुरिसे आवागसीसाओ मल्लग गहाय तत्थ एग उदयबिंदु पक्विचिज्जा, से गढे, गहित्ति वा विगएत्ति वा अतथाभूपत्ति वा[४ | एगट्ठा, अण्णं पक्षिवेज्जा, सेचि णद्वे, अण्णपि, सेवि गडे, एवं पक्षिप्पमाणेहिं २ होहिति से उदगर्चिदू जेणं त मल्लगं रावेहिति, होहिति से उदगविंदू जे मल्लर्ग पवाहेहित्ति, एवामेव कलंचुयापुष्फसंठियं सोईदियं तं जाहे अणंतेहिं पोग्गलेहिं पूरितं भवति ताहे| ट्राति करेइ, ण पुण जाणति केवि एस सहाति, एस एगसमहओ सोइंदियओग्गहो भण्णइ, ततो अंतोमुहुत्तियं ईहे पविसइ, जहाहा KA4%AXI दीप अनुक्रम [23] Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत GEI95 बानानि दीप अनुक्रम 18 केस णं पुण एस सद्दे भवेज्जत्ति?, ततो अतोमुहुत्तियं अवायं गच्छइ, ततो से उबगयं भवइ, ततो धारणं पडइ, ततो धारेति संखेज्ज प्रतिबोधकआवश्यक है वा असंखेज वा कालं, संखेज्जवासाउए संखेज्जं कालं असंखेज्जवासाउए असंखेज कालं घरेइ, एसो सोइदियबुग्गहो । एत्था मल्लक चूर्णी दृष्टान्ती सीसो चोदेति, जहा-हेट्ठा सोइंदियउग्गहो दुषिहो भणितो, तंजहा- अयोवग्गही बंजणवग्गहो य, ण पुण एएसि विससो भणि-IN | तोत्ति, आयरिओ आह- जो कलंबुयापुप्फसाठियस्स सोइदियस्स सद्दपोग्गलेहि सह संजोगो एस सोइदियवंजणाग्गहो, अत्थोग्गहो| ॥१२॥ पुण जो सो सदो तेण कलंबुयापुप्फागितिणा इंदियएणं जीवस्स उवणीओ, तस्स अत्थस्स जं सामण्णगहणं एस सोइंदियअत्याग्गहो भण्णह, मत्थोग्गहस्स देहाअवायधारणातो अस्थि, वंजणोग्गहस्स पुण अवग्गहणमेत्तमेष, ण तु ईहाअवायधारणाओ तमि अस्थिति। इदाणि चम्खिदियस्स उग्गहादीणं परूवणा भण्णति, से जहा णामए के पुरिसे चक्खिदिएण मसूरगचंदमसंठाणसंठिएणं | अव्यत्तं रूर्व पासिज्जा, णो चेव णं जाणति-किं खाणु पुरिसोति, एस एकसमतितो चक्खिदियउग्गहो, ततो अंतोमुहुत्तिय ३६ । का पविसति, जहा-'किं पुण एतं खाणु होज्जी उदाहु पुरिसोसि', ततो सो अंतोमुद्दत्तिय अवार्य गच्छति, ततो से अवगयं भवति जहा| खाणुमेयं, णा पुरिसोचि', ततो धारणं पडति, ततो घरेति संखेज्ज असंखेज वा कालं, संखेज्जवासाउए संखिन्ज कालं, असंखज्ज-] | वासाउए असंखेज्ज कालं, एस चक्खिदियअत्थोग्गहो, एयस्स पुण चक्खिदियस्स बंजणोग्गहो पस्थिति । इदाणि घाणिदियस्स उग्गहादीणि परवेयवाणि, से जहा णामए कोइ पुरिसे पाणिदिएणं अतिमुत्तगपुफचंदगसंठाणसंठिएणं दाअव्व गंध आधाएज्ज, ण पुण जाणइ कस्सेस गंधोत्ति, 'किं उप्पलस्स? उदाहु अन्नस्स कस्सइ दख्वस्स १ स हकसमइतो पाणि|दियउग्गहो, एवं तेणेव कमेण जहा सोइदियस्स, गवर घाणाभिलावो भाणियन्वो, अत्थोग्गहर्वजणोग्गहविसेसोऽवि तहेव । ARC CSC [24] Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक - - इयाणि जिम्भिदियस्स उम्गहेहादीण परूवणा, से जहा णामए केइ पुरिसे खुरुप्पसंठाणसंठिएणं जिम्भिदिएणं अव्वत्तं रसमासा- अवग्रहादाआवश्यक एज्जा, ण पुण जाणइ-किमेस खीररसो' उदाहु अबस्स कस्सति दबस्सत्ति, सेस जहा सोइंदियस्स तहेव अहीणमहरितं भाणियन्वं । 11: नां क्रमः चूणों इदाणि फासिदियस्स, से जहा णामए कर पुरिसे अणित्यंत्यसंठाणसंठिएणं फासिदिएण अव्यत्तं फास वेदिज्जा, ण पुग४ प्राप्ताप्राप्तबानानि विषयता जाणइ-किमेस सप्पस्स फरिसो? उदाहु उप्पलणालस्सत्ति, सेसं जहा सोइंदियस्स । . ' ॥१३॥ 18. इयाणि पोईदियस्स, से जहाणामए केइ पुरिसे अव्व सुमिणं पासेज्जा, ण पुण जाणति-किंपि मए दिट्ठति, ततो अंतोमुहुत्तियं हिं पविसति, ततो जाणति अंतोमुहत्तेण जहा देवे मए दिट्ठोत, ततो अवातो, ततो धारणं पडइ, ततो धरेति मंखिज्ज असंखज्ज वा काल, संखेज्जवासाउए संखेज कालं, असंखे० असंखे०, एस णोइंदियस्स अत्थोग्गहो । एयस्सवि बंजणोग्गहो णस्थिति । | एत्थ सीसो आह-णो एस सम्बत्थ तरतमजोगो विज्जए, जहा पुब्बि उग्गहो ततो ईहा ततो अवाओ ततो धारण, आयरिओ लाआह-कह , सीसो आह-जहा कोइ केचि पुरिसं सहसत्ति पासिज्जा, तंमि उग्गहादयो जुगवमुष्पज्जंति, आयरिओ आह-तमिपि 21 अस्थि चव, कहं , जहा उप्पलपत्तसतवेहे कालणाणतं अस्थि, अहवा मुहुमत्क्षणेण णज्जए जहा एककालमेव विद्धति, ण उप-18 | रिछे पचे अविद्धे हेहिलस्स वेधो जुज्जए, एवं सहसत्ति दिढे पुरिसे उग्गहादीण तरतमजोगो अस्थि चेव, ण पुण कालस्स सुहुम-1 तणेण जाणितुं सकिज्जतित्ति ।। ताणि य इंदियाणि काणिइ पचविसयाणि काणिवि अपत्चविसयाणि, कई :हा पुढे सुइ सई० ॥५॥ पुढे णाम फरिसितं, जाहे तं सोइंदियं अणतेहिं सहपोग्गलेहि पूरियं भवति तदा सुणेइ, जे पुण 151 पासति तं अपु?, कहं , जइ पुढे पासिज्जा तो अग्गि दर©ण णयणाणं दाहो भवेज्जा, मूलं वा दट्टण णयणाणं वेहो भवेज्जा ॥ EARCISE दीप अनुक्रम %A4%खर [25] Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक प्रत जानाान सत्राक 18 एत्य सीसो आइ-जति अपुढे पासइ तो कई देवलोयं ण पासति , आयरियो आह-पिसए इंदियाणं णाणं दसणं वा भवति । भाषायाः दासीसो आह-भगवं! को पुण एतेसि विसउत्तिी, आयरिओ आह-सोइंदियस्स जहण्णेण अंगुलस्स असखेजतिभागो, उक्कोसेण समाचार वारस जोयणाई, चक्खिदियस्स जहण्णणं अंगुलस्स संखेज्जतिभार्ग उक्कोसणं जोयणसयसहस्सं साइरेग, मंघरसफासाणं जह श्रेणयः पाण्यो अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो, उकोसेणं नव जोयणाईति । गंधरसफासिंदिया बद्धपुट्ठ बियाकरेज्जा, कही, जाहे पाणपोग्गला ॥१४॥ टिपाणिदियं पविट्ठा भवति ताहे पुट्ठा, जाहे पुण पाणिदिएण सह गाद संजुत्ता भवंति ताहे बद्धा भष्णाति, एवं पुढं बद्धं च गंधम-1 ग्घायइत्ति, तहा जिम्भिदिएवि, मुखे जया पक्वित्तो आहारो भवति तदा पुट्ठो, जया लालाए सद्धिं एकीभूओ भाति जिम्भिदिय-12 त्ताए य परिणामिओ तदा बद्धो, एवं पुटुं पदं च रसं आसादयतिति । जाहे फासपोग्मला ईसिं फासिदिएण सह समागया भवंति तदा पुट्ठा भवति, जदा पुण गाई फासिदिएण सह परिणामिया भवति तदा बद्धा भण्णंति, एवं पुढं बद्धं च फरिसं वेदेतित्ति है ॥५॥ एत्थ सीसो आइ-भगवं! जे पुण निसिरिया भासापोग्गला ते किं ते चेव सुणेति उआहु अण्णेत्ति?, आयरिओ आह भासासमसेढीयं ॥६॥ जाऔ एयाओ लोगागासपएसाणं सेढीओ पाईणपडिणायताओं उत्तरदक्षिणउद्धमधायताओ यट्र वासिं सेढीणं जो सोइंदियस्स समसेढीए ठितो भासति ते पोग्गला अण्णेहिं सद्दपोग्गलपाओग्गेहिं सह मीसगा सुब्बइ, जो पुष्प विसेढी भासह ते पोग्गला णो सोइंदियं पविसति णियमा अण्णे सइपोग्गलपाउग्गपोग्गला तेहिं पोग्गलेहिं परंपराघाएष ॥१४॥ दाणोल्लिजमाणा २ सोइंदियं पविसंति, जे य ते पोग्गला णिसट्टा भासंतण तेहिंतो बहुतरमा जे सोइंदियं पविसंति । आह-एक-पट ओमुहेऽपि ते कह विसढी सुणेति, उच्यते, ते पुण णियमा छदिसि पविसति ॥६॥ सीसो आह-भगव! भणितं तुम्भेहि जहा 'जं सद दीप अनुक्रम SUCCRICAA [26] Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [६,७], भाष्य पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक समसेडीए सुणेहतं मीसग सुणोतिचि' बरथ पूण तागि भासादवाणि कवरेण जोगेण मेहति । कतरेण वा णिसरतित्ति, भाषादव्यआवश्यक आयरिओ शाह- . ग्रहणादि चूर्णी गेण्हइ य काइएण॥७॥ मासालद्धीओ जीवो भासागहणपाउग्माणि दवाणि कायजोगण घेत्तूण भासकाए परिणामउं शानानि वयजोगेण बिसिरति, णिसिरह णाम भासाचि बुतं भवति, सो पुण ताणि दुग्याणि एगंतरेण मेहति एक्कन्तरं चणिस्सिरचिति, ॥१५॥ 181 कई?, एमसमएण जया भासापोग्गलागहिया भवति तदा एगेण चैव समएण णिसिरति, एवं महणफिस्सिरणं कार्ड कोइ तमि चेवहितो | भवति, ठिविक्खयं वा करज्जा, एवं गहणानिसिरणाणं कालो जहणेण दुसमइओ उक्कोसणं अंतीमुचितो, व पूण अतामहत्तस्स समया असखेज्जा णायच्या, तेसु एक्कंतरं गेण्हति णिसिरति य, कहं ?, जो भासंतो-णो उबरमति सो जमि समए णिस्सरति तमि चेवर | समए भासं भासतो अण्णाणि भासादष्वाणि पुणो गेहति, घेत्तृण य तइए समए णिसिरति, ताणि य कितियसमयमाहताणि १ तइए समए णिसिरमाणो अण्णाणि भासादब्याणि पुणो गण्हति, ताणि चउत्थे णिसरति, ताणि य तइयसमयगहियकाणि चउत्थ | समए णिसिरमाणो अण्णाणि भासादब्वाणि पुणो गेहति, ताणि पंचमे समए णिसरति, एवं पांतरं गचस्व प्रचंतर गिरिसर-1 तस्स य अम्भतरेसु महुचस्व असंखेज्जा समया भवंति ॥७॥ जाणि पुण ताणि भासादब्याणि गेण्डर काइएण जोगेण तागि पंचाई | सरीराणं कतरेणं येण्हविचिा, एत्थ भण्णातिति INT॥१५॥ तिविहंमि सरीरमि०टातिविहसरीरगहणेण ओरालियवेउब्बियआहारगाणं गहणं कर्य, इयमणि पुण तेसाफम्ममाण वदंरग्स-131 याणि पेन काऊण ण भणियाणि, जस्स ओरालियसरीरं नो जीवपएसेहिं गेण्डिऊण ओरालियसरीरेण णिसिरति, जस्स वेउक्क्यिसरीर REGRESERESERESESEXSISE दीप अनुक्रम [27] Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [८-११], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप अनुक्रम श्री सो जीवपएसेहिं गण्हिऊण वेउब्वियसरीरेण णिसिरति, एवं आहारगेणवि, 'तो भासति भासतो भासति भासंति णाम जति भासतो भाषायाः आवश्यकता भवति तो मासति, किं कारणी, अण्णेसि ओरालियबेउब्वियआहारगा अत्थि,ण पुण भासंति । कम्हार, पज्जतिअभावा, कारणं वा| IPI किंचि पडुच्च ण भासंतित्ति ॥ ८॥ तं पुण भासं कतिप्पगारं गेहति', एत्थ भण्णति व्याप्तिश्च जानानि 8 ओरालियवेडाब्वय० ॥९॥ ओरालियवेउब्बियआहारगसर्रारी चउम्बिहं भासं गेण्हति य मुंचद य, संजहा- सच्चे असच्च ॥१६॥ है सच्चामोसं असच्चामोसं च, जाए भासाए गेण्हति ताए चेव णिसिरति, णो अण्णाए घेत्तूण अण्णाए णिसिरइत्ति ॥९॥ एत्थ सीसो | आह- कतिहिं समएहिं लोगो० ॥१०॥ गाहा कंठा । आयरिओ आह चउहिं समएहिं ॥११जीवो जाई दब्बाई भासचाए गहियाई णिसरति ताणि भिण्णाणि वा णिसिरति अभिन्नाणि वा, | जाई भिनाई णिसिरति ताई अणंतगुणपरिवुड्डीए परिवड्डमाणाई २ चउहि समतेहिं समंतओ लोगतं फुसंति, फुसंति णाम पाव-IM तिचि बुत्तं भवति, जाई अभिण्णाई णिसिरति ताई असंखेज्जाओ उग्गाहणवग्गणाओ गंता भेदमावज्जंति, संखेज्जाई जोयणाई |गंता विद्धसमागच्छंति, वि«समागच्छति णामाभासीभवंतित्ति चुतं भवति । एवमेव जाई भिण्णाई णिसिरति ताई महंतलेठ्ठकसमाई 18 चउहि समएहिं लोगतं पार्वति, जाणि पुण अभिण्णाणि णिसिरति ताणि खुद्दलगलेठ्ठगसमाणाई अंतरा चेव विद्धंसमागच्छंति,* तेहि य भिण्णेहि भासादब्बेहिं चउहिं समएहि लोगो निरंतरं सब्बो चेव फुडीकओ, जो य लोगस्स चरिमो अन्तो सो चेव भासालिएऽवि चरिमो अंतोत्ति । कह', जेण अलोए जीवाजीवदवाणं धम्मत्थिकायदबस्स अभाव गती चेत्र पत्थि, अतो लोगस्स, 11चरिमंते भासाएऽवि चरिमंतो भण्णतित्ति ।।११।। इयाणि एयस्स आभिाणबोहियस्स एगट्ठिया भणति, तंजहा ॥१६॥ ब [28] Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२-१५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री IR प्रत सत्राक ईहापोह वीमंसा ॥ १२ ॥ ईधति वा अपोहोचि वा विमसत्ति वा मग्गणारी वा गवेसणत्ति वा सण्णत्ति वा सइत्ति वा मतेरेकाथिआवश्यक मइत्ति वा पण्णत्ति वा सम्यमेतं आभिणिवोहियं एतेहिं एगडिएहिं भणितति ॥ तं पुण इमेहि अणुओगदारेहिं अणुगन्तव्ब, तंजहा- कानि चूणौँ संतपय परूवणया दख्वपमाण च खित्तफुसणा य । कालो अंतर भागो भावो अप्पाषहुंकति ॥ १३॥ सदादानि ज्ञानानि तत्थ संतपयपरूवणया पढमदारन्तिकाऊण पुचि भण्णति, तत्थ संतं णाम संतति वा अस्थिति वा विज्जमाणति चा एगट्ठा, I द्वारााण ॥१७॥ संतं च तं पयं च संतपदं तस्स परूवणा संतपयपरूवणा, परूवणत्ति वा कहणंति वा बक्खाणमग्गोत्ति वा एगट्ठा, सा य इमेण पगारेण भवति, जहा- कोई सीसो काच आयरियं पुच्छेज्जा, जहा आमिणिवोहियस्स किं संतस्स परूवणं असंतस्स बा', आयरिओGI आह-वत्थ! कतो ते संदेहो', सीसो आह-संताणं असंताणं च परूवणा दिट्ठा, घडादिणं असंभवे भ(सिं)गादीणं च अतो मम संसओ, आयरिओ आह-संतस्स, कही, जम्हा ओहिणाणादीहिं पच्चक्खहि जे दिवा अत्था सुत्तनिबद्धा असुवनियद्धा वा ते आभिाणवोहिय-18 Mणाणसामत्थजुत्तो जीवो सत गिण्हइ परं च गाहेति, अतो णियमा आत्थि आमिणिबोहियणाणंति, सीसो आह-जइ अस्थि तो कहि मम्गितब्बं , आयरिओ आह- इमेहिं ठाणेहिं मग्गिय, तनहा गइ इंदिए य काए जोगे वेए कसाय लेसा य । संमत्त णाण दसण संजय उवओग आहारे ।। १४॥ भासग परित्त पज्जत्त सहुम सण्णी य हुंति भवचरिमे । एतेहिं तु पदेहिं संतपदे हॉति वक्खाणं ॥१५॥ तत्थ पढम गतित्ति दारं, सा णिरयगतिआदी चउबिहा, तत्थ पडिवज्जमाणयं पडुच्च चउसुचि गतिओ (सु) आभिणिहिदियणाणं भवेज्जा, पुब्बपीडवण्यामपि पडुच्च चउसुयि भवेज्जा, तत्व पडिबज्जमाणओ पाम जो तप्यहमताए चेव आमिाण-पद दीप अनुक्रम SECRESS [29] Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२-१५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री हा प्रत सत्राक बोदियणाण पढिवज्जद, सो य एगसमयइओ लम्मति, सेसेसु समएमु पुथ्वपडिवण्णओ लभीत, गइचिदारं गयं १ ॥ सत्पदे आवश्यक इदाणि इंदिएत्ति दारं, तत्थ पुढवीकाइयाइणो वणप्फतिकायावसाणा पंच काया एमिंदिया, तेसु दोवि पत्थि, रिति-लगत्य चूर्णी चउरिदिएमु णत्थि पडिवज्जमाणओ, पुथ्वपडिवण्णओ पुण भवेज्जा, कह !, जो कोई अविरयसम्मदिट्ठी विगलिदिएसु उप-12 ज्ञानानि ज्जति सो जाव अपज्जचतो ताव घंटालालादिद्रुतेण पुब्बपडिवण्णो लब्भति, पंचिंदिएसु पुच्वपडिवण्णतो पडिवज्जमाणोऽवि ॥१८॥ठा आभिणिबोहियणाणी हविज्जा, इंदिएचि गयं २॥ काएचि, पुढविकाए जाव वणप्पष्फतिकाए ण पुवपडिवण्णओ ण वा पडिवज्जमाणओ, तसकाए उभर्य होज्जा ३ ॥ जोगेत्ति जोगो तिविहो, तंजदा-मणवइकायजोगित्ति, एतेसु तिमुवि पुवपडिवनो पडिवज्जमाणतो वा होज्जा ४॥ वेदेत्ति, सो तिविहो तंजहा-इत्थी, पुरिसो णपुंसगत्ति, एतेसु तिसुवि दुविहोऽपि होज्जा ५॥ कसाएत्ति, ते य कोहादिणो चउरो, तेसु दुविहोवि होज्जा ६ ॥ लेसत्ति, तत्थ उवरिल्लासु तिसु विसुद्धलेसासु पुखपडिवचतो पडिचज्जमाणओ वा होज्जा, हेडिल्लासु अविमुद्धलेसासु पुष्य-16 परिवण्णओ होज्जा, पडिवज्जमाणओ पत्थि ७॥ सम्मत्तेत्ति, तं आभिणिचोहियणाणं किं सम्महिठ्ठी परिवज्जति मिच्छदिट्ठी सम्ममिच्छहिड्डी , एत्थ दो णया समो.8 टातरंति, तंजहा-णिन्छतिए य वावहारिए य, तत्थ णिच्छइयनयस्स सम्मदिट्ठी पढिवज्जइ, पुष्वपडिवचओऽवि सम्मदिट्ठी चेव, बाबहा-1&| रियस्स मिच्छादिड्डीपटिवज्जति, पुण्यपडिवण्णओ से णस्थि, सम्ममिच्छदिही ण वा पुण्यपडिवण्णो ण वा पडिवज्जमाणओ ८॥ दीप अनुक्रम RECE 4364444448 [30] Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [१२-१५], भाष्य [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां ज्ञानानि ॥ १९ ॥ णाति तं आभिणिचहियणाणं किं णाणी परिवज्जति उदाहु अण्णाणी १, एत्थ दो गया, तंजहा- णिच्छतिए य वावहारिए य, णिच्छतियस्स णाणी पडिवज्जति, पुष्वपडिवण्णओऽवि णाणी चैव हवेज्जा, जति णाणी पडिवज्जति किं आभिणिबोहियपाणी सुयणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी केवलणाणी पडिवज्जति १, तत्थ आभिणिवोहियणाणी आभिणिवोहियणाणउप्पत्तिसमकालमेव पडिवज्जमाणतो भवति, ततो कालतो पच्छा णत्थि पडिवज्जमाणतो, पुब्वपडिवण्णओ पुण भवेज्ज, सुतणाणी णत्थि पुव्व पडिवण्णओ, पडिवज्जमा पूर्ण आभिणित्रोहिययणाणां गवं चैव समुत्पत्ती भवति, ओहिणाणी पुव्यपडिवण्णओ भवेज्जा पडिवज्जमाणओऽवि, कहँ ?, जम्हा जुगवं चैव आभिणिवोदियमुत ओहिणाणाणं समुप्पत्ती भवति, अओ पडिवज्जमाणतो हवेज्जा, मणवज्जवणाणे पुथ्वपडिवण्णओ हवेज्जा, पडिवज्जमाणओ गत्थि, केवलणाणे दोऽचि णत्थि, बाबहारियस्स विभासः ९ । दंसणेति दारं, किं चक्खुदंसणी पडिवज्जति अचक्खदंसणी• ओहिदंसणी • केवलदंसणी पडिवज्जइ ?, तत्थ चक्खु० अचक्ख० ओहिदंसणी य पुष्यपडिवण्णओ वा होज्जा परिवज्जमाणओ वा, केवलदंसणे दोऽवि णत्थि १० ॥ संजमेति-आभिणिवोहियं किं संजओ पडिबज्जति?, असंजओ० संजयासजओ ०१, संजओ पुव्वपडिवण्णओ वा परिवज्जमाणओ वा होज्जा, पडिवज्जमाणओ जो सम्मत्तं चरितं जुगवं पडिवज्जति तस्सेत गहणं कर्तति, भणितं च- णत्थि चरितं सम्मत्तविणं बंसणं तु भयणिज्जं । सम्मत्तचरिताई जुगवं पुब्वि व सम्मतं ॥ १ ॥ असंजतोऽवि पुय्वपडिवण्णओ वा पडिवज्जमाणओ वा होज्जा, संजतासंजतोऽवि एवं चैव ११ ॥ उवओगित्ति, आभिणिबोहियं किं सागारोवडते पडिवज्जति उआ अणागारोवउत्ते पडिवज्जति ?, सागारोवउत्ते पडिव [31] सत्पदे गत्यादीनि ॥ १९ ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णी दीनि सत्राक जति, णो अणागारोबउत्तो, जम्मि समए पडिवण्णो आभिणियोहियणाणं तमि समए सो जीवो सागारोवउत्तो लग्भात, पुय-13 सत्पदे आवश्यक उपयोगादापडिवण्णओपि सागारोबउत्तो हुज्जा, अणागारोवउत्तो पुन्बपडिवण्णओ होज्जा, णो पडिवज्जमाणतो १२ ॥ ज्ञानानि म आहारत्ति, आभिणि किं आहारतो पडिवज्जति अणाहारतो चा, आहारतो पडिवज्जति, णो अणाहारतो, जति आहा-II द्वाराणि रतो तो किं पुज्वपडिवण्णओ पडिवज्जमाणो वा होज्जा ?, दोवि होज्जा, अणाहारओ पुण पुवपडिवण्णओ होज्जा, णो पडिव-13 ॥२०॥ ज्जमाणओ १३ ॥ व भासत्ति, किं भासतो पडिवज्जति अभासतो वा ?, जस्स भासालद्धी अस्थि सो भासतोऽवि अभासंतोऽवि पडिवज्जति, जस्स णस्थि सो ण चेव पडिवज्जति १४ ॥ व परिचत्ति, किं परित्तो पडिवज्जति अपरिचो पा, परित्तो पुष्वपडिवण्णतो वा पडिवज्जमाणओ वा होज्जा, अपरित्तो दुषिहो कायापरितो संसारापरितो य, एस दुविहोऽवि ण वा पुष्वपडिवण्णओ ण वा पडिवज्जमाणतो १५ ॥ पज्जवचि, किं पज्जत्ततो पडिपज्जति अपज्जत्ततो वार, पब्जचतो, पृथ्वपीडवण्णओ पडिक्जमाणभो वा होज्जा, अपज्जततो पुनपडिवण्णओ होज्जा, णो पडिवन्जमाणतो १६ ॥ ॥२०॥ है सुहुमेत्ति, किं सुहुमो पडिवज्जति वायरो वा', वायरो पडिवज्जति, णो सुहुमो, सो य बायरो पुव्वपडिवण्णओ पडिवज्जमाशाओ वा होज्जा १७ ॥ दीप अनुक्रम लक [32] Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 STER प्रत सत्पदे मादीनि द्वाराणि द्रव्य सनाक श्री सणित्ति, कि सण्णी पडिवज्जति असण्णी वा', सण्णी पडिवज्जति, णो असण्णी, सो य सष्णी पडिबज्जमाणओ वा पुव्वपआवश्यक|PI डिवण्णो वा होज्जा, असण्णी पुण पुवपडिवण्णओ होज्जा, णो पडिवज्जमाणओ १८॥ चूर्णों __भवसिद्धिएति, किं भवसिद्धिओ पडिवज्जति अभवसिदिओ वा पडिवज्जति', भवसिद्धिओ, णो अभवसिद्धिओ, सो भवसि-12 ज्ञानानि दिओ दुविहोवि होज्जा १९ ॥ ॥२१॥ चरिमत्ति, किं चरिमे पडिवज्जति अचरिमे वा', चरिमे पडिवज्जति, णो अचरिमे, से य चरिमे पडिवज्जमाणए वा होज्जा, पुथ्वपडिवण्णए वा होज्जा २० ॥१॥ गतं संतपदपरूवणचिदारं, इयाणि दबपमाणति दारं, तंजहा-आभिणियोहियणाणपडिवण्णगा जीवा दवपमाणेण केव-IN इआ', पडिबज्जमाणए पहुच्च सिय अस्थि सिय नस्थि, जति अस्थि जहण्णेण एको वा दो वा तिणि वा, उकोसणं पलिओ-18 | वमस्स असंखज्जतिभागे जावतिया चालग्गा, पुव्वपडिवण्णए पडच्च जहण्णपदे असंखज्जा उकोसपदेवि असंखज्जा, जहण्णप| यातो उकोसपदे विससाहिया २॥ खेत्तचि दारं, आभिणिचोहियपडिवण्णया जीवा लोगस्स कतिभागे होज्जा ?, किं संखेज्जतिभागे असंखेज्जतिभागे संखेज्जेसु भागेसु असंखिज्जेसु भागेसु सम्बकोए वा होज्जा', असंखज्जइमागे वा होज्जा, सेसपडिसहो, धूरगणणाए विसयं पडुच्च . लोगस्स चोइसखंडीकतस्स सत्तसु चोदसभागेसु होज्जा, विसओणाम विसओत्ति वा संभकोचि वा उबवत्तित्ति वा एगट्ठा, पडुच्च नाम पडुच्चति वा पप्पत्ति वा अहिकिच्चति वा एगट्ठा ३॥ दीप अनुक्रम मऊरान [33] Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णी ज्ञानानि प्रत सत्रांक જ રા SPAXARIRNAKPURUSCHKEK फुसणति दारं, आमिणियोहियणाणपंडिवण्णगा जीवा लोगस्स किं संखेज्जतिभागं फुसंति ? तहेव उच्चारणा, एकं जीर्ष ६ मतिज्ञाने संखेज्जतिभाग वा फुसंति असंखज्जतिभाग वा संखेज्जे वा भागे, जो असंखज्जे भागे फसति. णो सच्चलोग फसति, बिनादान एमेव पुरत्तेचि जीवा माणियब्वा ४॥ द्वारााण कालति दार, आमिणिवोहियणाणी जीवा लईि पडुच्च केवतियं कालं होज्जा १, एग जीव पहच्च जहणेण अंतोमुहूर्त VIोण छाबद्रि सागरोवपाई सातिरेगाई, कई, जो आमिणियोहितं लक्षणं तक्खणा चेव ततो परिपडति केव(का)लं वा करेज्जा तरस आभिणियोहियलबी अंतोमुह संभवति, जो पुण अणुत्तरविमाणेसु दो वारा उक्वज्जति उकोसठितितो तस्स छाबढि सागरो|वमा सातिरेगा, सातिरेग तुज मणुस्सभवे आउयं देसूणा वा पुव्यकोडी अप्पयर वा काले, णाणाजीचे पडुच्च सम्बदा । उपओगं पड़च्च एकजीवस्स जहण्णेणवि उकोसेणवि अंतीमुदुस, णाणाजीवे पहुच जहण्णेणवि उकासेणपि अंतोमहर्ष ५॥ रेति दार-आभिणिचोहियणाणस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतर होति , अंतरं णाम जो आभिणियोहियणाणी भवित्ता पापणोवि कालंतरण आमिणिबोहियणाणी चेव भवति, एत्थ एग जीवं पहच्च जहण्णणं अंतोमुहुरी, उकोसेणं अवदं पोग्गलपरियट्ट देसूर्ण, णाणाजीवे पडच्च गत्थि बैतरं ६ ॥ भागति दारं, आभिणिबोदियणाणी गं मैते ! जीवा सेसजीवाणं कतिमागे होज्जा १, गोयमा ! अणन्तमागे ७॥ R २२॥ भावेचि, आभिणिवोहियणागी में भैते । जीवे ओदइयोबसमियादीणं पंचण्हं भावाणं कतरंमि भावे होज्जा ?, खोबसमिए है होज्जा ८॥ दीप अनुक्रम [34] Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूचांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [१२-२०), भाष्यं [-] अध्ययनं -1. पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी ज्ञानानि ॥ २३ ॥ अप्पबहुचि दारं, एतेसिं थे मैंत ! जीवाणं आभिणिबोहियमाणण णोआभिणिवेहियणाणीणं कमरे कमरेहिंतो अप्पा वा । बहुया वा ?, सव्वत्थोवा आमिणिवोहियणाणी, गोआभिणिनोहियमाणी अनंतगुणा । अप्पाबहुयति दारं गतं ९ ॥ अण्णे एवं भणंति किं सम्मदिट्ठी पडिवज्जति मिच्छादिडी० सम्मामिच्छाहिडी, एत्य दो गया- णिच्छहए य बावहारिए य, तस्थ वावहारियस्स मिच्छदिडी परिवज्जात, गेच्छतियस्स सम्मदिट्टी पडिवज्जति, सम्मामिच्छा ण एकेऽवि, किं गाणी पडिवज्जर उआ अण्णाणी ?, एत्थवि एमेव । किं चक्खुदंसणी पडिव० १, केवलदंसणवज्जे पुव्वपडिवण्णणो वा परिवज्जमानओ वा । किं संजओ प० असंजओ वा प० संजयासजतो वा ?, 'णत्थि चरितं०' गाहा। किं सागरोवउत्ते प० अणागारोवउसे पडिवज्जई, सागारावउसे पडि० णो अणागारीवउते, जंमि पडिवष्णो सो सागारोवडतो, सेसेसु सागारोवओगेसु य अणागारोवओगेसु पुव्वपडिवष्णओ कि आहारओ प० अणाहारओ प० १, आहारओ प०, नो अणा० प०, दोऽवि पुण पुव्वपडिवण्णगा होज्जा । किं भासतो ५० अभासतो प० १, जस्स भासाली अस्थि सो भासतोsव अभासतोऽवि, जस्स णत्थि सो ण पडिव । किं परितो प० अपरितो पं० १, दुविधोऽवि परितो प०, अपरितो ण पडि, ण पुव्वपडि० । नोपरितोनोअपरिचो प प०, ण पुव्व पडि० । पज्जचओ परिवज्जइति २, अषज्जे पुब्वप० होज्जा । वायरो प०, २ । सुष्टुमो ण प०, व पुष्व० । सण्णी, पडि० २ असण्णी पुव्वष० । मवसिद्धिओ पडि० २, जो अभवसिद्विज । चरिमो पडिवज्जति चरिमो प०, पुथ्वपडिवष्णगं च पडिवज्जमाणगं च पचचरिमो, अचरिमो ण सेसं संतपदपरूवणा १ । दव्यमाणं आभिणिनोषिणाणपडिवण्णमा जीवा दव्यपमाणेण केवइया होज्जा ?, पडिवज्जमानए सिग अत्थि सिव [35] मागादीनि सत्यदादी अन्यमतं ॥ २३ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत KE भाव पहुच्चदीनि CE1195 दीप अनुक्रम श्री ठाणत्थि, जति अस्थि एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागो, पुष्वपडिवण्णए पहुच्च जहण्णपएस आवश्यक असंखेज्जा उक्कोसपएवि असंखेज्जा, जहण्णपयाओ उक्कोसे विससाधिका । खेतति, लोयस्स कि संखेज्जइभागे होज्जा जाव सत्पदाचूर्णी ज्ञानानि सबलोए, णो संखेज्जतिभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु णो असंखेज्जेसु णो सव्वलोए ३। फुसणावि एमेव ४। कालतोएगजीवं पडुच्च लद्धी जहण्णेणं अंतोमुहुत्वं, उक्कोसेण छावद्विसागरोवपाई पुवकोडिपुहुत्तहियाणि, णाणाजीचे पड्डुच्च सम्वद्धं ५। सेसे तहेव । ॥२४॥ तं च आभिणिवोहियणाणं समासओ चउब्यिहं पण्णचं, तंजहा-दबओ खेत्तओ कालओ भावओ, दब्बतो ण आभिणिबोहिय |णाणी आदेसोणं सम्बदब्वाई जाणति, ण पासति, खेत्ततो ण आदेसेणं सब्बखत्तं जाणति, ण पासति, कालतो णं आएसेणं सव्वकालं जाणति, ण पासति, भावओ आएसेणं सब्वभावे जाणति, न पासति । इयाणिं एतस्स आभिणिवोहियणाणस्स पगाडिभेदपय-| IM रिसणत्थं इमं गाहापुन्बद्ध भण्णति, संजहा| आभिणियोहिय नाणे, अट्ठावीसं भवंति पगडीओ॥१६ अ॥ ता य इमा, तं०- छबिहो अत्थोग्गही सोई-1 दियाई, तमि छव्विहा चेव सोईदियाई ईहा पक्खिचा, तासि मज्झे सोइंदियाई छब्बिहो अवाओ पक्खितो, तासु छब्बिहा धारणा तहेव पक्खित्ता, तासु सोइंदियघाणिदियजिभिदियफासिंदियवंजणोग्गहो चउम्बिहो पक्खित्तो, जाया पगडी अट्ठावीसति ॥ 18 एवमेते आभिणिबोहियणाणं अट्ठावीसति, पगतिभेदं गयं ॥ इयाणि सुतणाणस्स पगडिमेयपदरिसणत्थं इमं गाहापच्छद्धं भण्णति-18 ठिी सुतणाणे पगडीओ वित्थरओ यावि वोच्छामि ॥१६५ ।। जातो सुयणाणे पगडीओ भवंति तातो वित्थरओ C॥२४॥ वणेहामि, अविसदो संभावणे, कि संभावयति?, दुविधो बक्खाणधम्मो, जहा-संखेबओ वित्थरतो य, तत्थ संखेवओ भणिहामि, IP kikikik [36] Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], निर्यु नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप अनुक्रम श्री वित्थरओ पुण तासि पगडीण भेदा चेव दरिसावेउं अहं समत्थो, ण पुण पत्तेयं पत्तेयं जो तासि अत्थो त समत्थो दंसिउंति अक्षरश्रुतेऽआवश्यक II संभावयति ।। ते य तासिं भेदा वित्थरओ इमे क्षरस्वरूपं चूर्णी हा पत्तयमक्खराइं०॥ १७ ॥ जावइयाई पचेयं पत्तेयं असंजुत्ताणि अक्सराई लोए जावइया य तेसिं अक्खराणं परोप्परतो श्रुतज्ञान संजोगा एवइयाओ सुयणाणे पगडीओ भवंति णायच्याओत्ति ।। एयाओ पगडीओ वित्थरेण अहं ण सक्कोमि परूवेढणाउं वा, जतो ॥२५॥ Bा परिमियमाऊ गाणसंपत्ती य इतिकाऊण इमं गाहासुत्तं भणामि ____ कत्तो मे०॥ १८ ॥ अण्णे पुण भणंति- एयाओ पगडीओ वित्थरेण चोद्दसपुव्वधरा जाणंति परूति य, अभिण्जदसपुPविणो बा, अहं पुण असमत्थोत्तिकाउं इमं गाहासुत्तं भणामि 'कत्तो मे वष्णउं' गाहा, पुच्चद्धं गयं, संखेवेण पुण अहं जहा। आभिणियोहियणाणं अट्ठावीसपगडिभेदं परूवितं तहा सुयणाणे यावि चोइसविहं णिक्खेवं वष्णेहामित्ति । तंजहा२ अक्खर०१९॥ अक्खरसुतं सण्णिसुतं सम्मसुतं सादिसुर्य सपज्जवासयं गमितं अंगपबिटुं, एते सत्त भेदा सह पडिक्क्लेहि मेलिया चोद्दस भवति, तत्थ पढम दारं अक्खरसुतंति, एत्थ क्खरसदो संचलणे बटुइ, अकारो पडिसेहे, जम्हा णो क्खरति अओ अक्खरं, ण खरति णाम सबबिसुद्धणेगमणयादसेण ण कयाइवि जीवेण सह बिजुज्जहाचि वृत्तं भवति, ये पुण अत्था अक्खरेहिं अहिलप्पति | ते क्खरा अक्खरा य मणति, तत्थ अमुत्तदब्वाणि धम्मत्थिकायादीणि अक्खराणि, सासयाणित्ति बुत्तं भवति, तेसिपि परिपच्च- IM॥२५॥ इतो असासयभावो भवति चेक, जहा आगासस्स पडागाससंजुत्तस्स पडागासत्तेण विगमो घडाकासत्तेण उप्पाओ, आगासत्तेणावहिती चेव, जीवपोग्गलावि दवट्ठयाए अक्खरा, पज्जवट्ठयाए पुण क्खरा, कहं , जहा जीवस्स मणुस्सत्तादिणा उप्पाओ 'श्रुत'ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते [37] Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं - मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१९-२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री देवतादिणा विगमो, जीवचेण अवविती चेव, तहा अजीबदम्बस्सवि दुपदेसितादित्तेण उप्पाओ परमाणुमादित्तेण विगमो पोग्गल-131 संज्ञाक्षरं आपलातेण अवद्वितीय। जो अविणासीभायो तस्स निच्छयतो अक्खरंति समा। व्यंजनावरं चूणों तं पुण अक्खरं तिविहं, तंजहा- सन्नक्खरं बंजनक्खरं लद्धिअक्खर च, से किं तं सनक्खरं ?, जा अक्खरस्स संठाणागिती, श्रुतज्ञाने 18 जहा बट्टो ठकारो बज्जागिती बकारो, एवमादि सण्णक्खरं भण्णति । ॥२६॥दा वंजणक्खरं णाम जो अक्सरस्स अहिलाबो, जेण य अत्था णिव्वंजीयंति, णिव्यंजीयति णाम विभाबिज्जति फुडीकज्ज-द तीत्यर्थः, जहा अंधकारे वट्टमाणो घडो पदीवेण णिव्यजिज्जति, एवं जम्हा अभिहाणेण उच्चारिएण अत्था णिय्वंजीयंति अतो वंजणक्खर भष्णति, ते य एवं णिबंजीति जहा गोणिति भणिए तीए चेव ककहणंगुलपिसाणाइगुणजुत्ताए संपच्चओ भवति । *ण पुण आसहाथमाईसुति। तं च वंजणक्खरं दुविहं- जहत्थणिययं अजहत्थणिययं च, तत्थ जहत्यणियतं जहा दहतीति दहणों तवतीति तवणो एक्माह, अजहाणयतं णाम जहा अमाइबाहगो माझ्याहगो, णो पलं असईति पलासो एपमादी श तहा 13 CIपंजणक्खरं अणंणवि पगारेण दुविहं भवति, तंजहा- एगपरिरयं च अणेगपरिरयं च, एगपडिरयति वा एगपज्जायति वा एगणाम-CM भेदति वा एगट्टा, तंजहा-कस्सइ दब्बस्स एग चेव नाम भवति, णो वितिय, अणेगपरिरयंति वा अणेगपज्जायति वा अणेगणाम-12 Jहा भेदंति वा एगट्ठा, तं च जहा कस्सइ दव्वस्स अणेगाई णामाई भवंति, जहा.घडस्स 'घडकुडकुंभा' हत्थिणो 'हस्तिदंतिकुंजरा' टाएवमादी २। अइवा तं बंजणक्खरं दुविहं- एगक्खरं अणेगक्खरं, एगक्खरं जहा श्रीः ही धीःखीः एवमादि, अणेगक्खरं जहा Ix॥२६॥ IT'सहस्सक्खो ईसाणोत्ति'एवमादि ३ । अहवा तं वंजणक्खरं दुबिह- सक्कयं पागयं च, सक्कयं जहा- आत्मा पुगलः एवमादि, दीप अनुक्रम [38] Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१९-२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री प्रत सत्राक चूों भुतज्ञाने ॥ २७॥ दीप अनुक्रम पागयं जहा- आया पोग्गला एवमादि ४तं च बंजणखर देसिओ अणेगविहं भवति, जहा-जं खीर लाडाणं तं चेव कुडुक्काणं है छापील भण्णति, तं च अभिषयातो भिन्न अभिन्नं च, कहं , जम्हा मोदउत्ति भणिए णो वयणस्स पूरणं भवति. अतो गज्जति जहाधिकारः भिन्नया, जम्हा पुण मोदउत्ति भणित तंमि चेव संपच्चता भवति, णो तव्वतिरित्तेमु घडादिसु, अतो अभिन्नया, से तं वंजणक्खरं ।। से कि त लद्धिअक्खर?, लदिअक्सरं पंचविध पण, तंजहा- सोइंदियलदिक्खरं जाव फासिदियलद्धिक्सर से कितं सोईदिय-12 लद्धिअक्खरं १, २ जहा केणइ संखसद्दो सुतो. तओ तस्स तप्पच्चइया दोण्हं अक्षराणं लद्धो भवति, ताणि य अक्खराणि 3 इमाणि, तंजहा-संखोत्ति, से तं साइदियलद्धिअक्सरं १ । से किं ते चक्खिदियलद्धि, चक्खिदियलाद्धि० जहा केणइ उड्नकुंड-1G लायतवट्टगीवो घडो दिट्ठो, ततो तस्स तप्पच्चइया दो अक्खराणं लद्धी भवति, ताणि य इमाणि, त• घडोत्ति, एवं गंधरस-17 फासाणवि भाणियव्वं । किं च-एयस्स इंदियपच्चस्वस्स सोइंदियमादिणो लद्धिअक्खरप्पमाणस्स य अणेगतिकी अक्खरलद्धी भवति, कहं ?, जम्हा पुवमदिट्ठमसुतं किंचि अत्थं दट्टण णो अक्खरलामो भवति, जहा पणसफल पारसिगा दणावि षणसमेतंति एताणि अक्खराणि णो उबलभंति, तहा पुर्व सुतं दिटुं च किंचि अत्थं दळूण णो अक्खरलंभो भवति, कहं ?, जम्हाला मंदप्पगास खाणुं दट्टण किं पुण एस पुरिसो उदाहु खाणुति संसतो समुप्पज्जति जाव णो विभावयति पक्खिणिलयार्दाहिं कार-12 हिं ताव खाणुत्ति एतेसिं दोण्हं अक्खराणं णो लाभो भवति, तहा कस्सइ पुरिसस्स कोई पुरिसो णामं असरमाणो जाच ईई ते | पचिट्ठा अच्छति पताव संभरति जहा अमुगणामधेज्जोत्ति ताव तसि णामक्खराणं णो उवलद्धी भवति । तहा कस्सति पूणा परोक्खेऽवि अत्थे सारिक्खं दट्टण तविपक्खं वा दट्टणं अक्खरलंभो भवति, तत्थ सारिक्खओ जहा कोइ पुरिसो अण्णास्स 60% [39] Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१९-२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सुत्रांक दीप अनुक्रम कस्सई पुरिसस्स अणुसरिसो भवति, ततो तं दळूण अक्खरलंभो भवति, जहा- अहो इमो अमुगणामधेज्जस्स सरिसोत्तिः, तहा विपक्वतो, जहा अहिं दहण तविपक्खस्स णउलस्स गामक्खरोबलंभो भवति, कहं, जह पुण इदाणि एस्थ गउलो भवेज्जाला पायाः चूर्णी ततो एवं अहिं खंडाखडि करेज्जा, अहिस्स वा णउलो पडिसत्तुचिकाऊण कस्सति दयाजुत्तस्स अहिदरिसणाणुसमयमेव णउलश्रुतज्ञान 18/खरोवलंभो भवति, जहा- अहो एतेसि अहिणउलाणं अणवराहेऽवि भवपच्चतितो वेराणुभवो बंधोति । एवं इंदिओवलद्धिं पडुच्च । ॥ २८ ॥ अक्खरलंभो जहा भवति जहा वाण भवति तहा परूवितति । एतेण य सोईदियादिणा पंचविहेण लद्धिअक्खरगहणेण इंदियपच्च खप्पमाणं गहियं भवति । एगग्गहणे तज्जातियाण गहणं भवतित्तिकाउं अणुमाणउवम्मआगमावि गहिता चेव भवंति, तत्थ। ४ अणुमाणमवि पडच्च इमेण पगारेण अक्खरोवलभो भवति, जहा कोई अत्यो पुष्योवलद्धो, तम्मि अ काले अदिस्समाणो अणुमा-1 हाण पेप्पति, एत्थ दिट्ठतो, जहा- धूम दट्टण अपच्चक्खस्स अग्गिस्स अक्खरोवलंभो भवति, जहा- एत्थ एस धूमो एत्थ अग्गिणा भवितव्वं, तहा र गिद्धं च सेझं दळूण परिसिउकामो अंतरिक्खोत्ति एतेसि अक्षराण उबलद्धी भवति, एवमादी अणुमाणिओं अक्खरोवलंभो भवतित्ति । तहा उवम्ममवि पडुच्च अक्खरोवलंभो भवतित्ति, कहं , जहा-जारिसो गीः तारिसो गवतोति । तहा आगममवि पडुच्च अक्षरोवलंभो भवति, तत्थ आगमो णाम अचवयणं, तमि भव्वाभग्वदेवकुरुत्तरकुरादीण भावाणं | ४ अक्सरोबलमो भवति । एवमादि जो य एसो अक्खरोक्लंभो इदाणिं चिंतितो एस पायेण सणीण जीवाण भवति, णो ॥२८॥ ठिा असणीणत्ति, कथं', असणिणो पंचेंदिया पासंतावि अत्थे घडपडादिणो णोऽभिजाणंति-किमवि एयंति, तम्हा पायसो एसो लिद्धिअक्षरलंभो सण्णीण भवति, णो असण्णीणति । सेत्तं लद्धिअक्खरं, तस्स पुण एगमेगस्स अक्खरस्स दुविहा पज्जाया भवति, । IESARKARISA%% [40] Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१९-२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | दिपर्यायाः प्रत सत्राक दीप अनुक्रम श्री पतंजहा- सपज्जाया असपज्जाया य, तत्थ सपज्जायत्ति वा अस्थिभावोत्ति वा विज्जमाणभावोत्ति या एगट्ठा, असपज्जायति वा आवश्यकामस्थिभावोति वा अविज्जमाणभावोत्ति वा एगट्टा, तत्थ जे ते सपज्जाया ते दुविहा, तंजहा-संबद्धा असंबद्धा य, जेऽवि ते| चूर्णी असपज्जाया तेऽवि दुविहा, तं०-संबद्धा असंबद्धा य, एत्थ णियरिसणं अकारो, अकारस्सजे सपज्जाया ते अत्थित्तेण संबद्धवा, णत्थित्तेण श्रुतज्ञाने अब असंबद्धा, ते चेव अकारपज्जाया अण्णसिं अत्थित्तेण असंबद्धा पत्थित्तेणं संबद्धा, तहा जे असपज्जाया अकारस्स ते णस्थित्तेण संबद्धा, अत्थित्तेण असंवधा ते चैव अकारस्स असपज्जाया अमेसिं अत्थित्तेण संबद्धा, मस्थि० असं० एवं एतेण पगारेण सव्वत्थ सपज्जाया ॥२९॥ असपज्जाया संबद्धा असंबद्धा य चारेयच्या । अक्खरग्महणेण णाणस्स गहणं कतं, णाणं च णेयाओ अब्बतिरित्तं, कही, जाव जाणियव्वा भावा ताव णाण, अतो एतेसिं णाणणेयाण परिमाणं इमं भण्णाति. तंजहा-सव्वागासपदेसग्गं अर्णतगुणितं पज्जवग्गं अक्खरं लन्मति, तत्थ सम्बसद्दो णिरवसेसिए अत्थे वट्टइ, आगासं पसिद्ध चव, तस्स जै पएसग्गं, अग्गति वा परिमाणंति वा पमाणंति वा &एगट्ठा, तेण चेव सव्वागासपदेसग्गेण अर्णतगुणितं पज्जवग्गं अक्खरं लग्भति, पज्जायाण च एगमेगस्स आगासपदेसस्स जावइया अगुरुलहुपज्जाया तेर्सि संघिडियाणं जं अग्गं एतं परिमाणं अक्खरस्सत्ति, णाणपमाणंति वुच भवति । ४ इयाणि एतेर्सि अगुरुलहुदव्याणं परूवणा भण्णति, गुरुलहुदव्वाणि य पडुच्च अगुरुलहू भवंति अतो पुचि तेर्सि परूवणं काहामो, पच्छा अगुरुलहुदग्बाणंति, णिच्छयणयस्स पत्थि सव्वगुरुंदव्वं, णावि सब्बलई, वबहारणयादेसेण पुण बायरखंधेसु सव्वेसु दोवि अस्थि, जहा सबगुरू कोडियसिला, सब्बलहु मूलगपत्तं तूलं वा, आह केसु संधेसु बादरसन्ना लब्भतित्ति?, उच्यते, परमाणुतो आढचे जाव अणंतपदेसितो संधो एते मुहुमा खंधा भष्णति, अगुरुलहुपज्जाया य णिच्छयतो एतेसिं भवंति, जे णो गुरू गो ॥२९॥ [41] Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [१९-२०] भाष्यं [-] अध्ययनं -L पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ॥ ३० ॥ + लहुगा ते अगुरुलहुपज्जाया भण्यंति, जे पुण सुहुमातो अनंतपदेसितातो आरम्भ अनंताणंतपदे सिया खंभा तेसिं जे पज्जाया ते गुरुया लहुया य मिच्छयतो शातम्बत्ति, जे य गुरुदन्वाणं गुरुलहुयपज्जाया जे य अगुरुलह ते बुद्धीए पिंडेतुं तेण चैव रासिणा आहे अणते वारे गुणिया भवंति ताहे एगस्स अमुत्तदव्वस्स अगुरुलहुपज्जवेहिं समा न भावंति एत्थ सीसो चोदेति एवं केवइएहिं मुत्तदन्वाणं पिंडियपज्जातो अमुत्तदव्वाणं अगुरुलहुयपज्जाया अनंतगुणा भवंति ?, आयरिओ आह- बहुयावि अनंतएण गुणेज्जमाणे षत्थि परिमाणंति, तम्हा एतेण कारणेण अम्रुतदन्वस्य अगुरुलहुपज्जाया अनंता भवंति, जावइया य अम्रुतदव्वस्त अगुरुलहुपज्जाया एवइयं प्रमाणं अक्खरस्सति ॥ एयस्स य अक्खरस्स सव्वजीवाणं अनंतभागोऽविम्बाडिय तो, कहं १, अणुचरोक्वाइयाणं देवाणं सव्ववियुद्धं सुतणाणं, तयणंतरं असंखज्जगुणपरिहीणं उबरिमगेवेज्जगाणं, एवं च जाव ढविकाइयाणं ताव असंखेज्जगुणपरिहीणा सेठी, जइ य तेसि पि थोवगं आवरिय होतं ततो तेसिं अजीवभावतो होतो, जं च तैसि तं थोचगं नाचरितं से अनंततमो भागो अक्खरस्स गातव्योति । एत्थ दिडंतो रविपा, जहा सुवि मेहच्छण्णं गई बहावि रविणो पभा अस्थि चैव, एवं गाणावरणिज्जस्स कम्मस्स अर्थतेहिं अविभागपलिच्छेदेद्दि जतिवि एक्केक्को जीवपदेसो आवेदितो परिवेदितो भवति तहाचि पाणभावी अस्थि चैव पुढविकाइयादीर्णति । अक्खरसुतं गतं, श्याणि अणक्खरसुतं भण्णति, तंजहा ऊससितं० ||२०|| उस्ससियादीणि सिंघितावसाणाणि कंठाणि, अणुस्सारं णाम पडुडे अत्थे सतं वा संभरिते अण्णेण वा संभारिते जे अक्खरविरहितं सदकरणं तमणुस्सारं भण्णइ, छोलतं णाम सिंटी, आदिग्गहणेण य पुप्फसिकिडिकारजडिबुडिप्पहारसदादिणोऽयि भेदा गहिता भवंति से तं अणखरसूयं २ इयाणि सण्णिसुर्य भण्णति, सण्णि णाम जो संजापति, ईहापोहादि [42] उषा टितोऽनन्त भागः संज्ञिश्रुतं ॥ ३० ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२०], भाष्यं ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत श्रुत सत्राक दीप अनुक्रम श्री | गुणजुत्तोति वृत्तं भवति, तस्स जे सुतं तं सण्णिसुर्य भण्णति, ते च तिविह, तंजहा-कालिओवरसेण हेतुवाओवदेसेष दिडिवा- संत्यसंजिआवश्यक ओवएसेणंति, तत्थ कालिओवदेसो णाम जो सम्भावो कालणियमेण पढिन्जति सो कालिओ भण्णति, तस्स उबएसो कालिओवचूर्णी द्र एसो, तेण जस्स अत्थि ईहा चूहा मग्गणा य गवेसणा सो कालिओवदेसेण सण्णी भण्णाति, सो पुण सण्णी सई सोऊण तस्स अस्थं श्रुतज्ञाने ईहितुकामो अणंतपदेसिए खंधे मणपाउम्गे अणंते कायजोगेण घेत्तुं मणयति, तत्तो तस्स सण्णिाणो जहा चरखुसामत्थजुत्तस्स ॥३१॥ पुरिसस्स् पगाससंजुत्ते रूवे उपलद्धी भवति एवं तस्सपि सोइंदियादीहिं पंचहि मणेण य जुत्चस्स सई सोऊणं अत्थोवलती भवति, से ते कालिओवदेसणं सण्णिसुतं भण्णति शइयाणि हेउगोबएसेणं भण्णति-वत्थ हेउगोवएसोति वा कारणोवएसोचि नचा पगरणोबएसोचि वा एगहा, सो य हेउगोवएसो गोविंदणिज्जुत्तिमादितो, तंमि भणितं जस्स अहिसंधारणपुचिगा करणसत्ती अस्थि सो सभी लम्भति, अभिसंधारणपुब्बिया खाम मणसा पुष्वापरं संचिंतिऊण जा पवित्ती निवत्ती वा सा अभिसंधारणRIपुचिगा करणसत्ती भण्णति, सा य जेसि अस्थि ते जीवा जे सई सोऊण बुज्झति तं हेउगोवएसेण सण्यिसुर्य मण्याति २। इयाणि दिहिवाइगोवदेसणं सण्णिसुर्य भण्णइ-तत्य दिठिवाओ चोइस पुन्चाणि तस्स उवदेसो २ तेण जेहिं कम्मेहिं सण्णिमावो आवरितो वेसि केसिंचि खएण केसिंचि उपसमेणं सण्णिभावो लम्भति, सो य सही जं सदं सुणेति सुणिचा य पुष्वावरं खुज्झति तं दिविहै वाइओवदेसण सण्णिसुयं भणति, सेसं सचिसुतं ३।। का इयाणि कालियहेतु दिहिवाइओवदेसेण चेव असष्णिसुर्य भण्णइ, तत्थ कालिओवएसेणं जम्हा जस्स णस्थि इर्दा वृहा मग्गणा|81॥२१॥ गवेसणा सो असभी भवति, तस्स य सई सोऊण अव्वचा अत्थोषलद्धी भवति, कई ?, जहा पित्चमुच्छिकतस्स मज्जाईहिं वा [43] Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [२०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत श्रुतानि दीप अनुक्रम श्री दव्वेहिं मत्तस्व ईसि वा सइयस्स सई सोऊण अव्वत्ता अस्थोवलद्धी भवति, जहा य से सदे विसओवलद्धी अध्वत्ता तहा रूवर्ग-13/ संस्यसज्ञिआवश्यक धरसफासापवि जा अत्थोवलद्धी सावि अब्बत्ता चेव भवति, सेच कालिओवएसेण असन्निसुयं । इयाणि हेउगोव० जस्स णंट्र सम्यग्मिचूणीं अभिसंधारणपुब्बिया करणसत्ती णस्थि से असन्नी भवति, सो य तीए तहाविहाए सत्तीए अभावेण जे सदादिअत्थं उचलभति | श्रुतज्ञान |तं अव्वत्तं उबलमति, सेतं हेउगोवएसेणं असन्निसुयं । इयाणि दिडिवाइतोवएसेण असनीसुर्य भण्णति, तंजहा-अस्थि ते असण्णिणो ? || २॥ बेइंदियाई जेसि असण्णिसुतावरणकम्मोदएण सोयवलद्धी चेव पत्थि, केसिंचि पुण असणिणं पंचेंदियाणं सोइंदियावरणस्सा कम्मरस खओवसमेण असण्णिसुयलद्धी भवति, तेसिपि जा सद्दादिमु अत्थेसु उवलभियब्बएसु लद्धी सावि अब्बचा चेव, सेत दिडिवाइगोवदेसेणं असण्णिसुर्य भण्णति । एवं च असण्णिसुतं असणिपंचिदियं पडुच्च एव भणियं, एगिदियवेइंदियतइदिय|चउरिदियाण य मइसुयाणि अण्णोऽण्णाणुगयाणित्तिकाउं तेसिपि निविहणवि कालिगहेउगदिविवादिओवदेसेण असण्णिसुयं अत्थि चेव, एत्थ सीसो आह- एतेसि पुण सण्णिासुयअसण्णिसुयाणं तुल्लेवि जीवभावत्ते को पतिविसेसो ?, आयरिओ आह- जहा तुल्ले लोहभावे जा तिण्हया चक्करयणस्स, तओ बहुगुणपरिहीणा पिंडलोहसत्थस्स, तओ परिहाणतरा अपिंडलोहसत्थस्स, एवं जा सणीण इंदिओवलद्धी सा बहुगुणपरिहीणा असन्निपंचिंदियाणं, ततो बहुगुणपरिहीणा जहाणुक्कमेण चतुरिदियतेइंदियबेइंदिय६ एगेंदियाणति । सेतं असण्णिसुतं । अण्णे पुण सामण्णेण जस्स ण ईहापोहमग्गणगवेसणा अत्थि से सण्णी लब्भइ, जस्स णस्थि से असणी, से तं कालिओव-8 ॥३२॥ IPएसेणं, जस्स णं अभिसंधारणपुब्धिका करणसत्ती से सण्णी लम्भइ, जस्स णत्थि सो असण्णी, से तं हेतु०, सण्णिासुयस्स खओवसमेण [44] Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [२०], भाष्यं [-] अध्ययन [ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी श्रुतज्ञाने ॥ ३३ ॥ सण्णी, असण्णिसुयस्स खओवसमेण असण्णी, सेतं दिडिबाईओवदेसेणं, सेतं सष्णिसुतं, सेतं असष्णिसुतं ४ | इदाणिं सम्मसुतं, जे इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं आगाराह दुबालसंग गणिपिडगं परूवितं एतं सम्मदिद्विपरिग्गहितं सम्मसुतं, मिच्छदिट्ठिपरिग्गहियं पुण मिच्छसुयं भवर, सेतं सम्मसुतं ५ से किं तं मिच्छसुतं मिच्छसुर्य जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छन्दपरिकप्पियं, तंजहा भारहं रामायणं एवमादि मिच्छदिडीपरिग्गहियं मिच्छसुयं भण्णति, एयं चैव सम्मदिट्ठीपरिग्गहियं सम्मसुर्त भण्णति, सेतं मिच्छसुर्य ६ । इयाणि सादियं अणादीयं सपज्जवसियं अपज्जवसिय च एते चत्तारिवि दारा समगं चैव भण्णन्ति, तंजहा इच्चेयं दुवालसँगं गणिपिडगं वोच्छित्तिणय याए सादीयं सपज्जवसितं, अवोच्छित्तिणयट्टयाए अणाईयं अपज्जवसियं, अभवसिद्वियस्स सुतं अणादीयं अपज्जवसिय भवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं सपज्जवंसियति । अण्णे तं समासओ चउन्विहं तंजहा- दय्वओ खेचओ कालओ भावतो, दव्वतो एगं पुरिसं पड़च्च साईयं सपज्जवसितं, कहीं, जम्हा पंचहि ठाणेहिं सुतं सिक्खिज्जा० (जहा नंदी ए, एगं) पुरिसं पच्च सुवणाणं सादीयं सपज्जवासियं भवति, आह-तुम्भेहिं भणियं जहा- देवलोगं गयस्स सुगणाणं परिवडर, तो कई इमो आलावगो एवं पढिज्जति', जहा 'इहभविए भंते! णाणे पारभविए नाणे तदुभयभविए नाणे?, गोयमा इहभविएवि नाणे परभविएऽचि णाणे तदुभयभविएऽवि णाणिति, उच्यते, एगणयादेसेण एस आलावगी एवं पढिज्जति, कहं परभवियं तदुभयभवियं (वा) गाणं णियमा भवति, ण पुण जो णाणमहिज्जते तस्स सव्वस्स चैव एवं भवति, कम्हा, जम्हा चोदसपुच्ची देवलोगं गओ नियमा सव्वं सुयण्णाणं गिरवसेसं ण संभरति, जो पुण एगंगवी जाब भिण्णदसपुब्बी सो सव्यं णिरवसेसं संभरेज्ज वा ण वा, तम्हा सिद्धं इहभविए णाणे परभविए णाणे तदुभयभावए णाणेति । बहवे पुण पुरिसे पडुच्च अणादीयं अपज्जवतियं, संताणधम्मेण [45] साधनादिसपयेव सितापर्यव सितानि ॥ ३३ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२०], भाष्यं ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णी सत्राक दीप अनुक्रम श्रीभवतित्ति, खेत्तओ पंच भरहाई पंच एरवयाई पडच्च साईय सपज्जवसियं, पंच विदेहाई पडच्च अणादीयं अपज्जवसित, कालोति साधादीनि आवश्यकता छव्विहं उस्सप्पिणि छव्विई ओसप्पिणि पटुच्च सादाय सपज्जवसितं, पोउस्सप्पिणिअबसप्पिणि पट्टच्च अणादीयं अपज्जवसित गामकाग मिकांगानंINभावओ पण्णवगं पड्डुच्च पण्णवणिज्जा य भाषा पडच्च सादीयं सपज्जवसितं, कह', जओ उवउचो पण्णवेति अणुवउत्तो पण-INT श्रुतज्ञाने गानि 18 वेति, तहा उदत्तेण सरेण षष्णवेतुं अणुदत्तेण पण्णवेति, तहा आयरण पणवेतुं अणादरेण पष्णवोति, तदा निरचलो पण्णवेडं आउंटण-18 ॥३४॥ पसारणादीणि कुच्वंतो पण्णवेति, एवमादिसु कारणेसु पष्णवर्ग पहच्च भावओ सादीयं सपज्जवसिय सुयणाणं भवति । इयाणि । पिण्णवणिज्जा भाचा पटुच्च जहा तहा भण्णति-गतिपरिणयं दव्य पण्णवितुं ठाणपरिणयं पण्णवति, अतो सादीतं सपज्जवसितं भवति,120 तथा दुपएसित खंघभेदं पण्णवेऊण तिषएसियं पण्णवेति, एवमादिभेदं पच्च सादीयं सपज्जवसिय, तहा दो परमाणू संहता दुपदे-18 है। सितो गंधपरिक यण्ण संधो भवति, एवं पण्णवेतुं तिपदेसितं एवमादि संघायं पहुच्च सादीसपज्जवसिय, सहा दयार्ण वण्णपरिणाम पण्णवेऊण एवमादी पण्णवणिज्जा भावा पडुच्च सादिसपज्जवसिय । जम्हा खओवसमिते भावे णिच्च बट्टा सुयणाणं, बद्धाय अत्था जम्हा दख्यतयाए णिच्या अतो सुयणाणं भावतो अणादीयं अपज्जवसियं च भवति । गताणि चत्वारिवि दाराणि७-८-९-१०॥ . इयाणि गमिय अगमियं च दोऽवि दारा सम भणति, तत्थ गामियं णाम जं मंगजुनं गणितगामियं वा, जंवा कारणवसेण | सरिसगमं भवति, सत्थ भंगगमियं एगद्गतिगचउभंगमादी, गणियगमितं णाम जहा एक्कजीवाधणुपट्ठकरणेण अण्णाणिवि ॥३४॥ REIजीवाणुपड्डाण गणिज्जंति, सरिसगमं णाम जहा- कोहस्स उदयनिरोद्दो कायम्बो उदयपत्चस्स विफलीकरण कापबति तहा । माणमायालोमाणवि, एवमादि ११ । अगमित विवरीयं १२। गमिक-अगमिक श्रुतस्य स्वरुपम् [46] Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२०], भाष्यं ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक श्री टा इयाणि अंगपविद् वाहिरं च दोणिऽवि भणति, अंगपविट्ठ आयारो जाय दिविवाओ, अर्णगपविट्ठ आवस्सगं तव्यतिरिक्त भूतवादेआवश्यकच, आवस्सर्ग सामादियमादी पचक्खाणपज्जवसाणं, वतिरित्तं कालियं उक्कालियं च, तत्थ उक्कालियं अणेगविहं, संजहा- दस-1 योग्याः चूर्णी वेयालिय काप्पियाकप्पियं एवमादि, कालियपि अणेगविह, तंजहा-उत्तरायणाणि एवमादि१३-१४ ॥ एत्थ सीसो आह जहा दिहिवाए श्रुतस्य श्रुतज्ञाने सर्व चेव वयोगतमत्थि तओ तस्स चेव एगस्स परूवणं जुज्जति, आयरिओ आह- जतिवि एवं तहावि दुम्मेहअप्पाउयहत्थिया विषयः 18 दाणि य कारणाणि पप्प सेसस्स परूवणा कीरतित्ति, तत्थ बहवे दुम्मेधा असत्ता दिट्ठिवाय अहिज्जिङ अप्पाउयाण य आउयं णा पहप्पति, इत्थियाओ पुण पाएण तुच्छाओ गारवबहुलाओ चलिंदियाओ दुम्बलधिईओ, अतो एयासि जे अतिसेसज्मयणादा अरुणोक्वायणिसाहमाइणी दिट्टवाती य ते ण दिज्जति, तत्थ तुच्छा नाम पुच्चावरओ यक्खाणे असमत्था, गारखबहुला पामा गव्यमन्तीउत्ति, चलिंदियाओ णाम इंदियविसयणिग्गहे भूयावादं पप्प असमत्थाओ, दुबलधितीओ णाम चलचित्ताओ इति मातं सुवणाणलछी उपजीविस्संति, अतो तेर्सि अतिसेसज्झयणाणि वारिज्जतित्ति । गतं अंगबाहिरं, सम्मत्तं च चोइस विधणिक्षेत्र सुयणाणं॥ एतंपि संतपदपरूवणाईहिं दारहिं अविसेसमणाणतं जहा आभिणियोहियणाणं भणितं तहा भाणियव्वं । तं च समासओ |BI चउब्बिई, तंजहा- दब्बो सेत्तओ कालओ भावओ। दबओ णं सुयणाणी उचउत्तो सम्बदबाई जाणइ पासइ, एवं खेतो सबखेतं जाणति पासति, एवं कालभायावि भाणियब्वा । केति पुण पढ़ति- दबओ खेचओ कालओ भावओ, दमओ ण सुयणाणी जाणति न पासति, एत्थ सीसो आह-सुट्ठ जे एवं पढंति, आयरिओ आह-कह?, सीसो आह-ज पच्चक्खग्महणं ण एति सुयणा-11 संसिया अथा । तम्हा सणसद्दो ण होति सकलेवि सुयणाणे ॥ १॥ आयरिओ आह-जे जाणति पासतित्ति एवं पढ़ति ते इम दीप अनुक्रम अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य श्रुत [47] Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२१-२२], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका कारणं पडुच, जम्हा सुयणाणी दीवसमुदाणं देवकुरूत्तरकुराणिं च भावाणं संठाणादीणि जाणतो पासंतो इव आलिहि-12 बुद्धिगुणाः आवश्यक दऊणं दरिसेति अतो जापति पासतिचि एस आलावगो न विरुज्झइ ।। इयाणि इमस्स सुतणाणस्स इमो गहणोवाओ भण्णति आगमसत्थग्रहणं०॥ २१ ॥ आह- आगमग्गहणेण चेव सत्थग्गहणं गतं, किं पिहुग्गहण , उच्यते, णज्जति अत्था जेण श्रुतज्ञान । सो आगमो, ते य पंचविहेणवि मज्जंति, अतो सुयणाणवज्जाणं चउण्हं निवारणत्थं सत्थग्गहणं कीरति, अहवा सुयणाणस्स चेव पिज्जायदपदरिसणथं सस्थम्गहणं, तस्स आगमसत्थरस जं गहणं भवति तं अट्ठहिं बुद्धिगुणेहिं जुत्तस्स सीसस्स भवति. ण पुण IMएतद्विरहियस्स, एवं तित्थयरेहिं दिट्ठति ।। आह- कस्सेसो आदेसो जहा एतं एवं', आयरिओ आह-तं पुच्चविसारया धीरा. चिराइगुणजुत्ता आयरिया एतेण पगारेण सुतणाणस्स लंभ तित्ति । ते अट्ठ बुद्धिगुणा इम--- सुस्सूसति पडिपुच्छति॥२२॥ सुस्सूसति णाम सोतुमिच्छति, आयरियस्स विणयं पउंजति, विणओववेयस्स आयरिओ सविसेस सुर्य उबदिसति, अतो सुस्मसा सुयणाणग्गहणस्स उवम्गहे वह, तहा पडिपुच्छाइणोऽवि सुयणाणस्स उवग्गहे चेव चम॒ति । पडिपुच्छाणाम संकियस्स वीसरियस्स वा जा पुणो पुणो पुच्छणा, सुणेति णाम णिसामेति, गेण्हति अवधारयति, IPईहति- मग्गति, सुत्तच्चपदं गवेंसतित्ति घुत्तं, अपोहए णाम एवमेतं ण अन्नहा इति निच्छितं करेति, धारति परियट्टणुप्पेहाहिं, 1 ण णासति, करेति सुचाबदेसे सम्ममायरतित्ति। ठा एवमेतं, सुयणाष्पं सम्मत्त, सम्मत्तं च दुविहमवि परोक्खं । इयाणि तिप्पगार पच्चक्खं मण्णइ, तत्थ पढमं ताव ओहिणाणली रामण्णति, तस्स य पयडिभेयपयरिसपत्थं इम गाहासुतं 4%ACES दीप अनुक्रम 'ओहि'ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते [48] Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२३-२८], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत चूर्णी FOKI सत्राक दीप अनुक्रम 'पाकातौ 'मू' तिमाथा 'सुत्तरथों' गाथा च वःते] संखाइयातो खल्लु० ॥ २५ ॥ तत्थ संखा गणणा तं संखं चतुर्दशविआवश्यक अतीयाओ २, (ओहारणे) खलुसहो, जहा निरुवियस्थो ओहिसदो मज्जायाए वट्टति, जओ मज्जायति वा ओहित्ति वा मेरत्ति वा धोऽवधिः एगट्ठा, सा प मजाया इमा-जाणि रूविदव्वाणि तेसु जम्हा ओहिणाणस्स विसओ, ण पुण अमुत्तदन्वेसु धम्मास्थिकायादिसु, श्रुतज्ञाने गाणसदो परिपट्ठो, ओहिए णाण २, सब्वसद्दो निरवसेसिए अत्थे वट्टति, पगडीओत्ति वा पज्जायत्ति वा भेदात्त वा एगट्ठा, एयाओ काय काई भवपच्चयाओ काओ य खाओवसमियाओ, तत्थ भवपच्चयाओ देवाणं णेरइयाण य, कहं , जहा पक्खीणं विज्जादि॥३७॥ सियादिकारणविरहियाणवि भवपचएण चेव आगासगमणलद्धी भवति, एवं देवणेरइयाणं भवपच्चइया ओहिणाणलद्धी भवति, मणुस्सपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुण खओवसमिया ॥ एयाओ असमत्थो वित्थरतो वष्णेउंति काउं इमं गाहासुत्तं भण्णइ. कत्तो मे वणेउं० ॥ २६ ॥गाहापुबई गतं । किं पुण, संखेवेण जहा चोद्दसविहं सुयणाणं परूवियं तहा ओहिणाणमवि चोद्दसविहनिक्खेवं चेव भणिहामि, तप्पसंगेण य इड्डीपचे य मणिहामति, ते य ओहिस्स चोइसऽपि भेदा इड्डीपत्ताणुओगो य माइमाहि दोहिं माहाहिं संगहिता, तजहा ओही खेत्त परिमाणे॥२७॥ गाहा । णाण दंसणविन्भंगे॥२८॥ गाहा,तत्थ ओहित्ति पढमा पडिवत्ती,बीया खेलपरिमाणं, न तइया संठाणे, चउत्थी आणुगामिए, पंचमी अवाट्ठिए, छट्ठी चले, सत्तमा तिन्वमंदे, अट्ठमा पडियाओप्पाया, पवमा णाणे, दसमा ॥३७॥ पासणे, एक्कारसमा विमंगे, बारसमा देसे, तेरसमा खेत्ते, चोदसमा गतीएत्ति । इड्डिपत्ताणुओगे य तप्पसंगण पण्णरसमा पडिवची! दाभवति, पडिवत्ती पाम भेदो पगारोत्ति वुत्तं । तत्थ पढमाए पडिवत्तीए परूषणस्थ इम गाहासुतं [49] Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं -1. भाष्यं [-] मूलं [ / गाथा-], निर्युक्तिः [ २९-३०] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने 11 36 11 णावणा० ॥ २९ ॥ गाहा, सचविहो ओहिस्स निक्खेवो भवति, तंजहा-गामोधी ठवणोही दव्वोहि खेत्तोधी कालोधी भवोधी | भावोदिति । तत्थ णामठवणाओ जहा मंगलं, दुख्योही दुविहो, आगमतो गोआगमतो य, आगमओ जाणए अणुवउत्ते, णो आगमओ २ जाणगसरीराई तहेव, केवलं वतिरित्तो इमी जे दब्बे ओहिणा जाणति जेवा ओहिदिट्ठे परुषेति जेसु वा दब्वेसु ठियस्स ओही उप्पज्जइ जेसु वा ठियलओ ओहिं परूवेति से तं दब्बोधी, खेतोधी णाम जीम खेत्तंमि ओगाढाणि दव्वाणि जाणति जाणित्ता वा परूवेति, जंमि वा काले ओही उप्पज्जइति अनि वा परुवेति भवोही णाम जेसु णरयादिसु भवेसु ओही उप्पज्जति, उप्पत्रेण वा जावइयाणि भवाणि अप्पणो वा परस्स वा तीताणागताणि जाणति पासति परुवेति वा जम्मि वा भवे ठियो ओहिं परूवेति भावोधी णाम २, आगमतो णोआगमतो, आगमतो तहेब, गोआगमतो ओहिणाणस्स उदयादिणो भावे जाणमाणस्स परूवेमाणस्स व भवति । अहवा ओहिणाणं चैव सामिचेण असंबद्धं भावोधी मण्णति, ओहित्ति दारं गतं । दाणि खेतपरिमाणं तत्थ ओहिस्स रूविदच्येसु बिसओ, ताणि य रूविदष्वाणि खेत्तावद्धाणिचिकाऊण खेत्तस्स परिमाणं भण्णति, तं चेह खेतपरिमाणं तिविहं जहमयं उकोसयं मज्झिमंति, जेसि च जीवाणं गुणपश्चतितो ओधी ते पडच्च एस जह ष्णओ उकोसओ व ओही इयाणि भण्णति, तत्थं पुब्बि ताव जहणखेत्तस्स परूवणा इमा, तंजा जावतिया तिसमयाहारगस्स ० ॥३०॥ गाहा, अस्थि इहं तिरियलोए सयंभूरमणो नाम सव्यबहिरओ समुदो, तंमि जो मच्छो जोयणसाहस्सिओ सो मरिऊण यिए चैव सरीरकवले सुडुमपणगत्तेण उचबज्जिकामो पढमसमए पुब्वावरायतं दीहं सेढि साह रति, त्रिति समए वित्थारं साहरति, तइए समए हेट्ठुच्चत्तं साहरति, सा० चउत्थे समए अंगुलस्स असंखेज्जभागमेचीए ओगा [50] अवधिक्षेत्रद्वारे ॥ ३८ ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३१], भाष्यं ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | BHAB प्रत सत्राक श्री पाए अपणो देहकवाले सुहमपणगजीवताए उववमो, सस्स णं पढमबितियततियसमये आधारयस्स जावइए खेते सा सरीरोगा- आवश्यक दणा एवइए खेते रूपिदच्याणि ओगाढाणि जहणेण भोहीनाणी जाणति पासति । जहण्णय खेत्तपरिमाणयं गयं । चूर्णी ॥ इदाणि उक्कोसं भण्णति-सब्धषहुअगणिजीवा०॥३१॥ जया पंचसु भरहेसु पंचमु एरवयएमु उत्तमकट्ठपत्ता मणुगा भवंति ट्र श्रुतज्ञाने तदा सव्वबहुअगणिजीवा णायव्वा, जेण तत्थ लोगबाहुल्लयाए पयणादीणिवि चेव बहूणि भवति, आह- कया पुण अतीव उत्तमकट्ठ कापचा मणुया आसि', उच्यते, जया अजियसामी आसि तदा मिहुणधम्मभेदगुणेण चिरजीवियत्तर्णण य बहुपुत्तणतुका मणुया ॥३९॥ जाया, अतो अजियसामिकाले उत्तमकट्ठपचा मणुया आसित्ति, एत्थ सीसो आह- ते सव्वे अग्गिजीचा बुद्धीए रासि काऊण एकेके आगासपदेसे एफेक अगणिजीवं ठवेऊण रुयगसंठियं खिचं कीरह, एवं उविज्जते सव्वदिसाग रुयर्ग पूरिता अलोए असंखेज्जाणि जोयणाणि सो रुयतो पविट्ठो, एवतियं खेत्तं उकोसे आहिणाणस्स विसओ भवतित्ति ?, आयरिओ आह- अतिथोष एवं, अवि य| अवसिद्धतदोसो य एत्थ, कह', जेण एकमि आगासपदेसे ण चेव जीवस्स अवगाहणा भवति, पियमा असंखेज्जेसु आगास पदेसेसु जीयो ओगाहतित्ति । एत्थ पुणीवि सीसो आह-जति एवं ततो ते अगणिजीवा समाए असंखेज्जपदेसिआए ओगा|हणाए रुयओ कीरउ सो पुणोऽवि य लोय पूरिता असंखेज्जाणि जोयणाणि अलोए पविट्ठो, एवइयं खेत्तं परमोही जाणइ पासइ, आयरिओ आह- जतिवि एत्य अबसिद्धन्तो पत्थि तहावि अतत्थोवएसो भवति चव, तओ पुणोऽवि सीसो आह- तो खाई एग- पदेसितं पतरं रहज्जति उड्डअहदिसिवजं तं जहा पतरं लोग पूरिचा असंखज्जाणि जोयणाणि अलोए पबिट्ठ, एवतियं खेत्तं परमोही दाजाणइ पासह, आयरिओ भणइ एवमवि अतिथोत्रं, अवसिद्धतो य पुग्यप्पगारेणेव, सीसो पुणो आह- तो ते अगणिजीया सगाए २ दीप अनुक्रम PRACCA.SAX ३९॥ [51] Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [३१], भाष्यं [-] अध्ययन [ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 'असंखेज्जपदेसियाए ओगाहणाए पतरं कीरउ, तं च पतरं लोग पूरिता जाव पवि एवतियं जाव पासति १, आयरिओ भणतिएवं अतिथोवं पुणो सीसो आह- तो खाइ एगदिसिं एगपदेसियाए सेडीए ते सब्बे अगणिजीवा एगमेगे आगासपदेसे एकेक अगणिजीव ठाव कीरड जान सव्वे मिडिया, सा य सूई लोग बोलेत्ता असंखेज्जाई अलोए लोयप्यमाणमेसाई खंडाई पविट्ठा, ततो बुद्धीष उड्डूअहतिरियामु सव्वासु दिसासु भमाडिया, एवतियं जाब पासति १, भण्णति- तहावि अतिधोवं एयं, अव॥ ४० ॥ ॐ सिद्धंतो य तहेब, पुणोऽवि आह- तो ते सन्वेऽवि अगणिजीवा सगाए असंखेज्जपएसियाए ओगाहगाए एगदिसि सूई कीरउ जाव सन्वेऽवि ते अगणिजीवा पिडिता, सा य सूई लोग वोलेचा असंखेज्जाई अलोए लोयप्पमाणमेचाई खंडाई पविट्ठा, ततो उड्डअहतिरियासु सन्वासु दिसासु भमाडिया, एवतितं खेचं परमोही जाणति पासति १, आयरिओ आह- आमं, एवतियं खेतं जागति पासइ । सो य परमोही अंतोनुडुत्वं भवति, ततो परं केवलनाणं समुप्पज्जति, उक्कोसं ओहिस्वेत्त परिमाणं गतं । एतेसिं जहण्णुकोसाणं जं मज्झे तं मज्झिमं भणितं । तहावि सीसहियद्वाए विभागं दरिसेति- गुलमाला ||३२|| जो ओहिनाणी अंगुलस्स असंखेज्जभागमेतं रूविदव्यावद्धं खेत्तस्स वित्थारं जाणति पासति दवतो जे तत्थ रूविदव्वा ते जाणति पासति खेचं पुण अरूविं ण जाणति ण पासति, सौ कालओ आवलिआए असंखेज्जइभागे जावइया समया एवइयं कालं तीयं च अणागयं च जाणति पासति, भावतो जे तेर्सि अंगुलस्स असंखेज्जइभागावद्वियाणं दव्वाणं | कालगणीलगाइणो पज्जाया ते जाणति पासति १। जो अंगुलस्स संखेज्जभागमेतं रुविदव्यावद्धं खेतस्स वित्थारं जाणइ पासइ सो दव्बओ अंगुलस्स संखेज्जतिभागमेचे जावतिया रूविदव्या ते जाणइ पासइ, कालओ आवलियाएवि संखेज्जइभागे जावतिया श्री आवश्यक चूर्णी श्रुतज्ञाने [52] मध्यमा वधेः क्षेत्रादयः ॥ ४० ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) 1 अध्ययनं [-1, मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [३२-३५], भाष्य [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ॥ ४१ ॥ मध्यमा समया एवतियं कालं तीयं च अणागयं च जाणइ पास, भावतो तेर्सि अंगुलस्स संखेज्जतिभागावडियाणं दव्वाणं कालगणीलगाइणो पज्जाते जाणति पासति २। एवं जो अंगुलं पासति वित्यरतो सो आवलियस्तो आणइ पासति, ३। जो अंगुलपुडुतं सो बधेः आवलियं पुण्णं जाणति पासति दव्वाणि, भावतो य तहेव । तत्थ पुडुतसदो दोसु आरद्धो जाव णव लब्मेतिति ४। मज्झिमओहिखेत्तपरिमाणे चैव वट्टमाणे इमोवि मज्झिमओ चेव ओही दट्ठब्यो- तंजहा क्षेत्रादयः हम मुद्दत्तंतो० ॥ ३३ ॥ जो हत्थवित्थरं खेत्तं पासति सो कालतो तो मुहुतं तहेव जाणति पासति, दव्यभावावि सम्वत्थ तहेव भाणियव्वा५ जो पुण गाउयं सो दिवस अंतरं ६ । जो जोयणं जा०पा० सो दिवसपुहुतं ७, जो पणवीसं जोयणाणि सो पक्खतो ८। किं च एयंमि चैव अहिगारे इमं गाहासुतं तेजहा भरमि अद्धमासो० ॥। ३४ ।। जो भरहप्यमाणमेतं रुविदव्वाववद्धं खेत्तस्स वित्थारं जाणति पासति तस्सवि दव्वभावा जहा हत्थरस, कालपरिमाणं पुण से संपुष्णं अद्धमासं तीतं च अणागयं च कालं जाणति पासति ९। एवं जंबुद्दीवे साहितो मासो १०, माणुसखेचे वरिसं११, जो इतो जाव रुयगवरी दीवो एयप्पमाणमित्तं जाच पासति कालपरिमाणं से वासपुहुतं जाव पासह, १२ अप् वाससहस्सं भण्णंति । एवं एतेण पगारेण खेत्तदव्यकालभावाणं वृड्डीए भष्णमाणीए गंथत्रालया भवतित्तिकाऊ इमं गाहासुचमागतं संज्जमि उ काले० ॥ ३५ ॥ एत्थ सीसो आह- भगवं ! जो ताक असंखेज्जं कालं तीयं च अणामयं च जाणति पासति सो असंखेज्जे दीवसमुद्दे पास, जे पुण संखेज्जा दीवसमुद्दा ते तस्स असंखेन्नकालदेसियों ण जुजंति, आयरियो आह-जो [53] ॥ ४१ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [३२-३५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत श्रुतज्ञाने सत्राक श्री असंखेज्जकालदंसी संखेज्जजोयणवित्थडे दविसमुद्दे जाणति पासति सो कोई णियमा असंखेज्जे दीवसमुदे जाणति पासति, जो पुणाकालादिआवश्यक असंखेज्जकालदंसी असंखेज्जजोयणवित्थडे दीवसमुद्दे जाणति पासति सो कोती संखेज्जे दीवसमुदे जाणइ पासइ, कहं ?, जहा- ध्ध्यवृद्धा चूणा सयंभुरमणे ठियस्स कस्सइ तिरियस्स असंखेज्जकालविसइओ ओही उप्पण्णो, ततो सो सयंभुरमणाइणो संखेज्जे दीवसमुदं जाणति !! १४ पासति, तम्हा एतेण कारणेण काले असंखेज्जे दोबसमुद्दा संखेज्जा असंखेज्जा वा मतियव्यत्ति ॥ इयाणि गुणपच्चइयस्स ओहि॥४॥ णाणस्स उप्पण्णस्स सुभपरिणामोदएण दबखेत्तकालभावाणं जहा जी भवति तहा भण्णति-तजहाHP काले चउण्ह युड्डी० ॥ ३६ ॥ काले बढ्डमाणे दव्यखेत्तकालभावा चउरोवि णियमा वटुंति, खेत्ते पुण बड्डमाणे दव्यभावा नियमा वर्ल्डति, कालो वडति वा ण वा वडति, बुड्ढाए य. दव्यपज्जवाणं खत्तकाला बढुतित्ति, एत्थ पुण केई एवं चोएऊण एवं परिहरंतिजहा किल कोइ सीसो आह-भगवं! कह खिलवुड्डीए कालो षड्वति वा न वा वड्डति ?, दबभावाणं च वुड्डीए कहं खेत्तकाला वड्दुति वाण वा बटुंतित्ति ?, आयरिओ आहजया कालो दवावबद्धातो खेत्ताओ अण्णो व संभाविज्जह तदा तमि खेत्ते वडमाणे कालोण यति, जया पुण तस्स चेव दवावबद्धस्स खेत्तस्स परिणामो कालो सैभाषिजह तया खेत्ते बड्डमाणे कालो णियमा यङ्गति, णिच्छ#यनयस्स पुण ण चेव दव्वावरद्धातो खेत्तातो कालो अण्णो भवति, जच्चेव सा तस्स दव्यावद्धस्स खेत्तस्स परिणती सो कालो | भण्णति, एरथ दिद्रुतो रखी, जहा तस्स रविणो गइपरिणयस्स जं पुम्बदिसादरिसणं सो पुष्यण्डकालो भण्णाति, तस्सेव गतिपरिण-15॥४२॥ | यस्स जे णहमने दरिसणं सो मझण्हकालो भण्णति, तस्सेब गतिपरिणयरस जं पच्चत्थिमेण गमणं सो अवरण्डकालो भन्नइ, अतो निच्छयनयस्स दब्बपरिणामो चेव कालो भन्नति, दवपज्जवाणं च वुड्डीए खेत्तमवि दवावबद्ध वित्थारं पडच बढति चेब, दीप अनुक्रम . NET [54] Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] मूलं [-- / गाथा-1, निर्युक्तिः [३६] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक श्रुतज्ञाने ॥ ४३ ॥ भाष्यं [-] जमि खेत्ते अवगाढा दष्वपज्जाया तं अरुवित्तणेण आगासन बहुति, कालोऽवि जया दब्बपज्जवाणं अण्णो चैव संभाविज्जति तया तेसु दब्वपज्जवसु बर्द्धतेसु सो कालो ण बडद, जया पुण दव्वपज्जवराणं चैव परिणामो कालो संभाविज्जति तदा तेसिं बुट्टीए कालोऽवि बद्धति चेव, अतो दब्वपज्जवाणं बुट्टीए खेत्तकाला दोऽवि भइयत्ति । एत्थ सीसो आह-भगवं ! तेसिं पुण दव्वखेतकालभावाणं किं सब्वमुहमत्ति १, आयरिओ आह-सङ्काणं पटुच्च दव्वतो सव्वद्व्वाणं परमाणुपोग्गलो सुमो, खेत्ततो साणं पड़च्च एगो आगासपदेसो सुमो, कालतो साणं पडुच्च समओ सुमो, भावतो सट्टा पडुच्च एगगुणकालतो सुमो, परद्वाणं पटुच्च दब्बातो भावो सुहुमतरागो, कई ?, जेण परमाणुपोग्लो अतगुणकालओsa अस्थि, अतो दथ्वेहिन्तो भावा सुमयरागो, मुत्तदन्यभावेहिंतो अमुत्तभावत्तणेण कालखेत्ता सुहुमा, कालतो य खेत्तं सुहूमयरागंति, कहं १, सुमो य होति कालो• ॥ ३७ ॥ कालो ताब अतीव सुमो दट्ठब्बो कई ?, से जहा नागए तुष्णागदार तरुणे बलवं णिउणसिप्पोचगयादिगुणजुते पडसाडियं वा पट्टसादियं वा गहाय सयराई हत्थमेतं ओसारेज्जा, एत्थ सीसो आह भगवं ! जेण कालेन तेणं तुण्णागदारएण तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा हत्थमेचे उस्तारिस्ट से समए भवति १, आयरिओ आहण भवति, कहूं ?, जम्हा संखेज्जाणं तंतूणं समागमेण से पत्थे णिष्फण्णे, उवरिय तंतुंमि अच्छिष्णे हिडिले तंतू ण छिज्जति, अमि काले उबरिले तंतू छिज्जति, अण्णमि हेडिले, अतो से समए ण भवति, एत्थ पुणोऽवि सीसो आह-भगव । जेणं कालेणं तेण तुष्णाकदारएणं तत्थ वत्थस्स उचारछे तंतू छिष्णे से समए १, आयरिओ आहण भवति, कहं ?, जम्हा संखेज्जाणं [55] द्रव्यादिषु सूक्ष्मताक्रमः ॥ ४३ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत चूर्णी सत्राक 18 पम्हाणं समागमेण स तंतू णिप्फज्जति, उपरिल्ले य पम्हमि अच्छिण्णमि हेडिल्ले पम्हे ण छिज्जति, अण्णमि काले उवरिल्ले पम्हे 81 वर्गणाआवश्यकता छिज्जति, अण्यामि काले होहल्ले पम्हे छिज्जति, अतो सेवि समए न भवति, एतेणं सुहुमतराए समए पण्णत्ते समणाउसो', एवं प्ररूपणा ताब कालो हुमो भवति, एयाओ य कालाओ खत्तं सुहुमतरागं भवति, कह , जेण अंगुलप्पमाणमेते आगासे जावतिया आगास-12 श्रुतशान पदेसा ते बुद्धीए समए समए एगमेग आगासपदेसं गहाय अवहीरमाणा अबहीरमाणा असंखज्जाहिं उस्सप्पिणीहि अवहिया ॥४४॥ भवंति, अतो कालतो खेत्तं मुहुमतरार्ग भवति । इयाणि मज्झिमखेताहिगारे चेव बट्टमाणे उप्पज्जमाणओ ओही जाणि दग्बाणि I पढम पासति जेसु वा दब्बेमु परिवडति ताणि भण्णति, तंजहा। तेयाभासादब्वाणमंतरान॥३८॥ एसा गाथा महत्था दुरहिगमा य अतो आयरितो सीसहियडयाए (ओरालविउव्व०॥३९॥ चउम्विधाओ वग्गणाओ दरिसेति, ताहि य पदरिसियाहिं एतस्स गाहासुतस्स अस्थो मुहं घेपिहिति, कह , तत्थ दिद्रुतो 51 कुइयण्णो, जहा कुइयण्णगाहावइस्स अणेगा गोउलाण वग्गा, तेसिं पुण वग्गाण एकेको बम्गो पिहप्पिदं रक्खगाण दिण्णो, तता १ तेर्सि एगभूमीए चरताण अण्णवग्गमिलणेणं अतिबहुलत्तणेण य मोणीणं ते गोबाला असंजाणता मम एसा ण एसा तुम्भंतिला ॥४४॥ परोप्परओ भंडणं कुव्वंति, तेसिं च भंडणपमारण ताओ गोणीओ सीहवग्याईहिं खजति, दुग्गविसमेसु य पडियाओ भजति मरंति य, ततो तेण कुइयण्णेण एतं दोस जाऊण तेसिं गोवालाणं असंमोहणिनि एमो कालियाणं वग्गो कओ, एगो नीलियाणं, है। एगो लोहियाण, एगो मुकिलियाणं, एगो सबलाणं वग्गो कतो, एवं सिंगाकिइबिसेसेऽवि काउं पिहप्पिहं समप्पिया, पच्छा ते गोवा ण समुच्छ(झ)ति ण वा कलहिंति, विसरिसाओ य पए पागडा जहा हंसमझे काओ, एवं आयरिओ सिस्साणुग्गहानीमस इमाओ दीप अनुक्रम PASSESSIOS [56] Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [३८-३९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत वृणी 8 दीप अनुक्रम Mचउविहाओ वग्गणाओ देसेति, तजहा- दब्बतो खेतओ कालतो भावतो, तत्थ दब्बती इमातो वग्गणातो भवंति, तंजहा-13 वर्गमाआवश्यक एगा परमाणुपोग्गलाण दन्बवग्गणा, एगा दुपदेसियाण, एवं जाव दसपएसियाण, एगा संखेज्जपएसआणं खंधाणं वग्गणा, एगाप्ररूपणा असंखेज्जपएसियाणं खंधाणं वग्गणा, एगा अणंतपएसियाणं खंधाणं वग्गणा, एयाओ दव्ववग्गणाओ । इयाणि खेत्तवग्गणाओ, . श्रुतज्ञाने पतंजहा- एगा एगपएसोगाढाणं पोग्गलाण वग्गणा, एवं जाव एगा दसपएसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एगा संखेज्जपएसो-। गाढाणं वग्गणा, एगा असंखेज्जपदेसोगाढाणं, एयाओ खेतवग्गणाओ । इयाणि कालवग्गणाओ, तंजहा- एगा एगसमयट्ठि॥४५॥ तीयाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाय एगा असंखेज्जसमयठितीताणं पोग्गलाणं वग्गणा, एयाओ कालवग्गणाओ। इयाणि चावीसभदातो भावबग्गणातो भण्णति, तंजहा-एगा एगगुणकालाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाव एगा अणंतगुणकालाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एवं नीललोहियहालिदसोफिलावि यण्णा भाणियब्वा, एवं दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा य भाणियब्बा, जाव एगा अर्णतगुणलुक्खाणं । पोग्गलाण वग्गणा, एगा गरुयलहयाण पोग्गलाणं वग्गणा, एगा अगुरुलहुयाणं, एवमेयाओ वग्गणाओ, गंधरसफासगरुयलहुयअगरुय लहुयसहियाओ बावीस वग्गणाओ भवंतित्ति । एयाओ कालभावाणं वग्गणाओ पसंगेण भणियाओ। एत्थ पुण दबवग्गणासु खेत्तवग्गहोणासु य पाहण्णण आधिगारो। तासु य दव्ववग्गणासु खेत्तवग्गणासु य पंचण्डं सरीराणं भासाए आणपाणुस्स मणस्स य जाओ अग्गहणपा उग्गाओ वग्गणाओ जाओ य गहणपाओग्गाओ ताओ भण्णंति, तंजहा-एगा परमाणुपोग्गलाणं वग्गणा जाव अणंतपदसियाणं खंधाणं ॥४५॥ बग्गणा, तत्थ जहिं पढमो अणतसद्दो णिफण्णो तमणंतरं एकुत्तरियाए परिखुड्डीए जाहे अणते बारे गुणियं भवति ताहे एगा ओरालियसरीरस्स अग्गहणपाओग्गा दन्यवग्गणा भवति, कहं , जो ओरालियसरीरं एचोऽवि थूलतरएहितो खंधेहितो निष्फणं, XI [57] Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [३८-३९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 वर्गषा प्रत सत्राक चूणों श्रुतज्ञाने ॥४६॥ काते य अणंताणतपदोसिया खंधा तं ओरालियसरीरं पहुच्च थोवतरएहि परमाणूहिं णिफण्णत्ति, अतो ते अणंताणतपदेसिया दाखंधा ओरालियसरीरस्स अम्गहणपाउग्गा दबवग्गणा भवति, जाहे य ते अणताणतपदसिया खंधा एक्कुत्तरियाए परिवड्डीए प्ररूपणा अणंते वारे गुणिया ताहे ओरालियसरीरस्स एगा गहणपाउग्गा दब्बवग्गणा भवति, किं कारण, जेण तावरूविमेत्तेहि खंधहि ओरालियसरीरं णिफज्जति, तेहिंतोवि ओरालियसरीरस्स गणपाउग्गेहिंतो खंघहिंतो एक्चरियाए बड्डीए अर्णवाओ दब्बवग्गजाओ वालउं ताहे एगा ओरालियसरीरस्स अग्गहणपाउग्गा दबवग्गणा भवति, कि कारण, जम्हा आरालियसरारगहणपाङग्गाह खंधेहितो बहुतरहिं परमाणूहि णिफण्णा, अओ ओरालियसरीरस्स एगा अग्गहणपाउग्गा दबवग्गणा भवति । ततोsवि एक्कुत्तरियातो अणता ओरालियसरीरस्स अग्गहणपाउग्गातो दब्बवग्गणातो गंता ताहे एगा वेउध्वियसरीरस्स अतिसुहुमत्तणेण खंधाणं एगा अग्गहणपाउग्गा दव्ववग्गणा भवति, ताओ बेउव्वियसरीरस्स अग्गहणपाउग्गाओ दव्ववग्गणाओ एक्कुत्तरियाओ अर्णताओ गंता ताहे वेउबिगसरीरस्स एगा गहणपाओग्गा दच्यवग्गणा भवति, ततोऽवि वेउब्धियसरीरस्स अग्गहणपाउग्गा एक्कुचरियाओ अणंताओ गंता ताहे वेउब्वियसरीरस्स अतिधरतणण खंधाणं एमा अग्गहणपाउग्गा दव्ववग्गणा भवति, वेउच्चियसरीरं च ओरालियसरीरातो जतिवि सुहमयराग दीसति तहावि तं बहुतरएहि परमाणुसंधायानफणहिं खंधहि निफज्जति, घणणिचियत्तणेण य ताओ ओरालियसरीराओ सिढिलखंधनिष्फष्णातो, तं चिय वेउब्धियसरीरं सुहुभयरागं भवति । एत्थ दिद्रुतो वहरं, जहा यइरं सकातो पमाणातो अण्णण त दुगुणपमाणमेत्तेण सिढिलखंधणिफण्णण फुट्टपत्थरादिणा दव्येण सह तोलिज्ज IGI४६॥ नाणं घणणिचियत्तणेण खंधाणं डहरयपि दीसमाणं बहुतरायं तुलति, एवं बउब्वियसरीरं मुहुमतरागपि दीसमाणं ओरालिय दीप अनुक्रम MONSOSORRECTOR [58] Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [३८-३९], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 द्रव्यक्षेत्र प्रत सत्राक आवश्यक चूर्णी श्रुतज्ञाने ACTERAK SAR ॥४७॥ दीप अनुक्रम - सरीरपाउग्गधेहितो बहुतरएहिं परमाणुसंधायनिष्फण्णेहि खंधेहिं निष्फज्जतित्ति । ताओ य घेउवियसरीरस्स अग्गहणपाउग्गाओ | एकुत्तरियाओ अणंताओ दग्ववग्गणाओ गंता ताहे एगा आहारकसरीरस्स अतिसुहुमत्तणेणं खंधाणं अग्गहणपाउग्गा दव्यवग्गणा भवति, जाओवि आहारगसरीरस्स अग्गहणपाउग्गाउ एकुत्तरियाओ अणंताओ दव्ववग्गणाओ गंता ताहे एगा आहारगसरीरस्स गहण-5 पाउग्मा दश्ववग्गणा भवति, ततोऽवि आहारगसरीरस्स गहणपाउग्गातो एकुत्तरियाओ अणंताओ दब्बवग्गणातो गंता ताहे अतिधूरचणणं खंधाणं एगा आहारगसरीरस्स अग्गहणपाउग्गा दब्बवग्गणा भवति, एवं एतेण कमेण आहारगाओ अणंतरं तेयकस्सा अग्गहणं गहणं पुणो य अग्गहणं भाणियब. तेयकाणंतरं एतेण चव कमण भासाएवि तिष्णि पगारा भाणियब्या, आणपाणुस्सवि तिणि पगारा भाणियब्बा, मणस्सपि तिणि पगारा भाणियव्या, कम्मस्सापि तिष्णि पगारा भाणिअय्बा, जाव कम्मकस्स उपरिल्ला अग्गहणपाउग्गा दरवग्गणा । ताओ एकुत्तरियातो अयंतातो दव्यवग्गणाओ गंता साहे अर्णताओ धुववग्गणाओ भवंति, ताओऽवि एकुत्तरियाओ अणंताओ धुवाओ गंता ताहे अर्णताओ अदुवयग्गणाओ भवति, ताओऽवि एगुत्तरियाओ अणंताओ गंता ताहे अर्णताओ मुन्नतरवग्गणाओ मवंति, तातोऽवि एकुत्तरियातो अर्णताओ गंवा ताहे अणंतातो असुषणतरबम्गणातो भवंति, चचारि धुवर्णतराई चत्तारि सरीखग्गणातो गंता एत्थ मौसयखधो भवतित्ति, पच्छा अचित्तमहाखंधो भवति, एवमेयाओ दबवग्गणाओ भणियातो। इयाणि खेतं पट्टच्च तेसि घेव दब्बाणं ओगाहणवग्गणाओ भणीत, तंजहा-एगा एगपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाव एगा दसपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा संखेज्जाओ संखेज्जपदसोगाढाण पोग्गलाणं वग्गणाओ असंखेज्जाओ असखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणाओ, तत्थ असंखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं एकुत्तरियाए ओगाहणपरिचड्डीए अतिसु ४ ॥४७॥ [59] Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [३८-३९], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्राक हुमत्तणेण खंधाणं अग्गहणपाउग्गा ओगाहणवग्गणा, ताओवि एक्कुत्तरियाओ कम्मगसररिस्स असंखेज्जा ओगाहणवग्गणाओ गंता द्रव्या दएगा कम्मगसरीरस्स गहणपाउग्गा ओगाहणवग्गणा, गहणपाउग्गावि एकत्तरियाए असंखेज्जाओगाहणवग्गणाओ गंता अति-लार चगणाः चूणा थूरचणेण खंधाणं एगा कम्मगसरीरस्स अग्गहणपाउग्गा ओगाहणवग्गणा, एवं एतेण कमेण मणस्सवि अग्गहणं गहणं पुणोविलाप 18 अग्गणमुहेण तिणि पगारा भाणियब्वा, एवं आणापाणुस्सवि तिण्णि पगारा भाणियब्बा, भासाएवि तिनि पगारा माणियब्वा, ॥४८॥ तेयगस्सवि तिन्त्रि पगारा माणियब्बा, आहारगस्सवि तिष्णि पगारा भाणियच्या, वेउब्वियस्सवि विष्णि पगारा भाणियव्वा, | ओरालियस्सवि तिष्णि पगारा भाणियब्वा, एवमेयातो खेतवग्गणाओ भाणियब्बाओ। कालवग्गणा एगसमयावतिकादी सव्वा गहणं एंति, भावेऽवि सब्बा वग्गणाओ गहणं एंति, गुरुकलहुका अगुरुकलहुका य, एयाओ कस्सवि एंति कस्सइ णिति ।।४ इयाणि तीए गाहाए अत्थो समोतारिज्जति, तंजहा जाणि तेयकसरीरस्स अतिथूरतणेण अग्गहणपाउग्गानि दब्वाणि भासाए य जाणि अतिमुहुमत्तणणं अग्गहणपाउग्गाणि दब्याणि एत्थ अंतरालं भवति, पवतो लहति णाम ओहिण्णाणं पडिवज्जइति वुत्तं भवति, पट्टवतो णाम तप्पढमयाए एतानि दवाणि पासित्तुमारभतित्ति वुत्तं भवति, गुरुलहुअगुरुलहुयं णाम जो तेयकसरीरस्स भासाए य अंतरदच्चा तेसिं केइ गुरुलहुया केह अगुरुलहुया, ते गुरुलहुगा अगुरुलहुगा य ओहिनाणी पढमं पासिऊण जति पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं बट्टाति ततो बिसुद्धपरिणामगो ओहिणा परिवड्डमाणेण उवारं जाव अचित्तमहाखंघो ताव पासति, हेट्ठावि जात परमाणू पोग्गला ताव पासति, अप्पसत्थेहिं पुण अज्झवसाणेहिं वद्दमाणो आविमुद्धपरिणामको ओहिणा हायमाणेणं एवं चेव उवरि हिट्ठाओ, तं ओहिणाणं तेसुश दीप अनुक्रम 44-% [60] Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत निष्ठास्थाने सत्राक श्री चेव दवेसु णिहाइ, गिट्ठाइ णाम ताणि चेव -दव्याणि पासिऊण परिवठतित्सिवुत्वं भवति । इदाणि अमेत गाहासुर्च सहस्थं हेवा अवधिआवश्यक वणितं एपस्स दबवागणाणं खेतवम्गणाण य दोण्हवि जाओ गणपाओग्गाओ अरगहणपाओस्माओ य वरमगाओ वासिंस्थापन चूणा कमपरिचाठिं मणिहामि, वस्थ दनवग्गणार्ण अणुक्कमपरिमाडी इमेण गाहापुषझेणं गहिता, तेजहाश्रुतज्ञाने (ओरालविउब्याहारतेअभासाणपाणमणकम्मे । अह दव्ववग्गणाणं, कमो विवज्जासओ स्वित्ते ॥ ३९।। ॥४९॥ कम्मोवरि धुवेयरसुण्णेयरवग्गणा अणंताओ। चउधुवर्णतरतणुवग्गणा य मीसो तहाऽचित्तो॥४०॥ ओरालियचेउब्वियाहारगतेअ गुरुलहू दव्वा । कम्मगमणभासाई, एआइ अगुरुयलहुआई ॥ ४१ ॥ (इतिवृत्तौ) | थाहारतेयभासामणकम्मकदब्बवग्गणासु कमो॥४०॥ पूर्वाधं ॥ तत्थ आहारकग्गहणेण एगग्गहणे गहणं तज्जा-14 Mइयाणं सव्वेसि भवतिचिकाऊण वेउब्वियओरालियावि गहिया चेव, तेणं पुर्व तिविहाओ ओरालियस्स सरीरस्स वग्गणाओ भणिआओ, जहा- अग्गहणवरगया महणवग्गणा पुणोऽचि अग्गहणवग्गणा चेव, एवं वेउब्वियस्सवि तिण्णि चेव पगारा भाणियब्वा, आहारकस्सवि तिष्णि चेव पगारा भणिता, तेयकास भासाए य दोहवि तिष्णि पगारा भणिया, एगमहर्षण महणं तज्जायाणं सबसि HI भवतित्तिकाऊण भासागहणेण आणापाणुस्सवि गहणं कतं चैव भवति, तस्सवि आणापाणुस तिष्णि पगारा भणिता, मणकम्म- 12 काणवि दोण्हवि तिष्णि चेव पगारा मणिता । दन्नवरगणासु कमो भणितो ॥ इयाणि खेचक्रमणासु कमो इमेण गाहापच्छद्रेण ॥४९॥ हामण्णइ, जहा दीप अनुक्रम SI-LESS [61] Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४०-४२], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत श्री आवश्यक चूणों श्रुतज्ञाने सत्राक द्रव्याणि ॥५०॥ कम्मकमणभासाए य तेय आहारए खेत्ते ॥ ४० ॥ पश्चाध ॥ खेत पडुच्च पुवं कम्मकसरीरस्स तिविधा द्रव्यादि| वग्गणा भणिता, तंजहा- अग्गहणवग्गणा गहणवग्गणा पुणो य अग्गबणवग्गणात्ति, एवं मणस्सवि तिण्णिवि पगारा भणिया, वगेणाक्रमः एक्कग्गहणेण तज्जातीताणं गहणंतिकाऊण आणपाणुस्सवि मासाएवि तिण्णि चेच पगारा भणिता, तेयस्सवि तिणि पगारा : गुरुलघुभणिता, आहारकस्सवि तिणि पगारा, एगग्गहणे तज्जातीयाणं गहणंतिकाऊण ओरालियवेउबियाणवि तिण्णि चेव पगारा 8 भणितत्ति ।। इयाणि एतेसिं चेव पयागं जत्थ गरुयलहुयाणि दम्बाणि भवंति जत्थ वा अगुरुयलहुयदव्वाणि भवति ताणि इमाए गाहाए भणंति, जहा तेआहारगविकुब्वणोराल०॥४१॥ तेयकसरीरं तेयगसरीरस्स अग्गहणपाओग्गाओ दबवग्गणाओ आहारकसरीरं आहारकसरीरस्स य अग्गहणपाओग्गाओ दख्ववग्गणाओ उच्चियसरीरं बेउब्वियसरीरस्स य अग्गहणपाओग्गाओ दब्बबग्गणाओ ओरालियसरीरं ओरालियसरीरस्स य अग्गहणपाओग्गाओ दबवग्गणाओ, एताणि गरुयलहुएसुदब्वेसु निष्फजति, भासा भासाए य अग्गबणपाउग्गाणि दव्वाणि आणपाणू आणपाणुस्स य अग्ग• मणो मणस्स य अग्गहणपाउग्गाणि दख्वाणि कम्मगं कम्मकस्स य अग्गहणपाउम्गाणि दब्वाणि, एताणि अगुरुयलहुए निष्फज्जति । जाणि पुण ताणि तेयकसरीरस्स अतिथूरतणेण | अग्गहणपाउग्गाणि दब्बाणि भासाए व अतिसुहुमत्तणेण अग्गहणपाउम्गाणि दय्याणि ताणि अंतराले वट्टमाणाणि दव्वाणि |गुरुलहुयाण अगुरुलहुयाणि य भण्णातचि ।। मज्झिमओहिखेत्रपरिमाणाहिकारे चेव बङ्कमाणे इम गाहामुत्तमागतं, तंजहा- ॥५०॥ संखेज्ज मणोदष्ये ॥ ४२ ॥ वत्थ मणब्वाणि य भवंति मणो य भवति, मणदव्वाणि पाम जाणि मणपाउग्गाणि दीप अनुक्रम SECREENSECREASE SHESARSACCE [62] Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [-] अध्ययनं -1. मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [ ४२-४४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी श्रुतज्ञाने ॥ ५१ ॥ दव्वाणि गहियाणि न ताव मणेति ताणि मणदव्वाणिं मण्णंति, जाहे य मनिसाणि भवंति ताहे मणी भष्णति, जो ओहिणाणी मणदव्वाणि पासति सो खेतओ लोगस्स रूवावचद्धं संखेज्जतिभागं पासति, कालतो पुण पलिओयमस्स संखेज्जे भागे तीतं च अणागयं च जाणति पासति, जो कम्मगदव्याणि पासइ सो खित्तओ लोगस्स रूवावबद्धे संखेज्जभागे जाणति पासति, कालओ पुण पलिओ मस्स संखेज्जतिभागे तीयं च अणामयं च कालं जाणति पासति, मावओ, जे तेसिं दब्वाणं कालगणीलगादिणो मावा ते जाणइ पासइ, जो पुण ओहिणाणी खेचतो रूवावबद्धं लोग ता जाणति पासति सो कालतो तत्तो थोतॄणयं पलिओदमं तीतं अणागर्य च कालं आणति पासति । किंच-मज्झिमओहिस्खेत्तपरिमाणे चैव वकुमाणे जोऽवि इयाणि ओही भणिहि सोवि मज्झिमओ चैव दट्ठब्वो। तंजहा तेयाकम्मसरीरे० || ४३ ।। जो ओहिनाणी तेयगसरीरं कम्मगसरीरं तेयग (कम्मग) सरीरगहणपा उम्गाणि दष्याणि भासं भासा गणपाउग्गाणि य दव्वाणि दब्बतो जाणति पासति सो खेचतो रूवावबद्धे असंखेज्जे दवसमुद्दे ओहिणा जाणति पासति, कालतो पुण असंखेज्जं कालं तीतं च अणामयं च ओहिणा जाणति पासति, भावतों में जे तेसिं दव्वाणं कालगणीलगातिणो भावा ते जाणति पासतिति । इयाणि जं तं उक्कोसयं खेरापरिमाणं हेडे वणितं तं पब्च तेयगसरीरं च इमं गाहासुतमागतं - एगपदे सोगा० ॥ ४४ ॥ जो परमोहिणाणजुत्तो जीवो भवति सो एगपदेसोगाढं कम्मकसरीरं लभति, लभति णाम जाणातिति वृतं भवति, ण केवलं परमोही एकपदेसोगाढं कम्मकसरीरं चैव जाणति, किं तु परमाणु वा परमाणुवतिरित्त वा सं जाणेज्जा, जाणि य अगुरुलहुयदन्याणि ताणिवि सो परमोदी एगपदेसोगाढाणि जाणिज्जा, अण्णे मणंति- 'एगपदेसो' गाहा, जो [63] मनतैजसकार्मणानामवधिः ॥ ५१ ॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [४४-४६], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री पूण परमोही भवति सो एगषदेसोगार्ड दव्वं पासति, तं पुण परमाणु वा वतिरित्त वा, कम्मगसरीरं च अगुरुयलहुयं च दवं परमावधेः आवश्यकता पासइ, जो य ओहिणाणी तेयकसरीरं जाणति पासति सो अप्पणो वा परस्स वा तीताणागताणं भावाणं पुरतं जाणति, पूहुत्तसद्दोगा चूणी पुन्वभणितो चेव दट्ठब्बोधि ।। इदाणि दव्यखेचकालभावा पड्डुच्च जो परमोहिस्स विसओ सो भण्णतिश्रुतक्षान परमोहि असंखेज्जा०॥४५॥ जो परमोही भवति सो लोग जाणति चेव, अलोगेवि से असंखज्जेसु लोगप्पमाणमेचेसु ॥५॥ खंडेसु विसओ भवति, कालतो पुण असंखज्जाओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ तीयं च अणागय च जाणति पासति, दव्वो सब्व-| सासविदब्वाई जाणइ पासइ, भावओऽवि तेसिं दवाणं कालगणीलगाइणो भावा जाणति पासति । एत्य सीसो आह-भगवं! जाणि ५ वाणि खेत्तओ अलोए लोयप्पमाणमेत्ताई खंडाई जापड पासइ ताणि कतराए उवमाए अम्हेहिं गेण्डियब्वाइंति, आयरिओ8 है आह खेत्तस्स उवमा अगणिजीवा भवंति, सा य तेहिं अगणिजीचेहिं जहा भवति तहा हेढे वणितचि ।। इदाणि तिरियाण सरीरगाई मा पहुच जस्स वा जावतिओ ओहिविसओ सो इमेण माहापूवरेण भण्णति, तंजहाटू आहारतेयलंभो उकोसेणं तिरिक्वजोणीसु ॥ ४६॥ पूर्वाध ॥ तिरिक्खजोणिया जहण्णेण ओहिणा ओरालियं सरीरं जाणिज्जा, उक्कोसेण ओरालियवेउम्क्यिआहारमतेयगसरीरणि जाणति पासंति य, कम्ममसरीरं पुण ण चेव जाणति ण | 81 वा पासंतिचि ॥ एस तिरिक्खए मणुए य पहच्च गुणपच्चइओ एवंविहो ओही बण्णिओ । इदाणि पेरायाण देवाण य भवपच्चलाइओ ओही भणिहामि, तत्थ पुचि नेरइयाणं ओहेण जहण्णर्य उक्कोसयं च इमेण गाहापच्छद्धेण भणीहामि, तंजहा गाउय जहण्ण ओही णिरएसु य जोयणुकोसो ॥४६॥ पश्चाध ॥ रइया जहणोण ओहिणा गाउयं पासंति, उक्कोसेणं 564645 दीप अनुक्रम ॥५२॥ [64] Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [४७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत पेण सत्राक नव- श्रीजोयणं पासंतित्ति । एस ओहेण णिरओही वण्णितो। इयाणि पत्तेय पत्यं सत्चसुवि पुढवीसु जहष्णुकोसयं ओहिं यण्णे हामि, तंजहावमानिकाआवश्यक चत्तारि गाउयाई, अडुढाई तिगाउयं चेव । अड्डाइज्जा दाणि य दिवङ्गमेगं च णरएसु ॥४७।। जस्स रयणप्पमा- नामवधिः पुढविणेरइयस्स दसवाससहस्साई जहणिया ठिती सो अदुवाई गाउयाई ओहिणा जाणति पासत्ति, जस्स पुण रयणप्पभापुढविश्रुतज्ञाने परइयस्स सागरोपमं ठिती सो चत्तारि गाउयाई ओहिणा जाणइ पासति, एवं जाल अहे सत्तमाय जहण्णठितीओ अद्धगाउयं उका सद्वितीओ गाउयं ओहिणा जाणति पासति । एस ताव गरयाणं आहेण पत्तंगण य जहण्णुकोसओ ओही पण्णिओ । इदाणि ॥५३॥ देवाणं ओहेण पत्तेगेण य जहण्णयं उक्कोसयं च ओहिं मणिहामि, तत्थ ओहेण देवा जहण्णेण अंगुलस्स असंखज्जतिभाग ओहिणा जाणति पासंति, उक्कोसेणं सभण लोगनालि ओहिणा जाणंति-पासंति, एस ओहेणं देवाणं ओही भणिओ. इदाणिं पत्तेयं पत्तेयं देवाणं जहण्णुक्कोसयं ओहि भणिहामि-तत्थ भवणवासिणो दसप्पगारा असुरकुमारादी थणियकुमारपज्जवसाणा,181 एतेर्सि दसण्हपि जहण्णओ ओही पणुवीस जोयणाई, उक्कोसओ आही असुरकुमारवज्जाणं संखेज्जाई जोयण्णाई, असुरकुमारा राणं पुण उकासेणं असंखिज्जे दीवसमुद्दे ओहिणा जाणंति पासंति, वाणमंतराणं पुण जहंनउकोसओ ओही जहा असुरकुमारवज्जाणं ओही भवणवासीणं तथा भाणियब्बो, जोइसिया जहणणवि संखिज्जदीवस मुद्दे उकोसेणवि संखेज्जे दीवसमुद्दे ओहिणा जाणीत पासंति । चेमाणिया सोहम्मातो आरम्भ जाव सम्वसिद्धगा देवा ताव जहणणं अंगुलस्स असंखज्जतिभागं ओहिणा जाणंतित कपासंति, अहे पुण जो एतेर्सि सोहम्मगाणं बेमाणियाणं अणुत्तरोबवाइयपज्जवसाणाण देवाण ओहिणाणविसओ सो इमाहिं । प्रतिहिं माहाहि भण्णति, तंजहा दीप अनुक्रम व [65] Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४८-५२], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्राक सक्कीसाणा पहमं०॥४८॥ आणयपाणय० ॥ ४९० ।। छ8 हिटिममझिगवेज्जा ॥५०॥ एवाओ गाहाओ उत्कृष्टजधभारतिण्णिवि कंठाओ, णपरं पण इमो विससो-जो जे पढवि देवो ओहिणा जाणति पासति सो तीए पुढवीए सकाती सरीराज पहली मकानो मीगोन्यावधी चूर्णी INIआरम्भ जाव हिडिल्लो चरिमंतो ताव पिरंतरं संभिष्ण पव्ययकुडादीहिं णिरावरणं ओहिणा जाणति पासति । ज य एत। श्रुतज्ञाने अवधरा कार: ISI सकीसाणादयो अणुत्तरोववाइयपज्जवसाणा एवं विविहमणेगप्पगारं हेड्डा ओहिणा जाणति पासंति य, जो तेसि तिरिय उई च | ॥५४॥ ओहिण्णाणविसओ सो इमाए गाहाए भण्णति है एतेसिमसंखेज्जो० ॥५१॥ एतेसि णाम सोहम्मादीणति युतं भवति, असंखेज्जा णाम गणणमतिकंतत्ति वा असंखे ज्जत्ति वा एगट्ठा, ते य असंखेज्जा तिरियं पडरुच, दीवा सागरा य सकीसाणादीण देवाण ओहिणाणस्स विसओ णायब्बो, Xो सतिपि असंखज्जगते तहावि जहा जहा उवरिमा देवा तहा तहा तेसिं हेडिल्लहितो देवेहितो बहुतरका दीवसमुदरा उवरिमगाणं देवाणं ओहिण्णाणविसओ भवति । उहूं जाव सकाणं विमाणाणं उवरिल्ले परिमंतत्ति ।। किंच ___ संखेज्ज जोयणा खलु ॥५२॥ जेसिंदेवाणं अद्धसागरोवमं ऊणयं ठिती ते जहण्योण पणुवीस जोयणाई ओहिणा जाणति थापासंति, उक्कोसेण संखेज्जाइ जोयणाई ओहिणा जाणंति पासंति य, तेण परं णाम ततो ऊणगाओ अद्धसागरोबमाओ परेण ॥५४॥ संपुष्णसागरोवमाइसु जद्दण्णेण पणवीसं० उकोसेण असंखेज्जे दीवसमुद्दे ओहिणा जाणति पासति । इयाणि जेसि सव्वुकोसो सव्वजहण्णो य ओही भवति जावतियपमाणमेत्तो वा सो ओही परिषडति से भष्णति, तंजहा RECIESENTERACHINES दीप अनुक्रम [66] Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [५३-५५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत कारः दीप अनुक्रम श्री उकोस मणुस्सेसु०॥ १३ ॥ तत्थ उकस्सगहणेणं परमोहिस्स गहणं कतं, जहण्णगहणणं तिसमयाहारगपणगजीपप्पमाणआवश्यक मेचस्स ओहिस्स गद्दषं कतं, सो य परमो मणुएसु चेव एगेसु भवति, जहणाधी पुण मणुएसु वा तिरिएम वा भवेज्जा, चूर्णी जहण्णुकोसवज्जो मज्झिमओधी भणति, सो य उसुवि गतीसु मवति, उफोसेण य ओही जाव लोगप्पमाणमेसो ताव परिश्रुतज्ञाने || बडेज्जा, ततो परं पत्थि पडिवातोत्ति । खेत्तपरिमाणंति दारं गतं । इदाणिं तइयं संठाणोति दारमागतं, तस्थ संठाणं णाम ! संठाणति वा आगितित्ति एगला, तं च जो सो हेढे वण्णितो जहण्ण उक्कोस मज्झिमो य तिविही ओही तस्स इमं संठाण-तत्थ ॥ ५५॥ &ा थियुगागारु जहणो० ॥ ५४॥ जो सबजहण्णो आही सो थियुगागारसंठितो भवति, तत्थ थिचुगाभारसंठितो णाम पाणियपिंदुसंठाणोत्ति वुत्तं भवति, जो पुण सन्चुकोसओ ओही सो बट्टो भयति, जो व सो तस्स उकोसगस्स ओधिस्स बट्टभावो सो पुण लोगं पडुच्च किंचिआयतो भवति, जो पुण सो मजिशमोहा सो खेतं पडुच्च अणेगविहसंठाणो भवति, तंजहा-तप्पागारसंIMIठाण सठियं खेत्तं पडुच्च तप्पागारसंठितो भवति, पल्लगसंठाणसठियं खत् पहुच्च पालगसंठितो भवति, तहा हयसठाणसठियं खत्त पहुच्च हयसंठिओ भवति, गयसठाणसंठियं खत्तं पच्च गयसंठितो भवति, एवमाइ, पव्वयसंठाणसंठियं खत्तं पडलच पच्चयसैठिओ भिवति, एवमादि, तत्थ जो सो मज्झिमओ ओही अणेगसठाणो भणितो तस्स तप्पगारादीणि संठागाणि भवंति, जेसिं था। 1 हयादीणि संठाणाणि भवंति ते इमाए गाहाए भण्णांत, तंजहा तप्पागारे पल्लग०॥५५॥ तस्थ तप्पागारसंठितो ओही नेरइयाण भवति, तत्थ तप्पयग्गहषेण जे पदिसंतरणणिमित्त लोएणं तप्पया पाति तेसिमेयं गहणं कयंति, तस्स य नप्पयस्स आगारो तप्पागारो, आगारो णाम आगारोति चा आगितित्ति CREAPSEXREACH RED M [67] Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५३-५५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णा 51 सनाक 18 वा सँठाणंति वा एगट्ठा, मवणवासीणं देवाणं पल्लगसंठितो ओधी भवति, वाणमंतराणं पुण पडहगसंठिओ ओही भवति, जोइसियाणं | आनुगामिआवश्यक देवाणं झल्लरिसीठतो ओही भवति, सोहम्मातो आरम्भ जाव अच्चुतो कप्पो एतेसि कप्पोवगाणं देवाणं अद्धमुइंगागारसंठिओ ओहीदकोऽवधिः भवति, गेवेज्जगदेवाणं पुष्फचगेरीसंठितो भवति, अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं जवणालीसंठितो भवति, तत्थ जवणाली णाम जीए श्रुतज्ञानणालीए जवा चाविज्जति सा जवणाली भण्णइत्ति । मेरयदेवाणं ओहिस्स संठाणं भणितं । ॥५६॥ इयाणि तिरियमणुयाणं जारिस ओहिस्स संठाणं तं भण्णति, सो यतिरियमणुओही हयगयादीसठाणसंठितो पुब्बि चेव भणिII तोत्ति। संठाणित्ति दारं गतं ।। इयाणिं आणुगामियत्तिदारं आगतं, तत्थ आणुगामियं णाम जं तमोहिण्णाणिणं गच्छंतमणुगच्छति तं आणुगाभियं भण्णइ, तं च दुविहं भवति, तंजहा--अंतगयं च मज्झगयं च, तत्थ जं तं अंतगतं तं तिविहं भवति, तंजहा-पुरओ IN अंतगर्त मग्गतो अंतगयं पासतो अंतगतंति, तत्थ पुरंतो अंतगयं णाम तमोहिण्णाणिं पहुच चखिदियमिव अग्गतो दरिसणसामलास्थजुत्तंति वुत्तं भवति, जत्थ जत्थ ओहिणाणी गच्छइ तत्थ तत्थ पुरतो अबटिया रूबावबद्धा अत्था जाणेति पासति य, से 12 CI पुरतो अंतगयं । तत्थ मग्गतो अंतगतं णाम मग्गतोत्ति वा पिट्ठउत्ति वा एगट्ठा, जत्थर सो ओहिष्णाणी गच्छति तत्थर संफरिसि-G या फासिीदयमिव पिट्ठतो अवट्ठिता रूवावषद्धा अत्था ओहिणा जाणति पासति, सेतै मग्गतो अंतगयं । पासतो अंतगयं णाम वामतो दाहिणतो वत्ति वुत्तं भवति, जत्थ जत्थ सो ओहिणाणी गच्छति तत्थ तत्थ सोइदिएणमिव पासतो अवत्थिता रुवावबद्धा अत्था ओहिणा जाणति पासति य, तं पासतो अंतगतं, सेत अंतगतं ।। तत्थ मज्झगतं णाम जे समततो अत्थग्गाहि तं मझगये |भणति, एत्थं दिलुतो फरिसिदियं चेव, जहा फरिसिदिएणं समंतओ फरिसिए जीवो अत्थे उबलभति, एवं सोवि ओहिणाणी ! दीप अनुक्रम REERESTERESREERSE M ॥५६॥ २-62 [68] Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [५३-५५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत श्री जत्थ जत्थ गच्छति तत्थ तत्थ समतो रुवावबढे अत्थे ओहिणा जाणति पासति य, से तं मझगयं ओहिणाणं । एथ सीसो अनानुगाआवश्यक आह--भगवं! अंतगयमझगयाण को पडिविसेसो ?, आयरिओ आह-अंतगयं तिविहं वणियं, तत्थ पुरतो अंतगएण पुरतो चेव मिकः चूर्णी संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाणि ओहिणा जाणति पासति, मग्गतोअंतगएणं मग्गतो चेव संखेज्जाणि असंखेज्जाणि क्षेत्राधवश्रुतज्ञाने वा जाणति पासति, पासतो अंतगए पासतो चेव संखेज्जाणि वा. मज्झगएण सन्यतो समंता संखेज्जाणि का असंखेज्जाणि या स्थान जोयणाणि जाणति पासति, तम्हा एतेण कारणेणं अंतगयस्स व मज्झगयस्स व महतो चेव पडिविसेसोत्ति । ॥५७॥ हा अणुगामियओहिण्णाणपसंगण चेव अणाणुगामिओवि ओधी तप्पडियक्वोत्तिकाऊण भण्णति, तत्थ अणाणुगामिओ Vणाम जो तमोहिण्णाणिं मच्छन्तं पाणुगच्छति, जत्थेव उप्पण्णं तमि चेव ठाणे जाणति पासति, ततो ठाणानो अण्णस्थ गतो ण| जाणइ पासइ, एत्थ दिद्रुतो परिसो, जहा-कोइ पुरिसो अगणिमुज्जालेऊणं तस्सेव अगणिस्स परिपेरंतेहिं परिघोलमाणो२तं उज्जो-। यठाणं पासति, अन्नत्थ गए ण पासइ, एमेव अणाणुगामियं ओहिण्णाणं जत्थेव समुप्पज्जद तत्थेव संखेज्जाणि २ जोवणाई आहिगाण्णाणी जाणति पासति, अण्णत्थ गए ण जाणति पासति । से तं अणाणुगामियं ओहिण्णाणं । इयाणि जेसि जीवाणं ओधा आणु-। गामितो अणाणुगामितो वा ते इमाए गाहाए भण्णति, तंजहा अणुगामितो य ओही० ॥ ५६ ।। जो मेरइयदेवाण ओही सो णियमा आणुगामिओ, जो पुण मणुस्सतिरियाणं सो आणु-1&ा बागामिओ वा होज्जा अणाणुगामिओ वा होज्जा मिस्सो वा होज्जा, मिस्सो णाम जं पुबदिट्ठ अत्यं अग्यात्थ गओ किंचि उबलभइ दि किंचि णो उबलभइ सो मिस्सो भन्नति । अणुगामियंति चउत्थदारं सम्मत्तं ॥ याणि अवहाणन्ति पंचमं दारमागतं, तं च दीप अनुक्रम R [69] Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [५६-५७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री अवट्ठाणं चउब्विह, तंजहा-दवावट्ठाणं खेचावट्ठाणं कालावट्ठाण भावावट्ठाण, तं च अवट्ठाणं चउब्धिहपि दोहिं गाहाहिं भाणिहामि, अवस्थान आवश्यक तत्थ पंधाणुलोम पहच्च एगाए गाहार पुबि खेत्तावहाणं ततो दबावट्ठाण पच्छा भावावडाणं च भाणहामि, कालावट्ठाणं ट्राच पूणाचउण्ह अबढाणाणं जं जहा णय अबढाणं तं वितियाए गाहाए भणिहामि, तत्थ जा सा पढमा गाहा सा इमाश्रुतन्त्राने हा सं०-खेत्तस्स अवठ्ठाणं० ॥५७॥ तत्थ खेत्तगहणेगं भवखेत्तस्स गहणं कतं, तं च भवे पट्टच्च ओहिवाणं जहावेण एकं समर्थ | पटलहोज्जा, उक्कोसेणं तेसीसं सागरोवमाणि होज्जा, एत्थ एगो समओ तिरियस्स वा मणुयस्स वा भवति, कह?, जस्स कस्सइ एकमि समए ओहिण्णाणं उप्पण्णं वितियसमए से आउयं पहोणं चेव, अतो तिरियमणुयाणं एगो समओ भवं पडुच्च ओडिनाणं संभवति, देवस्स वा मिच्छद्दिहिस्स एगं समय सम्मत्तं पडिवनस्स, नबरं वितियसमए आउयं पहीणं चेव तम्मित्तिकाऊण देवेवि एकं समओ ओहिणाणस्स भविज्जा, उक्कोसयं पुण तेत्तीससागरोचामियं भवखेत्तावहाणं देवे परइए पडुच्च भविज्जा, दब्बवट्ठाणं जहण्णेणं एक समयं उकोसेण भिन्नमुहतो, भित्रमुहत्तो णाम ऊणो मुहुचोवि चुतं भवति तं च भिन्नमुहुन ओहिण्णाणी एगद पिरंतरोबउत्तो। अच्छेज्जा, ततो परेणं निरोहमसहमाणो ण सकेति तंमि दच्वंमि उनउत्तो अच्छिउं, एत्थ दिट्ठतो पुरिसो, जहा-कोइ पुरिसो अइव | ॥ सहसूइए पासछिदे णिरतरोवउत्तो न सकेति दीह कालं अच्छितुं, एवं सो ओहिणाणी तमि दब्ने पिरंतरं उवउत्तो ण सकेति भिण्णमुहुत्ताउ परं अच्छिउंति, भावओऽवि अवठ्ठाणं जहणणं एक समयं, उकासेणं सच? समया, किं कारणं ?, जम्हा तिब्बयरेण PC उनओगेण दब्बस्स पज्जबोबलंभो भवति, अओ तिव्योवओगेण य मुटुतरं निरोहमसहणो न सकेति तंमि पज्जए सत्तण्हं अट्ठणं MEI५८॥ वा समयाणं उबरिं अच्छिउंति, एवमेस एकाए गाहाए अत्थो भणितो, इयाणि बितिवाए गाहाए अत्थं मणिहामि, सा य इमा, तंजहा दीप अनुक्रम 6456-194E696-196 [70] Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्य [-] अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [५८-५९], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ।। ५९ ।। अद्धा अट्टा० ॥ ५८ ॥ अद्धा णाम काली भण्णति, तस्स कालस्स अवद्वाणं जहण्येणं एकं समयं उकोसेणं छावहिं सागरोवमाणि सातिरेगाई, ताणि पुण छावहिं सागरोवमाणि साइरेगाई जो अणुत्तरेसु विमाणेसु उकोसहितितो दो पारा उववज्जर तस्स भवति, सातिरेगं से जं मणुस्सभत्रे आउयं देभ्रूणा वा पुव्वकोडो अप्पतरगं वा कालं एवं सातिरेगं भवतित्ति, जो य एसो एको समतो एयंनि गाहापच्छद्धे जहणणेण भणितो एसो चउण्हवि दव्याणं अवडाणा अष्पष्पणो साणे भणितोत्तिकाऊण इहं न भणितो । अबूढाणेत्तिदारं सम्मत्तं । इदाणिं चलेचि दारमागतं तं च च बुद्धिं वा हाणिं वा पडुच्च भवति, साय बुड्डी वा हाणी वा इमेण पकारेण भवति, तंजहा बुड्डी वाहाणा ॥ ५९ ॥ तत्थ खेत्तस्स कालस्स य बुड्डी चटग्विधा भवति, तंजहा संखेज्जतिभागवुडी वा होज्जा असंखेज्जतिभागवृद्धी वा होज्जा संखेज्जगुणबुडी या होज्जा असंखेज्ज्ञगुणबुडी वा होज्जा, तत्थ संखेज्जतिभागवृड्डी णाम जावतितो असि जीवाणं ओहिणाणस्स विसओ तस्स जो संखेज्जइमो भागो तावतो सुभज्झसिस्स जाहे भागो पुव्युप्पण्णयाओ ओष्णाणाओ अहिओ समुप्पज्जति ताहे सा ओहिण्णाणस्स संखेज्जतिभागवुडी भण्णति, असंखेज्जतिभागवुट्टी णाम जावतितो दि जीवाणं ओहिण्णाणस्स विसओ तरस जोऽसंखेज्जइमो भागो तातो सुभावसियस्स जाहे भागो पुष्पण्णयाओ ओहिष्ण:णाओ अहिओ समुप्पज्जति ताहे ओहिणाणस्सऽसंखेज्जतिभागड़ी भण्णइ, जा य एसाऽसंखेज्जतिभागवृद्धी एसा संखेज्जइभागडीओ घोषतरिया णायव्वात्चि, संखेज्जगुणबुडी णाम जावतिओ जर्सि जीवाणं ओहिनापस्स बिसतो सो तप्पमाणेहि चैव संडे सुभझवसियस्स परिवमाणो २ जाहे संखेज्जे वारे परिबडिओ भवति ताहे सा संखेज्जगुणा बुड्डी भवति, असंखेज्जगुणबुडी म [71] चले वृद्धिहानी ।। ५९ ।। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१९], भाष्यं ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्राक 15 जावइतो जेसि जीवाणं ओहिण्णाणस्स विसओ सो तप्पमाणेहिं चेव खंडेहिं सुभज्यवसियस्स परिवड्डमाणो परिखमाणो जाहेऽसंख-121 आवश्यक हज्जबारे परिवड्डितो भवति ताहे सा असंखेज्जगुणवुड्डी भणति, संखेज्जगुणवुडीओ य असंखेज्जगुणवुड्डी बहुतरिया भवातत्ति । चूर्णी खेत्तकालाणं च बडी चउम्बिहावि भणिता, इदाणि एतेसिं चेव खेत्तकालाणं हाणी भाणियथ्वा, सावि य एवं चेव णिरवसेसा | श्रुतज्ञानेही II हाणिअहिलावेण चउबिहा भाणियब्बा, गवरं सा असुभज्यवसियस्स भवतित्ति । एवमेसा हाणी गया । बडीओ हाणीओ य ॥६ ॥ खेत्तकालाणं गयाओ । इयाणि दव्वस्स चुडीओ य हाणीओ य दुविहाओ भण्णंति, तत्थ बढी इमा, तंजहा-अणंतभागवुड्डी वा अणंतगुणबुडी वा । तत्थ अणंतभागबुडी णाम जावतितो जेसि जीवाणं दव्वाणि पहाच ओहिणाणस्स विसओ भवति तेसिं जो अणततिमो भागो तापइओ सुभज्झवसियस्स जाहे भागो पुन्बुपण्णयातो ओहिष्णाणाओ अहिओ समुपज्जति ताहे सा ओहिण्णाहैणस्स अणंतभागवड्डी भवति, अर्णतगुणवडी णाम जापतिओ जेसि जीवाणं दब्वाणि पडुच्च ओहिण्णाणस्स विसओ सो य तप्पमामाणेहिं चेव खंडेहिं मुमज्जवसियस्स परिवड्डमाणेहिं २ जाहे अर्णतवारे वड्डिओ भवति ताहे सा अर्णतगुणवुड्डी भण्णति, अणंतभाग बड्डीओ य अर्णतगुणवड्डी बहुतरिका णायबनि । दब्बवुड्डी गता । इदाणिं तस्सेव दध्वस्स हाणी भण्णइ, सावि एवं चव |णिरवसेसा हाणिअभिलावेण भाणियब्बा, णवरं सा हाणी असुभावसितस्स भवतित्ति । एवमेसा दव्यस्स हाणी गता, दव्यं पडुच्च बुडीओ हाणीओ य मताओ । इदाणि पज्जवे पड़च छबिहाओ बुडिहाणीओ भण्णंति, तत्थ पुचि ताव युडी भणामि, तंजहा___ अणंतभागवुड्ढी वा असंखेज्जहभागवड्डी वा संखेज्जतिभागवुड्डो वा अणंतगुणवड्डी वा असंखज्जतिगुणबड्डी वा संखेज्ज- ॥६ गुणवड्डी वा, तत्थ अणंतभागबुढी जहा दब्बस्स अणंतभागवड्डी भणिया तहेब माणिकच्चा, णवरं इह पज्जवामिलाबो भाणियव्यत्ति, दीप अनुक्रम ॥ [72] Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) 1 निर्युक्ति: [५९-६०], भाष्य [-] मूल [- / गाथा-], अध्ययनं [-1, पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ॥ ६१ ॥ असंखेज्जतिभागवुड्डी संखेज्जतिभागवुडी य जहा खप्तकालाणं तहेब भाणियन्या गवरं पज्जवाभिलावो भाणियच्चो, अगत गुणबुडी जहा दुव्वस्त भणिया तहा भाणियच्या, गवरं इह पज्जयाभिलावो भाणियच्चो, असंखज्जगुणघड्डी संखेज्जगुणवड्डी य एयाओ दोऽवि जहा खेचकालावं भणियाओ तहा भाणियव्वाओ, णचरं हुई पज्जवाभिलावो भाणियव्वो । एवमेसा छविहा पज्जवबुड्डी सम्मत्ता । इदाणिं तेसिं चैव पज्जवाणं हाणी भ्रष्णति, सा एवं चैव गिरवसेसा हाणिअभिलाषेण भाणियव्वा, गवरं सा हाणी असुभावसितस्स भवतिचि । एवमेसा छब्बिहा प्रज्जवहाणी भणिया । बुड्ढीओ हाणओ य पज्जवे पडुच्च मणियाओ । एवमेव चलन्ति दारं सम्म । इदाणिं तिब्बमंदेति दारमागतं, तंजा फड्डा य असंखेज्जा ०६१ ।। तिव्वमंददारपदरिसणत्थं इमो जालकडगदितो कीरह जहा जालकडगस्स अंतो दीवको पलीविओ, ततो तस्स पईवस्स लेसातो तेहिं जालंतरेहिं निम्गच्छंति, णिग्गताओ य समाणओ बाहिं अवट्टियाणि रूविदव्याई उज्जीवेंति, एवं जीवस्सवि जेसु आगासपदेसेसु ओहिष्णाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमो भवति तेसु ओहिष्णाणं समुप्पज्जति, जेसु पुण आगासपदेसेसु ओहिण्णाणावरणक्खओवसमो णत्थि तेसु ओहिण्णाणं ण उप्पज्जति, जेसि जीवाणं केसुचि आगासपदेसेसु ओही उप्पण्णो केमुवि न उप्पन्नो, तत्थ जेसु उप्पणो ते फडगा भण्णंति । अण्णे पुण एवं भणति जहा एवं जीवस्सवि जेसिं जीवप्पएसाणं ओहिष्णाणावर णिज्जाणं कम्माणं खओवसमो भवति तेसु ओहिष्णाणं समुप्पज्जइ, जेसिं पुण जीवस्स जीवप्पएसाणं ओहिष्णाणावरणिज्जाणं कम्माणं णत्थि खओवसमो तेसु ओहिण्णाणं ण उप्पज्जइ, तेर्सि च जीवाणं केसुवि जीवप्पएसेसु ओहिष्णाणं उप्पण्णं केसुवि जीवप्पएसेसु ण उप्पण्णं तत्थ जेसु उप्पण्णं ते फडगा भण्णंति, एतच्च • अत्र निर्युक्ति-क्रम ६० वर्तते, मुद्रण-दोषात् ६१ इति मुद्रितम् [73] तीव्रमंदे स्पर्धकाः ॥ ६१ ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [-] अध्ययनं -1. मूलं [ / गाथा-], निर्युक्ति: [ ६०-६२), पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ॥ ६२ ॥ %%%%%%%***** छ चिंत्यं ते य फट्टगा एगजीवस्स संखेज्जा वा होज्जा असंखेज्जा वा होज्जा, जया य सो ओहिष्णाणी एगंमिति फडए उबउतो भवति तदा नियमा सव्वेस चैव फट्टएस उवडत्तो भवति एतेसिं फडगाणं अष्णोऽण्णं फट्ट पडच्च केवि फट्टया विसुद्धा के पुण तओ विमुद्धतरगा केई पुण तओऽवि विसुद्धतमा भवतित्तिकाऊणं ते फट्टया तिच्या मण्णंति, तहा तेसिं चैव फडया अण्णोऽण्णं फडगं पडच्च केइ फट्टगा अचिसुद्धा केइ पुण ततो अबिसुद्वतरगा केइ पुण ततो अविसुद्धयमा भवंतितिकाऊणं ते फड्डगा मंदा भण्णंति । देवाण णारगाण य तित्थगरस्स य देवभविएग ओहिणा अपरिवडिएण चैव काऊ फडगा, ओहिप्रभाव पड़च्च तिब्वमंदा फडगा सव्वहा चेव णत्थि, मणुयतिरियाण पुण ते तिब्वमंदा फडगा छन्हिभेदा इमे, तंजहा फड्डा य आणुगामी ॥ ६१ ॥ मणुयतिरियाणं फट्टगा केह आणुगामिया के अणाणुगामिया के‍ मीसगा के पडिवादी केइ अपडिवादी केइ पडिवाईअप्पडिवाई य, तत्थ आणुगामिया णाम जे ताबोहिण्णाणी अष्णत्थवि गच्छमाणमणुगच्छेति ते आणुगामिया भण्ांति, जे पुण पाणुगच्छति ते अणाणुगामिया भणंति, जैसि पुण फड्डगाणं किंचि अणुगच्छेति किंचि णाणुगच्छेति ते मीसगा भण्णंति, जेसिं पुण तिरियमणुषाणं फडगाणं उप्पज्जेऊण पुणो सब्वहा चैव ण भवंति ते पडिवाई भण्णंति, जे ण पद्धति ते अपरिवाडी भण्णंति, जेसि पुण फडुंगाणं किंचि पडिवडति किंचि ण पडिवडति ते पडिवातिअपडिवातिचेण मीसगा भांति । तिष्यमंदाति दारं गतं । इदाणिं पडिवाउप्पातत्ति दारमागतं, तंजहा- बाहिरलंभे भज्जा० || ६२ ॥ तत्थ बाहिरलंभग्गहणेणं अग्भितरलंभोऽवि सूयितो चैव, सो य बाहिरलंभो नाम जत्थ से टियस्स ओहिण्णाणं समुप्पण्णं तंमि ठाणे सो ओहिष्णाणी ण किंचि पासति तं पुण ठाणं जाहे अंतरियं होति, तंजा-अंगुलेण वा [74] प्रतिपातोत्पादी ।। ६२ ॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [६२-६४], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक श्री अंगुलपुहुत्तेण वा, विहत्थीए वा, विहत्थिपुर्ण वाएवं जाव संखेज्जेहिं वा असंखज्जेहिं वा जोयणेहिं ताहे पासति, एस बाहिर-1 प्रतिपातोआवश्यक लभो भण्णति, सो य बाहिरलमलद्धीओ ओहिण्णाणी पडिवातं उप्पातं तदुभयं च पशुच्च भयणिज्जो, कहं ?, तस्स त्पादी चूर्णोंद्र बाहिरलंमलद्धीपस्स ओहिण्णाणिस्स एकसमएणं दज्यखेत्तकालमावाणं कयाइ सव्वेसिं चेव उप्पातो भविज्जा कयावि सव्वेसि श्रुतज्ञाने चेव पडिवातो भवेज्जा, कयादि सब्बेसि चेव उप्पातो पडिवातोवि एगसमएण भवेज्जत्ति, उप्पायपडिवाओ णाम जेसि ॥६३ ॥ ठा दबखेत्तकालभावाणं काणिनि एगसमएण चेव पुब्बदिट्ठाणि ण पासति, काणिइ पुण अदिट्ठपुण्याणि पासति, एस उप्पायपडिबातो मण्णति ॥ इयाणि अभितरलंभं पडच्च जहा उप्पातो पडिवातो तदुभयं च भवति तहा इमाए गाहाए भण्णति, तंजहा अम्भितरलद्धीए० ।। ६३ ॥ तत्थ अम्भितरलद्धी णाम जत्थ से ठियस्स ओहिण्णाणं समुप्पण्णं ततो ठाणातो आरम्भ सो ओहिण्णाणी निरंतर संबद्धं संखेज वा असंखेज वा खेतं ओहिणा जाणति पासति, एस अम्भितरलद्धी भण्णति, तीए य अभितरलडीए तदुभयं नस्थि एकसमएणं, तदुभयं णाम जो अण्णेसि दबखेत्तकालभावाणं उप्पाओ अण्णेसि च पडिवातो एवं तदुभयो भण्णति, उपायपडिवायाणं च एगतरी एगसमएणं भवति, कई , अधिभतरओहिण्णाणलद्धीयरस परिणामविसेस पहुच्च दब्बखे-II सकालभावाणं जंमि समए उप्पाओ भवति णो तमि चेव समए पडिवातो भवति, अण्णमि समए उप्पातो भवति, अण्णमि समए पडिबातो भवति, एगपगडीए णाम दोण्ह एयासि उप्पायपडिबायपगडीणं एगसमएणं एगाए पगडीए उप्पाओ वा पडिवातो वा भवतित्ति। दव्वाउ असंखेज्जा०॥१४॥जो ओहिण्णाणी एक दबं पासति सो तस्स दबस्स उकोसेण एगगुणकालकादिको संखेज्जे CIRC दीप अनुक्रम i॥६३॥ 2- % [75] Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [६४-६५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णी सत्राक दीप अनुक्रम श्री वा असंखेज्जे था पज्जवे ओहिणा लमइ, अणते पज्जवे न लभति, लमति णाम पासतित्ति वुत्तं भवति, पज्जवग्गहणेण य तस्स शानदर्शनबावश्यक दच्चस्स बण्यामंधरसफासा गहिता भवंति, सो य एगदव्वदंसी ओहिण्णाणी तस्स एक्कस्स दव्वस्स जहष्णेण दो पज्जवे दुगुणिते विभंगा: पासति, दुगुणियग्गहणेण य चउपहं महणं कतं, कि कारणी, जेण दोष्णि चेव दुगुणिज्जमाणे चउरो भवंति, अतो दुगुणितगहणेण श्रुतज्ञाने चउण्हं गहण कयंति, ते य चउरो पज्जाया इमे-वणं गंधं रसं फास, तेसिं पुण पण्णगंधरसफासाणं जे एगगुणकालगाइणो ॥६॥ पज्जाया ते सो एगदम्वदंसी ओहिण्याणी न पासतित्ति, एवमेतं पडिवातोप्पातात्ति दारं गतं । इयाणि पाणदसणविभगं च एते हैं तिष्णिऽवि दाराई इमाए माहाए सणंति, तंजहा सागारमणागारा० ॥ ३५ ॥ तत्थ तिव्वमदातीणि कारणाणि पहुच्च तिरियमणुयाण ओहिण्णाणं ओहिदसणं विभंगणाणं च विसओ अतुल्लो एतेसि भणितोचिकाऊण इहं ण भणितो। एत्थ पुण गेरइया देवा व पडच्च जेसि ओहिण्णाणं ओहिदसण विभंगणापं च तुलं भवति ते भण्णाति, तत्थ सागारग्गहणेणं ओहिण्णाणस्स गहणं कतं, अणागारग्गहणेणं ओहिदसणस्स गहणं कतं, विभंगगहणेषं विभंगणाणस्स महर्ण कर्य, तत्थ विभंगणाणं णाम तं चैव ओहिण्णाणं मिच्छादिहिस्स वितहभावगाहित्तण विभंगणाण भण्णति, तत्थ जहग्णयमहणेणं खत्तकालाणं गहणं कतं, ते य खत्तकाला रहएहितो आरम्भ तिरियमणुए मोतुं जाब ६४॥ ४] उवरिमगेविज्जगा देवा, एत्थ जे जे तुल्लद्वितीया तेसि ओहिण्णाणं ओहिदसणं विभगणाणं च पडुच्च बिसओ तुल्लो भवति, | दवभावविसओ पुण तुल्लद्वितीणषि एतेसिं सम्मदसणं पडुच्च विसुद्धतवोकम्माईणि य कारणाणि य पडुच्च अतुल्लो भवति, Pउवरिमगेविज्जगाणं च परेण खर्च कालं च पड्डुच्च ओहिणाणओहिदसणाणं विसओ असंखेज्जो भवति, दव्यपज्जवेसु पुण A [76] Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [६५-६७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 देशक्षेत्र आवश्यक प्रत सत्राक श्री टी ओहिण्णाणओहिदसणापं विसओ अणंतो भवतीति ।। ओहिण्णाणओहिदसणावभंगाणि य एते तिष्णिवि दारा गता। अण्णे पुण भणति-दयाणि नापदंसणविभगोचि दारं, तत्थ 'सागारमणागारा' गाहा, सागारंति णाणं, ते पुण ओहिण्णाणं चूर्णी गहितं, अणागारग्गहणेण ओहिदसणं गहितं, ते सागारपज्जवा य अणागारपज्जवा य ओहिविभंगाणं जहष्णगा तुल्ला जाव गेवश्रुवबाने ज्जा, तेण परं उवरिमगेविज्जेसु परेण्यं खचतो य कालतो य असंखेज्जा, दन्बपज्जवसु अणता ! इदाणिं देसेति दारमागतं ।। का ॥६५॥ प्रेरइय देव तित्थंकरा य०॥६६॥णेरड्या देवा तित्थंकरा य एते तिष्णिवि ओहिण्णाणस्स अबाहिरा भवति, अबाहिरा। दणाम ओहिण्णाणवस्थियाचि बुलं भवति, ते य रइय देव तित्थंकरा य ओहिणाणस्स मज्झवस्थितत्तेण सबओ समंतापासंति, जे पुण सेसया तिरियमणुया ते देसणवि पासंविति ॥ देसित्ति दारं गतं । इदाणि खेत्तात्त दारमागतं, तंजहा____ संम्बेज्जमसंखेज्जा० ॥ ६७ ॥ संखिज्जाणि वा असंखज्जाणि वा जोयणाणि ओही पुरिसमबाधा य भवति, अवाहा णाम पुरिसस्स य ओहीए य जं अंतरं सा अबाधा भष्यति, सो पुण ओही दुविहो भवति, तंजहा-संबद्धो य असंबद्धो य, जो य संबद्धो सो सरीरातो आरम्भ णिरंतर संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणति पासइ, जोवि असंबद्धो सोऽपि संखेज्जाणि वा 12 असेखज्जाणि वा जोयणाई सरीरातो अन्दरिता तचो परेण पासति, आरेण ण पासतित्ति । एत्थ संबद्धे असंबद्धे य ओहिण्णाणे चउभंगो भवति, तंजहा-पुरिसे संबद्धो लोगते असंबद्धो १ लोगते संबद्धो पुरिसे असंबद्धो २ अण्णो लोगतेवि संबद्धो पुरिसेवि संबद्धो ३ अण्णो दोसुवि असंबद्धोध, जो पुण अलोगस्स अप्पमवि पासति सो पुरिसे णियमा संघद्धो ओही णायब्वोत्ति ॥खेत्तत्ति दारं लगतं ॥ तं पुण ओहिण्णाणं इमेहिं जयहिं दारहिं अणुगन्तब्य, तंजहा GESCREESAR eki दीप अनुक्रम [77] Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 सत्पदा प्रत सत्राक श्रुतज्ञाने श्री संतपयपरूवणया० ॥ १३ ॥ तत्थ संतपयपरूवणा णाम जहा कोइ सीसो काच आयरियं पुच्छिज्जा-भगवं! एतं ओहि- आवश्यक प्णाणं कि अस्थि णत्थिाच, आयरिओ आह-नियमा अस्थि, सीसो आह-जदि अस्थि तो कहि मग्गिय, आयरिओ चूर्णी आह-इमेहि ठाणेहि मग्मितवं गइ इंदिप य काए० ॥ १४ ॥ भासगपरित्त० ॥ १५ ।। सत्थ पढम गतिसि दारं, ताए चउब्यिहाएघि गतीए.४ ॥६६॥ ओहिणाणं पुवपडिवण्णओ य पडिवज्जमाणो य दोवि अस्थि । गतिति दारं गतं, इयाणि इंदियति दारमागतं--तत्थ एगिदिया बि० ति० चतु०ण वा पुब्बपडिवण्णओ ण वा पडिवज्जमाणओ, पंचिदिएसु पुण पुण्यपडिवण्णओं पडिवज्जमाणी xय दोषि अस्थि, इंदिपति दारं गतं । इदाणि काययोगवेदकसायलेसासम्मसपज्जवसाणा एए छप्पि दारा जहाभिणिवी&ाहियणाणे भणिया तहा भाणियब्धा ओहिअभिलावेणति । इदाणिं णाणेचिदारं आगतं, तंजहा-ओहिणाणं किंणाणी पडिवज्जति उदाहु अण्णाणी, एक्थ दो णया समोतरंति, तंजहा–योच्छइए य ववहारिए य, निबछयनयस्स णाणी पडिवज्जात्ति, पुन्यपडिलावण्णओवि णाणी चेव होज्जा, बवहारियणयस्स णाणी वा पढिवज्जति अण्णाणी वा, जति पाणी पडिवज्जति किं आभिणि| बोहियणाणी पडिवज्जति सुत०'ओहि० मणपज्जवणाणी पडिबज्जति , तत्थ आभिणियोहियणाणसुपणाणिणो बड्माणसमयं पडच्च ओहिण्णाणे पुख्यपडिवण्णगा वा होज्जा पडिवज्जमाणगाचा, सम्मत्नसमुप्पत्तिकालातो पुण ओहिण्णाणी पुथ्वपडिवण्णओ ठाणांत्थ, पडिबजमाणओ पुण आभिणियोहियणाणसुतओहिणाणाणि कोइ जुगर्व चव परिवज्जज्जा, आहिण्णाणी आहिण्णाणउप्प | चिसमकालमेव पडिवज्जमाणओ भवति, ततो उत्पत्तिकालतो पच्छा पुचपटिवण्णओं लम्भत्ति, मणपज्जवणाणी जीवो ओहिण्णाणे दीप अनुक्रम [78] Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [ ६८ ] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-1, पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूणीं श्रुतज्ञाने ॥ ६७ ॥ भाष्यं [-] पुन्यपडिवण्णओ वा पडिवज्जमाणओ या होज्जा, केवलवाणांण वा पुव्यपडिवनतो ण वा परिवज्जमाणतो णाणत्ति दारं गतं । घ्याणि दंसणेति दारमागतं । तत्थ चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी अहिणाणं पुव्यपडिवचओ वाऽवि पडियज्ञमाणओवा होज्जा, ओहिदंसणी उप्पत्तिसमकालमेव पडिवज्जमाणओ भवति, उपपत्तिकालाओ पच्छा पुन्वपडिवमओ लम्मा, केवलदंसणी न वा पुव्यपडियनओ न वा पडिवज्जमाणओ । दंसणत्तिदारं गतं । इयाणि संजमति दारमागतं तत्थ ओहिण्णाणं संजतो असंजतो संजतासंजतो य एते तिभिऽचि पुण्यपडिवनगा पडिवज्जेमाणगा वा होज्जा, संजमेति दारं गतं । | उवओग आहार भासगपरित्ता एते चउरोऽवि दारा जहा आभिनिबोधिते तहेव भाणियच्या ओहिअभिलावेणीत । इयाणि 'पज्जचचि दारमागतं तत्थ पज्जतओ पुष्वपडिवनाओ या पडिवज्जमाणओ वा ओहिण्णाणं दोसुत्रि भवेज्जा, अपज्जतओ ण वा पुव्यपडिवण्णओ ण या पडिवज्जमाणओ, पज्जत्तियसिदारं गतं । इयाणिं सुदुम सन्निभवसिद्धिय चरिमा एते चउरोवि दारा जहा आभिणिरोहिणाणे भणिता तहा ओहिअहिलावेण निरवसेसा भाणियव्या संतपयपरूवणत्ति दारं गतं ।। इयाणि दव्यपमाणादीणि भाणियन्त्राणि, ताणि दव्वपमाणादणि अप्पा बहुकपज्जबसाणाणि अट्टनि दाराणि जथा आभिणिबोहियणाणे भणिताणि तदेव निरवसाणि ओहिअहिलावेण भावियव्याणित्ति । इयाणि तमोहित्राणं समासतो चउब्विहं भवति, तंजा-दब्बतो खेतओ कालतो भावतो, दब्बओ णं ओहिन्राणी रूचिद्व्वाणि जाणति पासति खेचओ णं ओहि माणी जहत्रेणं अंगुलस्स असंखज्जतिमागं उक्कोसणं अलोए लोयप्यमाणमेसाई असंखेज्जाई खंडाई ओहिणा जाणति पासति, कालओ णं ओहिभाणी जहणेगं आवलियाए असंखेज्जतिभागं उकांसेणं असंखेज्जाओ [79] सत्पदादीनि ॥ ६७ ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [६९-७०], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक GROCE द्रव्यादिJ ओसप्पिणियो तीतं च अण्णागतं च कालं ओहिणा आणति पाससि, भावतो गं० अणते पज्जवे जाणति पासति, सव्वपज्जवाणं भिरवाधिः अणंतभागं । एवमेत ओडिवाणं चोदसपगडिभेदं सम्मन् ॥ ओहिबाणरिद्धिअवसरे चेच आमोसधिमादीयायोपि रिद्धीओ जीवाणा चूर्षों आमोंभवंतित्तिकाऊण इड्डिपचाणुओगस्त अबसरो आगतो, सो य इडिपत्ताणुओगो इमाहिं दोहिं गाहाहि भन्ननि, तंजहा पध्यादयः श्रुतवाने हा आमासधि विप्पीसधि ।। ६९ ॥ चारण आसीषिस केवली य०॥ ७० ॥ ॥६८॥ तत्थ आमोसधी नाम रोगाभिभूतं अचाणं परं वा जंचव तिगिच्छामिति सांचंतेऊण आमुसति तं तक्खणा चेव बवगयरोगातंर्क करोति, सा य आमोसधीलद्धी सरीरंगदसे वा सब्यसरीरे या समुपज्जतित्ति, एकमेसा आमासहित्ति भन्नति । तत्थ विष्पोसधिगहणण विट्ठस्स गहणं कीरइ, तं चव चिटुं आसहिसामत्थजुत्नत्तेण विप्पासही भन्नति, तं च जीविए (जं ) विप्पोसधी य | रोगाभिभूतं अपाणं वा परं वा छिवदितं तक्खणा चा बवगयरोगायकं करेति, से चिप्पोसधी, खलजल्ला पसिद्धा, तवि एवं चेव ओसहिसामत्थजुत्ता कस्सति तवरिद्धिसंपन्नस्स भवंतित्ति । संभिबसायरिद्धी नाम जो एगतरेणवि सरीरदेसेण पंचवि। | इंदियविसए उपलभति सो संभिन्नसांयाति भन्माते । उज्जुमतिलद्धिगहणण य विउलमतिलद्धीवि गहिता चेव, तत्थ उज्जुमती नाम मगोगतं भावं पछुच्च सामण्णमेतग्गाहणी मती जस्स सो उज्जुमती भवति, विउलमती नाम मणांगयं भावं पडुच्चर सपज्जायग्गाहिणी मती जस्स सो विउलमती भन्नति, जाणि य दबखेचकालभावाणि उज्जुमती जाणति ताणि विउलमती विसुद्धतराणि वितिमिरतराणि जाणतिसि । तत्थ सयोसधी नाम सब्बाओ ओसधीआ आमासधिमादीयाओ एगजीवस्स चेव जस्स. समुप्पण्णाओ स सम्बोसधी भन्नति, अहवा सन्चसरीरेण सम्बसरीरावयवेहिं वा खेलोसधिमादीहिं जो ओसहिसामत्थजुत्तो सो दीप अनुक्रम SERIES [80] Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [६९-७०], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री | सवोसधी भन्नति, अहवा सव्ववाहीणं जो निग्गहसमत्थो सो सव्वोसधी भन्नति । एगाते गाथाए एसस्थो भणितो । चारणादि आवश्यक लब्धया: __ इयागि वितिज्जियाए गाथाए अत्यो भन्नति, तंजहा- एत्थ चारणलद्धी णाम दुविहा चारणा भवति, तंजहा-जंघाचारणा य | चूर्णी | विज्जाचारथा य, तत्थ जंघाचारणलद्धिसंपन्नो अणगारो लूतापुडकतंतुमेत्तमवि णीसं काऊण गच्छति, विज्जाचारणलद्धीओ पुण श्रुतज्ञान विज्जातिसयसामत्थजुत्तयाए पुव्वविदेहअवरविदेहादीणि खेत्ताणि अप्पेण कालेण आगामेण गच्छतित्ति ।। तत्थ आसीविसलद्धीद ॥६९॥ णाम आसीविसोविच कुवितो जो देहविणिवायसामत्थजुत्तो सो आसीविसलद्धाओ भन्नतित्ति, केवलमणपज्जवणाणीपुव्वधरा अरिहंता चकवडी बलदेववासुदेवा य एतेऽवि केवलणाणादाहिं वासुदेवपज्जवसाणाहि लद्धीहिं उववेया णायब्वा, केवलणाणादीयाओ |य सिद्धाओचिकाऊण इहं ण भणिताओ। एत्थ सीसो आह- भगवं ! उज्जुमतिग्गहणेण चेय मणपज्जवणाणस्स गहणं कयं तो किमत्थं पुणो गहणं कयंति?, आयरिओ आह-तत्थ पुचि उज्जुमतिविउलमतिणो भेदा पहुच्च मणपज्जवणाणलद्धी परूविता, इह पुण अविसेसियस्स मणपज्जवणाणस्स | गहणं कयंतिकाऊण पत्थित्थ दोसो। इयाणिं जा अरहंतचक्कवाट्टिवलदेववासुदेवाणं च सारीरबलसामत्थं पडुच्च रिद्धी तं H ॥६९॥ *मणीहामि, जा पुण तेसिं अणुवमरूवपण्णासोहग्गसचमातीयाओ रिद्धीओ ताओ पसिद्धाओत्तिकाऊण इहंण मणति, तत्थ पुव्वं | वासुदेवस्स सारीरबलसामत्थरिद्धी भणीहामि । तीए पुन्धि भणिताए बलदेवस्स सरीरबलसामत्थरिद्धी वासुदेवसारीखलसामत्थरिद्धी-18 तो अद्धप्पमाणा सुहग्गहणतरिका भविस्सति, वासुदेवस्स य सारीरबलसामत्थरिद्धीए चक्कवहिस्स बलरिद्धी अहियतरियत्ति दीप अनुक्रम | 'मन:पर्यव'ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते [81] Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७१-७५], भाष्यं । (४०) डा बलं प्रत सूत्रांक श्री काऊण पच्छा भणीहामि | चक्कबट्टिबलरिद्धीओ य अरिहंताणं भगवंताणं बहुतरियत्तिकाऊण पच्छा मणिहामि । तस्थ जा सा केशवादिआवश्यकता वासुदेवसारीरबलसामथरिद्धी सा इमाहिं दोहिं गाहाहि भन्नति । तैजहाचूर्णी IN सोलस रायसहस्सा ॥ १ ॥ घेत्तूण संकलं सो० ॥ ७२ ॥ एताओ दोऽवि गाहाओ कंठाओ । जाविय सा चक्कव- ला. श्रुतवाना द्विणो सारीरबलसामत्थरिद्धी सावि इमाहिं दोहिं गाहाहिं भण्णति, तं०-दो सोला बत्तीसा ॥ ७३ ।। 'घेत्तूण संकलं ॥७॥ सो० ॥ ७४ ।। एताओ दोऽवि गाथाओ कंठातो, इयाणि जं केसवस्स सारीरबलसामत्थं ततो जावतितेण भावेण चक्कवट्टिको अहियतरागं सारीरबलसामत्थं भवति जंच अरिहंताणं भगवंताणं सारीरबलसामत्थं ते इमाए गाहाते भण्णति, तंजहा जं केसवस्स उ बलं ॥७५॥ एवमेसो इडिपत्ताणुतोगो ओहिन्नाणपसंगण आगतो भणितोत्ति । अन्ने एत्थ इमाओ बीस ४ डीओ पनवेति, तंजहा- आमोसहि १ खेल०२ जल्लोसधि ३ विप्पोसधि ४ सम्बोसहि ५ कोहबुद्धी ६ चीयबुद्धी ७पयाणुसारी ८ संभिचसोता ९ उज्जुमती १० विपुलमती ११ वेउव्वीय १२ खीरासवा महुआसया १३ अक्खीणमहाणमा १४ चारणा १५ बिज्जाहरा १६ अरहता १७ चक्कवट्टि१८ बलदेव १९ वासुदेव २० ॥ एताओ भवसिद्धीयपुरिसाणं भवति । एतातो जाणएणं विभासियच्याओ । तत्थ बीयबुद्धी नाम बीजमात्रेण उवलभनि, जहा सित्थण दोणपाकं । एगेणं पदेणं सेसमवि जाणति जो सो ४पयाणुसारी । कोहबुद्धी नाम जहा कोट्टए धण एवं जं सिक्खति । संभिमसोतो णाम जति बारसजोयणचक्कवट्टिखंधावारे जमग-2 लसमग बोलेज्जा सव्वेसि पत्तेयं पचेयं जाणति, एगेण वा इंदिएणं पंचवि इंदियत्थे उपलभनि, अहवा सबेहि अंगोवंगेहिं, अहवाल चकवविखंधावारे सब्बतूराणं विसेस उवलमति, एस संभिन्नसोओ भन्नति । खीरासबो चोलेज्ज णज्जति खीरासवं मुयति, SECRECRCASSAX E दीप अनुक्रम वासुदेव आदेः लब्धि-वर्णनं [82] Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७५-७६], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक * श्री खीरासवो नाम जहा चकवादिस्स लक्खो गावीण, ताणं खीरं तं अस्स दिज्जति, चातुरक, एवं खीरासबो भवति । एवं मनः पर्यवआवश्यकमहुआसवावि बुद्धयाऽपेक्ष्य परूवेयन्या । अक्खीणमहाणामयस्स भिक्खंण अनणं णिविज्जति, संमि जिमिते निहाति । उज्जुमती। ज्ञानं चूर्णी विपुलमती । तहेव इच्छितं बिउब्बति चेउवी । चारणो दुविहो- जंघाचारणो आगासचारणो य, आगासचारणो आगासण जाइ.. श्रुवज्ञानेशजंघाचारणो जाब लूतासंतुएणपि जाति, विज्जाघरस्स विज्जा आगासगमणा, सेसे तहेव । इयाणि मणपज्जवणाणं भणीहामि, IA तस्स य मणपज्जवणाणस्स य दोभि भेदा भवंति, जहा- उज्जुमतीय विउलमी य, सो य जदेव इडिपत्ताणुतोग भणितो तह ॥७२॥&ाव एत्थंपि माणियब्बोचि । तं च लक्खणती इम, तेजहा मणपज्जवणाणं ॥ ७६ ॥ एत्थ मणपज्जवणाणं णाम जेण उप्पणेण णाणेण मणुस्सखत्ते सभिजीवेहिं ममपातोम्गाणि दब्बाणि मणिज्जमाणाणि जाणति तं मणपज्जवणाणं भति, एत्थ दिट्टतो पिहुज्जणो, जहा सो पिहुजणो अनो अनस्स कस्सइ आगारे दळूण दुमणं सुमण वा भाव जाणति, एवं मणपज्जवणाणीवि सनीण पंचेंदियाणं मणोगते भावे जाणति, जहा एरिसेहिं दब्बेहि मणिज्जमाणाद एरिस चितितं भवतित्ति । तं च मणपज्जवणाणं मणुस्साणं गम्भवक्कतियाण कम्मभूमगाणं संखेज्जवासाउयाण पिज्जत्तगाणं सम्मदिट्ठीणं इडिपत्तमपमत्तसंजयाणं भवतित्ति । तं च मणपज्जवणाणं समासओ चउब्धिहं भवति, तंजहा- दब्बतो खेचओ कालतो भावतो, तत्थ दव्वतो उज्जुमती अणंते अणंतपएसिते खंधे जाणति पासति, ते चेव बिउलमती विमुद्धतराए & वितिमिरतराए खंधे जाणति पासति, खेचओ ण उज्जुमती जाब इमीसे रयणषमाए पुढवीए उवरिमहेडिल्ले खुड्गपतरंसु, उड्का जाब जोतिस्सस्स उवरि तलो, तिरियं जाव अड्डाइज्जेसु दीवेमु दोसु य समुद्देसु सप्णीणं पंचेदियाणं पज्जत्तगाणं मणोगते भावे 4- दीप अनुक्रम ARRIALSS [83] Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [७६-७७], भाष्य [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 चूण श्रुतज्ञाने ५ ।। ७२ ।। जाणति पासति, ते वेव बिउलमती अड्डाइज्जेहिं अंगुलेहिं अम्महिए खेते विसुद्धतराए वितिमिरतराए जागर पासह, कालओ णं उज्जुमंती जहत्रेण परिओवमस्स असंखेज्जविभागं उकोसेणऽवि पलितोवमस्स असंखेज्जतिभागं तीयं च अणागयं च कालं जाणति षासति तं चैव विउलमती विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणति पासति, भावतो णं उज्जुमती अनंते भावे जाणति पासति सव्वभावाणंतभागं, ते चैव विउलमती विसुद्वतराए वितिमिरदराए जाणति पासति । से तं मणपज्जवणाणं ।। इयाणि केवलनाणं भन्नति, तंजा अह सब्बदव्यपरिणाम ० || ७७|| तत्थ अहसदो आणतरिए वट्टति, तत्थ आणतरियं णाम आणतरियंति वा अणुपरिवाडिति या अणुकमेति वा एगट्ठा, मणपज्जवणाणातो य अयंतरं केवलनाणं भवति, अह तस्स केवलणाणस्स अवसरो संपत्तोत्ति, तत्थ केवलसदो गिरवसेसिते अत्थे वट्टति, आभिणिबोहियणाणाईजिवि गाणाणि चैव भवंति ण पुण ताणि केवलाणि नाम संपुनाईति वृतं भवति, एत्थ दितो कदमांदगं, जहा कद्दमोदकस्स कयकफलादिणा दण्वेण अच्छता भवति, सा य अच्छता काइ विसुद्धा, कावि ततोऽचि विसुद्धतरा, कावि पुण ततो विमुद्धतमा भवति, एवं तदावरणिज्जाणं कम्माणं खतोवसमेण अभिनिवोहियस्यणाणाणि उप्पज्जीत, ततो विमुज्झमाणस्स ओहित्राणं उप्पज्जति, ततो विसुज्झमाणस्स मणपज्जवणाणं उप्पज्जति, ततो णाणावरणदंसणावरणमोहणिज्जअंतरायाणं चउण्हवि कम्माणं णिरवसेसक्खतेण अविगप्पं एवं चैव केवलनाणं समुप्पज्जति । जे य आभिनिबोहियणाणादयो विगप्पा ते तस्स केवलणाणिणो ण हवंति, कस्सति पुण ओहिन्नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे अकतेऽवि मणपज्जवणाणं उत्पज्जति, पच्छा ओघिणाणावरणखतोव समं काऊण ओहिनाणं उप्पाडेति, ततो केवलणाणावरणक्खयं 'केवल 'ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते [84] केवलज्ञानं 11 192 11 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७७-७८], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत HEG5 श्री काऊण केवलणाणमुप्पाडेतिति । कोवि पुण ओहिमणपज्जवणाणाणि अपाविऊण चैव केवलणाणमुप्पाडेति । अतो केवलणाणं चेव केवलज्ञानं आवश्यक शनिच्छयणयस्स वत्तव्ययाए आवरणं पडुच्च आभिाणिवाहियणाणादीणि णामाणि लब्भति । तं चेव केवलगाणं सव्वदच्वाणं | चूर्णौ परिणामस्स सबभावाणं च परिणामस्स विनाचिकारणं भवति, एगगहणे गहणं तज्जातीयाणं सव्वेसितिकाऊण दव्यभावग्गहणेण श्रुतज्ञाने सब्बखेचपरिणामस्स सब्वकालपरिणामस्स य दोण्हवि विन्नत्तिकारणं भवति । जम्हा य सव्वदव्वखेत्तकालभावाणं चउण्हवि । सब्बपरिणामाचं विचत्तिकारवं भवति अतो त केवलणाणं अणतं ददुव्बंति । तत्थ सम्बदव्वपरिणामो घाम, दव्वं दुविहं भवति ॥७३॥ होतंजहा- जीवदव्वं अजीवदव्वं च, तस्स दुविहस्सावि दध्वस्स जो उप्पायट्ठितिभगेहिं पज्जायभावो सो दव्यपरिणामो भन्नति, तत्थ खेत्तगहणेण आगासन्धिकारस्स गहणं कर्य, तस्स खेत्तपरिणामो परपञ्चइओ पोग्गलत्थिकायादिगो दब्वे पडुच्च भवतित्ति, तत्थ कालपरिणामो णाम समयावलियमुहुत्तादी अणेगमेदो भवति, भावपरिणामो णाम एगगुणकालादी अणगभेदो ददृब्वोत्ति । | एतेर्सि चउण्हवि दबखेचकालभाषा जो परिणामो तस्स सबपरिणामस्स विन्नतिकारणमणतं केवलणाणं भवतित्ति । तत्थल | विन्नतिकरण नाम विनचिकारणति वा जाणितव्वगसामत्थजुत्तति वा विनतिउभ्यंति वा एगट्ठा, जहा य केवलणाणं अणतं भवति तहा सासतं अपडिवादी एगविहं च भवति । तत्थ एगविहं णाम आभिणिबोहियनाणादीभेदविउत्चति वुत्तं भवति, एत्थ || सीसो आह-जमेत दुवालसंग गणिपिडगं एवं केवलणाणोबलद्धति काऊण कहं केवलं चेव ण भवाति , आयरितो आहद केवलणाणेणऽत्थे०॥ ७८ ॥ दुबिहा भावा भवंति, तंजहा-अभिलप्पा य अणभिलप्पा य, तत्थ जे ते अणमिलप्पा ते ण ॥७३॥ चैव अभिलविऊण सतित्तिकाऊण तेसु अधिकारो चेव गत्थि, जे ते पुण अभिलप्पा ते दुबिहा भवंति, तंजहा- पण्णवणिज्जा दीप अनुक्रम SITES ₹55-254 [85] Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । (४०) प्रत सुत्रांक श्री 13 अपण्णवणिज्जा य, तत्थ जे ते अपनवणिज्जा तेसु ण घेव अहिगारो अथिति, जे पुण पण्णवाणिज्जा भाषा ते केवलणाणेण 31 भवस्थआवश्यक पासिऊण तित्थकरो तित्थकरनामकम्मोदतेण सब्बसत्ताणं अणुग्गहनिमित्तं भासति, जंच सो भगवं भासति तं बतिजोगजुत्तत्व- कवलज्ञान चूर्णी Iोण सुयणाणं भवति, जंच प्रण सेस केवलणाणोबलद्धं ण चेव भासति केवलणाणं ददृच्चति ।। श्रुतज्ञाने तं च केवलणाणं सामिनं पहुच्च दुविहं भवति, तंजहा- भवत्थकेबलणाणं च सिद्धकेवलणाणं च, तत्थ भवत्थकेवलणाणं ॥७४॥ नाम मणुस्सभवे चेव अवस्थितस्स बउहि घातिकम्मेहिं खीणेहिं समुप्पज्जति, तंजाव चउरो केवलिकम्मा अक्खीणा ताव भवत्थकंवलणाणं भन्नति, जं पुण केवलिकम्मेहिं खीणेहि सिद्धस्स तं सिद्धकेवलणाणं भवति, सत्य जंतं भवत्थकेवलणाणं तं विहं, तंजहा- सजोगिभवत्थकेवलणाणं च अजोगिभवत्थकेवलणाणं च, तत्थ सजोगिग्गहणेण केवलणाणसमुप्पत्तीओ आरम्भ जाव पंचहस्सक्खरियं सेलेसि ण पडिबज्जति ताव सयोगिभवत्थकेवलणाणं भन्नति, जाहे पुण पंचहस्सक्खरिय सेलीस पडियने है। भवति ताहे अजोगिभवत्थकेवलणाणं भन्नति, तत्थ जं तं सजोगिभवत्थकेवलणाणं तमवि दुविहं भन्नति, तंजहा-पढमसमयसजोगि-18 | भवत्थकेवलणाणंच अपढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणं च, तत्थ पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणं णाम जमि चेव समये । केवलणाणमुप्पचं वंमि चेत्र तस्सं केवलणाणस्स पदमसमयसजोगिभवस्थकेवलणार्णति सभा भवति, ततो य केवलणाणुप्पत्तिजो पढभसमयातो जो बीतो अणंतरसमतो ततो आरम्भ जाव पंचहस्सक्खरियं सेलेसि ण पडिबज्जति ताव अपढमसमयसजोगिभवत्थ-18 M ॥७४॥ केवलणाणं भन्नति, तहा एयस्स चव सजोगिभवत्थकेवलणाणस्स अन्ने इमे दुए भेदा भवंति, जहा- चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च अचरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च, तत्थ चरमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं णाम जातो समयातो अणंतरं दीप अनुक्रम C RRC RECORG [86] Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | सर प्रत सत्राक पंचहस्सक्खरिय सेलोसि पडिवज्जात सो य सजोगिमवत्थकेवलणाणिस्स चरमसमयो भमति, तमि य समये बदमाणस्स केबलिस्स अनन्तरआवश्यक केवलणाणं तं चरिमसमयसजोगिभवस्थकेचलनाणं भवति, तातो य सजोगिचरिमसमयाओ आरम्भ जो से अतीतो कालो जाव सिद्ध चूणौँ केवलणाणुप्पचिपढमसमयो एत्थ अचरमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणं भन्नति, से तं सजोगिभवत्थकेवलनाणं । तत्थ जंतं अजोगि- केवलज्ञानं श्रुतज्ञान | भवत्थकेवलणाणं, से तं भवत्थकेवलनाणं ।। से किं तं सिद्धकेवलणाणं?, सिद्धकेवलणाणं दुविहं भवति, तंजहा-अणंतरसिद्धकेवलणाण च परंपरसिद्धकेवलनाणं च, तत्थ 3 ॥७ ॥ अर्णतरसिद्धकेवलणाणं णाम मि समते एगो केवली सिद्धा ततो जो अर्थतरो वितीओ समतो तमि अमो केवली सिद्धो तस्सदा केवलिस्स जं पाणं तं अणंतरसिद्धकेवलनाणं भन्नति, तं च पन्नरसविहं, जहा-तित्थसिद्धकेवलणाणं अतिथीसद्ध तिस्थगर-12 सिद्ध० अतित्थकर० सयंबुद्ध० पत्तेयबुद्ध० बुद्धबोहिय० इथिलिंगसिद्ध पुरिस० णपुंसकलिंग अन्नलिंग गिहिलिंग एगसिद्ध अणेगसिद्धकेवलणाणंति । तत्थ तित्थसिद्धकेवलणाणं णाम जे विस्थगराणं तित्थे सिद्धा तास जाणं तं तित्थसिद्धकेवलणार्ण भन्नति, अतिस्थसिद्ध णाम जे तेसि तिस्थगराणं तित्थातो तित्था ण मिलिता तस्थ तित्यंतरे प बढमाणे जे सिद्धा तेसि जे कवलणाण त। अतित्थसिद्धकेवलणाणं भन्नति, तित्थगरसिद्धकेवलणाणं जहा उसमादीण, अतित्थगरसिद्धकेबलनाणं जहां भरहादीण, सयबुद्धकेवलनाणं जं सर्य चेव संबुज्झिऊणं किंचि आयरियं उवसंपन्जति ततो पच्छा तस्स केवलणाणं तं सयंबुद्धकेवलणाणं भण्णति, ॥७५।। IPापत्यबुद्धकवलणाणं णाम जहा णमिस्स रायरिसिणो, ते य पचेयबुद्धा सय व संयुज्झिाऊण सर्य चेव पब्बज्ज अन्भुवगच्छति तसिं जे केवलणाणं तं पचेपबुद्धकेषलणाणं भन्नति, अथवा सयं-अप्पणिज्जं जातिस्सरणादिकारणं पटुच्च बुद्धा सर्ययुद्धा, फुडतरं । दीप अनुक्रम [87] Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्य [-] अध्ययनं [-1, मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [७८-७९], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूण श्रुतज्ञाने ॥ ७६ ॥ वा अभिधीयते, बाह्यप्रत्ययमंतरेण ये प्रतिबुद्धास्ते सयंबुद्धाः, ते य दुबिहा- तित्थगरा वइरित्ता य, इह वतिरिचेहिं अहिगारो, किंच- सर्वबुद्धस्स वारसवोऽवि उबही भवति, पुव्वाधीतं से सुतं भवति वा ण वा, जति से णत्थि तो लिंग नियमा गुरुसंनिह पडिवज्जति गच्छेय विहरति, अहवा पुव्वाधीतमुपसंभवो अस्थि तो से लिंग देवता पयच्छति गुरुसंनिहे वा पडिवज्जति, जदि य एगविहारविहरणजोग्गो इच्छा य से तो एगो चैव विहरति, अनहा गच्छे विहरति एयम्मि भावे ठिता सिद्धा पती पती (पत्तेयत्ता) ओ वा भावतो सिद्धा पत्तेयबुद्ध, पत्तेयं बाह्यं वसभादिकारणमभिवीक्ष्य बुद्धा पत्तेययुद्धा, एतेसि नियमा पत्तेयं बिहारो जम्हा तम्हा ते पत्तेयबुद्धा, जहा करकंडुमादयो, किंच-पत्तेयबुद्धाणं जहन्त्रेण दुविहो उफोसेण णवविहो उबधी णियमा पाउरणवज्जो भवति, किंच-पत्तेयबुद्धाणं नियमा पुब्वाधीतं सुतं भवति, जहनेण एकारसंगी उकोसेण भिन्नदसपुथ्वी, लिंगं च देवया पयच्छति * लिंगवज्जितो वा भवति । जतो भणितं रूप्पं पत्तेयबुद्धा' इति । बुद्धबोहिय केवलणाणं णाम जं समं सोऊण वेरग्गतवजुत्तस्स भवति तं बुद्धबोहिय केवलणाणं भवति, इत्थिलिंगण सिद्धाणं जं नाणं तं इत्थिलिंग सिद्ध केवलणाणं, एवं पुरिसणपुंसएमुवि भाणियव्वं, तहा सलिंगसिद्धाण जं गाणं तं सलिंगसिद्ध केवलणाणं भन्नति, अनलिंगसिद्धकवलणाणं गाम जं अनलिंगण सम्मतं पडिवन्नस्स केवलणार्थं समुप्पज्जति, सम्मुप्पत्तिकालसमयमेव कालं करोति तं अनलिंगसिद्धकेवलणाणं भवति, सो य अनलिंगिकेवली जति आउयमप्पणी अपरिक्खीणं पासति ततो साधुलिंगं चैव पडिवज्जतिति । गिहिलिंगसिद्ध केवलणाणं णाम जहा कस्सति गिहिणो चैिव सम्मतं पडिवन्नस्स केवलणाणं उप्पज्जेज्जा, सम्मुप्पत्तिकालसमयमेव कालं करेज्जा तस्स जं गाणं तं गिहिलिंगसिद्ध केवलणाणं मनवि, एगसिद्धकेवलणाणं नाम जमि समये सो सिद्धो न तंभि अन्नो कोइ सिद्धोत्तिकाऊण तस्स जं नाणं तं एगसिद्ध केवलनाणं [88] अनन्तर सिद्ध केवलज्ञानं ॥ ७६ ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 21 केवलं प्रत आवश्यक चूर्णी श्रुतज्ञाने सत्राक SAXE ॥७७॥ भण्णति, अणेगसिद्धकेवलनाणं नाम जमि समए सो सिद्धो तमि समये अनेवि सिद्धा एतेसि जे गाणं तं अणेगसिद्धकेवलणाणं परंपरसिद्धभवति । एवमेतं अणंतरसिद्धकेवलणाणं भन्नतिीच ॥ तत्थ परंपरसिद्धकेवलणाणं अणेगविहं भवति, तंजहा-अपढमसमयसिद्धकेवलणाणं एवं दुसमय जाब दससमय० संखेज्जसमय० ॥ असंखेज्जसमय० अर्णतसमयसिद्धकेवलणाणंति । तत्य अपढमसमयसिद्धकेयलणाणं णाम अस्थि ते सिद्धा जे अन्नस्स सिद्धस्स | 8 सिज्झणकालातो अपढमिल्ले समये सिद्धा तेसिं जे केवलनाणं तं अपढमसमयसिद्धकेवलणाणं भन्नति, तहा अस्थि ते सिद्धा जे दो अनस्स सिद्धस्स सिज्मणकालातो वितिए समए सिद्धा तेसि जे केवलणाणं तं दुसमयसिद्धकेवलणाणं भन्नति, एवं जाव अस्थि ते सिद्धा जे अन्नस्स सिद्धस्स सिक्षणकालातो अर्णततिम समये सिद्धा तेर्सि ज णाणं तं अर्णतसमयसिद्धकेवलनाणं भन्नति । सेत् । परंपरसिद्धकेवलणाणं । से तं सिद्धकेवलनाणं ॥ तं च केवलणाणं समासती चउम्यिहं भवति, तंजहा-दबतो खेत्ततो कालती || भावतो, दब्बतो णं केवलणाणी सम्बदम्बाई जाणति पासति, खेचओ णं केवलनाणी सम्बखे जाणति पासति, कालओ णं केवलनाणी सव्वकालं जाणति पासति, भावतो णं केवलणाणी सब्वभावे जाणति पासति । सेत्तं केवलणाणं । एवमेतं पच्चक्खणाणं |तिविहमवि भणितं, बनिया य पंचविहावि आभिणिबोहियणाणाती केवलणाणपज्जवसाणा भावणंदित्ति ।। भावनंदी सम्मत्ता॥ है। एवमेताई आभिनियोहियणाणादीणि पंच णाणाई भावमंगलणिमित्तं परूविताई । एत्थ पुण सुयणाणेणं अधीगारो, कम्हाला जम्हा सुवणाणे उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुतोगो य पबत्ततित्ति, अहवा जम्हा सुयणाणेण अबसेसाणि णाणाणि णज्जति दापरूविज्जति वा तम्हा सुयणाणेण अधोगारो । अहवा चत्तारि णाणाणि ससमुत्थाणि इमं परसमुत्थं तेणं तस्स अधिकारी ।। CHAR दीप अनुक्रम [8] Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक 8 जति सुयणाणेण अधिगारो तो उद्देसादीणि एयस्स पयतंति, तो कि अंगपविट्ठस्स अंगबाहिरस्स?, दोहवि, इमं पुण पट्टवणं आवश्यक आवश्यकता पडुच्च अंगवाहिरस्स, जति अंगवाहिरस्स तो किं आवस्सगस्स आवस्सगवतिरित्तस्सी, दोण्हथि, इमं पुण पट्ठवर्ण पहच्च आवस्सगस्साद निक्षेपाः चूणा. अणुतोगी, आवस्सग किं अंग अंगाई सुअक्खंधो सुयखंधा अज्झयणं अज्झयणाई उद्देसो उद्देसा, आवस्सगं ण णो अंगा श्रुतस्कषणो अंगाई सुयक्खंघो णो सुयक्खंधा णो अज्झयणं अज्झयणा णो उद्देसो णो उद्देसा, तम्हा आवस्सगं णिक्खिविस्सामि सुयं । ॥७८॥णिक्खिाविस्सामि खंध णिक्खिविस्सामि। से किं तं आवस्सर्य, आवस्सगं समासतो चउविहं-णाम ठवणा० दब्ब० भाव०, णामावस्सय जस्स पंजीवस्स वा हा अजीवस्स वा आवस्सएति णाम कीरति, से तं णामावस्सगं । से कि तं ठवणावस्सगं, २ जनं कहकम्मे वा पोत्थकम्मे वा से सम्भावओ असब्भावओ वा आवस्सएत्ति ठवणा ठप्पति से ठवणावस्सर्ग। से कि तं दवावस्सगं ?, दब्बावस्सगं दुविहं, तंजहा आगमओ य णोआगमो य, आगमओ जस्स णं आवस्सएत्तिपदं सिक्खितं ठित इच्चादि, सिक्खितं नाम जे अंतं पत्त, ठित दणाम जं से ठितं हियये, जित नाम जं मूले घेतूण अग्गं पावेति, मितं णाम जे अक्खरहिं पदेहि सिलोगेहि मित-एत्तियाई ताई, | परिजितं नाम जं मूलाओ अग्ग पावेति अगाओ व मूलं पावेति, णामसमं णाम जहा अप्पणो णाम एवं तंपि अझयण, घोससम 31 उदचअनुदत्तस्वरितकंपितद्रुतविलंबितविश्लिष्टापेक्षस्वरनियत, उच्चदात्तं जहा उप्पति वा भूएत्ति वा, अणुदत्त उप्पन्चेति वा ४ ॥ ७८।। भूपति वा, सयाद्वारे उप्पनभ्यपरिणया, होणक्खरे उदाहरण-दब्वे अगारीए पुत्तस्स ओसह ऊर्ण दित्तं, भाये विज्जाहरो, दी 'रायगिहे' गाहा० अच्चक्खरे उदाहरणं-दब्वे तदेव अगारी, अहिए भावे 'जो जह वती' गाहा, अहवा-'चंदगुत्त०' गाहा। दीप अनुक्रम ...अत्र उपोद्घात् नियुक्ति: आरभ्यते, ...आवश्यकस्य नामादि निक्षेपा: वर्णयते [90] Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग - 3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [७८-०९] भाष्यं [-] अध्ययनं -L मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.... श्री आवश्यक चूर्णी श्रुतस्कंधे ।। ७९ ।। मूलं [- / गाथा-1, . आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: - - खलिते पत्थरंमी नांगूलं मिलिए धनरासी विच्चामेलिते कोलियपायसो 'पडिपुनं' पडिपुत्रघोस कंठोडविष्यमुकं जहा 'कप्पपेदिताए' तहा भणियच्वं । सेचं आगमतो । से किं वं णोआगमतो दब्वावस्वयं १, २ जाणगसरीर० भवियसरीर० तव्यतिरितं ३ जहा णियोगद्वारे जा वतिरिते, वरि लोउत्तरिए दष्वावस्सए इमं अ[त्थ]क्खाणगं भाणियव्वं वसंतपुरं नगरं, तत्थ गच्छो अगीयत्थसंविग्गो विहरति, तत्थ थ एगो अगीयत्थी समणगुणमुक्कजोगी, सो दिवसदेवसियं उदउल्लससिणिआहाकम्मादणि पडिसेवित्ता महता संवेगेणालोएति, ते पुणो अगीयत्था पायच्छितं अयाणमाणा अहो इमो धम्मसीओ साधु, सुहं पडिसेविडं दुक्खं आलोएउं, एवं नाम एस आलाएति अगूहतो, तं दणं ते अवसेसा पव्वइया चिंतेति णवरि आलाएयब्वं णस्थित्थ किंचि पडिसेविते । तत्थनदा कयाती गीयत्थो संविग्गो विहरमाणो आगतो, सो तं दिवसदेवसियं दणं तत्थ उदाहरणं दापति- गिरिणगरे नगरे वाणियओ रत्तरतणाणं घरं पूरइता पलीवेह, तत्थ सम्बलोगो पसंसति अहो इमो भगवंतं अरिंग तिप्पे, अन्नया कयावि तेण य पलिवितं, वायो य पबलो जातो, सव्वं नगरं हवं, अहिपि नगरे एको एवं चैव करेड, सो राहणा सुआ जहा एवं करेतित्ति, सो य सव्वस्स हरणं काऊणं विसज्जितो, अडवीए कीस ण पलीबेसि ?, जहा तेणं वाणियपूर्ण अवसेसावि हड्डा एवं तुम्भेऽयि एवं पसंसंता इमे साधुणो सब्बे परिचय एवं च एस महाधिसो, जदि एयस्स निग्गहं ण करेह ताहे सच्चे विणस्सेहा, एवं दवावसतं । से किं तं भावावासगं १, २ आगमतो य णोआगमतो य, आगमओ जाणओ उवडतो, णोआगमतो तिविहं लोइयं लोउतरियं कुप्पावयाणियं, जहा अणुओगदारे ॥ तस्स णं इमे एगडिया णामधेज्जा पं० आवस्सगंति वा अवस्कायव्यं अवस्सकर [91] आवश्यकनिक्षेपाः ।। ७९ ।। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । (४०) चूर्णी प्रत सत्रांक गति वा अवस्सकरणिज्जंति वा धुवकायव्यंति वा निग्गहोत्ति वा, एस्थ गाथा फासेयव्वा, 'समणेण सावगे एवं निरुत् आष- आवश्यकआवश्यकस्स गस्स, सेत्तं आवस्सगं । से किं तं सु?, सुयं जहा अणुओगद्दारे, खंघोवि तहेव, एत्थ सामादियादीण सुयविससाण छण्डंास्योपक्रमः खंधो सुयक्खंधो, आवस्सगं च तं सुयखधो २ । एत्थ य छ अत्याधिगारा सामाइयादीणं जहाजोगमणुगंतव्वा, तं०-सावज्जजोगवि-18 श्रुतस्कंधे रती उकिचण गुणवतो य पडिवत्ती । खलियस्स निंदणा वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ॥शा आवस्सयस्स एसो पिंडत्थो वनितो ॥८॥दसमासेण । एत्तो एकेक पुण अज्झयणं बत्तइस्सामि ॥१॥ ___तस्थ पढम अज्झयणे सामाइयं, तस्स इमाणि चत्तारि अणुओगदाराणि भन्नति, तंजहा-उबकमो निक्खेयो अणुगमो गयो । |किं णिमित्रं चत्तारि दारा कता १, एगेणेच अणुममेणं कीस णाणुगम्मति , तत्थ दिट्ठतो-एगवारेण नगरेण समततो जोयणा-[A] INयामेणं, जहा तत्थ एगेण दुवारण कटुतणयादिकज्जाणं संकिलेसो भवति सबलोगस्स, जहा तं नगरं दुमिक्खमणपवेसं भवति । एगेणं दुपारणं, एवं चेव सिस्सस्स दुम्मेहस्स दुक्खं एगेण दारेणं अत्थाधिगमो भवति, तेण चत्तारि दारा कया उवकमादिया। | से किं तं उवामे, उबकमो णासस्स अपचावत्यापावण, सो पुण छव्विहो-णामोवकमो ठवणोक्कमो दब्बो खत्तो कालो भावोचकमो, णामठवणाओ गयाओं, से किं तं दब्योपकमो?,२ दब्यस्स उवक्कमो दब्बोवकमो, दव्वाण वा उवक्कमोर दव्येण वा उवकमो ४ दबोचकमो दव्येहि वा उवकमा दव्यंमि वा दब्बेसु वा, दबस्स उबकमो जहा मोदगस्स, दवाणं उवकमो जहा णिप्फावाणं, दब्वेण 31 HRI||८०॥ 6 उवकमो जहा फलएणं समुदं तरति, दव्येहिं जहा बहुहिं फलएहि णावा गिफज्जति ताए तरति, दबमि उवकमो जत्थ कासतिला भासीस काऊण उबकामिज्जति | अहवा दब्बोवकमो तिविहो-सचित्तो अचित्तो मीसओ, सचित्तो तिविहो-दुपदचतुष्पदअपदाणं SHARMA दीप अनुक्रम अत्र 'उपक्रम'-आदि वर्तते [92] Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता..........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: श्री प्रत आवश्यक चूणौँ सत्राक ॥८१॥ दीप अनुक्रम है दुपदाणं दुविहो उवकमो-संवर्तने च परिकर्माणि च, संवर्तने जहा कोइ मणूसो मारिज्जति, परिकम्मणे जहा सो चेव बावत्तरी कलातो आवश्यकसिक्खाविज्जति, एवं चेव चउप्पयाणपि, अपयाणं परिकम्मणे जहा कक्कडियाओ जारिसियाओ इच्छिज्जति तारिसा खड्डा खणति स्योपक्रमः | पच्छा तारिसा भवंति, संवट्टणे सम्वेवि छिज्जंति । अचित्ते दबावकमो जहा सुवष्णं अंगुलीय कत्तेण परिकम्मिज्जति, संवट्टणे जहा | तं चेव विणासिज्जति । से किं तं मीसो दच्चोवकमो, २ सचामरधासलपरिमंडितो आसो धावणवग्गणधारणचियइवइ एवमादि सिक्खाविज्जति, सो चेव जहा संगामे आवडिते ववरोविज्जदि सो संवट्टणावकमो। से किं तं खेत्तोवर.मो, खचाव कमो जहा खेत्तं हलकुलियणगलादीहिं उवकामिज्जति । से किं तं कालोवरमे, कालोवकमो जहा कालो नालिकाद हिं उनकामिज्जति । भावोवकमो दुविही-पसत्थो अपसत्थो य, अपसत्यं मरुइणिगणियाअमच्चदिवतहि, एगा मरुइणी, सा चिंतेति-किह धूतातो | सुहिगाओ होज्जत्तिा, ताए जेहिता धृता सिक्खाविता, जहा चडंतिया मत्थए पण्हीए आहणेज्जासि, ताए आहतो भचा, सो तुट्ठो | पाया महिउमारद्धो, ण हु दुक्खावियत्ति, ताए मातुं सिट्ठ, ताए भणित-जं करेहि तं करेहि, ण एस सकति तुज्य किंचिवि कातं. | बितिया सिक्खाविता, ताएवि आहओ, सो झंक्खित्ता उवसंतो, सा भणति-तुमंपि बीसत्था विहराहि, ततिओ रुट्ठो धेनुं पिट्टिता धाडिता य, तं अकुलपुत्तिया जा एवं तुमं करेसि, पच्छा किहवि गमितो, एस अम्ह कुलधम्मो, सा भणिता-जहा देवयस्स तहा बडेज्जासि, मा छड्डितिया बहुं कालं अच्छिहिसिति ।। गणिकाबि चित्तसभाए भावं परिक्खित्ता तहा उपचरति ।। अमच्चे आसमुत्तणं 15॥८॥ | तलागआरामकरणं च, एस अपसत्थो भावोवक्कमो । [93] Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक' नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: प्रत सत्राक पसत्थो आयरियस्स भावो उबकमेयलो, जे चितइ त उवणेतव्वं पढमालिकादि णिरिक्खितेणं, खेलमल्लाइ वा ज भणति उपक्रमा वहा गेण्डियन्वं, श्वेतः काकः ?, आमं श्वेतः, पीतो वा ?, आमं पीतः, एवं वायाए, काएण-मिण गोणसंगुलीए., मणेण सहमाणो वतारः चूर्णी एवं सर्वार्थेषु । तत्र राजदिद्रुतो-अमयकोसे राया भणति-कतमो विणतो बलिओ, आयरिया भणति-लोगुत्तरिओ, पच्छा परिश्रुतस्कंधक्खितं रण्णा, णदीए बहतीए पेसित अमयकोसो, काइयमत्तओ पच्छम खुदओ ढोएति, तबिमितं पुच्छा, आयरिएणवि कतो मुहा 31 (वहातत्ति, एत्थ परिक्खितो विणतो। अहवा उवकमो छव्यिहो-आणुपुब्बि नाम पमाणे बत्तबया अत्याहिगारो समोतारो, एयाणि सव्वाणि परूवेऊणं इमं सामा-12 इयअज्झयणं उवकमे, आणुपुचिमादीएहिं दारेहिं जत्थ जत्थ समोयरइ तत्थ तत्थ समोतारियव्वं । आणुपुब्बीए उकित्तणाणुपु ए समोतरति, सा य तिविधा-पुब्वाणुपुच्ची पच्छाणुपुची अणाणुपुब्बी, पुब्बाणुपुब्बीए पढम, पच्छाणुपुचीए छह, अणाणुपुवीए एतेसिं चेव एकादियाए एगुत्तरियाए छगच्छगताए सेढीए अनमनब्भासो दुरूवूणो तावतियाओ ताओ अणाणुपुथ्वीओ, करणं अणाणुपुब्बीण-एगो बेहिं गुणिज्जति जाता दोनि, दोभि तिहिं गुणिज्जंति, जाता छ, छ चउहिं गुणिज्जंति, जाता चउबीसं, चउच्चीसा पंचहि गुणिज्जति, जातं सयं वीस, तं छहि गुणेत्ता जावतिओ रासी सो दोहिं ऊणो कीरति, किनिमित, पुब्बाणुपुची य पच्छाSणुपुष्यी य दोषि अवणिज्जति, तो अणाणुपुचीतो होति । णामे छबिहणामे समोतरह, तत्थवि खओवसमिए नाम समोयरति, कम्हा , जम्हा सम्बसुर्य खओवसमियमितिकटु । पमाणं चउचिई-दब खत्त काल भाव०, भावप्पमाणे समोतरति, तं तिबिह- ८२॥ गुणव्णय संख० गुणप्पमाणे समोतरति, गुणप्पमाणं तिविहं गाणप्पमाणे दंसणप्पमाणं चरिचप्पमाण, गाणगुणप्पमाणे समोतरति,णो | RI दीप अनुक्रम [94] Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं -L मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.... श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ॥ ८३ ॥ भाग - 3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [७८-९ भाष्यं [-] मूलं [- / गाथा-1, आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: सेसेहिं णाणगुणष्पमाणं चउब्जिहं, तंजहा-पच्चक्खे अणुमाणे ओवम्मे आगमे, आगमे समोवरराते, आगमे तिविहे, तेजहा अत्तागमे अणंतरागमे परंपरागमे, इमस्स सामाइयज्झरणस्स तिरथगरस्स अत्थस्स अत्तागमे, गणहराणं अत्थस्स अणंतरागमे, सुत्तस्स अत्तागमे, गणहरसीसाणं अत्थस्स परंपरागमे, सुत्तस्स अणंतरागमे, तेण परं अत्थस्सवि सुत्तस्सवि नो अत्तागमे नो अनंतरागमे, परंपरागमे । - से किं तं संप्पमाणे, संखा अडविधा, तत्थ परिमाणसंखाए समोतरति, साप दुबिहा परिमाणसंखा कालिय सुयपरिमाणसंखा य दिडिवायसुयपरिमाणसंखा य, कालियसुयपरिमाणसंखाए समोतरति, पज्जनसंखाए अनंता पज्जवा संखेज्जासंघाया संखेज्जा अक्खरा संखेज्जा पदा गाथा सिलोगा वेढा, अज्झयणसंखाए एवं अज्झयणं, णो उद्देसो संखाए । निक्षेपस्य ओघ आदि त्रि-भेदा: से किं तं वतव्यया, बत्तव्यया तिविहा, संजहा- ससमयवत्तब्वया परसमयवत्तव्यया ससमयपरसमयवत्तव्वया, तत्थ सममयवत्तव्वयाए समोतरति वत्तव्यतत्ति गता । से किं तं अत्थाहिगारो?, सावज्जजोगविरती अत्थाहिगारो, एवं जत्थ जत्थ समोतरति तत्थ तस्थ समोतारेयव्यं । सेतं उबकमेत्ति दारं गतं ॥ से किं तं निक्लेवे, निक्खेवे तिविहे पत्ते, तंजहा ओघनिष्फले नामनिष्फले सुतालावगनिष्फले, ओहनिप्फने अज्झयत्ति वा अज्झीणिचि वा आपत्ति वा ज्झवणेति वा जहा अणुयोगद्दारे णामनिष्फले समोयारियति तं चउन्विहं नामसामाइयं ठव० दव्व० भाव०, नामदुवणाओ गताओ, पचयपोत्थयलिहितं जं वा निष्हगाणं असविग्गाणं एयं दध्वसामाइयं, भावसामाइयं चउव्वहं उचरिं भणिहामि, सुत्तालावगनिष्फल निक्खेवो पत्तलक्खणोऽचि ण णिकखिष्पति, कम्हा ?, लाघवत्थं, जम्दा अस्थि [95] निक्षेपा नुगमो ॥ ८३ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [१/८०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: प्रत HEIGE नियुक्ती श्री_ अतो तइयमणुयोगद्दारं अणुगमोत्ति, तर्हि वा निक्खितं इह निक्खितं, इह वा निक्खि तहिं णिक्खितं भवति, तम्हा तहिं चेव निक्षेपा. आवश्यक निक्खिप्पिहित्ति । नुगमौ चूर्णी या से किं तं अणुगमे?, अणुगमे दुविहे पं०, तंजहा-सुचाणुगमे य णिज्जुत्तिअणुगमे य, सुत्ताणुगमे सुत्तं अणुगंतव्यं, निज्जु-१ तिअणुगमो तिविहो-निक्खेबनिज्जुत्तिअणुगमो उवग्यायनिज्जुत्तिअणुगमे मुत्तफासियनिज्जुत्तिअणुगमे, सामाइयनिक्खेव | निज्जुतिअणुगमे जं एत हेट्ठा बबितं । इयाणि उवुग्घातनिज्जुत्तिअणुगमा, तं उबघायनिज्जुत्तिअणुग बबेतुकामो आयरितो ॥८४॥ महत्था निज्जुत्तित्ति काऊणं मंगलं करेति- उधोग्घातो णाम उद्देसनिग्गमादीणिरूवण, 'मेघच्छन्नो यथा चंद्रो, न राजति नभस्तले । उपोद्घात विना शास्त्र, न तथा भ्राजते विधौ ॥१॥ ते पुण मंगलं चउबिह, चउब्विहपि जहा हेट्टा भावमंगले, इमं ४ गाथामुत्तं तित्थगरे भगवंत अणुत्तरपरकमे अमियनाणी। तिने सुगतिगतिगते सिद्धपहपदेसए वंदे ॥२॥१॥ 'तृ प्लवनतरणयोः' अयं तृधातुः प्लवने तरणे च, तं च तरणं चउद्धा- णामादि, णामट्ठवणाओ गताओ, दब्बतरणे तिमि सूइज्जति, तक- दव्वतरओ दवतरणं दच्चतरियव्ययं, तत्थ दवतरओ पुरिसादी, दव्वतरणं उपादी, दब्बतरियन्वं णदिसमुद्दसगदि, एवं भावतरणेऽवि, णवरं भावतरओ जीवो भावतरणं णाणादि भावतरियव्ययं संसारो चउव्यिहो, एवं प्लवनमापि । तरंति | ||८४॥ अनेनेति तीर्थ, एवं ताव तित्थं निष्फलं, तं दुबिह- दव्यतित्थं भावतित्थं च, दव्यतित्थं मागहमादि, भावातित्थं जिणवयण, । अहया दव्यतित्थं ४-सोवारं सुउत्तार १ सोतारं दुरुत्तारं २ दुरोतारं मुउत्तार ३ दुरातारं दुरुत्तारं ४, एवं भावीतत्थंपि मुओता **KAASAEXTR दीप अनुक्रम *** ...अनुगमस्य द्वि-भेदा: -सूत्र एवं नियुक्ति-अनुगम, ...अत्र नियुक्ति-मङ्गलं वर्तते • यहां से नियुक्ति-क्रममें '[१/८०', '[२/८१] ऐसे आगे सभी नियुक्तिमें जो लिखा है, उस का रहस्य ये है कि जो अंक (1) ओब्लिक के पहेले लिखा है, वो इस चूर्णिमें लिखा हुआ क्रम है और 10 ओब्लिक के बादमे जो क्रम है वो वृत्ति के संपादनमे लिखा हआ क्रम है। चूर्णिमे छपे अंकोमें बहोत संदिग्ध पद्धत्ति है, इसिलिए हमने वृत्तिमे संपादित नियुक्ति-क्रम दे कर सरल बनाने का प्रयास किया है। [96] Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [१/८०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत A5%8DC ॥८५| रादि ४, सरक्खमइयाणं सुप्रीपार सूचार, तच्चनियाणं मुओतारं दुरुत्तार, बोडियाणं दुओतारं सुओतारं, दुऔतारं दुरुत्तारं इणमेवटी निक्षेपाआवश्यक निग्गंथं पावयण, अहषा 'दाहोवसमतबहाऍ छेवणं मलपवाहणं येव । तिहिं अत्यहिं निउत्तं तम्हातं भावओतित्थं ॥१॥ चूर्णी नुगमो एवं भावतित्थेवि समोवारिज्जति । जेहिं एवं दसणणाणादिसंजुत्तं तित्वं कयं ते तित्थकरा भवंति, अहवा तिथं गणहरा, तं जेहिं । उपोद्घातकर्य तित्थकरा, अहवा तित्थं चाउब्वन्नो संघो, तं जेहिं कयं ते तित्थकरा, भगो जेसि . अत्थि ते भगवंतो,-माहात्म्यस्य नियुक्ताठा समग्रस्थ, रूपस्य यशसः श्रियः। धर्मस्याच प्रयत्नस्य, षण्णां भग इसींगना ॥ १॥ अणुत्तरो परक्कमो जेसि ते अणुत्तरपर नाकमा, न अन्धेसि उत्तरतरो परक्कमो अस्थि सब्वसत्ताणमपि, अमितणाणी--अर्णतणाणी, तिया पाउरंतसंसारकंतार, तरिऊण सुगति गतिगता, सुमती सिद्धा तेसि गती सुगतिगती तं गता२, सिद्धिए पहो २, पहो दुविहा- दच्चपहो पगरादीण भावप्पहोणाणदसण४ चरित्ताई, तेहिं सिद्धी गम्मइत्ति, पगरिसेण देसमा पदेसगा, ते बंदे, बदि अभिवादणथुइसु. कायेणाभिवादयामि वाचा प्रस्तौमि, तित्थगरविसेसणत्थं भगवद्वचनं, दव्यअनवादितित्थगरणिसेहणत्थं, एतेऽधि कहिंचि भगवंतो व्याख्यायते, अणुवरपरक्कमवयण, जतो ण तेसि एवं रागादिमहामनुअक्कमण, तहा अमितणाणी न ते णाणरहिता परिमितणाणी वा, किंतु अमियस्स-अपरिसेसस्स यस्स गाणीति, विनय ण पूर्ण संसारकतारस्था, तरिऊण ण पुणो तरिस्संति या इति, तरिऊणं च सिद्धगति-उलोग तं गता, Rष पूण अणिमादिअट्टविहमिस्सरियं पाविऊण कतिणो, सय्वभावन्न परमदुत्तरं तिबा, इहेब सनदा मोदन्ते इति, सिद्धपहपदेसए' माइति अणेण लोश्यतित्थगरासाहारणं परमोचमारित्तं दरिसेति, तत्किमुक्तं ?, जम्हा एतबिसेसणविसिट्ठसरूवा परमोवगारी य तम्हा बंदणारिहा, अतो तान् वंदे इति । एवं च लोइततित्थगराणं बंदणववच्छेदो कतो, तेसि च भगवंताणं अतिसयसरूवाहण-14 दीप अनुक्रम ॐ HEAR ८५ [97] Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [२१८१], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक नियुक्ती श्री पुच्वं बंदणं कयं भवतीति । अहवा तित्थगरवयणं प्रणयनादिप्रदर्शनार्थ, भगवद्वचनं इस्सरियादिसदसणथं, अणुत्तरपरक्कमवयणं मंगलं दशक्तिपदरिसणत्थं, अमियणाणिवयणं णाणिड्विथावणत्थं, तीण्णवचनं दुक्खच्छेदपरिसणत्थं, सुगतिगतिवयणं अवत्यापदरिसणत्यंत सिद्धिपथादिवयणं सव्वहितोपदेसोवगारथामिति ॥ एवं ओहेण ताच णमोक्कारो कतो, इयाणि जेणेदं तित्थमुपदिट्ठ तस्स उपायावर णमोकारो कीरति-'वंदामि' गाहा ।।२।२॥ महत्तं पाहले बहुते य, पाहो मोक्यो पहाणो, महंतं भजतीति महाभागो, बहुत्वे तत्रैव सुखमतुलं, महायशः, अविसेसितो यशो विससिता किती, विदितं मुणितमेकोऽर्थः, महंत जेण मुणितं स भवति महामुणी, किं ॥८६॥ तन्महंत:- णव पयत्था, महावीरो नाम गुणनिष्फत्र, महन्तं पारियं यस्य स भवति महापीरो, सध्यदेवावि अंगुट्ठएणं पंडुकंबलसि | लाए अवहितं तित्थगरं उप्पोलज्जा, ण सकेति उप्पेलेर्ड, एवं सकला रयणप्पमा सा पुढवी मेरंमि घेत्तूण सत्तवि पुढवीओ साहणित्ता अलोए खिविज्जा, एरिसं वीरियं, सा य अतीव लण्हा उच्चा य, ततो महाबीरियजुत्तो इति महावीरो णाम, अमराण णराण व रायाणो अमरणररायाणो तेहि महितो, ससेहि कि अमहितो', उच्यते, सेसेसु कामं ता, मह पूजायां, महितो पूजितो, पूजितो नमंसितो एगट्ठा । इमस्स तित्थरस कत्ता, इदं च पच्चक्खीभावे, अहया चरगादीण पडिसेहो । एवं सामिस्स अर्थवक्तुः मंगलत्थं बंदणमभिहित, इयाणि मुत्तकप्रभृतीनामपि पूज्यत्वाईदर्ण कीरति. एकारसवि० ॥२३॥ एकारस इति संखा, तित्थगरेहिं सपमणुनातं गणं धारतित्ति गणहरा, आसिद्दो समुच्चये, पगरिसेण आदीए वा वायगा पवायगा, पवयणस्स दुवालसंगस्स । एतेण तेसिपि भगवंताणं परमोरगारिच दंसेति । अतो तेऽवि वंदामिति । ॥८६॥ 'सब्वं गणहरवंसं' अज्जसुहम्मे थेरावलिया, जाव जेहिं अम्ह सामाइसमादयिं वादिते, पारगवंसो गाम जेहिं परंपरएणं दीप अनुक्रम [98] Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४/८३-८७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सुत्रांक सामाइयादि अस्थो गंथो म वादितो, अभो गणहरवंसो अन्नो य वायगवंसो, तेण पत्तेयं क्रियते, पययर्ण चाउम्बनी समणसंघो &ा " गणधरआवश्यक |दुवालसंग वा गणिपिडगं तं च बंदामिति । नमस्कारः चूर्णी 5 ते वंदिऊण ॥४॥ ते तित्थगरादयो पचयण च सिरसा-परमायरेण बंदिऊण अस्थाणं पुत् बाहुलं जस्स तस्स तेहिं नियुक्तिनियुक्ती तित्थगरादीहि कहियस्स, कस्स ?-सुपणाणस्स भगवतो, किं-निज्जुति कित्सयिस्सामि-परूवेस्सामि पनवेस्सामि एगट्ठा । कतमस्स है। 51 सुयणाणस्स ?-आवस्सगस्स दसकालियस्स तह उत्तरमायारे सुयगड दसाणं कप्पस्स ववहारस्स परमणिउणस्स मरियपनचीए प्रतिज्ञा च ।।८॥ इसिभासियाण, चसदेण चूलाण प पेढीण य जाणि य भाणिताणि, एवं कालियसुयस्स, दिडिवायस्स अनेण पगारेण भणिहिति । | तत्थ अवसेसाणि ताप अच्छंतु, आवस्सगस्स ताव भणामि, तं आवस्सगं छबिह-सामायिकादि, तत्थ पढम सामाइयस्स, एतेणाभि18| संबंधेण सामाइयणिजुत्ती, तत्थ परंपरओ दुषिहो, तंजहा-दव्यपरंपरओ भावपरंपरओ य, दयपरंपरए इमं उदाहरण-तेणं कालेण|४| तेणं समतेणं साकेयं णगर, तत्थ पहिता उत्तरपुरधिमे दिसीमागे सुरप्पिए णाम जफ्खाययणे होत्था, वनओ, संनिहितपाडिहरो,। सो य वरिसे २ चित्तिज्जति, महो य से कीरति, सो य चितितो समाणो ते चेव चित्तगरं मारेति, तेण भएण चित्तकरका सब्वे पलाइतुमारदा, पच्छा रना नायं-जदि एते सब्बे पलायंति पच्छा एसो जक्खो अचित्तिज्जतो अमं वधाय भविस्सति, तेणं भएण चित्तकरका रना संकलिता बद्धा, पाहुएऽहिकता, तसि सव्वेसि नामाई पत्तएहि लिहिऊणं कुडे छुढाई, ततो वरिसे वरिस जस्स* जाणाम उद्वेति तेण चित्तेयच्यो । एवं च कालो बच्चति । अनया कयाइ एगो चित्तकर वेडी सी भमतो सायं गता, तत्थगस्सा | चित्तकारस्स घरं अल्लीणो, तत्थ एगपुत्तिया थेरी, सोवि से चेप्टो मित्तं जातो, एवं तस्स तत्थ अच्छंतस्स अह तमि वरिसे तस्स ************* दीप अनुक्रम ******* ...अथ सामायिक-नियुक्ति: आरभ्यते [99] Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 भाष्य [-] अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [४/८३-८७], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥ ८८ ॥ *%%% थेरिसुयस्स बारओ जाओ, पच्छा सा थेरी बहुप्पगारं रोयति तं रूपमाणि थेरिं दद्दूगं भणति- किं आइए ! परूयसि एवं १, ताए सिहं, सो भणति थेरिकाभतेणं, मा तुम्मे रुयह, अहं तं जक्तं चिचहस्सामि, ताहे सा भगति तुमं किं मे पुतो न भवसि तोऽवि अहं चित्तेमि, अच्छह निरदनाओ, एवं तेण छट्टभतं काऊणं अहतवत्थजुगलपरिहितेणं चोक्खेण पयतेण सुतिभूतेणं णवएहिं कलसेहिं ण्हाणित्ता णवएहिं कुच्चएहिं नवएहिं मल्लयसंपुडेहिं असिलसेहिं बनएहिं एवं तेण सो चित्तितो, चित्तेऊणं पादपडितो भणति जं च मए एत्थ किंचि अवकतं तं खमह, तत्थ सो तुडो संनिहितपाडिहेरो भणति वरे वरं पुत्ता, सो भणति एस चैव मम वरोमा लोग मारेहि, तं भणति एवं तावट्टितमेव, जं तुहं ण मारितो एवं अपि ण मारेमि, अन्न भण, सो भणति जस्स णंदुपयस्स वा चउप्पयस्स वा अपयस्स वा एगमवि देस पासामि तस्स तदाणुरूवं रूवं निव्वत्तेमि, एवं होतुति तेण दिनो, एवं सो वरे लद्धे गओ कोसंविं णगरिं । तत्थ यस्याणिओ नाम राया, सो अन्नया कमाइ सुहासणवरगतो दूतं पुच्छति किं मम देवाणुप्पिया । णत्थि जं अन्नराई अस्थि, तेण भणितं चित्तसहा पत्थि, मणसा देवाणं वचसा पत्थिवाणं, दक्खणमेव आणत्ता चित्तगरगा, तेहि सभाओंगासा विभत्ता, तत्थ तस्स वरदिनस्स जो रम्रो अन्तेपुर किडपदेसो सो लद्धो, एवं तेण तत्थ णिम्मितेसु तदाणुरूवैसु रूवेसु अन्नया कदाति मिगावतीए जालंतरेण अंगुली दिट्ठा, रोणं अंगुलिसरिक्खेण देवी सब्वा तदाऽणुरूवा णिम्मविता, तीसे पुण चक्खुमि उम्मिलिज्जतमि एगो मसिबिंदुओ उरूमन्तरे पडितो, सेवा पुडो, पुगोऽवि जातो, एवं तिन्नि वारे, पच्छा तेण णार्य एवं एतेण होयव्यमेव, एवं चित्तसभा निम्माता। अमदा कयाति राया चिचसमं पुलाएंतो तं देसं पत्तो जत्य सा देवी, तं विण सो विदुको दिट्ठो, तं ददणं आसुरतो, •••मृगावति कथा [100] ९ द्रव्यपरंपर के इष्टकपरंपरकः 11 66 11 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४/८३-८७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णी सत्राक है। एतेण ममं पत्ती धरिसितत्ति वझा आणचो, सेणी उबविता भणति- सामी ! एस वरलद्धऑत्ति, राया भणति- जदि एवं तो दिव्यपरंपरआवश्यक 17 खुज्जाए से मुहं दाइज्जतु, तेण तदाणुरूवं णिवत्तिय, तहावि तेण संडासा छिदाविओ चेव, निविसतो य आणचो । सो पुणो जक्खस्स उववासेण ठितो, जक्खेण भणिो- 'बामेण चित्तहिसित्ति, सो तस्स रबी पोस गतो, तेण चिंतितं-पज्जोतो एयस्स कपरंपरक: पीति पाएज्जात चिंतिऊण मिगावतीए चित्तफलए रूबं काऊणं जहा मल्ली तहा पज्जोतस्स उवट्ठवितं, पज्जोतेण दतो पयहिओ, INT तेण निमणेण णिच्छढो, तेण सिट्ठ, इमो दूतक्यणेण रहो सबबलेण कोसंधि एति, तं आगच्छतं सोऊण इमो अप्पत्रलो अति॥८॥ सारेण मतो, ताहे ताए चिंतितं- मा इमो बालो मम पुत्तो विणस्सिहिति, ताहे पज्जोओ आणत्तो-एस कुमारो अपडुप्पनो मा अनेण सामंतराइणा पेल्लिज्जिहिति, सहा णगरी उज्जेणियाए इट्टयाए दद कीरउ, एवं ते चोदस रायाणो सबला, परंपरएण तेहिं| सा आणिता इङगा, णिम्माता णगरी जाहे ताहे ताए भवति- इयाणि भरेहि णगरं धनस्स, जाहे णगरी रोहगसज्जा जाता ताहे सा पुणो विसंवतिता, एवं अभिरुद्भाए ताए चिंतितं-धाण ते गामागरणगरखेडकबटा जाव संनिवेसा जत्थ गं समणे भगवा महावीरे विहरति, पव्यएज्जामि जदि सामी एज्ज, समोसरगं, तत्थ सवाणि चेराणि पसमंति । मिगावती पनिग्गया, धर्म | कहिज्जमाणे एगे पुरिसे धम्माणुरागरने इमे सव्वण्णू ण किंचि से अविदितं तम्हा इह पुच्छामि इमं पच्छन्नपुच्छ, मणमा पुच्छति ताहे सामिणा सो भन्नति-बायाए पुच्छ देवाणं पिया, यहवे सत्ता संयुज्झिस्संति, एवमावि भणिते तेण भवति ॥८९ ॥ ____ 'भगवं! जा सा सा सा', तत्थ गोयममामिणा भणितं- किं भणितं एतेणं जा सा सा सा, एत्थ तीसे उड्डाणपारिया|णितं सर्व सामी परिकहति तेण कालेणं २ चपा णगरी, तत्थ सुवण्णकारो एगो, सो पंच पंच मुवनसयाणि दाऊणं जहापहाणा | दीप अनुक्रम Sexc [101] Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४/८३-८७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दारिया त गण्डति, एवं तेण पंच सया पिंडिता, एगेगाए तिलगचोदसं भंडालंकारं देति, जदिवसं भोगे झुंजइ तदिवस देइ, तीसे 31 | परंपरकेआवश्यक अवसेस काल न देइ, सो इस्सालुओ तं घरं ण कयाति मुपति, ण वा अन्नस्समल्लिउं देति, सो अभया कदाति मिनेणं पगते यासासाचूर्णी वाहितो जेमतुं, सो तहिं गतोत्ति पाऊण ताहि णात-कि अम्ह एतेण सुवमएणंति !, अज्ज णे पतिरिक्त माणेमोत्ति पहातातो सामृगावसवातपतिरिकं मज्जियच्वयविधिए तिलकचाइसेणं अलंकारेणं अप्पाणं अलंकिऊणं अहायं गहाय अप्पाणं देहमाणीओ चिट्ठति, सोया त्याश्चोदाII ततो आगतो, तं दणं आसुरतो, तेण एगा गहाय ताव पिट्टिता जाब मयत्ति, ततो णं अन्नातो भणति-एवं अम्हए एक्केका हरणं ॥९ ॥ एतेण हतब्यचि, तम्हा एतं एत्य व अदागपुंजे करेमो, तत्थ एगणेहिं पंचहि महिलासएहि पंचएगूणाई अदागसताई जमगसमग मेव पक्खित्ताई, तत्य सो अहागपुंजो कतो, पच्छा पुणो तासिं पच्छाताबो जातो, का गती अम्हं पतिमारियाणं ?, लोए य उद्धसणाओ सहियच्चाओ, तह व ताहिं तं परं घणकवाडणिरंतरणिच्छिद्दाणि दाराणि काऊण अग्गी दिनो सब्बतो समंता, अन्ने भणतिओल्लंबिउं मयाओचि, तेण पच्छाणुतावेण साणुकोसयाए य ताए य अकामणिज्जराए मणुस्सेमु आउगं निबद्धं । सोऽवि कालगतो तिरिक्खेसु उपवनो, तत्थ जा सा पढमं मारिता साबि एनं भवं तिरिएसु, पच्छा एगमि बंभणघरे चेडो आयातो, सो य पंचवरिसो, सो य सुवनकारी तिरिक्खेसु उव्वट्टिऊणं तंमि चेच कुले दारिका जाया, सो चेडो तीसे बालग्गाहो. सा य निचमेव रुयति, तेणोदरपोप्पणं करतेणं कहवि सा जोणिद्वारे हत्थेण तालिया, तहेब सा ठिता, तेण णात लद्धो मए उबा-13 ओचि, एवं सो नियमेव तालेतो मातापिताहि जातो, ताहे हंतूण विसज्जितो, सावि अपडुप्पा चेव विद्दाता, सो चेडो पलाय-&ा।९।। मानो चिरणगरविणडसीलाचारचारित्तो जाओ, गतो एग चोरपछि जस्थ ताणि पंच एगूणाई चोरसयाई परिवसंति, सावि SEARESTERESERIES दीप अनुक्रम [102] Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४/८३-८७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री प्रत HEIG हरणं दीप अनुक्रम परिक हिडंती एग गाम गता, सो गामा तेहिं पेल्लितो, सा य हिं गहिता, सा तत्थ पंच चोरसरहिं परिभुत्ता, तेसिं चिंता परंपरकेआवश्यक समुप्पना-अहो इमा बराकी एत्तियाणं सहति, जाद अण्णावि वितिज्जिया लभेज्जा तो से विस्सामो भवेज्जा, एवं तेहिंग | यासासा चूणों अभया कयाति तीसे चितिज्जिया आणीता, जे चेव सा आणीया तद्दिवर्स आरद्धा सा तीसे आयं च उवायं च, केण उवाएण सामगावउपोद्घात एतं मारेज्जा?, तत्थ अनया कयाति च्छिन्नकडयं गिरिं गता, तत्थ ताए भमति-पेच्छ इमं महादुर्म कुसुमितं, ताए दिडं, ताए। त्याशोदानियुक्ताणोल्लिया पडिता, ताहे पुच्छति, ताए मन्नति-अप्पणो माहिलं कीस ण सारवेह ?, तेहि णायजहा एताए मारिता, तत्थ तस्स बंभ॥ णचेडस्स हियए ठितं, जहा एसा सा पावा, सुव्वति य भगवं, ताहे समोसरणे पुच्छति, ताहे सामी भणति-सञ्चेव सा तब भगिणी, एत्थ संवेगमावनो सो पब्बइतो। एवं सोऊण सब्बा सा परिसा पतणुरागसंजुत्ता जाता, तत्थ सा मिगाबई देवी जेणेव समणे भगवं महावीरे० पंदित्ता नम० णवरिं पज्जातं आपुच्छामि, अहामुखं, सा मिगावती देवी जेणेव पज्जोते राया तेणेव उवागच्छति, पज्जोतं करतलपरिग्गहितं एवं वइच्छामि णं देवाणपिया तुम्भेहिं अन्भणुण्णाया समणस्स भगवतो महावीरस्स०, तएणं से पज्जोते राया तीसे महती महालियाए सदेवमणुयासुराए परिसाए लज्जाए ण तरति जहा मा पव्वयाहित्सि एयमई अणुजाणति । उदयणं च से कुमार निस्खेवयनिक्खिनं करेति एवं संवलिहि, एवं पचइता मिगावती, पज्जोयस्स य अट्ट अंगारवतिसिवष्पमुद्दाओ पव्वहै इयाओ देवीओ, ताणिवि पंचचोरसयाणि तेणाणितु संबोहिताई पन्चइताणि । एतं पसंगेण वनित । एत्थ इगपरंपरएण से अधिकारो । एस दव्यपरंपरओ, एएणं भावपरंपरए साहिज्जति, जहा बद्धमाणसामिणा सुहम्मस्स जवूनामस्स जाव अम्ह वाय-11"॥ दाणारिया, आणुपुवीय कमपरिवाडीय आगतं सुत्तओ अस्थओ, करणतो य ॥ निज्जुचीए निरुच भन्नति [103] Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [४/८८-८९], भाष्य [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥ ९२ ॥ निज्जुत्ता जे० ॥ २४ ॥ साधु अच्चत्थं वा जुत्ता निज्जुत्ता जे अस्था सुत्ने ते अत्था जम्हा बद्धा तेण निज्जुती भवति, यदुक्तं 'सुनिज्जुत्तअत्थनिज्जूहणं निज्कुती, आह-जदि सुत्ते निज्जुचा अत्था तो किं पुणो एत्थ तेसि योजनं १, भन्नति तचि य इच्छावती विभासितुं सुत्तपरिवाडी, जदिवि सुत्ते निज्जुत्ता अत्था तहावि ते जाव ण विभासिता ताव ण णज्जंति, अतो सुतपरिवाडी-सुत्तपद्धती विविहं भासितुं इच्छावेतित्ति । एत्थ दितो मंखो, तत्थ सम्बं मंखफलए लिहितं तहवि सो तेण दंडएण दाएति पढति विभासेति य एवेत्यवि, सीसो आह-किमिदं सुतं जस्स पद्धती विभासितुमिच्छावेति?, कुतो किमिति कहं वा पबिती एयस्स इति १, उच्यते सुतं नाम सुचंति वा पवयति वा एगड्डा तं पुण तित्थगरभासियाई गणहरगहिताई सामाइयादि अणुकमेण ववत्थावियाई, एयस्स पुण तित्थगरगणहरेहिंतो सासणहियड्डा जीयमिति काउं एवं पवित्त इति, मन्नत तयनियम० ॥ रूपकमिदं, इत्थ तुंगं विउलसंधं । जहा कोती कप्परुक्खमारुडो सपरकमो भरेज्जा पुबि सुरभीण कुसुमाणं, तत्थ य हेड्डा पुरिसा बहवे उर्द्धमुहा पलोपंति, घेत्तण ततो कुसुमे मुयती अणुकंपणट्टाए । जहा कोती वणसंडो घणकडच्छाओ तस्स बहुमज्झे महतिमहालयो महादुमो, तत्थ अतीव गधवन्नादिगुणसंपला कुसुमा, तत्थ पुण दुक्खं विलग्गिज्जति, एगो य महापयत्तो सो तत्थ विलग्गो तेसिं पेच्छंताणं, तत्थ मालेति, ते तं जायंति, अम्हवि देह, तेसिं सां अणुकंपट्टयाए भणति पडिच्छह पडेसु, तओ मुयह तं कुसुमबुद्धिं तं पढिच्छणसत्चित्तापयत्तेण पडिच्छति तदट्ठी सुंदरेहिं पडेहिं, अप्पणो य मालेति, अन्नेसिं च देति तहाविहाणं, एस दितो । एवं तव नियमनागरुक्खं, तयो बारसविहो, नियमो दुविहो-इंदियनियमो नोइंद्रियनियमो य नाणं पुब्बभणियं एयाणि चैव रुक्खो तं तवनियमनाणरुक्खं आरुढो आश्रितः, को सो ?- केवली, छउमत्थव्यवच्छेदत्थमेयं, [104] निर्युक्तेर्निरुक्तिः ॥ ९२ ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४/८८-८९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणों AAS ॥१३॥ है। अमियनाणित्ति अपरिसेसनाणी. सरूवक्खावणमिदं, तो कि? तो मुयइ नाणवुट्टि, एत्थ महत्थवयणयुट्ठी चव विनाणकारणत्ता आवश्यक | नाणबुट्ठी भण्णइ, तं किमत्थं मुबइ ?, भवियजणा जे विवोहणजुग्गा तेसिं विबोहणत्थंउपोद्घात तं बुद्धिमएण पडेण०॥ २५॥ तं नाणवुद्धि बुद्धिमएण पडेण गेहिउं गणहरा निरवसेस, अवि तेसि पुप्फाई पडेज्ज तेसु नियुक्तोद पडेसु, ण पुण गणहरयुद्धिमयपडिग्गहिताणि भगवतो महत्थवयणाणि अणवधारियाणि य वडतित्ति, अतो गिहितु निरवसेसं भन्नति, जहा ते गंथेति पच्छा मालेति अनसि वा देंति, एवं इमेवि गणहरा तित्थकरभामिताई गहेउं परिभाविऊण तहाविहाण सिस्साण | अशुप्पदेहिंति तेण गथंति । तत्तो पवयणट्ठत्ति भन्नति, पवयणं संघो । को गुणो पवयणस्स गथितहि , भन्नति-- घेतूण मुहं०॥ २-६ ॥ जहा ताणि कुसुमाणि अगहियाणि ण सका घेत्त, गहिताणिवि पडति, एवं इमाणिवि भासिताणि | अग्गहिताणि दुगेज्झाणि पवडंति य, गहिताणि पुण सुहं घेप्पंति, तरतमजोगेण सुहं च परिवाडीए गुणिज्जंति, सुहं पदविनासेणं धारिज्जति, अमुगत्थ वीसरितति सारिजंति य, पोययब्ब तं गेहंति, तस्स तारिसओ आलावओ दिज्जति । अहबा पुच्छति-18 & किमस्स सारो, सुत्नं अत्थो दोनिवि सुहं दिज्जति पदविनासेण, पुच्छाएवि ण जाणति, किं गतं हेड्डा उवरित्ति, आदीए मजो अवसाणेति सुह पुच्छइति । एवमादीहि कारणेहिं जीतं सुत्तं तं कयं गणहरेहि, अहवा एतेहिं कारणेहिं पुखमणितेहिं गंथणं कर्य |गणहरेहिं । अविय-जीयमेयं पुन्वाइअमेयं इतिच गंथणं कयं गणहरेहिं ।। किह पुण एवं पुज्वाइनी, भवति अत्यं॥२-७ ।। अत्थं भासति-पगासेति अरहा, सुत्तं गंथति-अज्झयणउद्देसगादिअणुक्कमेण रचयंति गणहरा, जतो निपुणा दीप अनुक्रम [105] Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग - 3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] भाष्यं [-] मूलं - गाथा-1 निर्मुक्ति: [ ७/१२) पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्ती 1198 11 - 196356. निपुर्ण वा सूक्ष्मं बचीसदोसपरिसुद्धं एवमादि, सासणस्स संघस्स हिमट्ठाए ततो सुतं पवसतीति । सीसो आह-तं पुण सुतं किमादि : किंपज्जवसाणं ? किं परिमाणं १ को वा एयस्स सारो ? इति भन्नति - सामाइयमादीयं ० ॥ २-८ ।। सामाइयं आदीए, बिंदुसारं पज्जेते, परिमाणं पुण सामादियादि जाव बिंदुसारं एवतियं, को एयस्स सारो 3, एत्थ कस्सति बुद्धी भवेज्जा- एतं चैव सामादियमादयं बिंदुसारपज्जैतं सुयणाणं सारं, को एयस्स अनो सारो मग्गिज्जतित्ति?, जतो अरहंतेहिं भगवंतेहिं तिलोगसार निहाणभूतेहिं भासितं गणहरेहिं सुवणिपुणेहिं परमकल्लाणालएहिं सुतीक महत्थं परमसंवेगजणयं जीवादिपदत्यविभासगं सव्वकिरियाकलापयत्तोवदेसगमिति परमं मोक्खकारणंति अतो एवं चैव सारो, अतो भन्नति तस्सवि सारो चरणं, तस्सवि एवंगुणस्सवि सुयणाणस्स सारो- सच्चस्स चरणं चारितं, चरणस्स पुण सारो निव्वाणं || किह पुण तस्सवि सारो चरणं भन्नति, न पुण तदेव ? मन्नति सुयणाणं० ।। २-९ ॥ जेण सुयणानंमि वट्टमाणो जीवो मोक्खं ण पाउणति । जो तवमतिए संजममइए व जोए ण चह बोढुं जो, को दृष्टांतः १ जह छेद० ॥२-१० ॥ तह णाणलढ०॥२-११॥ पाढसमा तम्हा एतं णाऊण संसारसागराओ० || २- १२ || गाहद्धं दसहिं दिट्ठतेहि दुलई माणुसतं लहिऊण, एवं खत्तजातिमादीणिवि, संसारसागरे बुड्डो संतो कहमवि उब्बुह चरणजलोवरितलवर्त्तित्वेन मा पुणो निम्बुडिज्जा, जं किंचिदालवणमासादेऊण, एतंमि अणादरेण, एत्थ दिहंतो, जहा नाम कोयि कच्छवी परतणपत्तसेबालात्मकनिच्छिद्दपडलाच्छादितोदगंधयारमहाहस्य अंतग्गतो तदतग्गताणेगजलचरक्खो भादिवसणव्यथितमाणसो परिब्भमंतो अत्र ज्ञान चरण-सिद्धिः दर्शयते [106] श्रुतस्यादिपयवसनसाराः ॥ ९४ ॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 निर्युक्ति: [११/९६]. भाष्यं [-] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णौ उपोद्घात नियुक्ती ।। ९५ ।। कहमवि पडलरंघमासादिऊण विणिगाच्छिऊण तवो सारदससहर फरिससुहमणुभविय पुणाऽवि सर्वधुणेहादिसमागिढचित्तो सिमप वरायाणमदिट्ठकलाणाणम हमिदमचम्यं किंपि संपादयामीति संपहारेऊण तत्थेव निब्बुड्डो, अह समासादितासमासादितबंधुवग्गो वा तस्स रंधस्सोपर्लभनिमित्तं इतो ततो परिब्भमतो ओहयमणसंकप्पो कट्टुतरं वसणमणुभवति । एवं संसारसागराओ अणादिकम्मसंताण पडलसमच्छादिताओ विविहसारीरमाणसाच्छिवेदणजरजुद्धेवियोगाणि संपयोगादिदुक्खजलचरसंखो भादिवसणबहुलाओ कमवि कम्मक्खतोबसमादिरंघमासादेऊण भणियणाएण चरणपडिवत्तीए उब्बुड्डो अप्पवेरो अप्पांसो एवमादिगुणजुतो जातो, तो मा पुणो निब्युड्डेज्ज भणितणाएणेव । स्याद् बुद्धि:- जो अप्पविश्राणो सो णित्रुहति, जो पुण बहुंपि जाणति सो तप्पभावादेव नो निबुद्धिहिति इति भन्नति चरणगुणविप्पहीणो०॥२-१२॥ चरणमणाढायमाणो निडुङ्गति सुबहुपि जाणतो ॥ किमिति-सुबहुपि ॥२-१३॥ चरणगुणविहणिस्स सुबहुपि सुयमहीतं किं काहिति जतो ण तस्स तारिसं सामत्थमत्थि जेण धारेहिति, जहा अधस्स समीवे दीवसयसहस्सकोडीवि पलीविता असमत्था तस्सऽवपातादिपवडणं धारेतुन्ति । आह-जेण पुण थोवमहीयं किं तु चरणजुत्तो तस्स किं भवति अप्पंपि० । २-१४ ॥ कंठा, किं तु पगासगं कज्जसाहगं । पुणो आह-तो जे हमे बहुस्सुया एते नाम निरत्थयं ?, एत्थ आयरितो भणति जहा खरो०२-१५॥ वृत्तं, कंठं ॥ एवं चरणे ख्यापिते मा भृच्छिष्यस्य एगतेणेव गाणंमि, अणायरो भवस्वति ।। अतस्तनिरासार्थमिदं सूत्रं पठन्त्याचार्याः- [107] निडनवारणोपदेशः ॥ ९५ ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१५/१०१], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्राक नियुक्ती दीप अनुक्रम हतं णाणं ॥२-१५।। जहा कियाहीणं णाण हत एवं हया अनाणयो किया । एत्थ दिट्टतो-एगमि महाणगरदाहे अंधलग- 1बान क्रिया आवश्यक पंगुलगा दो अणाहा, णगरजणे जलणसममुग्मंतलोयणे पलायमाणे पंगुलओ गमणकिरियाऽभावातो जाणतोऽवि पलायणमग्गं कमागतेण चूणों I *अग्गिणा दड्डो, अंघोवि गमणकिरियाजुत्तो पलायणमग्गमजाणतो तुरितं जलणतेण गंतु अगणिमरियाए खाणीए पडिऊण दडो । प्पूण एवं गाणी किरियारहितो ण कम्मग्गिणो पलाइतुं समत्थो, इतरोऽपि णाणरहियत्तणओत्ति, तो खाई कहं फलसिद्धी', भन्नति संजोगसिद्धीए० ॥२-१६।। वृत्त, कंठं । णवरं दिढुंतो-एगंमि रने रायभएण णगराओ उज्वसिय लोगो ठितो, पुणोचि | ॥९६॥ धाडिभएण पवहणाणि उज्झिय पलाओ, तत्थ दुवे अणाहप्पाया अंधो पंगू य उज्झिता, लोगग्गिणा य वणवो लग्गो, ते य भीता, ४ा अंधो छुट्टकच्छो अग्गितेण पलायति, पंगुणा भणित-अंधा! मा इतो नास, गणु इतोप्येव अग्गी, सो आह-कतो पुण गच्छामि:, पंगू भणति-अहं मग्गदेसणासमत्थो पंगू, ता में खंधे करेहि जेण अहिकंटकजलणादिअवाए परिहरावेतो सुहं णगरं पावेमि, तेण तहत्ति | पडिबज्जितं, अणुद्वितं पंगुवयणं, गता य खेमेण दोवि णगरंति, एवं णाणकिरियाहिं सिद्धिपुरं पाविज्जतित्ति । एत्थ सीसो आह केण पुण पगारण णाणकिरियाहि मोक्खो साहिज्जतित्ति , अतो भवति# एवं-णाणं०॥ २-१७ ॥ दिद्रुतो-एगेण वणिएणं घरं गहित कयवरेण भग्गविभग्गं, तेण चिंतितं-ण एत्थ भग्गविभग्गे सुघं। बसिज्जति, सोहमि ण, अंधकारे य ण सकति सोहेतुं, ताहे पदीवं करेतिर कयवरं सोहेति, छिदविच्छिद्दााण पिहेति गुत्तकवाड च31 दाकरेति, पच्छा निरूविग्गं विसयसुहाणि अणुभवति, एवं घरत्थाणीओ जीवो कम्मं कज्जवरथाणीयं तवो पणियत्थाणीओ संजमो || जहा छिद्दपिहाणं, सव्वाणि आसवच्छिद्दाणि पिहितव्वाणि, जहा सो वणितो. तमि घरे सुई वसति एवं णाणेण सुभासुभाणि णातूण ORGARH [108] Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१७/१०३], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGE उपोद्घात सुभेसु पवचति असुभेसु णिवत्तति, तवेण पुन्वसंचितं सोहेति, संजमेण ण ण बंधति, तो अकम्मीभूतो मोक्खसुई अणुभवति । जानादेर्भाआवश्यक एत्थ तवसंजमग्गहणं किरिया तबसंजमनियत्तत्तिकाउं, सम्मदसणं पुण णाणग्गहणेण गहितंति न पृथग् उक्तं । एवं णाण- वेष्वतार: चूर्णी दसणचरणाण समाओगे सति मोक्खे ख्यापिते सीसो आह-जदि एवं ता साह-भगवं ! कमि पुण भावे ताणि णाणादीणि GH. भवति ?. कहं वा एतेसि अलाभो ? को वा लाभक्खमो? कस्स वा किमावरणं ? कई वा कस्स वा आवरणकखतोबसमो? कहा नियुक्तो वा उबसमो खयो चा? इति, एत्थ आयरिया भणति॥१७॥ भावे ग्वमोवसमिते॥२-१८॥ खोबसमितो णाम तस्स तस्स कम्मस्य सब्बघातिफहगाणं उदयक्खयात् , तेषामेव सदुप |शमात् देशघातिफडगाणं उदयात् खतोचसमितो भावो भवति, तमि दुवालसंगपि होति सुयणाणं, दुवालसंगरगहणणं सब्बं सुयनाणं गहितं, अपिसद्देण मतिओहिमणपज्जवनाणाणिवि, केवलणाणं पुण खातिए भावे इति । आह- केवलियणाणलंभो णमत्थ खए कसायाणंति सबकसायाणं जाव खतो ण संजातो णाणावरणदसणावरणअंतराइयाण य ण ताव केवलणाणलंभो भवतित्ति, एत्थ पुण कसायाणं चेव गहणं, कसायक्खया अतोमुत्तण नियमा सेसपातिकम्मक्खय इति । एवं गाणं ताव किंपि खओवसमिते। भावे किंपि खाइएत्ति भणितं, सम्मत्तचरिचाणि पुण खतोबसमिते वा उपसमिते का खातिए वा ?, तत्थ सम्पदसणं दसणमोहस्स | खओवसमे चा उयसमे वा खए या भवति. दंसणमोहस्स खतोवसमेण अणंताणुबंधिअणुदए मिच्छत्तस्स सबघातिफहगाण उदय क्खते तेषामेव सदुबसमे सम्मत्तमोहणीयस्स उदये इति । उवसमखया पुण उवरि भनिहिति । चरित्तपि चरित्तमोहस्स खतोवसमे | ॥९७।। तिचा उबसमे या खए, बा, चरितमोहखतावसमे णाम बारसकसायोदयखये सवसमे य, संजलणचउकअनतरदेसघातिफहगोदए ***************** दीप अनुक्रम ** [109] Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १८/१०४], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री राणोकसायनवगस्स य यथासंभवोदये इति । चरित्ताचरितं पुण खओवसमिते घेव, कसायट्ठगोदयक्खए सवसमे य, पच्चक्खाण-18 कमस्थितिव्यका कसायसंजलणचक्कदेसपातिफागोदये जोकसायणवगस जहासंभवोदये य इति । जैमि भावे गाणादाण भर्वति एतं भाणत, हा विचारः चूर्णी जहा एतेसिं लाभो ण भवति तं भवति शेषक्षये अट्टहं० ॥ २-२६ ।। किह पुण अट्ठण्डं पगडीणं उकोसहिती भवति', एत्थ ताव सव्वासि पगडीण उकोसद्विती माणि- गुणानामानियुक्ती कायचा, जया मोहणिज्जस्स कम्मस्स उकोसिया ठिती भवति तदा आउगबज्जाणं छह कम्मपगडीणं उकोसिया ठिती भवति, वश्यकता ९८॥ आउगस्स उकोसा वा अजहन्नुकोसा वा ठिती भवति, जदा आउयमोहबज्जाणं उकोसिया ठिती भवति तदा आउयमोहणिज्जाणं उकोसा वा अजहण्णमणुकोसा वा, जया आउकोसा तया सेसाणं उकोसा वा अजहन्नुकोसा बा, एवं उकोसद्वितीए है अट्ठण्ड कम्मपगडीणं बट्टमाणो जीवो चउण्ह सामाइयाणं एगतरमवि ण लभति, कह पुण ताई चउरो ?, तंजहा- सम्मत्तसामाइयं सुयसामाइयं चरित्तसामाइयं चरिचाचरित्तसामाइयं च । अपिशब्दात् मत्यादि च न लभतीति ॥ इयाणि जहा एतेसिं लामो भवति तं भन्नति सत्तण्डं पगडीणं अभितर०॥ २-२७ ।। आउययज्जाणं सत्तहँ कम्मपगडोण उकोसद्वितीओ जदा खवियाओ भवति, अवसेसा एकेका कोडाकोडी भवति, तीसे य कोडाकोए पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पविट्ठो भवति, एत्थ किल गंठी पाउम्भवइ, गंठी णाम जहा इह रज्जए दाभविसेसस्स वा घणो अतिगूढो रूढो दुम्माओ दुन्भेदो य गंठी भवति, एवमेव आत्मनः ॥९८॥ कम्मविसेसपच्चतो अतिरागदोसपरिणामो गठीत्ति क्वादिस्सति, तमि भिजे सम्मत्तादिलाभो भवति, तन्भेदो य मोविघात दीप अनुक्रम अत्र नियुक्ति [२-२७] मध्ये सम्यक्त्व-लाभ: निर्दिष्ट्यते [110] Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: २७/१०६], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत HEIGE दीप अनुक्रम श्री परिस्समादिभिः अतीव दुल्लभी, आह-जा सा सेसा ठिती कम्माणं सा जति विणा सामायितेण खविता एवं सेसावि किन्न खविति आवश्यक तेण विहिणा, भभति-सो किर तत्थ बिसेसेण परिश्राम्यति, महासंगामसीसगतो विव जोहो महासमुहतारीब परिश्रांतारोहणवत् । चूर्णी चित्तविधातादिविघ्नबहुलबासी भवति, महाविद्यासाधकबत् , एत्थ अतीव परिस्सम मन्नति रोगबोसोदएणं, तमिदाणि कई उपोद्घाखवेति ? । जे तं कर्म उवसामेति ते जीवा दुविहा- भक्यिा अमविया य, जे भविधा ते तं गंठी कीव समतिच्छति, केवि ततो चेव पंडिणियत्तति, जे अभविया ते नियमा ततो चेव पडिणियति, जहा को दढतो ? पिपीलियाओ मिला ओद्धाइयाओ समा॥ ५९॥ १९दणीओ एर्ग खाणुयं विलग्गति, तत्थ जासिं पक्खा अस्थि ता उडेति, जासिं नत्थि ता ततो व पडिणियत्तति, एवं तेसिं भबियाण सा लद्धी, अभवियाण णस्थि, तेहिं पुण जीवेहि कह कम्मोचसमो कतो', भनति| संसारत्थाणं जीवाण तिविहं करणं भवति, तंजहा- अहापवत्तिकरणं अपुवकरणं अणियट्टिकरणं, तिविहे च करणे इमो दिईतो, जहा तिनि पुरिसा विगालसमयंसि गामातो गामं पत्थिता. तत्थ य अहिं भणिय, जहा-एत्थं भयं, पच्छा ते भर्णतिसमत्था अम्हे तेणाणं पलाइतुति, एवं ते वञ्चिति ताए चेव अहापवत्तीए गतीए, जहा सरी अत्थमभिलसति तहा वहा अपुच्वं गति उप्पाडेंति, जाहे पुण तं देस पत्ता जत्थ तं भयं ताहे उभयतो पासं पंथस्स दुवे पुरिसा असिहत्थगता Kजमगसमग पाउन्भूया, तत्थ एगो पुरिसो ते आवतमाणे पासिता भीओ पडिनियचो, एगो चावलसमत्थो माणं घेष्पिस्सामिति तहेव तेसि पलातो, ण य तेहिं तिमो ओलम्गितुं, एगो तत्थेव ठितो बद्धो, एवमिहाडवी संसारा पुरिसत्यावमा तियिहा संसा-म' रिलो पंथो कम्मद्विती बहुता भयस्थाणं गांठदेसो तक्करा रागदोसा, पतीवगामी गठिदेसमासादेछण पुणो आणि परिणामो कम्म AU९९१ [111] Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: २७/१०६], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सूत्रांक नियुको % % दीप अनुक्रम 18 वितिसंवर्धकः, तक्करवरुद्धो पबलरागदासोदयो गठियसत्तो, इट्ठदेसाणुप्पयातो सम्मदसणपुरप्रापी, एत्थ य पुरिसत्तयसभाव-मिथ्यादृष्टेआवश्यक |गमणोवमितमाचं गठिदेसपावर्ग अहापवित्तिकरणं, सिग्घतरगामिभावेणोबमितमपुब्बकरणं, इहपुरपावगगतिउबममणियद्रिकरणंति, रपि । चूणी एत्थ य जाब गंठिट्ठाणं ताव अहापवत्तं, गठिट्ठाणमतिक्कामतो अपुच्वकरणं, सम्मदसणलाभाभिमुहस्स अणियट्टिकरणंति बहपचयः उपाद्घात आहउक्तं सच्चस्सव संसारिणो सजोगतया पतिसमय कम्मस्स उवचओ अवचयो य, असंजयस्स पुण बहुयतरस्स चओ अप्पतरस्साहू अवचओ, जओऽभिहितं-'पल्ले महतिमहल्ले कुंभं पक्खिवति सोहए णालि । अस्संजए अविरए बहु बंधइ, णिज्जरे थोत्रं ॥१॥ ॥१०॥ पल्ले महातमहल्ले कुंभ सोहयात पक्खिवति णालिं | जे संजते पमत्ते बहु निज्जरे, बंधए थोच ।। २॥ पल्ले महतिमहल्ले कुंभ सोहयति पक्खिवे ण किंचि । जे संजते अप्पमत्ते बहु निज्जर बंधइ ण किंचि ॥ ३॥” एवं च कहमसंजतो मिच्छादिट्ठी एत्तियाए अवणेता भविस्सति !, जतो एयस्स गठिदेसमाप्तिरिति, भन्नति पाओवित्ती एसा जमसंजयस्स बहुतरस्सोवचयो अप्पतरस्स वाऽवचयो, बंधणिज्जरणाओ पुण मिच्छद्दिष्ट्रीणपि विचित्ताओ, |कस्सति कहंचिदिति, तम्हा जहा.जो अतिमहति धनपल्ले अप्पतरं पक्खिवेज्जा बहुतरं च अवणेज्जा तस्स एवं कालंतरेण उपक्खीयते धान्यं, एवमणाभोगता जोयो बहुं बहुतरं च खवयंतो गठिदेसं पावति अहापवत्तिकरणणेति ।। आह--कहं पुण अणाभागतो तेण अहापवत्तकरणेण कम्मरासी खवितो, तत्थ दिईतो-गिरिणइपत्थरेहिं, जहा तेसि णो एवं उप्पज्जति सना तिव्वा | जहा अम्ह बट्टा वा तंसा वा होमो, तेसि वा अमेसि पत्थराणं णो एवं उप्पज्जति जहा एते पत्थरा बट्टा तंसा वा होन्तु, एवं ते घोलणाविसोहीए तं कम्मरासिं खति जहा बाबतीणो पासाणो ।। आह-किं पुण सो सम्मदसणादि उवदेसतो चेव लभति उत | ॥१०॥ % % e [112] Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: २७/१०६], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 दीप अनुक्रम श्री_ अणुवदेसातो बेति?, भन्नति-जहिह कोति पहप-भट्ठा परिब्भनंतो सयमेव पंथं लभति, कादि परोपदेसातो कोयि तु ण चव लभति, सम्यक्त्वआवश्यक | एवं अच्चंतपणहसप्पथी जीवो संसाराडविमर्नुपतन् कोपि गठिट्ठाणमतिकमिऊण तदावराणिजाणं कम्माणं खतोबसमोवसमखएण लामे INउपदेशा| सयं चेव सम्मदसणादि णिवाणपट्टणपंथं लभति, कोदी परोपदेसातो, कोती पुण ण लमति चेव, जहावा कोती जरो सयमेवापति, दि पालकोती भेसज्जावतोगाओ, कोती पुण नवापति, एवं मिच्छचादिमहज्जरोपि कोती सयमेवापति, कोयो अरहदादिवयणभेसज्जो-* नियुक्ती ली वओगाओ, कांती पुण नैवाति, तदावरणिज्जाणं कम्माणं खतोचसमे पुण कोदवदितो विभासियब्बो, उसमे जलदिईतो, खए। ॥१०॥ यथदिवत इति । लाभक्कमो पुण एवं जे अभविता सो तं गंटिं ण समत्था मिदितुं तेण गठियसतो, गंठीए वा सत्तो२, तत्थ पुण IN अंतरे इडिबिसेस दट्टण तित्थगराणं अणगाराणं वा ताहे पध्वयति, तम्मूलागं देवलोग गच्छति । जो भविओ तस्स तमि काले जति कोति संबोहेज्ज अहया कोति सयं चैव संबुज्झति तस्स एत्थ सुयसामाइयस्स भो भवति, ताहे संखज्जाई सागरोवमाई ६ गंतूणं सम्मत्तसामाइयलंभो, ताहे अबाणिवि संखेज्जाणि सागरोवमाणि गंतूर्ण चरिचाचरित्तसामाइयलंभा, एवं संखेज्जेसु चरित | उवसमगसढी खवगसेढी इति. ___सम्मत्तसामाइयस्स आवरणे इमे चत्तारि कसाया--अणताणुबंधी कोहमाणमायालोभा, एते पढमिल्लुगतिवि भमंति, संजोयगाकसायत्तिवि भन्नंति, सुत्तक्कमपामना पढमिल्खगा भन्नति, जम्हा बहूर्हि नेरइयतिरिक्खजाणियमणूसदेवभवग्गहणेहि संजोएंति 31 ॥१०॥ तम्हा संजोयणाकसायत्तिवि भन्नति । अत्र सम्यक्त्व-लाभे चारित्र-लाभस्य निर्देश: [113] Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: २९/१०८], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | 18 प्रत सत्रांक पढमिल्लुगाण उदए जीवो संजोयणाकसायाणं ॥२-२९॥ जैवेलं तेसि उदए भवति ताहे भवसिद्धियाविण लभंति, कषायोदयआवश्यकता किमंग पुण अभविया, तहा अविसदा तस्सहचरितं णाणलंभमवि ण लभंति ।। पात वितियकसायाणुदए अप्पच्चक्रवाणणामधेज्जाणं । सम्मदसणलंभाविभासेज्जा। विरताविरतिण तु लभंति ॥२-३०॥ नियुक्ती अप्पमवि एत्थ पच्चक्खाणं ण तु लभंति तेण अप्पच्चस्खाणकसाया । ॥१०॥ ततियकसायाणुदए पच्चक्रवाणावरणणामधेज्जाणं । देसकदेसविरतिं तिहेव।।चरित्तलंभं ण तु लभंति ॥ २-३१ ॥ जे मूलगुणपच्चक्खाणं सब्वेसि मूलं गुणाणं तं केवलं पडिपुनं आवरेतित्ति तेण पच्चक्खाणावरणा॥ आइ-किं पुण पढमबीयततीयकसायाण उदए सम्मत्तदेसविरतीसबविरतीओ न तु लभंतित्तिा, भन्नति-इह य सम्मत्तादयो मूलगुणा, एते य पढमिल्लुगादयोडू कसाया मूलगुणघातिणो, ण य मूलगुणघातीणं कसायाणुदए मूलगुणाणं लभ, 'ण लभति मूलगुणघातिणो उदये' ति, जदा पुण | संजलणाणं उदयो भवति ताहे इतरचरित्तलंभ विभासज्जा, अहक्खायं पुण ण लभंति, तदभाव उ तेपि लभंतित्ति, सीसो आह-मा द भवतु मूलगुणाणं लंभो मूलगुणपातीण उदए, जदा पुण ते लद्धा तदा कह अतियरति पडिवतति वा इति ?, भनाइ सब्वेवि य० ॥२-३३॥ सम्वविय छदपजंतपायच्छित्तसोझा अतियारान्ति वा अविसोहीनि वा एगट्ठा, संजलणतीति | संजलणा, जहा इंधणं लभित्ता अग्गी उज्जलति एवं तेऽवि अणेसणादीहिं उज्जलंति, तुसदा जो गुणो जहा अतियरति तं जहा-18 १०२॥ संभवं विभासियचं, जया पुण मंजलणवज्जाणं बारसण्ह कसायाणं उदयो भवति तदा मूलच्छेज्जं भवति, किं च मूलं?, सम्म, | पुणसद्दा अण्णेसिपि गुणाणं जेमि उदए मूलछेज्ज भवति तं विभासियध्वं, मलच्छेज्जति वा मूलगुणपडिवाओत्ति वा एगट्ठा इति । दीप अनुक्रम [114] Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ३३/११२], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 पंच प्रत सत्राक दीप अनुक्रम एत्य सीसी आह-जति णाम तसि कासाच कसायाणं उदए चरित्तस्स लाभो चेव ण भवति, केसिंचि पुण लद्धमवि अतियरति पवियति चा, ता साह कास पुण कसायाणं कतिविहाणं कम्मि परिणाम बढमाणाणं चरित्तलमो ? कह वा सो परिणामो ? तेसिंचारिस आवश्यकता केवयिया य मेदा चरित्तस्सी, के य ते इति ?, भन्नतिउपोद्घा बारस० ॥२-३४|| सामाइयत्य० ॥ २.३५ ।। तत्तो य० ॥ २-३६ ।। एत्थ सम्मत्तसामाइयस्सावरणे जे मणिता चत्वारि नियुक्ती कसाया ते बज्जितु जे सेसा चरिताबरणा बारसविहा कसाया ते जदा खायता उपसामिता वा, वासहा खतोवसमतोऽवणीया बद्दति ॥१३॥ तदा चरित्तलंभी लब्भति, लब्भतित्ति वा दीसतिमि वा पचायतित्ति वा एगट्ठा, अमे पुण खतावसमे संजलणबज्जा बारस मभति। आह-कह पुण सो खयादिपरिणामो तसि इति ?, भन्नति-जोगहिति, भौगोत्ति वा वीरियंति वा सामत्थंति वा परकमति वा | उच्छाहोनि एगट्ठा, अणेगभेदो जोगोत्ति बहुवयणं, तस्स पुण चरित्तस्म सामन्नणं विससा-भेदा इमे पंच । ते चैव दरिसिज्जति सामाइयं इतिरिय आवकहियं च, इत्तिरियं जो छेदोबट्ठाणियाणं महो, तस्स इतिौरयसामाइयं, आवकहियं मज्झिमातिस्थगराण, एत्थ चरितपंचगे पढ़मं, छेदोवट्ठावणियं णाम सामाइयमित्तिरियं छत्तण उबट्ठाविज्जतिरी छदोबट्ठाबणिय, बीयं लभातचि बीयं, परिहारबिसुद्धीओ नाम जो पंचमहब्बतियं विसुद्धं परिहरति सा परिहारविसुद्धाओ, सुहमो अस्य रागः मुहमसंपरागः । तत्तो-अणंतरं अहफ्खायं णाम अकसायं, किह पुण अकसायं तु चरित्नं १. सव्येहिदि जिणवरेहिं पनत्त । एते पंच विसेसा । गता ।। इयाणि वारसविहे कसाए सबिए उपसामिए खतोवसमिते वा भणितं, तत्थ खतोवसमो पुन्बदरिसितो । उक्समणं ताव १० भन्नति अप्पतरंति काउं, अहना खबगस्स उचसामणा ण भवति, तेण पुच्वं उपसामणा पच्छा खवणा, अहबा पछाणुपुथ्वीए, ते | [115] Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 निर्युक्ति: ३६/११५], भाष्यं [-] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१०४॥ ***%% कहं उवसामेति १, भन्नति - पत्थेहि मनवचिकायजोगेहिं, जहा अम्भी विज्झायसरिसो हेट्ठा अच्छति सावसेसो एवं उवसामओ कम्मं उपसामेति, जहा वा जलं कयगफलादीहि णिसंतमलं पसंतं भवति तं च तहेब अच्छति, जहा खंभो अंजणामयो जदि वेढिउं मूले पलवितो अग्गए ठाति एवं उवसामओऽवि । तत्थ इमा दारगाहा- अस० ॥ २३७ ॥ उदसामगसेढिपचओ नियमा संजओ, खवगसेढीए पुण संजतो वा असंजतो वा संजनासंजतो वा, एवं सो पसस्थेसु अज्झवसाणद्वाणे वट्टमाणो विसुज्झमाणो अनंता शुत्रंधिकोह माणमायालोभे जुगवं उवसामेति, ताहे सम्मदंसणं | भिच्छादंसणं सम्मामिच्छादंसणं तिविहं जुगवं उवसामेति, ताहे णपुंसगवेदं उवसामेति, ताहे इत्थविदं उवसामेति, पच्छा हासरतिअरतिभयसोमदुगुच्छति एते छकम्मंसे जुगवं उवसामेति, पच्छा पुरिसवेदं उवसामेति, एवं ता पुरिसे, इत्थीवि एवमेव, णवरं सव्वपच्छा इत्थिवेदं, एवं नपुंसओऽवि, णवरं पच्छा पुंसगवेदं, पच्छा दो दो एगंतरिते अप्पच्चक्खाणकसायं कोई पच्चक्खाणावरणं च कोहं दोवि जुगवं उवसमिति, ताहे संजलणं कोहं उवसामेति, पच्छा अपच्चवखाणमाणपच्चक्खाणावरणमाया दोवि जुगवं पच्छा संजलगमाणं उवसामेति, पच्छा अपच्चक्खाणपंच्चक्खाणावरणमायाओ दोचि जुगवं उबसामेति, ताहे संजलणमायं उवसामेति, पच्छा अपच्चक्खाणं पञ्चक्खाणावरणं च लोभ दोषि जुगवं उवसामेति, जो संजलणलोभो तं संखेज्जाई खंडाई करेति, पच्छा उवसामेति, पढमिल्लुगं च भाग उपसमितो एत्थ बादरपरागो उवसामय लब्भति, जं तं संखज्जतिमं खंडं तं असंखज्जभागे करेति, पढमं च पवेदितो ताहे सुहुमसंपरागो उवसामओ लब्भति, समय समय खंड एकैकं उवसामिति । तत्थिमा गाथा विभासियब्वा अत्र 'उपशम-श्रेणि एवं क्षपक श्रेणि वर्णयते [116] उपशमश्रेणिः ॥१०४॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ३८/११७], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक लोभाणू बेतेन्तो० ॥२-३८।। जदा तपि लोभस्स अणुं उबसामितं भवति तदा उवसामगणियंठो लम्भति, एत्थ जदिक्षपकाणः आवश्यक अंतरे कालं करति ताहे सो अणुचरोववातिएम देवेमु उवयज्जति, एत्थंतरे कालं ण करेति ताहे से पुणो पडिपतति, किं कारणं , चूर्णी व Jx तस्स पच्चयावरुद्धा कोहादयो, जदा पुणो किचि नहाविह पच्चयं उबलभंति तदा उदयं गच्छति, जहा बाही ओसहादीहि थीमतो तिहाविहं पच्चयं उबलभित्ता उदिज्जति, एवं जहा रुक्खो अंतो बहि दवेणं दुमितो ताव ण उलुज्झति जाव पाणियाइयं पच्चयं ण |* लम्भति, लद्धे उल्लुज्झति, एवं इहावि तस्स तत्थ अंतोमुहुत्तावसाणे कम्मिवि लोभहेमि संजलणलोभो सुहुमो उदिज्जति, पच्छा ॥१०५॥ | जेणव कमेण उवसामंतो गतो तेणेव पडिवतात जाव अणताणुबंधिति । एसा उवसामगसंढी सम्मत्ता। एतेण कमण एकमवगहणे. दो उवसमसेढाओ होज्जत्ति, जैमि भवे उबसामओ ग तमि खवतो होतित्ति । उवसमण मोहस्स तु एगम्मि भवे हवेज्ज दो वारे । इयाणि खवगसेढी भन्नतिव अणमिच्छा० ॥२-४२॥ खबगसेढाए पट्टवओ नियमा मणुयगतीए, णिवओ निरएसु असंखेज्जतिभागं पलियस्स सेस खवेति, देवेसु वेमाणिएसु तिरियमणुएसु असंखेज्जबासाउएसु, एतं पद्धाउयस्स, अर्णताणुबंधिकोहमाणमायालोमा जुगवं 18 खवंति, पच्छा ताणं अर्णतभाग मिच्छत्तवेयणिज्जे कम्मे छुभति, ताहे तं खवेति, तस्स तिव्यो परिणामो तो सावसेसे चेव अचं आरभति, जहा महाणगरदाहे अग्गी सावसेसे चेव इंधणे अश्रमि घरे लग्गति, एवं इमावि तंमि साबसेसेवि तिव्यज्माणाम्गिणा II असं आढवेति, तस्सवि जं सेस तं सम्मामिच्छत्ते छुमति, ताहे सम्मामिच्छत्तं खवेति, तस्स जे सेस तं सम्मत्ते छुभति, ताहे ॥१०॥ सम्मच खबेति, तत्थ सो खाइयसम्मद्दिट्ठी भवति । सो य पुण बद्धाउगो वा अबद्धाउगो बा, जति बद्धाउगो ताहे ठाति तमि | दीप अनुक्रम ॐॐॐॐॐ [117] Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ४२/१२१], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री पर प्रत सूत्रांक व, अह अघद्धाउगो ताहे तहपवत्तो चेव अवसेसाई खवेति, तत्थ तहेव सैजलणवज्जे अवि कसाए एग8 चव खवेति- जाहे बावश्यक देसि अहं कसायाण संखेज्जतिभाग खमाणो गतो भवति ताहे नामस्स कम्मरस इमाओ तेरस पयडीओ खकेद, संजहा-IX चूणौँ निरवगइनाम एगिदियजातिनाम बेइंदिय० तेइंदिय० चउरिदियजातिनाम निरयाणुपुब्बीनाम तिरिक्खजोणियाणुपुथ्वीनार्म अप्पसउपोद्घातला गद्धात त्वविहाओमतिनामं चावरनामं सुहुमनाम साहारणनाम अपज्जतं, तहा दरिसणावरणीयस्स इमाओ विनिपगडीओ, तंजहा-निहा निदा पयलापयला थीणगिद्धी य । तासि अट्ठण्हं जं सेस तंपि । एत्थ गाथा॥१०६॥ गतिआणुपुठिच दो दो, जातीनामं च जाव चरिदी । अपसस्था बिहगगती थावरणामं च सुहमं च ॥शा४क्षा साहारमपज्जसं निहानिई प पयलपयलं च । धीणं स्वधेति ताहे अवसेस जं च अढण्हं ॥२॥४४॥ ताहे णपुंसगवेदं ताहे इत्थिवेद ताहे छकं हासरतिअतिभयसोगदुगुंछाओ, ताहे पुमवेदं तिमि भागे करेति, दो जुगवं, एग हैं संजलणकोहे छुभति, ताहे संजलणकोहं तिनि भागे करेति, दो भागे जुगर्व खवेति, एग मार्ग संजलणे माणे छभइ, ताहे तंपि तिथि भागे करेति, दो भागे जुगवं खति, एगं संजलणमायाए छुहर, ताहे तपि तिमि खंडाई करेति, दो भागे जुगर्व खवेति, एग संजलणे लोमे छुद्दति, ताहे तंपि तिमि भागे करेति, दो भागे जुगर्व खबेति, एग भाग संखेज्जाई खंडाई करेति, एत्थ बादरसंपराओ खबओ ताहे खवेति, ( एर्ग संखिज्जइमं भाग मोत्तूण सव्यं खवेत्ति) जं रखेजतिम खडं ते असंखज्जे दिमागे करेति, तेऽपि कमेण खवेति, तत्थ खवओ सुहमसंपराओ, जाई तेपि खक्तिं भवति ताहे खवगणियण्ठो लम्भति, एत्थंतरा 12वीसमति अणामोगणियतिएणं करणोवाएणं, जहा कोति महासमुई तरिऊण जाहे अणेष पाहो लदो भवति ताहे म अच्छिउण दीप अनुक्रम SASTERSTRESSESREEScar [118] Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ४४/१२३], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक दीप अनुक्रम केवलज्ञान है सेसं तरति, एवं सो अणेगभवसथितं कम्म सविऊण ताहे मुहुत्तमंतरं आसत्थो, एत्थंतरा जाब अच्छति ताव नियंठो लन्मति जाच आवश्यक दोहिं समएहि सेसेहिं केवलणाणमुप्पज्जिस्सतित्ति ताहे जो एगो समतो तत्थ निदं पयलं च खवेति, जो चरिमसमतो तत्थ II चूर्णी पंचविहं णाणावरणिज्ज चउचिई दसणावरणिज्ज पंचविहं अंतराइयं एयाओ चोइस य कम्मपगडीओ जुगर्व खवेत्ता अणतं केवलउपाघातात माणदंसणं उप्पाडेति । अन्न भणंति-जत्य निद पयलं च सवेति, तत्थ नामस्म इमाओ पगडीओ खबेति, तंजहा-देवगति देवाणुपुच्ची नियुक्ती किउम्बिदुगं पढमवज्जाई पंच संघयणाई अभतरवज्जाई पंच संठाणाई आहारगं तित्थगरनाम जदि अतित्थगरो, एत्थ गाहा ॥१०७॥ I बीसमिऊण.॥२-४५॥ चरिमे णाणा०॥ २.४६ ।। गतत्थाओ, एवं सो उप्पण्याणाणदंसणधरी जाती।सभिन्न पासतो। ॥२-४७॥ समस्तं भिन्नं सं एकीभावे वा सत्तामंगीकृत्यकजीवाजीवादिभावण भिन सभिन्न, अहवा दब्बपज्जायभावेण भिवं संमिश्र, ४ सम्बग्मिन्नं वा बन्झम्भतरतो वा भिनं, अहवा संभिन्नभिति जीवादिदव्यं गृहीत, लोगमलोगं चति खेतं, सब्बतो इति भावाण गद्दणं, सव्यपगारेण सर्वतः, सबै यात्किचिदित्यर्थः, भूतं भव्यं भविस्सं चति कालस्स गहणं, न च द्रव्यादिभ्यो भूतादिकालाविशेषेभ्यो। अन्य शेयमस्ति यदुपलभ्यतीत, ते नरिथ जं एवं पासतो न पासतित्तिा एवं निज्जुसिसमुत्थाणपसंगतो जदिद सुत्तं यतोऽयमिति, जहा वा एतस्स पविती यदादि यत्पर्यवसानं एवमादि तवनियमणाणरुक्खारोहणादारम्भ जाब भूतं भव्वं भविस्सं चेत्यनेन ४ मामणित । एवं पत्रयणउष्पत्ती विभासिता व भवतित्ति । इयाणि पबयणएगट्ठियादि विभासियव्यं । अतो एस्थगा चिरतणदारगाहाट ॥१०७॥ जिणपवयणुप्पत्ती०॥२-४८।। तत्थ जिणपश्यणुप्पत्ती मणिता, तस्स पुण पवयणस्स इमाणि एगद्वियाणि तिनि, तंजहापवयणति वा सुतंति या अस्थोत्ति या, तरथ सामनेण य सुयनाणमंगीकाऊण पवयणमिति बबादिस्सति, नधा अवित्रतमत्थता पकलकप्पं ५ [119] Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [-] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: ४८/१२८], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूणी उपोद्घात नियुक्ती ॥१०८॥ सुत्तमिति, तदेव हि विवेचितं समुत्फुल्लकमलकल्पं अत्थ इति, स च सूत्राभिप्रायः, एतेसिं तिण्डं एक्केक्कस्स गामा एगट्टिया पंच, तत्थ पवयणस्स इमे सुयधम्मोत्ति वा तित्यति वा मग्गोत्ति वा पावणीत वा पत्रयांति वा एगट्ठा, सुत्तस्स इमे सुतंति वा संतति वा गंथांति वा पाढोति वा सत्यंति वा एगड्डा, अत्थस्स इमे- अणुयोगोति वा नियोगोत्ति वा भासति वा विभासित्ति वा वत्तियंति वा एगट्ठा। पवयणएगट्ठिता गता । इयाणिं विभागो, सो य सव्वत्थ विसयविभागादिणा पगारेण विभासिअम्वो, एत्थ पुण एगडितविभागं किंचि दरिसेतित्ति ।। अणुओगस्स सत्तविहं निक्खेवं भणति- नाम उवणा० || २४९ || णामठवणाओ गताओ. जाणगभवियसरीरखतिरित्ता दव्वस्स वा दब्याण वा दव्वेण वा दब्बेहिं वा | दव्वंमि वा दब्येसु वा अणुयोगो दब्बाणुयोगो, दव्वंस्स जहा जीवदध्वस्स अजीवदव्यस्स वा, जीवदव्यस्स चउब्विहो-दबतो खेचतो कालतो भावतो, दव्यतो एगं जीवदव्वं खेचतों असंखेज्जपएसो गाढं कालतो अणादीए अपज्जवसिते भावतो अनंता नाणपज्जवा दंसण० चरित० अगुरुल हुयपंज्जवा य एवमादि। अजीवदव्वस्सवि, किं पुण अजीबदव्वं १, परमाणू तस्स चउच्चिहो दब्बओ ४, दव्वतो एगदव्वं खेतओ एगपदसोगाढं कालतो जहनेणं एवं समयं उक्कोसेण असंखेज्जं काले भावतो एगवभे एगगंधे एगरसे दुफामे दय्वाणं अनुतोगो जीवदव्वाण य अजीवदव्वाण य, जीवदन्वाण जधा कतिविहाणं भंते! जीवपज्जवा पत्ता ? कतिविहा णं भंते ! अजीब पज्जवा पण्णचा ?, दव्वेण अणुतोगो, जहा- कोति पलेवेण वा एगेण वा अक्खेणं, दव्वेि जहा बहूहिं अहि, दबंमि जहा फलए वा एगंमि वा वत्थे, दव्वेसु जहा बहुसु कप्पेसु वा फलएसु वा तत्थ दव्वस्त अणुतोगो य अणणुतोगो य, तत्थ इमं निदरिसणं अथ अनुयोगस्य नामादि सप्त निक्षेपाः वर्णयते [120] ४ यवचनाद्येकार्थिकानि अनुयोगभेदाः ॥१०८॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५०/१३३], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक वच्छगगोणी०॥२-५०॥गोदोहओ जो पाडलाए बच्छओ तं बहुलाए मुयति बाहुलगं वा पाडलाए,एवं वितहकरणं अणणुओगो, IKIयोगाय: न्यानुजया जं जाए तं ताए मुयइ तया तहाकरण भवति अणुओगो, तस्य चार्थस्य प्रसिद्धिर्भवति, एवमिहापि जब जीवदव्वलक्षणेणं अजीवं आवश्यक परूबेति तो अणणुयोगो भवति, तेण विसंवदंतेणं अत्थो बिसंवदति, अत्थेण विसंवयंतेणे चरणं, चरणविणासे मोक्खाभावो, मोक्खाउपोद्घातभावे दिक्खा निरत्थिया । वितिए पसत्थे समोतारो, एवं सब्वत्थ भाणियब्वं । खेत्तेवि छभेदा. खेत्तस्स जैबुद्दीवस्स खेत्ताण दीवनियुक्ती हा सागरपबत्ती खत्तेण जहा जंबुद्दीवं पत्थर्य काऊण अलोके पकिखप्पति पुढवीजीवा, खेचेहि अड्डाइज्जेहिं दीवसमुद्देहि, बहुहिं वा पत्थयं काऊण जीवादिवियालणा कीरति, खत्तमि भरहे अन्नत्थ वा जत्थ अणुतोगो कहिज्जति, खत्तेसु पंचम भरहेसु पंचसु एरवएसु ॥१०९४ामावादमा पंचसु महाविदेहेसु । तत्थ खेत्तओ अणुतोगये दिटुंदो खुज्जाए-सातवाहणो राया, भरुयच्छे नहवाहणं रोहेति, एवं कालो जाति, ४ वरिसारते य सणगर बच्चति, अन्नदा तेण रोहएण गतल्लएणं अत्थाणीमंडवियाए णिच्छूटं, पडिग्गहधारी खुज्जा, सा चिंतति|एस अपरिभोगो, नूणं राया जाइतुकामो, तीसे य जाणसालिओ राउलओ परिजितओ, तस्स सिट्ठ, सो पए जाणगाई पमज्जितो | पयध्यिाणि य, तं दळूण सेसएणवि लोयेण पयट्टिताई, राया य रहस्सियगं पधाइतो जाव लोगो पए पुरतो गतल्लओ दिट्ठो, राया। चिंतेइ-ण मए कस्सति कहितं, कओ नायं, परंपरएणं जाव सुज्जति, खुज्जा पुच्छिता, ताए लहेच अक्खायं ।। अत्थ खुज्जाए| अपरिभोग खत्तं जातंति पनवयंतीए अणुओगो । अन्नहा पुण अणणुतोगो, एवं समोयारो। .. ISI कालस्सवि छ भेदा, कालस्स जहा समयस्स पट्टसाडिवादिट्टतेणं, कालाण जहा ओसप्पिणीए छबिहो कालो परूविज्जति, 6 कालेण अशुओगो, जहा बाउकाइयाणं वेउन्चियसरीरा ए पलिओषमस्स संखेज्जतिभागमेत्तेणं कालेणं अवहीरति, कालेहिं इमीसे थे | दीप अनुक्रम KARACHERS -9644 [121] Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ५०/१३३], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सुत्रांक दीप अनुक्रम श्री मते रयणप्पमाए पुढवीए नेरइया केवश्कालेण अवहीरति !, ते णं असंखेज्जा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणिजोसप्पिणीहिं अबहीरकि अनुयोग आवश्यक कालंमि अणुजीगों वितियाएं पोरुसीए, कालेसु जहा ओसप्पिणीए तिसु कालेसु उस्सप्पिणीए दोमु । एत्य उदाहरणे यंदा चूणों एगो साहू पादोसियं परिपट्टतो रहसेणं कालं ण जाणति, सम्मदिडिगा य देवता तस्स हियट्ठाए संबोहयति मिच्छादिविगाए उपोद्घात मएण, तक्कं विकेइ महता सदेणं, पुणो पुणो तीसे कबारोडग असहमाणो भणति-अहो तकलत्ति, जहा तुम्भं सज्झायवेला, नियुक्तो उवउत्तो मिच्छामि दुकडंति, देवताए अणुसासितो मा वितिय, मा च्छलिहिसित्ति । तस्स अकाले सज्झायतस्स अणणुओगो, ॥११०॥ देवताए कालवेलं साहतीए अणुओगो। वयणस्स छ भेदा-वयणस्स०, एगस्स बयणस्स जणवयादिस्स, वयणाणं सोलसण्डंपि, घयणेणं अद्धमागहेणं, वयणेहि अहारसहि देसीभासाहिं, अहवा एयस्स कहेहित्ति कहहिं भाणितो, बयणमि खतोवसमिते, वयणेसु पत्थि, & सबदेसीमासासु वा पवनति अणुओगो, अहवा सच्चे य असच्चामोसे य, एस्थ उदाहरण बहिरउल्लावो गामिल्लओ य, बहिरो हलं बाहेति, पंथं पुच्छितो भणइ-धरजाइगा मज्ज्ञ वइल्ला, मज्जाए से भक्तं आणीतं, तीसे 3 कहेति जहा बइल्ला सिंगिता, सा-भणति-लोणित वा अलोणितं वा माताए ते रद्धय, सा सासूए कहेति, सा भणति-धूलं वावरई वाटू थेरस्स पुत्तं होहिति, थेरं सदाति, थेरो भणति-पीतु जीएणं एगपि तिले ण खामि, एस्थ तेसिं तं वयणं अबहा कहताणं अणणु ।मामेछल्लए एगो भग्गकूलपृत्तओ, सो मुतो, तस्स महिला णगरे दुल्लभ तणकट्ठपत्तन्तिकाऊर्ण गामं गता, पुणे से डहरतो, सो बडितो मातं . ॥११॥ पुच्छति कहिं मम पिता , ताए सिट्ठ जहा मतेल्लओ, का पुण तस्स वित्ती, सेविताइतो, अर्हषि सेवामि, तुर्म तं ण जाणसि, किह सेविज्जति', विणीतेहिं, जागरं विणय ण जाणसि, किह णगरे विणओ, पीओ सबहिं होज्जाहि, अई णीये बंदिस्सामि-10 [122] Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५०/१३३], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री प्रत योग सत्राक उपोद्घात हर दीप अनुक्रम ति गतो सो, णगर पहाइता, पेच्छति वाहे, भट्ठि ज्जोत्ति भणइ, मिगा पलाता तस्स सदेण, तेहिं इतो, तेण सम्भावो कहितो । भावानुआवश्यक भणितो य-जदी एरिसे पेच्छसि तदा णिलुका एज्जासि, तता तेण रजका दिट्ठा, तेसि च पोचाणि हीरति, ओहरण अच्छक्ति, सो . य णिलक्कतो एड. चोरोति पिट्टितो, सम्भावे कहिते भणितो-भज्जा सि मुनीरयं निम्मलं भवतु ऊसच पडत, सोसाला एति, एगस्थ ओच्छुपीया जीणिज्जंति, मणति-भटि ! सुद्धं गीरयं ऊसो य पडतु, तत्थवि पिट्टितो, कहेति, मुक्को भणितो बनियुक्ती भण बहुसइय, मतए णीणिज्जते भणति-बहुसतिय होतु, एरिसं मा कदादि तेहि भणितो, विवाहे भणइ, (तत्थ मणिो भण) ॥११शालाएरिसो मे संजोगो थिरो थावरो य भवतु, तं नियलबद्धए कुलपुत्तए पभाणियं, तेहिं भणितो-एवं भणिज्जासि-एतातो ते लहूं। मोक्खो भवतु, अन्ने मित्चसंघाडिं करेति, तत्थवि पिट्टितो, एगस्स कारणियस्स अल्लीणो, तत्थ अंबेल्लि, घरपलीयणए, धूर्वेतस्स ४ा गोभत्तं रुई, तस्स बयणविभागाणिपुणस्साणणु०, एस वयणे अणुयोगो अणणुयोगो य भणितो। भावे य.छ भेदा, भावस्स उदययादिस्स, भावाणं छण्हवि, भावेण निज्जराभावेण कहेति, भावेहिं संगहड्याईहिं पंचहि, भावमि खतोवसामते, भावेसु तेसु चव आदतियादिमु अहवाऽध्यारसूयगडाईसु । तत्थ भावे अणुतोग य अणणुओगे य इमे सच उदाहरणा____ साचगभज्जा० ॥२॥५६॥ सलेण सडीए वयंसिया विउव्धिता दिहा, अझोपवमो, परिहाइ, निबंधे कहितं, ताए भाणियं-आणेमि, तेहिं वत्थाभरणेहि अप्पा बस्थितो, अतिगता, दीवओ गदयापितो, अच्छिओ, पुणो अधिई पगली, चिरक्खियं मम्मति, ताए पत्तियावितो साहियाण, एत्य तस्स सीए य सम्म सामिप्पायकाहणेण अणुशोगो, एवं अपत्यवि, सता ॥१११॥ यथाविधि १ । सत्तपतिए-पच्चंतिओ, साधूआगमणं, गोहीए पडिणिययाए परं दरिसितं, तेणमस्सामूतियाए 'दियां, ग कहयवंति, httXPER [123] Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [-] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: ५५/१३४], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक उपोद्घात नियुक्ती ॥ ११२ ॥ एतेणं पडियोगेणं दिलं, बने वरिसारते आपुच्छंति, भणितो वणसंडउदाहरणेणं, जहा पुप्फफलसमिद्धं, ण तरति किंचिवि घेत्तूर्ण, मुलगुण उत्तरगुण मधुमज्जविरहं वा, पच्छा सत्तवगं वयं दिनं, चोरो गतो, अवसउगोत्ति नियचो, घरं अप्पसारियं अतीति, भगिणी य से पाहुणया आगएछुया, तीए पुरिसनेवत्थकरणं, निहाए तहेव सुत्ता अवत्तासेऊणं, अतिगतो पेच्छह, असी अंछितो, पयं सरितं नियत्तो, असीए खणति कयं, पडिबुद्धा, लज्जाए पिच्छिऊणं विसन्नो, समोतारो २ कोंकणगस्स महिला मया, अन्ना या लभइ सवतिपुत्ती अत्थित्ति, पच्छा अडवीए कंडाह आणेति विद्धो भणति ताता, मारितुमिच्छितो, तस्स दारगस्स अभिप्पायं णाऊण भणं तस्स अणु० । एवं समोतारो ३ ।। नउले-एगा चारभडिया गामे वसति सा अभया कयाह गम्भिणी जाता, अभावि णउली गम्भिणीया तत्थ एति जाति य, ताओ समियाओ पसूयाओ, ताए चिंतियं मम पुत्तस्स रमणओ भविस्सतित्ति तस्सवि पीहगं खीरं च देति, अभया तत्थ सप्पो पविट्ठो, तेण सो खद्धा दारओ मओ, इतरेणोतरंतो दिट्ठो मंचुलियाओ, पच्छा खंडाखंडि कतो, ताहे सो रुहिरलित्तेणं तुंडेणं तीय मूलं गतो, चाडुगाणि काउमारद्धो, ताए भणिय-एएण मम पुत्तो खतितो, खंडतीय मुसलेण आहतो, पच्छा धावंती घरं पविट्ठा तं पेच्छति सप्पं, ताहे दुगुणं रोयति, पच्छा अणु० ४ ॥ कमलामेला, बलदेवपुत्तो निसढो, तस्स प्रभावतीए देवीए पुतो सागरचंदो कुमारो, इतो य धणदेवओ उग्गसेणस्स णत्तुओ, तस्स कमलामेला णाम राजदुहिता वरिया, णारदो य फलहदलियं विमग्गमाणो कमलामेलाए सगासमुवगतो, तीय पुच्छितो कि तुम अच्तं दिहुंति ?, तेण भणितं दुवे अन्भुयाणि इहेव बारवतीए, जं च उग्गसेणणत्तुओ रुवेण परमविरूवो बलदेवपुत्तो सागरचंदो उतिरूवो, तीए भणितं भगवं! किह मम सो भत्ता होज्जचि १, तेण भणिय अहं करेमि तेण ते सह संजोगीत, ततो तीसे रूवं पट्टियाए लिहिऊणं गतो सागर [124] भावानु योगे उदाहरणानि ॥ ११२ ॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: ५५/१३४], भाष्यं [-] अध्ययनं [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥११३॥ चंदसगासं, सागरचंदेण भणिओ का एसा एवं उकिडसरीरा दारियत्ति ?, णारएण भणियं इहेव वारवतीए रायदुहिया कमलामेलत्ति, सो तंमि अज्झोववचो न खाति न पिबति, ततो संबो उवागतो, तेणं सो चिताकुलेण ण णातो एंतो, संवेण सणिय उवल्लिऊण हत्थेहिं अच्छीणि ठयाणि, सागरचंदेण भणियं का एसा कमलामेलति ?, संबो हसिऊण भणति - णाहं कमलामेला, कमलामेलो अहं पुत्ता !, सो पाएस पडिऊणं भणति तात ! उत्तमपुरिसा सच्चपहना, तो मम कमलामेलं मेलवेहित्ति, संवेण | अग्भुवगतं, ततो पज्जुनसगासं पाडिहारियं पन्नत्तिविज्जं मग्गति, तेण दिना, ततो कमलामेलाए विवाहदिवसे विज्जाए पडिरूवं विउब्विऊणं अवहरिता कमलामेला चेव, तर उज्जाणे सागरचंदस्स तीए सह विवाहं काऊणं उबललंता अच्छंति, विज्जापडिवपि विवाहे वट्टमाणे अट्टहास काऊणं उप्पतितं ततो जातो खोभो, ण णज्जति केण हारियत्ति ?, णारदो पुच्छितो भणति रेवतउज्जाणे दिट्ठत्ति, केणवि विज्जाहरेण अवहियत्ति, ततो सबलवाहणो णिग्गतो कण्हो, संबो विज्जाहररुवं काणं संपलग्गो जुद्धं, सब्बे परातिता, कण्हेण सद्धि लग्गो, ततो जाहेण णातो रुट्ठो तातोति, ततो से चलणेस पडितो, कण्हेण अंबाडितो, संवेण भणितं एसा अम्हेहिं गवक्खेणं अप्पानं मुयंती किहवि संभाविता, ततो कण्हेण उवगमितो उग्गसेणो, पच्छा इमाणि भोगे अंजमाणाणि विहरति, अरिहनेमी समोसरितो, ततो सागरचंदो कमलामेला य सामिसगासे धम्मं सोऊण गहिताणुव्वयाणि सावगाणि संत्ताणि, ततो सागरचंदो अट्ठमिचउदसीसुं सुन्नघरे सुसाणेसु वा एगराइयं पढिमं ठाति, धणदेवेणं आयण्णिऊणं तंत्रियाओ सूती घडाविताओ, ततो सुनघरे पडिमं ठियस्स तस्स वसिसुवि अंगुलीणहेसु आहोडियातो, सम्ममहियासेमाणो य वेयणाभिभूतो कालगतो, देवो जातो, ततो चितियदिवसे गवसंतेहिं दिठो, अकंदो जातो, दिट्ठा मूतीतो, गधे संतएहिं [125] भावानु योगे उदाहरणानि ॥११३॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५५/१३४], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री तंबकुट्टगसगासे उबलद्धं घणदेवएण कारितातोत्ति, रूसिता कुमारा, घणदेवगं मग्गति, जुद्धं दोहवि बलाणं संप्पलग्गं,31 आवश्यक हो ततो सागरचंदो देवो अंतरे ठाऊणं उवसामेति रोहिणिपरंपरगणादेण, पच्छा कमलामेला भगवती सगासे पञ्चइया । योगे उपादान उदाहरनियुक्ती दि एचियं पसंगेण भणितं । एत्य सागरचंदस्स संबकुमारे कमलामेलाभिष्पायं सातस्स अणुतोगो अणणुओगो ५॥ जानि संबस्स साहसं-जंबवती भण्णति-किह पुत्तस्स कीलितं पेच्छेज्जामि, वासुदेवो भणति-किं तो अब्बारिहिहिं धरिसिज्जिहिसित्ति, ॥११॥ सा भणति-अवस्स पेच्छियव्वाणि, एवं होउनि, गोवी जाता, इतरो गोबो जातो, महियं पविकीया, इतरेण दिट्ठा गोची. भणिता-एहि तक गेण्हामि, सा अणुगच्छति, गोवो मग्गेण, सो एग आविउत्थगं पविसति, सा भणति-णाहं पविसामि, किं तु मोल्लं देहि, तो एत्थं चेव ठितओ तक्कं गेण्हाहि, सो भणति-णवि, अवस्स पविसियव्वं, हत्थे लग्गो, एगत्थ गोबो लग्गो, जाहे ण तरति कडिङ ताहे तं मुतितुं हत्थाओ तेण समं लग्गो, पंचरं एगाए चेव हेल्लाए आविहितो, वासुदेवो जातो, इयरिंपि मायं पासति, ओगुद्धि काउं पलातो, बितिए दिवसे मड्डाए आणिज्जतो खीलगं घडेति, वासुदेवेण पुच्छितो-किं एवं घडेहि ?, सो भणति-जो पारियोसियं बोल्लं करेति तस्स मुहे कोट्टिज्जति, समोतारो ६। . चेल्लणा सामि बंदित्ता बेयालियं माहमासे पविसति, पच्छा साहू दिह्रो पडिमापडिवनो, ताए रत्ति सुत्तियाए किहषि हत्थो ६ लंबिओ, जया सीतेण गहितो तदा चेतियं, पवेसितो, सव्वसरीरं सीतेणं गहीतं. ताए माणिर्य-स तपस्वी किं करोति?, पच्छा रना 8 चितितं-एयस्स कोऽपि संगारदिनओ, रुट्ठा, कल्लु पाओ अभयं भणति-सिग्धं अंतेपुरं पलीवेहि, सोवि गतो सामिणो मूलं, इतरणवि ॥११४॥ मुनहत्थिसाला पलीविता, सो गतुं सामि भणति-चल्लणा एगपत्ती अणेगपत्ती ?, सामिणा भणियं एगपत्ती, ताहे मा रझिहितित्ति ॐॐEASRAS दीप अनुक्रम १२-४२४२ [126] Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ५५/१३४], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक दीप अनुक्रम तुरियं नियनो, अभयो य निफिट्टति, तेणं भणितं-पलीवितं ?, आमं सामी, तुमं किन्न पंडितो, सो भणति-मम किं ?, अहंभाषाविIN सामिस्स मूले पन्चइस्सामित्ति, ताहे अभएण चिन्तियं-मा विणस्सिाहिति, पच्छा भणियं, ण उज्झत्ति ७।। IP भाषावातिआवश्यकता एतेसु सव्वेसु अणुयोगो अणणुयोगो य विभासिथव्वो । इदाणि नियोगः, णि आधिक्ये 'जच योगे' अतीव योगो नियोगो, कस्वरूप सो चे अत्यो जदा सुत्तेण समं निउत्तो भवति तदा चरणकरणपसूती भवति, जहा वच्छए गोणीए सम्म निउने खीरप्पस्ती नियुक्ती C भवति ।। भासा विभासा वत्तियंपि, एताणिघि तिथिवि संजुत्ताणि चव बच्चंति । तत्थ सामन्त्रण एकप्रकार अत्यं घुवाणो भासगो,131 ॥११५ मध्यं युवाणो विभासगो, सम्वेण पगारेण चुवाणो बत्तीकरगो । तत्थ इमे उदाहरणा___ कडे पोत्थे चित्ते ॥२-५६॥जया देवदत्तो खंदस्स वा रुदस्स वा पडिमं काउकामो तदणुरूवपमाणं कई पगरेति जारिसं तं कट्ठ पुरिमं २ सुमंचा, तं चेव कट्ठ जदा परसुमादितच्छितं भवति तदा णज्जति जहा एत्थ इत्थी वा पुरिसो वा कीरिहित्ति, एवं चेव कट्ठसमाणे सुत्ते जो जं सुत्तालावगनिष्फलं धात्वर्थमात्र तं चेव भासह सो भासओत्ति भन्नति । जदा तं चेव कट्ठ वासियोभणयमादीहि परिकम्मितं अंगपच्चंगसंठाणाणि चहुं निम्मवियाणि, एवं चेव तस्स मुत्तस्स जो दोहिं वा तिहिं वा चर्हि वा पगारहिं अस्थपयाणि विभासति सो विभासतोत्ति भन्नति । सोय चोद्दसपुच्ची अत्थे विभासिउँ समत्थो । उक्कोसतो विभासतो वत्तियं, जदा त चव अंगपच्चंगाणं द्रा णिण्णुण्णयरोमकूवदिट्ठिफलकमादीणि णिब्बानियाणि, एवं चेव जदा सन्वपज्जवेहि अत्थं भासति तदा वत्तीकरणे हवइ, सो या उक्कोसओ वनीकरगो केबली, केति पुण जेण तिहिं परिवाडीहि अणुओगो सुतो गहितो य सत्तहि वा सो बत्तीकरगो इति| ११५॥ भणंति । एवं ता कढे । पोत्थे पढम दम्मादि मिलिता, ते चेव बद्धा पमाणागिती कता भासा, अंगाणि जहिच्छिताणि चेचा [127] Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५६/१३५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत कस्वरूप सत्रांक दीप अनुक्रम | अंगपच्चंगाणि णिम्मावियाणि तदा विभासा, जदा दिद्विमादि सव्वं कयं तदा वत्तियं । इयाणि चिते-कुडे पमाणागिती || भाषाविआवश्यकाला टिक्किता ताहे भासा, ताणि चेव अंगपच्चंगाणि निम्मवियाणि विभासा, जदा दिट्टिमाइ सव्वं कयं तदा वातयं । सिरिघरि-एगोलिभाषावाति चूर्णी जाणति, जहा एत्थ रयणाणि संति, एवं सुत्तइत्तो जाणति जहा किर एस्थ महं अत्थो अस्थि, अन्नो सिरिघरिओ जाणति-असुगं इमं|| उपाातारयण, एवं चेव कोह सुइचो जाणति जहा सुत्तस्स सामनेण इमो अत्थो, एवं मुत्तत्थबियाणगो भासगो, अनी तेसिं अणुभाग ४ " मोल्लं च जाणति, एस विमासओ, अन्नो तेसि सव्वं जाणति जहिं जहिं जदा जदा विलएतव्वं णिगृहितव्वं च, एवमादी या ॥११॥ जाणति, एवं बचिओ जो जहिं अत्थो ससमए वा उस्सग्गेण वा अववाएण वा जत्थ जत्थ जदा जदा जहा जहा पउंजियब्बो एवं सव्वं जाणइत्ति । पोण्डं जारिसं एरिस मुत्तं, ज़दा तं चेव ईसिं विगासतं भवति तदा भासओ, जदा त चेव वियसियं || पंकजं भवति तया विभासओ, जदा ते चेव सव्वपज्जाएहिं विगसित भवति तदा वत्तिय, पोंडोत्त गतं । इयाणि है देसिएत्ति, जहा कोति पुरिसो पाडलिपुत्तस्स पंथं जाणति, एवं सुत्तइचो जाणति जहा एत्थ अत्थो, अमो जाणति 12 जहा ताव अमुग णगरं गम्मति, जं तस्स अंतरे तं न याणइ, एवं चेव भासओ जाणइ जहा इमो अत्थो, जहा ततिओ पुरिसो | समुप्पत्रं तंपि पंथं जाणति उज्जुगंपि वक्कंपि परिमाणपि जाणति, जहा एत्तियाणि गाउयाणि वा, एवं चेव विभासओवि बहुतर-1 एहि पज्जबेहिं जाणति, जो चउत्थो सो एतं चैव सव्वं जाणति, तत्थ सावयभयं वा तेणभयं वा जहा उव्यत्तिउं जाणति, पुणोवि तं31॥११६।। ला मग ओगाहति, एवं सो सम्बेहिं पज्जवेहिं जाणति, एवं चेव वत्तिओत्ति । 'पडिसहगस्स सरिसं जो अत्थ भासए तु सुत्तस्स। सय सो इग बालपंडितसाधुजतीमादि सा भासा ॥ १॥ एवं एगट्टितविभागात्ति । [128] Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५६/१३५], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 * प्रत श्री आवश्यक चूणी या उपोद्घाता ॥११७॥ इयाणि दारविधीपवित्ती, सा साव न भन्नति, कम्हा ?, दारविहीए कए किल सत्थं समप्पिहिति, नयावि तदंतग्गता एव टि व्याख्यानइति पयविधीवि तत्थेव भबिहित्ति इति मा सीसस्स अविणयपडिबत्ती भविस्सति, ताहे आयरितो भणति- अच्छतु ताय विधी दारविधी य, बक्खाणविहिं भाणस्सामि, पच्छा किं च वक्खाणविधीए? इति, वक्खाणविधी नाम जारिसाओ घेतब्न जारि- गवादीन्युसस्स वा सीसस्स दायचं जहा य इति, तत्थ इमे आयरियसीसाणं उदाहरणा, एग आयरियस्स एगं सीसस्स, दोविया एगंमि *दाहरणानि चेच ओतरंति ॥ गोणी चंदण॥२-५जाएगस्स गावी भग्गा, सा पुण अतीव खीरदा, नाहे सो चितेइ-मा बहुं चुक्किहामि, कंचि बचेमि, तेण सा तणस्स उबेऊणं गोसंघाए पए चेव उवट्ठविया, तत्थ कतिता आगओ, सो भणइ- विकाइ गावी ?, तेण माणय- विक्काइ, किह लम्भति, पंचासतेण, लट्ठत्ति काउं गहिया, सोवि पलाओ, इयरो उट्ठचेह, सान तरेह उट्ठउं, तेण नायं, अहंपित्थ कंचि वचेमि, अन्नो आगतो, विक्काति?, आनं, तिपण भाणितं- विक्कमावेमि दुद्धं च जोएनि ता गिण्हामि, सो भणति-एचाहे चेव उट्टेडा, तहवि जोएमोत्ति भणति, उट्ठवेउमारा ण उट्ठति, भणति एवं चैव ठितेल्लगं गण्हाहि, इतरो न इच्छति, सो भणति- मएवि एवं विट्ठिता गहिता, इतरो भणत्ति- जदि तुम बोहो, अहं ण गेण्हामि, एवं परिसस्स पासे ण गहेयव्यं, जो अक्खितो समाणो भणति- एमेव मए सुयंति, जो अत्थं गाहेति सब्वपज्जवेहिं तस्स पासे सोयच । एतं ता आयरियस्स उदाहरणं । इमं सीमस्स-A का बारवती णगरी कण्हा वासुदेवो, तत्थ तिमि मेरीओ, तंजहा- संगामिया अन्भुतिया कोमुतिया, तिन्निपि गोसीसचंदणमदीओ,151॥११॥ देवतापरिग्गहिताओ, तस्स चउत्था भेरी असियोवसमणी, तीसे उठाणपारियाणियं कहेयब-तेणं कालेण तेणं समतंणं सक्को दं दीप अनुक्रम *84% AE% ES [129] Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: १७/१३६], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सुत्रांक 18वेंदो, सो तत्थ देवलोगे वासुदेवस्स गुणकित्तणं करति-अहो उत्तमपुरिसा एते अवगुणं ण गेहंति, णीयं च कम्मंण करेंति, तत्थ भावानुआवश्यकताएगो देवो असहईतो आगतो. वासदेबो यणीति. सो तत्थ कालसणगरूवं विउम्बित्ता चावअदादिभगंध पंथभास पडितो, तस्साटायाग चूणौ लोगो गंधण सम्बो पराभग्गो, बासुदेवो तेण पंथेण आगतो, तस्स सुणयस्स दंते दळूणं भणति- अहो इमस्स पंडराओ दाढाओत्ति, दाहरणं उपाघात ताहे सो देवो चिंतति- ण सक्का एतेण उवाएणंति, ताहे सो वासुदेवस्स जे आसरयणं तं गहाय पधावितो, सो य बहुरायाणएणं नियुक्तो णातो जहा आसो हीरति, तेण सिट्ट, तत्थ कुमारा रायाणो य णिग्गया, तेण ते हतमहितबीरघातिया काऊण बिसज्जिता, ताहे ॥११८॥ वासुदेवो णिग्गतो, सो भणति- कीस मम आस हरसि ?, मम आसो तुज्झ ण होति, देवो भणति- जुद्धं मम देहि, जो जयति तम्स आसो, इतरो भणति- बाढं, किह जुज्झामो?, तुम भूमीय अहं च रहेण, रहो दिज्जतु, णस्थि मम रहेणं(कज्ज), आसो हत्थी पादेहिं बाहुजुद्ध, सम्वेहिवि ण कज्ज, दोवि जुजनमो(हि)ट्ठाणजुद्धण, ताहे वासुदेवो भणति-पराजितोऽहं, णेहि आस, तत्थ देवो तुट्ठो समाणो सखिखिणी भणति- बेहि वरं किं देमि, वासुदेयो भणति-मम असिवष्यसमणि भेरि देहि, तेण दिवा, तीसे मेरीए एमुप्पत्ती । ताहे छहं मासाणं अणुतोगी, पुषुप्पना रोमा वाहीओ चा उवसमंति, णवगा वाही छ मासण उदीरति, सदं जो तीए | सुणेति, तत्थनदा कयाती आगंतुओ वाणियओ, सो अतीव दाहज्जरेण अभिभूतो, तं भरिपालय भणति- गेह तुम सयं से पलं या देहि, तेण लोभेण दिन, तत्थ अनं चंदणखंडं छदं, एवं सा सव्वा चंदणकथा कया। अमदा कयायी असिंच वासुदेवेण तालाविता, तं चेव सभण पूरेति, तेण भाणितं-जोएह मा भेरी विणासिता होज्जा, जोइज्जती सब्बाणि, विणासिता नाऊणं से H ॥११८॥ पुरिसं जीयदंड आणवति, अन्ना मग्गिता, अन्नो ठवितो, सो आदरेणं रक्खति । एवं इहापि सीसो आयरियपासाओ निग्गतो दीप अनुक्रम ESCAKACARE [130] Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं [-] / गाथा-], निर्युक्तिः १७ / १३६], भाष्यं [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूणीं उपोद्घात नियुक्ती ।।११९ ।। समाणो तस्स किंचि पम्हुई, सो तंमि आलावए गई अन्नं लोइयं छुमति करेति वा भारहरामायणादीणं एवं तेण कंथाकयं सुतं अत्थो य, तारिसस्स ण दायव्वं सुतं अत्थो वा, जो तहेव रक्खति तस्स दायव्वं । एस ताब सीसस्स । आयरियस्स--. वसंतपुरे जुनसेद्विधृता णवगस्स सेस्सि व धृता. तासि पीती, तहवि से अस्थि खारो जह अम्हे एतेहिं उचट्टिताणि, ताओ अनदा कयादी मज्जितुं गताओ, तत्थ जा सा गवगस्स घूया सा तिलगचोदसणं अलंकिता, सा तं तडे ठवेत्ता ओइना, जुनसेट्टिया तं गहाय पहाविता, इमा जाणति खेडं करेतित्ति, ताए मातापिऊणं सिठ्ठे, ताणि भणति तुण्डिक्का अच्छाहि, गवग धूया हाइता नियमं घरं गता पिउमातूणं कहितं, तेहिं मग्गितं, ण देति, अम्हे उच्चडिताणिति परिभृताई, किं आभरणगाणिवि गत्थि १, एवं कनाकानि पणट्ठाणि, पच्छा राउले बबहारी, तत्थ णत्थि सक्खी, तत्थ राउलागि भणति चेडीतो वाहिज्जतु, जति तुम्हेच्चयं आम्रुचउ चेडी, तांह सा आमुंचति, जं हत्थे पादे तं न याणति, तं च से असिलिट्टे, ताहे तेहिं णावं, जहा एतीसे ण होति, ताहे इतरा भणिता, ताए तहच्चेव णिच्च आमुचतीए परिवाड़ीए अ मुक्कं, सिलिङ्कं च से, ताहे सो जुन्नमेट्ठी दडप्पतो जातो, जहा सो एगभवितं मरणं पत्तो, एवं आयरितोऽवि जं असत्थ तं अनहि संघाडेति, अन्नवत्तब्वयाओ अन्नत्थ परूवेति उस्सग्गादीयाओ एवं सोऽवि संसारडंडेणं इंडिज्जति, अणेगाई जातितन्त्रगमरियव्यगाई, तारिसस्स पासे ण अज्झाइतव्वं, जहा सा चेडी जसं पत्ता आविंधणसुहं वा एवं चेत्र आयरिओ जो गवि संघाडेति अन्नमन्नाणि तेण अरहंताणं आणा कया भवति, तस्स पासे सुचत्थाणि गिहियव्वाणि १ । सावगसमाणस्स सीसस्त ण कहेयव्वं, जो सव्वकालं महिलं भोतुं तं चैव एगराई ण याणति अन्नणेवत्थणेवस्थितं, एवं सीसोऽचि सव्वकालं रडिऊण सुतं वा अत्थं वा ण नाणति किं इमं सुतं ससमध्ये [131] भावानु योगे 'चेव्यदार ॥११९॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १७/१३६], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत पर उपोद्घाता परसमइयं उस्सग्गियं वा अवबाइयं वा एगवयणं दुवयणं बहुचयणं एवमादि, एवं चेव अत्थेवि, तारिसगस्स ण दायव्यं । बहिरगोह- टंकणोदाआवश्यक समाणस्स आयरियस्स पासे ण सोयवं, जो अन्नं वागरति, अन्नरस वा सुत्तस्स अत्थं पुच्छितो तो अभ चेव चागरेति, अनेण हरणं चूर्णी वा अभिप्पाएण पुच्छितो अबहा वागरेति । अभिप्पायं वा पुच्छगस्स पावगच्छति ।। शिष्यस्य __इयाणि जहा आयरिएण दायच्च सीसेण य घेत्तव्यं तत्थ इमं उदाहरणं-उचरावह टंकणा णाम मेच्छा, ते सुवनदंतमादीहि । गुणदोषाः लदक्षिणावहगाई भंडाई गेण्हंति, ते य अवरोप्परं भासं न जाणंति, पच्छा पुंजे कति, हत्थेण उच्छादेंति, जाच इच्छा ण पूरेति ताव ॥१२०111 पण अवणेति, पुने अवणंति एवं, तेसि इच्छियपडिच्छितो बबहारो । एवं चेव आयरियस्स सिस्सेणं कितिकम्म कायव्यं, तेणवि विहिणा मुत्तस्थाणि दायब्बाणि । एमो एगो आदेसो । बितितो इमो-आयरितेण ताप सिस्सस्स अत्थो भाणियब्बो जाव तस्स | लोगहणं, सिस्सेणवि ताव पुच्छियव्वं जाव उवगयंति, एस टंकणओ ववहारो॥ PI स एवाधिकारो बहति-०॥२.५७॥ तेण कस्स ण होही येसो अणब्भुवगतो-अणुयसंपन्नो, अन्भुवगतोपि णिरुवगारी ण किंचि पडिलहणादि इहलोइयं परलोतियं वा उवगारं करेति, उबगारीवि कोति अप्पच्छदमती जे से रोयति तं करोति, कोति परच्छंदमतीवि पट्टितओ जा मे सुत्तत्थाणि लम्भंति अच्छामि अन्नहा. वच्चामि । गंतुकामो जदि मे इच्छंत पूरेंति तोऽहं सुत्ने उद्दिष्टे समाणिए गमिस्सामि चेव, अन्ने पुण पत्थियतो नाम कोति साधू आगतो कहिं बच्चिहिसि जीवपडिम (वंदिउं) अहंपि3 पला वच्चामि गंतुमणो जो य भणति गवरि इमं सुपखंध णिवमि ताहे बच्चामि, जम्हा एवंभृतो बहणं एसो अणणुमतो भवति ॥१२०॥ तम्हा एताद्वपरितेन होऊण गुरुजणो आराहियन्यो । दीप अनुक्रम [132] Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५८/१३८], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सहरणानि तहा विणओणतेहिं।।२-५८॥विणतो सत्तविही, तंजहा-णाणविणओ देसणविणओ चरित्तविणओ मणविणओ वयिविणओ शिष्यपरी कायविणओ उवयारियविणत्ति। पंचमुवि गाणेसु भत्तिबहुमाणो णाणविणओ, सेसेसु विभासा, तेण विणएण ओणओर, ओणओ आवश्यक दुविहो-दब्बोणओ भावोणओ य, दवोणओ ओणयगाओ, भावोणओ अणुद्धतपरिणामो 'पंजलियडेहिं ' ति कृतप्रायलिमिः, शैलपनाउपोद्घात छंदो-अभिप्यातो तमणुअचमाणेहि जहा तुस्सति, एवं च आराहियब्बो गुरुजणो, एवं को गुणो ?, भणितविहिणा आराहियोग दीन्युदानियुक्ती | गुरुजणो सुयं बहुविहं लहूं देति, बहुविह-अंगाणंगपविट्ठादि बहुपज्जायं च 'लहुँ' तिजं सत्तहिं तिहि वा परिवाडीहिं दिज्जति तं, ॥१२॥ | आवज्जितहिययो एगाए चेव परिवाडीए लाएति । पुणो इमा सीसस्स परिक्खा मई पहुच्च भन्नति सेलघण॥२-५९।। तत्थ इमं कप्पियमुदाहरणं । तंजहा-मुग्गसेलो पुक्खलसंवट्टओ य महामेही जंयुद्दीवप्पमाणो, तस्थ | ४. किल गारदत्थाणीओ कलह आयोएति, मुग्गसेलं भणति-तुज्झ नामग्गहणे कए पुक्खलसंवट्टओ भणति-जहा पं एमाए धाराए विराबेमि, माणेणं सीहावितो भणति-जति मे तिलतुसतिभागमेत्तमाथि उल्लेति तो णाहं वहामि मुग्गसेल नाम, पच्छा मेहस्स मूले | भणति मुग्गसेलवयणाई, सो रुटो, सच्यादरेण परिसितुभारद्धो जुगप्पमाणाहिं धाराहि, सत्तरचे बुढे चिंतति-इयाणिं गतो। | विरायोत्ति ठितो, इतरो मिसिमिसेतो उज्जलतरो जातो दिप्पिउमारद्धो, भणति-जो भट्टिाति, ताहे मेहो लज्जितुं गतो । | एवं चेव कोति सासो मुग्गसेलसमाणो एगमवि पदं ण लग्गति । अनो आयरितो गज्जति, आगतो, अहंण माहेमित्ति, | आह-आचार्यस्यैव तज्जाड्यं, यच्छिप्यो नावबुध्यते । गावो गोपालकेनैव, अतीर्थनावतारिताः ॥ १ ॥' ताहे पढावितुमारदो, 1 ॥१२॥ इसको, वा लज्जितो गतो । एरिसमइस्स ण दायव्वं, समोतारो । एयस्स पडिपक्खो कण्हालभूमी. जहा कण्हाले जं पाणियं पडति दीप अनुक्रम । [133] Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ५९/१३९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत दृष्टान्ती तंण कतीवि ओलुटति, सम्वमावियति, एरिसस्स दायव्य, चर्चा । इयाणि कुडा, कुडा दुविहा–णवा य जुमा य, जुम्मा दुविहा-1 आवश्यकाल भाविता अभाविता य, भाविता दुविहा-पसत्यभाविता, अपसत्थभाविता पसत्या भाविता अगुलुतुलुकमादीहिं, अपसस्था पलंडमादीहिं,8 कुटचालनीपसत्था भाविता दुविहा-वम्मा अवम्मा य, एवं अप्पसत्यावि, जे अप्पसस्था अवम्मा जे अपसत्था बम्मा ते ण सुंदरा, इतरे सुंदरा उपोद्घात ४ । नियुक्ती अमाविता ण केणति भाविता णवगा आवागातो ओतारियमेत्तमा । एवं चेव सीसा, णवगा जे मिच्छदिछी तपढमताए गाहि-1 ज्जंति, जुन्नगा अभाविता ण एगेणवि मतण भाविता, अपसत्था असंविग्गेहिं पसत्था संविग्गेहि, जे अप्पसत्था बम्मा संविग्गा ॥१२२॥ य अवम्मा एते लट्ठगा, इतरे अचोक्खता । अहवा घडा चउबिहा, तंजहा-छिदकुड़े बोडकुडे खडकडे सगलेत्ति, छिदो जो मूलच्छिद्दो, बोडो जस्स उहा णत्थि, खंडो एग से ओट्टपुडं णत्थि, सगलो अव्यंगो चेव, छिद्दे जे छुढे ते गलति, बोडे तावतियं ण द्वाति, खंडो तेण पासेण छहिज्जइ, जदि इच्छा थोवेणवि संभइ खंडे, एस चिससो खंडवोडाण, संपुषो सवं घरेति । एवं | चेव सीसा पचारि समोतारेयब्बा । सव्वत्थ विराहणा, चर्चा भणियच्चा। चालणीसामाणो, उदए चालणी भरितिगा अच्छति, उक्कस्थिता य पत्थि किंचिवि मह (माइ) ॥ अन्नया मुग्गसेलच्छिद्दसकुडचालणिसमाणा मिलिता सलवंति-केण वो भो किं गहिती, तत्थ चालणिसमाणो भणति-जाव आयरियसगासाओ ण उड्डेमि वाहे सम्बंषि मेण्हामि, जाहे उद्वितो ताहे न किंचिवि सरामि, छिदो भणति-धन्नो तुम जस्स तंपि कालं अच्छति, मम पविसंतं ॥१ चेव णीति, सेलो भणति-तुम्भे हि दोवि धण्णा, ममं ण किंचि पविसतिः, एतेसि असंतती य, आयरितो अत्थं गुणेतुकामो मा, 56464560 दीप अनुक्रम 545 [134] Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६०/?], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक दीप अनुक्रम श्री बाणासहितित्ति, ताहे ते णीसाए गुणेति ।। चालणीए पडिवक्खो तावसं कविणयं, परिपूणओ पयपुनगालणगं, किविसं लएति, एवं हंसमहिपआवश्यक सीसोयि दोसेसु लम्गति, अणाभोगण अणाभागपत्रवणाए वा अववादपयाणि वा । तस्स पडिपक्खो हंसो-- मषमशकज गुणा खीरमिष रायहंसो॥२-६०॥ तस्स फिर जिम्भा आबिला तो दुद्धं फट्टा, ताहे सारं खाति, इतरं चयतित्ति, चर्चा । महिसो लाखौकोचिउपोद्घाता वापुरतो जूहस्स गता सव्वं पाणितं आदुयालेति, पच्छा पिचितुमारभति, ण य सक्को पातुं सो वा, एवं सीसो किंचि तं पसारेति करेति डाला निर्युक्ता कवा जेण णवि तस्स णवि अण्णस्स । तस्स पडिपक्खो मेसो, अवि गोप्पतमिचि जाणूपादपडिता पाणियं पिबति सयं अनाणि य । जाहकाः ॥१२३॥ मसगो दसति ण किंचिबि रुहिरं लभति दुक्खावेति, दुक्खाविज्जति पमारिज्जइ य, एवं सीसोवि तारिस भणति करेति वा जहा ण लभति णिज्जूहिज्जति वा, चर्चा । पडिवक्खो जलगा, बहुतरगपि पियति, ण य दुक्खावेति । एवं सुसासोवि सकज्ज णिप्फादेति अवियत्तति य। बिरालो पुवमंढोए दुद्धं तत्थेव ण पिवति, किंतु पादेण ढोलेति, पच्छा अन्नत्थ गयं लिहति, तुरिपत्तणेण, तं च तस्स अप्प आहारितं भवांत महलं च, एवं सीसोऽपि आयरियमलाओ चेव ण सुणेति, किंतु अणुभासंताणं अमतो य तुरियत्नणेण गेण्हति, एवं तरस थोब अवधारितं भवति अविसुद्धं च पज्जबेहिंति, चर्चा | ___ पडिबक्खो जागो, मंडीए दुद्धं तत्थेव थोवं पातुं पच्छा पासाणि सलिहति, तस्स ते दोसा ण भवंति, एवं सीसोऽवि आयरियसगासाओ थोवा थोब गिहिऊण सुपरिजित करेति, एवं तस्स अणुनायं परियट्टितं च चहुँ थिरं पज्जवसुद्धं च भवति, चर्चा गोणी दुविहा-परास्था अपसत्था य, एगेण चउण्ई धिज्जातियाण गोणी दिमा, ते संपहारेंति परिवाडीते दुसंतु, तत्थ 31 एगो पढमे दिवसे चिंतेति-कालं अन्नस्स दुज्झिहिति किं मम एताए?, चारिमादि.ण देति, एवं इनरवि, सा अचिरेण विणड्डा, एतेसिंद SACREARS HE१२ [135] Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६०/?], भाष्यं H पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक प्रत उपाघात नियुक्ती ॥१२४॥ दीप अनुक्रम हाणी य अवनवादोय, एरिसत्ति अनाओऽविण लमंति, एवं आयरियपि, सीसा पाडिच्छगा करेहिन्ति, पाडिच्छगा सीसशि, चर्चा | गवाभीरीx बितिया पसत्था, बभणस्स दुझिहितित्ति, गावी य पुणो मज्झवित्ति, चर्चा । एवं आयरिए सीसा चिंतेति-कि एतेहिी, अम्हं ।। दृष्टान्तो एस भारो, णिज्जरा, आयरितो य साधण दाही पुणो अम्हांपत्ति, चर्चा । एवं पाडिच्छगावि । भेरी सच्चेव वासुदेवस्स भणिया, जह सा जया सुविसुद्धगुणजुत्ता आसि तदा महग्या आढिता, पच्छा विवरीया, एवं सीसेवि समोतारो। अहवा जहा वासुदेवेण गुणेहिं देवावि अक्खित्ता भेरी य लद्धा एवं सीसो गुणवं गुरुं आराहेति सकज्जं णिकादेतित्ति, चर्चा । आभीरी, आभीरो भंडीए उरि ठितो घयगडं पणामति, हेट्ठा मे महिला पडिच्छति, तीसे इतरस्स य अंतरागण्हंतमुयंताणं | कहमवि पडितो भिन्नो, ताणि भंडंति-तुमे दुग्गहितं, तुमे दुडु पणामितति. ताव सर्व भूमि गयं, परोप्परकोबो वेला फिट्टा अकाले| | गच्छताणं सेसघयमुल्लं चहल्लाय चोरेहि गहिता हाणी अवन्ना य, एवं चेव आलावए आयरिएण दिने अन्नं वा कुढितो भणितो-ण | | एवं, भणइ-तुम चेव एवं दिन्नो, सो भणति-ण देमि, तुम विणासेसिचि, कलहो, एवं समोतारो । बितिओ दवत्ति ओइन्नो, दोहिवि दवदवस्स कप्पराणि भरिताणि, मणागं गहुँ, सो आभीरो भणति-मए ण सुट्टे पणामितं, सा भणति-मए न सुगहितंति, | एवं आयरिएणवि आलावओ दिन्नो, पच्छा आयरितो भणति-मा एवं कुद्देहि, प्रागेव मए आणुवउत्तेण दिन्नो, सो भणति-मते 18 सुट्ट गहितोति, चर्चा । अहवा आभीरी जाणति-धारा एतिल्लिया घडए माहिति, एवं आयरितो जाणाति एर्ग दुर्ग आलावगं गहिहितित्ति एवं परिक्खिए सीसस्स देज्जा, दुसीसस्स विवेगो, चर्चा ।। [136] Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६१/१४०], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक उपोद्घाता दीप अनुक्रम वक्खाणविधिविभागो गतो । इयाणि दारविधी । तत्थ इह तावेतं सामाइयं इमेहिं दारेहि अवगंतव्वं । तंजहा उपोद्घातं आवश्यक उद्देसे १ णिद्देसे २ य, णिग्गमे ३ खेत्त ४ काल ५ पुरिसे ६ य । कारण ७ पच्चय ८ लक्षण९णये १० द्वाराणि चूर्णी समोतारणा ११ णुमए १२ ॥२-६१ ॥ किं १३ कतिविहं १४ कस्स १५ कहिं १६ केसु १७कहं १८ र उद्देशनि नर्देशद्वारे नियुक्ती केच्चिरं हवति कालं १९ । कति २० संतर २१ मविरहितं २२ भवा २३ ऽऽगरिस २४ फोसण २५ णिमत्ती २६ ॥२-६२॥ दारगाथाओ. ॥१२५|| तत्थ पढमं उद्देसित्ति दारं, तस्स अट्ठविहो णिक्खेवो । तंजहा-णाम गाथा--1॥२॥६३॥ . नामुद्देसो ठवणु० दव्यु. खेत्तु० काल. समासुद्देसो उद्देसुद्देसो भावुद्देसो, नामट्ठवणाओ गताओ, जाणगसरीर| भवियसरीखइरित्तो दव्वमितिउद्देसो दब्बुहेसो, अहवा दव्वेण दवा दवे वा उद्देसो एवमादि, एवं खेचादणिपि योज्यं, तत्र II | द्रव्यमिदं द्रव्यपतिरयं द्रव्यवानयमित्यादि दब्बुद्देसो, एवं खेत्ते खेत्तवती खत्ती इच्चादि खेत्तुद्देसो, एवं कालेवि, समासो-संखेवो, | समासुद्देसो तिविहो, तंजहा-अंगसमासुद्देसो सुयक्खंधसमासुद्देसों अज्झयणसमासुद्देसो, अंगसमासुद्देसो जो जे उद्देसर्ग उद्दिसति, णला ताव भणति पढमं बीयं वा, भाबुद्देसो भावो भावी भावज्ञः इच्चादि भावुद्देसो । एस ताव उद्देसो अबिसेसितो। 18 इयाणिं एतेसु नेच पदेसु विसेसितो निद्देसो भवति, णामठवणाओ मताओ, वहरित्तो जो जं दव्यं निद्दिसति, जहा सचित्तं ॥१२५।। वा अचित्तं वा मीसं वा, सचित्वं जहा गोणो तेणे वा, गोहिं मोमिओ, अचित्तो जहा छत्तं, तेण वा छत्तेण छत्तिओ, मीसं जहाल - अथ उपोद्घातस्य उद्देश-आदि २६ द्वाराणि कथयते [137] Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ६३/१४२], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत HEI65 यो तेन वा निदेश्यः रहेण रहियो एण्यादि, एस दवनिदेसो । 'खेचनिदेसो जो जं खेसं निरिसति तेक मरह वा एरवयं वा जो आवश्यक दावा जेण खत्रण निदिसति, सं०-सोरहो माग्गहो इच्चादि, कालनिदेसो परुपियथ्यो। समासनिईसो विविही, तंजहा-अगसमासनि-IX निगमब उपाघात देसो सुयक्बंध अज्झयण, अंगसमासणिद्देसो जो जं अंग निद्दिसत्ति, सं०-आयारं वा सुधगडं वा एवमादि, एवं सुयक्खंधपि नियुक्ती माथासोलसागि महज्झयणाणि चा, एवं अज्झवणं जहा दुमपुफियादीणि, उद्देसनिदेसो जो जं उद्देस निदिसति, ०-सत्वपरिभाए ॥१२६॥ पढमो उद्देसो चितिओ वा इत्यादि, भावमिदेसो जो जं भावं निदिसति, सं०--उदइयं वा, जो या जैग बा भावेण निहिस्सति जहा कोही माणी माथी लोभी, इह किल समासउद्देससमासनिदेसेहिं अधिगारो, तत्थ अज्मायणं इति समासुदेसो सामायिकमिति समा18 सनिर्देशः। एते पुण उदेसनिदसे को किह णयो इच्छति इति ?, 'दुविहषि' अम्ने पुण निदेसमेष को किह गयो इच्छतित्ति दुविहंपिणेगमणयो निहिट संगहो य पहारो । निसगमुज्जसुतो उभपसरित्थं च सहस्स ॥२॥६५॥ तत्य गमणयस्स य वत्तम्बयाए इत्थी इत्यि निदिसति इथिनिद्देसो, इत्थी पुरिस निदिसति पुरिसनिदेसो इस्थिनिदेसो या इत्थी पपुसगं निहिसति इत्थीनिःसो य णपुंसगनिदेसो य, एमेव पुरिसणपुंसगाणापि संजोगा। संगहववहारणयवत्तव्यता इत्थी। इत्थि मिधिसति इत्थीनिदेसो, इत्थी पुरिसं निद्दिसति पुरिसनिसो, इत्थी णपसगं निहिसति णपुंसगनिदेसी, एवं पुरिसणसगाणपि दाजोमा, दवं णिदिसति तं संगहयवहारा इपछतिथी इस्थि निसति इथिणिसो इत्थी पुरिसं निहिसति इस्थिनिटेसोर ॥ इत्थी गपुंसग निदिसति इत्थिगिसो, एवं पुरिसणपुंसगाणवि, एवं उज्जुसुओ जो निदेसओ ते इच्छा, सेस व इच्छइति, उमय-II दीप अनुक्रम [138] Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ६५/१४४], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सुत्रांक भी उपोद्घाता नियुक्ती दीप अनुक्रम सिरिया च सहस्स, जदि इत्थी इस्यि निदिसति इत्थिणिद्देसो, अह इत्थी पुरिसणपुंसए णिदिसइ सो अणिदेसो, जदि पुरिसोश्रीवीरस्य परिसं णिदिसति पुरिसथिदेसो, आह पुरिसो इस्थिणपुंसए निहिसइ सो अनिद्देसी, एवं जदि निसियव्यं च निदिसओ य सो वश मवाः आवश्यकतं इच्छसि, सेस गरि इच्छणि सदो । एवं सेसाणवि विभासा ।। हयाणि निग्गमेत्ति दारं । सो य छविहो ६ नामगाहा ॥२-६६॥ नामनिम्गमो ठवण दब्ब० खेत काल. भाव०, नामस्थापने पूर्ववत्, वतिरितो दय्वनिग्गमो, सो हि सचिचातो वा सचित्तस्स निम्ममो चउभंगो, सचित्ताओ सचित्तस्स निग्गमो जहा मूलाओ कंदो कंदाउ खंघो एवं, अहवा जहा इत्थीओ ॥१२७॥ गम्मो, सचिताको अचित्तस्स, जहा केसमंसुणहरोमादीणि, अचिचाओ सचित्तस्स जहा-कट्ठाओ पावगस्स, अहवा कट्ठाओ घुणस्स, 0 अचिचा अचिचस्स, जहा सीराओ दहि, दहितो णवणीतं, गवनीताओ धर्य, अहवा उच्छुरसाउ गुलो । अहवा दवाओ दव्यस्स IWI निम्मो, दबाओ का दण्याण, उमंगो, दवाओ दव्वस्स, जहा-रुवआ पयुत्ता रूवओ चेव पच्चाओ जातो, दबाओ दवाणं जहा-एगेण रूपएणं बहव रूवया लदा, दन्वेहिंतो एगस्स दब्बस्स, जहा-बहहिं पउचेहिं एगो रूवनो लदो, पट्टीद पठत्तहि बहवे चेच लद्धा इति । खेचनिग्गमो-जामि सचे निम्ममो वत्रिज्जति, जो वा जाओ खेत्ताओ जिम्गओ एमादि, कालनिग्गमी-जर्षि काले किमो पत्रिज्जति, जो वा जातो कालाओ निग्गतो, मायणिग्गमो-जो जातो भावाओ निग्गवो जेण का भावेण निग्गओ इच्चादि, जहबा इह तोस चेव दब्वखेत्तकालभावाणं भगवं पुरिमं गणिज्जतिकटु तम्हा भगवतो चेव निग्गमो परूवेतव्यों, तत्थिमा १२७॥ हाणिग्गमे पाममाधा [139] Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] अध्ययन [ - ], मूलं [- /गाथा -], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूणी उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१२८॥ पंथ किर देसेत्ता साधूणं अडविविप्पणद्वाणं । सम्मत्तपढमलभो योध्धव्वो वद्धमाणस्स ॥ २ ॥ ६७ ॥ अवरविदेहे तत्थ एगमि गामंमि गामस्स चिंताओ, सो रायाएसवसेण सगडिसागडं गहाय एवं महं अडविं अणुपविट्ठो दारुगनिमित्तं अन् य साधुणो सत्थपरिभट्ठा दिसामूढा पंथं अयाणमाणा तेण अडवीपंथेण मज्झण्हदे सकाले तण्हाए छुहाए य परज्झहिता तं देसं गता जत्थ सो सगडसंनिवेसो, सो य ते पासित्ता साधुणो महता संवेगमावनो अहो इमो साधुणो अदेसिया तवस्सिणी अडवि अणुपविट्ठा, तेसिं सो अणुकंपाए विपुलं अन्नं पाणं दाऊणं भणति यह भगवं ! जाहे पंथं समोतारेमि, पुरतो संपत्थितो, ताहे ते साधुणो तस्सेव सम्म समणुगच्छति । तत्थ य एगो धम्मकहियलद्धिसंपन्नो तस्स धम्मं कहेउमारद्धो, धम्मकावसाणे य से उवगतं सम्मतं, समोतारेसा ताहे नियत्तो. ते पत्ता सदेसं सौ च पुण संवेगसम्मद्दिड्डी कालमासे कालं किथा सोहम्मे कप्पे पलितो मट्टि तीएसु देवेसु उबवन्नो, ततो चुतो समाणो इक्खागकुले जाओ उसमसुतसुतो मिरीचिति, इक्खागकुले जातो इक्खागकुलस्सुप्पत्ती भाणियव्वा, तहारेण कुलगरवंसा, तीते कालो, कुलगरुप्पत्ती, उसभतो भरहो, तस्स सुतो मिरीची तो उसभुप्पची । तत्थ कुलगुरु प्पसीए इमा गाथा = ● ... • पृव्वभवे पुब्वविदेहे दो वणिज्जा मित्ता वन्नेयव्वा, तत्थ एगो मायी एगो उज्जुओ, ते पुण एगतो चैव बवहरंति,तत्थ जो सो माघी सो तं उज्जुग अतिसंघेति वचेति, इतरो सव्वं अग्रहेन्तो सम्म सम्मेणं ववहरति, जो सो उज्जुओ सो कालमासे काल किच्चा इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए बहुबीतिकताए पलितोवमभागे सेसे इहेब भरहे वासे अड्डमरहमज्लितिभागे वृत्ति मध्ये अत्र भाष्यगाथा निर्दिष्टाः, अत्र भाष्यम् आरब्धं, तद् अन्तर्गत भगवन् महावीरस्य प्रथमभवस्य वर्णनं वीर आदि भगवंतानां कथानकं आरभ्यते [140] विमलवाहनवक्तव्यता ॥१२८॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्ति: ६७/१४६-१७८ ], भाष्यं [१-३] अध्ययन [ - ], मूलं [- /गाथा -], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥१२९॥ गंगासिंधूर्ण मज्झे एगस्स मणुयजुयलस्स मिहुणचार पच्चायातो, तेण पुण किह माणुसत्चणं लद्धं १, तेणं उज्जुग तेणं, इतरो तेर्ण बंकतेण दाणरुती य आसि, सो तंमि चैव पदेसे हत्थिरयणं जातं वत्रेण सेतो चउदंतो, जाहे ते पड़प्पन्ना वरणं ताहे तेसिं अनमनं दद्दूर्ण अतीव पीई समुप्पन्ना 'यं दृष्ट्वा०' अतिसंघणताए य आभितोगं विनिव्वत्तियं तं ताहे उदिनं, तेण हत्थिणा मिहुणयं खंधे विलइतं तं जुयलयं बिलइयं दणं सव्वो सो लोगो अमहियमणूसो इमो इमं व से विमलं वाहणंति तेण से नामं करेंति विमलवाहणोति, तर्सि च जातिस्सरणं जातं, ताहे कालदोसेण तेसिं मणूसाणं तेसु रुक्खेसु ममत्तीभावो जातो, जो ममते समलितति तं न सातिज्जति, ताहे तं असहंता एस विमलवाहणो अम्देहितो अहिगो जस्स एस दाहि ते रुक्खे तस्स भविहिंति, ते तं उवट्टिता, ताहे सो भणति मा मंडह, तुमं इमे रुक्खा, जो तुब्भं एत्थ अन्नरज्झति तं मम उवद्वावेज्जाह, एतं च मज्जातं तुब्भं परंपरएण सव्वत्थ ठवेह जत्थ सा ठविता ते आयरिया जाता, तेण परमणारिया, एवं तेण मेरा ठविता, अहं च से डंड बचेहामि, ताहे तेर्सि जो कोति अवरज्झति सो तस्स उबट्ठविज्जति, ताहे सो तस्स डंडे बत्तेति, को पुण डंडो?, हक्कारो, हा तुमे दुछु कथं, सो तेण इक्कारेण जाणति सीसं पडितं, छायाघातो, बरिहं मओति, तस्स पुण चंदसिरी णाम भारिया, तीसे पुत्तो चक्तुमं जाम, एवं परंपरएण जसवं अभिचंदे पसेणई मरुदेवे णाभी, एतेसिं चैव महिलाओ चंदकंता सुरूवा पडिरूवा चक्खुमंता सिरिकंता मरुदेवा, तेसिं पुण उच्चतं पढ़मस्स जब घणुसया अड्ड सत्त अद्धसत्तमा छस्सया अद्धछडा सता पंच पणुवीसा सया णाभिस्स । ताओ कुलरभज्जाओ ईसि तेसिंतो ऊणातो, ते सच्चे वज्जोसभसंघयणा, समचउरंससंठाणसंठिता, ताओबि एतिए चेव, संघयणसंठाणाई परूवेयब्वाई, वज्जरिसभं नाम वज्जबंधो वज्जवेढो वज्जकीलिया य, वितिए वेढओ परिध, ततिए ण वेढओ णावि [141] कुलकरवक्तव्यता | ॥१२९|| Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत चूर्णी सत्राक काखीलिया, चउत्थं एगओ बद्धं, पंचमं दुहओवि अबद्धं, छह णवरं कोडीए मिलितं ॥ समचउरस संठाण जतिओ उच्वेहो ततिओ81 नीतीनां विक्खंभोऽवि, जारिस वा एर्ग चक्खु तारिसं बीयपि, एवं सवंगा, नग्मोह- जस्स बाहाओ दीहाओ उच्च थोब उपरि विसालो, सद्भावः सादी दिग्यो वाहडहरिका, वामणं रहस्सं, खुज ईषदानतं, हुंडं असंठितमेव, एतं छन्विहं संठाणं छबिहेवि संघयणे भणितं ॥ । उपोद्घात नियुक्ती तेसिं पुण पढम संघयण संठाण च, तेसि वनो भाणियन्वो 'चक्खुम जसमं च पसेणई य एते पियंगुवन्नाभा, अभि६ चंदो ससिगोरो, निम्मलकणगप्पभा सेसा ॥ तातो तेसिं भज्जातो सव्वातो पियंगुवन्नाओ ।। इयाणि तेर्सि आउग-₹ ॥१३०॥ पलिओवमदसभागो पढमस्सायु ततो असंखेज्जा । अवसेसाणं असंखज्जा पृन्वा, ते य आणुपुब्बिहीणा नाभिस्स पुण संखाजा छापुच्या इति । जं तेसि आउग तं भज्जाणवि सव्वेसिं चेव, तेसि हस्थिरयणाणि होत्था, तेसिं च समाउया, तो जं जस्स आउगं तं। तस्स समदसमागा काऊण जो पढमो भागो सो कुमारभावो, जो पच्छिमो सो वुड्डभाचो, मज्झिमा अट्ठ भागा कुलगरभावो, एवं सव्वेसि, ते पयणुपेज्जदोसा सच्चे देवेसु उबवना ।। कस्स पुण कहि उववाओ?, यथासंख्यं दो चेव सुवन्नसुं उदहिकुमारे ॥ जे य हत्थी मरुदेववज्जाओ य इत्थियाओ ताओ णागेसु उववना, एगे पुण भणति-जहा पढमो य हत्थी छच्च इत्थियातो गागसु, सेसेसु गस्थि अधिकारो, मरुदेवा सिद्धिं गता । एतेसि सत्तण्हनि इमाओ दंडणीतीओ-हक्कारो मक्कारो धिक्कारो चेव दंडणीतीतो । वोच्छ तासि विसेसं जहक्कम आणुपुवीए । पढमस्स बितियस्स पढमा दंडणीती, ततियस्स चउत्थस्स वितिया, अभिणया णाम णवा इति भणितं 12 ॥१३०॥ दीप अनुक्रम -SCREENERACK Cesik [142] Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत नियत दीप अनुक्रम है होइ, जस्स अप्पोऽबराहो तस्स पढमा, जस्स गाढतरो तस्स णवा, पंचमच्छसत्तमए (तइया णवा) तेसिं जस्स चंडतरो उ तस्स तइओ श्रीक आवश्यक धिकारो दिज्जह, सो य अज्जवि अणुपरियङ्गति । सेसा चउब्धिहावि डंडणीती माणवगणिधीतो भरहस्स उप्पना, परिभासा मंडल- स्यधनसार्थ चूर्णी | पंधों चारए छविच्छेदो, अबेसि परिभासा मंडलपंधा य उसमसामिणा उप्पातिता, चारगच्छविच्छेदा माणवगणिधीतो, आहारणीतीदाबाहादउपोद्घात पुण गिहिवासे उसमस्स तु असक्कतो आसि आहारो जाव किल उसमसामिणो गिहावासकालो ठिओ ताब, सब्वेसिपि भवाः असक्कतो आहारो आसि, असक्कतो णाम असंस्कारितः, स्वभावस्थ एव फलादि, भगवतो पुण उसभसामिस्स जाब गिहवासो ॥१३॥ दाआसि ताव देवकुरुउत्तरकुरुकाणि फलाणि खारादपाणियं च सक्कवयणसंदसण देवा उवणेता, अच्छउ ताव आहारी, उसभसा-IM मिस्स ताब जाणामो का उप्पत्ती ?, तेणं कालेणं तेणं समएणं अवरविदेहे बासे धणो णाम सत्यवाही होत्था, सो पुण धणसस्थाहो खितिपतिहियातो णगराओ वसंतपुरं पत्थितो वाणिज्जाते, जहा दावद्दवणाए, ताए चेव विहीए संपत्थितो, णवर इह साहणं तेण समं पत्थितो गच्छो, को य पुण कालो ?, चरिमणिदाहो, सो य सत्थो जाहे अडविमझ पत्तो ताहे वासारचो उवग्गो, तत्थ पाउसो जहा उक्खित्तनाए, उक्खिचनाए तारिसो जातो, ताहे सो सत्थवाहो अतिचिक्खिलिच्चिया दुग्गमा पंथत्तिकाऊणं तत्थेव सत्थनिवेसं काऊणं वासावासं ठितो, तमि ठिते वासावासं सब्बो सत्यो ठितो, जाहे य तेसिं अनसत्थे-18 ल्लयाणं निट्ठियं भोवणं ताहे कंदमूलाई समुद्दिसंति, साहुणो दुहिया जति किहावि आहापवत्ताई लम्मति ताहे गेहति ॥ है। ॥१३॥ एवं काले वच्चंते बहुए काले समइच्छिए थोवावसेसे वासारते ताहे तस्स धणस्स चिंता जाया-को एत्थ सरथे दुक्खि-का। | तोत्ति', ताहे तेण सरितं, जह-मए समं पब्बइया आगता, तेसिं च कंदमूलाणि ण कप्प॑ति, ते दुक्खिता तवस्सिणो, कल्लं देमि RER अत्र भगवंत ऋषभस्य कथानक आरभ्यते [143] Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्ति: ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] अध्ययन [ - ], मूलं [- /गाथा -], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात् निर्युक्तौ ॥१३२॥ तेसिं, ते पभानाए निमंतिता पभणंति- नं परं अम्ह कप्पियं भवेज्ज तं परं गेण्देज्जामो, किं पुण तुम्भं कप्पति ?, जं अकतमकारितमसंकप्पितं अधारद्वतो पाकातो भिक्खामेतं जं वा घयं वा गुलं वा एवमादि, एवं तेण साधणं तं फासुगं विपुलं दाणं दिनं, सो अहाउयं पाळता तेण दाणफलेण उत्तरकुरुमणुतो जातो, ततो आउक्खरण उब्बट्टिऊणं सोहम्मे कप्पे विपलिओवमठितीओ देवो जाओ, (महाबल ललितो वइरजंष मिथुनकं च सोधम्मसुर, एतद्भवपंचकमत्र त्यक्तं) ततो आउक्खरण उब्बट्टिऊणं महाविदेहे वासे वेज्जपुतो आयातो, तस्स पुण इमे सरिसमा सरितया सरिव्वया एगदिवसजाता अणुरता अविरता वनओ जहा अंडगणाते । ते इमे चचारि वयंसा तं० रायपुत्तो सेट्ठिपुचो अमच्चपुचो सत्थाहपुत्तोत्ति, एवं ते अन्नया कयाइ तस्स वेज्जस्स घरे एगतओ सहिता सन्निसन्ना अच्छंति, तत्थ य साधू महप्पा सो किमिकुट्टेण गहितो अतिगतो भिक्खस्स, तेहिं सप्पणये सहासं सो मन्नतितुमेहिं नामं सव्वलोगो खाइयब्वो ण तुम्मे तबस्सिस्सं वा अणाहस्स वा किरिया कायव्वा, सो भणति-करेज्जामि, काणिवि पुण ओसहाणि मम णत्थि ते भांति अम्हे मोछु देमो, किं ओसहं जा किणिज्जतु १, सो भणति- कंबलरयणं गोसीसचंदणं च ततियं वेल्लं तं मम अत्थि, ताहे मग्गउं पवत्ता, आगमितं च णेहिं जहा अमुगस्स वाणियगस्स अस्थि दोsवि एताई, ते गता | दोनि सयसहस्साई गहाय तस्स पासं, देहि अम्हं कम्बलरयणं गोसीसचंदणं च सो जाणति ते कुमारे, तेण पुच्छितं किं कज्जं ?, भति-साधुस्स किरिया कायव्वा, तेण मन्नति अलाहि मोल्लेण, एत्तिए चैव गेण्हह करेह, ममवि धमोति, ण सक्का एक्कजिन्भाए (वोतुं वे अस्था, तस्स ताव वणियस्स संवेगो जातो, जदि ताव एतेसिं बाळाणं एरिसा सद्धा मम णाम मंदपुत्रस्स इहलोगपढिबद्धस्स गत्थि, सो संवेगमावन्नो, ताहे चैव तहारूवाणं थेराणं अंतिए पव्वइओ जाव सिद्धो बुद्धो । इमेऽवि ताव घेत्तूण ताणि ओसहाणि [144] श्री ऋषभस्य भवाः ||१३२॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक ॥१३३॥ गता तस्स साधुणो पास जत्थ उज्जाणे ठितो, पासंति तं पडिमावरगत, ते तं दट्टणं पडिमं ठितं बंदिऊणं अणुबवति-अणुजाणहविचतिः | भगवं ! अम्हे तुभ धम्मविग्धं काउं उबविता, ताहे तेहिं तेण तेल्लेण सो साधू अभंगिओ, तं च तेल्लं रोमकूवेहिं सर्व अतिगतं, स्थानकानि आवश्यका तमि य अतिगते ते किमिया सब्वे संखुद्धा, तेहिं चलंतेहिं तस्स साधुणी उज्जला विउला वेयणा पाउन्भृता, ताहे ते निग्गत [] उपोद्घात दणं कंबलरयणेण साहू पाउतो, तं सीयलं, तं च तल्लं उण्हवीरियं, ते किमिया तत्थ लग्गा, ताहे तं पष्फोडितं, ततो सब्बे पडिता, | ताहे आलिंपितो, एवं एक्कासि दो तिथि वारे अभंगेऊणं साधू तेहिं नीरोगो काओ, ताहे खमावेऊणं जेणागता तेणेव पडिगता, ते अहाउयं पालेउं सामन्नं तंमूलागं देवलोगेसु उववना पंचवि जणा ते, ततो देवलोगातो आउक्खतेणे चइऊणं जंबूदीचे पुब्ब-16 विदेहे पोक्खलावइंमि चक्कवट्टिविजए पुंडरिगिणीय नगरीए बइरसेणस्स रनो धारिणीय देवीए पढमे वइरणामे णाम पुत्ते जो सो वेज्जपुचो, अवसेसा कमेण बाहुसुबाहुपीढमहापीढत्ति, एवं ते संवडिया पंचलक्खणे भोते भुंजंति । सो य बइरसणो राया | पब्बइतो, तित्थगरो भगवं जातो, इयरे य संवड्डिया महामंडलिया जाता, इमस्स वइरनाभस्स चक्कवट्टिनामगोयाई कम्माणि उन्माणि तेण साधुवेयावच्चेण, जदिवसं पितुस्स केवलं उप्पन्न तद्दिवसं इमस्स चक्कं उप्पन्न, विजए चक्की जातो, एवं ते भोगे मुंजता विहरति । अनया पलिणिउम्मे उज्जाणे वइरसेणो समोसरितो, ते पंचवि पवइया, तत्थ बहरणाभेण चोइस पुव्वाणि अहिज्जियाणि, अवसेसा एक्कारसंगवी चउरो, तत्थ बाहू सो तेसिं सम्बसि वेयावच्चं करेति, जो सो सुबाहू सो भगवतां कितिकर्म करेति, एवं ते करते वइरनाभो भगवं अणुबूहति- अहो सुलथू जम्मजीवियफलं जं साधूर्ण वेयावच्चं कीरइत्ति, परिसंता दवा साधुणो वीसामिज्जंति, एवं पसंसति, एवं पसंसिज्जतेसु तेसु तेसि दोहमग्गिल्लाणं अपत्तियं भवति, अम्हे सज्झायंता ण दीप अनुक्रम CARCIRes [145] Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H श्री आवश्यक चूणौ उपोद्घात नियुक्तौ ॥१३४॥ भाग - 3 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 निर्मुक्तिः १०६/१७९] आयं [१-३] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-1, पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 पसंसिज्जामो, जो करेइ सो पसंसिज्जह । तस्थ पढमेण वरणामेण बीसाए कारणेहिं तित्थयरचं निबद्धं । काणि पुण ताणि जेहिं 5 तीर्थकृत्कर्म तित्थकरचं लम्मति ? । भन्नति अरहंत० ॥२-१०६ ।। दंसण० ॥२-१०७ ॥ अच्पुञ्च० ॥२- १०८।। पढम०॥२- १०९॥ पढमाते अट्ठ बीयाए णव ततियाए तिन्नि, तंजा - अरिहंत १ सिद्ध २ पचयण ३ गुरु ४ र ५ बहुस्सुत ६ तवस्सीसु ७, तत्थ पवयणं- संघो, गुरू- धम्मोपदेसादिदातारो, धम्मे थिरीकरेति जो सो थेरो, सेसा पसिद्धा । एतेसिं वच्छलता अतीव मतिवहुमाणो जं जुज्जति तं करेति, अभिक्खणाणोपयोगो अणुप्पेहादिसु णीसंकितादिकरणं वाट, दंसण९ विणए १० आवस्सय ११सीले अड्डाससीलंगसहस्सेमु उत्तरगुणेसु १२वएमूलगुणसु १३, एतेसु निरतियारो, खणलव १४ तब १५ चियाए१६ वेयावच्चं १७, एतेसु समाहिते, तत्थ खणलवसमाही णाम खणलवमेतमवि कालं णो असमाधिते भवति, तदुक्तं- 'संजमरतिबहुले" सि । एवं तवरतिबहुलेसि, चियागरतिबहुलोरी, दुविहो-दब्बचिताओ, भावचिताओ, दव्वचिताओ आहारउबहिसेज्जादीनं अप्पातोग्गाणं चियागो पायोग्गाणं दाणं, भायचियायो कोहादीर्ण, वेयावच्चरतिबहुले, बेयावच्चं दसविहं, तंजहा- 'आयरिय उवज्झाते थेर तवस्सी गिलाण सेहाणं । साहम्मिय कुल गण संघसंगयं तमिहं कायव्यं ॥१॥ तं एकेक तेरसविहं, तंजहा-भत्ते १ पाणे २ आसण ३ पडिलेहा ४ पाद ५ अच्छि ६ भेसज्जे ७ । अत्थाण ८ दुइ ९ तेणे १० दंडग ११ गेलन्न १२ मन्नंति १३ ॥१२॥ पाएणं निययं करेति, समाहिं च उप्पापति, उग्गहेसु जो वा जेण (विणा) बिसीदति । अवणाणग्गद्दणं १८ सुयभत्ती, तज्जातीयं बहुमाणंपि १९ पवयणपभावणा य २० पत्रयणे बहणं अत्थं जणयति । एतेहिं कारणेहि तित्थगरतं लभति जीवो। किं समुदितेहि उदाहु पत्तेयमवि १, उभयथावि । यतो अत्र विंशति-स्थानकानि वर्णयते [146] ॥१३४॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग - 3 “आवश्यक" मूलसूत्र- १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 आयं [१-३] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः १०२ / १८२] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१३५॥ पुरिमेण व पच्छिमेण व एते सव्वेऽवि फासिया ठाणा । मज्झिमहिं जिणेहिं एगं दो तिनि सव्वे वा ॥२-१०९॥ तं च कहं वेतिज्जति?, जागलाए धम्मदेसणादीहिं वज्झति तं तु भगवतो, तनियभव ओसतित्ताणं ॥ २-११०॥ पट्टवतो नियमा मनुयगतीए इत्थी वा पुरिसो वा इतरो नपुंसओ वा सुभलेसाए, अन्नतरेहिं कारणेहिं बहुलं बहुहा आसेवितेहिं । एवं तेण तित्थगरचं निबद्धं, बाहुणा वैयावच्चेण भोगा निव्वतिया, सुबाहुणा बाहुबलं, तेहिं दोहिवि इत्थानामगोतं कम्मै निबद्धं, एवं वतिरणाभो मगवं चतुरासितं पुव्वलक्खाई सब्वाउं पालइत्था, तत्थ कुमारो तसं मंडलिओ सोलस चउब्वसं महाराया, दंतचके चोदससामन्नपरियाओ, ततो सब्बड्डे उबवन्नो, तेऽवि तत्थेव, उबवातो सब्बट्टे सव्वेसिं, पढमं वइरणामो चुओ, इमीसे ओसप्पिणीए समाए सुसमसुसमाए वितिताए सुसमाए वितिताए सुसमदुस्समाए ततियाएचि बहुवितिर्कताए चउरासीए पुव्वसय सहस्सेहिं सेसएहिं एगुणणउइए य परखेहिं सराह आसाढबहुलपक्खे चउत्थीए उत्तरासाढाजोगजुते मियंके विणीयाए भूमिए नाभिस्स कुलगरस्स मरुदेवाए मारियाए कुच्छिसि गन्मत्ताए उबवन्नो । चोदस सुमिणा उसभगयसीहमादी पासित्ता पढिबुद्धा णाभिस्स कहेति तेण भणियं तुज्झ पुत्तो बड्डो कुलगरो होहितिचि, सस्स आसणं चलितं, सिग्धं आगमणं, मणति देवाणुप्पिया ! तव पुत्तो सगलभ्रुवणमंगलालओ पढमधम्मवरचकवडी महई महाराया भविस्सर, केयी भांति बत्तीसंप इंदा आगंतूण वागरेति, ततो मरूदेवा हट्टतुट्टा गन्मं वहतित्ति, तरणं णवण्डं मासाणं अड्डमाणं च राईदियाणं बहुवितिषंताणं अडरतकालसमयंसि चेत्तबहुलमीए उत्तरासाठाणक्सत्तेणं जान अरोगा अरोगं पयाता, जायमाणेसु तित्थयरेसु सव्वलोष उज्जोओ भवति, तित्थयरमायरो य पच्छन्नगन्भाओ भवंति, जररुहिरकलमलागि य नं भवेति [147] श्री ऋषभस्य • जन्म ।। १३५।। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सूत्रांक श्री हा एत्थ-जम्मणं० ॥ २-११३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठदिसाकुमारिमहत्तरिगाओ सएहिर कूडेहिं विश्यक सएहिं २ भवणेहिं सरहिं २ पासावडसएहि पत्तेयं पत्तेयं चउहि सामाणियसहस्सेहिं चउहि य महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं सत्तहिं ऋषभस्य माधानअणिएहिं सहिं अणियाहिवतीहिं सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहि य बहहिं वाणमंतरेहिं देवेहि य देवीहि य सद्धिं सं | परिखुटा महताहयणगीतवादित जाव भोगभोगाई झुंजमाणीओ विहरंति, तंजहा भोगकरा भोगवती सुभोगा भोगमालिणी। तोय-18| ॥१३॥ धारा विचित्ता य, पुष्पमाला अणिदिया ॥१॥ तएणं तासि भगवते तित्थगरे समुप्पन्ने य पत्तेयं २ आसणाई चलंति, ताणि पासेत्ता ओहिं पउंजंति, भगवं तित्थगरं ओहिणा भोएंति, भोएत्ता ताहे पणामं करेंति, जहा बद्धमाणसामिस्स सके जाव संकप्पे, समुप्पज्जित्था, उप्पन्ने खलु भो जंबुद्दीवे भगवं तित्थगरे, तं जीतमेतं तीतपच्चुप्पन्नमणागयाणं अहोलोगवत्थब्याणं अट्टण्हं दिसाहै। कुमारिमहत्तरियाणं जम्मणमहिमं करित्तएति, तं गच्छामोणं अम्हेऽवि भगवतो जम्मणमहिमं करेमोचिकटु एवं संपेहेंति संपेहेत्ता पत्तेयं २ अभितोगे देवे सद्दावेंति, २ खियामेव भो अणेगखंभसयसंनिविटे लीलट्ठित एवं विमाणवन्नओ भाणियव्वो जाव जोय| णविच्छिन्ने जाणविमाणे विउव्वहः । तेवि तहेव करेंति, तएणं ताओ हट्टतुट्ट पत्तेयं पत्तेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव * अन्नेहि य बहूहिं देवेहि य देवीहि य सद्धि संपरिघुडाओ ते दिब्वे जाणविमाणे दुरुहिति, दुरुहिता सव्विदीए सव्वजुत्तीए जाव-12 |घणमुदिंगपवादितरवेणं ताए उकिट्ठाए जाव देवगतीए जेणेव भगवतो जम्मणत्थाणे तेणेव उवागच्छित्ता तं ठाणं तेहिं दिव्बेहिं हजाणविमाणेहिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता उत्तरपुरच्छिमे दिसीमागे ईसिं चउरंगुलमसंपत्ते धरणितले ते दिव्वे ॥१३६॥ विमाणे ठति ठावेत्ता पत्तेय पत्तेयं चउहि सामाणिय जाव पडिबुडाओ विमाणाहितो पच्चोरुहिता सब्बिड्डीए जाव नादितरवेणं CCCCXRECR दीप अनुक्रम अत्र भगवंत ऋषभस्य जन्म कल्याणक वर्णयते [148] Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप अनुक्रम जेणेव भगवं तित्थगर तित्थगरमाता य नेणेव उवागच्छति, उवागच्छेत्ता भगवंत मातरं च तिक्त्तो पयाहिण करेचा पत्त्य है ऋषमस्य आवश्यक पत्तेयं करतलपरिग्गहितं जाव अंजलि कटु एवं क्यासी-णमो त्थु ते रयणकुच्छिधारिए ! जगप्पतीवदाइए ! सव्वलोयणाहस्स| जन्ममहः | सव्वजगमंगलस्स सव्वजगजीववच्छलस्स हितकारगाउ मग्गदेसितया गढिवज्जुप्पभुस्स जिणस्स गाणिस्स णागयस्स बुद्धस्स चोहउपोद्घात त गस्स चक्मणो य मुत्तस्स निम्ममस्स, पवरकुलसमुन्भवस्स जातियखत्तियस्स जंसी लोउत्तमस्स जणणी धन्नासि पुण्णासि, तं कतत्थे, नियुक्ती अम्हे णं देवाणुप्पिए ! अहेलोगवत्थन्वाओ जाब मयहरिगाओ भगवतो तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करेस्सामो, तण्णं तुम्भाहि ॥१३॥ ताण भातियञ्बतिकट्टु उत्तरपुरस्थिमं दिसीमागं अवकमंति, अबक्कमेत्ता बउब्धिय जाब समोद्धनंति, समोद्धनेत्ता संसेज्जाई जाब | संवट्टगवाए विउबति बिउब्बेत्ता तेणं सिवणं मउतेणं मारुतणं अणुद्धएणं भूमितलविमलकरणेणं मणहरेणं सच्चोउयसुरभिकुसुमगंधा-1 ४ाणुवासिएणं पिंडिमणीहारिमेणं गंधुद्धरण तिरिय पवादिएणं तस्स जम्मणट्ठाणस्स सब्बतो समंता जोयणपरिमंडलं जं तत्थ तणं वा जाव अचोक्खं पूइतं दुन्भिगंध तं सव्वं आहुणिय २ एगन्ते एडंति, एडेता जेणेव भगवं माता य तेणेव उवागच्छति, भगवतो माताए य अदूरसामते आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।। ४ तेणं कालेण तेण समएणं उड्डलोगवत्थब्बाओ अ दिसाकुमारीमहतरिगाओ सहि सरहिं तहेब जाव विहरति । संजहा-141 IMI मेहंकरा मेहवती, सुमेहा मेहमालिणी। मुवत्था बत्थमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ।। १ ।। जाव अम्भवदलएणं वासंति २ णिहयर-II माणदुरयं जाव पसंतरय करेंति, करेता पुष्फवद्दलग विउव्वंति, विडव्येचा पुष्फवासं कालागरुपवरजाव सुरवराभिगमणजोगा करेंति । करेत्ता जेणेव भगवं तित्थगरे तित्थगरमाता य तेणेव उवागच्छति जाव आगायमाणीओ चिट्ठति । [149] Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 HT प्रत उपोद्घातु सत्राक तेणं कालेणं तणं समएणं पुरच्छिमरुयगवत्थव्वाश्रो अट्ठ दिसाकुमारिमहतरियाओ सहि सएहि कडे तहेव जाव तंजहा-151 आवश्यक ऋषभस्व चूर्णी नंदुत्तरा य नंदा, आणंदा दिवद्धणा । विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिता ॥१॥ संसं तहेब, जाव तं तुम्भेहिं ण भाइय जन्ममइ. हैव्यंतिक१ भगवतो तित्थगरस्स तित्वगरमाउए य पुरस्थिमेणं आदंसहत्थगयाओ आगायमाणीओ चिट्ठति । तेणं कालेणं तेणं नियुक्ती का समरणं दाहिणरुयगवत्थब्बाओ अढ दिसा सहेब जाव विहरन्ति, तंजहा-समाहारा सुष्पदिना य, सुप्पबुद्धा जसोधरा । लच्छिमती ट्रासेसवती, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥१॥ तहेब जाव ण भाइयव्यंतिकटु भगवतो तित्थगरस्स तित्थगरमाउए य दाहिणणं भिंगारह॥१३८॥ का स्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ य चिट्ठति । तेणं कालेणं तेल समएणं पञ्चस्थिमस्यगवत्यवाओ अट्ठ दिसाकुमारिमहतरियाओ सरहिं जाव तंजहा-इलादेवी सुरादेवी, लापूहवी पउमावती । एगणासा णवमिया, भद्दा सीया य अट्ठमा ॥१॥ तहेब जावरा तुम्मेहिं ण भाइयन्नतिकटु जाब भगवतो तित्थगरस्स तित्थगरमाऊए य तालियंटहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ य चिट्ठति ।। तेणं कालेण तेणं समएणं उत्तरिल्लरुवगवत्थच्चाओ जाव तंज़हा-अलंबुसा मिस्सकेसी य. पुंडरकिा य बारुणी । हासा सब्बप्पमा वेव, हिरी सिरी चेव । उत्तरओ ॥१॥ तहेव जाब बंदित्नातहेव तित्वगरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगताओ आगायमाीओ पगायमाणीओ य चिट्ठति ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसरुयगवत्थब्याओ चचारि दिसाकुमारीओ तहेव जाव विहरति, तंजहा-चित्ता य चित्तकणगा,18॥१३८॥ सतेरा सोयामणी ॥ तहेव जाव न भाइयव्यंतिकटु भगवतो तित्थगरस्स वित्थयरमाऊए य चतुसु चिदिसासुं दीवियाहत्थगताओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ य चिट्ठति ।। तेणं कालणं तेणं समएणं मज्झिमरुयगमझवत्थव्याओ चत्वारि दिसाकुमारिमहतरि-II दीप अनुक्रम KAR [150] Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- / गाथा-1, निर्बुक्तिः १९३/९८६-१९०] भाष्यं [१-३] अध्ययनं E-L. पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१३९॥ यातो सतहिं सतेहिं कूडेहिं तहेब जाव विहरति, तंजहां- रुया रुयंसा सुरुया रुयगावती ॥ तहेब जाव तं तुम्मेहिं ण भाइयव्यं तिकट्टु भगवतो तित्थगरस्स् चउरंगुलवज्जं नाभि कप्पेति कप्पेत्ता वियरगं खर्णति खणेत्ता वियरगे णाभि निति निहात्तारखणाण य वइराण य पूरेंति, पूरेता हरियालियापेढे बंधेति, वंधित्ता तिदिसिं तओ कयलीहरगे बिउव्वंति, ततेणं तेसिं कयलीहरगाणं बहुमज्झे देसभागे ततो चाउस्सालए बिउब्बिति तए णं तेसि चाउस्सालगाणं बहुमज्झदेसभागे ततो सीहासणे विउव्वंति, तेसिं सहासणाणं अयमेतारूबे बनावासे पचते, सच्चो बन्नगो भाणियन्त्रो, तरणं रुपगमज्शवत्थब्बाओ चत्तारि दिसाकुमारीओ भूगचं तित्थगरं करतलपुडेणं तित्थगरमात च वाहाहिं गिव्हंति, जेणेव दाहिणिले कयलीहरगे जेणेव चाउस्सा लगे जेणेव सीहासणे तेणेव उपागच्छति, उवागच्छित्ता तित्थगरं तित्थगरमातरं च सीहासणे निसीयावेति, सयपागसहरसपागेहिं तेल्लेहिं अभंगति, अभंगिता सुरभिणा गंधट्टएणे उच्चट्टेति, उच्चट्टेत्ता भगवं तिरथगरं करयलपुढेहिं तित्थगरमायरं च बाहासु गिति गिण्डिता जेणेव पुरथिमिल्ले कमलीधरए जेणामेव चाउस्साले सीहासणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता भगवं समापरं सीहासणे णिसीयावेंति, जिसीयावेत्ता तिहिं उदगेहिं मज्जावेति, तंजहा गंधोदतेण पुप्फोदणं सुद्धोदगेणं, २ जाव सव्यालंकारविभूसिते करेंति, करेता भगवं करतलपुडेहिं मातुं च बाहाहिं गण्डंति, गेहेत्ता जेणेव उत्तरिल्ले कदली घरके जाव सहिासणे निसीयावेता अभितोगे देवे सहावेंति, सदावेत्ता एवं बयासी खिप्पामेव भो चुल्लहिमवंताओ गोसीसचदणकट्ठे साहरद्द, तेऽवि तहेब जाब साहरंति, तए णं ताओ सरगं करेंति, करेत्ता अराणं पट्टेति पट्टेत्ता सरएणं अरणिं महेंति, महेता अग्गिं पार्डेति पाडेता रंग संकेत संधुता गोसीसचदणकट्ठे पक्खिर्वति पक्खिवेता अरिंग उज्जालिंति उज्जालेचा अग्गिहोमं करेंति करेता भूति [151] श्री ऋषभस्य जन्ममहः ॥१३९॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम कम करेंति २ रक्खापोद्दलिय बंधति बांधत्ता णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुवे पहाणयट्टगे गहाय भगवतो सामिस्स कन्नमूलांस श्री Rऋषभस्य | टिड्डियावेति, भवतु भगवं पव्ययाउगे भवतु भगवं पब्बतायुगे, तएण भगवंतं करतलपुडेहिं जाव मातारं वाहाहि गेहेचा जेणेवा चूणौं । जन्ममहा भगवतो जम्मणड्डाणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता मातरं सयणिज्जांस णिसीताति २ भगवंतं मातूए पासे ठति, ठवेत्ता पाजाव आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।। नियुक्तौ | MT तेणं कालेणं तेणं समएणं सके देविंदे देवरायां मघवं पागसासणे जाव अबुढाहिं अच्छराफोडीहिं सद्धिं जाब विहरति, तएणं ॥१४॥ तस्स सकस्स आसणे चलति, से तं पासेत्ता ओहिं पउँजति, पउंजित्ता भगवंतं ओहिणा आभोएति, आभोएचा हट्टतुट्ठ एवं जहा बदमाणसामिस्स अवहारबारे जाव सनिसने जीयकप्पं सति, सरिता तं गच्छामि णं अहंपि भगवतो तित्थगरस्स | जम्मणमहिमं करेमिचिकटु एवं संपेहेति, संपेहेता हरिणेगमेसि पादत्ताणीयाधिवति देवं सद्दावेंति, सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव । भो! सभाए सुहम्माए मेघोघरसितं गभीरतरमधुरसई जोयणपरिमंडलं सुघोस सुसरघंटे तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे २ महता महता सदणं उग्धोसेमाणे २ एवं वयाहि-आणवेति णं भो ! सके देविंदे देवराया, गच्छेति णं भो सके जाबराया जंबुद्दीवं दीवं भारह वासं भगवतो तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करत्तए, तं तुम्भेऽवियण देवाणुप्पिया! सब्धिड्डाए सब्वबलेण सव्वसमुदएणं सव्वादरेण सब्ब विभूतीए सब्बविभूसाए सबसंभमेणं सब्बनाडएहि सव्वावराहेहिं सवपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सवदिव्यतुडितसद्दसन्नि-137॥१४०॥ दाणादणं महता इट्टाए जाब रवेणं णियगपरिवालसंपरिपुडा सताई जाणवाहणविमाणाई रूढा समाणा अकालपरिहीण चेच सकस्स है। जाव अंतिय पाउन्भवह । तए ण से पादत्ताणीवाहिवती देवे तं विणएणं पडिसुणेता जेणेव सभाए सुहम्माए सा घंटा तणव [152] Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत उवागच्छति उवागच्छित्ता जाब तिक्खुत्तो उल्लालेति, तए ण तीए उल्लालिताए समाणीए सोहम्मे कप्पे अन्नहिं एगणेहिं बत्तीसाए श्री श्री विमाणवाससयसहस्सेहिं अन्नाई एगृणाई बत्तीसं घटासयसहस्साई जमगसमगं कणकणरवं काउं पयत्ताइपि होत्था । तए णं सोहम्मे ऋपमस्य आवश्यक[४ कप्पे पासादविमाणनिक्खुडावडितसहघंटापडेमुकासयसहस्ससंकुले जाते यावि होत्था, तते गं तेसि सोहम्मकप्पवासीणं पहुणं जन्ममहः उपोद्घात वेमाणियाणं देवाण य देवीण य एगतरतिपसत्तनिच्चपमचविसयमुहमुच्छिताणं सुसरघंटारसितविपुलोलतुरितचवलपडिवोहणे नियुक्ती कए समाणे घोसणकोऊहलदिनकबएगग्गचित्तउपउत्तमाणसाणं स पादत्ताणीयाहिवती देये तसिं घंटारबासि णिसतसपडिसंतसि । १२ समाणसि तत्थ तत्थ तहि तहिं दसे देसे महता महता सद्देणं उग्धोसेमाणो उग्धासेमाणे एवं बयासी-हंदि सुणतु भवतो ! बहवे | सोहम्मकप्पवासी वेमाणिया देवा य देवीओ य सोहम्मकप्पवइणो इणमो वयणं हितसुहत्थ, आणति ण भो ! सके तं चेव जाव अतिय पाउब्भवह । तए पं ते देवा य देवीओ य एवमहूँ सोच्चा हट्ठजान हिदया अप्पेगतिया बंदणवत्तियं एवं पूयणवचिय सकार सम्माण दसण०कोउहल्ल अप्पे०सकवयणमणुवत्तमाणा अप्पे अनमन्त्रमणुयत्तमाणा अप्पे०जीतमेतं एवमादित्तिकट्टु जाव पाउन्भवति तए णं से सके पालयं णामं अभितोगितं देवं आणवेति-खिप्पामेव भो! देवा. अणेगखंभसयसंनिविट्ठ लीलट्ठियसालिमंजियाx कलियं ईहामियउसमतुरगणरमगरविहमवालगकिम्मररुरुसरभचमरकुंजरवणलतपउमलयभत्तिचित्त खंभुग्गतवरवेइतापरिगताभिरामं | विज्जाहरजमलजुगलजंतजुत्तं पिब अच्चिसहस्समालिणीय रुषगसहस्सकलितं मिसमण मिाम्भसमाणं चक्षुल्लोयणल्लेस सुहफास सस्सिरीयरूव घंटावलिचलितमधुरमणहरसरसुरभिमुमकसदरिसणिज्ज णिउणोचितं मिसिमिसेतमणिरयणघंटियाजाळपरिक्षित् जो-18 ॥१४॥ | यणसयसहस्सविच्छिनं पंचजोयणसयमुन्विदं सिग्पतुरियजइणणेब्वाहि दिव्व जाणविमाणं विउब्बाहि २ जाव पच्चप्पिणाहि, सेऽवि दीप अनुक्रम [153] Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 मूलं [- /गाथा -], निर्युक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] अध्ययनं [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ॥१४२॥ तहेव करेति, तस्सणं दिव्वस्त जाणविमाणस्स तिदिर्सि तज तिसोमाणपडिरूवगा बनाओ, तेोसि णं पडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं तोरणे वाओ, जाव पडिरूवा, तस्स णं जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे से जहा णामए आलिंगपुक्खरेह वा जाव दीवियचम्मेति वा अणेगसंकुकीलगसहस्सवितत आवट्टपच्चावसेठी पडिसेढो सोत्थियसोवत्थियवद्धमाणसमाण मच्छगसुसुमारअंडगजरामंडाफुल्लावलिपउमपत्तसागरतरंग बसंतलतप मलयमतिचितेहि सच्छाएहिं सम्पमेहिं समीरिएहि सउज्जोएहिं वाणाविपंचवहिं मर्णादि उसोभिते, तेसि मणीण व गंध फासे य माणियच्चे, जहा रायप्प सेणइज्जे, तस्स णं भूमिभागस्स मज्झदेसभाए पेच्छाघरमंडवे अणेगखंभसयसंनिविद्वे वमओ जाव पढिरूबे, तस्स उल्लोये पउमलताभत्तिचित्ते जाव सव्वतवणिज्जमए जाव पडिरूबे, तस्स णं मंडवस्स समरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदसभागंमि महेगा मणिपढिता अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं सव्वमणिमती बनाओ, तीए उबार महंगे सिंहासणे वचओ, तस्सुवरिं महेंगे विजयदुसे सध्वरयतामए बनाओ, तस्स मज्झभागे एगे गे बहूरामय अंकसे, एत्थ णं महेंगे कुंभिगे घुत्तादामे से णं अहिं तद्दुच्चत्तप्पमाणमेतेहि चउर्हि अद्धकुंभिकेहि मुचादामेहिं सव्वतो संपरिक्खित्ते, ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवबपतरगमंडिता पाणामणिरयणविविहारहारउयसोभितसमुदया ईसि अन्नमन्नमपत्ता पुण्वादी एहिं वातेहिं मंद मंद एज्जमाणा जाब rिogइकरेण सणं ते पएसे आपूरमाणा जाव अतीव उवसोभमाणा चिट्ठति, तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेण उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेण एत्थ णं सक्कर चउरासीए सामाणियसाहसीणं चउरासीदं मद्दासणसाहस्सीओ, पुरत्थिमेणं अडुण्डं अग्गमहिसीणं, एवं दाहिणपुरत्थिमेणं • अभितरपरिसाए दुबालसण्डं देवसाहस्सीणं, दाहिणेणं मज्झिमाए चोदसहं देवसाहस्सणिं, दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरपरिसाए [154] श्री ऋषभस्य जन्ममद्दः ॥१४२॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- / गाथा-1, निर्बुक्तिः १९३/९८६-१९०] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 अध्ययनं E-L. श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥१४३॥ शायं (१-३] सोलसहं देवसाहस्सीणं, पच्चत्थिमेणं सत्तण्ह अणियाधीवतीर्ण, तणं तस्स सीहासणस्स चउद्दिसिं चउण्डं चउरासीर्ण आतरक्खदेवसाहसणं, एवमादि विभासियच्वं सूरियाभगमेणं जाव पच्चप्पिड़ । तते णं से सक्के जाव हट्ठदेहए दिव्वं जिणिदाभिभमणजोग्गं सव्वालंकारविभूसित उत्तरविउच्चितं रूवं विउव्यति विउब्वेत्ता अट्ठर्हि अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं नट्टाणीएणं गंधवाणीपण य सार्द्धं तं त्रिमाणं, अणुपयाहिणी करेमाणे बिल्लेणं तिसोचाणेणं दुरुहति, दुरुहिता जाव सीहासणंसि पुरत्याभिमुद्दे निसन्ने, तए णं एवं चैव सामाणियावि उत्तरेणं तिसोमाणेणं दुरुहिता पत्ये पत्तेयं पुव्यणत्थेसु महासणेसु मिसीदंत, अवसेसा य देवा य देवीओ य दाहिणिलेण दूरुहित्ता तहेव निसीति । तएणं सकस्स तंसि दुरुदस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरतो अहाणु०, तदणंतरं पुनकलसभिंगारं जाव गगणतलमणुलितं पुरतो अहाणु तदनं ० छत्तभियारं तदणं० महिंदज्झए, तदणं० सरूवणे वत्थहत्थपरिवात्थतप्पवेसा सब्दालंकारविभूसिता पंच अणिया पंच अणियाधिवतिणो, तदणं० बहवे आभिओगिया देवा य देवीओ य सह सहि रूबेहिं जाव निओगेहिं सक्कं देविंदं पुरतो य मग्गतो य पासतोय अहा, तदणं० बहवे सोहम्मवासी देवा य देवीओ य सब्बिड्डीए जान दूरुढा समाणा मग्गतो य जाव संपट्टिता ॥ तणं से सक्के ते पंचाणीयपरिक्खित्तेणं जाव महिंदज्झएणं पुरतो पकडिज्जमाणेणं २ चउरासीतीए सामाणिय जाव परिवुडे सब्बिडीए जाब येणं सोहम्मस्स कप्पस्स मज्मणं तं दिव्यं देविडि जान उवदंसेमाणे उवदंसेमाणे जेणेव सोहम्मस्स उत्तरि णिज्जाणमग्गे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता जोयणसयसाहस्सिएहिं बिग्गहेहिं ओवयमाणे य वीतीवयमाणे य ताए उकिट्ठाए जाव देवगतीए बीतीवयमाणे २ तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झेणं जेणेव णंदीसरे दीवे जेणेव दाहिणपुरत्थि - [155] श्री ऋषभस्य जन्ममहः ॥१४३॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 निर्युक्ति: ११३ / १८६-१९० भाष्यं [१-३] अध्ययनं [-] मूलं [- /गाथा ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक उपोद्घात नियुक्ती ॥१४४॥ मिल्छे रतिकरगपत्थते तेणेव उवागच्छति, उपागच्छेत्ता तं दिव्यं देविडि जाव दिव्वं जाणविमाणं पडिसाहरमाणे पडिसाहरमाणे जेणेव जंबुद्दीवे जाव जेणेव भगवतो जम्मणभवणे तेणेव उपागच्छति, उवागच्छेत्ता तं भवणं तेणं दिव्वेणं विमाणेणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति, करेता तस्स उत्तरपुरत्थिमे जाव विमाणं ठवेति, ठवेत्ता अट्ठहिं अग्गमहिसीहिं एवं जहा वीरस्स निक्खमणे जाव रखेणं जेणेव भगवं तित्थकरे तित्थगरमातरं च तेणेव उपागच्छति, उपागच्छेत्ता आलोए चैव पण्णामं करेति, करेता सामि समातरं तिक्खुत्तो आग्राहिणपयाहिणं करेति २ वंदति वंदिता नम॑सति नमसित्ता एवं क्यासी- नमोत्थु ते रयणकुच्छिधारिए, एवं जहा दिसाकुमारीओ जाव बन्नओ सपुन्नासि तं कयत्थे, अहं णं देवाशुप्पिए! सक्के नाम देविदे भगवतो सामिस्स जम्मणमहिम करेस्सामि, तं तु मे न भाइयय्वंतिकट्टु ओसोयणि दलयति, दलयित्ता तित्थयरपडिरूवगं विउच्यति, विडब्बेत्ता तं भगवतो मातूए पासे ठावेति ठावेता पंचसक्के बिउब्वति, बिउब्वेता एगे सक्के आयंते चोक्खे परमबद्दभूए सरससुर भिगोसीसचंदणीवलित करजुगे कयप्पणाने अणुजाणंतु मं भगवं ! तिकट्टु भगवं वित्थगरं करतलपुडेहिं गण्हइ सहरिसं ससंभमं, एंगे सक्के पिडतो चल आतपन्तं गेण्डति बन्नओ उभयो पासि दुवे सक्का चामरुक्खेवं करेंति बन्नओ, एगे सक्के पुरतो बज्जं पाणीए कट्टति, तए णं से सक्के चउरासीतीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव अन्नेहि य बहूहिं देवेहि य देवीहि य ताए उक्किट्ठाए जाब वीतीयमाणे जेणेव मंदरे पव्वते जेणेव पंडगवणे मंदर चूलियाए दाहिणं अतिपंडकंबल सिलाए अभिसयसीहासणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छेत्ता सीहासणवरगते पुरस्थाभिमुहे सन्निसन्ने । तेणं कालेणं तेषं समतेणं ईसाणे देविंद देवराया सूलपाणी वस1. भवाहणे सुरिंदे उत्तरडलोगाहिबती अट्ठावीसविमाणवाससयसहस्साहियती अरयंचरवत्थधरे एवं जहा सक्के, इमं णाणतं महाघो [156] श्री ऋषभस्य जन्ममहः ॥ १४४॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGE दीप अनुक्रम सा घंटा लहुपरक्कमो पादचाणियाधिवती पुष्फओ विमाणकारी दक्षिणा णिज्जाणभूमी उत्तरपुरथिमिल्ला रतिकरपवतो मंदरे आवश्यक समोसरितो जाव पज्जुवासति । एवं अवसेसावि इंदा आणियब्वा जाय अच्चुओत्ति । इमं णाणत्तं-चउरासीतिमसीतीऋपभस्य चूर्णी बावत्तरि सत्तरी य सट्ठी या । पन्ना चत्तालीसा, तीसा वीसा दससहस्सा ॥१॥ एते सामाणियाणं ॥ यत्तीस जन्ममहः अट्टवीसा, पारस अट्ठेव चतुरो सयसहस्सा । पन्ना चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥२॥ आणयपा णयकप्पे, चत्तारि सया अच्चुते उ तिन्नि सता । एते विमाणा || इमे जाणविमाणकारी देवा, जहा-पालय ॥१४५॥ पुप्फय सोमणस, सिरिवच्छे य दियावत्ते । कामगते पीइगमे मणोरमे विमल सम्वतोभद ॥ | सोहम्मगाणं सणकुमारगाणं बंभलोयगाणं महामुक्कगाणं पाणयगाणं इंदाणं सुघोसा घंटा हरिणेगमसी पादत्ताणीयाहिवती उत्तरिल्ला णिज्जाणभूमी दाहिणपुरस्थिमिल्लो रतिकरगपब्वतो, ईसाणगाणं माहिदलंतकसहस्सारअच्चुआण इंदाणं महाघोसा घंटा लहुपरक्कमे पादत्ताणीयाहिवती दक्खिणिल्लिए णिज्जाणमग्गे उत्तरपुत्थिामल्ले रतिकरगपब्बते, परिसाओ णं जहा जीवाभिगमे ।। आयरक्खा समाणियचउग्गुणा सब्बेसि, जाब विमाणा सब्वेसि जोयणसयसहस्सविच्छिन्ना, उच्चत्तेणं सविमाणप्पमाणा, महिंद-10 ज्झया सव्वेसि जोयणसाहस्सिया, सक्कवज्जा मंदरे समोतरंति जाव पज्जुपासेंति । तेणं कालेणं तेण समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउ| सट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं तिचीसाए तायचीसएहिं चउहिं लोगपालेहि पंचहि अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं तिहिं परिसाहिं की ॥१४५॥ लि सहि अणीएहिं सत्चहि अणियाहिवतीहिं चरहिं चउसट्ठीहिं आयरक्खसाहस्सीहि णं अबेहि य जहा सक्के, णबरि इम णाण [157] Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री दुमो पादत्ताणीयाहिवती ओघस्सरा घंटा बिमाणं पन्नासं सहस्साई महिंदज्झतो पंच जोयणसयाई विमाणकारी आभितोगिओ का वश्यक देवो, अवसिट्ठ तं चेव, जाव मंदरे समोसरति पज्जुवासति ॥ तेणं कालेण तेण समएणं बली असुरिंदे एमेव, णवर सढि सामाणिय-12 ऋषभस्य जन्ममहा उपोद्घात He साहस्सीओ चउगुणा आतरक्खा महादुमो पादचाणियाधिवती महाओषस्सरा घंटा, सेस तं चव, परिसाओ जहा जीवाभिगमे। नियुक्ती तेणं कालेणे तेणं समएणं धरणे तहेव, णाणतं-छ सामाणियसाहस्सीओ छ अग्गमाहिसीओ चउगुणा आयरक्खा मेघस्सरा घंटा दरुद्दसेणो पादत्ताणीयाधिवती विम.णं पणुवीस जोयणसहस्साई महिंदज्झओ अड्डाइज्जाई जोयणसयाई, एवं असुरिंदवज्जियाणं ॥१४६॥ भवणवासीइंदाणं, णवर- असुराणं ओघस्सरा घंटा णागाण मेघस्सरा सुवन्नाणं हंसस्सरा विज्जूर्ण कोंचस्सरा अग्गीणं मंजुस्सरा ! 18 दिसाणं मंजुघोसा उदहीणं सुसरा दीवाणं मधुरस्सरा बाऊणं नंदिस्सरा थणियाणं नंदिघोसा 'चउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्सा उ4 असुरवज्जाणं । सामाणिया उ एए चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥ १॥ दाहिणिलाण पादत्ताणाधिवती रुहसेणो उत्तरिल्लाणं दक्खो॥ बाणमंतरजोइसिया णेयच्चा एवं चेब, णवरं चत्वारि सामाणियसाहस्सीओ चचारि अग्गमहितीओ सोलस आयरक्खसहस्सा, विमाणा सहस्स महिंदमया पणुवीस जोयणसयं, घंटा दाहिणार्ण मंजुस्सरा उत्तराण मंजुषोसा, पादत्ताणीयाहिबई विमाणकारी दिय आभियोगा देवा ।। जोइसियाणं सुस्सरा सुस्मरणिग्योसा घंटाओ, एवं पज्जुवासंति । तए णं से अच्नुए देविंदे देवराया महं देवाधिवे आभियोग्गे देवे सदावेति सद्दावेत्ता एवं बयासी- खिप्पामव भो महत्थं । महग्धं महरिहं विपुलं विस्थगराभिसेयं उबट्ठवेह, तएणं ते हतुट्ठ जाव पडिसुणता उत्तरपुरस्थिमं दिसिमागं अवस्कमेचा वेउचि-18 दीप अनुक्रम KAREECECECASES A ॥१४६॥ [158] Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत चूर्णी सुत्रांक यसमुग्याएणं जाव समोहनित्ता अट्ठसहस्सं सोवष्णियकलसाणं एवं रूप्पमयाण माणिमयाणं सुयनरूप्यमयाणं सुवनमणिमयाणं रूप्प-दी ऋषभस्य आवश्यकमणिमयाणं सुवनरूप्पमणिमयाणं अडसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं चंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं आदंसाण थालाणं पातीर्ण INEजन्मासुपतिढाणं रयणकरंडगाणं पुष्फचंगेरीणं, एवं जहा सूरियाभस्स सव्वचंगेरीओ सब्वपडलगाई क्सेिसियतराई भाणियब्बाई, उपोद्घात भिषेक नियुक्ती ४ है| सीहासणछत्तचामरतेल्लसमुग्गा जाच सरिसवसमुग्गता, तालियंटा जाच अट्ठसहस्सं कडुच्छुयाणं विउवित्ता साभाविए य वेडबिए यहै। कलसे य जाव कडुच्छुए य गेण्हेत्ता जेणेव खीरोदसमुद्दे तेणेव आगम्म खीगेदोदं गेहंति मेण्हेत्ता जाई तत्थ उप्पलाई पउभाई जाय। ॥१४॥ सहस्सपचाई ताई गेहंति, एवं पुक्खरोदाओ, जाच भारहेरखयाणं भागहाईणं तित्थाएं उदगं मट्टियं च गेहंति, एवं गंगादीणं महाणदीणं जाव चुल्लहिमवंताओ सब्वतुयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सबमल्ले जाव सम्बोसहीओ सिद्धथए य गोहंति, गेण्हेत्ता पउमद्दहाओ दहोदगं उप्पलादीणि य, एवं सबकुलपश्चएमु बट्टवेयड्डेसु सब्बमहदहेसु सब्बवाससु सब्बचकवाडिविजएसु बक्खारपब्बएस अंतरणदीसु विभासेज्जा जाव उत्तरकुरुसु जाव सुदंसणभद्दसालवणे सव्यतुबरे जाव सिद्धत्थए य गेहंति, एवं गंदणवणाओ सचतुयरे जाव सिद्धत्थर सरसं च गोसीसं चंदणं दिव्वं च सुमणदामं गेण्हंति, एवं सोमणसपंडगवणाओ य सब्बतुयरे। जाव सुमणदाम, दद्दरमलयसुगंधिए य गंधे गेहंति, एगंतओ मिलति मिलिचा जेणेव सामी तेणेव उवागच्छति उवागच्छेत्ता तं महत्थं जाब तित्थगराभिसेय उवट्ठावेंति ॥ X ॥१४७॥ तए णं से अच्नुयदेविंदे सद्धिं सामाणियसाहस्सीहि तावनीसाए तायत्तीसरहिं चउहि लोगपालेहिं तिहिं परिसाहि सत्तहिं अणि-12 एहि सत्चहि अणिवाहिवइंहिं चचालीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीहिं सद्धि संपरिबुडे जाव तेहिं साभाविएहि य बेउबिएहि य वर-14 दीप अनुक्रम SNESSISEASES [159] Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणों सत्रा दीप अनुक्रम कमलपतिट्ठाणेहिं सुरभिवरवारिपुग्नेहिं चंदणकयचच्चाएहिं आविद्धकंटेगुणेहिं पउमुप्पलप्पिहाणेहिं करतलनमालपरिग्गहितेहिं अट्ठ-11 आवश्यक सहस्सेहि सोवनियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सिएणं भोमेज्जाणं जाव सब्बोदएहिं सव्वमाडियाहिं सब्बतुयरेहिं जाव सम्बोसहि सिद्धत्थरहिं सब्बिड्डीए जाव खेणं महता महता तित्थकराभिसेगेणं अभिसिंचति । तए णं सामिस्स महता महता अभिसेगसि चेव । उपोद्घाता थाहाबढमाणसि सब्बे इंदा छत्तचामरकलसधूवकडच्छुयपुप्फगंधजाब हत्थगया हत्थतुट्ठ जाब पुरतो चिट्ठति बज्जमूलपाणी, अन्नेवि भिषेक यण देवा य देवीओ य चंदणकलसहत्थगया एवं भिंगार जहा बदमाणसामिस्स निक्खमणे जाव पंजलिकडत्ति । एवं अप्पे॥१४८॥ गतिया देवा आसितसंमज्जियोवलितं करेंति जहा विजयस्स जाव गंधवट्टिभूयं करेंति, अप्पे० हिरनवासं वासेंति, एवं सुवन्नरयणव-12 ४ इरआभरणपत्तपुप्फफलबीयमल्लगंधवनजाव चुन्नव्वासंति । अप्पे०हिरबाविधि माएंति, एवं जाव चुन्नविधि भाएंति, अप्पे०चउविह वज्ज वाएंति ततं विततं घणं झुसिरं । अप्पे० चउम्बिहं पगायंति, तंजहा-उक्खित्तं पयत्नं मंदं चोइंदगं, अप्पे चउब्बिह गई णच्चेंति, जहा-अंचितं दुतं आरमडं भसोलंति, अप्पे०चउविहं अभिणयं अभिणति, तंजहा-दिट्ठतियं पाडियंतियं सामंतोवाइयं लोगमज्झव-12 सिय, अप्पे बनीसइविहं दिव्वं नट्टविधि उबदसंति, अप्पे उप्पयणिययपव्वयं संकुचितपसारित । जाब भन्तं णामं दिव्वं गट्ट* विहिं उबदंसेंति, अप्पे० पी0ति एवं वक्खारेति तंडति लाउँति अप्फोडेंति वग्गति सीहणादं गर्दति, अप्पे० सब्वाई करेंति, अप्पे० यहसिय, एवं हत्थिगुलगुलाइत रहघणघणाइतं, अप्पे० तिन्निवि, अप्पे अच्छोलेंति अप्पे० पच्छोलेंति एवं तवंति अच्छिलादंति पाददहरं करेंति भूमिचवेड दलयंति, अप्पे० महता महता सद्देणं राति, एवं संजोगावि विभासियच्या, अप्पे० हफारेंति एवं ॥१४८॥ पुकात बकारेंति ओवयंति उप्पयंति परिप्पवन्ति जलंति तवंति गज्जति विज्जयंति वासंति देवुकलियं करेंति एवं देवकुहुकु-17 [160] Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री श्री प्रत सत्राक ॥१४९॥ हुगं देवहुहुहुगं करेंति अप्पे० विकितभूतादिरूवाई विउधित्ता पणञ्चन्ति, एवमादि विभासेज्जा जहा विजयस्स जाव सब्बतो मापनस्य समंता आहावेंति परिधावति । आवश्यक तएप से अच्चंदे सपरिवारे सामि तेण महता महता अभिसेगणं अभिसिंचति, अभिसिंचिता करतलपरिग्गहित जावजन्मा राभिषेक उपद्घिात मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धावेति, वद्धावेत्ता ताहिं इट्ठाहिं जाच जयजयसई पउंजति, पउंजित्ता पम्हलमालाए सुरनियुक्ती भाए गंधकासाईए माताई लूहेति, एवं जहा बद्धमाणसामिस्स णिश्वमणे जाव णट्टविहि उवदंसेति, उवदंसेचा अच्छेहि सण्हेहि रयतामएहिं अच्छरसातंदुलेहिं भगवतो सामिस्स पुरतो अट्ठमंगलगे आलिहति, तं० दप्पण भद्दासण वद्धमाण बरकलस मच्छIVIसिविच्छा । सोत्थिय पदावत्तं लिहिता अट्ठट्ठमंगलगा ॥१॥ काऊण करति उवयारं, किं ते, पाडलमल्लियचंपगअसागपुभाग-1 चूयमजरिणवमालियबउलतिलयकणवीरकुंदकुज्जककोरंटदमणकवरसुरभिसुगंधिकस्स कयग्गहगहियकरतलपब्भट्ठविप्पमुकस्स दस वनस्स कुसुमसंचतस्स तत्थ चित्तं जंणुस्सहप्पमाणमे ओहनिकर करेत्ता चंदप्पभरयणवइरवेरुलियविमलदंड कंचणमणिरयणभाचचित्रं कालागरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवगंधुत्तमाशुविद्धं च धूमवदि विणिम्मुयंत वेरुलियमयं कहुच्छुयं परमहेतुं पयते धूवं दाऊण जिणवरिंदस्स सत्तट्ठपयाई ओसरिता दसंगुलिं अंजलि करिव मत्थगंमि पयतो अढसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं महावितेहिं अपुणरुत्तेहिं अत्यजुत्तेहिं संधुणति, संथुणिचा वाम जाणु अचेति अंचेचा जाव करतलपरिग्गहितं मत्थए अंजलि कटु एवं क्यासी णमो त्यूते सिद्ध बुद्ध निरय समाहित समण संमत्तसमणजोगि सल्लगवण नीभप नीरागदोस निम्मम निस्सम नीस माण-मार४१॥ मूरण गुपरयण सीलसागर मणंत्रमप्पमेय भविय धम्मवरचाउरंतचकवड्डी णमोऽत्थु ते अरहवोत्तिकटु वंदति नमंसति, नमसइचा % 4 दीप अनुक्रम * [161] Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | FAL आवश्यका प्रत चूणों उपोद्घात HEI65 नियुक्ती ११५०॥ | पच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे जाव पज्जुवासति, एवं जस्स जो परिवारो तमुच्चारेन्ति तमुच्चारेत्ता जहा अच्चुतो तहा पाणतादी-BI | यावि देवेंदा परिवाडीए भाणियच्या जाव भवणवतिवाणमंतरजोइसिंदा पत्तेयं पत्तेयं अभिसिंचंति सूरपज्जवसाणे, सकवज्जा, गब-ल |रं ते दिघ्बकलसा ते चव कलसे अणुपविट्ठा इति । तए णं से ईसाणे देविंदे पंच ईसाणे विउव्वइ, एगे तहेब जाव तित्थगरं गहाय RI जन्मा| सीहासणंसि णिसन्ने जाव एगे पूरतो मूलपाणी चिट्ठति, तए णं से सके देविंदे० आभियोगे आणवेति, खिप्पामेव भो ! महत्थं &ाभिषेक तहेब जाव उवट्ठति, तए मं से सके तित्थगरस्स चउद्दिसिं चत्तारि धबलवसमे विउव्वति, सेते संखदलसनिकासे जाव दरिस- णिज्जे, तए ण तेसि चउर्ह बसभाणं अट्ठसु सिंगग्गेसु अट्ठ तोयधाराओ णिग्गच्छति, तए णं ताओ उई वेहास उप्पयंति, उप्प-12 | बित्ता एगतो मेलायति २ सामिस्स मुद्धाणसि निवातंति, तए णं से सक सपरिवारे सामि जहेव अच्चुते तहेब साभावितेहिं जाप | पज्जुवासति । णवरं ते च्चव अणुप्पविट्ठा इति । तए ण से सके सामि वंदति नमंसित्ता तहेत्र पंच सके विउब्बति जाब वज्जपाणी पकति । तए ण चउरासीतीए सामाणिय जाव रखेण ताए उक्किट्ठाए जेणेव सामिस्स माया तेणेव उवागच्छति, उबाग-1 |च्छित्वा तित्थगरपडिरूवगं साहरति साहरेचा सामि माऊए पासे ठावति, ओसोवणिं पडिसाहरति, एग महं खोमजुगलं | कुंडलजुयलं च सामिस्स उस्सीसगमूलसि ठवेति, ठवेत्ता एग मह सिरिदामगड तवणिज्जलंबसगं सुवनपतरगमंडित णाणामणिविविहरयणहारहारसोभितसमुदयं सामिस्स उल्लायसि णिक्विवति,जन सामी देहमाणे सुई सुहेण अभिरममाणे २ चिट्ठति ।।। तए णं से सके वेसमणं आणवेति, खिप्पामेव भो! बत्तीस हिरनकोडिओ बचास सुबन्नकांडीओ बचीस नंदाई बीसं भद्दाई १५०| सुभग्गसाभग्गरूवजावणगुणलावन्नं च भगवतो मामिस्स जम्मणभवणंसि साहराहि, सेवि भगदेवेहि साहरावेत्ता जाय पञ्चप्पिणति। दीप अनुक्रम [162] Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री प्रत सत्राक दीप अनुक्रम हातए णं से सके अभिोगिए सहावेता एवं पयासी-खिप्पामेव भी महता महता सद्देणं उग्धोसेमाणा उग्धोसमाणा एवं वयह-हंदिशस्थापन आवश्यक सुणतु भवंतो बहवे भवणवतिवाणमंतरजोतिसबेमाणिया देवा य दबाजाय जे णं देवाणुप्पिया! के भगवतो तिथगरस्स वा तित्थगरमाऊए वा असुभ मणं संपहारेति तस्स णं अज्जगमंजरिकाविव सतहा मुद्धाणं फुट्टउत्तिकटु घोसणं घोसह घोसिला जाव नियुक्ती है पञ्चप्पिणह । तेवि तहेव करिता जाव पच्चप्पिणंति । तते णं ते बहवे भवणवति जाय वेमाणिया दवो भगवं तित्थगरं तित्थगरजम्माभिसेगेणं अभिसिंचित्ता जेणेव नंदीसरवरदीये ॥१५१॥ तेणेव उवागच्छति, तए ण से सके देविंदे पुरथिमिल्ले अंजणगपब्बते अबाहिय महामहिम करेति, तए ण सकस्स चचारि लोगापाला चउसु दहिमुहगपव्वतेसु अट्टाहियाओ महामाहिमाओ करिति, एवं ईसाणे देविंदे उत्तरिल्ले अंजणगपवते, तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहपब्बतेसु, चमरो य दाहिणिल्ले अंजणगपब्बते, तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहपन्यतेसु, बली पच्चस्थिमिल्ले अंजणगपब्बए, तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहपथ्यतेसु, तएणं ते बहवे भवण जाच महिमाओ करता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव पडिगयत्ति, एवं जहा जम्बूदीवपन्नत्तीए, अहवा 'जम्मणमहो य सब्बो जह भणिओ मालिणायंमि।।' ऊरूसु उसभलंछण उसभो PIसुमिणमि तेण कारणेण उसभोति णामं कर्य । एवं सो उसभो उप्पो ॥ ना एयस्स गिहावासे असफतो आसि आहारो । किं च-सब्वे तित्थगरा बालभावे जदा तण्हातिया छुहातिया वा भवति तदा ॥१५१॥ अप्पणो अंगुलियं वयणे पक्षिवंति, तत्थ देवा सब्वभक्खे परिणामयंति, एस बालभावे आहारो सन्चेसिं, ण ते थणं धापति, PRESOSEKAR E [163] Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सनाक CA-%-LRMA पच्छा सिद्धमेव भुजति महतोभूता, उसमस्स पुण सव्वकालं देवावणीतयाई उत्तरकुरुफलाई जाव पव्वतितो। किंच-तिस्थगरमायरो श्री दिलीणगब्भातो भवंति, जायमाणेसु य जररुाहेरकलमलादीणि न भवतित्ति । Mऋषभस्य उपोद्घाता विवाहः पा नियुक्ती जाहे देसूर्ण वासं जायस्स तित्थगरस्स ताहे सकस्स इच्छा जाया-जीतमेत तीतपटुप्पण्णमणागयाणं सकाणं देविंदाणं पढम-1 तित्थगराणं बंसट्ठवणं करेत्तएत्तिकटु जाव आगतो, पच्छा किह रिकहत्यओ पविसामिति, इतो य णाभिकुलगरो उसभसामिणो ॥१५२॥टा अंकबरगवेणं एवं च विहरति, सको य महप्पमाणाओ इक्षुलट्ठीओ गहाय उपगतो जयायेद, भगवता लट्ठीसु दिट्ठी पाडिता, ताहे | सकेण भणियं-किं भगवं! इक्खु अकु ! अकु भक्खणे, ताहे सामिणा पसत्थो लक्खणधरो अलंकितविभूसितो दाहिणहत्थो | पसारितो, अतीव तंमि हरिसो जातो भगवंतस्स, तएणं सकस्स देविंदस्स अयमेयारूचे अज्झस्थिते-जम्हा णं तित्थगरो इक्यु अभि-18 लसति तम्हा इक्खागुबंसो भवतु, एवं सको वंसं ठवेऊण गतो, अनेऽबि तकाल खत्तिया इक्खु मुंजति तेण इक्खागवंसा जाता इति । उपरि आहारहारे निरुचमि 'आसीत इक्खुभोदी इक्खागा तेण वत्तिया होति'त्ति भन्निही, पुरमा य भगवतो इक्खुरसं R पिचिताइता तेण गोनं कासवंति, इक्षवश्च तदा पानीयवल्लीवद्रसं गलति, छिन्ना बद्धा वा ।। इतो य भगवं सुमंगलाए भगिणीए सद्धिं मुहंसुहेण विहरति संवदृति य, तेण कालेणं तेण समएणं एगस्स मिहुणस्स मिथु- णगं जायमेत्तगं, ताणि तं मिथुणगं तलरुकखहट्ठा ठवंऊण अभिरमति कयलीघरगाईसु, तता य नलरुक्खाओ तलफलं पकं समाण 31 दवातेण आहतं तस्स दारगस्स उवरि पडितं, तेण सो अकाल चेव जीवितातो ववरोपितो, ताहे तं मिधुणगं तं एकलियं दारिय कंचि H ॥१५२॥ कालं संवड्ढेऊण पयणुपेम्मरागेण तं उज्झित्ता गताणि, सा य अतीय उकिदुसरीग देवकण्णाविव तेमु णं वर्णतरेसु जह वणदेवता दीप अनुक्रम अथ भगवंत ऋषभस्य विवाह एवं अपत्य-वर्णनं कथयते [164] Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [११८/१९१-१९५], भाष्यं [१-३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम तहा वियरति, तं च एक्कलिय दटु केति पुरिसा नाभिस्स साहति, ताहे नाभी तं दारियं गहाय भात-उसभस्स भारिया अपत्याभिआवश्यक भविस्सतित्ति, सयमेव संगोवेगाणो विहरति, ताहे सामी नाहि दोहिं दारियाहि समं यति । एवं ता जम्मणं नामंति गतं । काकादीनि चूणा इयाणि अभिवडित्ति दारं। सो बद्दति भगवं तो दियलोयबुत्तो अगोवमसिरीओ। देवीदेवपरिवुडी, सुहं सुहेण उपोद्घात अभिवडति (नंदाइ समंगलासहिओ वृ.)॥२॥११८।। सो य पुण भगवं पुब्बजातिस्सरो तिणाणोवगतो उम्मुक्कबालभावो | भिमजोव्वणो जातो । विवाहेत्ति दारं॥१५॥ तए णं सफरस अयमेयारूब अब्भत्थिते-जीतमेतं तीतपटुप्पण्णमणागयाण सकाणं पढ़मतित्थगराणं विवाहमाहिमं करतएरात्ति कटु एवं संपेहेति, संपेहेता आगतो सिग्धमेव महता राि सकारसमुदएणं, ताहे सको उसमभगवतो सयमेव वरकम्मं करेति, 18 तंजहा-पमक्खणगण्हाणगीतवातिय अविधवं एवं बरकम्मं करति, तासि पुण दारियाणं सक्कग्गमाहसीओ महता रिद्धिसकारसमुदएणं, विवाह काऊण जामेव दिसं पाउम्भूता तामेव दिसं पडिगताणि । अवञ्चत्ति दारं छप्पुब्वसयसहस्सा ॥२॥ १२३ ।। तए ण सुमंगलाए वाहू य पीढोय अणुत्तरहितो चइऊणं मिहुणयं जातं, भरहो बंभी य, | सुर्णदाए सुबाहू य महापीढो य पच्चायाता, ते पुण बाहुबली य सुंदरी य, तते णं सा सुमंगलादेवी अगाणि एगूणपषं पुचजुयल-1 गाणि पसवति, तेवि ताव कुमारा एवं संबङ्गति । आभसंगोत दारं-ते य मणुया तं दंडणीति अतिक्कमंति, भगवं च पुष्यजातिस्सरं अम्भाहियं च पाऊणं विचाणणं तं ॥१५॥ उवट्ठायंति, जा सा दंडणीती तं इमे पेल्लेंति, तं इयाणि किं कीरउ ?, ताहे भगवं पनवेति जहा राया भवति, ते पुच्छंति- केरिसो ARRESEARCH [165] Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२३/१९६-२०२], भाष्यं [४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 अमेरुत्पादा चुणों प्रत सुत्रांक Mराया ?, सामी साहति-जहा जो राया भवति तस्स कुमारामच्चा दंडा आरक्खिया य भवंति, ताहे तस्स उग्गा दंडणीती भवति, त आवश्यकच ताहे लोगा | वोलेंति, तो सो किह भवति, , सो रायाभिसेगेणं अमिसिच्चति, ताहे तेहिं भणित-तुम्भे होह रायाणोत्ति, ८ II तण भणियं-णाभि जायह, ते गंतुं णानि जायंति, तेण भणितं- अह महल्लो, गच्छह तुम्भे उसमें रायाण उबेह, एवं होउत्ति गता उपोद्घातला नियुक्ती चावासापोमसरं, पोमिणीपत्तेहि पाणियं गेहति जाव आणन्ति य, सक्कस्स आसणचलणं, ताहे सचिड्डीए सको सलोगपालो आगतो, रायाभिसेगेणं अभिसिंचति, जतिओ य रायारिहो अलंकारो सो सम्बो उवणीतो, एवं भगवं रायाभिसेगेण अमिीसत्तो, अथ ते य ॥१५॥ पुरिसा आगता पेच्छति भगवं रायाभिसेंगण अभिसित्तं सवालंकारविभूसितं, ताहे परितोसवियसियमुहा जाणति- किह अम्हे अलंकितविभूसियस्स उवरि पाणिय छुभामो ?, तम्हा पाएमु छुभामोत्ति, ताहे तेहिं पाएमु पाणियं इद, ताहे सक्को देवराया चिंतति- अहो इमे विणीता मणुस्सा, तम्हा एत्थ विणीता चेव णगरी भवतुत्ति, तते ण से सक्के देवराया चेसमणं महारायं आणवेति-खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया!बारसजोयणदीई णवजोयणविच्छि जहा वीतसोगा रायहाणी, रज्जसंग्गहेत्ति दारं ।। एवं तस्स अभिसिचस्स चउव्यिहो रायसंगहो भवति, तंजहा-उग्गा भोगा राइना खत्तिया, उग्गा जे आरक्खियपुरिसा तेसिं उग्गा दिंडणीती ते उग्गा, भोगा णाम जे पितित्थाणिया सामिस्स, राइमा नाम जे सामिस्स समन्वया, अपसेसा खत्तिता ।।दारं । इयार्णि विविहाए लोगद्वितीए णिबंधणं दरिसिज्जति आहारे जाव० ॥ २ ॥१३१॥ आसि य कंदाहारा ॥२॥ १३५ ।। तेसिं पढमं कंदादी आहारो आसि, पच्छा तेण ण काजीरंतेण ते उसमें उबढायंति, जहा अम्हण जीरति, ताहे उसमसामी भणति- जहा तुम्मे हत्थेहि मल्लत्ता तयं अत्रणेत्ता ताहे दीप अनुक्रम ॥१५४॥ ASIA [166] Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१३१/२०३-२०६], भाष्यं [४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक चूर्णी दीप अनुक्रम आहारह, एवं ते पाणिधंसी आसी, तहवि ण जीरितुं पचत्तं कढिणतणणं आसहीणं, ताहे भणेति- घंसित्ता तिम्मत्ता खाह, तहवि शिल्पकर्मआवश्यकन जीरति, ताहे सत्ता तिम्मेत्ता पचालपुडेसु मुहुर्त धारेह, तहवि ण जीरति, ताहे घसेता तिम्मत्ता पवालपुढेसु महत्तग धरता, लेखादीनि तओ पुणो हत्थपुडसि महत्तग धरेचा खाह, जाहे तहवि ण जीरति, वाहे कक्खतरेसु उण्हवेता पच्छा आहारैति, कीसकारणेण उपोद्घाता नियुक्तो HIRIअग्गिण उपाएति', सामी जाणति-जदा एगंतणिद्धो कालो भवति तदा अग्गीण उद्वेति, पतरुक्षणचि, जदा मादाणि लुक्यो भवति तदा अग्गी उद्वेति, नेण मामी अग्गि ण उहापेति । अहवा इमं निरु इक्वागसस्स॥१५५॥ आसीय इकरवुभोती इखागा तेण खत्तिया होति । सणसत्तरसं घनं आमं ओमं च भुजीया ॥२॥१३६ ।। ओम णाम थोचे । ताहे- आसी पाणीघंसी ॥ २ ॥ १३८ ।। एवं च णाम ते कक्वंतरसु छोदण आहारैति । इत्तो य कालसभावेण रुक्खसंघसण अग्गी उट्ठाइतो, ताहे सो अग्गी भूमि पत्ती, जाणि तत्थ सुक्कपत्तकयवराणि ताणि दहितुमारद्धो, ते मणुसा ते दळूण अन्भुतयं ततोहुचा पधाइता ताहं गण्हामोत्ति इमाणि रयणाणि, गेण्डितुमारद्धा जाब डाति ताहे ओसरंति, दासाहे भीता समाणा उसमसामिस्स साहति, ताहे उसभी भणनि-पासेसु विलग्गिऊर्ण मंडलिं परिपेरंतेसु छिदह, ताहं हत्थीहिद य आसेहि य तं सब्ब तर्ण मलितं, ताहे सो उबसंतो अग्गी, ताहे सो अग्गी गेहावितो, ताहे भणिया- पाकं करेह, ते ण जाणंति किह पाको कीरति ?, ते अग्गिमि छुभंति, सो अग्गी तं उहति, ते पुणो उवहिता, तमि जे छुम्भति तं जरग्गतो जहा खाति,15॥१५॥ भगवं भणति मत्तियं आणेह, भगवं हत्थिखंधे चडितओ णीति, तेहि य चिक्खाल्लो उवणीता, ताहे सामिणा हत्थिस्स कुंभए [167] Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२३/२०६-२०९], भाष्यं [५-३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत ॥१५६॥ 11 काऊण दरिसित पत्तय, भणिता एयारिसयाणि काऊण एत्यं चेव पयह, पच्छा कुसलेहि कालेण सुंदरतरगाणि कयाणि, पच्छा 13/लेखादीनि आवश्यक पाऊण अग्गिमि तहिं पागं करे कति । एवं ता पदम कुंभकारा उत्पन्ना, एवं ता आहारो गतो॥ चूर्णी उपोद्घात - इयाणि सिप्पाणि उप्पाएयवाणि, तत्थ पच्छा बत्थरुक्खा परिहीणा, ताहेऽणंतिका उप्पाइया, पच्छा गेहागारा परिहीणा, नियुक्तो ताहे बड्डती उप्पाइता, पच्छा रोमणखाणि बढति ताहे कम्मकरा उप्पाइता हाविया य, एताई च पंच मूलसिप्पाणि-कुंभकारा | पूचित्तगारा गंतिका कम्मगारा कासवगति । एकेकस्सवि वीस भेया, एवं सिप्पसर्य, एवं ता सिप्पाण उप्पत्ती । इयाणि कम्माणि-तणहारगादीणि, आचार्यकं सिल्पमनाचार्यकं कर्म, ताहे जे रिद्विता मणुस्सा ते विणीयतासमीपत्थे मणुसे. भणंति-ओ' कुसलत्ति, तेण कोसला. कालदोसेण ममचिभावे जाते मामणा, मामणाणाम ममता, मम आसमो वर्ण काननानि, एस | मामणा । विभूसणा णाम जे चव सामी विभूसिज्जंतो दिडो तप्पभिति लोगो आढचो विभूसेउ । लेहत्तिदार-बभीय दाहिणहत्थण लेहो दाइतो, सुंदरीय बामहत्थेण गाणत, भरहस्स चित्तकम्मं उपदिट्ठ, बाहुबलिस्स & लक्षणं थीपुरिसमादणं माण ओमाणं पडिमाणं, एवं तदा पवत्तं । पतिए णाम जै मणिपादओ पोइज्जति, पहणाणि वा तदा उप्पनाणि । अबलवितुमार सु बबहारो तप्पभिति चव आढत्तो। णीतीओ उसभसामिम्मि चेव उप्पनाओ। निउद्घाणि इस्सत्थाणि हाय । ओवासणा णाम कम्मं जे कायव्यं तं तदा आढचाणि वडिउ रोमाणि, पढम ण ववित्था, अहवा उवासणा जं सेवेति इस्सरं ॥१५॥ वा, चिगिच्छावि तदा आढना, पढौ रांगा ण होसु, अत्थसत्था कोडिल्लयमादी तदा उप्पना, बंधे पाते य मारणा, पतं अत्थातो RE दीप अनुक्रम ६ - * ५ [168] Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाष्यं [५-३० ] अध्ययनं [-], मूलं [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चू उपोद्घात निर्युक्त भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [१२३/२०६-२२३] ॥१५७॥ देव जातं, जहा बंध, जनगा णागजण्णकादी, उत्सवा इंदमहाइया, समवादी दोघं तिष्टं जगाणं, मंगलाणि पुव्यं भट्टारगस्स देवेहिं कयाणि, कोउयाणि भूइकम्माणि रक्खा य बद्धा, पूव्वं अलंकारो भट्टारगस्स देवेहिं कतो, लोगोऽवि ताए चैव अणुवित्तीय आढतो, वत्थगंधमलअलंकाराणि तदप्यभिति परिभोगोवभागाणि उपणयणा, पुव्यं स कप्पड़े साधणं उवणिज्जंती, विवाहो य भगवतो पढमं तदप्पभिडं दिनं परिणति, दत्ती जदा सामी पवतो तदा पवचा भिषाया, यडगपूरणाम देवाय पढमं पढमसिद्वतिकाऊ देवेहिं कथा, झामणा सामिस्स पढन सरीरं झामितं देवेहिं प्रभाषि तदा चब उपपन्ना, सपा क | देवेहि आनंदसुपाती कतो, छेलावणयं छेलणं णाम उकट्टीहसितादि, चेंडस्वाण यछेला पृच्छा, इंखिणियाओं घंटियाओ, कन्नेसु किणकिणावेंति जक्खा साहंति, पुच्छणा किं कीरतु ? मावा कीरतु ?, अहया पुच्छणा सुहसातयादीणि इच्चेवमादिपाये । एवं ता जणपदपरूवणा गता || पढमं सामी संवोहितो, परिच्चाओ-पढमं सामिस्स नेच्छरियो दायो जं च परिचमं पच्चतितो, एतागि सव्वाणि तदा उत्पन्नाणि, पत्तेये नाम को नित्यय पत्तेयं पव्वतो ? को दा कीस परिवारों ? एगो भगवं वीरो पासो० ।। ३-४ ॥ उग्गा भोगाणं ।। ३५ ।। उवहिति दारं-सन्येऽवि एग सेण निग्गया० ॥ ३७ ॥ तित्थगरा तित्थगरलिंगेणं पव्वइया, जं साधूण लिंग तं तेसि अन्नलिंगं भवति, गिहिलिंग गिहत्थाणं, तंपि ण होइ, कुलिंग णाम कुत्सितं लिंग कुलिंगं, जं तावसपरिव्वायगादीणं, ताप ण भवति, गामधम्मा सेविता ण वा सेविता ?, गामणगरादी वा तदा चैत्र उप्पन्ना अहवा जे उवसग्गा ते तदा उप्पन्ना, परीसहा कस्स आसी णासी वा ?, सम्वेऽवि तित्थगरा [169] संबोधनादि | ॥ १५७॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४/२२४-२६४], भाष्यं [५-३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणी सत्राक श्री जीवादिणवपयत्थे उवलभिऊण पब्बइता, सुतलंभे उसमसामी पुब्बभवे चाहसपुच्ची, अवसेसा एकारसंगी, पच्चक्याणं पुरिमप-18जिनपरीआवश्यक च्छिमाण पंचजाम, अवसेसाणं चाउज्जाम, संजमो पुरिमचरिमाणं दुविहो-इत्तिरिय च सामाइयं छेदोवडावणियं च, मजिझम बारः |गाण सामाइयं आवकहिय, सत्तरसंगो य सव्येसि, अन्ने संजमो इति सव्वे तित्थगरा सामाझ्यसंजमे पब्बइता । को वा केच्चिरं कालं 18 छउमत्थो ? केण चा को तवो अणुचित्रो ? कस्स वा काए बेलाए णाण उप्प? - हा तेवीसाए तिस्थगराण सूरुग्गमणमुहुने एगराइयाते पडिमाए णाण उप्पन, वीरस्स पाईणिगामिणीए जहा दसाए तहा, ॥१५८अ भणति-बावीसाए पुब्बण्हे मल्लिची राणं अवरहे, कास केवतिओ सीससंगहो ?, भाइ-उसमस्स ण अरहओ कोसलियस्स | उसमसेणपामोक्खाओ चउरासीति समणसाइस्सीओ उकोसिया समणसंपदा होत्था, भिसुंदरिपामोक्खाणं अज्जियाण तिथि सयसाहस्सीओ उकोसिया अज्जियासंपदा होत्था, सेज्जसपामाक्खाणं समणोवासगाणं तिमि सयसाहस्सीओ पंचासयसहस्सा | उकोसिया समणोवासगसंपदा होत्था, सुभद्दापामोक्खाणं समणोवासियाण पंच सयसाहस्सीओ चउप्पलं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियासंपदा होत्था, चचारि सहस्सा सच सया पन्नासा चोद्दसपुग्धीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं उकोसिया चोदसपुब्बि| संपया होत्या, बाब सहस्सा ओहिंभाणीणं उकोसिया०, वीससहस्सा केवलणाणीणं उक्कोसिया०, वीससहस्सा छच्च सया वेउब्धियाणं उकोसिया, बारस सहस्सा छच सया पन्नासा विपुलमतीणं अट्ठाइज्जेसु दीवसमुदसु सभीणं पंचेंदियाण पज्जतगाणं मणोगत भावे जाणमाणाणं पासमाणाणं उक्कोसिया विपुलमतिसंपया होत्या. बारस सहस्सा छच्च सया वादीण पभासा उकासिया०, बावीस & सहस्सा णव य सया अणुसरोववातियाणं गतिकल्लाणाणं जाव आगमेसिभदाण उकोसिया०, उसमस्स ण वीसं समणसहस्सा सिद्धा, REMETERS दीप अनुक्रम 44 [170] Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४/२२४-२६४], भाष्यं [५-३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत कारः सत्राक दीप अनुक्रम श्री चचालीसं अज्जियासहस्सा सिद्धा, सट्टि अंतेयासिंसहस्सा सिद्धा. एवं बहा पढमाणुओगे जाव अरहतो ण अरिडनेमिस्स बर- जिनपरीआवश्यकीदत्तपामोक्खाओ अद्वारस समणसाहस्सीओ, जक्खिणिपामोक्खाओ चत्तालीसं अज्जासाहस्सीओ.गंदप्पामक्खिाणं समणोवासगाणं। पेरें । हएगा सयसाहस्सी अउणचरिं च सहस्सा उकोसिया०, महासुब्बयपामोक्खाणं समणोवासियाणं तिमि सयसाहस्सीओ छत्तीस च उपाघातात सहस्सा, चत्तारि सया चोदसपुव्वीणं, पारस सता आहीनाणीण, पन्नरस समा केबलनाणीण, पसरस सता वेउब्बियाण, दस नियुक्तो सता विपुलमतीण, अट्ठसया यादीणं, सोलस सया अणुत्तरोववादियाणं । पासस्स णं अरहतो पुरिसादार्णायस्स अज्जदिनपामो-12 ॥१५९॥ क्खाओ मोलस समणसाहस्सीओ, पुष्फचूलापामोक्खाओ अट्ठत्तीस अज्जियासाहस्सीओ, सुणंदापामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा| सयसाहस्सी चउसति च सहस्सा, गीदणिपामोक्खाण समणोवासियाण तिथि सयसाइस्सीओ सत्ताबीसं च सहस्सा उकोसिया, | अद्भुट्ठसया चोहसपुष्पीण, चोदस सया ओहिमाणीण, दस सया केवलनाणीणं, एकारस सया घेउधियाणं, अट्ठमा सता विपुल-18 मतीणं, छस्सया वादीण पारस सया अणुत्तरोववाइयाणं । समणस्सणं भगवतो महावीरस्स इंदभूतिपामोक्खाओ चोइससमणसाहस्साओ, अज्जचंदणापामोक्खाओ छत्तीस अज्जियासाहस्सीओ, संखसतगपामोक्खाणं समणोबासगाणं एगा सयसाहस्सा अउणट्टि च सहस्सासुलसारेवतिषामोक्खाणं समणोवासियाणं तिनि सयसाहस्सीओ अट्ठारस य सहस्सा तिमिसया चोइसपुब्बीणं अजिणाणं जिण संकासाणं सव्यक्खरसभिवादीण जिणोविच अवितहं वागरमाणाणं उकोसिया चोदसपुब्बिसपया होत्था, तेरस सया ओहिनाणीण 15 अतिससप्पत्ताणं उस्कोसिया०, सच सया केवलनाणीण संमिन्नवरणाणदसणधराण उक्कासिया, सत्त सया वेउन्धीण अदेवाणं देविडिपचाणं उफ्कोसिया०, पंच सया विउलमताणं अट्ठाइज्जेमु दीपसमुहसु सत्रीण पज्जयाण पंचिदिगाणं मणोगते भाचे जाणंति E [171] Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [१६५/२६५-३१६], भाज्यं [१-३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत चूणों सत्रा नियुक्ता दीप अनुक्रम पासंति उक्कोसिया०, चचारि सया वादीणं सादेवमणुयामुराए परिसाए वादे अपराजिताणं उक्कोसिया०, अट्ठ सया अणुत्तरो- श्रीऋपभआवश्यक वाइयाणं गतिकल्लाणाणं ठितीकल्लाणाणं आगमोसभहाणं उक्कासिया अणुत्तरोववातियाण संपवा होत्था ॥ चरित्रं तित्थं गणो० ॥२ ॥ १६५ ।। तित्थं चाउच्यत्रो संघो, गणा जस्स जत्तिया गणहरा य, धम्भोवातो पबयणं, उपायात परियाओं गिहत्यच्छउमत्थकेयलिपरियाओ जस्स जत्तिओ, अंतकिरिया केण कहिं काए बेलाए कस्स व केण तवोकम्मेणं अंत-131 कडा केवति परिवाराए, एतं सर्थ गाहाहि जहा पढमाणुयोगे तहेब इहपि वनिजात विस्थरता । एत्थ पढमतित्थगरस्स निक्ख॥१६०॥ मणं बयब्वं, ते गाहाहिं भणितं. तहवि विभासाइ इच्छावति से य उसमे कोसलिए पढमराया पढमभिक्पायरे पढमजिणे पढमतित्थयरे, दक्वे दकखपाइन्ने पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीते वीसं पुब्यसयसहस्साई कुमारवासमझे वसति, तबदि पुब्बलयसहस्साई रज्जवासमझे बसइ तेव्वसमाणो लेहादीयाओ गणितप्पहाणाओ,टी सउणरुयपज्जयसाणाओ वावतार कलाओ तेवट्टि च महिलागुणे सिप्पसयं च कम्माण तिग्निपि पयाहियट्ठाए उपदिसति, उव दिसित्ता पुत्तसयं रज्जसते अभिसिंचति, पुणरवि लोयंतिएहि जीयकप्यितेहिं देवेहि संबोहित संवच्छरिय दाणं दाऊणं भरही IN विणीताए, बाहुपलिं बहलीए, अब य कच्छमहाकच्छादयो ठवेत्ता, अभे भणंति-एते साहस्सिपरिवारा अणुपव्वतिया तदा, सामी I चउहिं सहस्सहिं सद्धि पब्वतितो, चेत्तबहुलट्ठमीए दिवसस्स पच्छिमे भाए सुंदसणाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणु- I Poli गम्ममाणमग्ग जाब विणीतं रायहाणि मज्झमझेणं निग्गच्छति, निग्मच्छित्ता जगेच सिद्धत्थयण उज्जाणे जणव असोगबरपायवे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता असोगस्म हेट्टा जाब सतमेव चउमुडियो, छद्रुगं भत्तेणं अपाणएणं आसाहाहि णक्खत्तेहि उग्गाणं [172] Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [१६५/२६५-३१६], भाज्यं [१-३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक चूर्णी । नियुक्ती भोगाणं राइनाणं खत्तियाण चाहिं सहस्सेहिं सद्धि एग देवदूरामादाय जाव पव्वइते, उसमे णं अरहा कोसालिए संवच्छर साहियं श्रीऋषभआवश्यकचीवरधारी होत्था, तेसि पंचमुदिओ लोओ सयमेव, भगवता पुण सक्कवयणेण कणगावदाते सरीरे जडाओ अंजणे रेहाओ इव रहतीओ चरित्रं ₹ उबलभातिऊणहिताओ तेण चउमुडिओ लोओ, सब्बतित्थगरावि यणं सामाइयं करेमाणा भणति करेमि सामाइय,सव्वं सावज जोगी पच्चक्खामि जाव वासिरामि, मदंतित्ति ण भणंति, जीतमिति । एवं भगवं सामाझ्यादि अभिग्गहं घेत्तुं वोसट्टचत्तदेहो विहरति, का बोसडोत्ति निप्पीडक्कम्मसरीरतया, चत्तो उवसग्गादिसहिष्णुतया तथा च अच्छिपि णो पमज्जिज्जा णोवि य कहइयए मुणी गात । एवं ॥१६॥द जाब विहरति, ताय दुवे नमिविणमिणो कच्छमहाकच्छाणं पुत्ता उवहिता, भगवं विनवेन्ति-भगवं! अम्हं तुम्भेहि संविभागो ण केणवि वत्थुणा कतो, स पट्टे बद्धकवया ओलग्गति विनवेति य, तातो! तुम्भेहिं सब्वेसिं भोगा दिना अम्हेऽवि देह, एवं तिसञ्झं। ओलग्गति, एवं कालो बच्चति, अनया धरणो णागकुमारिंदो भगवं वंदओ आगओ, इमेहि य विनवित, सो ते तह जातमाणे ४ &भणति-भो मुणह भगवं चत्तसंगो गतरोसतासो ससरीरवि णिम्ममत्तो अकिंचणो परमजोगी णिरुद्धासबो कमलपलासणिरुवलेब चिची, मा एवं जायह, अहं तु भगवतो भत्तीए मा तुन्भं सामिस्स संवा अफला भवतुतिकाउं पढितसिद्धाई गंधव्वपनगाणं 18 अडयालीसं विज्जासहस्साई देमि, ताण इमाओ चचारि महाविज्जाओ, तंजहा-गोरी गंधारी रोहिणी पवनी, तं गच्छह तुम्भे * विज्जाहररिद्धीए सजणजणवयं उवलोभेऊण दाहिणिल्लाए य गगणवल्लभपामोक्खे रहणेउरचकवालया (पमुहे य) पन्नासं सर्ड्सि हाच विज्जाहरणगरे णिवेसिऊणं विहरह, तेवि तं सब्वमाणत्तियं पडिच्छिऊणं वेयड्ड उत्तरसेढीए विणमी सढि गगराणि गगणवल्ल-131 दभप्पमुहाणि णिवेसेति, णमी दाहिणसेढीए रहनेउरचकवालादीणि पन्नास णिवेसेति, जे य जतो जणवयातो णीता मणुया तेर्सि दीप अनुक्रम CCC [173] Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१६५/२६५-३१६], भाष्यं [५-३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक तमामा जणवदा चेयड्डेवि विज्जाणं वसतिकाया जाता, तंजहा-गोरीणं गोरिगा, मणूणं मणुपुष्यगा, गंधारीणं विज्जाणं गंधारा, श्रीऋषभआवश्यक माणवीण माणवा, फेसिकाणं केसिकपुब्बिका, भृमीतुंडगावज्जाहिवतयो भूमीतुंडका, मूलबीरियाणं मूलवीरिया, संतुकाण संतुका, &ा चरित्रं उपोद्घात नियुक्ती | पटूकीर्ण पटुका, कालीण कालिकेया, समकीणं समका, मातंगीण मातंगा, पव्वतीणं पव्वतेया, र्वसालयाणं बंसालया, पंसुम् 8 लियाणं पसुमूलिया, रुक्खमूलियाणं रुक्खमूलिया । एवं तेहिं विणमिणमीहि विभचा अड्डड णिकाया, ततो देवा इव विज्जायलणं ॥१६२।। सयणपरियणसहिता मणुयदेवभोगे मुंजंति, पुरेसु य भगवं उसभमामी देवयसभासु थावितो पिज्जाधिट्ठायी य देवता ता सके सके णिकाए दोहिवि जणेहिं पविमनाणि पुराणि मुताणं खचियाण य संबंधीणं च ।.. णमि विणमि० ॥ ३ ॥ ९८ ॥ भगवंपि पितामहो मंगलालयो निराहारो परमधितिसतसारो सयंभूसागरो इव धिमितो अणाइलो विहरति, चतुहिं सहस्सेहि परिवुडो, जदि भिक्खस्स अतीति तो सामितो णे आगतोत्ति वत्थेहिं आसहि य हत्थीहिं| आभरणेहिं कत्राहि य निमंतेन्ति। .. ____णषि ताव जणोणाशा९७१ जेण जणो भिक्खं ण जाणति दाउं तो जे ते चत्तारि सहस्सा ते भिक्खं अलभता तेण माणेण घरंपि ण वचंति भरहस्स य भएणं, पच्छा वणमतिगता ताबसा जाता, कंदमूलाणि खातिउमारद्धा, भगवं च परिसं आणसितो जत्थ जस्थ समुदाणस्स अतीति तत्थ तत्थ एस परमसामी अम्हंति, ण जाणति दायचं किंति, ॥१६॥ भगवंऽपदीण ॥३॥ ९९ ॥ गयपुरसज्जंसो खोयरसदाण॥३॥ १०३।। छउमस्था य परिसं पहलीअंडवाइल्लहिला विहरिऊणं गजपुरं गतो, तत्थ भरहरस पुत्तो सेज्जंसो. अने भणंति-बाहुबलिस्स सुतो सोमप्पभो सेयसो य, ते य दोऽपि जणा दीप अनुक्रम ख [174] Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं Hो मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत HEIG दीप अनुक्रम श्री णगरसेट्ठी य सुमिणे पासंति त रतणि, समागता य तिमिवि सोमस्स समीर कहेंति, सेयसो-सुणह अजं मया जं सुमिणे दि8-मेरूदायांसादिआवश्यक उपोद्घाता किल चलितो इहागतो मिलायमाणप्पभो मया च अमयकलसेण अभिसित्तो साभावितो जातो पढिबुद्धो यऽम्हि, सोमो कहेति- सम्म निर्यकासुणह सेयंसमिया दिटुं-सरो किर पतितरस्सी जाआ, तुमे य से उक्खिचाओ रस्सीओ तसो य भासमुदतो जातो। सही वक्तव्यता भणती-सुणह जे मया दिह-अज किल कोयि पुरिसो महप्पमाणो महता रिखुवलेण. सह जुझतो दिडो, तो सेजस सामी य से है सहायो जातो, ततो अणेण पराजितं परवलं, एवं दळूण म्हि पडिबुद्धो । ततो तेसिं सुमिणाणं फलमबिंदमाणा गहाणि गता, भगवपि अणाइलो संवच्छरखमणसि जाय अडमाणो सेयसभवणमतिगतो, दतों से पासायतलगते आगच्छमाणं पितामह पस्समाणा चिंतेइ कत्थ मन्ने मया एरिसीव आकिती दिट्ठपुब्बत्ति? भग्गणं करेमाणस्स सदावरणखतोवसमेण जानिस्सरणं जातं, सो य पुच्चभवे सामिस्स सारही आसि, तत्थवि अणुपवइतो, तेण य सुतं-जहा भरहे एस पढमतित्थगरो भविस्सतित्ति, तं एस भगवंति, संभंतो उाढतो, एयरस सव्यसंगविवअगस्स भत्तपाणं दायव्वंति, भवर्णगणे व तस्स खोयरसकलसे पुरिसो पणीते, ततो परमहरिसित अधयसुमहग्यदूसरयणसुसंवुते सरससुरभिगोसीसचंदणाणुलित्तगतो सुतिमालावनगविलेवणाविद्धमणिमुवष्णे काप्पितहारद्धहारतिसरयपालथपलंबमाणे कडिसुत्तयकतसोभे पिणद्धगेवेञ्जअंगुलेजगललियंगयललियकतामरणे वरकडगतुडियभितभुजे आहियरूबसस्सिरिए कुंडलउजोतिताणणे मउडादचसिरजे हारोत्थयसुकतरइतबच्छे मुद्दियापिंगलंगुलीए पालंवपलंवमाणसुकतपडउत्तरिजे नाणामाणिकणगरयणविमलमहरिदणिउणोपवितमिसिामसंतचिरइयसुसिलिट्ठआषिद्धवीरवलए, किं पहुणा, कप्परुक्खए व अलंकितविभूसिते परिंदे निवारितछत्तवरचामरे जयजयसद्दकतालोके अणेकगणणायगदंडणायगरातीसरतलवरमाइंबियकोषियमंतिमहामंति-18 [175] Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 क श्रेयांस प्रत सत्राक दीप अनुक्रम गणगदोबारियअमञ्चचेडपीढमहगणिगमसेविसणावतिसत्थवाहदृतसंधिपाळ संपरिखुडे खिप्यामेव अब्भुट्ठति अब्भुढेत्ता पाउया-181 भगवत्आवश्यक टिओ ओमयति ओमयेचा एगसाडित उत्तरासंग करेति, करेता अंजालमउलियहत्थे भगवंतं सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छति अणुगच्छितादा भवाः तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति, करेचा वंदति नर्मसति, नमसित्ता ताहे सर्व चेव खोयरसघडगं गहाय दब्बसुद्धणं दायगसुद्धण उपाद्याता पडिगाहगसुद्धेणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं दाणेणं पडिलाभेस्सामित्ति तुढे भगवतो उबगते, भगवं कप्पेतित्ति, सामिणा पाणी पसारिए। सन्चो णिसट्टो पाणीसु, अछिद्दपाणी भगवं,उवरि सिहा,णय छद्दिाइ,भगवतो एसा लद्धी,सो भगवता पारितो, एवं से पडिलामेमाणेऽ। ॥१६४ावितुडे पडिलाभितेऽवि तुडे, तते णं तत्थ पंच दिव्वाणि पाउन्भृयाणि, तंजहा-बसुहारा बुढा. दसद्धवन्ने कुसुमवासे णिवतिते, चेलुक्खेवे सकते, पहतातो देवदुंदुभिओ, अंतरावियणं आगासे अहो दाणेरति घुढे, तं च देवपूजणादि सेजंसस्स साऊण रिसयो रायाणो सोमप्प भादयो लोगा य परेण कोऊहल्लेण पुच्छति सेजंसकुमार-सुमुह! किमती, ताहे सो ते पनवेति-एरिसा भिक्खा दिअतित्ति, एरिसा | भिक्खा एरिसगाणं दिज्जति, एतेसि दिने सोग्गई गम्मतित्ति, ते भणंति-कहं तुमे विनायं जहा भगवतो परमगुरुस्स भिक्वं15 दिदायब्बान्ति, कहेहि णे परमत्थं, ताहे सो तेसिं पकहितो, जहा-मम पितामहस्स दिक्खियस्य रूवदंसणे चिंता समुप्पन्ना-कत्थ मन्ने परिसरूवं दिट्ठपुवंति वियारेमाणस्स बहुभावितं जातीस्सरणं समुप्पन्न, ततो मया णायं भगवतो भिक्खादाणं, ततो ते परमविम्हिता। भणंति-साह केरिसोऽसि केसु भवेसु आसी ?, ताहे सो तेसि अप्पणो सामिस्स य अट्ठभवग्गहणाणि कहंति, जहा वसुदेवहिंडीए, ताणि पुण संखेवतो इमाणि, तंजहा ॥१६॥ सेयसो भणति- इतो सत्तमे भवे मंदरगंधमायणणीलवंतमालवंतमज्झवत्तीय मीतामहानतीमज्झविभिन्नाय उत्तरकुराय अई SEX I ERSPECTECK अत्र भगवंत ऋषभ एवं श्रेयांसस्य पूर्वभवानां संबंधानां वर्णनं क्रियते [176] Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं Hो मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम मिथुणइत्थिया भगवं तु पुण मम पितामही मिथुणपुरिसो आसि, ततो वयं तमि देवलोगभूते दसबिहकप्पतरुप्पभवमोगे भगवत् समुदिताई कदाति उत्तरकुरुदहतीरदेसे असोगपादवच्छायाए वेरुलियमणिसिलातले गवणीतसरिसफासे सुनिसचाई अच्छामो, चूर्णी द्र देवो य तंमि दहरे मज्जिङ उप्पतितो गगणदेसं, ततो तेण नियगप्पभावेण दसदिसाओ पभासिताओ, ततो सो मिहुणपुरिसो उपोद्घात नियुक्तो INI तमुप्पिंजलकं पस्समाणो किंपि तेण चितऊण मोहं उवगतो, कहमवि लद्धसत्रो भषति- हा सर्यप्पमे! कत्थसि. देहि मे पडिवयणं-12 ति, तं च तस्स वयणं सोऊणं इत्थियावि कत्थ मन्ने मया सयंप्पभाभिहाणं अणुभूतपुव्वंति चिंतेमाणी य तहेव मोहमुवगता, पच्चादगतसण्णा भणति-अज्जऽहं सबप्पभा, जीसे भे गहितं णामति, ततो सो पुरिसो परं तुट्टिमुबहतो भणति- अज्जे ! कहेहि मे कहर तुम सयंप्पभा , ततो सा भणति-कहेह में जं मया सुयाणुभूतं, अस्थि ईसाणा नाम कप्पो, तस्स मज्झदेसाओ उत्तरपुरस्थिमे, 18| दिसीभाए सिरिप्पभं णाम विमाण, तत्थ य ललितंगयो पभू, तस्स सयंपभा अग्गमहिसी, सा य बहुमया आसि, तस्स य देवस्स | है तीए सह चेव दिव्वविसयसुहसागररतस्स बहू कालो दिवसो इव गतो. कयाई च चिंतारो अप्पतेओ मल्लदामो अहोदिट्ठी ज्झाय माणो विनवितो मया सपरिसाए- देव' कीस विमणा दीसह , को मे माणसो संतायो ?, ततो भणति-मया पुन्वभवे थोवो कतो तवो, ततो में तुम्मेहि विष्पजुज्जिहामित्ति परो संताबो, ततो अम्हेहिं पुणरवि पुच्छिओ-कहेह तुन्भेहिं कहं तवो कतो किह वा इमो देवभवो लद्घोत्ति, ततो भणइ-जंबुद्दीवगअवरविदेहे गधिलावतिविजए गंधमायणवक्खारगिरिवरासना वेयड्डपब्व-ते छाते गंधारा णाम जणवतो, तत्थ समिद्धजणसेवितं गंधसमिद्धं णगरं, राया राजीवविबुद्धणयणो जणचयहितो सतबलस्स रलो नत्तुतोरा अतिबलसुतो महाबलो नाम, सो अहं पितुपितामहपरंपरागय रज्जासिरिमणुभवामि, मम य बालसहा खनियकुमारो सयंबुद्धो, [177] Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५ भाष्यं [ ३१ - ] अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्तौ ॥१६६॥ जिणवयणभावितमयी संभिन्नसोतो पुण मे मंत्री बहुसु कज्जेसु पडिपुच्छणिज्जो, समतित्थिए काले बहुमि कदायि गीयपडिरतो णच्चमाणि णय पासामि, सयंबुद्धेण विश्वविर्य देव गीयं विलवितं वियाणउ पुरिसस्स णट्टं विडंबणा आभरणाणि भारो कामो दुहावहो, परलोगहिते चितं निवेसियध्वं अहितो विसयपडिबंधो असासते जीवितेचि ततो मया रातिणा भणितो कहं गीतं सवणामतं विलावो ? कई वा गठ्ठे यणदयं विद्वेषणा? कई वा देहविभूसणाणि भूसणाणि भारं भाससिः लोगसारभूते य कामे रविकरे दुक्खावहेत्ति ?, ततो असंतेण संयंबुद्वेण भणितं सुणह सामी ! पसन्नचित्ता जहा गीतं विलावो, जहा- काइ इत्थिया | पवसितपतिका पतिणों' सुमरमाणी तस समागमकंखिता समतीप्पेमाणी य दोसु पच्चूसेसु दुहिता बिलबति, भिच्चो वा पशुस्स पसायणनिमित्तं जाणि वयणाणि मासिति पणतो दासभावे अप्पाणं ठवेऊण सो बिलावो, तदेव इत्थी • ततो कुसलजण ● अभामिलासी कुवितपसायणणिमित्तं वा जाओ कार्ड मणवाइयाओ किरियाओ पति, परिसो वा चिंतिताओ गीतंति बुच्चति, तं पुण चिंतेह सामी ! किं विलावपकखे वट्टतिति ? । इवाणि पट्टं सुणह "विलंबणा, जह , इत्थी पुरिसो वा जो जक्खाइको परवचब्बी मज्जापीतो वा जातो कायविक्खेवाओ किरियातो दंसेति, जाणि वा वयणाणि भासति सा विलंबणा, जति एवं०, जोऽवि इत्थी पुरिसो वा पण परितोसणिमित्तणितोयितो धणवणो वा वि सजणणिवद्धविहिमनुसरतो जे पाणिपादरिणयणाधरादी संचालेति सा बिर्डचणा । परमत्थओ आहरणाणिव भारोत्ति महेयच्वाणि, | जो सामिणो जियोगण मउडादीणि आभरणाणि पलगिताणि वद्देज्ज सो अवस्से पीलिज्जति भारेण, जो पुण परविम्यनिमित्तं वाणि चैव जोगेसु सरीरस्थाणेसु संनिवेसिताणि वहति सो रागेण ण गणेति भारं, अस्थि पुण सो, जोऽवि परितोसनिमित्तं [178] भगवत्श्रेयांसभवाः ॥ १६६॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 - आयं [31-1 अध्ययनं [-1. मूलं [- गाथा-1. निर्मुक्ति: [ २९ / ३१८-३४५] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युको ॥ १६७॥ रंगगतो नेवस्थितो सुमहंतंपि भरं बहेज्ज, ण मे परिस्समोति भावेमाणो कज्जगरुयभारे ण मण्णिज्ज वा भारं तस्सवि भारो । परमत्थतो कामा दुबिहा- सहा रूवा य तत्थ सदमुच्छितो मिगो सदं सुहंति मनमाणो मूढताए अपरिगणितविणिवातो वहबंधमरणाणि व पावति, तहेब इत्थी पुरिसो वा सोइंदियवसगता सहाणुवाती संदे साहारण ममतबुद्धी तस्स हेतुसारक्खणपरो परोप्परस्स कलुसहिययो पदुस्सति, ततो रागदोसपहपडितो रयमादियति, तंनिमित्तं च संसारे दुक्खभायणं भवति । तहा रूबे रतो रूच्छितो साहारणे विसर ममत्तबुद्धी रूबरक्खणपरो परस्स पहसति संकिलट्ठचित्तो य पावं कम्मं समज्जिणति, तप्पभवं च संसरमाणो दुक्खभायणं भवति, एवं भोगेसुवि गंधरसेसु फासेसु य मज्जमाणो परंपि य पहसेतो मूढताए कम्ममादीयति, ततो जातिजरामरणबहुलं संसारं परीति, तेण दुक्खावहा कामभोगा परिचितियाब्वा सेयस्थिणा, एवं भगंतो सर्वबुद्धो मया भणितो मम हिते वट्टमाणस्स अहितोऽसि दृट्टु व मतिं वहसि जो मं संसइयपदपरलोयसुद्देण विलोभतो संपतसुहं निंदतो दुहे पाडेतुमिच्छसि ततो संभिन्नसोएण भणितो- सामी सयंबुद्धो जंबुक इव मच्छकंखी मंसपेसिं विहाय जहा निरासो जातो तहा दिट्ठमुहं संदिद्धसुहासया परिच्चयंतो सोतिहिति, सर्यबुद्धेण भणितो- तुमं जं तुच्छयसुहमोहितो भणसि को तं सचेयणो पमाणं करेज्जी, जो कुसलजणसंसितं रणं मुहाrयं कायमणीए रत्तो णेच्छति तं केरिसं मनसि तं सभिन्नसोय! अणिच्चतादि जाणिऊण सरीरविभवादीणं वीरा भोगे पजहिय तयंसि संजमे य णेव्वाणसुरसुहसंपादए जयंति । संभिचसोतो भणति सशुद्ध ! सक्का मरणं होहिइति सुसाणे थाइउं ?, जहा टिट्टिभी गगणपडणसंकिता धरेडकामा उद्धपाया सुमति तहा तुमं मरणं किर होहिइति अतिपयत्तकारी संपदसुहपरिच्चायमकालियं पसंससि, पत्ते य मरणसमये पर लोग हितमायरिस्सामणे, सयंबुद्वेण भणिय सुद्ध ण जुज्झे संपलग्गे कुंजरतुरगदमणं कज्जसाहणकं, ण वा णगरे [179] भगवत् श्रेयांसभवाः ॥१६७॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 क प्रत सुत्रांक भवाः दीप अनुक्रम श्री 13 उबरद्धे जवसमत्तिधणोपादाणं, ण य गेहे पलित्ते कूवक्वणणं कज्जकर, जति पुण दमणभरणखणणाणि पुव्वक्रयाणि भवंति तदा भगवत्आवश्यकता परबलमहणचिरसहणजलणनिम्बावणाणि सुहेण भवंति, तहेव जो अणागयमेव परलोगहिते ण उज्जमति सो उक्कमंतेसु पाणेसु चूणा |छिज्जमाणेसु ममत्तत्थाणेसु विसंवदितदेहबंधो परमदुक्खाभिभूतो किह परलोगहितमणुढेहिति', एत्थ सुणाहि वियफ्षणकहितं उपान्यात उवदेसं-कोति किर हत्थी जरापरिणतो गिम्हकाले कचि गिरिणदिं समुत्तरंतो विसमे तीरे पडितो, सो सरीरगरुयसाए दुब्बलत्तणेण नियुक्ती नाल य असत्तो उडेउं तत्थेव कालगतो, बगसियालेहिं अयाणदेसे परिक्खइतो, तेण मग्गेण वायसा अतिगता, मंसमुयगं च उवजीवंता ॥१६८।। रिता, उण्हेण य उज्झमाणकलेवरो सो परसो संकुचितो, वायसा सुट्ठा, अहो निराबाहं जातं वसियव्यं, पाउसकाले य गिरिनइपूर वेगेण य विच्छुब्भमाण महानतिसोते पडित तं, पत्रं समुई, मच्छमयरेहि य छिन्न, ततो ते जलपूरितकलेवरा तेऽवि वायसा णिग्गया, तीरं अपस्समाणा तत्थेब निधणमुवगता, जदि पुण अणागतमेव णिग्गता होता तो दीहकालं सच्छदपयार विविहाणि मंसोदगाणि आहारेता, एयस्स दिद्रुतस्स उवसंथारो-जहा वायसा तहा संसारिणो जीया, जहा हस्थिकलेवरपयेसो तहा मणुस्सबोंदीलाभो, जहा दी गयब्भतरं मंसोदकं तहा विसयसंपत्ती, जहा मग्गसबिरोहो नहा तन्भवपडिबंधो, जहा उदगसोयविच्छोभो तहा मरणकालो, जहा। विवसणिग्गमो तहा परभवसंकमो, एवं जाण संभिन्नसोय! जो तुच्छपणस्सरे थोबकालिए कामभोगे परिचइना तबसंजमुज्जोयं ४ काहिति सो सुगविगतो ण सोयिहिति, जो पुण विसएसु गिद्धो मरणसमयमुदिक्खति सो सरीरभेदे अगहितबाहेयो चिरं दुही | होहिति मा चुक इव तुच्छपकप्पणामेचमुहपडिबद्धो विउलदीहकालियं सुहमवमन्नसु, संभिन्नसाओ भणति- कहंतिी, सयपुद्धणा ॥१६८॥ भणितो-मुणाहि, कोति किर वणयरो वणे संचरमाणो बयत्थं हथि पस्समाणो विसमे पदेसे ठिओ एककंडसुष्पहारपडितं गर्ज [180] Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] (४०) श्री भगवत् प्रत सत्राक है जाणिऊण धणुं सजीवमवकिरिय परसुं गहाय दंतमोनिहेतुं गयं संलियमाणो हत्थीपडणपेल्लितण महाकारण सप्पण खतितो आवश्यक तत्थेव पडितो, जंबुकेण परिभमतेण दिडो हत्थी, समणुस्से भीरुत्तणेण य अवसरितो, मसलोलुयताए पुणो पुणो अल्लियति निझा चरिवं चूर्णो यति य, निस्संकितो तुट्ठो अवलोकेति चितेति य-हत्थी से जावज्जीवियं मतं, मणुस्सो सप्पो य कंचि कालं पहोहिति जीवाबंधे या उपोद्घातात तके ताव खायामित्ति तूरंतो मंदबुद्धी, धणुकोडी पच्छिन्नपडिबंधा य, तालुदेसे भिवो मओ, जदि पुण अप्पसारं तुच्छति हत्थी- श्रेयांसनियुक्तोमणुस्सोरगकलेवरेसु सज्जतो तो ताणि अाणि य चिरं खायतो, एवं जाण जो माणुसयसोरखपडिबद्धो परलोगसाहणकज्ज- भवाः ॥१६९॥ दानिरवेक्खो सो जंबुको इव विणस्सिाहिति, जंपि य पह संदिदं परलोग तप्पभवं च सोक्ख, तं अस्थि, सामि ! तुम्मे कुमारकाले सह मया गंदणतोवणं देवुज्जाणमुबगता, तत्थ देवा ओवतिता, अम्हे ते दळूण अवसरिता, देवो य दिव्वाय गतीय खणण पत्तो अम्ह समावं, भणिता यऽणेण अम्हे सोमरूविणा- अहं सयबलो महबल ! तब पितामहो, रज्जसिरिमवउज्झिऊण चिन्नचओ लंतए। । कप्पे अहिवती जातो, तं तुम्भेवि मा पमादी होह, जिणवयणे भावह अप्पाणं, ततो सुगति गमिहिहत्ति, एवं बोत्तण गतो देवो. जति सामि! सुमरह ततो अस्थि परलोगोत्ति सदहह, मया भणितो- सयंबुद्ध सुमरामि पितामहदरिसणंति, लद्भावकासो भणति-I सुणह पुष्ववचं-तुम्भं पुष्बको कुरुवंदो नाम राया आसि, तस्स देवी कुरुमती, हरियंदो कुमारो, सो य राया णस्थियवादी, इंदिय-| समागममेतं, पुरिसस्स परिकप्पणा मज्जगसमवादे मदसंभव इव, ण एनो वतिरित्तो, ण परभवसकमसीलो आत्थि, ण सुकयदुक्कमायफलं देवणेरइएK कोति अणुभवातत्ति ववसितो बहूणं सत्ताणं वहाय समुट्टितो खुर इव एगंतधारो निस्सीलो णिवतो, ततो तस्स ॥१९॥ दाएतकम्मस्स बहू कालो अतीतो, मरणकाले य अस्सातवेयीयबहुलताए णरगपडिरूवकपोग्गलपरिणामो संयुत्तो, गीतं सुतिमधुरं | दीप अनुक्रम । स [181] Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [ ३१-] अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 थी आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥ १७० ॥ अक्कोसंति मनति, मणोहराणि रूपाणि विकताणि पस्सति, खीरं खंडसक्करोवणीतं पूतियंति ममति, चंदणाणुलेवणं सुम्पुरं वेदेति, हंसतूलमउई सेज्जं कंटकिसाहासंचयं पडिसंचेतेति, तस्स य तहाविहं विवरीतभाचं जाणिऊण कुरुमती देवी सह हरियंदेण पच्छ पडियरति सो य कुरुचंदो राया एवं परमदुक्खितो कालगतो, तस्स य नीहरणं काऊण हरिवंदो सजणवयं गंधसमिद्धं जातेण पालेति, सेवाभृतं पितुणो मरणमणुचितयंतस्स एवं मती समुप्पना अत्थि सुकयदुक्कताण फलंति, ततो यण एगो खतो य तियकुमारो बालवयंसो संदिट्ठो भद्दमुह ! ह! तुमं पंडियजणोदि धम्मसुई मे कहयसु, एसा ते सेवति, ततो सो तेण णियोगेण जं जं धम्मसंसितं जगणं सुणह तं तं राइणो निवेदेति सोऽवि सद्दतो सीलताए तहेव पडिवज्जति, कुपाई णगरा गाइदूरे तहारूबस्स साधुणी केवलणाणुप्पत्तीमाहिमं काउं देवा उवागता, तं च उचलभिऊण सुबुद्धिणा खचियकुमारेण रन्नो निवेदितं हरिमंदस्स, सोऽवि देवागमणाविहितो जतिणतुरगारूढो गतो साधुसमी, बंदिऊण विणण णिसश्रो सुगति केवलिविणिग्गयं वयष्णामयं संसारकहं मोक्खकई सो, सोऊण अस्थि परभवजम्मोति नीसंकितं जातं, ततो पुच्छति कुरुचंदो राया मम पिता भगवं ! के गई गतोत्ति १, रातो से भगवता कहितं विवरीतविसयोपलंभणं सत्तमपुढविनेरइयत्तं च हरिवंद ! तव पिता अणिवारितपावासवो ब सत्ताणं पीलाकसे पावकम्मरुयताए गरगं गओ, तत्थ परमदुव्विसई निरुवमं निष्पडिकारं निरंतरं सुणमाणस्सवि सचेपणस्स भयजणणं दुक्खभणुभवति, तं च तहाविहं केवलिणा कथितं पितुणो कम्मविवागं सोऊण संसारमरणभीरू हरियंदो राया कंदिऊण परमरिसिं सणगरमतिगतो, पुत्तस्स रायसिरिं समप्पेऊण सुबुद्धिं संदिसति तुमं मम सुयस्स उपदेसे करेज्जासित्ति, तेण विश्ववितोसामि ! जदि अहं केवलिणो वयणं सोऊण सह तुम्भेहिं ण करेमि तवं तो मेण सुतं, जो पुण उपदेसो दायव्योति संदिसह तं मम [182] श्रीऋषभचरितं भगवत्श्रेयांस भवाः ॥१७० ॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं Hो मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सुत्रांक उपोद्घात XU भवाः ८ पुत्तो सामियो काहितित्ति, राया पुचं संदिसति- तुमे सुबुद्धिमुतसंदेसा कायवो धम्माहिमारेति, तुरितं निग्गतो सीहो इव श्रीऋषभआवश्यक पलितांगीरकंदराजी, पण्याइतो केवलिसमीचे सह मुद्धिणा, परमसंवेगो सज्झामपसत्थाचतणपरा परिक्खचितकिलसजालो समुप्प-10 चरितं | ण्णणाणातिसतो परिणिध्वुतोति सुणिमो तस्स य हरियंदस्स रायरिसिणो से सखातीतसु णरवतीसु धम्मपरायणेसु समतीतमा भगवत्XIIतुम्म संपर्य सामिणो, अहं पुण सुपुद्धिवंसे, तं एस अम्ह नियोगो बहपुरिसपरंपरागओ धम्मदसणाहिगारे, जे पुणत्थ मया अकंड श्रयास | विनवितो तं कारणं सुणह-अज्ज गंदणवणं अहं गतो आसि, तत्थ य मया दिवा दुवे चारणसमणा-आदिच्चजसो अमियतेयो य, ॥१७१|| ते मया बंदिऊण पुच्छिया- भगवं! महावलस्स रनो केवतियं आउं धरतिति ?. तेहिं णिहिट्ठ-मासो सेसो, ततो संभंतोमि आगतो, एस परमत्थो, जं जाणह सेयति तं कीरतु अकालहीण, ताणि य उवदेसवयणाणि सयंबुद्धकहियाणि सोऊण अहं धम्माहिमुहो आउ| परिक्खयसुतीतो आमकमचियभायणमिव सलिलपूरिज्जमाणमवस्सं ण हिताय भीतो सहसा उहितो कयंजली संयंबुद्धं सरणमुवगतो, वयंस ! किमिदाणिं माससेसजीवितो करिस्सं परलोगहिनि , तेण चम्हि समासासितो-सामि ! दिवसोवि बहुओ परिचत्तसव्वसावज्जजोगस्स, किमंग पुणो मासो ?, ततो तस्स वयणेण पुत्तसंकामियपयापालणवावारो ठितो म्हि सिद्धायतणे, कयभत्तपरिच्चातो संथारकसमणो सयौवदिढजिणमहिमासंपायणसुमणसो अणिच्चयं संसारं दुगुंछ पातोवगमणकहं च वेरग्गजगणिं सुणमाणो कालगतो इहायातो । एवं थोबो मे तवो चिनोति । एवं च अजललितंगएण देवेण कहितं मम | सपरिवाराए, ईसाणदेवरायममीवातो य दढधम्मो नाम देवो आगतो भणति-लालियंगय ! देवराया गंदीसरदीवं जिणमहिम 1 ॥१७१॥ दिकाउं च अतिन्तिात्तिगच्छामि अहं, विदितं ते होउत्ति सो गतो, तओ अहं अञ्जदेवसाहता इंदाणतीय अवस्सगमणं होहिति SHASURESKARESS दीप अनुक्रम [183] Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुको भवा ॥१७२।। वाणिं चेय बच्चामिति गतोमि दिस्सरं दीवं खणेण, महिमा कया जिणाययणेसु, तिरियलोगे य तित्थयरवंदणं श्रीऋषभ|कुणमाणो सासयचेतियपूर्य च, चुतो ललिपंगतो , परमसोगग्गिडज्झमाणहियया चिंतासो० गता सपरिवारा सिरिप्पमें चरितं विमाणं, परिमुचमाणसोभं च ममं दळूण आगतो सयंबुद्धो भणति-सर्यपभे! जिणमहिमं कुणसु चयनकाले,ततो ते बोहिलाभो भगवत् श्रेयांसभविस्सतित्ति, तस्स वयणं परिग्गहेऊण गंदीसरदीवे तिरियलोगे कयपूया य अहमवि चुता समाणी जम्बुद्दीवकविदेहे पुक्खलावतिविजये पोंडरिगिणीय णगरीय बइरसेणस्स चक्कवट्टिस्स गुणवतीय देवीय दुहिता सिरिमती णाम जाया, साहं पितुभवणपतुमसररायहंसी धातीजणपरिग्गहिता जमगपब्वयससिता इव लता सुहेण वड्डिया, गहिता य कलाओ अभिरमिताओ, कयाई च पदोसे सव्वतोभद्दकपासादमभिरूढा पस्सामि णगरचाहिं- देवसंपातं, ततो चितापराय मे सुमरिया देवजाती, मुमरिऊण य दुक्खेणा-181 हता मुच्छिता परियारियाहिं जलकणकासत्ता,ततो य पचागता चितमि कत्थ मने पिओ मे ललितंगतो देवोन्नि?,तण य मे विणा किं जणेण ट। आभट्ठणति मूगत्तर्ण पगता, भणति परियणो-जंभकेहि से वाया अक्खिता, कतो य तिगिच्छिएहि पयत्तो पलिहोममतरक्खाविहाणहि, 12 अहंपि मूललक्खंण मुयामि,लिहिऊण य आणनि देमि परियारिकाणं,पमदवणगंतंच,मम अम्मघाती पंडितिया णाम विरहे भणति-धाती ४ | मम हिययगतं अत्थं पसाहहित्ति, कहेमि से सब्भ्यं, ततो मया भणिता-अम्मो! अस्थि कारणं जेणहं मूकत्तं करेमिानि,ततो सा तुट्ठा भणति-पुत्ते ! साहसु मे कारणं, सोऊण जह भणसि तह हिस्सं, ततो मया भणिता, सुणाहि-अस्थि धातकीखंडे दीवे पुष्वविदेहे मंगलालए मंगलावतिविजए पदिग्गामो णाम सनिवेसो, तत्थ अहं इतो तइयभवे दरिदकुले सुलक्खणसुमंगलवनिकमि-18॥१७२।। लातीणं छण्डं भतिणीण पच्छतो जाता, ण कतं च मे णामं अम्मापिऊर्हि, निनामियत्तितधामि, सकम्मपडिबद्धा य तेसिं अव दीप अनुक्रम SRRORSCRes [184] Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत भगवत् सत्राक श्री विवसा अणुभवमाणा यहुकालं गमेति, तिरियावि सपक्सपरफक्खजणिताणि सीउण्हखुहाप्पिवासादियाणि य जाणि अणुभवंति आवश्यक बहुणावि कालणं ण सका बोर्ड, तब पुण साहारणसुहदुखं, पुब्बसुकयसमज्जियं अबेर्सि रिद्धिं पस्समाणा दुहितमप्पाणं तकेसि, MAME RICANT चरितं चूर्णी |जे तुमातो हीणा बंधणाकारेसु किलिस्संति, आहारपि तुच्छकमाणई भुजमाणा जीवितं पालेति, तेची ताव पस्ससुत्ति, मया उपायात श्रेयांसपणताए जह भणह तहात पडिस्मुत, तत्थ य धम्म सोऊण केऽवि पब्वइया केयि गिहवासजोग्गाणि सीलब्बयाई पडिवबा," नियुक्ती पाडवा भवाः मया बिनविता-जस्स नियमस्स पालणे सत्ता मि तं मे उपदिसहउत्ति, तओ मे तेहिं पंच अणुब्बयाई उवदिवाणि, वंदिऊण परि॥१७|| तुट्ठा जणेण सह दिग्गाममागता, पालेमी वताणि संतुट्ठा, कुहुंचसंधिभागेण परिणताय संतीये चउत्थच्छट्ठहमेहि खमामि, एवं काले गते कम्मिबि कयभत्तपरिच्चाया रातो देवं पस्सामि परमर्दसणीयं सो भणति-निनामिके' पस्स में, चितेहि य होमि एयस्स भारियात, ततो मे देवी भविस्ससि, मया य सह दिव्वे भोए भुजिहिसित्ति वोत्तूण असणं गतो, अहमवि परितोसविसप्पितहिदया देवदंसणेण लभेज्ज देवत्तति चिंतऊण समाहीय कालगता ईसाणे कप्पे सिारप्पभे विमाणे ललितंगयस्स देवस्स अग्गमहिसी सयंप्पभा नाम जाता, ओहिणाणोवयोगविन्नातदेवभवकारणा य सह ललियंगएण जुगंधरे गुरुयो वदितुमवतिबा, तं समयं च तद्देव अंबरतिलके मणोरमे उजाण समोसरितो सगणो, ततोऽहं परितोसविसप्पितमुही तिगुणपयाहिणपुव्वं णमिऊण णिवेतियणामा पट्टोपहारेण महेऊण गता सविमाण, दिव्वे काममोगे देवसहिता णिरुस्सुगा बहुं कालं अणुभवामि, दादेवो य सो आउपरिक्खएण अम्मो ! चुतो, ण याणं कत्थ गओति?, अहमधि य तस्स विओगदुक्सिता चुता समाणी इह आयाता, ॥१७४॥ बुज्जोयदसणसमुप्पनजातिस्सरणा य तं देवं मणसा परिवहंती मूयत्तणं करेमि, किं मे तेण विणा संलावणं कतेणंति', एस | दीप अनुक्रम RICA [185] Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [ ३१ - ] अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [ ९९ / ३१८-३४५] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्तौ ॥१७३॥ साणं जीवामि, ऊसवे य कदाति अटुकडिंभाणि णाणाविभक्खहत्थकयाणि सगेहेहिंतो निग्गयाणि, ताणि य दद्दूण मया माया जाइताअम्मो ! देहि मे मोदकं अनं वा भक्खं जाव डिंभेहि समं रमामित्ति, तीय रुट्ठाय हता णिच्छुडा य गेहातो, कतो ते इहें भक्खं ?, वच्चसु अंबरतिलकपव्वयं फलाणि खादिसु मरसु वाच, तो रावंती निम्गया निसरणं विभग्गमाणी, दिडो व मया जणो अंबरतिलकपव्ययाभिमुो पत्थितो, गता मि तेण सहिता, दिट्ठो मया पुहवितिलको विविहफलनमिरपादवसंकुलो कुलगरभृतो सकुणमिगाणं सिहरकरेंहिं गगणतलमिव मिणितुं समुजतो अंबरतिलको गिरिवरो, तत्थ य गेण्हति जणो फलाणि, मयाबिय रुक्खपडितानि सादणि फलाणि भक्खिताणि, रमणिज्जताए य गिरिवरस्स संचरमाणी सह जणेण सुणामि सदं सुतिमनोहरं तं च अनुसरती गता मि तं पदेसं सह जणेण, दिट्ठा य मया जुगंधरा णाम आयरिया विविहनियमधरा चोइसपुथ्वी चउन्नाणी, तत्थ य समा गता देवा मणुया य, तेसिं जीवाणं बंधमोक्खविहाणं कहयंता संसए विसोर्हेता, ततो अहं तेण जणेण सह पणिवतिऊण जिसभा एगदेसे, सुणामि तेसिं वयणं परममधुरं, कहंतरे य मया पुच्छिता भगवं, अस्थि मने ममातो कोति दुक्खतो जीवो जीवलोगेत्ति?, ततो ते भगति - निन्नामिए। तुहं सहा सुभासुभा सुतिपहमागच्छति रूपाणिचि सुंदरमंगुलाणि पाससि गंधे सुभासुभे अम्पायसि रसेवि मणुश्रामणुने आसादिसी फांसेवि इडाणिट्टे पडिसंवेदसि, अस्थि य ते पडिक्कारो सीउण्हतहाहाणं निदं सुहागतं सेवास निवाय पच्छभसरणा, सायावि ते अस्थि, तमसि जोतिपकासेण कज्जं कुणसि, जेय दासभतगा परवचव्या नाणाविहेसु देहपीलाकरेसु निउत्ता किलिस्संति, नियमसुभा सदरूवरसगंधफासा णिप्पडिकाराणि य परमदारुणाणि सीउण्हाणि छुहपिवासाओ य ण य खर्णपि निद्दासुहं दुक्खसयपीलियाणं, निबंधकारेसु णरकेसु चिमाणा णिरयपालकालमाणकरणसयाणि [186] श्रीऋषभचरितं भगवत् श्रेयांस भवाः ॥१७३॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं Hो मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक दीप अनुक्रम परमत्थो, तं च सोऊण अम्मघाती मम भणति-पुत्ते सुटु ते कहितं, एतं पुण पुच्चभवचरितं पडिलहिज्जतु, ततो ण अहं हिंडाचेआवश्यकहामित्ति, सोय ललियंगतो जति माणुसत्त आयातो होहिति तो सचरितं दट्टण जाई सुमरिहिति, तेण य सह णिब्युया बिसय चरितं चूर्णी सुहमणुभविहिसिचि, सतो तीय अणुमते सज्जितो पडो विविवाहिं पट्टिकाहि दोहिवि जणीहि, तत्थ य पढमं नंदिग्गामो उपोद्घात लिहितो, अंबरतिलगपब्वयसंसितकुसुमितासोगतलसविसना गुरवो य, देवमिथुणं च बंदणागतं, ईसाणो कप्पो सिरिप्पभं बिमाणे श्रेयांसनियुक्त सदेवमिथुणं, महाबलो राया सयंबुद्धसभित्रसोयसहितो, निमामिका य तवमोसितसरीरा, ललियंगतो सर्यपमा य सणामाणि, भवा: १७५दततो पिफमलक्खे धाती पट्टकं गहेऊण धातइसंडं दीवं वच्चामित्ति उप्पतिता जायह केसपासकुवलयपलाससामं णभतलं, खणेण य णिवत्ता, पुच्छिता मया-अम्मो ! कीस लहुं नियचामित्ति!, मा भणनि-पुते,सुणसु कारणं--इह अम्ह सामिणा तब पितुणो वरसवट्टमाणणिमित्तं विजयवासिणो रायाणो बहुका समागता, तंजति इहेव होहिति ते हिदयसीणो दइतो ततो कतमेव , कति चिंतऊण णियत्ता मि, जति ण होहिदि इह तो परिमग्गणे करिस्सं जनंति, सुठुत्तिय मया भणिता, अवरज्जुगे गता पट्टगं गहाय पञ्चावरण्हे आगता पसनमुही भणति-पुत्ते! णिबुता होहि, दिट्ठो ते मया ललियंगतो, मया पुच्छिया-अम्म! साहमु कहंति, सा भणति-पुत्ते ! मया रायमग्गे पसारितो पट्टको, तं च पस्समाणा आलक्खकुसला आगमपमाणं करता पसंसंति. जा अकुसला ते यन्नरूवादीणि पससति । दुमरिसणरायसुतो य दुईतो कुमारो सपरिवारो सो मुहुनमे पस्सिऊण मुच्छितो पडितो, खणेण आसत्थो पुच्छितो मणुस्सेहि- सामि ! कथं मुच्छिता?, सो भणति चरित् णियकं पट्टगलिखितं दृट्टण मे सुमरिना ५॥१७॥ जाती, अहं ललियंगओ देवो आसि, सयंपभा मे देवित्ति, मया य पुच्छितो-पुत्त ! साहस को एस संनियसो ?, भणति-पुंडरि [187] Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५ भाष्यं [ ३१-] अध्ययनं [-1, मूल [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥१७६॥ गिणी णगरित्ति, पव्वतं मेरुं साह, अणगारों कोऽवि एस वीसरियं ता मे णामं, कप्पं सोहम्मं कहेति, राया मंतिसहितो कोडवि एसोसि, काऽवि एसा तवस्सिणी ण याणं से णामंति, ततो उच्चावच्चेति जाणिऊण मया भणितो- पुत्तः संवतति सव्यं ते जम्मंतरे, वीसरितं तेण किं ?, सच्चं तुमं स ललितंगओ, सा पुण ते सर्वप्रभा दिग्गामे पंगुलिया कम्मदोसेण जाता, आगमे सुकुसलाए तं वणाए चरितं लिहितं तव मग्गणहेडं, मम य घायइसडं गयाय दिनों पट्टको मया य अणुकंपाय तीसे तव परिमम्गणं कर्य, एहि पुत्त जा ते णेमि धायइसडंति, अवहसितो मिनेटिंगम्मतु पोसिज्जतु पंगुलिन्ति, ततो अवतो, मुहुत्तमेने य आगतो | लोहग्गलओ घणो णाम कुमारो, सो वच्च॑तो लंघणाचरणेस असमाणोति वरजंघो भण्णते, सो उबगतो पट्टगं दद्दूण ममं भणतिकेणेतं विलिहितं चिचति, १ मया भणितो- किं निमित्तं पुच्छसि ? सो भणति मम एयं चरितं अहं ललितंगओ णाम आसि सयपभा मे देवी, असंसयं तीय लिहितं, तीय वा उर्वदेसवसेणति तकेमि, ततो मया पुच्छितो-जदि ते चरितं साहस को एस संनिबेसोति १, दिग्गामो, एस पव्वतो अंबरतिलओ जुगंधरा आयरिया, एसा खमणकलिना णिण्णामिया, महम्बलो राया सयंबुद्धसीभन्नसोह सह लिहितो, एस ईसाणो कप्पो सिरिप्पभं विभाणं, एवं सव्वं सपच्चयं कहितं तेण ततो मया तुट्टाए भणितोजा एसा सिरिमती कुमारी पितुच्छाए ते दुहिता सा सर्वप्पभा जाव रनो निवेदेमि ताव ते लम्भतित्ति, सुमणसो गतो, ततो मि कयकज्जा आगता, पुरतो रनो निवेदेमि, ततो पियसमागमो भविस्सतित्ति एवं बोलूण गता । ततो अहं सहायता रना, देविसमीने य पकहितो, सुगह- जो वसुमतीय ललियंगतो देवो आसि, जह णं अडं जाणं ण तहा सिरिमती, अवरविदेहे सलिलावतिविजए वीतिसोगा य णगरी, जियसत्तु नाम राया, तस्स मणोहरी केकयी व दुबे देवीओ, तासिं [188] श्रीऋषभचरितं भगवत् श्रेयांम भवाः ॥ १७६ ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [ ३१ - ] अध्ययनं [-1, मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र- [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 अयलो बिभीसणो य पुत्ता, उबरे पितुंमि विजय भुजेति बलदेववासुदेवा, मणोहरी य बलदेवमाया, कंमिवि काले गते पुत्तं आपुच्छति अयल ! अणुभृता मे भन्नुणो सिरी पुत्तसिरी य, पब्वयामि परलेोगहियं करिस्सं, बिसज्जेहि मंति, सो णेहेण ण विसज्जेति, निब्बंधे कए भणति अम्मो ! जति णिच्छओ ते कतो तो मं देवलोगयाओ बसणे पडियोहेज्जासिति, तीय पडिवन्नं, पव्यतिता ४ उपोद्घात य, परमद्धितियलेण एक्कारसंगवी वासकोडीतवमणुचरिऊण अपडिवतितवेरग्गा समाहीय कालगता लंतए कप्पे इंदो आयातो, तं निर्युक्त ७ ताजा मर्म, बलकेसवा य बहुं कालं समुदिता भोगे सुजति, कताई च णिग्गया आणुयचं असेहि वातजोगेण अवहिता अडवि ॥ १७७॥ श्री आवश्यक पवेसिता, गोरहसंचरेण य ण विनातो मग्गो जोण, दूरं गंतूण आसा विवन्ना, विभीसणो य कालगतो, अयलो गेहेण ण याणति, मुच्छितोत्ति, पेण मि सीतलाणि वणगहणाणि सत्यो मविस्ततित्ति, अहं च लंतगकल्पगतो पुत्तसिणेहेण संगारं च सुमरिऊण ४ खणेणागतो, विभीसणरूवं विकुरुव्विऊण रहगतो भणिओ बलो- तात ! अहं विज्जाहरेहिं समं जुज्झिउं गतो, ते मे पसाहिता, तुम्मे पुण अंतरं जाणिऊण केणवि मम रूवेण मोहिता, बच्चिमो णगरं, एयं पुण अर्हति तुम्भेहिं बूढं कलेवरं, सक्कारेसु णं तु डहिऊण रहेण सणगरमागता, पूतिज्ज णे णयरे, घरे य एक्कासणणिसना ठिता, ततो मया मनोहरिरूवं दसित संतो अपलो- अम्मो ! तुम्भेत्थ कतोत्ति, पव्वज्जाकालो संगारो य कहितो, विभीसणमरणं, अहं लंतगाओ इहागतो तब पडिवोहणाणिमितं, परलोगहितं चिंतेहि अणिच्चयं मणुयरिद्धिं च जाणिऊणीत गतोमि सगकप्पं । अयलोऽवि पुत्तसंका मितसिरी णिविन कामभोगो पव्वतितो, तवमणुचरिऊण ललियंगतो देवो जातो, अहं पुण सदेवीयं लंतगं कप्पं नेमि अभिक्खणं, जाहे सुमरामि, सो सत्तणवभागे सागरोवमस्स भोतृण देवसुहं चुतो, तत्थनो उपवनों, तंपि ललियंग एस मे पुतो चेवत्ति णेमि, एतेण कमेणं गता य सत्तरस, सिरिमती य [189] श्री ऋषभ चरितं भगवत् श्रेयांसभवाः ॥ १७७॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 - आयं [31-1 अध्ययनं H मूलं [- गाथा-1. निर्मुक्ति: [ २९ / ३१८-३४५] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१७८॥ जं जाणति एसावि में जीतपुब्वा सिणेहेण लंतयं कप्पं बहुसो, जाणामि णं सहावेह य वहरजंघंति, आणतो कंचुती आगतोय दिट्ठो मया परितोस विकसियच्छीए अच्छेरयभूतो सक्कलस्यणिकरसोम्मवयणचंदो तरुणरविरस्सिको हितपुंढरियलोयणो मणिमंडियकुंडलघट्टितपीणगंडदेसो गरुलातयतुंगणासो सिलप बाल कोमल सुरत दसणव सणो कुंदमउलमालासिरिकर सिणिद्धदसणर्पती वयत्थवसभ अवगणितखंधो वयणतिभाग सितरयणावलिपरिषद्धगावो पुरफलिहायामदीहबाहु नगरकवाडोवमाणमंसलविसालवच्छो करयलसंगेज्झमज्झदेसो विमउलकयसरिच्छणाभी मिगपत्थिवतुरगवतिकडी करिकरकर णिज्जउरुजुयलो पिगूढजाणुपदेससंगतहारणसमाणरमपिज्जर्जघो सुपतिडियकणग कुम्मस रिससकललक्खणसंबद्धचलणजुबली पणतोय राइणो, भणिता य- पुत्त ! वइरजंध ! पडिच्छसु पुब्वभव सर्वपमं सिरिमर्तिति, अवलोकिता यमेण अहं कलहंसेणेव कमलिणी, विहिणा य पाणि गाहितो मम तातेणेव वइरजघत्ति मधुरमाभासमाणेण दिनं च अवलंबणं परियारिओ य, विसज्जिताणि य अम्दे गयाणि लोहग्गलं, मुंजामु पिरुव्विग्गं भोगे, वरसेणोऽवि राया लोगंतियदेवपडियोहितो संवच्छरं किमिच्छयं दाणं दाऊण णिग्गयसुतेहिं णरवतीहि य भरितयससमेतेहिं सह पन्चतितो पोखलपालस्स रज्जं दाऊणं, उप्पण्णकेवलणाणो य धम्मं देसेति । ममवि कालेण पुत्तो जाओ, सो सुहेण वड्ढितो, कद्राई च पोक्खलपालस्स केति सामंता विसंगतिता, तेण अम्हं पेसितं एतु वरजंघो सिरिमती य, अम्हे विउलेग खंधावारेण पत्थिताई पुतं नगरे ठवेऊणं, सरवणस्स य मज्झण पंथों, पडिसिद्धा य में जाणकजणेण, दिट्ठीचिसो सरवणे सप्पो, ण जाति ततो गंतुति, परिहरता कमेण पत्ता पोडरिगिणी, सुतं च तेहिं णरवईहि वरजंघागमणं, ततो ते संकिता पंडिता, अम्हेऽचि पोक्खलपालण रत्ना पूरऊण विसज्जिता, पत्थिताणि सणगरं, भगति य जणो- सरवणुज्जाणमज्झेण गंतव्वं, सप्पो णिचिसो जातो, [190] श्री ऋषभ चरितं भगवदश्रेयांस भवाः ॥१७८॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H श्री आवश्यक उपोद्घात निर्युक्तौ ॥ १७९ ॥ अध्ययनं [-] भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- गाथा-1 निर्युक्तिः [२९/३१८-३४५] आय [३१] केवलणार्ण तत्थडियस्स साधुणा उप्पन्नं देवा य ओषतिता, देवज्जोएण य पहितं दिहिगतं बिसं सप्पाणंति, ततो अम्हे कमेणं पत्ताई सरवणं, आवासिताई, सागरसेणमुणिसेणा य मम भातरो अणगारा सगणा तत्थेव ठिता, ततो अम्हेहिं दिड्डा तपलच्छि परिहत्था सरदसर जलपसंतहिदया सारदसगलससिसोमदंसणा, ते य सपरिवारा परंण भत्तिवहुमाणेण वंदिता, सपरिवारा य फासु एण असणपाणखाइमसाइमेण पडिलाभिता, ततो अम्हे तेसिं गुणे अणुगुणताई: अहो महाणुभाया सागरसेणमुणिसेणा, अम्हेवि मुक्करज्जधुरवावाराई कथाई भन्ने णिस्संगाई बिहारस्सामोति विरागमग्गमाइलाई कमेण पचाई सणगरं, पुत्त्रेण य णे अम्हं बिरहकाले मिच्चयवग्गो दाणमाणेहिं रंजितो वासघरे य विसधूमो पयोजितो, विसज्जितपरियणाणि य विगाले पतोसे अतिगयाणि वासगिहं साधुगुणरयाणि, धूमदृसितधातूणि कालगयाणि इहायाता उत्तरकुराएत्ति जाणामि, तं अज्ज ! जाणिण्णामिया जा य संयंप्रभा जा य सिरिमती सा अर्हति जाणह, जो महब्बलो राया जो य ललियंगतो जो य वइरजंघो ते तुम्भे, एवं जीसे णामं गहितं मे सा अहं सर्वप्रभा । ततो सामिणा भणितं अज्जे ! जातिं सुमरिऊण देवुज्जोयदंसणेण चिंतीम देवभवे बढ़हिति, ततो मे सर्वप्रभा आभट्ठा, तं सच्चमेयं कहितति, परितु माणसाणि पुण्यभवसुमरणसंधुक्तिसिणेहाणि सुहागतावसयसुहाणि तिमि पलितोवमाणि जीविऊण कालगताणि सोहम्मे कप्पे देवा जाता । तत्थांचे णे परा पिती आसिति । पलिओदमिक ठिति पालेऊण चुता बच्छतावतिविजए पभंकराइ णगरीय, तत्थ सामी पितामहो सुविद्दिवेजस्स एचो केसवो णाम जातो. अहं पुण सेडिमुतो अभयघोसो, तत्थवि णे मिणोहादी कता, तत्थेव नवरे रायपुतो पुरोहितो मतिसुत्र सत्थवाहओ य, तेहिवि सह मेत्ती जाया कयाई च साधू महप्पा किमिकुट्टेण गहितो जहा पुष्यं जायतेणेय पडिगता, सुतधम्मा य सब्वेऽपि पडि [191] श्रीऋषभचरितं भगवत्श्रेयांस भवाः ।।१७९ ।। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत चूणीं। विना सावगधर्म, केसवो साधुवेयाच्चपरो विससेण, ततो सीलव्यततवोविहाणेहि अप्पाणं भायेऊण समाहीय कालगता अच्चुए श्रीऋषभआवश्यक कप्पे इंदसामाणा देवा जाता, ततो ठितीक्खए नुता कमेण केसवो वइरसेणसस्स रबो मंगलावतीए देवीय धारिणिवीयणामाए। चरित पुत्तो जातो, बहरणाभो णाम, रायसुतादी य कणगणाभरुप्पणाभपीढमहापीढा कमेण जाता, कणगणाभरुप्पणाभाण बाहुसुबाहु भगवत्है वितियणाम, अहं तत्थेव णगरे रायसुतो जातो, बालो चेव बहरणाभं समल्लीणो, सारही जातो सुजसो णाम, सेसं जहापुवं जाव श्रेयांसनियुक्ती भवाः उववाओ सबढे, सवसि पढमो वइरनाभो चुओत्ति, णवरं अहमवि पुच्चासिणेहाणुरागेण बहरणाभमणु पब्बइतो, भगवता य बहर॥१८॥ णाभो भरहे पढमतित्थगरो उसमीणाम भविस्सतिति णिहिट्ठो, कणगणामो चकवट्टी भरहो इति, रुप्पणाभादीण य मणुसस्सभवलापिरणाभि)णो अंतकरत्ति, ततो अम्हे याप्प जणा बहुकीतो वासकोडीओ तयमणुचारऊग समाहीय कालगता, कमेण सबढे देवा जाता, ततो सुया इहायाता |मया बहरसणतित्थगरो एरिसीए आगीइए तस्थ दिवाचि पितामहलिंगदरिसणेण पोराणाओ जातिओ सरिताओ, विनातं च अन्नपाणादि दायब तबस्सीणति । एवं च कहं सोऊण सेयंसो पहमाणसेहिं पूजितो णरवइमादीहि, ताहे लोगो जाणिउमारद्धो। इतोय सेग्जंसो एत्थ.मम गुरूसामी ठितो, तो मा अहं एतं पादेहिं अकमामि, तत्थ तेण रयणपेढिता |कया, जाहे से देसकालो तहिं अच्चणिय काऊण जेमेति, तं दण लोगोषी करोति सरहिं घरदारेहि, ज तं सेज्जंसेणं कर्य हतं कालंतरणे संवउरपेढं जायं ॥ __ततो भगवं विहरमाणो बहलीविसयं गतो, तत्थ बाहुबलियस्स रायहाणी तक्यसिला णाम, त भगवं बेताले य पत्तो,त॥१८॥ | बाहुबलिसस्स चियाले णिवदितं जहा सामी आगता, कलं सब्धिड्डीए बंदिस्सामित्तिण णिग्गतो, पभाते सामी विहरतो गतो, पाहु दीप अनुक्रम R [192] Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [ ३१ - ] अध्ययनं [-1, मूल [- / गाथा-], निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूणीं उपोद्घात नियुक्ती ॥१८२॥ बलीवि सब्बिड्डीए णिग्गतो जहा दसन्नावभासा जाये सामीं ण पेच्छति, पच्छा अद्धितिं काऊण जन्थ भगवं वृत्थो तत्थ धम्मचक्कं | चिन्धकारेति, तं सव्वरयणामयं जायणपरिमंडलं, जोयणं च ऊसितो दंडो एवं के इच्छति, अने भणति केवलणाणे उप्पने तहिं । * गतो, ताहे सलोगणं धम्मचक्कविभूती अक्खाता, तेण कर्तति । एवं विहरंतो सामी आगतो विणीयं तत्थ पुरिगतालं नगरं उज्जाणं सगडमुंह, तत्थ हितो, सूरुग्गमणवेलाए जग्गोडा णिविठ्ठस्स जाव केवलणाणं उप्पन्नं । देवा आगता महिमं करेति सव्वतित्थगराण य केवलणाणे उप्पण्णे सको अवहितं केसमंसुरोम हं करेइ, उसमसामिस्स पुण जडाओ सोभयंतित्ति ण छिन्नाओ, कणकगिरी अंजनरेखावत्, भरहस् य चारपुरिसा णिच्चमेवदिवसदेवासयं बट्टमाणिं णिवेदेति तेहिं तस्स विदितं, जहा तित्थगंरस्स णाणं उप्पन्नंति, आयुषरिएणवि णिवेदितं, जहा- चकरयणं उप्पन्नं, ताहे सो चितंउमारद्धो, दोहपि महिमा कायव्या, कतरं पुत्रं करेमिति, ताहे भणति तातंमि पूतिए चकं पूयितमेव भवति, चकस्सवि सामी पूर्याणिज्जो, ताहे सब्धिङ्कीए परिथता, भगवतो य माता भणति भरहस्स रज्जविभूर्ति दद्दणं मम पुत्तो एवं चेव णग्गओ हिंडति, ताहे भरहो भगवतो विभूतिं वन्नेति सा ण पत्तियति, ताहे गच्छंतेण भणिता---एहि जा ते भगवतो विभृति दरिसमि, जदि एरिसिया ममं सहस्तभागेणवि अत्थिति, ताहे हत्थिसंघेण णीति, भगवतो य छत्तादिच्छतं पेच्च्छंतीए चैव केवलनाणं उप्पन्नं तं समयं च णं आयुं खुद्धं सिद्धा, देवेहि य से पूया कता, पढमसिद्धोति काऊण खीरोदे छूटा | [193] श्री ऋषभचरितं भगवत्श्रेयांसभवाः ।। १८२ ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं Hो मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक तत्थ समोसरणे भगवं सक्कादीणं धम्म परिकहेति, तत्थ उसमसेणो णाम भरहस्स रनो पुत्तो सो धम्म सोऊण पब्बइतो, ऋषभ तेण तिहिं पुच्छाहि चाहसपुवाई गहिताई, उप्पा विगते धुते, तत्थ बंभीवि पब्बइया, भरहो सावओ, सुंदरीए प दिन पब्बइठ, चरितं चूणी । | मम इस्थिरपण एसत्ति, सा साविगा, एस चउबिहो समणसंघो । ते य तावसा भगवतो णाणं उप्पचंति कच्छमुकच्छवज्जा सम्बे | भगवतउपायास वाभगवतो सगासे पचइता, एत्थ समोसरणे मिरीतिमादिया बहवे कुमारा पबहता, कि कारणं मिरीयत्ति भन्नति', सो जातमे-17 श्रेयांस भवाः |त्तओ मिरीइओ मुयतीति तेण मिरीयी। ॥१८॥ पंच य पुत्त सयाई ॥३-1॥१२६ । सो य गामचिंतओ देवलोगाओ चहत्ता भरहस्स रनो बम्माए देवीए उपवनी, भरहो। तु सामिस्स अट्ठाहियमहिमं काऊणं अतिगतो, इयाणिं चफस्त पूजे काउकामो जाव सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसमे कोईबियपुरिसे सहायता आणबेति-खिप्पामेव भो ! विणीत रायहाणि सम्भितरवाहिरियं आसियसंमज्जितोवलितं जाच गंधवट्टि भूतं करेहित्तिकटु जेणामेव मज्जणघरे तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसति, अणुपविसित्ता मुत्ताजालादाउलाभिरामे जाव ससिन्च पियदसणे जरयती धूवपुष्पगंधमल्लहत्थगते पडिणिक्खमति २ जेणामेव आयुधबरसाला जेणव से #दिब्बे चकरयणे तेणेव पहारेथ गमणाए, तए णं तस्स बहवे रातीसरतलबरमार्ड बिय जाव सत्थवाहप्पभितओ अप्पेगतिया 31 उप्पलहत्थगता जाव सयसहस्सपत्तहत्थगता भरहराय पिढतो पिडतो अणुगच्छति । तए णं तस्स बहुओ खुज्जाओ चिलातीओ हा दिवडभीतो जाव णिउगफुसलाओ विणीताओ अप्पेगतिताओ कलसहत्थगताओ अप्पे०भिंगार जाव धूवकडच्छयहत्थगयाओ भरहराया ॥१८॥ पित्तो पिट्ठतो अणुगच्छति, तते ण से भरहे राया सविडीए सबजुत्तीए जाव णिग्योसणाइयरवेणं जेणेव आउहपरसाला जेणेव | ALSARERAKASHARE प्रह दीप अनुक्रम भगवंत ऋषभस्य केवलज्ञान एवं समवसरणं वर्णनं चक्रवर्ती भरतस्य दिग्विजय-यात्रायाः वर्णनं [194] Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग - 3 "आवश्यक" - मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [ ९२६/३४६-३४९८ आष्यं [३२-३७] अध्ययनं [-] मूल [- गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक पूर्णां उपोधात निर्युक्तौ ॥१८३॥ से दिव्यचकरपणे तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता चकरयणस्स आलोय पणामं करेति करेत्ता लोमहत्थगं परानुसति २ च तं चकं लोमहत्थएणं पमज्जति पमज्जित्ता दिव्वाए दग्धाराएं अक्खंड अक्खत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचगुलितलेणं चच्चिके दलपति दलविता अम्गेहि वरहिं गंधेहि य मछेहि य चुमेहि य वासेहि य अच्चेति अच्छेत्ता पुप्फारुहणं मालारुहणं गंधारुहणं चुभारुहणं वष्णारुणं आभरणारुहणं करेति करेत्ता अच्छे सहहिं संतेहिं रयतामए हिं- अच्छरसातंदुलेहिं चकरयणस्स पुरतो अट्ठट्ठमंगलए * आलिद्दर, आलिहिता कमग्माहग्गहितकरतलप भट्ट विप्पसुकेणं दमदमेणं कुसुमेणं मृकपुप्फपुंजांवयारकलित करेति, करेचा चंदष्पभवइरवे रुलिय पिमलडंडे जाब पूर्व दलयति २ तिक्खुनो आयाहिणपयाहिणं करोति करेत सत्तट्टपयाई पच्चीसक्कति २ वाम जाणुं अचेति चेत्ता दाहिणं जाणं धरणितलंभि हिट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवाडेति णिवाडेसा ईसि पन्नमति २ करतलपरिग्गहितं जाव मत्थए अंजलि कट्टु चकरयणस्म पणामं करेति करेना आयुधघरसालाओ पडिनिक्खमति पडिनिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेथेच उपागच्छति उपागच्छत्ता सीहासणवरगते पुरस्थाभिमुद्दे णिसीदर, मिसीचा अट्ठारस सेणिपसेणीओ सदावेति सदावेचा खिप्पामेव भो ! उस्सुकं उकरें उकि अदेज्जं अमेज्जं अभडप्पवेसं अडंडकुडंडिमं गणियावरणाज्जकलित अणेगता लायराणुचरितं अणुदुयमुतिंग अमिलायमल्लदामं पमुदितपकीलितसपुरजणुज्जाणवतं विजयवेजयचकरयणस्स अट्ठा हितं महामहिमं करेना म एमाणतियं विप्यामेव पच्चपिण, तेऽवि तहेब करिंति जाव पञ्चपिणिति । तर से चकरपणे अट्टाहियाए णिब्बताए समाणीए आयुधधरसालाओ पडिणिक्खमति २ अंतलिक्खपडियमजक्स [195] श्री ऋषभ चरितं भगवत्श्रेयांस भवाः ॥१८३॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 भरतस्यदिग्विजयः प्रत सूत्रांक श्री हस्ससंपरिबुडे दिव्वतुडियसहसन्निनाएण पूरते चव अंबरतलं गंगाए महानदीए दाहिणिल्लेणं कूलणं पुरस्थाभिमुहे पयाए यावि- आवश्यक होत्था, तए णं से भरहे राया हट्ठतुट्ठजाब कोडावयपुरिसे सद्दावेत्ता एवं बयासि--खिप्पामेव भो! हयगयरहपवरजोहकलितं चाउ- उपोषात त रंगिणिं सेणं समाहेह, आभिसर्ग च हत्थिरयणं पडिकप्पहत्तिकटु मज्जणधरं अणुपविसति, तहेव जाव ससिव्व पियदसणे गरवती HARY| मज्जणघराओ पडिणिक्वमति २ हयगयरहपवरवाहणभडचडकरपहकरसंकुलाए सेणाए पहितकित्ती जेणेव बाहिरिया उवहाणसाला जेणेव आभिसेक हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छति उबागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसंनिभं गयति णरवती दुरुटे, तए णं से भरहाहिवे ॥१८॥ गरिंदे हारोत्थसुकवरचितवच्छे कुंडलउज्जोइयाणणे भउउदिचसिरये णरसीहे णरवई परिंदे णरवसभे मरुयरायवंसप्पमूते कप्पे अभधियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे पसत्थमंगलसतेहिं संथुबमाणे जयसहकतालोए हथिखंधवरगते सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं घरिज्जमाणेणं सेयचामराहि उद्घबमाणाहि २ जक्खसहस्ससपरिघुड़े बेसमणे चेत्र धणवती अमरवतीसंनिभाए इड्डीए पहितकित्ती गंगाए महाणदीए दक्विजिल्लणं कृलेणं गामागरनगरखेडखम्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमसंवाहसहस्समंडितं थिमितमेदिणीयं वसुई ट्र अभिजिणमाणे २ अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छमाणे २ तं दिव्यं चकरयणं अणुगच्छमाणे २ जोयणंतरियाहिं वसहीहिं वसमाणे २ जेणेव मागहतित्थे तेणेव उबागच्छति । तं च किल चक्करयणं जोयणं गतूण ठाति, तत्थ किल जोयणाण संखा जाता, नए 16 ण से मागहतित्थस्स अदूरसामते दुवालसजोयणायाम णवजायणविच्छिन्नं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेति करता द वडतिरयणं सद्दावेति सद्दारेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया मम आवासं पोसहसालं च करेहि, एयमाणत्तिर्य पच्च| प्पिणाहि, तए ण ते जाव पच्चप्पिणति । तएणं से गया आभिसेगाओ हस्थिरयणाओ पच्चोरुहति २ जेणेव पोसहसाला तेणेच ** दीप अनुक्रम * ॥१८४॥ [196] Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 भरतस्यदिग्विजयः प्रत सत्राक उवागच्छद उवागरिछत्ता जाच पोसहसाल पमज्जह पमज्जित्ता दम्भसंथारय संथरति, मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगेहतिर आवश्यक उपोद्घात IIपोसहसालाए पोसहिए बंभयारी ओमुक्कमणिसुबन्ने ययगतमालावनगविलवणे णिक्खित्तसत्थमुसले एगे अब्बीए दम्भसंथारोवगते निर्यता पोसह पडिजग्गमाणे विहरति, तए पं से अट्ठमभचंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमित्ता हाए जाव सच्छत्तं जाच । चाउर्घटं आसरहं दूरूढत्ति । तए णं से चाउरंगिणीए सेवाए चक्करयणदेसितमग्ये अणगरायसहस्साणुयायमग्गे महता उस्कुट्टि॥१८५॥ सीहणादबोलकलरवेणं पक्खुभियमहासमृद्दरवभूतं पिव करमाणे करेमाणे पुरत्थाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहति, जाव रहस्स णाभी उल्ला, तए णं तुरगे णिगिण्हति णिगिण्हाइचा रहं ठवेति ठवेचा धणुं परागुसति, तए णं तं अतिरुग्गयबालचिडईदघणुसणिकासं बरमहिसदरियदप्पियदढघणसमग्गरयितसारं उरगगवलयगवरपरहुतभमरकुसणीलीणिधंतधोयपट्ट णिगु| गोवियमिसिमिसेंतमणिरयणघंटियाजालपरिक्खिन तडितरुणकिरणतवणिज्जबद्धचिन्धं दद्दरमलयगिरिसिहरकेसरचामरवालद्धयंदबिंब कालहरितरत्नपीतमुक्किलबहुण्हारुणिसंपिणिद्धजीवं चलजीब जीवितंतकरण धणुं गहेऊण से णरवती उसु च बरवहरकोट्टिम (डियं ) वइरसारतोण्डं कंचणमणिकणगरतणधोइट्ठसुकयपुखं अणेगमणिरयणविविहसुबिरहयणामधिं वइसाई ठाइऊण ठाणं आयतकवायतं च काऊण उसुमुदार, इमाई वयणाई तत्थ भाणीय से गरवती-हंदि सुर्णतु भवतो बाहिरतो खलु सरस्स जे देवा । णागा सुरा सुबन्ना तेसि खु णमो परिवयामि ॥१॥ हंदि सुणतु भवंतो अम्भितरओ सरस्स जे देवा । णागा सुरा मुवन्ना सन्चे ते | बिसयवासी इमे ॥ २॥ इतिकटु उसु णिसिरति, परिगरणिगलितमझो वायुद्धयसोभमाणकोसेज्जो । चित्तण सोभए धणुवरेण इंदो व पच्चक्खं ॥ ३ ॥ तं चलायमीणं पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ बामे हत्थे परवइणो तमि विजयंमि ॥ ४ ॥ दीप अनुक्रम ॥१८५॥ [197] Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग - 3 "आवश्यक" - मूलसूत्र- १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) 1 मूलं [-] /गाथा -], निर्युक्तिः [ १२६/३४६-३४९ आयं [३२-२७] अध्ययनं [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोषात निर्युक्तौ ।। १८६ ।। । aj से सरे दुवालस जोयणाई गंता मागहतित्थकुमारस्त भवणंसि णिवदिते महता सदेणं, से तं दद्दूण आमुरुते जाव तिवलितं भिउटिं पिलाडे साहद्दु एवं वयासी केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थर० हिरिसिरिपरिवज्जिते हीणपुण्णचउदसे दुरंतपंतलक्खणे जेणं ममं इमाए एताणुरूवाए दिव्वाए देविडीए दिव्याए देवजुतीए दिव्येणं देवाणुभावेणं लद्धे पत्ते अभिसमग्रागते भवणंसि सरं णिसिरतिचिकट्टु सीहासणाओ अम्मुट्टेत्ता तं सरं गेण्हति गेता णामगं अणुप्पवाएति । तत्थ इमे एयारूवे अम्भस्थिर संकप्पे समुप्यजित्था उप्पने खलु भो जंबुद्दीवे दीवे भारहे चासे भरहे नामं राया चाउरंत चक्कवडी, तं जीतमेत तीतपच्चुपण्णमणागताणं मागहतित्थकुमाराणं चक्कवट्टीणं उवत्थाणियं करेत्तएत्तिकद एवं संपेहेद, संपेहिना हारे मउडे कुंडलाई कडगाणि तुडियाणि य वत्थाणि महरिहाणि आभरणाणि य सरं च णामाहयकं मागहतित्थोदगं च गेण्हीत, गेण्हेसा जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छति, अंतलिक्खपडिवले सखिखिणियाई पंचबनाई घस्थाई पवर परिहिते करतलजाब जपणं बिजएणं बद्धावेति, वृद्धावेत्ता एवं वयासी- अभिजिए णं देवाणुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे पुरस्थमेणं मागइतित्थमेराए, तं अहं णं देवाणुप्पियाण विसयवासी अहं णं देवाणुप्पियाणं आणचीकिकरे अहं णं देवाशुप्पियाणं पुरथिमिल्ले अंतपाले, तं पडिच्छंतु णं देवा ! मम इमे एतारूवं पीतिदाणंतिकट्टु हारं जाव तित्थोदगं च उवणेति, संविय णं पडिच्छति २ तं देवं सक्कारेह सम्माणेड़ पडिविसज्जेति । तणं से भरहे राया रहं परावचेति, लवणसमुद्दातो मागहतित्थेणं पच्चुत्तरति २ जेणेव विजयसंधावारणिवेसमार्गतूणं रहातो पच्चोरुहिता मज्जणघरंसि उवगते मज्जणघरवतव्वता गेयन्वा जाब पडिणिक्यमति, भोयणमंडवंसि सुहासणवरगते अडममत्तं पारेति पारेता जेणेज बाहिरिया उचट्ठाणसाला जाब पुरस्थामिमुहे मिसीदति णिसीदित्ता अट्ठारस सेणिप्पणीओ सहावेति सहा [198] भरतस्य दिग्विजयः ॥१८६॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक चूणों नियुक्ती दीप अनुक्रम हवेचा एवं वयासी- खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया ! उस्सुक्कं जाय मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अवाहितमहामहिम करेह २ जावा आवश्यक पच्चप्पिणति । तए णं से दिव्ये चक्करयणे वइरामयतुंचे लोहियक्खमयारए जवृणयणेभीए णाणामणिखुरप्पचालिपरिगते मणि- दिग्विजयः मुत्ताजालभूसिते सणंदिघोसे सखिखिणीए दिव्वतरुणरविमंडलणिमे जाणामाणरयणधीटयाजालपरिक्खित्त सव्योउयसुरभिकुसुम-161 उपोद्घात आसत्तमल्लदामे अंतलिक्खपीडवा जक्ससाहस्सपडितुडे दिव्यतुडियसद्दसनिणादेणं पूरते चव अंबरतलं णामेण य सुदंसणे णरब इस्स पढम चक्करयणे तस्स देवस्स ताए महिमाए णिवत्ताए समाणीए आयुधधरसालातो पडिणिकखमति पडिणिक्खमित्ता जाब ॥१८॥ दादाहिणपच्चरिथम दिसि वरदामतित्थाभिमुहे पयाए यावि होस्था, भरहवि यणं तहेव जाब हस्थिबंधवरगते सतबरचामराहि उधुव्वमाणीहि मागइयवरफलगपवरपरिगरखेडयवरवम्मकवयमाढीसहस्सकलित उक्कडवरमउडतिरीडपडागज्झयवेजयंतिचामरचलंतच्छधकारकलिते असिखेवणिखग्गचावणारायकणगकप्पणिसूललउडाभिडिमालधणुतोणसरपहरणेहि य कालणीलरुहिरपीतसुक्किल्लअणेगचिंधसयसण्णिविट्ठ अष्फोडितसीहणायच्छेलितहयहेसितहत्थिगुलुगुलाइतअणेगरहसयसहस्सघणघणेतणिहम्ममाणसद्दसहितेण जमगं समकं भंभाहारंभकिणितखरमुहिमुगदसंखीयपारीलबब्बयपीरख्यायणिवंसवेणुवीणारियचिमहतिकच्छभिरिगिसिगिकलतालकंसतालकरधाणुत्थिदण संनिनादण सकलमबि जीवलोग पूरयंते बलवाहणसमुदएणं जक्खसहस्ससंपरिवुड बेसमणे चेव ॥ धणवती अमरवतीसंनिभाए इड्डीए पहितकित्ती गामागर तहेब जाव वरदामतित्यंतण उवागच्छति जाव खंधावारनिवसं करेति, करेत्ता बलतिरयणं सदावति २ एवं बयासी--खिप्पामेव भो ! ममं आवसह पोसहसालं च फंरहि २ जाव पच्चप्पिणाहि, तए ण सी १८७॥ आसमदोणमुहगामपट्टणपुरवरखंधावारगिहावणविभागकुसले एगासीतिपदेसु सवेसु चव वत्थूसु णेगगुणजाणगे पडिए विहिन्न ४ [199] Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [ ३२-३७] अध्ययनं [-] मूल [- /गाथा ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक उपोद्घातः नियुक्तौ ॥ १८८ ॥ ४ पणतालीसाए देवयाणं वत्थुपरिच्छाए गेमियासेसु भत्तसालासु कोट्टणिस व वासयघरेसु य विभागकुसले छज्जे वेज्झे य दाणकम्मे पहाणबुद्धी जलयाणं भूमियाण य भाजणं जलथलगुहासु जंतेसु परिहासु य कालनाणे तहेव सदे वत्थुपदेसे पहाणे गन्भिणिकृष्णरुक्ख वह्निवेदितगुणदोसार्वियाणए गुणड्डे सोलसपासादकरण कुसले चउसडिविकप्पवित्थयमती मंदावत्ते य बङ्गमाणे सोत्थिरुपग तह सव्वओभद्दसन्निवेसे य बहुविसेसे उइंडियदेवको दारु गिरिरवातवाहणविभागकुसले इय तस्स बहुगुणड्डे थवतीरतणे णरिंदचंदस्स । तवसंजमणिविट्टे किंकरवाणी उपद्वाति ॥ १ ॥ सो देवकम्मविधिणो खधावारं परिदेवयणेणं । आवसहभवणवलित करेति सच् मुडुचेणं ॥ २ ॥ करेति य पवरपोसह घरं जाब पच्चष्पिणति । स तं चैव जाब चाउघंटे आसरहंतेणं उपागच्छति । तए णं तं धरणितलगमणलहुं ततो बहुलक्खणपसत्थं हिमवंत कंदरंतर शिवाय संवति चित्त तिणिसदलिय जंघृणयसुकयकुप्परं कणयडंडियारं पुलगावडरइंदणीलसा सगपवालवरफरिहरयणले मणिविद्मविभूसियं अडयाली साररयिततवणिज्जपट्टसंगहितजुततुं वधसितपसितणिम्मितणवपट्टपुट्टपरिणिङ्कितं विसिलगुणबलाहबद्धकम्मं हरिपहरणरयणसरिसचक्कं कक्केतणईदणालसा सगसुसमाहितबद्धजालककडं पसत्थविच्छिष्णसुमधुरं पुरवरं व गुत्तं सुकरणतवणिज्जजुचकलितं कंटकणिजुत्तकष्पणं पहरणाणुयात खडगकणग4 घणुमंडलग्गवरसत्तिकोंततम रसरसयबत्तीस तोणपरिमंडियं कणयरयणचित्तं जुनं हलीमुहचलागगयदन्तचंद मोत्तियतणसोतियकुंदकुड्यवरसिंदुवारकंदलवर फेणणि गरहारकासप्पकास धवलेहि अमरमणपवयणजइणचवलसिग्वगामीहिं चउहिं चामराकणगभूसितंगेहिं तुरंगेहिं सच्छत्तं सज्झयं सघंर्ट सपडागं सुकयसंधिकम्मं सुसमाहितसमरकणगगंभीरतुलषोसं वरकुप्परं सुचक्कं वरणेमीमंडले वरधुरातोडे वरवरबद्ध वरकंचणभूसितं वरायरियणिम्मितं वस्तुरंगसंपतं बरसार हिसुसंपणिहितं वरपुरिसे बरमहारहं दुरूढे आरूढे [200] भरतस्य दिग्विजयः ॥१८८।। Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री य वररयणपरिमंडित कणगखिखिणीजालसोभित अयोज्झं सोदामणिकणकतवितपंकजजामुयणाजलणजलितसुयतुंडराग गुंजबंधुजी-11 आवश्यक | वगरचहिंगुलुयणिगरसिंदूरमहलकुंकुमपोरवयचलणणयणकोइलदसणावरणरइतातिरेगरत्तासोगकणगकेसुयगजतालुसुरिंदगोवगसमप्प-- भरतस्यचूर्णौ । | भपगास बिंबफलसिलप्पवालउडेतसूरसारिस सम्बोउयसुरभिकुसुमआसत्तमल्लदामं ऊसितसेतज्झयं महामहरसितगंभीरणिद्धघोसं दिग्विजयः * सत्तुहिदयकंपणं पभाए सस्सिरीयं णामेणं पुहविविजयलंभंति वीसुतं लोगवीसुतजसे, अह तं चाउग्वंटं आसरहं पोसहिए णरवती |दुरुढे सेसं तहेच, गवरं दाहिणाभिमुहे, पीतदाणं मालं मउलि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडियाणि य, सेस तं चेव जाव ॥१८९।। उत्तरपच्चत्थिमं दिसिं पभासतित्थाभिमुहे पयाते, जाव पच्चत्थिमदिसाभिमुहे पभासतित्थेणं लवणं ओगाहति, सेस तं चेव, पीतिदाणं चूलामणी दिव्वं उरत्थं गेवेज्जं सोणीसुत्तं च कडगाणि य तुडियाण य । तते णं से दिब्बे चक्के पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्टाहियाए महिमाए णिवत्ताए अंतलिक्खपडिवण्णे जाव अंबरतलं सिंधूए महाणदीए दाहिणिल्लणं कूलेण पुरत्थिमं दिसि | & सिंधुदेविभवणाहिमुहे पयाते यावि होत्या, भरहेविय णं तहेव जाव सीए भवणस्स अदूरसामंत विजयखंधावारनिवेसणं तहेव अट्ठमभत्तग्गहणं तमि परिणममाणसि सिंधुदेविए आसणचलणं ओहिपउंजणं जातकप्पसरणं जावकरेमित्तिकटु कुंभट्ठसहर्स रय-17 xणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्तााण य दुवे कणगभद्दासणाई कडगााण य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य गेण्हित्ता *जाव उवागच्छति जहा मागहकुमारे जाव आभरणाणि य उवणेति, रायावि तं सकारेति जाय अट्ठाहियाए महिमाए णिवत्ताए का समाणीए से चकरयणे आयुधसालाओ णिक्खमित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसि बेयडुपब्धयाभिमुहे पयाते यावि होत्था, एवं सव्वं| ४ ॥१८९॥ पुववन्नियं जाव वेयड्डपब्वयस्स दाहिणे णितंचे खंधावारं णिवेसेति, एवं जहा चव सिंधुदेवीए तहेव वेयद्यगिरिकुमारस्सवि दीप अनुक्रम [201] Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत 36RRAYA सत्राक 18 आसणं चलति जाव पीतिदाणं, आभिसेके मडडालंकारे य आणति च, अवसेस तं चेय जाव कडगाणि य तुडगाणि य जाव 8. मरतस्यआवश्यक दतए ण से चकरपणे पचस्थिमदिसि तिमिसगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था, जाव तीए गुहाते असामंते खंधावारकरणं, तहेच दिग्विजयः चूर्णी | | अट्ठमभत्तासे परिणममाणंसि कयमालए देवे चलियासणे उवागते जाव पीतिदाणं थीरयणस्स तिलगचोहर्स भंडालंकार कडगाणि उपोद्घात नियुक्ती ५ य जाव आभरणाणि य, एवं जाव अडवाहिया णिवत्ता । तए णं से भरहे सुसणं सेणाबहरयणं सद्दावेति सद्दावेत्ता एवं वयासी गच्छाहि णं भो सिंधूए महाणतीए पचाथिमिल्लं णिक्खुढं ससिंधुसागरगिरिमेराग समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि २ अम्गाई ॥१९ ॥ पराई रयणाई पडिच्छादि पडिच्छाहित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि, तएणं से सेणावई बलस्स जता मरहे वासंमि वीसुतजस महाबलपरकमे महप्पा ओयंसी तेजलक्खणजुत्ते मिलक्खुमासाविसारदे चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निकखुटाणं णिवाण य | दुग्गमाण य दुक्खपवेसणाणं बियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेणावई सुसेणो भरहेणं रमा एवं आणते समाणे हद्वतुट्ठ जाव दसणहं मत्थए अंजलिं कटु एवं सामी तहत्ति आणाए विणएणं बयणं पडिसुणेति, पडिमुणेत्ता जाच सए आवासे उवागच्छित्ता कोटुंबियपुरिसे आणति-खिप्पामेव भो! आभिसेगं हस्थिरयणं पडिकप्पह, हयगय जाच सण समाहेह, जाय पञ्चप्पिणहत्तिकट्ट जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छति जाव जहां भरहो जाय पहाए कपबलिकम्मे जाव पायच्छिचे सनद्धबद्धवम्मियकबए उप्पीलियसरासणवट्टिए पिणडगेबेज्जपट्टे आविद्धविमलवरचिंधपट्ट गहियाउहपहरणे अणेगगणनायग जाब संपरिबुडे सकोरेंटमल्लजाव जयसहकलालाए मज्जणघराओ पडिनिक्खमति पडिनिक्वमित्ता जाब हत्थिरयणं दूरुढे । ततेणं से हथिखंधवग्गते जाब चामराहिं उाखप्पमाणाहिं २ हयगय जाय इंदुहिनिग्घोसणाइतरवण जेणेव सिंथमहानदी तेणेव उवागच्छति २| दीप अनुक्रम CCESCRECRACKSONG सस ॥१९ ॥ *45844-58 [202] Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राका श्री दिवं चम्मरयणं परामुसति, तए ण तं सिरिवच्छसरिसरूवं मुत्तातारयदचंदचित्तं अयलमकं आभिज्जकवयं जं तं आवश्यक सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिवं चम्मरयणं सणसत्तरइयं सम्बधन्नाई जत्थ रोहंति एगदिवसेण पाविताई, वासं णाऊण चकवट्टीण पराम? दिव्वचम्मरयणे दुवालसजायणाई तिरिय पवित्थति तत्थ साहियाई, तएणं से चम्मरयणे खिप्पामेव ट्रादिविजया गावाभूते जाते, तए ण से सेणावइ सर्खधाबारवले चम्मरयणं दूरुहति २ सिंधुं महानई विमलजलतुंगवीइयं णाबाभूतेणं चम्मरयणेणं उत्तरति, ततो महाणदि उत्तरित्तु सिंधु अपडिहयसासणे य सेणावति कहिंचि गामागरणगरपब्वयाणि खेडकब्बडमचाणि पट्टणाणि ॥१९१॥दय सिंहलए बरे य सन्चं च अंगलोकं विलायलोगं च परमरम्मं जवणदीव च पबरमणिकणगरयणकोसागार समिद्धं आरब करोमके अलसंडविसयवासी य पिक्चुरे कालमुहे जोणए य उनरवेयड्नुसंसिताओ य मेच्छजाती बहुप्पगारा दाहिणअवरेण जाब सिंधू ससागरंतोचिय सम्बपवरकच्छं च ओबेऊण पडिणियत्तो बहुसमरमाणज्जे भूमिभागे य तस्स कल्छस्स सुहनिसने, ताहे ते जणवयाण गगराण पट्टणाण य जे य तहिं सामिया पभूतागरपती य मंडलपती य पट्टणपती य सब्वे घेत्तूण पाहुडाई आभरगाणि रयणाणि य बत्थाणि य महरिहाणि अन्नं च जं वरिट्ट रायरिहं जं च इच्छियवं एतं सेणाबइस्स उवणेति, मत्थए कयंजलिपुटा पुणरवि काऊण अंजलि मत्थयमि पणता तुन्भे अम्हज्य सामिया, देव! तं च सरणागता मो, तुम विसयवासिणोत्ति विजय जपमाणा सेणावइणा जहारिहं ठवितपूजिता विसज्जिता णियत्ता सगाणि णगराणि पट्टणाणि य अणुपविट्ठा। ताहे सेणावती सविणतो घेत्तूण पाहुडाई आभरणाणि रयणानि भूसणाणि य पुणरवि सं सिंधुणामाधिज्ज उतिने अणहसास-सारा णवले तह रचो भरहाहिवस्स णिवेदहता य अप्पिणित्ता य पाहुडाई सक्कारियसंमाणतसहरिसे विसज्जिते सगं पडमंडव HIS**** दीप अनुक्रम *** [203] Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सूत्रांक श्री मतिगते । तए ण से सुसेणे सेणावती पहाते जाव पायच्छित्ते जिमितभुत्तुत्तरागते समाणे जाव सरसगोसीसचंदाकिनगसरीरोभरतस्यआवश्यक उप्पि पासादवरगते कुट्टमाणेहिं मुइंगमस्थएहिं बचीसइबद्धपहिं नाडएहिं बरतरुणिसंपउत्तेहिं उबणचिज्जमाणे २ उवागज्जमाण २५ दिग्विजयः चूर्णी उवलालिज्जमाणे २ महताऽहयणगीयवाइयतीतलतालतुडियघणमुइंगपटुप्पवादितरवेण इड्डे सद जाव पंचविहे माणुसए नियुक्ती है कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरति । तते णं से भरहे अन्नया कयाती सेणावई सद्दावेत्ता एवं चयासी-गच्छण भो ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे ॥१९॥ विधाडेहि २ जाव पचप्पिणाहि, तए पं से सेणावती तहेव जहा भरहो जाव अट्ठमभत्तं गेण्हति, तंमि य परिणममाणसि पोसहसा-10 दलाओ पडिनिक्खमित्ता हाते जाव धूवपुप्फगंधालहत्थगते मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ जेणेव तिमिसगुहाए से दारे तेणेव पहारेथ गमणाए: तए णं तस्स बहवे राईसर जाव पभितओ उप्पेगइया उप्पलहत्थगया जाच पिट्टतो अणुगच्छंति, तए णं । | तस्स बहुओ खुज्जाओ जाब विणा(चिला)ताओ अप्पेगइयाओ कलहसत्थगताओ जाव धूवकडुच्छयहत्थगताओ अणुगच्छंति, तए णं से | सब्बिड्डीए जाब णादितरवेणं जेणेव ताण कवाडाणि तेणेव उवागच्छइ २ आलोए पणाम करेइ, एवं जहा भरहो चकरयणस्स तहेब जाव मंगलए आलिहर, आलिहित्ता दंढरयणं परामुसा, तए णं तं भवे दंडरयणं पंचलइयं वइरसारमतियं विणासणं सबसत्तुसेन्नाणं खंधाबोरेणरवइस्स गहृदरिविसमपन्भारगिरिपब्धताणं समीकरणं संतिकरणं सुभकरं रबो हिदइच्छितमणोरहपूरगं दिळ,म-18 पडिहतं दंडरयणतंगहाय सनट्टपदे पच्चोसक्का, ते कवाडे तेण महता महता सदेणं तिक्खुत्तो आउडेइ, तए ण ते दारा महता मह-18 ता सदेणं कुंचारयं करेमाणा सरसरस्स सकाई सकाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था तते ण सेणावती जाव भरहस्स तं निवेदेइ ।। दीप अनुक्रम | ॥१९॥ [204] Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत भरतस्यदिग्विजयः GEI95 भरहेपि यणं हाते जाव गयवर्ति गरवती दुरुढे, तए ण से भरहे मणिरयण परामुसइ, तो तं चउरंगुलप्पमाणमेस च अणग्य 1 आवश्यक तंस छलस अणोवमजुति दिवं मणि रयणपतिसमं बेरुलिय सम्बभूतकंत जेण य मुद्धागतेणं दुक्खं न किंचि जाव हवति, अरोगे चूर्णी य सब्वकालं, तेरिच्छियदिव्वमाणुसकता य उबसग्गा सब्बे ण कति तस्स दुक्ख, संगामेऽविय असत्थवज्झो होहिति णरो, उपोद्घातामणिवरं धरतो ठितजोवणकेसअवट्टितणहो, हवति य सब्बमयविप्पमुक्का, तं मणिरयण गहाय से परवई हत्थिरयणस्स दाहिणिनियुक्ताल्लाए कुंभीए निक्खिवेद । तए णं से भरहााहवे नरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छेजाव अमरवतीसंनिभाइड्डीए पहियकित्ती मणि निरयणकउज्जोवे चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुजातमम्ग महता उफिट्ठिसिंहनादबोलकलकलरवेण पक्खुभियसमुदरवभूयIPI पिव करेमाणे करेमाणे तिमिसिगुहे दाहिणिल्लेणं द्वारेण अतोति ससिध मेहंधकारणिवहं । | तए ण से भरहे छत्तलं दुवालसंसिय अट्ठकण्णिाकं अहिकरणसठित अवसोवनि कागणिरयणं परामुसति, तए ण तं चउर& गुलप्पमाणमेत्तं अट्ठसुवनं च विसहरणं अतुलं चउरंससंठाणसंठियं समतलं माणुम्माणपमाणजोगजुत्तोलोगे चरति सव्वजणपन्न वणका णवि चंदे ण किर तत्थ सूरे णवि अग्गी ण इव तत्थ मणिं णो तिमिरं नासेति अंधकारे जत्थ तेहिं तकं दिल्बप्पभावजुत्तं, | दुवालसजोयणाणि तस्स लेसाउ विव९ति तिमिरणिगरपडिसिहिकाओ, रतिं च सयकाल खंधाबारे करति आलोक दिवसभूत, जस्स & पहावेण चकवट्टी तिमिसगुहमतीति सेनसहिते अभिजेतुं वितियमड्डमरहं, रायपवरे कागिणिं गहाय तिमिसगुहापुरथिमपञ्चस्थि मिल्लसु कडएसु जोयणंतरियाई पंचधणुसयायामविक्खंभाई जोयणुज्जोयकराई चकनेमिसंठियाई चंदमंडलपडिणिकासाई एगणपन्नट्रमंडलाई आलिहमाणे २ अणुपविसइ, जाव धरति चकबट्टी ताव किर गाणि मंडलाणि धरंति, गुहा य किर तहा उग्घाडिया चेव ।। दीप अनुक्रम ॥१९॥ [205] Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 R प्रत सत्राक श्री तए णं सा तिमिसगुहा तेहिं मंडलेहिं आलोयभूता उज्जोयभूता जाता याबि होत्या, तीसे ण गुहाए बहुमझदेसभाए एत्थ भरतस्यआवश्यक उमुग्गनिमुग्गाजलाओ नाम दुवे महानदीओ पण्णताओ, जाओ णं तिमिसगुहाए पुरथिमिल्लाओ भित्तिकड़गाओ पढाओ दिग्विजयः चूणी उपोद्घात पच्चस्थिमेण सिंधुमहानई समप्पेंति, जन उम्मग्गजलाए तणं वा क8 चा पत्तं वा सकरं वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे चा | नियती मणुस्से वा पकिखप्पति तनं सा तिखुत्तो आहुणिय आहुणिय एगते थलसि एडेइ, जनं निमुग्गजलाए तन सा अंतोजलंसि " णिमज्जावेति । ॥१९४॥ तए ण से बढतिरयणे भरहवयणसंदेसेणं तामु णदीसु अणेगखंभसयसहससंनिषि8 अचलमकपं सालंबणवाहगं सब्बरयणामयं सुहसंकम करेइ, तए णं से भरहे जाव चकरयणदेसितमग्गे जाव समुद्दरवभूतं पिव करेमाणे सिंधूए पुरथिमिलणं कूलेणं ताओ णदीओ तर्हि संकमेण जाब मुहेण उत्तरति, नए णं तीसे गुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कबाडा सतर्मय महता महता कोंचारवं करेमाणे सरसरसरस्स सयाई ठाणाई पच्चोसकित्था । तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरदभरहे वासे बहवे आवाडा णाम चिलाता परिवसंति, अट्ठा दित्ता वित्ता पिच्छिमविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइबा बहुधणा बहुजातरूपरयया जाव बहदासीदासगोम हिसगवेलगयप्पभूता बहुजणस्स अपरिभृता सरा वीरा विकता विच्छिन्नविपुलबलवाहणा बहुसु समरसंपराएमु लद्धलक्खा यावि होत्था, 18 तएणं तेसिं विसयमि बहूई उप्पादितसताई पाउन्भविस्था, तए णं ते ताणि पासित्ता जाव ओहतमणसंकप्पा शियायति । तए णं से भरहे राया चकरयण जाव रखभृतंपिव करेमाणे तीए गुहाए उत्चरिलेणं दुवारेणं पीति ससिब्ब मेहंधकारणिवहाओ । तए मंते "चिलाता तं पासित्ता आसुरत्ता जाव अन्नम सद्दावेति २त्ता एवं बयासी-एस र्ण दवाणुप्पिया! कई अप्पस्थियपस्थगे जाप अम्ह12 दीप अनुक्रम ॥१९५ SAKRA [206] Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री प्रत सत्राक SLSCA-4443 W है। विसए बलविरिएणं हवमागच्छति तं तहा गं धनामो जहा णं णो आगच्छतिनिकटु (त) अन्नमनस्स पडिमुणेता सनद्धबद्ध जाव* आवश्यक आउहप्पहरणा भरहस्स अग्गाणीएण सद्धि संपलग्गा । तए णं तं अग्गाणीयं हतमहित जाव दिसोदिसि पडिसहंति, तए णं से मुसेणे 31 चूर्णी भरतस्यसेणावती तं तहा पातिता आसुरुते कमलामेलगं णाम आसरयणं दूरुहनि, तएणं तं असीतिगंगुलमासितं णवणउतिमंगुलपरिणाहं दिग्विजयः उपोषात नियुक्तोद अढसयमंगुलमायतं बत्तीसंगुलमूसितासरं चउरंगुलकनाक बीसतिअंगुलबाहाकं चतुरंगुलजन्नुकं सोलसअंगुलजंघाकं चतुरंगुलमूसित खुरं मुत्तोलीसंवत्तवलितममं ईसी अंगुट्ठषणतपढ़ सष्णतपहं संगयपटुं पसत्यपटुं सुजातपटुं विसिपर्ट्स एणीजानुष्णयवित्थयतत्थपढें ॥१९५॥ 5 वेत्तलतकसंणिवातं अंकेल्लणपहारपरिवजितंगं तवाणिज्जथासकामिल्लाणवरकणकसुफुल्लयासकविचित्तरयणरज्जुपासं कंचणमणिकण गपतरकणाणाविहटियाजालमुत्तियजालगेहिं परिमंडितण पट्टेणं सोममाणण सांभमीणं कक्कतणइंदनीलमरगतमसारगल्लमुहमंड-14 | णरतितं आविद्धमाणिक्कसुत्तकविभूसित कणकामयपउमसुकयतिलकं देवमतिविकप्पित सुरवरिंदवाहणजोग्गं च तं सुरूवं दूइज्जहै माणयं च चारुचामरामेलगं धरेतं अणट्ठम्मवाहं अभेलणयणं कोकासियवहलपत्तलच्छं सतावरणणवकणगतविततवणिज्जतालुजीहा सय सिरियाभिसेकघोणं पुक्खरपत्तमिव सलिलीबंदुजुयं अचंचलं चवलसरीरं चोक्खचरकपरिबाजको विव हिलीयमाणं २ 18 सुरचलणचच्चपुडेहिं धरणितलं अभिहणमाण २ दोविय चलणे जमकसमकं मुहाओ विणिग्गमंतं व सिग्घताए मुणालतंतुउदगमIN विणिस्साए पक्कमंतं जातिकुलरूवपच्चयपसत्यवारसावत्तकविमुद्धलक्खणं सुकुलप्पसूतं महावि भहकं विणीतं अणुकतणुकसुकुमाललोमणिद्धछवि सुजातं अमरमणपवणगरुलजइणचवलसिग्घगामि इंसिमिव खतिखमए सुसीसमिव पञ्चक्खतो विणीतं उदगहुतवह 8 ॥१९५॥ मा पासाणपंसुकदमससकरसवालइल्लतडकटगविसमपन्भारगिरिदरीमु लंघणपीलणणिस्थारणासमत्थं, अचंडपडियं हुंडयाई अणंसु दीप अनुक्रम [207] Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चाँ |Rयाई अकाल दाल च कालहेसि जियानंद गवसगं जिनपरीसह जनजानीयमल्लिहाणिकयनसुवनकोमल मणाभिरामं कमलामल| भरतस्यआवश्यकनामेण आसरयण सेणायनी कमेण समभिरुडे कुवलयदलसामले च ग्यणिकरमंडलनिभ मत्तुजणावणासणं कणकरतणडंडणवमा- दिग्विजयः लियपफसरभिगंधिणाणामणिलतकभत्तिचितं च पधातमिसिमितं निक्वधारं दिव्य खम्गरयणं लोके अणोवमाणं, तं च पुणो उपायात वंसकसिंगदिदंतकालायसविपुललोहडंडकवरबहरभेदयं जाव मच्चस्थ अप्पडिहतं, किं पुण देहेसु जंगमाणं , पन्नासंगुलदीही नियुक्त सोलस सो अंगुलाई विच्छिनी । अटुंगुलसाणाका जट्ठपमाणो असी भणिती ।। १॥ असिरयर्ण परवइस्म हत्थातो तं गहेऊणं-1 ॥१०॥ आवाधचिलाएहिं सद्धि संपलग्गे याधि होत्था । तए ण ते हतमहिते जाव पडिसेहेति, तए ण ते वरामा भीता तत्था यहिता उधिग्गा अत्थामा अपुरिसपरक्कमंता अधारणिजनिकटु अणेगाई जोयणाई अवक्कमंति, एगंतओ मिलायति २ जेगामेव सिंधमहाणदी तेणामेव उवागच्छन्ति उवागच्छदत्ता ४. वालुयासंथारके संघरंति २ नत्थ दुरुहात २ अट्टमभत्ताई पगेण्डंति२ उताणगा असणा कुलदेवते मेहमुहे णागकुमार देवे मणसीकरे-18 माणा करेमाणा चिह्नति । तएणं तेसि अट्ठमभत्तामे परिणममाणमि तेसि देवाणं आसगाई चलेंति, ने ओहिणा आभाएंति, अन्नमन्नं सहावात, सहावेत्ता तेसि अंतिय पाउन्भवति, अंतलिक्वपडियन्ना जाब एवं बयासी-भणह णं किं करामो केव भे मणसाइते?, तएणं ते चिलाता हट्ठा जाब विजएण बदायेत्ता एवं व०-एम णं केड अप्पत्थियपत्थर जाव तहण घत्नेह जहन्न नो आगच्छतिति, १९६॥ तए ण ते देवा एवपाहमु एमण देवाणुप्पिता! भरहे णाम राया चातुरतचकवट्टी महिड्डीए महाजुत्तीए जाब महासक्खे, णो है। का खलु एस सक्को केणइ देवेण वा दाणवेण वा किनकिंपुरिमगंधब्यमहोरगेण वा सस्थपतोगेण वा अग्गिपओगेण वा बिसप्पतो. दीप अनुक्रम Poonama [208] Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत गेण वा मंतप्पतांगण वा उद्दवेत्तए या पडिसेहेत्तए वा, तहायिय णं तुम्भ पियट्ठताए एयस्स उवसांग करमोत्तिक१ तसितियायो । आवश्यक अवक्कमति २ जाव खंधावारनिवेसम्म उप्पि जुगमुसलप्पमाणमेचाहिं धाराहिं उपरोप्पि सत्तरत्नं पचासंति ।।.. दिग्विजयः 1 तएणं से भरहे राया तं पासिता दिवं चम्मरयणं परामुसति, सेवि यणं खियामेव दुवालस जोयणाई तिरिय पवित्थरति, उपोद्यात तत्थ साहियाई. तए णं से भरहे सखंधावारवले तंसि दुरुहति २ दिव्वं छत्सरयणं परामुसति, तए पं तं णवणवतिसहस्सकंचणसनियुक्ता लागपरिमंडित महरिहं अतोज्झं णिब्वणसुपसत्थविसिट्ठलट्ठकंचणसुपुट्ठडंड मिदुरायतवट्टलद्रुअरविंदकन्नियसमाणरूवं वत्थिपदेसे ॥१९७|| दयपंजरविराजितं विविहभत्तिचित्तं मणिमुत्तपवालतत्ततवणिज्जपंचवाणियधोतरयणरूवरइतं रयणमिरीइसमोप्पणाकप्पकारमणुरंजिए-त साल्लियं रायलच्छीचिंधं अज्जुणसुवण्णपंदुरपच्चत्यपढदेसभागं तहेव तपणिज्जपट्टकम्मतपरिगतं अधिकसस्सिरीयं सारदरयणिकरविम-IM | लपडिपुत्रचंदमंडलसमाणरूवं नरिंदवामप्पमाणपगतीपवित्थडं कुमुदसंडधवलं रनो संचारिमं विमाणं सूरातववातबुढिदोसाण खत-18 करं तवगुणेहि लड़ 'अहृतं बहुगुणदाणं उट्ठणविवरीतमुहकयच्छायं । छत्तरयण पहाणं सुदुल्लभं अप्पपुत्राणं ॥ १॥ पमाणरा| तीणं तवगुणाणं फलेक्कदेसभाग विमाणवासेवि दुल्लमतरं वग्धारितमल्लदामकलावं सारदधवलम्भयंदणिगरप्पगास दिव्वं छत्त-17 | स्यणमहिवइस्स धरणितलपुनर्यदो । तए णं से दिव्वे छत्तरयण भरहणं रना परामुढे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई पवित्थरइ8 है| साहियाई तिरिय, तं खंधावारस्स उरि ठति, ठवित्ता मणिरयणं परामुसइ परामुसित्ता छत्तरयणस्स बधिभागे ठवेति । तस्स य अणइवरं चारुरूवं सिलणिहिअत्थमंतसेतू सालिजवगोधूममुग्गमासतिलकुलत्थसहिगणिप्फावचणकोदवकोत्थं-131" " | भरिकंगुवरालकअणेगधनावरत्तहारितगअल्लकमूलकहलिदिलाउकतउसतुंबकालिंगकविट्ठअंबबिलियसब्बणिण्फादए सुकुसले गाहा दीप अनुक्रम [209] Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H आष्यं [३२-३७] भाग - 3 "आवश्यक" - मूलसूत्र- १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) 1 मूल [- गाथा-], निर्युक्तिः [ ९२६/३४६-३४९८ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 अध्ययनं [-] श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥ १९८ ॥ वतिरयणेचि सब्वजणवसुतगुणे । तए णं से गाहाबतिरयणे मरहस्स रम्रो तदिवसपरभणिष्कादितताणं सव्वधनाणं अणेगा कुंभसहस्सा उबवेति । तत णं से राया चम्मरयणसमारूढे छत्तरयणसमोच्छन्ने मणिरयणकतुज्जोवे समुग्गगभूतेणं सुहं सुहेणं सत्तरत्तं परिवसति, गवि से खहा न तण्हा ण विलीतं व विज्जए दुक्खं । मरहाहिबस्स रवां खंधावारस्यवि तहेव ॥ १ ॥ किल बह्मांडपुराणं, तत्थ किल साली प्पति पुब्वण्हे अवरण्हे जिम्मह । तए णं तस्स सत्तरचे परिणममाणंसि एतारूवे अम्मत्थिए जाव समुपज्जित्था केस णं भो अप्पत्थियपत्थिए जाव जे णं ममेतारूवाए इड्डीए लगाए पताए जाव सत्तरतं वासति । तए णं एवं जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सन्नज्झितुं पयत्ता यानि होत्था । तए णं ते देवा सन्नद्धवद्भवम्मितकवया जाव गहियाउहप्पहरणा नागकुमारंतिकं पान्भवित्ता एवमाहेतु-हं भो कि तुम्भे ण याणाह भरहं रायं महीयं जाव महाणुभागं, जो खलु सक्का केणति देवेण जाय पडिसेहेत्तए वा, तहाचि णं एवं करेह, तं एवमवि गते कज्जे इतो खिप्पामेव अवक्कमह, अहव णं अज्ज पासह चित्तं जीवलोग, तएवं ते भीता जाव मेहाणीत साहरंति, साहरेचा आवाडचिलागसगासं गंतॄणं तं सब्वं साहेति तं गच्छह णं तुम्भे हाता जाव उलपडसाडगा ओचूलगणियत्था अग्गाई वराई रयणाई महाय पंजलिकडा पादपडिता भरहं रायाणं सरणं उबेह, पणिवयवच्छला व उत्तमपुरिसा, णत्थि मे भरहस्स रखो अंतकायां भयमितिकट्टु जामेव दिसं पाउन्भूता तामेव पडिगता । तेऽवि तहेब करता जाव रयणाई उबणेता मत्थए अंजलि कद एवं व०-वसुघर गुणधर जयवर हिरिसिरिधितिकित्तिधारक नरिंद !। लक्खणसहस्सधारक नायमिणं णे चिरं धारे ॥ १॥ हयवतिगजवतिणरवतिणवनिहियति भरहवासपढमवती । बत्तीसजणवय सहसराय सामी चिरं जीव || २ || पढमणरीसर ईसर हियईसर महिलिया सहस्साणं । देवसयसहस्सीसर चोइसरयणीसर जसंसी ।। ३ । सागरगि [210] भरतस्य दिग्विजयः ॥१९८॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत IM रिपेरं उत्तरपाईणमभिजितं तुमए । तं अम्हे देवाणुप्पियस्म विसए परिवसामो ॥ ४ ॥ अहो देवाणुप्पियाण इट्टी जुली जसे । आवश्यक " चूर्णी दिग्विजयः बले विरिए पुरिसकारपरक्कम दिब्बा देवजुती दिब्वे देवाणुभागे लद्ध पत्ते अमिसमभागते तं दिवाण देवाण इट्टी एवं चेव जाव सदा उपोद्घात, तर अभिसमभागया, तं खामेमु ण देवा० खमंतु देवा खमंतु रहंतु णं देवा० गाइसज्जो भुज्जो एवं करणताएतिकटु पादपडिताल नियुक्तीसरणं उदेति । तए णं से राया तेसि तं अग्धं पडिच्छति २ एवं वयासा-गच्छह ण भो तुम्भे मम बाहुच्छायापरिग्गहिता णिन्भया निरु॥१९९॥ बिग्गा सुह सुहेण परिवसह, णत्थि मे कुतोऽवि भयमस्थितिकटु सक्कारेत्ता सम्माणचा पडिविसज्जीत । तए णं सेणावती भरहादेसेणं पुथ्वभणितविहाणणं दोच्चपि पच्चस्थिमिल्ल णिकखुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुढाणि य तहेव ओयवेत्ता जाव पंचविहे भोगे पच्चणुभवमाण विहरति । तए णं से चक्करयणे अन्नया कयादी पडिणिक्खमति तहेव जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसं चुल्लहिमवंतपब्वयाभिमुह पयाते यावि होत्या, तए ण भरहेवि तहेब जाव चुल्लहिमवंतस्स दाहिणिल्ले णितंय दुवालसजोयणायाम जाव चुल्लाहमवतीगरिकुमारस्स देवस्स | | अट्ठमभचं पगेण्हति, तहेव जहा मागहकुमारस्स, णवरं उत्तरदिसाभिमुहे जेणेब नुल्लाहमर्वते तेणेव उवा०ते पव्वयं तिक्खुत्ता रहस्सीसेण फुसति फुसिना तुरए णिगिण्हतिर तहेब उर्ल्ड बेहासं सरं णिसिरति, सेविय वावरिं जोयणाई गंता तस्स देवस्स मेराए & णिवडिते, सेवि तहेब आसुरत्ते, सेस तं चेव, णवरं अहं देवाणुपियाणं उत्तरिल्ले अंतेपाले, पीतिदाणं सम्बोसहि च मालं च सरसं | च गोसीसचंदणं कडगाणि य जाब दहोदगं च उवणेति । दीप अनुक्रम 1 ॥१९॥ [211] Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] - पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूणीं प्रत रह तए पा से भरहे रह परावतेत्ता जेणेव उसभडे पवत तेणेय उवागच्छति उवागच्छित्ता संपव्यय तिक्खुत्तो रहसीसेणं फुसति || भरतस्यरिहं ठवेति, कागणिरयणं परामुसति २ उमभकूडस्स पुरस्थिमिल्लंसि कडगंसि णामगं आउडेति । 'ओसप्पिणीहमीसे ततियाएँ दिग्विजयः समाऍ पच्छिमे भाए । अहमि चक्कबट्टी भरहो इति णामधेज्जेणं ॥१॥ अहमंसि पढमराया इहाहि भरहाहिवो परवरिंदो । णस्थि मह पडिसन जितं मए भारहे वासं ॥ २॥ तिकटु रह पराबत्तेति २ तेणेव विहिणा खंधाधारमागतूण चुल्ल कुमारस्स नियुक्ती IN अट्ठाहियं संदिसति । ।।२०।। तए णं से चक्करयणे जाव णिवत्ताए समाणीए दाहिणं दिसि वेयडाभिमुहे पयाए यावि होत्था, सेस तं चव जाव उत्तर णियंये खंधावारणिवेस काऊण भरहराया पोसहिए णमिविणमी विज्जाहरराती मणसी करेमाणे करेमाणे चिट्ठति, तए णं तंसि | परिणममाणसि णमिविणमी दिव्याए मतीए चोदितमती अन्चमबस्स अतियं पाउब्भवति २ एवं वयासी- उप्पले खलु जाव चक्कयट्टी तं जीतमेत जाब विज्जाहराइणं चक्कवट्टीणं उबट्ठाणिय करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि जाव करमोचिकटु विणमी णाऊण चक्कबढी दिवाए मतीए चादितमती माणुम्माणप्पमाणजुत्तं तेयसी रूबलक्खणजु ठितजोव्वण केसव द्वितणहं सब्वामयराणासणि बलकार इच्छितसीउण्हफासजुतंति-तिम्भितणुकं तिसुतं तिवलीकं तिउन्मतं तिगभारं। विसु काले तिमु सेत तिआयतं तिसु त विच्छिनं ॥१॥ समसरीरं भरहे वासंमि सब्वमहिलप्पहाणं सुंदरथणजहणवयणकरचरणणयणं सिरसिरजदसणजणहिदयरमण. मणहरि सिंगारागारचारु० जाव जुत्तोबयारकुसल अमरवहणं मुरूवं स्वेण अणुहरंति, सुभई भईमि जोव्यणे बट्टमाणि विणमीद ॥२०॥ इत्थिरयणं णमी य रयणाणि कडगाणि य तुडगाणि य गेहति २ ताए उक्किट्टाए जाच विज्जाहरगतीए अंतलिक्खपडिवमा दीप अनुक्रम [212] Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGE श्री सखिखिणियाई जाब विजएणं बद्धाति बद्धावेचा एवं बयासी- अभिजिते ण देवा० जाव अम्हे देवाणु० आणत्तिकिंकरित्तिकटु । दिग्जयः आवश्यक +12 समप्येति । तए ण भरहो ते सक्कारेति जाव पडिविसज्जेति, सेस तं चेव. अन्ने भणंति-णमिविनमिणो रायाणो णायाणन्ति, I नवनिधयः चूी ६ द्र तेहिं समं जुद्धं पारस बरिसा, पच्छा ते पराजिता समाणा विणमी इस्थिरयणं णमी रयणाणि य गहाय उवागतत्ति । तए णं से | चक्के णमिविणर्माणं अट्ठाहिताए णिव्वताए समाणीए तहेव जाव उत्तरपुरस्थिनं दिसं गंगादेविभवणाभिमुहे पयाए यायि होत्था । भरहे तहेब जहा सिंधुदेवीए, णवरं सा से कुंभट्ठसहस्म रयणचित्रं जाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई ॥२०॥ | उवणेति जाव से चक्करयणे गंगाए महामाहमाए णिवत्ताए समाणीए तहेब जाव दाहिणं दिसिं खेडगप्पवाताभिमुहे पयाए यावि होत्था । तहेव कुटुंबियाणची य हत्थिरयणसेणापडिकप्पणा पोसहमाला गड्डमालगणमीकरण, णवर आलंकारियभंडदाणं सकारगयाए पडिविसज्जणया साहणाणती आणुपुर्षिय यब्बा। तए ण से भरहे गट्टमालगस्स अट्ठाहिताए णिब्बताए समाणीए सेणावति आणवेति- गच्छ णं भो ! गंगाए बिल्लं निक्खुडं जाव ओतवेहि, एवं सिंधुणिक्खुडवत्तब्बया यचा, जाव उप्पि पासादगते विहरति । भरहो तु किल गंगादेवीए समं भाग | भुजति वाससहस्सति । तए णं से भरहे अन्नया कयादी मेणावति आणवेति- गच्छ णं भो ! खडगप्पवातगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवाM रस्स कबाडे विहाडेहि, एवं माणियन्वं जाब पियं निवेयणता कोडुबियाणती गुहापवेसो मंडलालिहणा संकमकरणं, णवर ताओ गदीओ पच्चस्थिमिल्लाओ कडगाओ पढाओ पुरथिमेणं गंगाणदि समप्पेंति जाव दाहिणिलस्स दुबारस्स कवाडाण सयमेवार पच्चोसक्कणया, जाव तीसे गुहाए दाहिणिल्लणं दारेणं गीति ससिब्ब महंधकारणियहाओ। तए णं से राया गंगाए णदीए दीप अनुक्रम X446 SECASSESASARAS [213] Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री नव निधया आवश्यक प्रत चणा % उपोधात नियुक्ती ॥२०२॥ पच्चथिमिल्लसि कुलसि खंधावाराणवेस काऊणं जाव णिहिरयणाणं अट्ठमभत्तं पगेण्हति, णिधिरपणे मणसी करमाणे २ चिति, तस्स य अपरिमितरत्तरयणा धुवमक्खयमव्वया सदेवा लोकोपचयंकरा उवगता णव निहओ लोगवीसुतजसा । तंजहा-- सप्पे १ पंडयए २ पिंगलये ३ मव्वरयण ४ महापउमे५ । काले६ य महाकालेण्माणवग८महाणिही संखे ॥१॥ |णेसप्पमि णिवेसा गामागरणगरपट्टणाणं च । दोणमुहमडवाणं बंधावारावणगिहाणं ॥२॥ गणियस्स य उप्पत्ती माणुम्माणस्स जं पमाण च । धन्नस्स य बीयाण य णिप्फत्ती पंडुए भणिता ॥३॥ |सब्या आहरणविही पुरिसाणं जाय होति महिलाणं । आसाण य हस्थीण य पिंगलगणिहिमि सा भणिया ।।४।। रयणाणि सब्बरतणे चउदसवि वराई चक्कवट्टिस्स । उप्पज्जंती पचंदियाई एगिदियाई च ॥५॥ वस्थाण य उप्पत्ती णिप्फत्ती चेव सब्बभत्तीणं । रंगाण य धोव्याण य सब्वा एसा महापउमे ॥६॥ काले कालन्नाणं भव्य पुराण व तिथि बसेसु । सिप्पसयं कम्माणि य तिणि पयाए हितकराणि ।। ७॥ लाहस्स य उत्पत्ती होइ महाकालि आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्त प मणिमुत्तिसिलापवालाण ॥८॥ जोहाण य उपपत्ती आवरणांणं च पहरणाणं च । सब्बा य जद्धणीती माणवगे डंडणीती प॥९॥ णविहि णाडगविही कव्वस्स य चउधिहस्स उप्पत्ती । संखे महाणिहिम्मी तुहियंगाणं च सव्वेसिं ॥१०॥ चक्कट्टपतिढाणा अटुस्सेहा य णव य विक्बभो । बारम दीहा मंजूस संठिता जण्हवीय मुहे ॥११॥ वेमलियमणिकवाडा कणगमया विविहरयणपडिपुन्ना । ससिसूरचकलकावण अणुसमवयणोववत्तीया ॥१२॥ %A8+ दीप अनुक्रम URO 11 % % [214] Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत HEIGE तेपलिओवमद्वितीया णिहिसरिणामा य तेसु खलु देवा । जेसिं ते आवासा अक्केज्जा आहिवच्चाय॥१३॥ भरतस्य चाय ॥ १२॥ आवश्यक पते णय णिहिरयणा पभूतधणरयणसंचयसमिद्धा । जे चममणुगच्छंती भरदाहियचक्कबहीणं ॥ १४॥ | विनीताचूणा शतए णं मरहे जाव णिहिरयणाणं अट्ठाहियं महिम करेति ॥ प्रवेशः उपोद्घाता तए ण ताए णिवत्ताए सेणायति आणवेति-गच्छ भो ! गंगाए पुरथिमिल्ले दोच्च णिक्खडं ओयवेहि, सेवि तहेब | नियुक्ताजावतमाणतियं पच्चप्पिणति, पडिविसज्जिते जाव भोगाई झुंजमाणे विहरति । तए णं से चक्करयणे अन्नया कयाई अंतलिक्खप॥२३॥ डिवन्ने जाब दाहिणपच्चरिथम दिसिं विणीतं रायहाणिं अभिमुहे पयाए, तए णं से भरहे राया पासति, पासित्ता इतुट्ट० कोई बियपुरिसे सहायति सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! आभिसेक जाय पचप्पिणंति । तए ण से राया अज्जितरज्जो णिज्जितसत्तू उप्पनसंमत्तरयणचक्करयणप्पहाणे णवणिहिसमिद्धकोसे बत्तीसारायवरसह|स्साणुयातमन्ग सट्ठीए वाससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहवासं ओयवेता मज्जणधरं पयाते, एवं सध्या मज्जणघरवचब्बया यब्बा, |जाब ससिव्य पियदंसणे णरवती मज्जणघराओ पडिनिक्खमति ः सा जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणव आभिसेके हस्थिरयणे। जाब अंजणगिरिकूटसनिभं गजवति णरवती दुरुढे । तएणं भरहस्स रखो तं हरिथ दूरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलका पुरओ अहाणुपुवीए संपत्थिया,तं० सोत्थिय जाव भिंगारा । तयणंतरं च णं येरुलियभिसनविमलदंडं जाव अहाणुपु०। तदणंतर सन एगिंदियरयणा पुरतो अहाणु० त०-चकरयणे एवं छत्त० चम्म० दंड आसे माणि० कागाण०, तदणं णच महाणिहतो पुरतो अहाणु०, तं०-णेसप्पे हजाब महानिदी य संखे, तदणं. सोलस देवसहस्सा पुरतो अहा०, तदर्ण बत्तीस रायवरसहस्सा पु-अहा०, तयण सेणावतिरयणे IX दीप अनुक्रम [215] Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत श्री पुरतो अहाणु०, एवं गाहावति०, बड्वति० पुरोहित० तदणं इत्थिरयणे पुरतो अहा० । तदणं० बत्तीसं उड्डकल्लाणियासहस्सा भरतस्य आवश्यक है। श्यक पुरओ अहा०,एवं बत्तीसं जणवयकल्लाणियासहस्सा बत्तसिं बत्तीसतिबद्धा णाडगसहस्सा पुरतो अहा० तदण तिमि सट्टा सूयसयाराविनीतापुरतो. तदण० अङ्गारस सेणिप्पसेणिओ पुरतो, तदणं० चउरासीति आससयसहस्सा पुरतो, तदणं० चतुरसीर्ति दंतिसय-II प्रवेशः सहस्सा पुरतो, तदणं चतुरासीति रहसयसहस्सा पुरतो०, तदणं० छन्नति मणुस्सकोडीओ पुरतो०, तदणं. बहवे रादीसर-181 "लजाव सत्थवाहपभितओ पुरतो, तयण बहवे असिलढिगाहा एवं कुंतचायचामरपीढपासगफलगपोत्थगवीणकूबदीवियसएहिं रूबेहि, ॥२०४॥ एवं वेसेहिं चिंधेहिं निओएहिं जाब पुरओ अहा० । तयण बहबे दंडिणो जहा उववाइए जाच संपद्विता, तए ण निओएहि जाव | पुरओ अहा० । नयण बहवे दंडिणो जहा उबवाइए जाव संपट्टिता, तए णं तस्स भरहस्स रचा पुरओ महं आसा आसवारा जाव संगल्ली, तए णं से भरहाहिवे णरिंदो हारोत्थयसुकपरतितवच्छे जहा पुचि जाव अमरवतीसनिभाए इट्टीए पहितकित्ती चक्करयण देसितमग्गे जाव समुहग्वभूतं पिव करमाणे करमाणे सब्धिड्ढोए जाव पादिएणं गामागरखेडकब्बडजाब जोयणंतरियाहि वसहीहिं दबसमाणे यसमाणे विणीतं रायहाणितण उवागते, तीए अरे जाव खंधावारणिवेसो पोसहसालामतिगमणं विणीताए अट्ठमभत्त-IN गहणं तंसि परिणममाणसि पोसहाओ पडिाणक्खमणं जाव गजबई दूरुदे अणुपविसमाणस्स तहेव सव्वं जहा हेट्ठा, णवरं णव महा४ाणिहओ चत्वारि य सेणाओं ण परिसंति, तए णं तस्स विणीयं पविसमाणस्स अप्पेगतिया देवा विणीतं रायहाणि सम्भितरबाहिरियं आसितसंमज्जितावलितं जहा विजयस्स जाव आभरणयासं वासिंमु० आहाचति । तते णं तस्स परिविसमाणस्स सिंघाडग-1 ४ ॥२०॥ |जाब पहेमु बहवे अत्थस्थिता जहा सामिस्स जार एवं बयासी-जय जय गंदा ! जाच भई ते अजितं जिणाहि जाव धरणो विष दीप अनुक्रम ACE [216] Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक नियुक्त श्रीणागाणं जाव बहुईतो पुब्बकोडाकोडीओ विणीताए चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य केवलकप्पस्स भरहवासस्स गामागरणगर भरतस्यआवश्यक जाव संनिवेसस्स संमं पयापालणावज्जितलट्ठजसे महता इस्सरियं कारेमाणे पालेमाणे सुहं सुहेणं विहराहित्तिकटु अभि-121 चूणी दंति य भभित्धुणंति य । तए ण से णयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे २ एवं जहा सामी जाव अपडिबुझमाणे २ जाव भिषकः समभवणवरवडेंसगपडिदुवारे उवागच्छित्ता हत्थिरयणं ठवेति तातो पच्चोरुहति, सोलसदेवसहस्से सकारेति २ एवं बचास राय वरसहस्से सकारेति सेणावतिरयणे १ गाहावतिरयणे २ वट्टति०३ पुरोहिय तिन्त्रि सट्टा सूयसया२ अट्ठारस सेणिप्पसेणी यो अन्ने य ॥२०५॥ वहवे रातीसरप्पभितयो सकारता जाब विसज्जेता इत्थीरयणेणं बत्तीसाए य उडुकल्लाणियासहस्सेहिं पत्तीसाए य जणवयकल्लाणिया-। सहस्सेहिं बत्तीसाए य बचीसतिबद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धि संपरिबुडे भवणवरवडेंसगं अतीति जहा कुबेराय देवराया केलास| सिहरिसिंगभूतं । तए ण से राया मित्तणादिणियगसयणसंबंधिपरियणं पच्चुवेक्खति २ मज्जणगर उवागच्छति तहेव जाब | हाते मित्तणादिजाव भोयणमंडयंसि अट्ठमभत्तं पारेति पारेत्ता उप्पि पासादवरगते फुट्टतेहिं मुइंगमस्थरहिं बचीसबद्धएहिं नाडएहिं| 1 उबललिज्जमाणे २ उवणच्चिज्जमाणे रउवगिज्जमाणेरमहता जाव भुंजमाणे विहरति । विहरेत्ता तए णं तस्स अन्नया कयादी ते देवादीया | IFI महारायाभिसेयं चिन्नवंति, सेवियणं तहेब अट्ठमभन गेण्हति, तसि परिणममाणसि ते आभिओगिया देवा विणीताए उत्तरपुरच्छिमे है।दिसिभाए एग महं अभिसयमंडवं विउब्बिसु जहा विजयस्स जाव पेच्छाहरतिसोमाणगअभिसेगपेढसीहासणादि सव्वं माणियब्वं । तए णं से भरहे राया पोसहसालातो पडिणिक्खमति २ पहाते एवं जहा विणीतं पविसंतस्स गमो तहेव किंगच्छंतस्स दाजाव थीरयणेणं उइकल्ला. जणवयकल्ला० णाडगसहस्सेहि य परिखुडे अभिसेगमंड अणुपविसति जाव पेढमणुप्पयाहिणीकरमाणे। दीप अनुक्रम 4% 82-% 13॥२०५॥ चक्रवर्ती भरतस्य राज्याभिषेकस्य वर्णनं क्रियते [217] Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत चूर्णी RECERIES भिषेक सुत्रांक पुरथिमिल्लेण विसोमाणेणं दुरुहति जाव सीहासणे पुरत्थाभिमुहे सभिसण्णे, तएण ते बत्तीस रायसहस्सा उत्तरिखणं तिसोमा-18 भरतस्य आवश्यक जण जाव भरहस्स पच्चास सुस्सूस जाव पज्जुवासंति । तए णं सेणावतीरयणे गाहावती० बढति पुरोहित. जाव सत्यवाहप राज्यामितयो तेऽवि तहेब गवरं दाहिणिल्लेण तिसोबाणेणं, तए णं आमिओग्गा देवा महत्थं महग्धं महरिहं महारायाभिसेगं उबट्ठवेंति उपोद्घातला जहा विजयस्स जाव पंडगवणे एगओ मेलायति एवमादि।। तते णं भरहं रायाणं बत्तीस रायसहस्सा सोहणसि तिहिकरणणखत्तमहत्तसि उत्चरपोट्टवयाविजयसि तहिं साभाविएहि य | ॥२०६॥ उत्तरखेउबियेहि य परकमलपतिहाणेहि जहा विजए जाब महता महता रायाभिसेगणं आभिसिंचति २ पत्तेय करतल जाव विह-IA राहित्तिकटु आभिणदति अ अभियुणंति य । तए तं रायाणं सेणावई गाहावती बढती० पुरोहिते तिमि य सट्टा सूयसया अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ अ य बहवे राईसर जाच सत्थबाहप्पभितयो एवं चेव अभिसिंचंति सोलस देवसहस्सा एवं चेव, णवरं पम्हलसू-| | मालाए जाव मउडं पिणिति । तदणं ददरमलयसुगंधगंधिएहि गंधेहि गाताई भुकुंडेंति, दिव्वं च सुमणदाम पिणद्धति, एवं जहा विजयस्स, किं बहुणा', ॥२०६॥ गंथिमवेढिमजाव कप्परुक्खगंपिव अलंकितविभूसित करेंति देवा । तए णं से राया कोडुबिए एवं वयासी-खिप्पामव भो! हथि-5 खंघवरगता विणीताए सिंघाडग जाव पहेसु महता महता सद्देणं उग्घोसेमाणा २ उस्मुकं उक्करं जाव जणजाणनदं दुवालससंव-11 छरित पमोयं घोसह । तेऽवि तहेव करेंति जाप पच्चाप्पणंति । दीप अनुक्रम [218] Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H भाग - 3 "आवश्यक" - मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [ ९२६/३४६-३४९८ आष्यं [३२-३७] अध्ययनं [-] मूल [- गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥२०७॥ तर से राया सीहासणाओ अङ्कित्ता इत्थिरयणेणं जाव पाडगसहस्सेहिं सार्द्धं संपरिवुडे पुरथिमिलेणं तिसोमाणणं पच्चारुता जाव गजवतिं दुरूटे, रायमातीबि जेणं दूरूढा तेणं पच्चोरुहंति २ रायाणं तहेब परिवारंति, तए णं अट्ठट्ठमंगलमादि सव्वं भाणियन्त्रं तहेव जावसिं गच्छंतएणं मज्जणघरअणुप्पवेसो, जाव अट्टमभतं पारेति जाब उपि विहरति । तए णं से राया दुबालसवच्छरियंसि पमोयंसि निव्यचंसि समासि हाते जाव बाहिरियाए उबट्टाणसालाए सीहासणवरगते सोलस य देवसहस्से सक्कारेति संमाणेति सत्थवाहप्पभितयो, सकारेता संमाणता उप्पि पासादजाव विहरति । मरहस्स णं रम्रो चक्करयणे छत्त० दंड० असि० एते णं चचारि एगिंदियरयणा आयुधसालाए समुप्पन्ना, चम्मरयणे मणि० कागणि० णव य महाणिहओ, एते णं सिरिघरंसि समुप्पण्णा. सेणावतिरयणे गाहाबति० बढति० पुरोहित० एते णं चत्तारि मणुयरयणा विणीताए रायहाणीए समुप्पना, आसरयणे हत्थि० एते णं दुवे पंचदियरयणा वेयङ्कगिरिपादमूले समुप्पण्णा, इत्थि - रयणे उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेडीए समुप्पन्ने, तए णं से भरहे राया महता हिमवंतमलयमंदरजावरज्जं पसाहेमाणे विहरति । चितियो गमो रायवन्नगस्स इमो तत्थ य संखेज्जकालवासाउए जसंसी उत्तमअभिजातसत्तवीरियपरक्कमगुणे पसत्थवन्नसरसारसंघतणतणुकबुद्धिधारणमेहासंठाणसीलपगती पहाणगोरवच्छायागति अणेगवयणप्पहाणे तेजआउवलविरियजुत्ते अज्बुसिरघणनिचितलोहसकलणारायणवइरउसभसंघयणदेहधारी उज्जुगभिंगारवद्धमाणगभहासणसंखच्छत्तवीयणिपडागचक्कणंगलमुसलरहसोत्थियंकु सचंद दिव्य अग्गिजूवसागर [219] भरतवर्णनं ॥२०७॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत 13 ईदजायपुहविपउमकंजरसीहासणडंडकुम्मगिरिवरतुरंगवरमउडकुंडलणंदावनधणुकोतगागरभंगभवणविमाणअणेगलक्षणपसत्थसुवि- भ्रातृभ्यो आवश्यकविश्यकाटा भत्तचित्तवरकरचरणदेसभागे उद्धामुहलोमजातसुकुमालाणिद्धमउयआवत्तपसत्थलोमविरहतासविच्छच्छन्नविउलवच्छे देहखेतसुविभ-ICI पण वृषणात्त देहधारी तरुणरबिरस्सिबोहितवरकमलविबुद्धगम्भवचे हयणासणकोसिसन्निभपसस्थपिट्ठन्तणिरुबलेवे पउमुप्पलकुंदजातिजूतवित-181 परचपगणागपुप्फसारंगतुल्लगंधी छत्तीसाएवि पसत्थपस्थिवगुणेहिं जुत्तो अच्चोच्छिन्ननवत्तपागडउभओजोणीविसुद्धनियगकुलपुत्तर्य देवेद इब सोमताए णयणमणणिचुइकरे अक्खोभे सागरोग्य थिमिते फणवतिब्ब भोगसमुदयसहब्बताए समरे अपराजित परमवि-द ॥२०८। कमगुणे अमरवतिसमाणसरिसरूवे मणुयवती भरहचक्कवट्टी चोद्दसह रयणाण णवण्हं महाणिहीण सोलसहं देवसहस्साण, बत्तीसाए रायसहस्साणं बत्तीसाए उनकहाणियासहस्साणं बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्साणं बनीसाए बत्तीसतिबद्धार्ण णाडगसहस्साणं तिण्हं तेसट्ठाणं सूयसताणं अट्ठारसहं सेणिप्पसेणीण चउरासीए आससयसहस्साणं चउरासीए दंतिसयसहस्साणं चउ। रासीए रहसयसहस्साणं छण्णवइमणुस्सकोडीण बावत्तरीए पुरवरसहस्साणं वनीसाए जणवयसहस्साणं छबउहगामकोडीणं णवणCउतीए दोणमुहसहस्साणं अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं चउब्बीसाए कब्बडसहस्साणं चउबीसाए मडंबसहस्साणं वीसाए आगर सहस्साण सोलसहं खेडगसयाणं चोहसण्ह संवाहसहस्साणं छप्पनाए अंतरोदगाणं एगणपन्नाए कुरज्जाणं विणीताए रायहाणीए | 181 चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य केवलकप्पस्स भरहवासस्स अमेसि च बहूणं रादीसर जाव सत्यवाहप्पभितीण आहेबच्च हा मट्टित्त जाव पालेमाण ओहतविहतेसु कंटएमु उद्वितमलितेसु सव्वसत्तूमु णिज्जितेसु भरहाहिवे णरिंदे वरचंदणचच्चियंगमंगे| वरहाररयितवच्छे वरमउडविसिहए परवत्थचारुभूसणधर सब्बोउयसुरभिमुमवरमल्लसोभितसिरे वरणाडगणाडइज्जबरभोगसंप । दीप अनुक्रम [220] Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [ ३२-३७] मूल [- /गाथा ], अध्ययन [ - ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूण उपोषात नियुक्तौ ॥२०९॥ ललिते वरइत्थीगुम्म सद्धिं संपरिवुडे सब्बो सहिसव्वरयणसव्वसमितिसमग्गे संपृक्षमणोरहे हतामित्तस पक्खे पुव्यकततवप्पभावणिव्विसंचितफले भुंजति माणुस्सर सुभे भरहणामधेज्जो । एवं जहा जंबुद्दीवपत्तीए भरहोवयणे तदा सव्वं भाणियब्वं । एवं जाहे पारस वरिसाणि महारायाभिसेगो वत्तो रायाणो विसज्जिता ताहे णियगवगं सारिउमारद्धो, ताहे दाइज्जति सब्धे णीयल्लागा, एवं पडिवाडीए सुंदरी दाइता, सा पंडल्लुइतमुही, सा य जद्दिवसं रुद्धा चैव तदिवसमारद्धा चैव आयंबिलाणि करेति, तं पासित्ता रुट्ठो ते कोडंबिये भणति - किं मम गत्थि, जं एसा एरिसी रुवेणं जाता ?, वेज्जा वा नत्थि १, तेहिं सिहूं- जहा आयंबिलेण पारेति, ताहे तस्स पयणुरागो जाओ, भणति जदि तातं भजसि तो वच्चतु पञ्चयतु, अह भोगट्ठी तो अच्छतु, ताहे पादेसु पडिता विसज्जिया पव्वइया । अनया भरहो तेर्सि भातुगाणं पत्थवेति, जहा- ममं रज्जं आयाणह, ते भति- अम्हवि रज्जं ताएहिं दिन तुज्झवि, एतु ता तातो ताहे पुच्छिज्जिहित्ति, जं भणिहीति तं काहामो । ते समएणं भगवं अट्ठावयमागतो विहरमाणो, एत्थ सब्बे कुमारा समोसरिता, ताहे ते भांति तुम्मेहिवि दिनाई रज्जाई णे हरवि भाया, ताहे भणति- अम्हे णं किं करेमो-किं जुज्झामो उदाहु आयाणामो ?, ताहे सामी भोगेसु नियताचेमाणो तेसिं धम्मं कहेति णमुत्तिसरिसं सुहं अस्थि, ताहे इंगालदाहगदितं कहेति, जहा एगो इंगालदाहगो, सो एवं भावणं पाणियस्स भरेऊण गतो, तं तेण उदगं णिवितं, उबारं आदिच्चो पासे अग्गी पुणो परिस्समो दारुगाणि कोšतस्स घरं गतो, तत्थ पाणितं पीतो, एवं असम्भावपट्टवणाए कूवतलागणदिदहसमुद्दा य सब्बे पीता, ण य [221] आवबोधः बाहुबलियुद्धं ॥२०९॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री तण्हा छिज्जति, ताहे एगमि तुच्छकुहितविरसपाणिए जुमकूवभिरिंडे तणपूलितं गहाय उस्सिंचति, जे पडितसे तं जीहाए लिहति,बाहुबलिना आवश्यक से केस पी, एवं तुन्भेहिवि अणंतरं सबढे अणुत्तरा सव्वेऽवि सब्बलोए सदफारसा अणुभूतपुच्या तहवि तित्र्तिण गता, तो णं केवलं चूणीमा इमे माणुस्सए असुइए तुच्छे अप्पकालिए विरसे कामभोगे अभिलसह, एवं वेयालीयं णाम अज्झयणं भासति, ' संसह किन्न वा बुज्झह एवं अड्डाणउईए विचेहिं अट्ठाणउई कुमारा पब्वइता, कोइ पढमिल्लुएण संबुद्धे कोति बितिएणं ततिएणं० । जाहे ते सव्वे | नियुक्ती पव्वइता ताहे भरहेण बाहुबलिस्स पत्थवितं, ताहे सो ते पचहते सोऊण आसुरचो भणति-ते बाला तुमे पव्याक्तिा, अहं पुण ॥२१॥ 11 जुद्धसमत्थो, किं वा ममंमि अजिते तुमे जितंति, ता एहि अहं वा राया तुमं वा?, ताहे ते सब्बबलेण दोषि देसते मिलिया, ताहे | बाहुबलिणा भणितं- किं अणबराहिणा लोगेण मारिएण, तुम अहं च दुयगा जुज्झामो, एवं होउत्ति, तेसि पढमं दिविजुद्धं जातं, तत्थ भरहो पराजितो, पच्छा वायाए, तहिंपि भरहो पराजितो, एवं बाहुजुद्धेऽवि पराजितो, ताहे मुट्ठिजुद्धं जाय, तत्थवि पराजितो, ताहे सो एवं जिब्यमाणो विधुरो अह णरवती विचितेति-किं मन्ने एस चक्की जह दाणि दुबलो अहयं, तस्सेवं संकप्पे देवता आउहं देवि डंडरयण, ताहे सो तेण गहितेण धावति, बाहुबलिणा दिडो गहितदिब्बरयणो, सगवं चिंतितं च अणेण-सममेतण *भजामि एतं, किं पुण तुच्छाण कामभोगाण कारणा ?, भट्ठणिययपइयं मम अइवाइवें ण जुत्तं, सोहणं मम भाउएहिमणुट्टियं, काधिरत्थु भोगाणं, जदि भोगा एरिसा अलाहि मम भोगेहि. भावो, गहु जुझीह अहमजुज्झे पवत्तमि, ताहे सो भणति- एतं ते दारज्ज, अहं पन्बयामि, तेण तहि भरहेण बाहुबलिस्स पुत्तो रज्जे ठवितो, पच्छा बाहुबली चितेति-अई किं तायार्ण पास वचामि इहं चेव अच्छामि जाब केबलणाणं उप्पज्जति । एवं सो पडिम ठितो, पव्वयसिहरो सामी जाणति तहवि ण पत्थवेति, अमूढ दीप अनुक्रम HAREKAॐ ॥२१० [222] Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [१३७-१५०/३५०-३६३], भाष्यं [३७...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री प्रत सत्राका दीप अनुक्रम लक्खा तित्थगरा, ताहे संवच्छरं अच्छति काउस्सग्गेण बल्लीचिताणेण वेढितो पादा य बम्मिएण, पुने संवत्सरे भगवं बंभी-मरीचर-आवश्यक चूर्णी सुंदरीओ पत्यवेति, पुटिव ण पत्थिताओ जेण तदा सम्म ण पडिवजिहिति, ताहे सो मग्गंतीहि वल्लीहि य तणेहि य वेढितेण य धिकारः उपोद्घात महल्लेणं कुच्चेणं तं दणं वंदितो ताहिं, इमं च भणितो- 'ण किर हस्थि विलग्गस्स केवलनाणं उप्पज्जइ' । एवं भणिऊण ट्र नियोगताओ । ताहे सो पचिन्तितो 'कहिं एत्थ हत्थी', तातो य अलियं न भणति ।' एवं चितितेण णातं, जहा माणहत्थी अथिति, | को य मम माणो ?, तं वच्चामि भगवं वंदामि ते य साहुणोत्ति, पाओ उक्खित्तो, केवलनाणं च उप्पन, ताहे गतूणं केवलिपरि-13 २१शााटासाए द्वितो। भरहोवि रज्जं भुजति ताव मिरीयी सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जितो। अह अन्नया कयाती० ॥३॥१३७ ।। मेरुगिरि० ॥ ३ ॥१३८॥ एवं विचिंतयंतस्स.॥३॥ १३९ ॥ सो माणेण ण तरति गिहत्थत्तणं काउं, इहेब तल्लेसाए अच्छामिात्त इम कुलिंग विचिंतेति समणा तिदंडविरया०॥ ३ ॥१४० ।। मणाई दंडो, अहं च एतेण पराजितो, तम्हा एते चेव बट्टामि वर संभरंतो एतं | मम चिंध, लोइदियमुंडा संजता अहगं खरेण ससिहाओ। थूलगपाणयहाओ बेरमण मे सदा होउ॥ ३ ॥ १४१॥ II इंदिपहिवि मज्झ इंदियाणि ण मुंडियाणि तो इंदिएहि अमुंडिएहिं किं मम दण्यमुंडेणं ? तम्हा मम छिहली भवतु, खुरेणटा य करेमि, साधुणो य सब्बतो सबविरया, अहं च देसाओ करोमि । । ४२११॥ निकंचणा प समणा मजा य किंचणं कनेसु । पवित्तयं भवतु किंचणियावि भवतु ॥ ३ ॥ १४२॥) भगवंत महावीरस्य तृतीय-भव मरीचिः, तस्य अधिकारो अत्र वर्तते [223] Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमा (४०) प्रस्त सूत्रांक [+] दीप अनुक्रम 明 भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 भाष्यं [ ३७...] अध्ययनं [-1, मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः [१३७-१५०/३५०-३६३], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र- [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्तौ ॥२१२ ॥ साधू सीलसुगंधा, अहगं च सीलेण दुग्गंधो, अहं वासेमि वत्थाणि सरीरगं च । ववगतमोहा समणा० गाथा ॥ ३ ॥ १४३ ॥ मोहो णाम अन्नाणं । सुकंवरा य समणा गाथा || ३ | १४४ ॥ सुकंवरा णिरंबरा य साधुणो, मम कासायाणि भवंतु सकसायस्स । वज्जेति वज्जभीरू० गाथा ।। ३ १४५ ॥ वज्जणं नाम कम्मं तस्स भीता वज्जभीरू, बहूहिं जीवेहिं समाउलं जलारंभ, होउ मम परिमितेणं जलेण पहाणं च पियणं च सव्वं मुसावायं सव्वं अदिन्नादाणं, सव्वं बंभचेरं परिग्गहाओ सब्बतो इय विरतो । एवं सो भइयमती० गाथा || ३ || १४६ ॥ तद्धितैर्हेतुभिर्युक्तं तस्स हिता तद्धिता सुट्ट जुत्तां श्लिष्टमित्यनर्थातरं, परिबाजामिदं पारिव्राजं, पवनेति, सो तेसि मज्झे उन्भट्टो दीसति तेण तस्स पासे सन्वो अल्लियति, जया तं पुच्छति ताहे अणगारधम्मं पनवेति, ताहे ते भांति किं तुमं ण करेसि १, सो भणति अहं ण तरामि मेरुगिरीसमभारे, जाहे तेण ते अक्खित्ता भवंति ताहे सामिस्स उबडवेति । एवं सो तित्थगरेण समं विहरति । तेणें कालेणं तेणं समएणं समोसरणं भगवतो, ताहे भरहो रज्जं ओयनेता ते य भाउए पञ्चइए नाऊणं अद्वितीए भणतिकिं मम इयाणि भोगेहि अद्धिति करेति, किं ताए पीवराएवि सिरीए १ जा सज्जणा ण पेच्छति० (गाथा) जदि मातरो मे इच्छति तो भोगे देमि, भगवं च आगतो, ताहे भाउए भोगेहिं निमंतेति, ते ण इच्छेति वंत असितुं, ताहें चितेति एतेसिं चैव इमाणि परिचतसंगाणं आहारादिदाणेणावि ताव धम्माशुद्वाणं करेमीति पंच सयाणि सगडाण भरेऊणं असणं ४ ताहे निम्गतो, बंदिऊणं निमंतेति, ताहे सामी भणति इमं आहाकम्मं पुणो य आहढं ण कप्पति साधूणं, ताहे सो भगति ततो मम पुव्वपव [224] श्रावक वात्सल्यं ॥२१२ ॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र अध्ययनं H, मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [१३७-१५०/३५०-३६३], भाष्यं [३७...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक नियुक्ती दीप अनुक्रम चाणि गेहंतु, तपि प कप्पति रायपिंडोति, ताहे सो महदुक्खेण अभिभूतो भणति-सब्वभावण अहं परिचत्तो तातेहि, एवं सो माहनोआवश्यक Pओहयमणसंकप्पो अच्छति, एत्थ य अंतरा सक्को देविंदो देवराया एयस्स अद्धिति अवणेमित्ति ओग्गहं पुच्छति, सामी कहेति, चूणी उपोद्घात || पंचविहे उग्गहे-देविंदाग्गहे रायोम्गहे गिहवति० सागारिए. साहम्मिउग्गहे, ते पुण उत्तरुत्तरिया, देविंदोग्गहे रायोग्गहण बाहिते | वाहे सक्को भणति 'जे इमे मते ! अज्जत्ताए समणा णिग्गंथा विहरति एतेसिणं अहं ओग्गहं अणुजाणामित्ति वंदित्ता सुस्सूसति, ताहे भरहो भणति-अणुजाणामि जे भरहे वासे समणा णिग्गंथा०, ताहे सो तं भत्तपाणं आणीत भणति किं कायव्यं, ताहे सको ॥२१३॥ भणति-जे तब गुणुत्तरा ते पूएहि, ताहे तस्स चिंता जाता, जातिकुलबलपरिभोगेहि णस्थि ममाहितो गुणुत्तरो, साहुणो गुणुत्त रा एए अम्हे निच्छंति, ताहे तस्स पुणोऽवि चिंता जाया, जहा-ममाहितो सावगा गुणुत्तरा, ताहे तं सावगाणं दिग्ध। __ ताहे सो सके भणति तुम्भेहि फेरिसण रूपेण तत्थ अच्छह?, ताहे सको मणति ण सक्का तं माणुसेण दट्ट,ताहे सो भणति-1 | तस्स आकिति पेच्छामि, ताहे सक्को भणति जेण तुम उत्तमपुरिसो तेण ते अहं दाएमि एगषदेसं, ताहे एग अंगुलि सब्बालंकारविभूसितं काऊण दाएति, सो तं दतॄण अतीव हरिस गतो, ताहे तस्स अट्ठाहियं महिमं करेति ताए अंगुलीए आकिर्ति काऊण, [एस इंदज्झयो, एवं वरिसे वरिसे इंदमहो पन्यत्तो पढमउस्सयो । भरहो भणति-'तुम सि देविंदो, अहं मणुस्सिदो, मित्तामो, एवं होउ ।। ___ताहे भरहो सावए सद्दावेचा भणति ‘मा कम्मं पेसणादि वा करेह, अहं तुभ दित्ति कप्पेमि, तुमहिं पढ़तेहिं सुणंतेहिं जिणसाधुसुस्सूसणं कुणंतेहिं अच्छियब्वं, ताहे से दिवसदेवसिय मुंजंति, ते य भणति-जहा तुम्भ जिता अहो भवान् वद्धते भयं मा हणा-12 हित्ति, एवं भणितो संतो आसुरुत्तो चिन्तेति-केण हि जितो?, ताहे से अपणो मती उप्पज्जति कोहादिएहिं जितो मित्ति, एवं M [225] Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्मुक्ति: [ १३-१५० / ३५०-३६३] अध्ययनं [-] आयं (30...] मूलं - / गाथा-1. पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात निर्युक्तौ ॥ २१४॥ भोगपमत्तं संभारेंति, ताहे तस्स धम्मज्झाणं भवति किंचि कालं जाय सद्दाहिसु ण अक्खिप्पति, ताहे तं लोगेणं भुज्जितुमार, ते महाणसिया जाणंति इमा अणवत्था, ताहे उवड़िता भरतरायिणो, ताहे राया भणति पुच्छिज्जंतु को भवान् ?, श्रावकः १, ताहे जे सावगा महंता ते पुच्छज्जेति को भवान् ? श्रावकः, श्रावकाणां कति व्रतानि ?, अस्माकं व्रतानि न सन्ति, अस्माकं पंच अनुव्रतानि सप्त शिक्षापदानि, ताहे पंचसु अणुव्वसु सत्तसु सिक्खाबएस जे क्खिमणपवेस जाणीत तं जुतका कता, पच्छा रनो उवणीता, ते सव्वे कागणिरयणेण लंहिता, पुणरवि वृत्ता छण्ह छण्ह मामाणं अणुयोगो जहा भवति, एवं ते उप्पन्ना माहणा णाम, जे तेसिं पुत्ता उप्पज्जेति ते साहूणं उवणिज्र्ज्जति जति णित्थरंति तो लडं, अहं न नित्थरंति ताहे अभिगयाणि सङ्ग्राणि भवंति, अन्नोऽवि जो कोऽवि तत्थ उबडाइ तंपि ते उवणेति भरहस्त, ताहे सो काकणिरयणेण अंकिज्जति, जेऽवि ते चेडा निम्माया भवंति तेसिपि भरहो कागणिरयणेण चिंध करेति पुणरवि धुं (भु ) ता जहा छण्डं छण्डं मासाणं अणुओगो भवति । एवं ते उप्पन्ना माहणा, कामे जदा आहच्चजसो जातो तदा सोबभियाणि जनावइयाणि । एवं तेर्सि अट्ठ पुरिसजुगाणि ताव सोवनिताणि । राया आइच्चजसे, महाजसे अनिषले य बलभहो । बलविरिय कत्तविरिते, जलाणावर दंडविरिए य || ३ || १५० ॥ एतेहिं अट्ठहिं राइहिं जो उसभसामिस्स महामउडो आसि सो चातितो वोढुं, सेसेहिं न चाइओ । एत्यंतरे चित्तंतरगंडिता विभासियच्चा जाव सगरो जातोति । आदिच्चजसादीहिं अहिं अट्टमरहं भुतं, सेसेर्हि मयणा ॥ एवं अस्सावगपडिसेहे छडे छडे य मासि अणुओगो । कालेण य मिच्छन्तं [ जओ ] जिणंतरे साधुबोच्छेदो || ३ || १५२ ॥ दाणं च० चिरंतनगाथा || ३ || १५३ || भरहेण दिनं, लोगोऽवि दातुं पवतो भरहपूजितत्ति [226] वेदोत्पाच जिनचक्रयादिः ॥२१४॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१५१-१५५/३६४-३६८], भाष्यं [३७...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक चूर्णी ARCLAS I#कार्ड, आरिया बेदा कता भरहादीहि तसिं सज्झातो होउनि, तेसु बेदेसु तित्थगरथुतीओ जतिसावगधम्मो संतिकम्मादि यचिक्रिवासुआवश्यक| बनिअति, अणारिया पुण पच्छा सुलसायाश्यवल्क्यादिभिः कृता ।। इति पुच्छात दारं ॥ देवादिः पुणरविय समोसरणे०॥३॥ १५४॥ जिण चक्कि० ॥३॥१५॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं अट्ठावयमागतो तविहरमाणो, समोसरणं, भरहो णिग्गजो महिद्विए, बंदिचा जिणिदमहिम पेच्छतो, पुच्छति, जहा-ताता! जारिसया लोगगुरू केवली तुम्भे सरिसया एत्थ किमनेवि भविस्सति ?, आम, भगवं! केवतिया', अह भणति जिणवरिंदो एरसिया तेवीसं अजि॥२१५॥ तादि, तेसि वनो पमाणं णामं गोचाई आयुबाई मातिपितरो परियायो गती य सव्वा वत्तव्यया विभासियच्या । ताहे पुच्छति जारिसोमि अहं एरिसा अबे ताता !, अह भणति-एक्कारस सगरादि होहिति, तेसि बन्न पमाणादि । ताधे | सामी इमाणि णव जुगलगाणि अपुट्ठो चेच वागरेति । णव बलदेवा णव वासुदेवा । वनादि धम्मायरिया, को बा कहि तित्थगरे अंतरे वा सव्या बत्तब्वता विभासियव्वा । उसमे भरहो अजिते सगरो मघवं सणकुमारो य । धम्मस्स य संतिस्स य, जिणतरे चश्ववुिगं ।। ३-२१३ ॥ संती कुंथू य अरो अरहता चेव चवटी य । अरमाल्ल अंतरंमि य । हवति सुभूमो य कोरब्यो ।। ३-२१४ ॥ मणिसुब्बए णर्मिमि य हॉति दुषे पउमनाभ हरिसेणा । णमिणमिमु जयनामा अरिद्वपासंतरे बंभो ॥ ३-२१५ ॥४॥२१॥ |पंच सत अद्भपंचम, पायाला चेष अधणुयं च । चत्ता दिवस घणुपं च पउत्थे पंचमे चत्ता ।। दीप अनुक्रम - E [227] Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक"- मूलसूत्र अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१५१-२१५/३६४-४२०, भाष्यं [३८-४३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक नियुक्ती दीप अनुक्रम श्री 18 पणुतीसा तीसा पुण अट्ठावीसा य बीस घणुगाणि । पन्नरस बारसेवय अपच्छिमा सत्त य धणूणि ॥ चक्रिवासुआवश्यकएस ताव उस्सेहो चक्कीणं, इयाणि आउगं तेसि । देवादिः चूर्णी । उपोद्घातला चउरासीति बाबत्तरी य पुव्वाण सयसहस्साई। पंच य तिनि य पगं च सयसहस्सा उ वासाणं ॥ पंचणउतिसहस्सा चउरासीती य अट्ठमे सट्ठी। तीसा य स य तिन्नि य अपच्छिमे सत्त बाससया ॥ ॥२१६॥ एवं ता आयुगं गतं, इयाणि गती-'अद्वेव गता मोक्ख' ॥ हापंचारिहते बंदंति केसवा पंच आणुपुब्बीए । सेजेस तिविट्ठादी धम्म पुरिससीह पेरंता ॥ ३-२०६।। अरमल्लिअंतरे दोन्नि केसवा पुरिसपोंडरिय दत्तो । मुणिसुब्वयणमि अंतरे णारायण कण्ह नेमिमि ।। ३-२०७ ॥ परमो धणूणमसिती सत्तरि सट्ठीय पन्न पणयाला । अउणतीसं च धणू छब्बीसा सोलस दसेव ।। &ा उच्चत्तं गतं-चउरासीति विसत्तरि सट्ठी तीसा य दस य लक्खाई। पन्नहि सहस्साई छप्पन्ना यारसेगं च ॥ आउगं गतं -एगो य सत्त० (३-२००)। ॥ अणिदाणकडा० (३-२०१)। ।। अदुतकडा रामा० (३-२०२) ।।। ४ाचषिदुगं हरिपणगं पणगं चकीण केसवो चकी। केसव चकी केसव दुचशि केसी य चकी य ॥३-२०८ । तिविठ्ठ8. हा(३-४० भा.) अयले (३-४१) आसग्गीवे (३-४२)। ॥ एते खलु पडिसत्तू० (३-४३ भा.)।॥ इयाणि जो चकबड्डी ही वासुदेवो वा जमि जिणंतरे आसि त भण्णति एतेण संबंधेण जिणंतराणि कालतो णिदंसिर्जति । तं जहा SHRECORRECORRC ॥२१६॥ वासुदेव और बलदेवानां वर्णनं [228] Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 निर्युक्ति: [१५१-२१५/३६४-४२०], भाष्यं [ ३८-४३] अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि :- 1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्तौ ॥२१७॥ उसभी वरचसभगती वतियसमा पच्छिमंमि कालंमि । उप्पनो पढमजिणो भरहपिता भारदे वासे ।। १ ।। पचासा लक्खेहिं कोडीणं सागराण उसभाओ । उप्पन्नो अजियजिणो ततिओ तीसाए लक्खहि ॥। २ ।। जिणवसभसंभवाओ दसहि लक्खेहि अयरकोडीणं । अभिदणो य भगवं एवइकाले उप्पन्नो || ३ || अभिनंदणाओ सुमती वह लक्खेहि अयरकोडी । उप्पनो सुहपन्नो सुप्पभनामस्स वोच्छामि ॥ ४ ॥ णउईय सहस्सेहिं कोडीणं सागराण पुन्नाणं । सुमतिजिणाओ पउमो एवति काले उत्पन्नो ॥ ५ ॥ पउमप्पभनामाओ णवहिं सहस्सेहिं अयरकोडीणं । सुहपुत्रो संपुन सुपासनामो सम्मुप्पनो ॥ ६ ॥ कोडीसहि पावहिं उ सुपासणामा जिणो सपन्नो । चंदप्पभा पभाए पभासयंतो उ तेलोक्कं ॥ ७ ॥ गउतीय तु कोडीहिं ससीष्ट सुविहिजियो समुप्पन्न । सुविद्दिजिणाओ णवहिं कोडीहिं सीतलो जातो ॥ ८ ॥ सीतलजिणाउ भगवं सेज्जसो सागराण कोडीए । सागरसयऊणाए वरिसेहिं तथा इमेहिं तु ।। ९ ।। छब्बीसाए सहस्सेहिं चैव छावसिय सहस्सेहिं । एतेहि ऊणिया खलु कोडी मग्गिलिया होति ॥ १० ॥ चउपन्ना अयराणं सेज्जंसाओ जिणो उ वसुपुज्जो । वसुपुज्जाओ विमलो तीसहि अयरेहिं उप्पन्नो ॥ ११ ॥ विमलजिणा उप्पन्नां गवहिं तु अयरेहि अनंत जिणोवि । चउसागरण मेदि अनंतईओ जिणो धम्मो ॥ १२ ॥ धम्मजिणाओ संती तिहिं तिचउभागपलियऊणेहिं । अयरेहिं समुप्पो पलियद्वेणं तु कुंथुजिणो ।। १३ ।। पलियच उन्भागेण कोडिसह स्वणण वासाणं कुंधूओ अरणामा कोडिसहस्सेण मलिनियो || १४ || महिजिणाओ मुणिसुष्वओऽवि चठपनवासलक्खेहिं । सुव्वयनामातो णमी लक्खेहिं छहिं तु उप्पन्नो ।। १५ ।। पंचहि लक्खेहिं ततो अरिदुनेमी जिणी समुप्पन्नो । तेसीतिसहस्सेहिं सतेहिं अमेहिं वा ।। १६ ।। नेमीओ पासजिणो पासजिणाओ य होइ वीरजिणो । अड्डाइज्जसहिं गतेहिं चरिमो समुप्पन्नो || १७|| ठवणा अत्र भगवंत ऋषभात् आरभ्य भगवंत वीर पर्यन्त जिनानाम् अन्तरं दर्शयते | [229] जिनान्तरानि ॥२१७॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत मूलांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] [३८-४३३ मूल [- गाथा-], निर्युक्तिः [१५१-२१५/३६४-४२०१ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥२१८॥ कोडि लक्ख ५० उसभ कोटीण जडविसहस्सा ९० सुमति कोडिओ जव ९ पुष्पदंत सागर ९ विमल पति १२ संति वास लख ६ मुण कोडि लक्ख ३० अजित कोडीण व सहस्सा ९ पउमपह फोडी कणाय १०० सीतल सागर ४ अनंतइ पलित चउभाओ ? उण वासकोड १ कुंथुस्स वरिलक्ख ५ नमिस्स कोडिलक्स १० संभव कोटी वसवाई ९ सुपास ६६२६००७ सागर ५४वरि० सेजंस सागर ऊणाई पलियच उष्माग३ि [230] धम्मस्स वास फोडि १ अरस्स वास सहस्सा ८३७५० मिस्स कोडि उक्ख ९ अभिनंदन कोडीओ उति ९० चंदप्प नागर ३० वासुपूज वास लक्ख ५४ महिस्स पाससया २५० पार्श्व वर्धमान जिनान्तराणि ॥२१८॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : २०९-२२३/४२१-४२८], पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत एत्थ य असंमोहरथं जिणचकिवासुदेवाणं जो जम्मि काले अंतरे वा जे वा पमाणं आयु वा एयस्स मुहपरित्राणत्थं इमो आवश्यक[ उवाओ-बत्तीस घरयाई काउं तिरियाययाहि रेहाहिं । उड्डायहाहि कार्ड पंच घरयाई तो पढमे ॥१॥ पनरस जिण निरंतर सुन्न चूर्णी दुर्गति जिण सुन्नतियगं च । दो जिण सुन जिणिंदो सुन्न जिणो सुन्न दोनि जिणा ॥२॥ बितियपंतिठवणा-दो चक्की सुन्न तेरस पण उपोद्घात चक्की सुन चकी दो सुन्ना । चकी सुन्न दुचकी मुन्नं चक्की दुसुमं च ॥३॥ ततियपंतिठवणा-दस सुन्न पंच केसव पण मुबं नियुक्तो केसी सुन्न केसी य । दो सुन्न केसयोऽविय सुन्नदुर्ग केसब तिमुलं ॥४॥ चउत्थपंतीए पमाणं पुखभणितं, पंचमपंतीए आउयं तहेब. ।।२१९॥ तत्थ इमा ठवणा (४४ भा.) अह भणति णरवरिंदो &ा तत्थ मिरीई नामं० (३-२०९) तं दाएड (३-२१०) आदिगरोदसाराणं० (३-२११) पोतणाणामणगरी तस्स पहाणा, तहा महाविदेहे मूयाए गगरीए पियमित्तो णाम चक्फवट्टी। |तं वयणं सोऊणं (३-२१२) अंचिताणि तणूल्हाणि-रोमाणि सरीरे जस्स 'सो विणएणमुववओ० (३-२२३) तिक्खुत्तोत्ति त्रिकत्वः तिची वारे इत्यर्थः । वग्गुत्ति वा वायात वा वयणंति वा एगट्ठा ।। लाभा हु ते सु० (३-२१४) लाभा नाम लाहगा । दस चाइसमो णाम चउचीसतिमो । . आदिगरी दसाराणं (३-२११) णवि ते पारिठवज्जं चंदामि अहं, इमं च ते जम्मं । जे होहिसि तित्थगरी अपच्छिमो तेण वंदामि ।। (३-२१५) दीप अनुक्रम EKHEKADASACARE ॥२१९॥ [231] Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूचांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [ ४४ ] अध्ययनं मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [२०९-२२३/४२१-४२८ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूणीं उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२२० ॥ गु ऋषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति पद्म सुपार्श्व चंद्र सुविधि शीतल श्रेयांस वासुपूज्य विमल अनन्त धर्म भद्द सगये ० ० ० ७ ० ० ० ० ० 0 ० ० ० 0 ० ७ ० ० मघवा सनत्कुमा. तिविट् दुविठू सयंभू पुरिसोत्तम पुरिस० ० 0 ९० ८० ७० ६० ५० ४५ ४२ १८८वर्ष ७२ ६० ३० १० ५ ४०॥ ५०० ४५० ४०० ८४पूर्वलक्ष ७२ ६० संवि- कुंभू | अरो ० णमि निमि पास वीरो नाहो संति पाहो कुंभू अरो ० ० ३५० ५० 0 ० ० ० ० ० ३०० २५० २०० १५० १०० ४० ३० २० १० २ मुणि| सुव्वय महि ० सुभूम ० बससह स्स ६० ० 0 पउम ० o [232] इरिस जयना Q ० मदत्त ० ० दत्त ० कण्हो ० ० पाराय ० ० ० ० पुरिसपुंड धणु ४० धणु ३५ धणु ३० ह२९ २८ व २६ धणुह २५ धणुह २०. १६ धणु. १५ णु, १२ घणु. १० घणु. ७ हत्या ९ हत्थ-७ वरि पाससह वास सब० रस १ ९५ सह० बासस० ६५ ८४ ० ० वासस०] वासस०] वासस० वासस० वासस० वासस० बासस० वाससत बाससया वरिस ५६ ५५ ३० १२ १० ३ १ ७ १ ७२ शलाकायंत्र ॥२२० ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-]. नियुक्ति: २२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक % एवन्नं थोऊणं०(३-२२६)तं वयणं सोऊणं०(३-२२७)जदि वासुदेव०(३-२२८)अयं च दसाराणं पिया य मे चक्कर मदकरणं आवश्यक विषंसस्स । अज्जो तिस्थगराणं पढमोत्ति वट्टति]अहो कुलं उत्तम मज्म (३-२२९)एत्थं नीयागोयं कम्मं निबद्ध । पुण्यत्तिगतं चूर्णी इयाणि नेव्याणति दारंउपोद्घात , एवं च सामी विहरमाणो थोचूणगं पुन्वसयसहस्सं केवलिपरियायं पाउणिचा पुणरवि अट्ठावए पब्बए समोसढो, तत्थ चोइसमेण नियुक्ताहा भत्तेण पाओवगतो. तत्थ माहबहुलतेरसीपक्खणं दसहि अणागारसहस्संहिं सद्धि संपरिबुड़े संपलियंकाणसनो पुचण्हकालसमयसि अभिइणा णक्खचणं सुसमवूसमाए एगूणणउतीहिं पक्खेहि सेसहिं खीणे आउगे णामे गोत्ने बेयणिज्जे कालगते जाव सब्बदुक्खप॥२२॥ हीणे । चुलसीतीए जिणवरो समणसहस्सेहिं परिचडो भगयं । दसहिं सहस्सहिं समं निब्वाणमणुत्तरं पत्तो ॥१॥ भरहो य तेलोकबंधुणा ताएण भत्तं पच्चक्खातान्त सोतुं परमसोयसंतत्तहिदयों पादेहिं चेव पधावितो, सरुहिरकद्दमेहि य चालश्रो, सो तेण परिस्समो न चेव वेइओ, ताहे सामि बंदित्ता पज्जुवासति परमदुही, तं समयं च णं सक्कस्स आसणचलणं, ओहाए पउंजण, पणामादिकरणं जीतसरणं देवादिआहूयनं जहा जम्मणे जाव देवेहिं देवीहि य संपरियुडे जाव जेणव भगवं तेणेव उवाग-13 च्छति उवागच्छित्ता विमणो णिराणंदे अंसुपुत्रनयणे तित्थगरं तिखुत्तो आदाहिणपयाहिणं करेति करता नच्चासमे पाइदूरे सुस्वसमाणे जाव पज्जुवासति । एवं सब्वे देविंदा सपरिवारा जाव अच्चुए आणयब्वा, एवं जाव भवणवासीणवि इंदा, वाणमंतराणे (सोलस,जोइसियाणं दोनि, णियगपरिवारा नेयवा 'जाव य असुरावासा जाव य अट्ठावओ जगवारंदो । देवेहि य देवीहि याला अविरहियं संचरतेहि ॥१॥ एवं सब्बेहिं देवावासेहि, एवं तत्थ भगवंतो देविंदनरिंदेहिं परिखुडा णिब्याचि । इयाणि कूडा धूम M ॥२२॥ जिणघरे, एत्थ दो गाथा-- % दीप अनुक्रम % 0 ries RSS %E 4 अत्र भगवंत ऋषभस्य निर्वाण-वर्णनं क्रियते [233] Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणों सत्राका DEEx णेव्याण चितगा ( ) एवं निव्वाणं गते भगवंते तएणं से सक्के ते बहवे भवणवतिवाणमंतरजोतिसवेमाणिए देवे | द एवं वयासी-खिप्पामेव भो गंदणवणाओ सरसाई गोसीसवरचंदणकढाई साहरह २ ततो चितगाओ रएह, एगा बट्टा धुव्वेणं निर्वाणम् उपोद्घाता सामिस्स, एगा तंसा दक्षिणेणं इक्खागकुलुप्पमाण, एगा चउरंसा अवरेणं अबसेसाणं अणगाराणं, तेऽपि तहेब करति । तए ण स " सक्के आमिओगे देवे सदावेति सद्दावेत्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो! खोरोदगसमुहाओ खीरादगं साहरह, तेऽवि तहेब 6 साहरंति, तते ण से सक्के तित्थगरसरीरगं खीरोदएणं ण्हाणेइ, हाणित्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेण अणुलिपति २ हंसलक्खणं, ॥२२२॥ पडसाडगं नियंसेति नियंसेचा सवालंकारविभूसिय करेति, तए णं भवणबई जाच वेमाणिया गणहरसरीरगाई अणगारसरीरगाणिय खीरोदएण व्हावेंति सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपंति २ अइयाई दिवाई चेव देवदूसजुयलाई नियंसेंति २ सव्वालंकारविभूसियाई करेंति । तए ण से सके बहवे भवणबति जाव वैमाणितादि एवं बयासी-खिप्पामेव भो' ईहामिगउसमतुरग जाव वणलतभत्ति चिचाओ ततो सीयाओ बिउबह, एग सामिस्स, एगं गणहराण, एर्ग अबसेसाणं, तेवि तहेव करेंति । ततेणं से सके विमणे जाव असुननयणे सामिस्स विणट्ठजम्मजरामरणस्स सरीरगं सीयं आरुभति जाव चितगाए ठवेति, तएणं ते बहवे भवणवति जाव वेमाणिया गणहराणं अणगाराण य विणड जाव सरीरंगाई सीय आरुभेति जाव चितगाए ठाउँति । तएणं से सक्के अग्गिकुमारे देवे सहावेति सद्दावेत्ता 'खिप्पामेव भो ! तिसुवि चितगासु अगणिकायं विउबह, तएणं ते अग्गिकुमारा विमणा निराणदा असुपुननयणा जाच विउव्यतिचि, अग्गिकुमारा देवा मुखतो अग्गिं विधा-सृजः, ततःप्रतीतं अग्गिमुखा चै देवाः इति । ताहे तहेब बाउकुमारा वात विउब्बंति, जाव अगणिकायं उज्जालेति । तए ण से सके ते बहवे भवणवति जाब एवं बयासी-खिप्पामेव भो तिमुवि चितगासु दीप अनुक्रम करम [234] Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-]. नियुक्ति: २२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | * प्रत सत्राक है। अगुरु तुरुकं घतं मधु च मारम्गसो य कुंभम्गसो य साहरह, तेचि जाव साहरति । ताहे मंसं सोणितं च सामित, तएणं तहेवनिर्वाणम् आवश्यक मेहकुमारा देवा तिमिवि चितगाओ खीरोदएणं निच्चावति । ताहे सक्को सामिस्स उपरिल्लं दाहिणं सकह गेण्डति, ईसाणो चूणौँ 5 उत्तरिलं गेण्हति, चमरो हेडिल दाहिण बली हडिल्लं बाम, अवसेसा भवण जाव वेमाणिया जहारिह अवसेसाई अंगमंगाई गेहति । उपोद्घात तए णं से सके बहवे भवणवति जाव देमाणिया एवं ववासी-खिप्पामेव भो तओ चेइअधूभे करेह, एगं सामिस्स एग नियुक्ती गणहराणं एर्ग अवसेसाणं, तेऽबि तहेव करेंति । तए णं ते बहवे भवणवति जाव वैमाणिया देवा देवीतो य तित्थगरस्स भयवतो ॥२२३॥ परिणिन्याणमहिमं करेंति, करेत्ता जेणव गंदीसरवरे दीवे तेणेच उबागच्छति उवागच्छित्ता अट्ठाहियाओ महामहिमाओ करेंति । एवं जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाब महिमाओ करेत्ता जेणेब साई साई विमाणाई जेणेव साई साई भवणाई जेणेव साओ साओ समाओ मुहम्माओ जेणेव माणवगा चेतितखंभा तेणेव उबागच्छंति उवागच्छिता बहरामएमु गोलबट्टसमुग्गएम जिणस्स सकराओ &ीपक्खिवति पक्षिवित्ता विपुलाई भोगभोगाई अंजमाणा विहरंतित्ति । - लोगो य पच्छा छारं संचिणति, तमि छारेण डोंगरा कता, तप्पभिति छारेण डोंगरा लोगो करेइ, लोको सद्धाए तेण छारेण समालभति, कोइ पोंडगाणिं करेति, तप्पमति लोगो छारेण समालभतीति, ते च सड्डा अग्गिसकधादीणि जायंति, ताहे देवेहि भाणितं--हमे केरिसगा जायगा ?, ततो जायगसहो जातो, ताए अग्गि घेत्तुं ते सएम सएस गेहेसु ठवेंति, एवं ते आहियरिगणो जाता । ते य अग्गिणो जो सामिस्स तणओ सो दोऽवि संकमति, इक्खागाणं तणओ इतर संकमाति, सेसअणगाराणं तणओ ण संकमतित्ति । भरहो य तत्थ चेतियपर करेति वट्टतिरयणेण जोयणायाम तिगाउतुस्सेहं सीहनिसादि सिद्धायतणपलिभार्ग अणेग दीप अनुक्रम FACCX CLASC ॥२२३॥ [235] Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], श्री नियुक्ति : [२२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्रांक - श्री राखभसयसनिविढं । एवं जहा वेयसिद्धाततणं जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाव शता, तस्स णं चउदिसिं चत्तारि दारा सेता वरकणग-18 आवश्यकाभितागा जाव पडिरूवा । तेसि ण दाराणं उभतो पासं दुहतो निसीहिताओ सोलस सोलस चंदणकलसा यनओ एवं नेयध्वं जाव | चूणौँ । सोलस सोलस वणमालाओ अट्ठमंगलगा। तेसि गंदाराणं पुरतो पत्तेयं २ मुहमंडवे पन्नत्ते, अणेगखंभसय सभा वनओ, तेर्सि नियुक्ती पादपालगणं मुहमंडवाणं पत्तेयं पत्तेयं तिदिसिं तओ दारा पन्नत्ता, सेता बरकणगधूभितागा दारवनो, जाव सोलस वणमालाओ। तेसि णं मुहमंडवाणं उल्लोओ पउमलताभत्तिचिचा जाव भूमिलताभचिचित्ता अंतो बहुसम, तसिणं मुहमंडवाणं उप्पि अट्ठट्ठ मंगलता ॥२२४॥ पत्रता सोत्थिय जाय कत्थती य छत्ता, तेसिं ण मुहमंडवाणं पुरतो पत्नेयं पत्तेयं पेच्छाघरमंडव पनत्ते, मुहमंडवस्स पमाणबत्तव्यया सरिसा जाब बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तयं पचेयं अक्खाइए पन्नते, ते णं अक्खाङगा सबबइरामया अच्छा जाव पीडरूवा । तेसिणं अक्वाडगाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेयं पत्तयं उप्प सीहासणा । तासि उप्पि विभाये लघुसा, वनतो। | तेसिन पेच्छाघरमंडवाणं पुरतो पचेयं पत्तेयं मणिपढिया पन्नत्ता सब्वमणिमया अच्छा जाव पडिरूवा । तासिणं मणिपेढियाणं उपि पने पत्तेयं चेत्यर्थंभे पन्नत्ते ते णं चेतियधूभा संखक जाव सय्यरयणामया अच्छा उप्पि अट्ठमंगलता । तेसिणं चेतियथूभाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसि चचारि मणिपढियाओ मणिमया । तासिं ण मणिपेडियाणं उधि पत्तेयं पत्तेयं चत्तारि | जिणपडिमाओ जिणुस्सेहपमाणमेताओ सम्परयणामतीतो संपलियंकणिसमाओ धूभाभिमुहीओ चिट्ठति, तंजहा-रिसभा बद्ध-४॥२२४॥ alमाणा, चंदप्पभा, वारिसेणा। तेसिणं चंतियधूभाणं पुरतो पत्तयं पत्तवं मणिपढिता पन्नचा सध्वमणिमतीओ | तासिणं पचेर्य पत्ते चेतियरुक्खा वनओ जाव लताओ उपि अट्ट मंगलगा । तेसिणं चेइयरुक्खाणं पुरओ पचे पत्तेयं मणिपढिया सचमणिमया।। -- दीप अनुक्रम 10-1% - अत्र वैताढ्यपर्वत-स्थित शाश्वत-जिनालयस्य वर्णनं क्रियते [236] Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 निर्युक्तिः [२२६-२२९/४२९-४३५ भाष्यं [ ४५ ] श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ।।२२५ ।। तासि उप्पि पत्तेयं पत्तेयं महिंदज्झए बहरामए जाव अट्ठड्ड मंगलगा, तेसिणं महिंदजायाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं णंदापुक्खरणीतो जाव तिसोणपडिरूवगा तोरणाई । तत्थणं चेइयघरे अडवालीसं दसगा मणोगुलियाणं पुरत्थिमेणं सोलस दसगा, पञ्चत्थिमेणं सोलस दसगा दाहिणेणं अट्ठ दसगा उत्तरेणं अट्ठदसगा। तासु णं मणोगुलिया बहवे सुवन्नरुप्पमया फलगा । एवं जहा सभाए जाव दामा चिति । तत्थणं चेहए अडयालीसं दसगा गोमाणसिगाणं पुरस्थिमेण सोलस जहा मणगुलिया, तासु बहवे सुवनरुप्पमता फलगा। फलएसु णागदंता । नागदंतएमु रजतामया सिक्कगा. सिक्कएसु धृवघडिताओ । तत्थणं चतियउलोओ पउमलताभत्तिचिचो जहा सूरिया । तस्स णं चेतियस्स अंतो बहुतमरमणिज्जे भूमिभागे वचओ । तस्सणं बहुमज्झदेसभाए मणिपेढिया सव्वमणिमया जाव पडिवा । तीसे णं उपि देवच्छंदए सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे । तत्थ णं देवच्छंदर चडवीसाए तित्थगराणं नियगप्यमाणव भेहि पत्तेयं पत्तेयं पडिमाओ कारेति । तासि णं इमेतारूबे बन्नावासे पण्णसे, तंजहा अंकामयाई णक्खाई अंतोलोहितक्खपडिका तवणिज्जमया इत्थपायतला कणगमया पादा कणगामयीतो जंघाओ कणगमया जाणू कणगामया ऊरु कणगामयीओ गायलडीओ रिट्ठमईओ रोमरातीओ तवणिज्जमयीओ णाभीओ तवणिज्जमया बुब्बुवा तवणिज्जमया सिरिवच्छा कणगामतीओ बाहाओ कणगामईओ गीवाओ रिट्ठामयाई मज्झाई पवालमया ओडा फालितामया देता तवणिज्जमतीओ जीहाओ तवणिज्जमया तालुया कणगमतीओ णासाओ अंतोलोहितक्खपडिसेगाओ रिट्ठामयाई अच्छपत्ताई अंकमयाई अच्छीणि अंतोलोहियक्खपडिसेकाई रिट्ठामतीओ पुलकामतीओ दिडीओ रिट्ठामयीओ मुकाओ कणगामया कवोला कणगामया सवणा कणगामया बिडालपट्टा, बारामतीओ सीसघडीओ तवणिज्जमयीओ केसंतभूमीओ रिट्ठमया उपरिमुद्धया । एवं नियगवन्भवि भासा कायन्या । [237] अष्टापदे चैत्यं ॥२२५॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२२६-२२९/४२९-४३५] आय [४५] अध्ययनं मूलं [- / गाथा-1, पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्ती ।।२२६ ।। वासिणं जिणषडिमाणं पिट्ठओ एगमेगा उत्तधरा पडिमा हिमरयय कुंदे दुष्पगासं सकोरंटमदामं मणिमुत्तसिलप्पवालजालं फलिहदंडं धवलं आतपत्तचयं महाय सलीलं धारमाणीओ २ चिर्हति । तासिणं जिणपरिमाणं उभतो पास दो दो चामरधारपडिमाओ चंदप्यभवइरवेरुलियणाणामणिरयणखचितचित्तदंडाओ सुहुमरयतदीहवालाओ संखकुंददगरयअमयमधियकेपुंजसंनिकासाओ चलाओ चामराओ गहाय सलीलं वीयेमाणीओ २ चिर्हति । तासि जिणपडिमाणं पुरओ दो दो णागपडिमाओ दो दो जक्खपडिमाओ दो दो भूतपडिमाओ दो दो कुंडधारगपडिमाओ सम्वरयणामयीओ । तत्थ णं देवच्छेदए उवीसं घंटाओ चउच्चीसं चंदणकला एवं एतेणं अभिलावेण भिंगारा आदसा थाला पातीओ सुपइट्ठा मणगुलिया वातकरगा चित्ता रयणकरंडा इयकंठा गयकंठा णरकंठा जावा उसमकंठा पुष्फचंगेरीओ एवं मलजुष्णगंधवत्थआभरण० चउव्वीसं पुप्फपडला, एवं जाव चउथ्वी आमरणपडलगा, चउथ्वीसं लोमहत्थगपडलगा, चडब्बीसं सीहासणा, एवं छता चामरा, चडब्बीसं तेलसमुग्गा एवं जाब चन्वी धूपकच्छुयति । तस्स णं चितियस्स उपि अट्टमंगलगा सेया जाव उप्पलहत्थगा य। एवं तं चेयं अणेगभसयसंनिवि अम्भुग्गतसुकतवयरवेश्यागं तोरणवररइयसालिभंजियं सुसिलिबिसिलठितपसत्थवेरुलियाविमलखंभ णाणामणिकगतितउज्जल बहुसमविभत्तभूमिभागं ईहामियउसभतुरगणरमकरविहगवाल कि अररुरुसरभचमरकुंजरवणलतपउमलत--- भत्तिचित्तं खंभुग्गतवद्वेश्यापरिगताभिरामं विज्जाहरजमलजंत जुतमिव अच्चिसहस्समालिणीयं स्वगसहस्सकलितं मिसमीण भिम्भीसमीपं चक्लोयणलेस्सं सुहफार्स सस्सिरीयरूवं कंचणमणिरयणधूभियागं गाणाविहपंचवन्नघंटा पडागपरिमंडियग्गसिहरं धवलं मिरीयिकवचं विणिम्यंत लातुल्लोइयमहिय गोसीससरसरतचंदणददरदि अपंचगुलितलं उचचियवंदणकलसं चंदणघडसुकत [238] अष्टापदे चित् ॥२२६॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [२२६-२२९/४२९-४३५] आय [४५] अध्ययनं पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णो उपोद्घात निर्युकी ॥२२७॥ तोरबपडिदुबारदेसमार्ग आसतोस तीवल बट्टबग्वारियमलदामकलापं पंचवण्णसरससुरभिमुक्क पुण्फ पुंजीवयारकलितं कालागरुपवरकंदुरुक्कतुरुक धूयमघमषेंतगंधुद्धताभिरामं सुगंधवरगंधगंधित गंधवट्टिभूत अच्छरगणसंघसंविकिन्नं दिव्वतडितसहसंपादितं सम्बरणामयं अच्छे जान पडिरूवं कारवेत्ता भातुसयस्स य तत्थेव पडिमाओ कारवेति, अप्पणी य पडिमं पज्जुवासंतिय, सयं च प्रभाणं एवं वित्थगरस्त व सेसाणं एगुणगस्स भाउयसयस्स. मा तत्थ कोइ अतिगमस्सतित्ति लोहमणुया ठविया जंताउत्ता, जेहिं तत्थ मया अइगंतुं ण सक्केति । खतूण य मंजूण य पासाई दंडरयणेण छिन्नकडगे काऊण अट्ठ पयाणि करोत, जोयणे जोयण पद्, पच्छा सगरपुतेर्हि अप्पणी कित्तणनिमित्तं गंगा आणिीया डंडरयणणं । मरहोचि कालंग अप्पसोगो जातो। ताहे पुणरवि भांगे जितुं पवचो एवं तस्स पंच पुव्वसयसहस्साई अइक्कंताई भोगे जमाणस्स । इयाणि भरहस्स दिक्खत्ति, कविलवत्तब्वया पच्छा संबंधा भन्निहिती । तत्थ आयंसघरपबेसो || ३ || २४९ ।। अह अभया कयाति सव्वालंकार विभूषितो आयंसघरं अतीति तत्थ य सव्यंगिओ पुरिसो दीसति, तस्स एवं पेण्टमाणस्स अंगुलेज्जगं पडिय, तं च तेण ण णायं पडिये, एवं तस्स पलोएतस्स जाहे व अंगुलिं पलोपति जाव सा अंगुली न सोहति तेण अंगुलीज्जरण विणा, ताहे पेच्छति पडियं, ताहे कडगंपि अवणेति एवं एक्केक्कं आमरणं अवतेण सव्वाणि अवणीताणि, ताहे अप्पा पेच्छति, उच्चियपउमं व पउमसरं असोभमाणं पेच्छइ, पच्छा भणतिआगतुंएहिं दन्देहि विभूसितं इमं सरीरगंति, एत्थं संवेगमायचो । इमं च एवं गतं सरीरं, एवं चितमाणस्स ईहावू हामग्गणगवेसणं करेमाणस्स अपुष्यकरणं शाणं अणुपविट्टो केवलणाणं उप्पाडेति । तत्थ सक्को देवराया आगतो मणति-दब्बलिंग परिवज्जह, अत्र चक्रवर्ती भरतस्य केवलज्ञानस्य वर्णनं क्रियते [239] अष्टापदे चैत्यं भरतस्य दीक्षाकेवले ॥२२७॥ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२४९/४३६], भाष्यं [४५...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 कपिलस्य प्रत जकता दीप अनुक्रम जाहे णिक्खमणसक्कार करेमि, ताहे संनिहिताए वाणमंतरीए देवताए लिंगग्गहणं उबद्दवित, साहे सस्केण देविदेण वंदितो, |अमेहि य, ताहे भगवं एग पुव्वसयसहस्सं केवलिपरियागं पाउणित्ता मासिएणं भत्तेणं अपाणगेण समणेणं णक्खत्तेणं परिनियुए चूर्णी अहावए । भरहसामी दसहि रायसहसहस्सेहिं सद्धि पब्धइओ । सेसा णव चक्किणो साहस्सपरिवारा पव्वइया । आइच्चजसो उपायातसक्केण अभिसिचो । एवं अट्ठ पुरिसजुगाणि अभिसित्तत्ति । नियुक्तो - इयाणि कविलित्ति दारं, तत्थ 'पुच्छताण कहेती' ॥ ३ ॥ २५० ।। सो य मिरिती सामिमि परिनिच्चुएवि साधूहि | ॥२२८॥ सर्म विहरति, तस्स य विहरमाणस्स जो उवट्ठाति तं पथ्यावेऊण साधूर्ण देति, जाव सो अनया कयाती गिलाणो जातो, ताहे साधुणो असंजयस्स वेयावडिया ण कज्जीतचि तेण ते ण करेंति, ताहे सो संकिलिट्ठा चितेइ--अहो इमे साधुणो निरणुकंपा, इयाणिं जदि उडेमि जो य मे उहावेति तं अप्पणो चेव पथ्यावेमि, एवं सो अमया रोगविमुक्को विहरति, तत्थ कविलो नाम | रायपुत्तो, सो तस्स पासे धम्म मुणति, इमो य से अणगारधम्म पनवेति, ताहे सो मणति- तुम्भे अन्नहा ठिता, इमं च अन्नहा | पनवेह, मिरिती भणति- एस साधणं धम्मो, अहं पावकम्मो ण सक्केमि काउं, सो भणति- एत्थ तुम्भं अस्थि किंचि, ताहे सो भणइ- एतेसु अस्थि, इहवि मणागं, एत्थंतरा एएण दुम्भासिएणं संसारो अणेण वडितो कुधम्मं वटुंतण, जेण सागरोवमकोडा| कोडि भमितो। तमूलं संसारो॥३॥ २५२ ।। सोऽधि कविलो ण किंचि पडिबज्जात साहणं, ताहे मिराई चिंतति- एस साधूर्ण गाहणं ण गेण्हति, मम य बितिज्जेणं कज्जं तम्हा पब्बावेमि, सो पण पव्वावितो । एवं सो तेण समं विहरति, एवं काले बच्चते अप्पणो |२२८॥ भगवंत वीरस्य कथानक मध्ये कपिलस्य शिष्यत्व-वर्णनं [240] Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२५२/४३९], भाष्यं [४५...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सुत्रांक आउक्खए चतुरासीति पुब्वसयसहस्से सव्वाउं पालइचा कालमासे कालं किच्चा अणालोयियपडिक्कतो बंभलोए कप्पे दससागरो- श्रीवीरस्य आवश्यक चूर्णी Mबमट्टितीए देवो जातो ४॥ IM भवाः उपोद्घात सोऽवि कविलो मुक्खो ण किंचि जाणति सत्थं वा पोत्थं वा, जोवि उवट्ठाति ण तस्स कहेतुं जाणति, णवीर आसुरिं पव्वानियुक्ती ति, तस्स आयारगोयरं ववदिसति, एवं जाब सोऽवि कालगतो बंभलोए उववचो, ओहिं पङजति २ आसुरिं पासति, तस्स | चिंता जाता, जहा-मम सीसो ण जाणइ काचे, उवदेस से देमित्ति सो आगासे पंचवन्नं मंडलं करेचा तत्थ द्वितो, स च तत्र ।।२२९॥ दर्शयति अव्यक्तप्रभवं व्यक्तं, चतुर्विंशतिप्रकारं ज्ञानं प्रकाशयति, ततः पस्यति अज्ञानावृत्तस्य तत्रैव प्रलीयते, पश्चात्तत्षष्टितंत्र संवृत्त, एवं कुतित्थ जातं । तं कविलो पढिज्जमिति । इवाणि जहा कोडाकोडि भमितो जह य तिविट्ट वासुदेवो चक्कवडी तित्थ४. गरो जातो मिरिती एत पगतं मिरितीवत्तव्वयं भणति इक्याएम मिरिई चउरासीतिय भलोगंमि । कोसिओ कोल्हागंमी असीतिमायुं च संसारे ॥ ३ ॥२५३ ।। एवं सो मिरीयी तातो भलोगाओ चइऊण कोल्लाओ णाम संनिवसो तत्थ कोसितज्जा बंभणा जातो, तत्य असीति | पुच्चसयसहस्साई परमाउं पालतित्ता ५ संसार अणुपरियट्टितो. एवं चिरं कालं अणुपरियट्टित्ता धूणाणामं सभिवेसो, तत्थ पूसमित्तो णाम माहणो आयातो, तत्थ से आउं वावत्तरि पुब्बसयसहस्साई, तत्थवि निबिनकामभोगो परिव्याओ पब्वतितो ६। कालमासे कालं किंचा सोधम्मे उपवनो अजहन्नुक्कोसहितीओ, ततो चुतो चेइए संनिवेसे अग्गिज्जोओ माहणो जातो, चोवहि | ॥२२९॥ पुब्बसयसहस्साई सवाउं, तत्थ परिवाओ जाओ८, ईसाणे उववन्नो अजहन्नुक्कोसहितीओ ९, ततो चुतो मंदिरे सनिवेसे अग्गि CACARA दीप अनुक्रम अथ भगवंत वीरस्य भवानाम् वर्णनं [241] Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [२५३/४४०-४४३], भाष्यं [४५...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 THI श्री प्रत सत्राक नियुक्ती _ भूतिणाम माहणो छप्पन पुब्बसयसहस्सा सवायु, तत्थवि परिच्याओ १०, सणकुमारे मज्झिमहिती उपवनो ११, ततो चुतोश्रीवीरस्य आवश्यकता सेयचियाए भारदाए उ माहणो जातो, चौतालीसं पुच्चसयसहस्साई, तत्थवि परिब्बाओ १२, माहिदे उपवनो १३, ततो चुतोद चूर्णी चूणा एत्यंतरे संसार अणुपरियट्टइ, उब्बाट्टिता रायगिहे थायरो माहणो जातो, चौतीस पुब्बसयसहस्साई , तत्थवि परिवाओ १४, भलोए सुरो १५, एताओ छप्पारिवज्जाओ अणुबद्धं, ततो नुतो चिरं संसारं भमिता । ततो भमिता रायगिहे णगरे बिस्सणंदी, है तस्स भाता विसाहभूती,सो य जुवराया, तस्स जुवरण्णो धारिणीए देवीए विस्तभूतिति नामेण पुत्तो जाओ, रो पुचो विसाहनादीति। ॥२३०॥ जातो।।। ३ ॥२५७।। रायगिहे विस्सनंदी, विसाहभूती य तस्स जुवराया, जुबरनो विस्सभृती, विसाहणंदी य इतरस्स, तस्स विस्सभतिस्स बासकोडी आउं, तत्थ पुष्फकर उगंणाम उज्जार्ग, तत्थ सो विस्सभूती अंतेउरवरगतो सच्छंदमुहं पविहरति, जा सा विसाहणंदिस्स कुमारस्स माया तीसे दासचेडीओ पुष्करंडए उज्जाणे पुकाणि य पत्चाणि य आणति, पेच्छंति य विस्स भूति कित, तासि अमरिसो जातो, ताहे साहति जहा एवं कुमारो उवललति, कि अम्ह रज्जणं वा बलेण वा जदि विसाहणंदी दण भुंजती भोगे, अम्हणाम किं पुण जुबरन्नो पुत्तस्स रज्ज जस्सेरिसं ललितं, सा देवी तासि अंतियं एवं सोउं ईसाए कोवघरं पबिट्ठा, जदि ता रायाए जीवतेणं एस एरिसा अवस्था जाहे राया गतो भपिस्सति ताहे एत्थ अम्हे को गणेहिति?, राया गमेति ॥२३०॥ सा पसाद ण गेण्हति, किं मे रज्जेणं तुमे वत्ति?, ताए कहित-मम पुत्तो दासो जह अच्छति, सणाविज्जति तहषि ण ठाति, पच्छा तेण अमच्चस्स सि९, ताहे अमच्या तं देवि गमेति, तहवि ण ठाति, वाहे सो अमध्यो रायं भणति-मा देवीए बयणातिकमो कीरतु , मा अप्पाणं मारेहिति, को पुण उवातो होज्जा, ण य अम्ह बसे अचंमि आतिगते उज्जाणं अन्नो अतीति, तत्थ दीप अनुक्रम HALA [242] Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूचांक H दीप अनुक्रम H भाग - 3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-1, निर्मुक्तिः [२५७/४४४-४५०] आयं [४१...]] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र- [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूणी उपघात नियुक्तौ ॥२३१॥ 1 वसंतमासं ठितो मासग्गेसु अच्छति, उवाओ कज्जतु, जो एत्थ य पञ्चंतराया तस्स अत्थेण लेहो लिहिज्जतु, अने पुरिसा लेहारिया कीरंतु, ताहे ते लेद्वारा राउले उवणीता, एवं एतेण क्यगेण कूडलेहा रनो उबडविया, ताहे राया जतं गेण्हति, कुमारेण सुतं, ताहे भणति -मए जीवमाणे तुम्भे कीस णागच्छही, ताहे सो गतो, ताहे चेत्र इमो अइगतो, सो य तं पच्चतं गतो, किंचि पण पेच्छति उडमारंतगं, ताहे आहिंडिचा जाहे णत्थि कांचि ताहे पुणरचि पुप्फकरंडगं उज्जाणं आगतो । तत्थ दावाला डंडगहितहरथा भणति मा सामी अतीह, सो भणति किं निमित्तं ? तेहिं भणितं एत्थ विसाणंदी कुमारो रमति एयमङ्कं सोऊण ताहे कुमरो आसुरुतो, तेणं गातं कृतकंति, तत्थ कविठ्ठलता अगफलभरसमोणता सा मुद्विप्पहारेण आहता, जहा तेहिं कविट्ठेहिं भूमी अत्थता एवं तुम्भं अहं सीसाई पाटेंतो जाद अहं मलापण गोरवं ण करतो, अहं मे छत्रेण णीजिता, तम्हा अलाहि भोगेहि, ततो निग्गतो भोगा अवमाणमूलंति संभूवाणं थेराणं अंतियं पव्वइओ । तं पव्वइयं सोउं ताहे राया संतेपुरपरिजण जुवराया यू णिग्गतो, ते तं खमावेंति, पोय सो तेसिं संपतिं गेहति, इतरोऽवि बहूहिं छट्टट्टमेहिं अप्पाणं भावेमाणो विहरह । एवं सो भगवं विहरमाणो मधुरं नगरं पत्तो, इमो य विसाहणंदी कुमारो तत्थ मधुराए पितुत्थाए रनो अग्गमहिसीए धूता लद्धेलिया तस्थ गतओ, तत्थ से रायमग्गे आबासो दिनो, सो य विस्तभूती अणगारो मासखमणपारणए हिंडतो तं देसं आगतो जत्थ ठाणे कुमारो विसाहनंदी कुमारो अच्छति तं देखें पत्तो, तत्थ तेहिं पारीसच्चाहिँ पुरिसेहिं भन्नति-सामी ! एतं पव्यइतगं तुब्भे जाणह १, सो भणति ण जाणामि, तेहिं भणितं एस विस्सभूतिकुमारो, तं दण तस्स ताहे चेव कोवो जातो । कत्थंतरा सो सूतियाए गावए सोछितो पडिततो, ते तेहि उक्कडिकलकलो कतो, इमं च णेंहिं भायं तं बलं तुज्झ कवित्थ [243] श्रीवीरस्य भवाः ॥२३१॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [२५७/४४४-४५०], भाष्यं [४५...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्रीवीरस्य भवाः प्रत दीप अनुक्रम ४ पाडणं च कहिं गतः, ताहे तेण ततो पलोइत, दिवो य मेण सो पावो, ताहे अमरिसेणं तं गावि अग्गासँगेहिं गहाय उड्डे उव्विहति, आवश्यक सुदुम्बलस्सावि सीहस्स किं सियालेहिं बलं लंधिज्जति ?, ताहे चेव नियचो, इमो दुरप्पा मम अज्जयि रोसंण मुयति, ताहे चूणीं। सो णियाणं करोति, जदि इमस्स तबनियमबभचेरस्स अस्थि फलं तो आगमेस्साणं अपरिमियबलो भवामि १६, उपविध वाहे सो तत्थ अणालोइवपडिक्कतो महासुक्के उपबन्नो १७, तत्थ उक्कोसाट्टिती । ततो चुतो पोयणपुरे नियुक्ती पुचो पयावइस्स मियावतीकुच्छिसंभवो, भगवं! तस्स कद पयावतिचि णाम, तस्स पढमं रिपडिसत्तू णाम होत्था, ॥२३२॥ तस्स भद्दा देवी, तस्स पुत्तो भद्दाए अत्तए अचले णाम कुमारी होत्या, तत्थ अचलस्स भगिणी मियावती णामा दारिया अतीव रूवेण जोवणेण य, सा उम्मुक्कबालभावा सवालंकारविभूपिता पितुपादवदिया गता, तेण सा उच्छंगे निवेसा|विता, सो तीसे रूवेण य जोवणेण य अंगफासंमि य मुच्छितो, तं विसज्जेचा पउरजणवयं बाहरति, वाहरेत्ता ताहे भणति-ज पत्थ रत्तं वा स्वर्ण वा उप्पज्जति ते कस्स', ताहे ते भणति-तुम्भ, एवं तिनि वारा साविते सा चेडी उवट्टविया, ताहे ओहयमलिणसंकप्पा ते निग्गता, ताहे तेसि सम्बेसि कूवमाणाण तेण गंधव्वेण विवाहेण सयमेव विवाहिता, उप्पाइता गणेणं, ताहे सा भद्दा पुत्तेणज्यलेण सम दक्षिणावहे माहेसरिपुरि निवसति, महंतीए इस्सरीएचि माहेस्सरी, अयलो तत्थ मातं ठावेत्ता पितुमूलं गतो, वाहे लोगण पजापतित्ति से णाम कत, वेदेऽप्युक्तं 'प्रजापतीः स्वां दुहितरमकामयत ।' ताहे महामुक्कातो चुतो तीसे मिगावतीए | कुच्छिसि उववो, सत्त सुविणा दिडा, मुविणपाढएहिं पढमवासुदेयो आदिट्टो, कालेण जातो, तिथि पिट्ठकरंडगा तेण से तिवि| गृति णामं कतं, माताए उण्हतेल्लेण परिमक्खितो, सो जोव्वणगमणुप्पत्तो । इओ य महामंडलीयो आसग्गीतो राया, सो मिनी ॥२३२॥ [244] Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२५७/४४४-४५० भाष्यं [ ४५...] अध्ययन [ - ], मूल [- /गाथा ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि :- 1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥२३३॥ अप्पणो मच्चु पुच्छति, कतो मम भयंतिः, तेण भणियं - जो एवं सीहं मारेहित्ति चंडमेहं दूतं आधरिसेहिति ततो भयं ते, तेण य सुतं-- जहा पयावतिस्स पुत्ता महाबलवगा, गेमित्तियादिडगा य, ताहे तं दूतं पयावतिस्स मूलं पेसेति दूतो संपतो, तत्थ य अंतेपुरपेच्छणयं वदति, तत्थ दूतो पविट्टो, राया उडतो, तं पेच्छणयं भग्गं, ते कुमारा पेच्छणगण अक्खित्तगा भणति को एसतिः, तेहिं भणितं जहा अहिरण्णो दूतोत्ति, तेहिं भणितं - जया वचेज्जा तदा कहेज्जाह, सो अनया तेण पडिपूजितो पाहुडेणं, ताहेणिग्गओ पहावितो अप्पणी विसयस, कुमाराणं च मणुसेहि कहिलं, ताहे सो तेहिं गंतॄणं हतमहितपवरजाव सव्वं घेत्तृर्ण णियता, ते य से सच्चे मणूसा दिसोदिसिं पलाया. रन्ना सुतं जहा आधिरिसितो दूतो, ताहे संभ्रमेण गंतूण णिवचितो, ताहे रत्ना विगुणतिगुणं दाऊण भणितो-माहुरनो साहिस्सासि जं कुमारेहिं कतं, तेण भणियंण साहेमि, ताहे जे ते पुरतो गता तेहिं सिद्धं, जथाआधरिसिओ दूतो, ताहे सो राया कुचिओ, तेण दूतेण णातं जहा रनो पुव्यकहितेल्लयं, जहावत्तं सिद्धं तेण, रन्ना भणितं -अश्रो दूतो गच्छतु तं पयावई गंतूण भणाहि मम साली कसिज्जमाणे रक्खाहि, दूतो गतो, रमा कुमारा ज्वलद्धा किह अकाले मच्चू खवलितो ?, तेण अम्हं अवारए चैव जत्ता आणना, राया पहावितो, कुमारेहिं भणितं अम्दे बच्चामो, ते रुज्झ तं मड्डाए गता, ताहे ते खेतिए पुच्छीत किह ते रायाणो रक्खिताइया, ते भांति आसहत्थिरह पुरिसपागारं काऊ, केचिरं ?, जाव करिसणं पविट्ठन्ति, तिविट्टू भणति को एच्चिरं कालं अच्छतिः ममं तं पदेसं दावेह, तेहिं कहितं एयाए गुहाए, ताहे कुमारेण ततो हुतो रहो दिनो, जाव गुर्ह पविडो, लोगेण दोहिवि पासेहि कलकलो कतो, ताहे सीहो विभतो निग्गतो, कुमारो चिंतेति-एस पयायेहिं अहं रहेण, विसरिसं जुद्धं, ताहे असिखेडगहत्थो रहातो उत्तिनो, ताहे पुणो चिंतितं-एस दाढणखाउघो अहं असिखेडएणं, एवमवि [245] श्री वीरस्य | ॥२३३॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२५७/४४४-४५०], भाष्यं [४५...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 भषाः प्रत सुत्रांक चूणौं | श्री_ विसम, ताहे तंपि णेण असिखेडग छडितं, ततो सीहस्स अमरिसो जातो, एग ता रहेण गुई अतिगतो एगागी, वितिय भूमि श्रीवीरस्य आवश्यकता उत्तियो, ततियं आयुधाणि मुतिचा ठितो, अज्ज णं विणिवातमित्ति महया अवदालितण वयणेण उर्खदं दाऊण संपत्तो, ताहे तेण Iकुमारेण एगेण हत्येण उवरिल्लो ओहो एगेण हेथिल्लो ओहो गहितो, जुन्नपडगाविव विदालेऊण एगत एडितो, ताहे लोगण। उपोद्घात हा नियुक्ती 18 उक्कटिकलयलो कतो, आभरणवस्थवासं च पाडित, ताहे सो सीहो तेण अमरिसेण फुरुफुरेंतो अच्छति, एवं नाम अहं कुमारएण होतएण जुद्धे मारिओति, तं च किर काल गोयमसामी भगवतो सारही आसि, तेण भन्नति-मा तुमममरिस बहाहि, एत्थ को रोसो ॥२३४॥ अद्धिती या', एस णरसीहो, तुम मिगसीहो, जदि सीहो सीहेण मारितो तो एत्थ को अवमाणो, सो ताणि वयणाणि मधु-19 मिव पिबति, सो मरित्ता नरएसु उववो । सो कुमारो तं चम्म गहाय सणगरस्स पधावितो, ते गामेल्लए भणति- गच्छह मोटू घोडगगीवस्स कहेह जहा अच्छसु पीसत्थोति, तेहि रम्रो सिट्ठ जहा पयावइपुतण मारितोति, ताहे कुद्धो दूयं पेसेति, जहा एते ते पुत्ते तुम मम ओलग्गए पत्थवेहि, तुर्म महल्लो अच्छाहि, जाणे अहं पेच्छामि सक्कारोमि रज्जाणि से देमित्ति, तेण भणितदा अच्छतु कुमारा, सर्य चेव अहं ओलग्गामि, ताहे सो पुणो भणति- किं ता पेसेसि आओ जुद्धसज्जो णिग्गच्छसि', सो दूतो तेहिं घरिसेचा धाडितो, ताहे सो आसग्गीयो सबबलेण उवहितो, इतरेवि देसते ठिता, सुबहुकालं जुजिाऊण हयगयरहणरादिखयं ॥२३४॥ च पेच्छिऊण कुमारण तो पेसितो, जहा अहं च तुर्म च दोवि अहियपुरिसा, एतेन्ये पुरुषा भृत्याः अस्माकं, किंत्रा बहुणा अकारिजणेण मारितण', अम्हे चेव लियामो, एवं होउत्ति वितियदिवसे दोऽवि रहे संपलग्गा जुज्झति, जाहे पुण आयुहाणि खीणाणि ताहे आसग्गीवो चक्कं मुयति, तं तस्स तुम्बे णउरे पडियं, पच्छा तेणेच चक्कण आसग्गीवस्स सीस छिमें, देवेहिं उग्घुई RECRUAEXECORAKAR दीप अनुक्रम RS [246] Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं F /गाथा-], नियुक्ति: [२५७/४४४-४५०], भाष्यं [४५...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सुत्रांक चूी प श्री एस पढमो विवि नामेण वासुदेवोचि, जहा वासुदेवजरासंधाणं जुद्ध तहा बनेयम्बं । ते सव्वे रायाणो ओपतिता, ओपवितं श्रीवीरस्य आवश्यक अडं भरह, कोडियसिला बाहाए धारिता लीलाकट्ठ व, एतं रहावत्तपब्बतसमीवे जुद्धं आसी, एवं परिहायमाणे बले कण्हेण किर भवा किहवि जन्नुगाणि पाविता । तिविठू चुलसीति वाससयसहस्सांइ सब्याउर्य पालचा १८ सचमाए पुढीए अपइट्टाणे नरए उपव नो १९ ततो य उच्चट्टित्ता सीहत्ताए २० पुणो नरएसु २१ । ताहे कतिवयाई तिरियमणूसभवग्गहणाई भमिऊण अबरविदेहे म्याए रायहाणीए धणंजयस्स पुत्तो धारणीए कुच्छिसि पियमित्तो णाम चक्कवट्ठी जातो, तत्थ चतुरासीतिं पुण्यसयसहस्साई ॥२३५॥ परमाउयं पालता चक्कवट्टिभोग चइत्ता पोडिलाणं घेराणं अंतियं पब्वइतो, वासकोर्डि परियागं पाउणिचा २२ महामुक्के कप्पे I सम्बद्वे विमाणे देवो जातो, सत्तरससागरोवमाद्वितीतो २३ । 13 .ततो चुत्तो छत्तग्गाए णगरीए जियसत्तुस्स रमो पुत्तो महाए अत्तओणंदणो णाम कुमारो जातो, अचिरेण रज्जे ठवितो, चउ-18 व्वीसं वाससहस्साई अगारवासमझे वसिता पोडिल्लाणं अतियं पञ्चइतो, एक्कारस अंगाई अहिज्जिचा तत्थ मासंमासेणं खममाणोएग वाससयसहस्सं परियागं पाउणित्ता इमेहिं यीसाए कारणींह आसेवितबहुलीकतहिं तित्थगरनामगोयं णिवत्तेति । तंजहा____ अरहंत सिद्ध ॥३॥ २६४ ॥ दसण॥ ३ ॥ २६५ ॥ अप्पुब्ब० ॥ ३ ॥ २६६ ॥ पढम०( ) तंच | कहं० ( ) ॥३॥ २३७॥ नियमा०॥३॥ २६८॥ जहा पदरनाभो, तत्थ मासियाए संलहणाए सहि मचाई । आलोइयपडिकंतो समाहीए कालगतो २४ पाणवे कप्पे पुरफुत्तरवडेंसते विमाणे देवत्ताए उववो २५ तत्थ वीस सागरोवमाणिारा 1 दिखाणि भोगाणि भुजिऊण दीप अनुक्रम [247] Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सुत्रांक दीप अनुक्रम माहणकुंडग्गामे ॥ ३ ॥ २७ ॥ सुमिणअवधारगाथाहिं ज भणितं जं च पज्जोसवणाकप्पे पढमाणुओगे या गर्भसंक्रमः आवश्यक सव्वं नायवं, ठाणासुन्नत्थं पुण किंचि भवति । चूणों IP तेणं कालेण तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स नियुक्ती दाता छट्ठीदिवसेणं महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरियातो महाविमाणाओ वीसंसागरोवमद्वितीयातो अणंतरं चयं चइता इहेव जंबुद्दीचे दीवे भारहे बासे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए विइक्कंताए एवं सुसमाए सुसमसमाए दुस्समसुसमाए बहुवितिक्कल ॥२३६॥ ताए पनत्तरीए वासहिं अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसएहिं एकवीसाए इक्खागकुलसमुप्पण्णेहिं० गोतमसगोत्तेहिं तेवीसाए तित्थगरेहि x विइक्कतेहिं चरिमतित्थगरे पुञ्चतित्थगरनिहिढे माहणकुंडग्गामे णगरे उसमदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए पुब्बरतावरत्तकालसमयंसि इत्युत्तराणक्खत्तर्ण जोगमुवागतेणं आहारवक्कतीए भववक्कंतीए सरीरवकतीए कुन्छिसि गम्भत्ताए वकंते, से य तिण्णाणोवगत होत्था-चइस्सामित्ति जाणति चवमाणे ण जाणति चुतेमित्ति जाणति, स्याणिचणं देवाणदाए कुञ्छिसि गम्भत्ताए धक्कते तं रयणिं च णं सा सयणिज्जसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे ओराले चोद्दस महासुमिणे पासिचाणं पडिबुद्धा, तंजहा-गय उसभ सीह अभिसेय दाम ससि दिणयरं झयं कुंभं। पउमसर सागर विमाणभवण रयणुच्चय सिहि च ॥१॥ तए णं सा हट्टतुट्ठा उसभदत्तस्स माहणस्स कहति ॥२३६।। से य एवं वयासी-ओराला णं तुमे देवाणुप्पिए। सुमिणा दिट्ठा, तंजहा-अत्थलाभो देवाणुप्पिए, एवं भोग० पुत्त० सोक्ष०, एवं खलु तुम देवाणुप्पिए ! णवण्हं मासाणं अट्ठमाण य राइंदियाण वितिक्कंताणं सुकुमालपाणिपार्य अहीणपडिपुषणपंचिंदियसरीरं | भगवंत वीरस्य गर्भ-संक्रस्य वर्णनं [248] Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री IM लक्षणवंजणगुणोववेतं माणुम्माणप्पमाणपडिपुष्णसुजातसव्वंगसुंदरंग ससिसोमागारं कंतं पियदसणं सुरूवं दारयं पजाहिसि । स्वप्नोआवश्यक सेविय ण उम्मुक्कवालभावे जोब्बणगमणुप्पत्ते रिउब्वेदययुवेदसामवेदअथव्वणवेद इतिहासपंचमाणं णिघंटुछवाण संगोवंगाणं पलभः चूर्णी सरहस्साणं चउण्डं वेयाणं सारए पारए धारए सडंगवः सद्वितंतचिसारदे संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे उपोद्घात अनेसु य बहसु बंभन्नएसु णएसु सुपरिणिहिते यावि भविस्सति, ओराला गं तुमे देवाणुप्पिए! जाव दिट्ठा। तएणं सा देवाणंदा नियुक्ती एतमहं सोच्चा जाव एवं बयासी- 'एवमेतं देवाणुप्पिया! अवितहमयं देवाणुप्पिया! जाव से जधेयं तुम्मे वयहत्तिकटु सम्म18 ॥२३७॥ |पडिच्छति २ जाव सद्धिं ओरालाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरति ।। इयाणिं अवहारत्ति० तेणं कालेणं तेणं समएणं सके णाम देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सतकतू सहस्सक्खे मघवं पाकसासणे दाहिणलोगाहिवती बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवती एरावणवाहणे सुरिंदे अरपंचरवत्थधरे आलइयमालमउडे णव-18 हेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे भासुरखोंदी पलंबवणमाले महिडीए महजुतीए महाबले महायसे महाणुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मरडेंसए बिमाणे सभाए मुहम्माए सक्कासि सीहासणसि, से ण तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससतसाह. स्सीणं चउरासीए सामाणियसाहस्साणं तावत्तीसाए तावतीसगाणं चउण्डं लोगपालाणं अट्ठण्हं अग्गमाहिसीणं सपरिवाराणं तिण्डं: परिसाणं सत्तण्डं अणियाहिवईण चउण्हं चउरासीर्ण आयरक्खदेवसाहस्सणिं अबेसि च बहणं सोहम्मकप्पवाणिं वेमाणियाणं देवाण* य देवीण य, असे पढ़ेंति-अमेसि च बहणं देवाण य देवीण य अभिजोग्गउक्वनगाणं, आहेवच्च पारेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं मह-18॥२२॥ तरतं आणाईसरसेणावच्च कारेमाणे पालेमाणे महताहतणगीतवादियततीतलतालतुडियघणमुइंगपडपडहवाइयरवेणं दिव्बाई दीप अनुक्रम सन्न [249] Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक मोगभोगाई अंजमाणे विहरति, इमं च केवलकप्प जंबुद्दीव दीव विपुलणं ओहिणा आभोएमाणे, पासति यऽत्थ समर्ण भगवं महा-15 इन्द्रस्तुतिः आवश्यकामा वीरं जाव गम्भताए वक्कन्त, पासित्ता हट्टतुडचित्ते आणदिते पंदिते पीतिमणे परमसोमणासते हरिसवसविसप्पमाणहियए चूर्णी धारायणीमसुरभिकुसुमचंचुमालहयऊसवितरोमकूवे बियसितवरकमलागणवयणे पयलियवरकडगतुडितकेऊरमउडकुंडलहारविराउपायात यंतरयितवच्छे पालवपलंबमाणघोलतभूसणधरे ससंभम तुरियं चवलं सुरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठति, अन् द्वेत्ता पादपीढाओ पच्चोनियुक्ती रुहति, पच्चोरुहिता वेरुलियवरिहर अजणणिउणोयवितमिसिमिसेंतमणिरयणमंडिताओ पाउयाओ मुयति मुयित्ता एगसाडितं ॥२३८॥ उचरासंगं करेति करेत्ता अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुह सस? पयाई अणुगच्छति अणुगच्छित्ता वाम जाणु अंचइ २ दाहिणं जाणुं धरणियलसि बिहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं घरणित सि णिवाडति णिवाडित्ता पच्चुण्णमति२त्ता कडगतुंडियभिताओ भुताओ साहरति साहरेना करतलपरिग्महितं सिरसावतं मत्थए अंजलि कटु एवं बयासी णमोऽत्यु णं अरिहंताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्वगराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसबरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीण लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लागपाईवाणं लोगपज्जाअगराणं अभयदयार्ण चक्खुद्रयाणं मग्गदयाणं सरणदयार्ण जीवदयाणं धम्मदयार्ण धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीण धम्मवरचाउरतचक्कवट्टाणं दीवो ताणं सरणं गती पइद्रा अप्पडिहयवरनाणदसणधराणंजिणाणं जावयाण तिमाण |तायाणं बुद्धार्ण बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं० सिवमतुलमरुयमणंतमक्खयमबाबाहमपुणरावलयं सिद्गितिनामधेनं ठाणं संपत्ताणं, माणमाऽत्यु ण समयस्स भगवतो महावीरस्स आदिगरस्स जाव संपाविउकामस्स, यंदामिण भगवंत तत्थययं इहगते, पासतु में का भगवं तत्थ गते इहगतंतिकटु वंदति णमंसति २ सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुद्दे सविसने । तर प तस्स सक्कस्स देविंदस्स देव-100 दीप अनुक्रम SEXREAK ॥२३८॥ [250] Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत चूर्णी सत्राका दीप अनुक्रम मो अयमेयारूचे जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था-उप्पने खलु समणे भगवं महावीरे जवुहीवे जाव माहणीए कुञ्छिसि, तं जो एतं इन्द्र आवश्यका भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जन्नं अरिहंता वा चक्कबट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा या अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुमछकुलेसु संकल्प उपोद्घाता न वा दरिहकुलेसु वा किवणकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा आयाइंसु वा आइति या आयाइस्संति वा, एवं खलु अरहंता वा चक्कबड्डी नियुक्ती वा बलदेवा वा वासुदेवा चा उग्गकुलेसु बा भोगकुलेसु वा राइनकुलेसु वा इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलेसु वा हरिवंसकुलेसु या अक्तरेसु वा तहप्पगारेसु बिमुद्धजातिउदितोदितकुलवंसप्पसूतेसु मुदितमुद्धाभिसित्तेसु महता रज्जसिरिं कारेमाणेसु पालेमा॥२३९॥ | सु गर्भवक्कमिसु वा ३ पयाईसु वा ३, अस्थि पुण एस भाव लोगच्छेरयभूते अणताहिं ओसप्पिणिउस्सप्पिणाहि वीतिकंताहिं समुप्पज्जति नामगोयस्स कम्मरस अक्खीणस्स अवेदितस्स अणिज्जिबस्स उदएणं जन्न अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलसु वा पंतकुलेसु षा तुच्छ दरिद्द० मिक्खाग० किविण. आयाईसु वा ३, णो चेव जोणीजम्मणणिक्खमणणं मिक्समिसु वा णिक्खमंति वा निकखमिस्संति वातं जीतमेतं तीतपच्चप्पण्णमणागताणं सक्काण देविंदाणं देवराहणं अरहते। | वहप्पगारेहितो जाव कुलहितो तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु जाव विसुद्धजातिकुलबसेसु वा साहरावेत्तए, तं सेयं खलु ममवि समणं भगवं महावीरं चरमतित्थगरं पुब्बतित्थगरानिचिट्ठ माहणकुंडग्गामाओ पागराओ जाच कुच्छाओ खत्तियकुंडग्गामे णगरे णाताणं खत्तियाण सिद्धत्थस्स खत्तिबस्स कासवगोचस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिद्स्स गोताए कुच्छिसि गम्भत्ताए साहरा-हैं। । वैत्तए, जेविय णं से तिसलाए गम्भे तंपियणं देवाणदाए जाच कुच्छिसि गम्भचाए साहरावचएत्तिकटु एवं संपेहिति, संहिता ॥२३९॥ ट्रा हरिणेगमेसि पादत्ताणीयाधिवति देवयं सदावेति सद्दावेत्ता एवं वयासी-उप्पचे खलु भो देवाणुप्पिता ! समणे भगवं एवं सर्व 497%% [251] Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत श्रेयस्ता सत्राक दीप अनुक्रम 18 भणति जाव साहरिता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि, तए णं से पादचाणीयाधिवति देवे एवं वुत्ने समाणे हटे जाव गान्तरे आवश्यक कटु एवं देवत्ति आणाए वयणं पडिसुणेतिर उत्तरपुरच्छिमं दिसिभागं अवक्कमतिर घेउव्वियसमुग्धारण समोहन्नतिर संखेज्जाई मोचने चूर्णी (जोयणाई) डंडं णिसरति, तंजहा-रयणाणं वइराणं वेरुलियाण लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगन्माण पुलयाणं सोगंधियाण जोति-13 उपोद्घात नियुक्ती हा रसाण अंजणाणं पुलयाणं रयणाणं जातरूवाणं सुभगाणं अंकाणं फलिहाणं, अधाबादरे पोग्गले परिसाडेति परिसाडेता अहासुहुभे| पोग्गले परियादियतिर दोच्चंपि वेउन्धियसमुग्घाएणं समोहनतिरउत्तरखेउन्यियं रूबं बिउब्बतिर ताए उकिट्ठाए तुरियाए चवलाए| ॥२४॥ जान जेणेव देवाणंदा तेणेव उवागच्छतिर आलोए समणस्स भगवतो महावीरस्स पणामं करेतिर देवाणदाए सपरिजणाए ओसोवणिं | दलयति२ असुमे पोग्गले अबहरति सुभे पोग्गले पक्खियतिर अणुजाणतु मे भगवंतिकटु दिवेणं पभावेणं करतलपुडेहिं अव्वाबाह ट्र अन्वाबाहेणं गेण्हतिर ताए उक्किट्ठाए जाव जेणेव खत्तियकुंडे गामे णाताणं जाव तिसला खत्तियाणी तेणेव उवागच्छति, तीए || सपरिजणाए ओसोवर्णि दलयतिर असुभे पोग्गले अवहरतिर सुभे पोग्गले पक्खियतिर भगवं अब्बाबाहं अव्वाबाहेण ताए कुञ्छिसि | गन्मत्ताए साहरति, जेवियर्ण से गब्भे तपि देवाणंदाए, जामेव दिसि पाउन्भूते तामेव पडिगते जाव सक्कस्स एयमाणत्तियं पच्चप्पिणति । तेणं कालेणं तेण समएणं भगवं तिण्णाणोचगते यावि होत्था-साहरिज्जिस्सासति जाणति साहरिज्जमाणे जाणति साहरि एमित्ति जाणइ, तेणं कालेण तेण समएणं भगवं जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे अस्सोयबहुले तेरसीय बासीतीराईदिएहिं 8 |वितिकतेहिं तेसीतिमस्स रातिदियम्स अंतरा वट्टमाणे हिताणुकंपकेणं देवेणं माहणकुंडग्गामाओ जाव अडरत्तकालसमयंसि हत्थु-1 त्तराहिं णक्खत्तेणं जाब साहरिते, जं रयाणि च ण भगवं देवाणदाए कुच्छीओ तिसलाए कुन्छि माहिते तं रयाणि च सा देवा [252] Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२७०-/४४४-४५८] भाष्यं [४६-७८ ] अध्ययनं [-] मूलं [- /गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 गंदा ते सुमिणे तिसलाए हडे पासिता पडिबुद्धा तिसलाबि य णं तंसि तारिसगरी सयणिज्जंसि सुतजागरा ओहीरमाणी २ इमे चोइस सुमिणे पासिताणं पडिबुद्धा, तंजा ॥२४१॥ -- ( ) | | जाव सिद्धत्थस्स साहति, सेऽविय णं हट्ट तुट्ठे जाव चंचुमालइयरोमकृवे ते सुमिणे ओगिण्डित्ता ईह उपोद्घातपविसित्ता अप्पणो साभावितेणं मतिपुष्येणं बुद्धिविभाणं तेर्सि अत्थोग्यहं करेचा तिसले इडाहिं जाव वग्गूहिं संलबमाणे संलनियुक्ती वमाणे एवं वयासी-ओराला णं तुमे देवाणुप्पिए । सुमिणा दिडा, जाव अम्हं कुलं केतु एवं दीवं पव्वयं कप्पवडेंसयं तिलकं किचिकरं गंदिकरं जसकरं आधारं पादव कुलविवणकरं सुकुमालपाणिपार्थ जाव दारयं पयाहिसि । सेsवियणं जाब जोव्वणगमणुष्पत्ते सूरे वीरे विक्रेते विच्छिन्नविपुलवलवाणे रज्जवती राया भविस्सति तं उराला णं जाब दोच्चपि अणुवहति, सावियणं जाब सम्म पडिच्छिऊणं धम्मियाहिं कहाहिं सुमिणजागरियं पडिजायरमाणी २ विहरति । तएवं सिद्धत्थे खत्तिए पच्चूसकालसमयंसि जाव सुमिणपाढए आपुच्छति, तेहिवि तहेव सिहं, णवरं चाउरंत चकबड्डी रज्जबई राया भविस्सति जिणे वा तेलोगणायए धम्मवरचकवडी, एवं सव्वं जाव सवं भवणं अणुष्पविट्ठा । हयाणि अभिग्गहति ताहे सा व्हाया कयचलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता पयता सुइन्भूता तं गमं णातिउण्हेहिं गातिसीएहिं णातितिचेहिं जातिएहिं णातिकसाएहिं णातिअंविलेहि णातिमधुरेहिं उदुभयमाणसुभेहिं भोयणच्छायणगं धमल्लेहिं जं तस्स गन्भस्स हितं मितं पत्थं गम्भपोसणं तं देते व काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउपसु सयणासणेसु पतिरिक्कसुहाए मणोणुकूलाए विहारभूमिए पसत्थदोहला संप्रुभदोहला जाव विणीयदोहला वचगतरोगसोग मोहभयपरिचासा श्री आवश्यक चूर्णो [253] गर्भान्तरे संक्रमः स्वप्रास्तत्फलं च ॥२४१॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं ], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक यी सुहंसुदेणं बासदति सयति चिट्ठति णिसीयति तुयङ्कति सुहसुहेणं तं गम्भं परिवहति । जे रयाणि च णं भगवं तिसलाए गम्मे वक्कते निचलता आवश्यक न चूर्णी अभिग्रहा रयाणि च णं वेसमणकुंडधारिणो तिरियजंभगा देवा सक्कवयणणं विविहाई महाणिहाणाई सिद्धत्वरायभवणसि भुज्जो २ उवसाहरंति, तं च णातकुलं हिरणेणं वढित्था, एवं सुवण्णणं धणेणं धन्त्रण रज्जेणं रद्वेण बलेणं वाहणेणं कोडागारेणं पुरेणं अंतपुरेणं उपोद्घातला जणवदेणं पुत्तेहिं पहिं विपुलरयणमणिमोत्तियंसखसिलपवालरत्तरयणमादिएणं संतसारसावतेएणं पीतिसकारेणं अतीच अतीब अभिववित्था, सिद्धत्थरायस्सवि य सामंतरायाणोवि यसमागता। तएणं भगवतो अम्मापिऊणं अयमेतारूचे अज्झस्थिते पत्थिते ॥२४॥12 संकप्प समुप्पज्जित्था अप्पमिति चणं अम्हं एस दारए कुछिसि वक्ते उपभिति चणे अम्हे हिरण्णणं वडामोजाव सक्कारण, तं जदाणं अम्ह एस दारते जाते भविस्सति तदा णं अम्हे एयरस पताणुरूवं गोणं णामधेज्जं करिस्सामो बद्धमाणो इति मणो| रहसहस्साई पकरेंति । तएणं भगवं सष्णिगम्भे माऊअणुकंपणट्ठाए णिच्चले णिकंपे णिफंदे णीरेए आलीणपलीणगुत्ते यावि होत्था, तएणं सा तिसला एवं बयासी-हढे मे गम्भे, एवं चुए गलिए, एस मे गम्भ पुधि एयह इयाणि णो एपहत्तिकरटु ओहयमणसंकप्पा चितासोगसागरमणुप्पविट्ठा करतलपल्लत्थमुही अट्टजमाणोवगया भूमिगयदिडीया झियाइ, तंपिय सिद्धत्थरायवरमवर्ण उवरयमुइंग: तंतीतलतालनाडइज्जं दीपविमणदुम्मणं चावि बिहरह, तए णं भगवं एतं वियाणिना एमदेसेणं एजति, तएपं सा हडतुड्ढा जाब रोमकूवा एवं बयासी-णो खलु मे हडे गम्भे जाव पो गलित, प्रविणो एजनि वाणिं एजतिचिकदछ हदतट्ठा पहाया जाव गम्म P२४२॥ टिपारवहति, तंपिय णं सिद्धस्थरायभवणं अणुवरयमुइंगतंतीतलतालणाडइज्जआइजणमणुस्से सपमध्यपकीलितं विहरति । तए णं मगर्व | मातुपितुअणुकपणडाए गम्भस्थो चेव अभिग्गहे गेण्हति'णाह समणे होक्खामि जाव एताणि एत्य जीवंतिति । दीप अनुक्रम [254] Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक दीप अनुक्रम I पाणि जम्मति सेण कालण नेणं समएणं भगवं चिनसुद्धतेरसीदिवसणं णवण्ई मासाणं अद्धहमाण य राईदियाणं श्री वीरस्य आवश्यक पक वितिकताणं उच्चट्ठाणगतेसु गहेसु पढमे चंदजोगे सोमासु दिसासु विदिमिरासु बिसुद्धासु जइएसु सब्वसउणेसु पयाहिणाणुकू-101 लिसि भूमिसपिसि मारुयसि पवायंसि णिप्फण्णसस्साए मेदिणीए पमुदितपक्कीलितेसु जणवएसु अद्धरनकालसमयसि हत्युत्तराहिं उपोधाता मणक्खनणं अरोगाऽरोगं पयाया, तं रमणिं च णं यहहिं देवेहि देवीहि य ओवयमाणेहिं उप्पयमाणेहि एगालोए देवुज्जोए देबुक्क लिया देवसंनिवाए देवकुहुकुहुते देवदुहृदुहुते कए यापि होत्था, यहवे य वेसमणकुंडधारणो तिरियजंभगा देवा सिद्धत्थरायभव-13 ॥२४३॥ णास हिरनवास वासिंसु सुवण्णवासं वासिम एवं रयणवहरवस्थाभरणपत्तपुष्फवीयमालगंधवनचुन्नवसुहारवासं वासिंसु, तं रयणि घाट जाणं बहवे भवणवइवाणमंतरजोतिसवमाणिया देवा भगवतो अंतियं आगम्म खत्तियकुंडग्गामे णगरे जोयणपरिमंडलं जं तत्थ तणं वा पत्तं वा कटु या सक्कर वा असुई पुर्ति दुम्मिगंध अचाक्खं तं सब्बं आहुणिय २ एगते एडेंति एडेचा गच्चोदगणातिमरित है पविरलपप्फुसिय दिव्वं सुराम स्यरेणुविणासगं गंधोदगवासं वासंति वासेचा णिहयरयं गहरयं पणद्वरयं उवसंतरयं पसं तरय करेंति करेत्ता मारग्गसो य कुंभग्गसो य पुष्फवासं च मालबासं च गंधवासं च चुनवासं च भुज्जो मुज्जो वासंति, तस्स य ६ सिद्धत्वभवणवरपोंडरीयस्स परिपेरंतेण आभरणरयणमादी जाय उवाकरित्था , एवं सच्वं जायकम्मादि ॥ आभिसगो य जहा उसभसामिस्स। ___तए णं से सिद्धत्थे राया भवणवतियाणमंतरजातिसवेमाणिएहिं देबेहिं तित्थगरजायकम्मविहाणे णिव्यत्तिए समाणे पडिबुज्झति 31 ॥२४३॥ दापडिबुज्झित्ता णगरगुत्तिए सद्दावेति, सदावेचा एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कुंडपुरे णगरे चारगसोहणं करेह भगवंत वीरस्य जन्म-कल्याणकस्य वर्णनं [255] Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं ], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | | सिद्धार्थ प्रत चूर्णी सुत्रांक करेचा माणुम्माणवणं करेह २ ना कुंडपुरं गगरं सम्भितरवाहिरियं आसितसंमज्जितोवलि सिंघाडगतियचउक्कचच्चरचउम्सुहम-18 आवश्यक हापहपहेसु सित्तसुयियसंमट्टरत्वंतरावणवीहियं मंचादिमंचकलियं णाणाविहरागभूसितज्झयपडागातिपडागमंडित लाउल्लोइयपहि यं गोसीससरसरत्तचंदणददरदिन्नपंचंगुलितलं उवचितचंदणकलसं चंदणघडसुकततोरणपडिदुवारदेसभागं आसचोसत्चविपुलबट्ट-17 जन्ममहः उपायानावग्धारितमल्लदामकलावं पंचवण्णसरससुरभिमुकपुप्फ गोवयारकलितं कालागरुपवरकुंदुरुकधूवमघमतगंधुदुताभिरामं सुगंधवर-3 नियुक्ती गंधगंधित गंधवडिभूतं जडणट्टगजल्लमल्लमुट्ठियवेलेबगकहगपवकलासकआईखकमंखतूणइल्लतुंबवीणियअणेगतालाचराणुचरितं | ॥२४॥ करेह जाव कारखेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य जूबसहस्सं चकसहस्तं च ऊसवेत्ता एतमाणत्तिय पचप्पिणह, तए णं ते पुरिसा जाव पञ्चप्पिणति । तए ण से सिद्धत्थे राया ण्डाए कयबलिकम्मे कतकोउयमंगलपायच्छित्ते सब्धिड्डीए सबजुत्तीए सब्बबलेण सव्यसमुदएण सव्वायरेणं सबविभृसाए सव्वसंभमेण सम्बपगतीहि सचणाडएहि सन्चतालायरेहिं सबोराहेणं महया वरतुरियजमगसमगपवातितेणं ४ संखप्पणवमेरिझल्लरिखरमुहिदुंदुभिणिग्घोसणातियरवेणं समुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदाम पमुदितपकीलित उस्मुकं उकरं अदेज अमेज्ज अभडप्पवेसं अडंडकुडंडं अधरिमं गणितावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरिय सपुरजणुज्जाणजणवयं दस दिवसे | ठितिवाडितं करेंति, सतिए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणे य जाव लभ पडिच्छे18माणे यावि विहरति । तते ण तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमदिवसे ठितिपडितं करेंति, ततियदिवसे चंदसरदंसणियं करेंति, ICण्डे दिवसे जागीरय करेंति, एगारसमे दिवसे अतिकते णिवत्ते असुइजातकम्मकरण संपत्ते बारसाहे विउल असणं ४ उवक्सडावेना ॥२४४॥ 1मित्तनाइनिययसगणसंबंधिपरिजणं नायए त खचिए आमंतेत्ता ण्हाया जाच पायच्छित्ता भोयणवेलाए भोयणमंडबसि मुहासणव ॐisa दीप अनुक्रम [256] Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत GE15 नियुक्ती दीप अनुक्रम श्री ला रगता तेहिं सद्धिं विउलं असणं ४ अस्सादेनाणा विस्सादेमामा परि जमाणा परिभोएमाणा एवं वावि विहरति, जिमितभुतुत्तरा-1 श्रीवीरस्य आवश्यक | गताचिय आयंता चोक्खा सुतिभूया विउलेण पुप्फवस्थगंधमल्लालंकारेणं सकारेंति संमाणति २ तेसिं पुरतो एवं वयासी- कुटुम्ब चूर्णी | पुवंपिय णं देवाणुप्पिया! अम्हें एतारूवे अज्झथिए जप्पमिति जाव नाम करेस्सामो बद्धमाण इति, तं होतु णं अज्ज अम्ह उपोद्घातामणोरहसंपत्ती कुमारो वद्धमाणे णामेणति णामधेज करति । ___समणे भगवं महावीरे कासवगोचणं, तस्स गं ततो णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तंजहा-अम्मापिउसतिए वद्धमाणे १ सहस२४ामुदित समण २ अयले भयभरवाणं खंता पडिमासतपारए अरतिरतिसहे दविए घितिविरियसंपन्ने परीसहोवसग्गसहोति देवेहिं से कर्त णाम समणे भगवं महावीरे ३ । भगवतो माया चेडगस्स भगिणी, भोगी 'चडगस्स धुया, णाता णाम जे उसमसामिस्स सयाणज्जगा ते णातसा, पित्तिज्जए सुपासे, जेडे भाता गंदिवद्वणे, भगिणी मुदंसणा, भारिया जसोया कोडिनागोत्तणं, धूया कासवीगांचेणं, तसे दो नामधज्जा, तं० अणाज्जगित्ति वा पियदसणावितिया, णतुई कोसीगोनेणं, तीसे दो नामधज्जा (जसवतीतिवा) सेसवतीति वा, एवं (य) नामाहिगारे दरिसितं। एवं भगवतो अम्मापियरो अणेगाई कोउयसयाई अणेगाई पचंकम णादीणि उस्सवसयाणि अणेगाई पकीलणसयाई पकरेंताणि विहरति । I इयाणि पट्टित्ति, ताण-अह वहति सो भय दियलोयचओ अणोवमसिरीओ। दासीदासपरिवडो परिकिन्नो पीढमहिं ।। (६९ भा.) ॥ पीढमद्दा णाम सरिव्वया पीतिबहुला, महारायिसुया पीढं मदिऊणं पच्चासचीए आसबा ॥२४५॥ " उपविसतित्ति । असितसिरजो मुनयणो बिबोहो धवलदंतपंतीओ । वरपउमगन्भगोरो फुल्लुप्पलगंधनीसासो [257] Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत आवश्यक वकता चुणों धर्यपरीक्षा ॥२४६।। 3३॥ २९६ ।। (मा. ७०) इयाणि सरणति-जातीसरो उ भगवं अपरिवद्धिएहिं तिहि उ णाणेहिं। कंतीय या बुद्धीय य अब्भहितो तेहि मणुएहिं ॥ ३ ॥ २९७ ॥ १७१ भा.) इयाणिं भेसणंति-सए ण एवं वनमाण भगवं ऊणअट्ठवासे जाते, से य अल्लीणे भद्दए विणीए सूरे वीरे विक्कते, तेणं| कालेणं तेण समएणं सक्के देविंदे जहा अवहारहारे जाच पुरत्याभिमुद्दे सभिसने भगवतो संतगुणकित्तणयं करेति-अहो भगवं! बाले अबालभावे बाले अबालपरक्कमे अबुड्डे चुहसील महाबीर ण सक्का देवेण वा दाणवेण वा जाव इंदेहिं वा भेसउ परक्क मेण वा पराजिणितुं छलेउं वा, तत्थ एगे देवे सक्कस्स एयमढे असद्दहते जेणेव भगवं तेणेव उवागते, भगवं च पमदवणे चेडरूसाहिं समं मुंकलिकडएण अभिरमति, तस्स तेसु रुक्षेसु जो पढम विलग्गति जो पढम ओलुभति सो चेडरूबाणि बाहेति, सो य देवो आगंतूण हेढतो रुक्खस्स सामिमेसणहूँ एगं महे उग्गविस चंडविसं घोरविसं महाविस अतिकायमहाकार्य मसिमूसाकालग यणं विसरोसपुन अंजणपुजणिगरपगासं रत्तन्छ जमलजुबलचंचलंतजीहं धरणितलवेणिदंडभूत उक्कडफुडकडिलचटुलकक्खड| विगडफडाडोवकरणदच्छे लोहागरधम्ममाणधमधमेतधोसं अणागलियचंडतिच्चरोसं समुह तुरिय चवलं धमधमतं, एवं जथा उवासगदसासु कामदेवे जाब दिव्वं दिट्टीबिससप्परूवं विउवित्ता उप्पराहुतो अच्छति, ताहे सामिणा अमूढेणं वामहत्थेण 8 सत्तले उच्छुढो, ताहे देवो चिंतेति-एत्थ ताव ण छालओ. अह पुणरवि सामी तंदुसरण अभिरमति, सो य देवो चेडरूत्रं & बिउच्चिऊण सामिणा समं अभिरमति, तत्थ सामिणा सो जितो, तस्स य उरि विलग्गो सामी. तएर्ण से देवे सामिभेसणहूँ एग महं तालपिसायरूवं विउविता पवाहिउँ पवतो, तंजहा-सीस से गोकिलिंजसंठाणसठियं वियडकुष्परष्णिम सालिमसेलगस- HOM दीप अनुक्रम ४६॥ [258] Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२७०-/४४४-४५८] भाष्यं [४६-७८ ] मूलं [- /गाथा ], अध्ययनं [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णे उपो षात नियुक्तौ ॥२४७॥ रिसा से केसा कविला तेण दिप्पमाणा महल्ले उदियकमल्ल सरिसोवमे णिडाले मुगुसपुच्छं व तस्स भुमुगाओ कविलजडिलाओ बिसतबीमच्छं दसणाओ सीसघडी व उन्भडा, तस्स दोषि णयणा विणिग्गया विगतदंसणिज्जा कन्ना जह सुप्पकप्परं चैव बिगतीभच्छदंसणिजा, उरम्भपुडसंठिता से पासा खुसिरा इव जमलभुसिंठाणसंठिता दोवि पासिकपुडा महल्लकुब्वरगसंठिता तस्स दो कबोला, घोडगपुंछंव कबिलजाडलाओ उडलोमाओ दाढियाओ उड्डा से घोडगस्स जह दोषि लंबमाणा पासुफालसरिसा से दंता पास जिन्भा हिंगुलुगधातुकंदरबिलंय तस्स व्यर्ण, हलकुंडगसंठिता तस्स होति हणुगा, गल्लकडिल्लं व तस्स खेडं फुद्धं कविलफरुसं महल्ले, मुगागारोवमा से खधा, कोडियसंठाणसंठिता दोषि तस्स वाहा, सुक्खदयसंठाणसंठिया से हत्था, पीसालोढगसरिसा य तस्स हत्थेसु अंगुलीओ, सप्पिणीपुडसंठिता से गहा, अडवालगसंठितोदरो तस्स लोमविलो, विगता व्हावगपस्सेव उच्चे उदरंमि तस्स लंपति दोषि थणगा, कोथलसरिसोबमो से मज्झे पोई, अपकोडगोन्द बट्टा पाणी लंदसरिसोबमा से णाभि ओडियलतबद्धपोट्टे भग्गकडी विगते य पंकपट्टी असरिससरिसा य तस्स दोषि फिडगा कि पुडगसंठिया से वसणा जंतसिवगसंठाणसंठित से नेते कोत्थलसरिसोवमा से ऊरू पिडगमूलसरिसाणि तस्स जाणूणि कुडिलकुटिलाणि विगययीभत्थदंसणाणि, जंघा से कक्खडीओ लोमेहिं उवचियाओ णीसापासाणसरिगा तस्स दोsवि पाया पीसालोडेण सरिसगा तस्स पाएस अंगुलीओ सप्पिणी पुडसंठिता से णक्खा, कोसी मुहसरिसतिक्खणक्खे जिसमे लंबोदरपलंबे विगते बीभच्छभग्गभूमए मसिमसामहिसकालए भरितमेहवने लंबोट्टे णिग्गयग्गदंते निहालियजमलजुगलजीहे आऊसितवयणगंडदेसे तहवीणविचिङफुग्गणासे विगते तहस्सुग्गभग्गनुमए खज्जोवगदित्तचक्खुरागे भिगुडी कुडिलंतलोयणे दित्तअट्टहासे उत्ता [259] वृद्धी देवकृता धैर्यपरीक्षा ॥२४७॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGE दीप अनुक्रम सणए विसालवच्छे दिवंगताहिं याहाहि विसालपोट्टे पलंचपोट्टे विसालकुच्छी पलंबकुच्छी तालीहजंघे णाणाविहपंचयहि लोमेहि Pउवचिते हिंगुलुयधातुगिरिकंदरा इव मुहेण अवतासिएण पतिभएण सरडकतवणमालए उदुरकतकन्नपूरए णउलकतकंचिपूरे मुंगुस-यादवकता धैर्यपरीक्षा उपोद्घाता | कतसुंभलए विच्छुतकतवेकत्थे सप्पकतजनोवइए अभिन्नमुहनयणकन्नचरणणक्खवग्धचित्तकत्तीणियंसणे सरसरुधिरमसावलित्तगत्ते। नियुक्तो अवदालियनयणसिंघगहितग्गहत्थे जीभतपट्टहसितपयंपियपयभियंमि फुटुंतवातगंठी कंपति य घरनिवहा पहसियपच्चलितपवाडित गत्ते पणच्चमाणे पप्फोडेते आभिवग्गंते अभिगज्जते बहुसो बहुसो य अट्टहास विणिम्मुयंते एवं जहा उवासगदसासु कामदेव॥२४८॥ कहाणगे, एवं सामिणा दळूण अर्भातणं तलप्पहारेणं आहते जहा तत्थेव णिबुड़े, ताहे भीते देबे चिंतेति-एत्थवि ण चतितो छलेउंति, पच्छा सामि वंदिता गट्ठी ।। इयाणि चसद्दयाचितं लेहायरियोवणयर्णति दारं अन्नया अधितअट्ठवासजाते भगवं हाए कयवालिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छिते पयरसेयवस्थनियत्थो सियमल्लालंकारविभूसिते पवरधवलहस्थिखंधवरगते उवार समुचाजालसितमल्लदामणं छत्तणं धरिज्जमाणेणं सेतवरचामराहिं ओधुवमाणाहिं २ मिचणातिणिययसयणसंबंधिपरियणेणं णातएहिं सत्तिएहि समणुगम्ममाणमग्गे अम्मापिऊहिं लेहायरियस्स उवणीते । इमस्स य| लेहायरियस्स महतिमहालयं आसणं रातयं, सक्कस्स य आसणचलणं, सिग्छ आगमणं, ताई सक्को तत्थ सामि निवेसात, सोऽपि | लेहायरियो तत्थेव अच्छति, ताहे सक्को करतलकतंजलिपुडो पुच्छति- उपोद्घातपदपदार्थक्रमगुरुलाघवसमासविस्तरसंक्षेपविषय २४८॥ विभागपर्यायवचनाक्षेपपरिहारलक्षणवा व्याख्यया व्याकरणार्थ) अकारादीण य पज्जाए भंगे गमे य पुच्छति, ताहे सामी बागरेति अणेगप्पगारं, इमोऽधि आयरियो सुणति, तस्स तत्थ कति पयत्था लग्गा, तप्पामिति च णं ऐटू व्याकरणं संवृत्तं, ते [260] Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२७०.../ ४५८...], भाष्यं [७८-८३] अध्ययनं [-] मूल [- /गाथा - ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र- [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 भी आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥२४९॥ विहिता, सक्केण से सिद्धं जहा भगवं सव्वं जाणति जातिसरो तिष्णाणोवगतोति । ताहे ताणि परितुट्टापि एवं निश्वसग्गं वति । इयाणिं विवाहेति दारं, जहा गाहाहिं तहा माणियच्चं । उम्मुक्कबालभावं० (भा १८ ) । । ( भा०१४) तिहिरिकखमि० ( भा० १९ । ॥ ( भा०११) इयाणि अवचेत तत्थ पंचविहे माणुस्से० ( भा८० ) | | (भा४०) इयाणि दाणत्ति एवं भगवं अट्ठावीसतिवरिसो जातो, एत्यंतरे अम्मापियरा कालगता, पच्छा सामी मंदिवद्वणसुपासपमुई सयणं आपृच्छति, समत्ता पतिभत्ति, ताहे ताणि विगुणसोगाणि मणंतिमा भट्टारगा ! सव्वजगदपिता परमबंधू एक्कसराए चेव अणाहाणि होमुत्ति, इमेहि कालगतेहि तुम्मेहिं विणिक्खमवन्ति खते खारं पक्खव, ता अच्छह कंचि कालं जाव अम्हे विसोगाणि जाताणि, सामी भणति 'केचिरं अच्छामि ?, ताहे भन्नति अहं परं विहिं | संवत्सरेहिं रायदेविसोगो णस्सेज्जति, ताहे पडिस्सुतं तो णवरं अच्छामि जति अप्पच्छंद्रेण भोयणादिकिरियं करोमि, ताहे समत्थिर्त, अतिसयरूपि ताव से कांच कालं पासामो, एवं सयं निक्खमणकालं णच्चा अवि साहिए दुवे वासे सीतोदगमभोच्चा णिक्खते, अप्फासुगं आहारं राहभतं 'अणाहारेतो बंभयारी असंजमवावाररहितो ठिओ, ण य फासुगेणचि पहातो, हत्थपादसोयणं तु फासुगेणं आयमणं च परं णिक्खमण महाभिसेगे अप्फासुगणं व्हाणितो, ण य बंधवेहिवि अतिणेदं कतवं, ताहे सेणियपज्जोयादयो कुमारा पडिगता, ण एस चक्कित्ति । एत्थंतरे मगवं संवत्सरावसाणे पिक्खमिस्सामीति मणं पधारेति । तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्कस्स देविंदस्स आसणे चलिते, आभोइयं जहा जीतमेतं सक्काणं अरिहंताणं भगवंताणं अत्र भगवंत वीरस्य दीक्षा निमित्त दत्त 'वर्षीदानस्य वर्णनं आरभ्यते [261] अपत्यद्वारं दानद्वारं च ॥२४९॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H " भाग - 3 "आवश्यक"- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 मूलं [-] / गाथा-1, निर्युक्तिः [२४०/४१८..... भाष्यं [७८-८३] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 अध्ययनं [-] श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ||२५०|| 444446 निक्खममाणाणं इमं एतारूचं अत्थसंपदाणं दलइसए, तंजहा तिणि कोडिसया अट्ठासीति चेव कोडीओ असीर्ति च सयसहस्सा, वए णं वेसमणं देवं भणति से य तहेब साहरिता जाव पच्चष्पिणति । तणं भगवं कल्लाकालि जाव मागहओ पादरासोचि बहू सणाहाण य अणाहाण य पंथियाण य पहियाण य कारोडयाण य कप्पडियाण य जाब एवं हिरण्णकोडीं अट्ठ य अणूणए सयसहस्से इमं एतारूवं अत्थसंपयाणं दलयति । तए णं से मंदिवद्धणे राया कुंडग्गामे नगरे तत्थ तस्थ तर्हि तर्हि देसे देसे बहवे महाणससालाओ करेति, तत्थ बहूहिं पुरिसेहि दिनभतिभतवेयणेहिं विपुलं असणं ४ उवक्खडावेति, जे जहा आगच्छंति सणा वा अणा वा जाव कप्पडिए वा पासत्ये 'वा गिहत्थे वा तस्स तहा आसत्यस्स वसित्थस्स सुहासणजाव वरगयस्स तं असणं ४ जाब परिभाएमाणे परिवेसेमाणे विहरति । तर कुंडग्मामे णगरे सिंघाडग जाव मज्झयारेसु बहुजणो जनमअस्स एवमाइक्खति एवं खलु देवाणु० कुंडग्गामे दिवगुणस्स रखो भवणंसि सव्वकामियं किमिन्यिं विपुलं असणं ४ जाब परिवेसिज्जति, वरपरिया घोसिज्जति, किमिच्छिगं दिज्जते बहुविधीयं । असुरसुरगरुल किन्नर नरिंदमहिताण निक्वमणे (भा. ८४) तए णं भगवं संवत्सरेण तिष्णि कोडिसया जान दलयातीति । इयाणि संबोहेति तए णं भगवं निक्खमिस्सामिति मणं पधारंति, तेणं काले तेणं समएणं लोगंतिया देवा बंभलोगे कप्पे रिडे विमाणपत्थडे सएहिं सएहि विमाणेहिं सएहिं सहिं पासा दवडेंस एहिं पत्तेयं पतेयं चउहिं सामाणियसाइस्सीहिं तिहिं परिसाहिं सत्तर्हि अणिएहिं सतहिं अणियाहिवतीहिं सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अमेहि य यहूहि मलोग कप्पवासीहिं लोयातिएहिं देवेहिं सद्धि संपरिवुडा महताहतणगीयवाइय जाव चिरंति, [262] दानवोधद्वार ||२५०१ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [८६-८७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत श्री सत्राक दीप अनुक्रम जहा-सारस्सयमाचा वण्ही वरुणा य गहतोया य । तुसिया अव्यायाहा, अग्गिच्चा घेव रिहा य (भा.८६) लोकान्तिआवश्यक . तए ण तेसिं पत्तेयं पत्तेय आसणाई चलति, ताहे ओहिं पउँजति आभाएंति सामी निक्षमस्सामीति मणं पधारति, तं जीत-10 जात- कागमनं चूर्णी दिमेत लायंतियाणं भगवंताणं निक्खममाणाणं संचोहणं करेत्तए, तं गच्छामो गं अम्हेवि सामि संचाहेमोत्तिकटु एवं संपहेंति संप-15 उपोद्घात हेत्ता उत्तरपुर जाव जेणव सामी तेणेव उवागच्छति २ अंतलिक्खपडिवना सखिखिणियाई पंचवमाई वत्थाई पवरपरिहिता ताहि | नियुक्ती इटाहिं कंताहि जाब हिययपल्हायणिज्जाहिं अट्ठसतियाहिं अपुणरुत्ताहिं वग्गूहि अणवरयं अणवरय अभिणंदमाणा य २ अभित्थु णमाणा य २ एवं ययासी-जय जय गंदा! जय जय भद्दा ! जय जय नंदं ते! मई ते, जय जय खत्तियवरवसमा, बुज्झाहि ॥२५॥ भगवं! लोयणाहा पवत्तेहि धम्मतित्थं हितमुहणिस्सेसकरं जीवाणं भबिस्सतित्तिकटु जयजयसई पउर्जति २ सामि चंदंति नमसंति २ नमंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूता तामेव पडिगता । इयाणिं णिक्षमणत्ति, एत्थ निज्जुत्तिगाहाओ हत्धुत्तरजोगेणं (४५१) सो देवपरिग्गहितो (४६०) तए ण सामी लोगतिपहिं संबोहिते समाणे जेणेष णंदिवद्धणसुपासप्पमुहे सयणवग्ग तेणेव उवागच्छति २ जाव एवं वयासी-इच्छामि गं तुम्हे अभणुण्णाए समाणे मुंडे भवित्ता आगाराआ अणगारियं पम्बहत्तए, ताहे साई अकामगाई चेय एवं ययासी-'अहामुह भट्टारगा!। तए णं से यादिवद्धणे राया कोडुचियपुरिसे सद्दावति सद्दावत्ता एवं ववासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! असहस्सं सोवण्णियाणं कलसाण जाव भोमेज्जाणं अनच महत्वं महरिहं जाव उवट्ठवह, जह महब्चलो, तेवि उबट्ठति । सेण कालणं तण समएण 11 ॥२५॥ सक्के देविंदे देवराया जाव संजमाणे विहरति । तए णं तस्स आसणे चलिए आभोएति एवं जहा उसमसामिअभिसेगे तहा | अत्र भगवंत वीरस्य दीक्षा-कल्याणक वर्णनं आरभ्यते [263] Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२७०.../४६०...], भाष्यं [ ८६-८७] अध्ययनं [-] मूलं [- /गाथा -], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र- [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्तौ ॥२५२॥ आगतो। णवरं सेणं दिव्वेणं जाणविमाणेणं सामि तिक्खुतो आयाहिणपयाहिणं करेति करेत्ता भगवतो उत्तरपुरच्छिमे दिसिभागे ईसिं चतुरंगुलमसंपत्तं घरराणितलं तं दिव्वजाणविमाणं एवं जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए अभिसंगे जाव अट्ठहिं अग्गमहिसीहिं दोहि य afree raाणिएण गंधव्वाणिएण यसद्धिं ताओ दिव्यातो जाणविमाणाओ पुरत्थिमेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चीरुभति, ar णं तस्स चउरासीति सामाणियसहस्सीओ ताओ जाणविमाणाओ उत्तरिलेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पञ्चोरुमति, तरणं तस्स सक्कस अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ जाब दाहिणिल्लेणं तिसोमाणपडिरुवएणं पच्चोरुभंति, तए णं से सबके देविंदे देवराया चउरासीतीए सामाणियसाहस्सीहिं जाब सद्धिं संपरिबुडे सब्बिड्डीए जाब निग्घोसण तियरवेणं जेणेव भगवं तेणेव उवा गच्छति २ सामि तिक्खुतो आयाहिणपयाहिणं करेति करेत्ता वंदति णमंसति २ णमंसित्ता जाव पज्जुवासति । एवं सव्वे इंदा आयच्या जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाव सूरे आगते. पज्जुवासति । तेणं कालेणं तेणं समएणं बहवे असुरकुमारा देवा सामिस्स अतियं पाउम्भचित्था | कालमहाणलसरिसणील गुलियागवलप्पगासा विगसितपत्ततवणिज्जरत्ततलवालुजीहा अंजणघणमसिणरुयगरमणिज्जद्धिकेसा बामेयकुंडलधरा अहचंदणाणुलित्तगत्ता ईसीसिलिधपुप्फप्पगासाई संकिलिडाई हुमाई बत्थाई पवर परिहिता वयं च पढमं समझकर्कता वितियं च असंपत्ता भद्दे जोवणे व माणा तलभंगयतुडियपवरभूसण निम्मलमणिरयणमंडितभुता दसमुदामंडितग्गहत्था चूलामणीविविधचित्तविधगता सुरूवा महिद्धिया महाजुत्तीया महायसा महम्बला महाणुभागा महासोक्खा हारविराइतचच्छा कडगतुडियर्थभितया अंगयकुंडलमट्टगंडतल कनपीढचारी विचित्तवत्थाभरणा विचित्तमाला मेलाओ कल्लाजयपवरवत्थपरिहिता कल्लाणयपवरमल्लाणुलेवणधरा भासरवोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेण वत्रेण दिव्वेण गंधण दिव्वेणं फासेणं [264] इन्द्रागमनं ॥२५२॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H निर्युक्ति: [ २७०.../४६०...], भाष्यं [८६-८७] अध्ययनं [-] मूलं [- /गाथा -], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र- [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूण उपत नियुक्तौ भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 ॥२५३॥ दिच्वेणं संघातेणं दिव्येणं संठाणेणं दिव्वाए इद्वीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्यंण तएण दिव्याए लेसाए दस दिसातो उज्जोएमाणा २ पभासेमाणा २ आगम्म २ समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसंति २ णमंसित्ता सुस्वरमाणा णर्मसमाणा अभिमुहा विणएगं पज्जुवासेंति । एवं जागा सुवण्णा व विज्जू अग्गी व दीव उदही दिसाकुमाराय पवण थणिया य मवणवासी णागफडागरुल बहरपुष्णकलसणितुप्फेससीहहयव रंगयंकम गरंकमउडवरवद्ध माणनिज्जुतचित्तविधगया सुरूवा महिद्धिया जाब पज्जुवासंति । तेणं कालेणं तेणं समएणं बहवे वाणमंतरा सामिस्स अंति पाउन्भवित्था विसाय भूया य जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिसा भुयगपतिणो य महाकाया गंधण्यगणा य णिउणगंधव्यगीतरयिणी, अणवत्रिय पणवन्त्रिय इसिवाइय भूतिवातिय कंद महाकंदिया य कहंड पनका देवा चंचलचलचवलचिनकीलणदवप्पिया गभिरहसि - तपियगीतणच्चणरती वणमाला मेलमउडकुंडलसच्छंद विगुब्विताभरणचारुभूसणधरा सब्बोउयसुरभिकुसुमसुरयितपलंचसो भंत कंतविगसितचितवणमालरइतवच्छा कामगमा कामरूपधारी णाणाविश्वम्भरागवरवत्थचित्तचित्तयणियंसणा विविदेसिणवत्थगहितवेसा पमुदितकंदष्पकलहकेलिकोलाहलप्पिया य हा सबोलबहुला अणेगमणिरयण विविहणिज्जुत्तचित्चचिंधगया सुरूवा महिड्डिया जाब पज्जुवासंति । तेणें कालेणं २ बहवे जोतिसिया देवा सामिस्स अंतियं पाउन्भवित्था बहस्सती चंदसूरसुकसणिच्चरा राहुघूमकेउबुहा अंगारया य तत्ततवणिज्जकणयवना जे य गहा जोइसंमि चारं चरंति केतू य गतीरतिया अट्ठावीसतिविहा य णक्खतदेवतगणा णाणासंठाणसंठिताओ य पंचवनाओ तारगाओ ठितिलेसाचारिणो अविस्साममंडलगती पत्तेयं नामयंकपागडितचिंधउडा महिडिया जाय पज्जुवासंति । तेणं कालेणं तेणं समरणं बहवे वैमाणिया देवा सामिस्स अंतियं पान्भवित्था, सोहम्मीसाणा [265] इन्द्रागमनं ॥२५३॥ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [८६-८७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्राक सर्णकुमारमाहिंदबंभलंतयमुक्कसहस्साराणतपाणतआरणच्नुतवती पट्ठा सामाणियतावचीससहिता सलोगपालग्गमहिसिप रिसा-18 श्रीवीरस्य आवश्यकणियातरक्खेहि संपरिबुडा देवसहस्साणुयातमग्गेहि सुरवरगणीसरेहिं पयतेहिं समणुगम्मता सस्सिरीया सव्वादरभृतिसमूहणायगा दीक्षामहः चूणा सोम्मचारुरूवा विमलविधुव्बतचामरा देवसंघजयसहकतालोया मिगमहिसवराहछगलददुरहयगयवतिभुषगखगउसभंकविडिमपा-1 उपायात गडीतचिंधमउडा पालयविमाणपुष्फसोमणससिरिखच्छणंदियावत्तकामपीतिमणीयमलबरसन्वतोभद्दणामधेज्जेहिं विमाणेहिं तरुणदिनियुक्ती दिवाकरकरतिरेगप्पभेहि मणिकणयरयणपटियाजालुज्जलहेमजालपरतपरिगतेहिं समंतवरमुत्चदामलपंतभूसणेहि पयलियघंटावलिमधु॥२५॥ रसहवंसततीतलतालगीतवाइतरवेण वरतुरितमीसएणं पूरेता अंबरं समंता तुरितं संपत्थिता देवेंदा हडतुट्ठमणसा सेसाविय कप्पतर विमाणा देवा सुरवरा सविमाणविचित्तचिंधनामंकविगडपागडमउडाडोबसुहृदंसणिज्जा तेऽवि समण्णेति सुरवरिंदे। लोगतविमाणवासिणो चव देवसंघा पत्तेयविरयितमणिरयणुक्कडभिसंतणिम्मलनिययंकितावचित्तपागडितचिंधमउडा दाएंता अप्यणो समुदयं पच्छतावि य परस्स रिद्धीओ उत्तमाओ, एवं कप्पालया सुरवरा जिणिंदचंदनिमित्तभत्तीय चोदितमती हरिसितमणसो य जीतकप्पमणुयत्तमाणा देवा जिणदंसणुस्सुया गमणजणितहासा बिउलबलसमूहपिडिता संभमेण गगणतलविमलविउलगमणचलचवलचलियमणपवणजइणवेगा णाणाविहजाणवाहणगता ऊसितविमलधबलातपत्ता विउवितजा णवाहणविमाणदेवरयणप्पभावेण य सच्चिछाडीय हुलियं पयाता पसिढिलवरमउडतिरीडधारी कुंडलउज्जोइताणणा मउडदित्तमिरया रत्नाभा पउमपम्हा गोरा सेता सुहवनगंघरसकासा उत्चमबउबिणा पवरवत्थगंधमधारी महिड्डीया जाव पज्जुवासति । २५४|| तेणं कालेणं तेणं समएवं बहवे अच्छरसंघा सामिस्स अंतियं पाउन्भवित्था, ताओ णं अच्छराओ धंतधायकणगरुयगविमल दीप अनुक्रम [266] Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [८६-८७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत श्रीवीरस्य दीक्षामहः श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती सत्राक ॥२५५॥ णिरुबहतपिंजराओ समइक्कता य बालभाष मजिसमजरढवयभावविरहिताओ अविबरसामचारुरुवा णिरुबहतसरसजोवणकक्कसतक- गवयभावमुबगताओ णिच्चमवद्वितस्समावसबंगसुंदरंगाओ इच्छितणेवत्थरइतरमणिज्जगहितबेसाओ कंतहारद्धहारवत्तरयणकडल- बासुनगहेमजालमणिजालकणयजालयसुत्नयउब्बितियकडयखड्डयएकाबलिकंठउत्तपगरयउरस्थमेवेज्जसोणिमुत्तयचूलामणिकणयतिफुल्लयसिद्धत्थिकनवालिससिसूरउसभचक्कयतालभंगयतुडियहत्थमालयहरिस्सयकेऊरवलयपालंबअंगुलेज्जयवलक्खदीणारमालिता चंदसूरमालिया कंचीमेहलकलावपयतरयपरिहेरयपादजालघंटियखिखिणिरयणोरुजालतुहियबरणउरचलणमालिता कगयणियलजालयमगरमुहविरायमाणणेपुरपचलियसद्दालभूसणधारीओ दसयनरागरइतरत्तमणहरे महग्घे णासाणीसासवातबोज्ले चक्सुहरे बनफरिसजुत्ते आगासफलियसमप्य अंसुए णियत्थाओ, आदरेणं तुसारगोखीरहारदगरयपंडुरदुगुलसुउमालसुकवरमणिज्जउत्तरिज्जाणि पाउताओ वरचंदणचञ्चिता वराभरणभूसिताओ सबोउयसुरभिकुसुमसुरयितविचित्तवरमल्लधारिणीओ सुगंधचुनंगरागबरवासपुष्फपूरयविराइता उत्तमवरधूमधूविता अधियसस्सिरीया दिव्बकुमुममल्लदामगम्भंजीलपुडाओ उच्चत्तेण य सुराण थोवूणमूसिताओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ उक्का इव उज्जोवेमाणीओ विज्जुषण मिरीथिसूरदिपंततेयअधिकतरसंनिकासाओ सिंगारागारचारुबेसाओ संगतगतहसितभणितचिट्टितविलाससललितसंलावणि उणजुत्तोययारकुसलाओ मुंदरथणजहणबयणकरचरणणयणलाबनवजोम्बणविलासकलिताओ सुरबहूओ सिरीसणवणीतमउयसुउमालतुल्लफासा ववगतकलिकलुसधोतगिद्धतरयमला सोम्माओ कंताओ पियदसणाओ सुसीलाओ जिणभत्तिदसणाणुरागणं हरिसिताओ उवतितावि जिपसगासं दिव्येणं विशेणं जाव ठितियाओ चेव मुस्सूसमाणीओ णमंसमाणीओ अभिमुहाभा विणएणं पंजलिफडाओ पज्जुवासंति । दीप अनुक्रम 2% ॥२५५॥ [267] Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२७०.../४६०...], भाष्यं [ ८८- ९१] अध्ययनं [-] मूल [- /गाथा - ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णां निर्युक्तौ ॥ ॥२५६॥ ॐ एवं एत्थ ( भा. ८८) [मणपरिणामो ( मा. ८४) भवणवइ ( भा. ८०) जाव य कुंडग्गामो (भा. ८१ ) तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया आभियोगिये देवे सहावेति, सहावेत्ता एवं बयासी खिप्पामेव मो देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवतो महावीरस्स महत्थं महरिहं विउलं क्खिमणाभिसेयं उवदुवेह एवं जहा उसभसामिस्स जम्माभियेगे जाव उबट्टवेति, एवं पाणतेवि, एवं परिवाडीए जान सक्कस्स आभिओगा उबवैति । तए णं ते दिव्या कलसा य (ते ) चैव कलसे अणुपविट्ठा । तणं से पंदिवद्धणे राया सामिं सीहासांसि पुरत्थाभिमुहं निवसेति निवेसेचा अट्टसहस्सेणं सोबत्रियाणं कलसाणं जाब भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं जाव रवेण महता २ णिक्खमणाभिसंगणं अभिसिंचीत । तए णं सामिस्स महता २णिक्खमणाभिगंसि वट्टमाणंसि सध्धेवि इंदा छतचामरकलस धूवकच्छुतपुप्फगंध जाव हत्थगता हट्टतुट्टचित्तमाणीदया जान हियया पंजलियडा सामिस्स पुरतो चिट्ठेति जाय वज्जवलपाणी, अनेवियणं देवा य देवाओ य वंदणकलसहत्थगता एवं भिंगारआदंसथालपातीसुपतिडावातकरगचित्तरयण करंडा पुष्फचेंगरी जाव लोमहत्थचंगेरी पुप्फपडल जाव सीहासणछत्तचामर तेल्लसमुग्गय जाव ध्रुवकच्छुगति जाव अप्पेगतिया देवा कुंडग्गामं पगरं आसितसंमज्जितोवलित्तं करेंति जाब आधावंति, जहा विजयस्स । तए गं से गंदिवडणे राया दोच्चपि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयावेति, सामिं सीतापीतेहि कलसेहिं जाब अलंकारितसमाए. सीहासणे पुरत्याभिमु सन्निसन्ने, तरणं सामिस्स इंदा महरिहं सुबहु अलंकारियभंड उवर्णेति तप्पढनताए पम्हलमुकुमालाए सुरभीए ४ गंधकासाईए गायाई लहेति, लहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेण गाताई अणुलिपति, अणुलिपेत्ता णासाणीसासवातबोज्यं चक्बुहरं वनफरिसजुनं हतलालांपलवातिरेयं चवलं कणगखतितंतकम्मं आगासफालितसमप्यभं अहतं दिव्वं देवद्सजुयलं नियंसेति नियंत्ता ॥२५६॥ [268] श्रीवीरस्य दीक्षामहः Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [८८-९१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत बावश्यक चूणों सत्राक कडिसुत्तर्ग पिणिद्धति, तए ण तं पवरजच्चमुत्तियं सुसज्जितं सुरभिगंधमल्लफरिसजुतं अवगतमलसकलाणित्तलुज्जलजहिच्छितविभागर- श्रीवीरस्य यितसमणिजणजुत्तिजोइयखयवड्डिविसेसजणिततणुयत्तमज्झपीवरसुजातरूवं णिम्मलतवणिज्जमुत्तकायितचउसडिसिलिगुलठ्ठिकट्टितमु- दीक्षामहः उपोद्घात लिट्ठपमाणलट्ठलक्खणगुणोववेतं पविसरपरिरत्तपंचवनियविराइतं वातविहुनपरिज्जमाणं रमणिज्जपट्टियागोच्छपल्लवइतं धवलमहानियुक्ती पत्तईदकायोग (ब) उरणभंगणड्डयदं णिसाकरकरातिरेगसीतलतरं उसिणपसरसतुरितावसारं ऊरलथीहत्थावच्छूरं कुंदकुसुमाणरुह पहतणिकरगोरं हारं आमरणपडीहारं पिणिद्धिति हट्टतुट्ठमणसा, तयणंतरं च णं मणियणोवगूढसंखसोभंतमज्झागरमुहणिग्गतसरं ॥२५॥ तवणिज्जमयं विचित्तमणिरयणभत्तिचित्तं पालवं अप्पणो पमाणेण सुष्पमाणं पिणिद्धति वयणकमलणाले, नदणं च णं तबणिज्ज मयाई चंचलचलंतचलियसोदामणिप्पभाई विमलमिसिभिसंतमणिरयणपरिमंडिताई गंडपरिपुंछकाई कवोलनायल्लगाई मुहलच्छीदीवगाई पाभरणोदारचारुथिक्किल्लचिल्लकाई कम्नेसु कुंडलाई पिषिद्धति हट्टतुट्ठमणसा, तहेव तं धनगं च सुहफारससुसंपयुत्तं विमलं सिरिविभूसेक्कमउडपडिसवत्ति अमंगलासंतिरोगदोसावहारक अवारिस पवरलक्खणगुणोववेयं मंगल्ल उत्तम पवित्नं अवणितमउडसिरिकूडभूतं गुणागरं सिरिवरं महातेयकंतिजुत्तं रूवणाभातारकं पुढविरयणसवसारं देविंदरिदमुद्धकताणिलयणं अग्धं चूला-11 मणि पिणद्धिति हतुट्ठमणसा, तयणतरं च णं अतिरुम्गयसिसिरसमयरवितरुणमंडलणिभं जंबूणयविमलविपुलविदलितं सोलसहै पररयणकलितविणियुत्तदेसभागं मंगलभत्तिसहस्ससोभंतसस्सिरीयं मरगयमणयमगररयणवालरुयगकक्केतणकणगचित्तणिज्जुत्तचारु-18 |णिम्मलपिच्चिरमुहसतविणिग्गओग्गिनपवरसुत्तियपतरपलबंतदामकलितं तवणिज्जविचित्तमुत्तियाजालरयणपचलितघंटियसद्दालम-19 ४ ॥२५७|| धुरमुहलं अतिसयमतिविभवाणितुणविणइतमणोरहुप्पादकं अहियपच्छणिज्जरूवं मणिरयणजलंतजालमालाकुलाभिरामं आभरणबडेंसयं A4% 9452 दीप अनुक्रम [269] Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [८८-९१] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत श्री पभासमुदओपहारं रयणुक्कडं मउड पिणद्धति हहतुट्ठमणसा, एवं हारं पिणिद्धति २ अद्धहारं पिणहूति २ एकावलि २ मुत्तावलि २ श्रीवीरस्य आवश्यक कणगावलिं २ रयणावलि २ मुरवि कंठे २ मुरवि पलंब २ पादावलंबाई पलंबाई २ कडगाई २ तुरियाई २ केऊराई २ अंगयाई २ दादाक्षामहः चूर्णी दिसमुहियाणतकं २ कडिसुत्तर्गर कुंडलाई २ चूलामणि २ चित्तरयणसंकडं मउडर दिव्वं सुमणदामं रदद्दरयमलयसुगंधिगंधिए य गंधे उपोद्घात टा नियुक्ती पिणिद्धति २त्ता जाव णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहणिउणाचइवितमिसिमिसतविरइतसुसिलिट्ठविसिट्ठलद्वतलोक्कबीरबलए। आविधति २ तए णं ते सानि गथिमवेढिमपूरिमसंघातिमेणं चउबिहेणं मल्लेणं कप्परुक्षयंपिव अलंकितविभूसित करेंति, ताहे ॥२५८॥ मुगंधगंधाई पक्खिवंतिक एवं वासाई जाव चुनाई पक्षिवंतिर ताहे पत्तेचे पत्तेयं करतलपरिग्गहितं सिरसावत् मत्थए अंजलिं कडु ताहि इहाहि कंताहि पियाहि मणुष्णाहिं मणामाहि ओरालाहि कल्लाणाहिं सिवाहिं धनाहि मंगलाहि मितमधुरसस्सिरीयाहिं बग्गूर्हि अभिणदमाणा य अभिणमाणा य एवं वयासी- जय जय गंदा! जय जय महा! जय जय गंदा! भई ते, जय जय खत्तियवरवसभा ! अजिय जिणाहि इंदियसेन जियं पालयाहि समणधम्म जियमज्झे बसाहि वहूई दिवसाई बहूई पक्खाई बहूई मासाई बहूई उई बहूई अयणाई वहुई संबच्छराई, अभीता परीसहोवसम्गाणं खंतिखमा भयभेरवाणं धम्मे अधिग्धं भवउत्तिकटु जयजयसई पउंचंति, पउंजेत्ता पट्टविहिं उपदंसेंति जहा मूरियाभो। तए णं से णदिवद्धणे राया कोईवियपुरिसे सदावेति सहावेत्ता एवं बयासीजोखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखभसयसनिविट्ठ एवं सीयावन्नओं जहा णातेसु मेहकुमारस्स जाव तुरिय चवलं बेगिक पन्नासधणुआयाम पणुवीसवणूविच्छिम छत्तीसघणुमुग्विद्ध चंदप्पमं सीतं उपद्ववेद, तए पं ते जाब उपहति । तर सेन्दा अच्चुए आभियोगिए देवे सहावेति सद्दावेत्ता एवं बयासी-खिप्पामेव भो जाव चंदप्पहं सीयं उपद्ववेद, गवरं जाणविमाणवन्नओ, दीप अनुक्रम 8 + 4 + [270] Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [९२-९४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम श्री तेऽधि जाव उवट्ठति । तए गं सा सीता तं चव सीतं अणुपविट्ठा । आवश्यक पत्थ-चवणभा य०॥भा. ९२॥ पंचासति ॥भा. ९३ ॥ सीयाय मायारे ।। भा. १४॥तरण सामी वेसालीएल श्रीवीरस्य चूर्णी हा ४ा केसालंकारेणं मल्ह्यालंकारणं आमरणालंकारंणं वत्थालंकारेणं चउबिहेणं अलंकारेणं अलंकारिए पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ४ दीक्षामहः उपोद्घात नियुक्ती अम्भुट्टेति अन्भुदेवा जेणेव चंदप्पभा सीता तणच उवागच्छति उबागच्छेत्ता चंदप्पभं सीयं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे २ चंदप्पभं | | सीयं दुरुदति २ सीहासणवरगते पुरत्याभिमुहे सभिसन्ने । ॥२५९॥ तए भगवतो कुलमहत्तरिता बहाया जाच सरीरा हंसलक्खणं पडसायं गहाय जाब सीर्य दूहति २त्ता सामिस्स दाहिणे पासे भदासणवरसि सभिसमा, एवं सामिस्स अम्मघाती उवगरणं गहाय बामे पासे संनिसना, तए ण सामिस्स पिट्टतो एगा| वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगतगत जाब रूबजोवणविलासकलिता हिमरयजाव धवलं आयवत् गहाय सलील धरेमाणी २ चिट्ठति, तए णं सामिस्स उमओ पासिं दुवे वरतरुणीणो जाव चवलाओ चामराओ गहाय जाव चिट्ठति, तए णं साामस्स उत्तर-181 पुरच्छिमेणं एगा वरतरुणी जाव सेयं रपयामयं विमलसलिलपुन मत्तगयमुहाकीतिसामाणं भिंगारं गहाय जाव चिट्ठति । एवंदा दाहिणपुरस्थिमेणं एगा वरतरुणी चित्तं कणगदंड जाव तालवेंट गहाय चिट्ठति, केति पुण भणति- सर्व देवा य देवीओ य ।। तए ण सामिस्स पिट्टतो सक्कादिया देविंदा हिमस्ययदेंदुपगासाई वेरुलियविमलदंडाई जंबूणयकत्रियागाई बहरसंधीणि 3॥२५९। मुलाजालपरिगताणि अट्ठसहस्सवरचणसलागाणि ददरमलयसुगंधि सम्बोउपसुरभिसीयलन्छायाई मंगलभतिचिनाई चंदागारो [271] Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [९२-९४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णी दीप अनुक्रम माई जाव सकोरेंटमल्लदामाई छत्ताई सलील धरेमाणा धरेमाणा चिट्ठति । तए ण सामिस्स उभतो पासिं चंदप्पभवेरुलियणाणा- | ट्रमणिकणगरयणखचियचित्तदंडाओ मुहमरययदीहवालाओ संखकुंददगरयअमयमहियफेणपुजसंनिकासाओ सव्वरयणामतीओ उपोद्घात | अच्छाओ चामराओ जाव वीएमाणा २ चिट्ठति, एवं तएणं से णदिवद्धणे राया अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सदावेति सहावेत्ता एवं नियुक्ती वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! हाया जाव सबालंकारविभूसिया सीयं परिवहह, तए ण ते जाव सिवियं परिवहति, तए णं से | सक्के देविंदे देवराया चंदप्पभाए सीयाए दाहिणिल्लं उवरिल्लं बाई गेहति, ईसाणे देविदे देवराया उत्तरिल्लं उवरिल्लं बाई ॥२६०॥ गण्हीत, चमरे असुरिंदे दाहिणिलं हेद्विल बाहं गेहति, बली [धायरणिदे ] बहरोयाणिंदे उत्तरिलं हेडिल्लं बाहं गेहति, अवसेसा BI भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिता देवा जहारिहं चंदप्पभं सीयं गेहंति । एवं एस्थ । आलतिय०॥ भा. ९५ ॥ छटुं०| भा.९६॥ सौहासणेगा भा. ९७॥ पुब्धि भा.॥९८॥ चलचबलकुंडलधरा, # सच्छंदविउविताभरणधारी । असुरसुरवंदियाणं, वहति सीयं जिणिदाणं भा ॥१९॥ कुसुमाणि॥भा. १००॥ 1 वणसंहो या भा.१०१।। सिंद्धत्ववणं०॥१०२ ।। अयसिं०॥ भा. १०३ ।। वरपडहा। भा. १०४॥ तए णं सामिस्स सीयं दूरुढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठमंगलया पुरतो अहाणुपुवीए संपडिता, संजहा- सोस्थिय । सिरिवच्छ णदियायत्त बद्धमाणय भद्दासण कलस मच्छ दप्प सवरयणामया पासादीया जाव अभिरूवा पडिरूवा, तयणंतरं च णंला ॥२६॥ पुनकलसा भिंगारदिया य छत्तपडागा सचामरा देसणरचितआलोकदरिसणिज्जा वातुद्धयविजयवेजयंती य समृसिया गगणतल- TAI 5555 [272] Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री मणुलिहती पुरतो अहाणुपुथ्वीए संपविता । तयणंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभितं चंदमंडलणिभं श्रीवीरस्य समृसितविमलमातवत्वं पवरं सीहासणं च मणिरयणपादपद सपाउयायोगसमाजुच बहुकिंकरामरपरिक्खिचं सच्छचभिंगारं जावादीक्षामहः उपोद्घात 18 संपद्वितं, तयणतरं च णं तरमल्लिहायणाणं हरिमेलामउलिमल्लियच्छाणं चंचुच्चियललितपुलियचलचवलचंचलगतीणं लंघणवग्गणानियुक्तोदा धावणाधारणतिवदिजइणसिक्खितगतीणं ललंतलासगललामवरभूसणाणं मुहमंडगओचूलगथासगअमिलाणचामरगंडेगपरिमंडितक डीणं किंकरवरतरुणपरिग्गहिताणं अट्ठसयं वस्तुरगाणं पुरओ अहाणुपुब्वीय संपत्थिय, तयणंतरं च णं ईसीदंताणं ईसीमत्ताण ॥२५ ईसीतुंगाणं ईसीउच्छंगविसालबिउलदंताणं ईसीकंचणकोसीपिणिदंताणं कंचणमणिरयणभूसियाणं वरपुरिसारोहसुसंपउच्चाणं अट्ठ द सयं कुंजरवराणं पुरतो अहाणुपुथ्वीए संपत्थियं, तयणंतरं च णं सच्छत्ताणं समयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सणंदिप्रघोसाणं हेमवंतचित्ततेणिसकणगणिजुत्तदारुयाणं कालायससुक्रतणेमीयंतकम्माण सुसविद्धचिक्कमंडलधुराणं आइण्णवरतुरगसंपत ताणं कुसलणरच्छेदसारहिसुसंपग्गहिताणं हेमजालगवक्खजालखिखिणिघंटाजालपरिक्खित्ताणं बत्तीसतोणपरिमंडिताणं ससंकडवडें-18 सियाणं सचावसरपहरणावरणभरितजुद्धसज्जाणं अट्ठसय रहाणं पुरतो जाव संपत्थिर्य, तयणतरं च ण सम्बद्धबद्धवम्भियकवयाणं | उप्पीलियसरासणपट्टियाणं पिणिद्धगेवेज्जविमलवरबद्धचिंचपदाणं गहियाउहपहरणाणं अट्ठसयं वरपुरिसाणं पुरतो जाव संपत्थियं, ४ तययंतरं च णं हयाणीयं गच्छति, तयणतरं च णं गयाणीयं गच्छति, तपर्णतरं च णं पायवाणियाणीयं गच्छद, तयणतरं च णं दिवइरामयबलविसंठितसिलिद्दपरिवहमसपविद्वियविसिद्धे अणेगयरपंचवनकुडभीसहस्सपरिमंडिताभिरामे वाउद्धतविजयवेजयंति दीप अनुक्रम २६॥ [273] Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 आवश्यक प्रत चूणों उपादधाता सत्रांक नियुक्ती ॥२६२॥ पापडागच्छत्सादिच्छचकालते उगे गगणतलममिकख(लघ)माणसिहरे जोयणसहस्ससिते महतिमहालए महिंदाए पुरतो अहाणुपु- 1 श्रीवरिस्य वीए संपत्थिर । तयणंतरं च णं बहवे दीधामहः असिलगु० (औप०) कुंत० (और) जाच संपत्थिया, तयणंतरं च णं बहवे इंडिणो बहवे मुंडिणो बहवे दंविणो जाव बहवे | जडिणो हासकारका दबकारका खेडकारका चाटुकारका कंदप्पिया कुक्कुतिया गायंतया वार्यतया नच्चतया हसंतया रमतया | हसावेंतया रमावेतया जाव आलोयं च कोमाणा जयजयसई च पउंजेमाणा जाव संपस्थिया, तयणतरं च णं बहवे उग्गा भोगा राइमा खत्तिया जाव सत्थवाहप्पमितयो पहाता जहा उपवातिए जाव अप्पेगतिया पायविहारेण महता पुरिसवग्गुरापरिक्खिचा है सामिस्स पुरतो य मग्गतो य पासओ य अहाणुपुबीए संपत्थिता । एवं बहवे देवा देवीओ य सरहिं २ रूवेहि सहि २ वेसेहि सरहिं २ चिंधेहि सरहिं २ निओएहि पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहाणुपुब्बीए संपत्थिया । तए णं से णदिवद्धणो राया 4 | व्हाते जहा कूणिते जाव हस्थिखंधवरगते सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्जमाणेणं सेतवरचामराहिं ओधुबमाणीहिं २ हतगयरह पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे महता भडचड जाव परिक्खिने सामि पिडतो २ अणुगच्छति । तते 3 | सामिस्स पुरतो महं आसा सवारा उभतो पासिं नागा पागधरा पिडतो रहा रहसंगेल्ली। तए णं से समणे भगवं महावीरे बेसालीए दक्खे पडिले पडिरूचे अल्लीणे मदए विणीए गाते णातपुत्ते णातकुलविणिवले विदेहे विदेहदिने विदेहजच्चे विदेहसूमाले सत्तुस्सेहो समचउरंससंठाणसंठिते बजरिसभणारायसंघयणे अणुलोमवायुवेगे कंकग्ग-1 दीप अनुक्रम ॥२६२ [274] Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२७०.../४६०...], भाष्यं [ ९५-१०४] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ॥२६३॥ हणी कवयपरिणामे सोणिपोसपितपरिणते पउप्पलगंधसारसणीसास सुरभिवयणे छवीणिशतंकउत्तमपसत्यअतिसेस णिरुवमतणू जल्ल मलकलंक से गरम दोस वज्जियसरीरे णिरुवलेवे छायाउज्जोवितंगमंगे घणणिमितसुबद्धलक्खणुन्नयकूडा गारणिभपंडितमिरे सामलिबोंडघणणियितच्छोडितमितु विसयप सत्यसुडुमलक्खण सुगंधसुंदर भुयमोयगभिंगणेलकज्जलपट्ट भमरगणणिद्धणिगुरुवणिचितकुंचितपदाद्दिणावत्तद्धसिरए दालिमपुप्फपगा सतवणिज्जसरिसनिम्मलसुद्धिकेसंत केस भूमी छत्तागारुत्तिमंगदेसे उडवइप डिपुण्णसोमध्यणे शिष्यणसमलमचंद दसम पिडाले आणामितवरखे लियतणुक सिद्धसंठितसंगत आयतमुयाय भूमए अलीणप्पमाणजुनसवणे सुमणे पीणमंसलकबोल सभाए कोकासियचवलपचलच्छे विष्फालियपोंडरायणयणे गरुलायतउज्जुतुंगणा से ओयवियसिलप्वाल चिंचफलसंनि माधरोष्ठ्ठे पंडुरससिस गलविमलनिम्मलसंखगोक्खीरफेणदगरयमुणालियाधबलदंतसेडी अंकूडदंते अफुडितदंते अविरलदंते सुनिते अतिततततं वणिज्जरसतलतालुजी हे मंसलपसत्थसंठितसद्दुल वर | विउलहणुए सार घासढुंदुभिस्सरे अद्वितसुविमत्तचित्तमम् चतुरंगुलसुप्पमाणवरकंपुसरिसगीचे महिसवराहसी इस द्दूल उस भणागवरपडिपुण्ण विउलवट्टखंघ पुक्खरवरफ लिहत यगीसरविडल भोग आदाणफलिहउच्छूढदीहबाहू जुयसंनिभपीणरइयपीवरपयोगसंठितमुसिलि बिसिउवचितघणथिरसुबद्धसुणिगूढपव्वसंधी रत्ततलावयितमउयमंसलपसत्थलक्खणसुजात अच्छ्द्द्जिालपाणी पीवरवाद्वतसुजातको मलवरंगुली आयंबतलिणसुहरुविलणिगुणक्खए चंदपाणिलेहे संखपाणिलेहे चक्कपाणिले सोत्थियपाणिलेहे रविससिसंखचरचक्कसोत्थिय विभत्स सुविरयितपाणिलेहे अणेगवरलक्खणुग्गमषसत्थसुविरयितपाणिलेहे, उवयितपुरवरकवाडविच्छिकपिडुलचच्छे, कणगसिलातलुज्जलप मत्थसमत लउवचितसिरिवच्छरयितवच्छे अकरंडुयकण [275] श्रीवीरस्व देहवर्णनं ॥२६३॥ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 दवणन प्रत नियुक्ती दीप अनुक्रम 18| गरुइलनिम्मलसुजातणिरुवहतदेहधारी अट्ठसहस्सपडिपुनवरपुरिसलक्खणधरे संनतपासे संगतपासे सुंदरपासे सुजातपासे मितमाइ-18 आवश्यक * यपीणरइतपासे झसविहगसुजातपीणकुच्छीसमोदरे पउमविगडनाभी साहतसोणंदमुसलदप्पणणिगरियवरकणगवरुयसरिसवरवहरव-CI चूर्णी लिवमज्जे गंगावत्तयपयाहिणावचतरंगभंगरविकिरणतरुणबोहितअकोसायंतपउमगंभीरविरयणामे उज्जुयसमसहितसुजातजच्चतणु उपोद्घात कसिणणिद्धआएज्जलडहरूमालमउयरमाणिज्जरोमरायी पमुदितवरतुरगसीहअतिरेगवट्टितकडी पसत्यवरतुरगसुजातगुज्झदेसे आइन हयच निरुवलेो गयससणसुजातसंनिभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कमविलसितगती समुग्गणिमुग्गगूढजन्नू एणीकुरुविंदावतवट्टाणुपु॥२६॥ व्बजेधे संठितसुसिलिट्ठविसिट्ठगूढगोप्फे सुपतिद्वयकुम्मचारुचलणे अणुपुव्वसुसाइतपीवरंगुलीए उन्नततणुतंबनिद्धनखे रत्तुप्पलपत्त-19 मउ यमुकुमालमसलतले नगणगरमगरसागरचक्ककवरंकमंगलंकितचलणे निविट्ठचलणे विसिट्ठरूचे हुतवहनिमजलिततडितडियत-14 रुणरविकिरणसरिसतेए अब्भहियं रज्जतेयलच्छीय दिपमाणे सूरे बीरे विक्कते पुरिसोत्तिमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवर गंधहत्थी तीसं वासाई विदेहंसि कटु अम्मापितिहिं देवत्तिगएहिं गुरुमयहरएहि य अब्भणुमाते समत्तपइने पुणरवि लोयतिएहिं 3 दजीतकप्पेहिं देवेहिं संबोहिते तेणं अणुत्तरेणं आभहिएणं णाणदंसणेण अप्पणो णिक्खमणकालं आभोगेऊण चिच्चा हिरण्णं चिच्चा सुवणं चेच्चा धणं चेच्चा रज्जं चेच्चा रहूं एवं बल वाहणं कोस कोडागार चेच्चा पुरं चेच्चा जणवयं चेच्चा घणकणगरयणमणि-II | मोत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणमादीयं संतसावतेज विच्छइचा विगोबइत्ता दाणं दाइयाणं परिभाएत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे , ॥२६४॥ दापढमे पक्खे मग्गसिरबहुले तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं पातीणगामिणीए छायाए पोरुसीए अहिणिबट्टाए पमाणपत्चाए। सुवएणं दिवसेणं विजएणं महत्तेण चंदप्पभाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे संखियचक्कियर्णगलिय-२ [276] Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्रांक उपोषात नियुक्ती दीप अनुक्रम तामहमंगलियपूसमाणबद्धमाणघंटियगणेहिं ताहिं इवाहिं जाव वग्गूहिं अभिणदिज्जमाणे य अभियुबमाणे य अन्भुग्गयभिंगारे पग्गहि- श्रीवीरस्प आवश्यक | ततालएंटे ऊसवितसेतछत्ते पवीयितसेतचामरावालवीयणीए सब्बिड्डीए सव्वजुनीए सव्वपलेणं सव्वसमुदएणं सम्यविभूतीए सव्ववि-12 स्तुतिः भूसाए सव्यसंभमेण सञ्चपगतीहि सव्वणातगेहिं सब्बणाडगेहि सव्वतालातरेहिं सव्वपुष्कगंधमल्लालंकारेणं सम्बडिगसहसंनिनादेणं आम एवं महता इडीए जाव महता समुदएणं महता वस्तुडितजमगसमगपडप्पवातियसंखपणवभेरिझल्लरिखरमुहिदहहुपिकतमुरख-18 मुइंगदुंदुभिाणिग्योसणादितरवणं कुंडपुरं मझमझेणं जेणेव णातसंडवणे उजाणे जेणव असोगवरपायवे तेणेव पहारेत्य गमणाए । ॥२६५॥ 3 तए णं सामिस्स तहा णिग्गच्छमाणस्स अप्पेगतिया देवा कुंडपुरं गगरं सम्भिवरबाहिरियं आसियसंमज्जितं जथा अभिसेगे जाव आहावंति परिधावति । तए ण सामिस्स कुंठपुरं मझमझेणं निग्गच्छमाणस्स सिंघाडगतिगचउक्क जाच पहेसु बहवे अत्यमाथिया कामस्थिया लामस्थिया जाव करोडिया अने य तहा बहवे नरनारी देवदेविसंपाता ताहिं इवाहि जाब गाहियाहि पम्गाई अभिनंदभाणा य अभित्थुर्णता य एवं बयासी-जय जय नन्दा! जय जय भद्दा जय जय गंदा! मई ते जय जय खसियवरवदासमा ! बुज्झादि भगवं लोगणाहा! पवत्तेहि धम्मतित्थं हियसुहनिस्सेयसकर सव्यजीवाणंति, जय जय गंदा धम्मेणं जय जयाला पंदा तवेण जय जय गंदा मई ते अमग्गेहिं गाणदसणचरिचमुत्तमेहि अजिताई जिणाहि इंदियाई जितं च पालेहि समणधर्म ॥२६५॥ जितविग्योऽविय यसाहितं देव! सिद्धिमझे णिहणाहिय रागदोसमल्ले तवेण घितिघणितबद्धकच्छो महाहि य अट्ठकम्मसत्तू शाषण उत्तमेण सुस्केण अप्पमचो हराहि आराहणापडाग व वीरतेलोक्करंगमजले पावयवितिमिरमणुत्तरं केवलं च गाणं गच्छय मोक्वं CSCR" [277] Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 निर्युक्तिः [२७०.../४६०.... भाष्यं [ ९५-१०४] अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोषात निर्युकौ ॥२६६॥ ASPER परं पदं जिणवरोवदिद्वेणं सिद्धिमग्गेणं अकुडिलेगं हंता परीसहच अभिभविया गामकंटओवसग्गाणं, धम्मे ते अविग्धमत्धुतिकट्टु अभिणदंतिय अभित्युति य । एवं समणे भगवं महावीरे विसालीए पिंडीभूतवेलोक्कलच्छि समुदर वयणमालासहस्सेहिं अभिधुन्वमाणे २ जयणमालासदस्सेहिं पेच्छिऊजमाणे २ हिययमालासहस्सेहिं उमंदिज्जमाणे २ मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिष्पमाणे २ कंतिरूवगुणेहिं परिथज्जमाणे २ अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे २ दाहिणहत्थेणं णरणारिदेवदेविसहस्ताणं अंजहिमालासहस्साहं परिच्छमाणे २ गणपतिसहस्सा अच्छमाणे २ तंतीतलतालतुडितगीतबादितरवेणं मधुरेण य मणहरेणं जयसहमोसमीसिएणं मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिबुज्झमाणे २ कंदरदरिविवरकुहरगिरिवरयासउदुद्वाणभवणदेवकुलसिंघाडयतियचडक चच्चरआरामुज्जाणकाणणसभपवपदे सियाए पढेंसुआयवसहस्ससंकुलं करेंते हयहेसियहत्थिगुलगुलाइयरहघणघणाइतसदमीसिएण य महता कलकलरवेणं जणस्स मधुरेण पूरयंते सुगंधावर मउव्विद्धवासरेणूकविलं गर्म करेंते कालागरुपवरकंदुरुकतुरुक ध्वनिवहेणं जीवलेोगमिव वासंते समंततो सुमितचकवाले पउर्जणवाला समुदितरितपधाइत विउलतोलबोलबहुलं गर्म करेंते कुंडग्गामं मज्झमज्झणं जेणेव जातसंडवरुज्जाणे जेणे असोगवरपायवे तेणेव उपागच्छति उपागच्छत्ता असोगबरपायबस्स अहे सीयं वेति ठवेता सीयाओ पच्चारुहति पच्चारुहिता सयमेव आभरणालंकारं ओमुयति । तते णं सा कुलमहतरिया हंसलवणणेण पडसाडएवं आभरणमल्लालंकारं पडिच्छति २ हारवारिधारसिंद्वारच्छिमुतावलिप्यगासाई असई विमुयमाणी २ कंदमाणी विलवमाणी जाब समयं भगवं महावीरं एवं वयासी गाएसिणं [278] श्रीवीरस्य दीक्षामहः ॥२६६॥ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री श्रीचीरस्थ दीक्षामहः प्रत आवश्यकदा तुम जाता कासवगोनेसिणं तुम जाता! उदितोदितणातकुलणभतलमियकसिद्धत्थजच्चवत्तियसुते सि गं तुम जाता! वासिह- II गोचजच्चखतियाणिए तिसलाए अत्तए सिणे तुम जाया जच्चखत्तिए सिणं तुम जाता ! बहुपुरिसविदत्तनिम्मलजसकित्तिवत्तउपोद्घाता संजलणणातकुलवरवडेंसए सिणं तुम जाता! गम्भसुकुमाले सि णं तुम जाता! अभिनिव्वट्टजोब्बणे सि तुम जाया ! अमिनिबनियुक्ती दलायमे सि तुमं जाया ! अप्पडिरूवरूपलावनजोवणगुणे सिणं तुम जाता. अहियसस्सिरीएणं तुम जाया ! अहियपेच्छणि॥२६॥ |ज्जे सिणं तुम जाता ! अहियपीहणिज्जे सिणं तुम जाता ! अहियपत्थणिज्जे सिणं तुर्म जाता! अहियअभिनिविट्ठमतिविमाणे | सिणं तुम जाता! देविंदरिंदपहितकित्ती सिणं तुमं जाता, सुहोसिएसिणं तुम जाया! एस्थ य तिव्वं चकमियव्वं गत्यं आलम्बेयध्वं असिधार महस्वयं चरियध्वं, तं घडियव्वं जाया ! जतितब जाता ! परकमेयव्यं जाता, अस्सि च णं अढे णो पमाएयव्यंतिकटु दिवद्धणप्पमुहे सयणवग्गे सामि वंदति णमंसति अभिणंदति अभित्थुणति, धुणेचा एनंते अवकमति, सेसाणपि आणंदअंसुपातो । तए ण सामी एवमेतमिति वयासी २ चा सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेति, तते णं से सके देविंदे देवराया। सामिस्स केसे हंसलक्खणेण पडसाढएणं पडिच्छति, पडिच्छिता अणुजाणतु मे भगवंतिकट्टु खीरोदगसमुद्दे साहरति, ततेणं सामी णमोऽधुणं सिद्धाणंतिकट्टु सामाइयं चरिच पडिवज्जति, समयं च णं देवाण मणुस्साणय निग्योसे तुरिषगमगीतवादित्तनिग्मोसे काय सकवयणसंदेसेणं खिप्पामेव निलुके यावि होत्या, ताहे करेमि सामाइयं सर्व सावज जोगं पच्चक्खामि जाव बोसिरामित्ति, भदंतत्ति ण भणति जीतमिति, समयं च सामी सामाइये पडियमति समयं च सामिस्स मनुस्सधम्मातो. उत्तरिय मयप दीप अनुक्रम [279] Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं 1, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [१०५-११०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत स्योपसर्गाः सत्राक श्री. ज्जवणाणे णाम गाणे समुप्पन्चे । सामी छहणं भत्तेणं अपाणएणं हत्युत्तराहिं णवत्तहि जोगमुवागतेणं एग देवसमादाय णिगिणे आवश्यकनमविताणं तं वामे खषे काउं, जीतमिति, आगाराओ अणगारियं पन्चइए । एत्थ गाहाओ चूर्णी | उपोषात ___ एवं सदेवमणु. भा.१०५|| उज्जाणं संपत्तो भा.१०॥ जिणवर० भा.१०७॥ दिव्वा मणुस्सा आभा.१०८॥ नियुक्ती काऊण ॥ भा. १०९ ।। तिहिं नाणेहिं । भा. ११ ॥ ॥२६॥ तए णं सामी अहासंनिहिए सब्वे नायए आपुच्छित्ता णायसंडबहिया चउम्भागबसेसाए पोरुसीए कंमारग्गामं पहावितो, | एत्थंतरा पितुवयंसो धिजातितो उपाहतो, अग्ने भणंति-जदा चरितं पडिवज्जति तदा उवहितो, सो य दाणे कहिपि गते ओर NI पच्छा आगती मज्जाते अंबाडिए, सामिणा एवं परिचतं तुम पुण बाइंगणिवणाणि हिरसि, जाहि जदि एत्तरेऽवि लभेज्जा-1 सित्ति, सो भणति जहा- सामि! मम न किंचि तुम्मेहिं दिलं, इयाणिपि देहित्ति, ताहे सामिणा तस्स देवदूसस्स अद्धं दिवं, अब परिचचंति, तं तेण तुमागस्य उवणीयं, जहा एयस्स दसिया बंधाहि, तेण पुच्छितं-इमं कओचि , भगइ- भगवया दिअंति, मतभाओ मणइ-तंपि से अर्द्ध आणेहि, जया पडिहिति भगवओ अंसाओ तदा आणज्जासि, तो णे अहं तुबेहामि ताहे सयसहस्सं मोठं भविस्सइ, तो तुजवि अद्धं ममवि अद्धति, पडिवमो, ताहे सो भगवं पओलम्गिओ, सेसं उबरि भनिही । तत्थ य दो पंथा-एगो पाणिपणं एगो पालीए, सामी पालीए जा बच्चति ताव पोरुसी महत्तावसेसा जाता, संपत्तो य तं माम, तस्स बाहि सामी पडिमार॥ ठितो, सहिमगवान दिन्बेहिं गोसीसातीएहि चंदणेहि चुहिं तहा वासेहि य पुप्फेहि य वासियदेहो निक्खमणामिसेगेण य आभिसित्तो ॐॐॐॐ दीप अनुक्रम ब अथ उपसर्गस्य वर्णनं आरभ्यते [280] Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं 1, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [१०५-११०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक MI विससेणं ईदएहिं चंदणादिगंधेहि पासितो, अतो तस्स पव्वइयस्स विसेसओ चत्वारि साहिए मासे सो दिवो गंधो ण फिडितोश्रीवीरस्यो आवश्यक अतो से सुरभिगधेणं भमरा मधुकरा य पाणजातीया बहवे दूराओवि पुष्फितेवि लोद्धकुंदादिवणसंडे चतिन्ति, दिव्वेहि मंहिं आग- पसगो | रिसिता तं तस्स देहमागम्म आरुज्म कार्य विहरति विंधति य, केइ मग्गतो गुगुममेंता समबति, जदा पुण किंचिविण साएंति तदा उपोद्घातक नियती आरुसिया पहेहि य मुहेहि य खायंति, वसंतकालेवि किर किचि रोमकूवेसु सिणेहं भवति तदा विलग्गितुं तं पिबित्ता आरुसि-| ताण तस्थ हिसिमु, मुइंगादीवि पाणजातीतो आरुजा कार्य विहरति जाब गाते बत्थे वा चंदणादिविलेवणाणं घुमाईण च केति | ॥२६९। अवयवा धरिता ताव ते खाईसु, तेहिं निट्टिएहिं पच्छा ते ठितस्स वा चक्कर्मतस्स वा आरुट्ठा समाणा कार्य विहिसिसु, जे वा अजितिं दिया ते गंधे अग्घात तरुणइत्ता तग्गंधमुच्छिता भगवंतं भिक्खायरियाए हिंडतं गामाणुग्गाम दूइज्जतं अणुगच्छंता अणुलोमं जायंति-देहि अम्हवि एतं गंधजुत्रिं, तुसिणीए अच्छमाणे पडिलोमे उबसग्गे करेंति, देहि वाहिं वा पेच्छसि, एवं पडिम: ठियपि उवसग्गेति, एवं इस्थियाओऽवि तस्स भगवतो गातं स्यस्वेदमलेहि विरहितं निस्साससुगंधं च मुहं अच्छीणि य निसग्गेण | चेव नीलुप्पलपलासोवमाणि बीयअंसुविरहियाणि दटुं भणंति सामि-कहिं तुब्भे वसहिं उवेह , पुच्छति भणंति अनममाणि, एवं सव्वा चरिया जहा ओहाणसुए 'अहासुर्य बहस्सामी' च्चातिणा तहा विभासियब्बा, एत्थ पुण जत्थ किंचि उवसम्गो वा| २६९॥ बासारत्तो वा कारण वा किंचि तं भन्नति, तए णं भगवतो कम्मारग्गामे बाहिं पडिमं ठियस्स गोवनिमित्तं मक्कस्स आगमो वागरेति देविंदो । कोल्लागवले छट्ठस्स पारणे पयस वसुहारा ॥ ४६१ ॥ तत्थ एगो गोवो सो ला दिवस पइल्ले वाहेत्ता गामसमीर्य पत्तो, ताहे चिंतेति- एते गामसमीवे खेत्ते चरंतु, अहंपि ता गाइओ दोहेमि, सोवि ताव अंतो|M दीप अनुक्रम K S [281] Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययन H मूलं [- /गाथा -1 निर्मुक्तिः [ २७०... /४६०... आयं [१००-११०] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक सूण उपोद्घात नियुक्तौ ॥२७०॥ परिकम्मं करेति ते बइला चरता अडविं पट्टा, सो गोवो निग्गतो, ताहे पुच्छति कर्हि ते चहा, ताहे सामी तुहिक्को अच्छति, सो चिंतेइ एस ण जाणति, तो मग्गिनुमाढतो, ते य बदला जाये धाता ताहे ग्रामसमीवं आगता माणुसं दद्दूण रोमर्थता अच्छीत, ताहे सो आगतो पेच्छति तस्थेव निविट्टे, ताहे आसुरुत्तो, एतेण दामपण हणामि, एतेण मम चोरिता एते बहल्ला, पमाए घेत्तुं वच्चीहामि, ताहे सक्को देविंदो देवराया चिंतेह किं अज्ज सामी पढमदिवसे करेति ?, जाव पेच्छति तं गोवं धावतं, ताहे सो तेण थंभितो, पच्छा आगतो तं तज्जेति दुरात्मा न जागसि सिद्धत्थरायपुत्तो अज्ज पव्वतितो, ताहे तंमि अंतरे सिद्धस्थ सामिस्स मातुत्थितापुतो बालतबोकम्मेणं वाणमंतरी जातेडओ, सो आगतो, ताहे सक्को भणति भगवं ! तुन्भ उवसम्यबलं तो अहं बारस वासाणि वैयावच्चं करेमि, ताहे सामिणा भन्नति नो खलु सक्का ! एवं भूअं वा ३ जं णं अरिहंता देविदाण वा असुरिंदाण वा नीसाए केवलणाणं उप्पार्डेति उप्पाडेंसुं वा ३ तवं वा करेंसु वा ३ सद्धिं वा बच्चिसु वा ३, गण्णत्थ सपूर्ण उड्डाणकम्मबलविरियपुरिसक्कारपरक्कमेणं, ताहे सक्केण सिद्धत्थ भणितो- एस तव णीयलओ पुणो य मम वयणं, सामिस्स जो परं मारणंतियं उवसग्गं करेति तं वारेहि, एवमस्तु देण पडितं, सक्को परिगतो, सिद्धत्थो ठितो, सामिस्स य अगारवा मोत्तम संजयस्स सतो एवं चउत्थभत्तं, नत्थि अनं, अवसेसं कालं जहनगं छदुभतं आसि। ततो बीयदिवसे छट्टपारणए कोल्लाए संनिषेस धतमघुसंजुतेणं परमश्रेण वलेण माहणेण पडिलाभितो पंच दिव्वा जहा उस भस्स । दृइज्जतग पितुणो वयसं तिव्वा अभिग्गहा पंच आवियतोग्गह ण वसण णिच्वं बोसट्ट मोणेणं ॥ ४-११४६२ । 1 [282] इन्द्रप्रार्थना ॥२७०॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४६२-४६४/४६२-४६४], भाष्यं [१११] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक दीप अनुक्रम श्री पाणीपत्तं गिहिवंदणं च तह पदमाण वेगवती । धणदेव सूलपाणी दसम बासहितग्गामो ॥४-२२४६३॥ अभिग्रहआवश्यकता राधा प सत्त वेषणि धुति दस सुमिणुप्पलद्धमासे य। मोराण सकारं सको अच्छदए कुविती ॥४-३२४६४॥ पंचकं चूणी उपोधाता ताहे सामी विहरमाणो गतो मोराग संनिस, तत्थ दुइज्जतगा णाम पासढस्था, तेसि तत्थ आवासा, तेसि च कलवती नियुको हा भगवतो पितुमित्तो, ताहे सो सामिस्स सागतेणं उवगतो, ताहे सामिणा पुब्बपतोगेण तस्स सागतं दिवं, सो भणति अस्थि घरं ॥२७॥ एस्थ कुमारवर ! अच्छाहि, तत्थ सामी एगतराई वसिऊण पच्छा गतो विहरति, तेण भणिय-विविचाओ बसहीओ. जदि वासा-14 रत्तो कीरति तो आगमज्जाह, ताहे सामी अट्ठ उउबद्धिए मासे विहरित्ता वासावासे उबग्गे तं चैव दूाजंतगगाम एति, तत्थेगमिस मढे वासावासं ठितो, पढमपाउसे य गोरूवाणि चारिं अलभंताणि जुण्णाणि वयाणि खायंति, ताणि य घराणि उब्वेल्लेंति, पच्छा ते वारेति, सामी ण यारेइ, पच्छा ते दुइज्जतगा तस्स कुलवइस्स साति, जहा एस एताणि ण वारेति, ताहे सो कुलवती तं अशुसासेति, भणति कुमारवरा ! सउणीवि ताव कई रक्खति. तुमंपि वारेज्जासित्ति सप्पिवास भणति, ताहे सामी अचितचोग्यहोत्ति निग्गतो, इमे य तेण पंच अभिग्गहा महिता, तंजहा-अचियत्तोरगहे ण वसितव्यं, निच्चं बोसट्टे काए मोणं च, पाणीसु भोचव्वं, |ता केई इच्छति-सपत्तो धम्मो पनवेयम्वोति तेण पढमपारणगे परपचे भुत्तं, तणं परं पाणिपत्चे, गोसालेण किर तंतुवायसालाए २७१॥ भणियं-अहं तव भोयणं आणामि, गिहिपत्ते काउं, तैपि भगवया नेच्छियं, उप्पनणाणस्स उ लोहज्जो आणेति ।। धमो सो लोहज्जो खतिखमो पवरलोहसविभो । जस्स जिणो पचाओ इच्छइ पाणीहिं भोत्तुं जे ॥ १ ॥ किं तत्थ ताण अडितयां, 64344 [283] Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४६२-४६४/४६२-४६४], भाष्यं [१११] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक ॥२७२॥ श्री भणितं च-" देविंदचकवडी मंडलिया ईसरा तलवरा य । अभिगच्छंति जिणि गोयरवडियं ण सो अडति ॥१॥ छउमस्थकाले 18/ आस्थआवश्यकालाअडितं, गिहत्थी न बंदियव्यो न अन्यच्चोति । तत्थ अद्धमास अच्छित्ता ततो पच्छा अद्वियग्गामं बच्चति, तस्स पुणदा उपोद्घात J अट्ठियगामस्स पढमं बद्धमाणय णाम होत्था, तो किह जातो अद्वितगामो ?, नियुक्ती म तत्थ धणदेवो नाम वाणियओ पंचहिं पुरस्सरेहिं गणिमधरिममज्जस्स भरितेहिं तेणतेण आगतो, तस्समीवे वेगवती णाम णदी, तर 18 सगडाणि उत्तरंति, तस्स य एगो बतिल्लो सो मूलधुरे जुप्पति, ताहच्चएणं (बलेण) ताओ मंडीओ उत्तिनाओ, पच्छा सो छिनो पडितो. &सो वाणियतोतं अवहाय तणं पाणितं च पुरतो छोऊणं गतो, सो य तत्थ वालियाए जडामूले मासे अतीव उण्हेण तण्डाए य परिता विज्जति,बद्धमाणओ य लोगो तेणतेण तणं च पाणियं वहति, प य तस्स कोइ देति, ताहे सो मोणो तस्स लोगस्स पदोसमावनो, सो सातत्य अकामतण्हाए य अकामछुहाए य तत्थ चेव गामे अग्गुज्जाणे मूलपाणी वाणमंतरो उववण्यो, उवउत्तो पासह तं बलहसरी-18 | रंग, ताई आसुरुत्तो मारिं विउच्चति, सो गामो मरिउमारद्धो, एवं 'अद्दण्णो समाणों कोउगसयाणि करति, तहवि ण द्वाति, ताहे भिन्नो गामो अनेसु संकतो, तत्थवि ण मुंचति, ताहे तेसिं चिंता जाता-अम्हहिं तत्व ण णज्जति कोवि देवो वा दाणवो| वा विराहितो, तम्हा तर्हि चेव वच्चामो, आगता समाणा जगरदेवताए विउलं बलिउबहारं करेता समततो उम्मुहा सरणति जं | अम्हेहिं सम्म ण चेट्टितं तस्स खमहा, ताहे अंतलिक्खपडिवो सो देवो ते भणति-तुम्भे दुरात्मा णिरणुकंपा तेणतेण जाव एह य, ण य तस्स गोणस्स तणं वा पाणिय वा दिन, तस्स में एतं फले, ते पहाता पुष्फबलिहत्थगता भणति-दिडो कोयो, पसाद दीप अनुक्रम का॥७२॥ [284] Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४६२-४६४/४६२-४६४], भाष्यं [१११] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक IM इच्छामो, वाहे भणति-एताणि माणुस्सद्वियाणि पुंज काऊण उवरि देवकुलं करेह, बालिबई च एगपासेत्ति, अने भणति-तं बदलरू | शूलपाणि आवश्यक करेह, तस्स य हेवा ताणि बल्लद्वियाणि निक्खणह, तेहिं अचिरणं कयं, तत्थ इंदसम्मो णाम तस्स पडियरजओ, वाहे लोगो 4चूर्णी थियादी पेच्छति-पंढराष्वियं गाम देवकुलं च, ताहे पुच्छंति अबे-कयराओ गामाओ आगता ?, भणेति जत्थ ताणि अड्डियाणि, IN एवं सो अद्वितगामो जातो । तत्थ पुण वाणमंतरघरे जो रनिं परिवसति तत्थ सो सूलपाणी संनिहितो तं रचि वाहेत्ता पच्छा || मारेति, ताहे तत्थ लोगो दिवस अच्छिऊणं पच्छा विगाले अनत्थ वच्चति, इंदसम्मोवि धूवं दीवगं दातुं दिवसतो चेव जाति । ॥२७३॥ दू इतो य तत्थ सामी आगतो दुइज्जतगाण पासातो, तत्थ य सब्बलोगो तदिवस पिंडितो अच्छति, सामिणा देवकुलितो अणुभ |वितो, सो भणति-गामो जाणति, सामिणा गामो मिलितओ चेव अणुनवितो, सो गामो भणइ--ण सका एत्थ वसिउ पुज्जे, सामी | भणति-णवरि तुब्भे अणुजाणह, ताहे भणति-हाह, तत्थेकेका वसहिं देति, सामी णेच्छति, भगवं जाणति-सो संबुज्यिहितित्ति, | ताहे गंता एगकोण पाडिमं ठितो, ताहे सो इंदसम्मो सूरे धरेते चेव धूवपुर्फ दाऊण कप्पडियकरोडिया सव्ये पलोएता पि देवज्जग भणति-तुम्भेबि णीह, मा मारिज्जिहिह, भगवं तुसिणीओ अच्छति, ताहे सो बंतरो चिंतेति-देवकृलिएण गामेण या ट्राभचंतोऽविन जाति पेच्छ से अज्जज करेमि, ताहे सञ्झाए अट्टहास मुर्यतो बीहावेइ, भीम अट्टहासं मुंचतो ताहे भेसेउं पवत्तो, ताहे सबो लोगो तं सई सोऊण भीतो भणति-एस सो देबज्जतो मारिज्जति, तत्थ य उप्पलो नाम पच्छाकडो परिवाओ। का पासावञ्चिज्जो नेमित्तिओ भोमउप्पातसिमिणंतलिक्खअंगसरलक्षणवंजणअढुंगमहानिमित्चजाणओ जणस्स सोऊण चिंतति-मा | |तित्थकरो होज्जति अद्धिति करेति, बीहेति य तत्थ रति गंतुं, ताहे सो वाणमंतरो जाहे सद्देण ण बीहेति ताहे हस्थिरूवेण उवसग्गं दीप अनुक्रम ला॥२७३॥ [285] Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग - 3 "आवश्यक" - मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 मूलं [- /गाथा -1, नियुक्ति: [४६२-४६४/४६२-४६४). यं [१११] अध्ययनं पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२७४॥ करेति पिसायरूयेण य, एतेहिवि जाहे ण तरति खोमेउं ताहे पभायसमए सचविहं वेषणं करेति, तंजहा सीसवेयणं १ कअवेयणं २ अच्छिवेपूर्ण ३ दंतवे॒यणं ४ णहवेयणं ५ नकवेयणं ६ पिट्टिवेयणं ७ एकेका देयणा समत्था पागतस्स जीतं संकामेतुं किं पुण सत्त तायो उज्जलाओ १, भगवं अहियासेति, ताहे सो देवो जाहे न तरह चालेंड वा खोड वा ताहे तो संतो परिर्वतो पायपडिओ खामेइखमेह भट्टारगति, ताहे सिद्धस्थो उद्धातितो-हं भो शूलपाणी ! अपत्थियपत्थया न जाणसि सिद्धत्थरायसुर्य भगवंतं तित्थगरं, जति सक्को देवराया जाणतो तो ते णं पायेंतो, ताहे से भीतो दुगुणं खामेति, ताहे सिद्धत्यो धम्मं कहेति, तत्थ उवसंता सामिस्स महिम करेति, तत्थ लोगो चिंतेति सो तं देवज्जत मारेचा इयाणि कीलेति । सामी य देसूणचचारि जाम अतीव परितावितो समाणो पमायकाले मुहुत्तमेतं निहापमादं गतो, तत्थिमे दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धो, तंजातालपिसाओ हतो १ सेयसउणो चित्तकोइलो य दोघेवे पज्जुवासंता दिवा २-३ दामदुगं च सुरभिकुसुममयं ४ गोवग्गो य पज्जुवासंतो ५ पउमसरो विउद्धपंकओ ६ सागरो य मि मित्थिनोति ७ सूरो य पहलरस्सिमंडलो उग्गमतो ७ अंतहि य मे माणुसुतरो बेटि ओत्ति ९ मंदरं चारुठो मिति १०, लोगो पभाते आगतो, उप्पलो य इंदसम्मो य, ते अच्चणियं दिव्वं गंधचुनपुष्पवासे च पासंति भट्टारंगं च अक्खयसव्वंगं, ताहे सो लोगो सब्बो सामिस्स उकिट्टिसीहणादं करेंतो पादेसु पढितो भणति, जहा देवज्जतेण देवो उवसामितो, महिमं पगतो, उप्पलोऽवि सामिं दद्दू पट्टो वंदति, ताहे भगति-सामी ! तुम्भेहिं अंतिमरातीए दस सुमिणा दिट्ठा, तेसि इमं फलति जो तालपिसायो हतो तमचिरेण मोहणिज्जं उम्मूलेहिसि १ जो य सेयसउणो तं सुकझाणं साहिसि २ जो विचित्तो कोइलो तं दुबालसंग पनवेहिसि ३ गोवग्गफलं च ते चउब्विहो समणसंधो भविस्सति, ५ पउमसरो चउब्वियेनसंघातो [286] शिरआदिवेदनाः७ स्वमा १० ॥२७४॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं , मूलं F /गाथा-], श्री नियुक्ति : [४६२-४६४/४६२-४६४], भाष्यं [१११] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत आवश्यका सत्राक दीप अनुक्रम श्री भविस्सति ६ जंच सागर तिम्रो तं संसारमुचरिहसि ७ जो य सूरो तमचिरा केवलनाण ते उप्पन्जिहिति ८ च अंतेहिं माणु-14 मुत्सरो वेढितो तं ते निम्मलजसकितिपयावा सयले तिहयणे भविस्सति ९ च मंदरमारुढोसि ते सीहासणथो सदेवमणुयासुराए 218 अस्वमफलाचूर्णी उपोद्घात | परिसाए धम्म पनवेहिसित्ति १० दामदुर्ग पुण ण जाणामि, सामी भणति-हे उप्पला! नं तुम न याणसि तं नं अहं दुविहमगारा-141 मान्दकवृत्त नियतौणगारियं धम्म पनवेहामित्ति ४ ततो उप्पलो वंदिता गतो । तत्थ सामी चचारि मासे अद्धमास खममाणो एत पढम समोसरणी बुच्छो । एत्य इमाओ मूलभासागाहाओ॥२७५| भीमहहास हत्थी पिसाय णागा य वियण सत्तेमा। सिर कन्न णास दंते णहछि पट्ठीय सत्तमिया ४.४१४६५॥13 ताल पिसायं दो कोइला य दामदुगमेव गोवग्गं । सर सागर सूरते मंदर सुविणुप्पले चेव ॥ ४-५॥४॥६६॥ मोहे य झाण पक्षण धम्मे संघ य देवलोगे य । संसारत्ताण जसे धम्म परिसाए मजमि ॥४-६।४६७।। पच्छा सरदे निग्गओ मोरायं नाम सन्त्रिवर्स गओ, तत्थ सामी बहिं उज्जाणे ठिओ, तत्थ य मोरागए सचिवेसे अच्छंदगा-1 | नाम पासडत्था, तत्थ एगो अच्छंदओ तस्थ गामे अच्छइ, सो पुण तत्थ गामे कॉटलवेंटलेण जीवति, सिद्धस्थगो पालो अच्छतओ अद्धिति करेति बहुसंमोइतो य, भगवतो य पूर्य अपेच्छतो, ताहे सो बोलेंतं गोई सद्दावेत्ता वागरेति, जहिं पधावितो ॥२७५॥ जं जिमितो जं पंथे दिह जे य सुविणगा दिडा, ताहे सो आउट्टो गामं गंतु मित्तपरिजिताण परिकहेति, सबहिं गामे फुसितं एस देवज्जतो उज्जाणे अतीतवद्दमाणाणागतं जाणति, ताहे अनोऽवि लोओ आगतो,सब्बस्स वागरेति, लोगो वडेव आउडो महिमंट्री [287] Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [११२ ११४] अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्तिः [४६५-४६७/४६४...], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूण उपोदघात नियुक्ती | ॥२७६॥ कच करेति, सो लोगेण अविरहितो अच्छति, ताहे सो लोगो भइ एत्थ अच्छंदओ णाम जाणंतओ, सिद्धस्थो भणति से ण किंचि ४ अच्छंदजागति, ताहे लोगो गंतुं भगति-तुमं ण किंचि जाणसि, देवज्जतो जाणति, सो लोगमज्झे अप्पाणं ठाविउकामो भणति एह जामो, जदि मज्स जाणति तो जाणति, ताहे लोगेण परिवारितो एति, भगवतो पुरतो द्वितो, तणं गहाय भणति-किं एवं छिजिहिति?, जइ भणिहिर छिज्जिहिद्द तो ण च्छिदिस्सं, अह भणिहिति णवि तो छिंदिस्सामि, सिद्धत्थेण भणितं ण छिज्जिहिति, आढतो छिंदितुं सकेण य उपओगो दिलो, ताहे अच्छंदगस्स कुवितो । तणछेयंगुलि कम्मार वीरघोस माहसेंदु दसपलिए । विइइंदसम्म ऊरण बदरीए दाहिणुक्कुरुडे ।। ४-८।४६९ ।। ततियमवच्चं भज्जा कहए णाहं ततो पिउवयंसो । दक्खिणवाचाल सुवन्नवालुया कंटए वत्थं । ४-९।४७० ।। ताहे तेण वज्जं पक्खितं, अच्छंदगस्स अंगुलीओ दसवि भूमीए पडिताओ, लोगेण खिसितेा गतो, ताहे सिद्धत्थो तस्स पदोसमावनो तं लोगं भणति-एस चोरो, कस्सेवेण चोरितः, सिद्धत्थो भणति-अत्थि एत्थ वीरघोसो नाम कम्मकारो १, सो पाएहिं पडितो, अहंति, तुझं सुए काले दलपलिये बट्टये णट्टपुब्वं ?, आमं अस्थि, तं एतेण हरितं तं पुण कहिं ? तं तस्स पुरोहडेमहिसेंदुरुक्खस्स पुरत्थिमेणं हत्थमंत्तं गंतॄणं तत्थ शिक्खत, बच्चह, ते गता, दिट्ठे, ताहे आगता कलकलं करेमाणा, अकंपि सुणेह, किं अस्थि इदं इंदसम्मो णाम गाहावती १, तेहिं भणितं अस्थि, ताहे सो सयमेव उवडिओ भणति अहं, आणावेह, अस्थि तुज्झे ऊरणओ असुयं कालं णट्टेोई, अस्थि, सो एतेण मारेत्ता खड़तो, अट्ठियाणि से बदरीए दाहिणे पासे उक्कुरुडियाए, गता जाव [288] ॥२७६॥ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] भाष्यं [११४... ] मूल [- / गाथा-], निर्युक्तिः [४६९-४७०/४६५-४६६] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२७७॥ दिङ्काणि, पुणरवि कलकलं करेमाणा आगता, भगति एतं ताव वितियं, ताहे भणति अलाहि अत्रेण, ताहे वे निबंध करेति, पच्छा भणति जहा तं अवच्चं भज्जा से कहेहीति, सा पुण तस्स चैव छिद्दाणि मग्गमाणी अच्छति, ताहे ताए सुतं, जहा सो घरिसितो अंगुलीओ छिबाओ, सा य तेण तद्दिवसं पिङ्कितया, ताहे सा चिंतति-नवरि गामो एतु, ताहे ते आगता पुच्छति, सा भणति मा से गामं गेण्डह, भगिणीए पतित्तर्ण करेति, स मं गच्छति, ताहे ते उक्छुद्धिं करेमाणा तं पर्णेति, एस पावो, एवं तस्स उड्डाहो जातो जहा तस्स कोऽवि भिक्खपि ण देति, ताहे सो अप्पसागारियं आगतो भणति भगवं । तुम्भे अण्णत्थवि जुज्जह, अहं कहिं जामि १, ताहे अचियतो महोत्तिकाऊण सामी निम्गतो, ताहे ततो निम्तो समाणो दो वाचालातो दाहिणवाचाला य उत्तरवाचाला य, तासिं दोन्हं अंतरा दो गदीओ-सुवन्नकूला य रूप्पकूला य, ताहे सामी दक्खिणवाचालाओ उत्तर वाचाल वच्चति, तत्थ सुवण्णकूलाए बुलिणे तं वत्थं कंटियाए | लग्गं, ताहे तं थितं सामी गतो, पुणो य अबलोइतं, किं निमित्तं १, केती भांति जहा ममसीए, अने भांति मा अत्थंडिले पडितं, अवलोइतं सुलभं वत्थं पत्तं सिस्साणं भविस्सति तं च भगवता य तेरसमासे अहाभावेण धरियं ततो वोसिरियं पच्छा अचेलते, तं एतेण पितुवर्तसविज्जातितण गहितं तेण उवडितं तुभागस्स, ते तुभितं, ताहे सयसहस्समोल्लं जातं, इमस्सीव पद्मासं सहस्साई इमस्सवि पन्नासं ॥ उत्तरवाचालंतर वणसंडे चंडकोसिओ सप्पो । ण डहे चिंता सरणं जोइस कोवाऽहि जातोऽहं ।। ४-१०।४७१ ।। ताहे सामी उत्तरवाचालं वच्चति, तत्थ अंतरा कमकललं नाम आसमपदं, दो पंथा-उज्जुओ य बँको पं, जो सो उज्जु [289] बनार्थपावः ॥२७७॥ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७१/४६७], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक 13|सो कणगखलमज्ञण बच्चति, वंको परिहरंतो, सामी उज्जुएण पधाइतो । तत्थ सामी गोवालएहिं वारितो, जथा एत्य दिडि-11 चणुकोदि विसो सप्पो, मा एतेण बच्चह, सामी जाणति-जहा सो भवति संबुझिदिति, ताहे गतो, गंता जक्सघरगमंडबियाए पडिमं ठितो, शिका चूर्णी सो पुण सप्पो को पुन्वभवे आसि', खमओ, पारषए खुड्डएण सम वासियस्स गतो, तेण मंडुकलिया बिराहिता, सो खुएण उपायातला पडिचोदितो, ताहे सो अण्ण मतेल्लित दावेति, भणति-इमावि मए मारिता ?, जातो लोएण मारियाओ ताओ दावेति, ताहे खुहु है एण णात-बियाले आलोएहिति, सो वियाले आवस्सगआलोयणाए आलोइत्ता णिविट्ठो, खुट्टओ चिंतेति-पूणं से विस्सरितं, तेण ॥२७८॥ सारितो, रुट्ठी खुङगस्स आहणामित्ति उद्धातितो, तत्थ खमे आवडितो मतो विराहितसामन्नो कालगतो जोइसिएहिं उववनो, ततो चुतो कणगखले पंचण्हं तावससयाणं कुलवइस्स तावसीपोट्टे आयातो, दारओ जातो, तत्थ से कोसिओति नाम कतं, सो य तेण सभावेण अतीव चंडकोवो, तत्थ य अनवि अस्थि कोसिया, ताहे से चंडकोसिओत्ति णामं कतं, सो य कुलवती जातो, सो तत्थ वणसंडे मुच्छितो, तसिं तावसाणं ताणि फलाणि ण देति, ते अलभता दिसोदिसि गता, जो व तत्थी दगोचालगादि एति संपि हंतूर्ण धाडेति, तस्स य अरे सेयविया शाम णगरी, ताओ रायपुत्तेहिं आगतेहि विहरिप-टू डिणिवेसेण भग्गो विणासिओ य, तस्स गोबालेहिं कहितं, सो कंटियाणं गतओ, ताओ छोचा परसुहत्वगतो रासेणं धगधगतो 18| कुमारेहिं एंतो दिडो, ते तं दट्टण पलायंति, सोऽवि कुहाडहत्थो पहावितो, आवडितो पडितो, सो कुहाडो से अद्दो हितो, तत्थ ॥२७८॥ से सिरं दोमागे कर्य, तत्थ मतो तमि चेव वणसंडे दिट्टीविसो सप्पो आयातो, तेण रोसेण लोभेण य तं वणसंडं रक्खति, सात तावसा सब्वे दद्धा, जे अदगा ते णडा, सो विसझं तं बणसंडे. परियंतऊर्ण जं सउणगमवि पासति तं उहति, दीप अनुक्रम RECENSERIE [2901 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H. मूलं - /गाथा-, नियुक्ति: [४७१/४६७], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत चूर्णी सत्राट नियुक्ती श्री ताहे सामी तेण दिशे, भगवं च गंतूण तत्थ पडिम ठितो, आसुरुचो मर्म ण जाणसित्ति परिएणाझादत्ता पच्छा सामि पलोएति बावश्यक चंडकौनिजाव सो ण डवाति जहा अबे, एवं दो तिमि वारे, ताहे गंतूण डसति, हसित्ता सरति अवस्कमति मा मे उवरि पडिहिति, IPL काकवलशउपोषात तहविण मति, एवं तिमि वारे, ताहे पलोएतो अच्छति अमरिसेणं, तस्स तं रूबं पलोपंतस्स ताणि विसभरिताणि अच्छीणिली विज्झाताणि, सामिणो कति सोम्मत चदइट्टणं, ताहे सामिणा भणियं-उवसम भो चंडकोसिया उपसमित्ति, ताहे तस्स ईहापूह मग्गणगवेसणं करेंतस्स जातिस्सरणं समुप्पन, ताहे तिक्वत्तो आयाहिणपयाहिणं करेचा वंदति णमसति, णमंसेचा ताहे भ। ॥२७९॥ पच्चक्खाति, मणसा तित्थगरो जाणाति, ताहे सो बिले तोंड छोणं एवं ठिओ, माऽहं रुढो समाणो लोग मारह, सामी ४ तत्थ अणुकंपणहाए अच्छति , तं सामी दळूण गोपालगयच्छवालगा अल्लियंति, रुक्खेहिं आवरेता अप्पाणं पाहाणे खिवंति, ण चलंतित्ति अल्लीणा, रुदेहि घट्टितो तहवि ण फंदति, तेहिं लोगस्स सिट्ठ, ताहे लोगो आगंतु सामि बंदित्ता तंपि सप्प बंदति महं च करेवि, अनाओ य घयविक्किणियातो तं सप्पं घतेण मस्खंति, फरुसोति सो पिपीलियाहिं महितो, तं वेवणं सम्म अहियासेति, अबमासस्स कालगतो सहस्सारे उववो । उतरवाचाला णागसण स्वीरेण भाषणं दिव्या । सेयवियाए पएसी पंच रहे णेज्जरायाणी ।। ४-१९२४७२॥ पच्छा सामी उत्तरवाचालं गतो, तस्थ परखखमणपारणए अतिगतो, तत्थ णागसेणेण गाहावतिणा खीरभोयणेण पडिला-18 दामितो, तत्थ पंच दिम्माणि । पच्छा सेयांवयं गतो, तत्थ पएसी राया समणोचासए, सो महेति सकारेति, ततो सुरमिपुर नवति, कलकर दीप अनुक्रम [291] Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७२/४६८], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 कंबलशबलो च प्रत सत्राक + श्री तत्थ अंतराए ज्जगा रायाणो पंचाह रहेहिं ऐति पएसिस्स रनो पास, तेहिं तत्थ गतेहिं सामी पूतितो य वंदितो य । ततो सुर- आवश्यकाल भिपुरं गतो, तत्थ गंगा उत्तरियब्बिया, तत्थ सिद्धजत्तो णाम णाविओ, खमिलो नेमित्तियो, तत्थ य णाचाए लोगो बिलग्गति, चूणा तत्थ य कोसिएण महासउणेण वासित, तत्थ सो नेमितिओ वागरेति-जारिस सउणण भणिय तारिस अम्हेहि मारणतियं पावि हायव्वं, किं पुण, इमस्स महरिसिस्स पभावेण मुच्चीहामो, सा य णावा पहाविता, एत्वंतरा सुदाढेण णागकुमारणाभोइतं, तेण नियुक्ती | दिडो सामी, तं वेरै सरित्ता कोवो जातो, सो य किर सीहो वासुदेवत्तणे मारितेल्लओ, सो त संसारं चिरं ममित्ता सुदाढो णागो ॥२८॥ जातो, सो संवहगवातं विउवित्ता णावं उब्बोले इच्छति । इतो य कंबलसंबला दो णागकुमारा तं आभोएंति, का पुण कंबल संबलाणं उप्पत्ती मथुरा णगरी, तत्थ जिणदासो सड्डो साधुदासी साविगा, दोऽवि अभिगताणि परिमाणकडाणि, तेहिं चउप्पतस्स पच्चरखाणं गहित, दिवसदेवसिय गोरस गेण्हंति, तत्थ य एगा आमीरी गोरस गहाय आगता, तत्थ सा ताए साविया भमति-मा तुर्म | अनत्थ भमाहि, णिच्चं तुम इह एज्जासि, जत्तियं तुम आणेसि तत्तिय अहं गेण्हामि, एवं तासि संगतं जातं, इमावि से गंधपुडियाई देति, इमावि कुतियाओ दुई दहि वा देति, एवं तासि दढं सोहियं जाय। अन्नया तार्सि गोवाण विवाहो जाओ. ताहे आभीरी ताणि निमंतेइ, ताणि भणंति-अम्हे वाउलाणि न तरामो गंतुं, जं तत्थ भोयणे उवउज्जति कहहुंडाइ वत्थाणि वा आभरणाणि वा बहुवरस्स तेसि दिमाई, तेहिं अईव सोमाविय, लोगेण य सलाहियाणि, तेहिं तुद्धेहिं दो तिवरिसा गोणपोतलगा हदुसरीरा उब- राणीता कंबलसंबलति णामेणं, ताणि नेच्छति, इतराणि बला बंधिऊण गताणि, ताहे तेण सावएण चिंतियं-जा मुच्चीहिति ताहे + दीप अनुक्रम CARE I २८०|| [292] Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं H मूलं - /गाथा-, नियुक्ति: [४७२/४६८], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम श्री लोगो वाहेहिति, एत्थ चेव अच्छंतु, ताहे से फासुगा चारी किणिऊण दिज्जति, एवं पोसेति, सो य सावतो अवभिचाउइसी पुष्यसामुआवश्यक उपवास करेति, पोत्थय च वाएति, तेचि तं सोऊण भया जाता, उपसंता संता समिणो जदिवसं सावओं म जेमेति तदिवस | तेवि ण चरंति, तस्स सावगस्स भावो जातो, जहा इमे भविया उवसंता, अन्भहितो हो जातो, ते रूवस्सियो, तस्स यतावास मिचो, तत्थ मंडीरवडजत्ता, वारिसा गस्थि अन्नस्स बइल्ला, ताहे तेण ते भंडीए जोतेत्ता पीया अणापुच्छाए, तस्य अमेणावि जाइज्जंता तस्स दिना, ताहे ते छिन्ना आणेउ बद्धा, तत्थ ते णवि चरति णवि पाणितं पिबंति, जाहे सञ्चहा ण इच्छति ताहे ? ॥२८॥ सो सावतो तेसिं भत्तं पच्चक्खाति णमोकार च से देति, ते कालमासे कालं किच्चा णागकुमारेसु उववन्ना, ओधि पउंति जाप पेच्छंति तित्थगरस्स उबसग्ग, अलाहि ताण अनेणं, सामी मोएमोति आगता, एगेण णावा गहिता, एगो मुदाढेण समं जुमति, सो महिद्धीओ, तस्स पुण चयणकालो, इमे य अहुणोववनगा, सो तेहि पराजितो, ताहे ते नागकुमारा तित्थकरमहिम करेंति, दास रूवं च गायति, एवं लोगोऽपि । ततो सामीवि उत्तियो, तत्थ तेहिं देवेहि सुरभिवास वुटुं, तेवि पडिगता, एस्थ गाहाओ-18 सुरभिपुर सिद्धदत्तो गंगा कोसी विद य खेमिलओ। णाग सुदाढे सीहे कंबलसबला य जिणमहिमा ।४-१२।७३ मधुराए जिणयासो आहीर विवाह गीण उववास | भंडीर मित्त पंधे भत्ते णागोहि आगमणं ॥४-१३।४७४ा । परिवरस्स भगवतो णावारूढस्स कासि उवसग । मिच्छादिहि परद्धं कंबलसबला समुत्तारे ।। ४-१४०४७५॥ ॥२८१॥ ततो भगवं उदगतीराए पडिकमित्तु पत्थिओ, गंगामड्डियाए य तेण मधुसित्थेण लक्खणा दीसति, तत्थ पूसो णाम सामुदो । ALSEXGAR [293] Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७३/४७५/४६९-४७१], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत मत्राक सो ताणि सोचिते लक्खणाणि पासति, ताहे-एस चकवट्टी एगागी गतो वच्चामिणं वागरेमि तो मम एत्तो भोगवत्ती भविस्सति,8/गोशालकआवश्यक सेवामिण कुमारत्ते, सामावि धुणागसनिवसस्स बाहि पडिम ठितो, तत्थ सो त पडिम ठितं तित्वगरं पेच्छति, ताहे तस्स चित्रं चूौं Pाजात-अहो इमं मए पलाल अहिज्जितं, इमेहि लक्खणेहिं एतेण समणएण ण होयव्वं, अलाहि, जहा सामि एतं होतु एत्तिये ।। उपोद्घात नियुक्ती इतो य सक्को देवराया पलाएति अज्ज कहिं सामी', ताहे पेच्छति तित्थंकर, तं च पूस, तत्थ आगतो, सामी बंदिचा भणति & सो पूस-तुम लक्षण ण जाणसि, एसो अपरिमितलक्षणो, ताहे सक्को अम्भितरलक्खणं वति, गोक्खीरगौररुहिरं प्रशस्तै ०,सत्थं ॥२८॥ ण होति अलियं, एस धम्मवरचाउरतचक्कबकी देवदेवेहिं पूज्जिहिति । ततो सामी रायगिहं गतो, तत्थ णालंदाए बाहिरियाए तंतुवालयसालाए एगदससि अहापटिरूवं उग्गई अणुभवेत्ता पढमं मासक्खमणं विहरति, एत्थंतरा मंखली एति । तस्स उप्पत्ती तेणं कालणं तेणं समएणं मंखली णाम मखे, तस्स भहा भारिया गुश्विणी, सरवणे संनिवेसे गोपालस्स गोसालाए परता दारगं, तस्स गो नाम कयं गोसालोनि, संवद्धति मखसिष्प अहिज्जति, अहिज्जित्ता चित्तफलग कारेति, कारता सो एगल्लतो विहरंतोरायगिहतंतुवायसालाए द्वितो । जत्थ सामी ठिओ तत्थ एगदेसमि वासावास उवगतो, भगवं मासखमणपारणए अम्भितरियाए विजयस्स घरे विपुलाए भोयणविहीए पडिलाभितो, तत्थ पंच दिवाणि, भणति य वंदित्ता-अहं तुम्भ सीसाोति, सार्मा तुसिणीओ णिग्गतो, रितियं मासक्खमणं ठितो, वितियपारणए आणंदस्स घरे खज्जगविधीए, ततिए सुदंसणस्स घरे सबकामगुणिएणन्ति, भगवं चउत्थं मासक्षमणं उपसंपन्जिचाणं विहरति । गोसालोय कात्यपुण्णिमाए दिवसओ पुच्छति-'किमहं अज्ज भत्तं लभेज्ज'चि, सिद्धत्येण भणित-कोद्दवविलसित्थाणि कूडगरूवर्ग च दक्षिण, ताहे सो सव्वादरेण हिंति, एवं तेण मंडीसुणएण जहा ण दीप अनुक्रम IP॥२८॥ [294] Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७३/४७५/४६९-४७१], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्रीम प्रत स्थापमान सत्राक बावश्यक कहिंदि संभाइयं, ताहे अवरहे एगेण से कम्मारपण दिलं, ताहे जिमितो, रूवओ य से दक्षिणं दिनो, तेण परिक्खावितो जावIKI जावादबोचालक वों कूडओ, ताहे भणति-'जण जहा भवियव ण तं भवद अबहा' लज्जिो आगतो । चउत्थे मासरखमणे भगवं जालंदाओ निग्गतो उपोदमानकोलाग गतो । तत्थ बहुलो माहणो माहणे मोजावेति, भगवं च अणेण मधुघयसंजुत्तेण परमश्रेण पडिलामितो, पंच दिब्बाई,IX नियुक्ती | गोसालोऽपि तवायसालाए सामि अपेच्छमाणो अम्भितरबाहिरं ग पेच्छति, ताहे जहेव पण्णत्तीए जाब दिडो, ताहे सामी तेण समं वासावगमाओ सुवभखलयं वञ्चति, तत्थंतरा गोवालगा वयाहिंतो खीरं गहाय महालीए थालीए णवएहिं चाउलेहि ॥२८॥ पायस उवक्खडेंति, ताहे गोसालो मणति-एह एत्य अंजामो, ताहे सिद्धत्यो भणति-एस निम्माणं चेव ण गच्छति, एस उरु-14 मज्जिहिति, ताहे सो असदहतो ते गोवए भणइ-एस देवज्जतो तीताणागवजापातो भणति-एस थाली भज्जिहिति, तो पयरेण सारचेह, ताहे पयतं करेंति, सविदलेहिय थाली बद्धा, तेहिं अतिवहया तंदुला छुढा, सा फुटा, पच्छा गोवा जे जेण कमलं ट्रासाइत सो तस्थ चेव पजिमितो, तेण व लई, वाहे सुट्टतरं नियती गहिता । एत्थ गाहाओ--- धूणाए बहिं पूसो लक्खण अभितरे प देविंदो । रायगिह तंतुसाला मासक्खमणं च गोसाले ॥४-१५/४७२॥ मंखलि मंख सुभरा सरवण गोषहुलमेव गोसालो । विजया मंद सुगंदे भोयण खज्जे प कामगुणे ॥४-१६/४७३PIReam कोलाए बहुल पापस दिल्या गोसाल बडु बाहिं तु । सुवनखलए पस्सा पाली णिपतीप गमणं च ॥४-१७४७४ वाहे सामी भणागाम पचो, तत्व णदो उवर्णदो य दोषि मातरो, गामस्स दो पाडगा, तत्थ एगस्स एगो इतरस्सवि एगो, दीप अनुक्रम [295] Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] भाष्यं [ ११४... ] मूल [- /गाथा ], निर्युक्तिः [४७२/४७४/४७२-४७४], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥२८४॥ तत्थ सामी दस्स पाडगं पविट्टो गंदघरं च तत्थ दवि दोसीगेण य पडिलाभितो णंदेण, गोसालो उचणंदस्स, तेण उवणंदेण संदि देह भिक्खचि, तत्थ अदेसकाले सीतकुरो णिणितो, सो तं ण इच्छति, पच्छा सा दासी उवणंदेण भणिता, जहा- एयस्स चैव उवरिं छुमह, छूटो, सो अप्पत्तिएण भणति-जदि मम धम्मायरियस्स अस्थि तवो वा तेओ वा तो एयस्स घरं इज्झतु, तत्थ अहासंनिहि5 एहिं चाणमंतेरेहिं मा भगवतो अलियं भवतुति तं घरं दङ्कं ततो सामी णिग्गतो चंपं गतो, तत्थ वासावासं ठाति । तत्थ दुमासक्खमणेण ठाति, चचारिवि मासे विचित्तं तवोकम्मं ठाणादिए पडिमं ठाइ, ठाणुक्कुडए एवमादीणि करेति । तत्थ चचारि मासे वसित्ता जं चरिमं दोमासियापारणयं तं बाहिं पाति, एत्थ- भण गाये णंदोवद तेण उवणंद ध पविहे । चंपा दुमासखमणे वासावासं मुणी खमति ।। ४-१८।४७५।। ताहे कालायं णाम संनिवेसं तत्थ वच्चति, गोसालेण समं भगवं सुन्नधरे पडिमं ठितो, गोसालो तितस्स दारयहे ठित्तो, तस्थ सीहो णाम गामउडपुतो विज्जुमतियाए गोट्टिदासियाए समं तं चैव सुन्नधरं पविट्ठो, तत्थ तेण भन्नति- जइ एत्थ कोति समणो वा बंभणो वा पट्टितो वा सो साइतु जा अन्मत्थ बच्चामो, सामी तुम्हिको अच्छति, इतरोऽवि तुण्डिक्को, ताहे ताणि तत्थ अच्छित्ता मिग्गताणि, णिताण मोसालेण सा महिला छिक्का, सा भणति एत्थ एस कोति, तेण अतिगंतूण पिट्टितो, एस वृत्तो- अहो हे अणायारं करेंताणि दिट्ठाणि, ताहे सामि भगति अहं एकलओ पिट्टिज्जामि, तुम्मे ण वारेह, सिद्धत्यो भणति कीस सीलं ण रक्खसि १, किं अम्देऽवि पिट्टिज्जामो १, कीस वा अणंतो ण अच्छसि ?, तो दारे ठितओ बार्दि, ततो निम्तो सामी पचकालयं [296] सिंहस्कंदकृतो गोशालबधः ॥२८४ ॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७६/४७६], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणों HEIGE नाम मामो तत्थ गतो, तत्थवि तहेव सुनपरे ठितो, गोसालो तेण भएण तदिवसं कोणे ठितो, तत्थ खदो णाम गामउंडाचोरानिचन्द्र आवश्यकता अप्पणिज्जियाए दासीए दंतिल्लियाए समं महिलाए लज्जतो तमेव सुभघरं गतो, तेहिवि तहेव पुच्छिय, तहेच तुहिका अच्छति जाहे ताणि णिग्गच्छति ताहे गोसालेण हसितं, ताहे सो पुणोऽवि पिट्टितो, ताहे सो सामि खिसति-अम्हे हम्मामो तुम्मेप्रषि नियतीलण वारेह, किं अम्हे तुम्भे ओलग्गामो ?, ताहे सिद्धत्यो भणति-तुम अप्पदोसेण हैमसि, कीस पुण तुंड ण रक्खसि । एत्थ॥२८५॥ कालाते सुन्नगारे सीहो विज्जुमती गोविदासी य । खंदो दित्तिलियाए पत्तालयसुन्नगारंमि ॥ ४॥ १९॥४७६ - ततो कुमारायं संनिवेस गता, तस्स पहिया चपरमणिज्ज णाम उज्जाणं, तत्थ भगवं पडिम ठितो, तत्स्थ कुमाराए पनिवेसे वणओ णाम कुंभकारी, तस्स कुंमारावणे पासावच्चिज्जा मुणिचंदा णाम थेरा बहुसुता बहुपरिवारा, ते तत्थ परिवसति, ते यर | जिणकप्पपरिकम्म करेंति सीसं गच्छे ठवेत्ता, ते सत्तभावणाए अप्पाणं भावेति 'तवेण सत्तेण मुत्तेण, एगत्तेण पलेग य । तुलणा पंचहा चुत्ता, जिणकप्पं पडिवज्जतो ॥१॥ एताओ भावणाओ, ते पुण सत्तभावनाए भाति, 'पढमा उवसंगमि वित्तिया बाहिं | ततिया चतुकम्मी । मुनघरंमि चउत्थी तह पंचमिया मसाणामि ॥१॥ सो य वितियाए भावेति । गोसालो य भगवं भणति-12 ।'एह देसकालो हिंडामो' सिद्धत्यो भणति-अज्ज अहं अंतरं, सो हिंडतो ते पासापश्चिज्जे धेरे पेच्छति, भणति-के तुम्भे, ते भणति-समणा णिग्गथा, सो भणति-अहो निग्गंधा, इमो मे एरिओ गयो, कहिं तुम्भे निग्गंथा?, सो अप्पणो आयरियं क्मेति, |॥२८५॥ २८ नाएरिसो महप्पा, तुमेस्थ के ?, ताहे तेहि ममति-जारिसओ तुम तारिसओ धम्मायरिओऽपि सयंगिहीतलिंगो, ताहे सो रुट्ठो, मम || दीप अनुक्रम । [297] Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७६/४७६], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत INदारस्थ. चूणों नियुक्तो । धम्मायरियं सवधति, ताहे भणति जति मम धम्मायरियस्स तबो वा तेयो वा अस्थि तो तुम्भं पडिस्सतो डउचि, तेहिं भणित-18 निचंद आवश्यक ण तुज्य मणितण अम्हे उज्झामो, ताहे सो गतो सामिस्स साइति-अज्ज मए सारंभा सपरिग्गहा दिवा, ते भणति-जारिसोतं सर्व साहति, ताहे सिद्धत्थेण भणितो ते पासावञ्चिज्जा थेरा साधू , ण तेर्सि पडिस्सतो डझति, ताहे रची जाता, ते भूणिचंदा उपोदधानाडू विरावास: आयरिया चाहिं पडिम ठिता, सोवि कूवणओ तदिवस सेणीभत्ते पण चियाले एति मत्तल्लो जाव पासति ते मुणिचंदायरिते, सो चिंतति-एसो चोरोत्ति, ते य तेण गलए गहिता, ते निरुस्सासा कता, णय झाणाओ कंपिता, केवलनाण उप्पन, आउंच, ॥२८६॥ निद्रिय, सिद्धो, तत्थ अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहि महिमा कता, ताहे गोसालो बाहि ठितो पेच्छति देवे उप्पर्यते य निव यन्ते य, सो जाणति-एस सो परिस्सतो डझति, सामिस्स साहति-भगवं तेर्सि पडिणीयाण घर डज्झति, सिद्धत्थो भणतिन तेसि | पडिस्सओ डमति, देसि आयरियस्स केवलणाणं उप्पर्म, सो य सिद्धिं गतो, तस्स देवा महिम करेंति, ताहे सो चिंतेति-जामि है। पेच्छामि जाव सो ते पदेस गवो ताव देवा महिम काऊण गता, ताहे तस्स तं गंधोदकं पुप्फवासं च दट्टण अन्भधियं हरिसोर जातो, ते सीसे उबवेति-अरे तुम्मेण किंचि जाणह, एरिसमा चेव बोहा हिंडह. उड्डेह, आयरियपि कालगतं ण जाणह, सब INI रचि सुबह, ताहे ते जाणति-एस सच्चयं चव पिसाओ, रतिपि हिंडति, ताहे तस्स सदेण पुणो उडिता गता य आयरियसगास, जाव* | पेच्छंति कालगतं नाहे ते अद्धिति करेंति-अम्हेहि ण णाया आयरिया कालं करेंता, सोऽपि चमढेचा गतो, ताहे सामी ततो चोरा-121 1॥२८६॥ गतापवस गता, तत्थ चारियचिकाऊण ओउंपालगं अगडे पज्जिजति, पुणो य उचारिजात, तत्थ वाव पढम गोसाला, सामील णताच, तत्थ य सोमाजयंतीओ उप्पलस्स भगिणीओ पासावच्चिज्जाओ दो परिव्वाइयातो ण तरंति पन्चज्ज काऊण ताहे परि दीप अनुक्रम SUBTERRORISRO [298] Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७७/४७७], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत गर्भपाक दीप अनुक्रम बावस्यका लम्बाइयत्तं करेति, ताहे सुतं-केवि दो जणा आँचालए पज्जिति, ताओ पुण जाणति-जहा चरिमतित्थयरो पचतितो, तो वाओ नैमित्तिकची सत्य गताओ जाव पेच्छति, ताहि मोइओ, ते य ओसिया-अहो विस्सिउकामस्थ, तेहि भएण खमिता, महितो य, एत्व- कृता उपोवपाला मुणिचंदो कुमाराए कुषणय चंपरमणिज्ज उज्जाणे । चोराग चारि अगडे सोम जयंती उषसमंती ॥४-२०१४७७॥ नियुक्ती दानावस्था ततो भगवं पिढीचं गतो, तत्थ वासाचासं पज्जोसवेइ, चाउम्मासियखमणं च वयं विचितं पडिमादीहिं. बाहिं पारेता कतंगलं ॥२८७॥ गतो, तत्थ दरिदथरा णाम पासंडस्था सारंभा समहिला, ताण वाडगस्स मज्झ देउलं, तत्थ सामी पडिमं ठितो, तदिवसं न सफसितं सीतं पडति, ताणं च तदिवस जागरओ, ते समहिला जागरओ गायति । तत्थ गोसालो भणति-एसोऽवि णाम पासंडो भवति सारंभो समाहिलो य, सवाणि य एगडणि गायति य, ताहे सो तेहि पाहि णिच्छूढो, सो तहिं माहमासे तेण सीतेण सतुसारण संकुचितो अच्छति, तत्थ तेहिं अणुकंपतेहि पुणोवि अतिणीतिए अनींह, एवं तिनि वारे निच्छूढो अतिणीतो य, पुणो भणति-जदि अम्हे फुर्ड भणामो तोवि णिच्छुम्मामो, तत्थ अमेहि मणितं-एस देवज्जगस्स कोऽवि पेढियावाहो छत्तधारो वा असि, तुहिका अच्छह, | सवाउज्जाणि खडखडावेह जह से सहोवि ण सुब्बति । एत्थपिट्टीचंपा वासंतस्थ सुणी चाउमास खमणेणं । कयगलदेउलवासं दरिदधेरा य गोसालो ॥ ४-२११४७८॥ R॥२७॥ पच्छा पभाए सामी सावरिय गावो, तस्थ सामी बाहिं पडिम ठितो, तत्थ सो पुच्छति-भगवं!, तुम अतीही, सिद्धत्यो मणति-10 अज्ज अम्ह अंतर, सो भणति-अज्ज अहं किं आहार भीहामि , ताहे सिद्धत्यो भणति-अज्ज तुमए माणुसमांस खाइययंति, RESS [299] Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७८/४७८], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | प्रत सत्राक दीप अनुक्रम ठासो भणति- अज्ज जमेमि जत्थ मंससभयो णत्थि, किमंग पुण माणुसमौ १. सो पहिडितो. वस्थ सावत्थीए पितदन्तो वामनाचटवासादि आवश्यक 18 गाहावती, तस्स सिरिभदा णाम भज्जा, सा य शिंदू, सा अन्नया कयाई सिवदत्तं नेमिीत्तयं पुच्छति-किह मम पुत्तो होज्जा?, सो उपोदयात भणति-जो सुतवस्सी तस्स तं गम्भ ससोणितं संधिऊण पायसं करेत्ता ताहे देह, णिग्गंधस्स य देह, तस्स व परस्स अन्नसामुही दारं I नियुक्ती करेज्जासि, मा सो जाणिचा डहिहित्ति, एवं ते थिरा पया भविस्सति, ताए य तहा कतं, सो हिंडन्तो त घर पविट्ठो, सो या | से पायसो घयमधुसंजुचो दिनो, नेण चितित-एत्थ कओ मंसति , ताहे तुट्टेण भुत्तं, ताहे गंतूण भणति-चिरं ते निमिक्तकरण ॥२८८॥ करेंतस्स अज्ज सि णवरि फिीडतो, सिद्धत्यो भणति ण विसंवदान, जदिन पत्तियसि तो वमेहि, तेण वंत, जाव दिट्ठा पक्खा | वाला य विकुच्चियए य अवयवा, ताहे सो रुट्ठो तं घरे गंतुं मग्गति, तेहिवि तं वारं ओहाडियर्ग, तेण ण जाणति, आधारीयो करेति, जाहे ण लभति ताहे भणइ-जदि मम धम्मायरियस्स तवो तेयो वा अस्थि तो डज्झतु, ताहे सव्वा वाहिरिया डङ्गा बहे | सामी हलेदूता णाम गामो तं गतो, तत्थ महतिमहप्पमाणो हलेदुगरुक्खो, तत्थ सावत्थीओ णगरीओ अषो लोगो एंतो तस्य वसति सत्थनिवेसो, तत्थ सामी पडिम ठितो, तेहिं सस्थिरहिं र िसीयकाले अग्गी जालिओ, ते पभाए सते उता मया, सो अग्गी तेहिं न बिजाविजओ, सो उहतो २ सामिस्स पास गती, सो भगवं परितावेति, गोसालो भणति-भगवं वासह नासह का अग्मी एइ. सामिस्स पादा रना, गोसालो गट्ठो । एत्थ LHRCGN सावत्धी सिरिभद्दा जिंद भोयण पिउदत्त तहप सिवदत्ते । SCHAUXERICSERESG [300] Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४७९/४७९], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप अनुक्रम दारअगणी णववाले हलिदु पडिमा अगणी बहिया ।। ४-२२१४०९।। चेटत्रासादि आवश्यक ततो गंगला गाम गामो, तत्थ गतो, सामी वासुदेवघरे पडिम ठितो, सोवि ठितो, तत्थ चेडरूवाणि खालंति, सो या उपोषात कंदप्पिओ, ताणि अच्छिकणिवाणियाएहिं बीहावेति, ताहे ताणि धावताणि पडंति, जाणूणि य छोडिजिंति, अप्येगतियाण 3I नियतीति खुखषगा हिज्जंति, पच्छा तेसि अम्मापियरो एंति, तेहि सो पिट्टिज्जति, अने भणति-एयस्स देवज्जगस्स एस पूण दासो व ठाति अप्पणो ठाणे, अने बारेति-अलाहि, देवज्जगस्स खमियब्ब, पच्छा सो भणति-अहं हमामि तुम्भ ण वारेह, ताहे सिद्धत्यो भवति-1 ॥२८॥ 13 तुम एकज्जो ण अच्छसि । ततो पच्छा आवचा जाम गामो, तत्थवि सामी पडिमं ठितो बलदेवस्स परे, तत्ववि पहं अवयातेतु दाबीहावेति, अविय पिडतिवि, ताकि चेहरूपाणि रुवताकि मायापितूर्ण साहेति, तेहि पवितो सुक्को य देवज्जगस्स गुणेणं, तस्थ पुणोऽवि भणति-तुम्मे ममं ण वारेह, सिद्धस्थो भणति-तुम एकज्जो ण ठासि, अन्ने भणीत-तेसिं चेडरूवाणं अम्मापितीहिं नजाति४. भट्टारगो, एतस्स दोसो जो ण चारेति, तेहिं बाहाहि गहितो, अच्छामोत्त, ताहे बलदेवरूपेण अहासाभिहिता देवता उद्धाहता, है ततो पायवाहिताणि सामि खामेति । एत्थ तत्तो पणंगलाए, डिंभ मुणी अच्छिकट्टणं चेव । आवत्ते मुहयासे, मुणिओत्ति य पाहि बलदेवो।। ४-२०४८०॥ II ततो पच्छा चोरायनाम सैनिवेसं गतो, तत्थ घडाभोज्यं तदिवस रज्मति य पच्चति य, सामी य एते परिम ठितो, सो ४ ॥२८९॥ भणति-अज्ज एत्थ चरियचं, ताहे सिद्धत्थो भणति-अज्ज अम्हे अच्छामो, सो तहिं उपद्दनिउडियाहिं पलोएति कैवलं देस INI [301] Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४८०/४८०], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत कालो भविस्सइत्ति , तत्थ चोरभयं, ताहे ते जाणंति एस पुणो पुणो पलाएति मन्ने एस चारितो होज्जा, ताहे सो तेहिं घेतूण चूर्णी शा * स्तिनो णिस₹ हम्मति, सामी पच्छचे अच्छति, ताहे सो भणति--जति मम धम्मायरियस्स अस्थि तवो तेती था तो सम्यो एस मंडवो || है। डज्झतु, ततो डडो । पच्छा ते लंबुगं गता, तत्थ दो पच्चंतिया भायरो मेहो य कालहत्थी य, सो कालहत्थी चोरेहिं समं उद्धाइओ, नियोकाइमे य दुयगे पेच्छति, ते भणंति के तुम्भे, सामी तुसिणीओ अच्छति, वे तत्थ हम्मति ण य साहतित्ति, तेण ते बंधिऊण 8 महल्लस्स भातुगस्स पेसिया, तेण जं चेव भगवं दिवो तं चैव उद्वेत्ता पूतितो खामितो य, तेण सामी कुंडग्गामे दिद्वेल्लओ, ततो ।।२९०॥ मुफो समाणो भगवं चितेति-बहु कम्म निज्जरयव्वं लाढाविसयं वच्चामि, ते अणारिया, तत्थ णिज्जरेमि, तत्थ भगवं अत्यारिय दिद्रुतं हिदए करति, ततो भगवं निग्गतो लाढाविसय पविट्ठो, कम्मनिज्जरातुरितो, तत्थ हीलणनिंदणाहिं बहुं निज्जरेति जहा संभचेरेसु, पच्छा ततो णीति, तत्थ पुत्रकलसा णाम अणारियगामो. तत्थंतरा दो तेणा लाढाविसयं पविसितुकामा, ते अवसउणो एतस्सेव वहाए भवतुचिकटु असि कटिऊणं सीसं छिंदामीत्ति पहाविता, ताहे सिद्धत्येण ते असी तेसिं चेत्र उपरि छुढो, तेर्सि सीसाणि छिन्त्राणि, अन्ने भणति-सक्केण ओहिणां आमोहचा दोऽवि बज्जेण हता। एवं विहरंता भदियं णगरी गता, तत्थ वासारते चाउम्मासखमणेण अच्छति, विचिन तबोकम्मं ठाणादीहिं । एत्थ गाथाओ चौरा मंडव भोज्ज गोसाले वहण तेय मामणया। मेहो य काल हत्थी कलंबुपाए य उवसम्गो ॥४-२४१४८०। ॥२९॥ HI लादेम व उवसग्गा घोरा पुन्नकलसा प दो तेणा । वजहया सकेणं भदिय वासासु चउमासो॥४-२५॥४८॥ 1555 दीप अनुक्रम % AND [302] Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४८०-४८१/४८१-४८२], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | B प्रत सत्राक ॥२९॥ आवश्यक वाहे बाहि पारेचा विरंतो कदलीनाम गामो, तत्थ सरदकाले अच्छारियमचाणि दविरेण णिस? दिति, तत्थ गोसालो अच्छारिवर्णीमणति-बच्चामो, ताहे सिद्धत्यो भणति--अम्हं अंतरं, सो तहिं गतो, भुजति लभति दधिकूर, सो य वडिफोडो ण चव धाति, तेहिश काभक्त उपोषावा मणित-चहूं भायणं करचेह, करवित, पच्छा ण णित्थरति, ताहे से उवरि छुळे, ताहे उकीलतो गच्छति । ततो भगवं जंबुसंड णाम नान्दषणाः गामं गतो, तत्थवि संमेल्लो, तहेव अच्छारियभत्त, तत्थ पुण खीरं कूर, तहिपि तहेव धरिसिओ जिमिओ य । एत्थकदलिसमागमभोयण मंखलि दचिकर भगवतो पडिमा । जंबूसंडे गोडिय भायण भगवतो पडिमा ॥४-२६१४८ ततो-तंबाए णंदिसेणो पहिमा आरक्षित हण भये डहणं । कृषिय चारिय मोक्खो विजयपगन्भाय पत्तेया॥४-२७।४८३४ तेणेहि पहे गहितो गोसालो मातुलोत्ति वाहणता | भगवं वेसालीए कम्मारघणेण देविंदो ॥ ४-२८१४८४॥ __ पच्छा तंचायं णाम गाम एति, तत्थ दिसेणा णाम थेरा बहुस्सुया बहुपरिवारा, ते तत्थ जिणकप्पस्स पडिकम्मं करेंति पासावच्चिज्जा, इमेवि बाहिं पडिम ठिता, गोसालो अतिगतो, तहेब पेच्छति पब्बतिते, सस्थ पुणो खिसति, ते आयरिया तदिवस | चउके पडिम ठायति, पच्छा तहि आरक्खियपुत्तेण हिडतणं चोरोचि भल्लएण आहतो, केवलणाण, सेस जहेच मुणिचंदस्स जाब गोसालो बोहेत्ता आगतो । ततो पच्छा कूविया णाम संनिवेसो, तत्थ गता, तेहिं चारियत्तिकाऊण घेप्पति, तस्थ बझति पिहि-IN ॥२९॥ ज्जंति य, तत्थ लोगसमल्लावो अपडिरूवो देवज्जतो रूबेण य जोवणण य चारिओत्ति गहिओ, तत्थ विजया पगब्भा य दोषि पासंतेवासिणीओ परिव्याहया सोऊण लोगस्स तित्वगरो इतो वच्चामो ता पुलएमो, को जाणति होज्जा, ताहि मोतितो, EXERRRRRRRRRRR१२ दीप अनुक्रम RACTRESS [303] Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 भाष्यं [ ११४... ] अध्ययनं [-] मूल [- / गाथा-], निर्युक्तिः [४८२-४८४/४८३-४८५ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूण उपोद्घातः ( नियुक्ती ॥२९२ ।। दुरप्पा ! ण जाणह चरिमतित्थकरं सिद्धत्थरायसुतं, अज्ज भे सको उबालभातीने ताहे मुका खामिया य । ततो मुका समाणा निर्माता, तस्थ बताण दुबे पंथा, ताहे गोमालो भवति तुम्मे ममं हम्ममाणं ण वारेह, अविय तुम्मेहिं समं बहूब अच अहं चैव पढमं हम्मामि, तो वरं एमल्लो विहरिस्सं, सिद्धस्थो भणति तुम जाणसि, ताहे सामी बेसालीमुखी पधावितो, इमो य भगवतो फिडितो एगल्लओ बच्चति, अंतरा य छिषद्वाणं, तत्थ चोरो रुक्खविलग्गो पलोएति, तेण दिडो, मणति एगो जमासमणओ एति, ते भगति--एसो ण बीभेति णत्थि हरियव्ययंति, अज्ज से णत्थि फेडओ, जं अम्हे परिभवति, आगतो पंचवि चोरसएहिं वाहितो मातुलोजिकाउं, पच्छा चिंतेति वरं सामिणा समं, अविय- कोति सामि मोएति, तस्स निस्साए मज्झचि मोषण भवति, ताहे सामि मग्गितुमारद्धो, सोऽवि ताव मग्गति । सामीवि बेसालिं गतो, तत्थ कम्मारसालाए अणुभवेत्ता पडिमं ठितो, सा साहारणा, जे साधीणा ते अणुभविता, अन्नदा तत्थ एगो कम्मारो छम्मासा परिभग्गतो, आढतो सोभणतिधिकरणे आयोज्जाणि गहाय आगतो, सामि च पडिमठितं पासति अमंगलंति सामि आहणामिति चम्मट्टेण पहावितो, सकेण ओही पडतो जाव पेच्छति, तहेब णिमिसंतरेण आगतो, सक्केण तस्स चैव उवरि घणो पावितो, तह चैत्र मतो | ताहे सको वंदित्ता गतो । गामाग विहेलगara तावसी उवसमावसाणधुती । छट्ठेण सालिमीसे विसृज्झमाणस्स लोगोधी ॥४-४८५।। २९ सामी गामायं संनिवेस एति तत्थ उज्जाणे विभलओ णाम जक्खो, सो भगवतो पडिमं ठितस्स पूयं करेति, ततो सामी सालिसीसयं णाम गामो तहिं गतो, तत्थ उज्जाणे पडिमं ठितो, माहमासो य वट्टति, तत्थ कडपूयणा वाणमंतरी सामी [304] पृथग्भावः वैशाल्यां स्थान ॥२९२ ॥ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४८५/४८६], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत आवश्यक चूर्णौ | सत्राक पाश्चात नियुक्ती ॥२९३॥ दीप अनुक्रम | दणं तेय असहमाणी पच्छा तावसरूवं विउवित्ता पक्कलनियत्था जडाभारेण य सव्वं सरीरं पाणिएण ओलेत्ता दहमि उवरि ठिता सामिस्स अंगाणि धुणति वायं च विउच्चति, जदि पागतो सो फुडितो होन्ती, सा य किल तिविठुकाले अतपुरिया आसिक ण य तदा पडियरियत्ति पदोसं वहति, तं दिव्वं वेयणं अहियासंतस्स भगवती ओही विगसिओ सब लोग पासितुमारो, सेस नोपसर्गः कालं गब्भातो आढवेत्ता जाव सालिसीस ताव सुरलोगप्पमाणो ओही एकारस य अंगा सुरलोगगप्पमाणमेचा, जावतिय देवलोगेसु । पेच्छिताइता । साचि बंतरी पराजिता संता ताव उबसंता पूर्य करेति । पुणरवि भदियणगरे तवं विचित्तं तु छट्ठवासमि । मगहाए निरुवसर्ग मुणि उबदमि विहारस्था॥ ४-४८६॥३० ____ततो भगवं भद्दियं नाम णगरि गओ, तत्थ छ8 वासावास उवगतं, तत्थ बरिसारने गोसालेण सम समागमो, छठे मासे भगवतो गोसालो मिलितो । तत्थ चतुमासखमणं, विचिचे य अभिग्गहे कुणति भगवं ठाणादीहि, बाहिं पारेता ततो पच्छा मग-18 हविसए विहरति निरुवसम्गं अट्ठमासे उदुबद्धिए।। आलभियाए वासं कंडग तब (हिं) देउले पराहुत्तो | महणदेउलसारिय मुहमले दोसचि मुणिसि ॥४-४८७॥३२ __एवं बिहारऊणं आलाभतं एति, तत्थ सत्तम वासावासं उवगतो चाउम्मासखमणण, ततो वाहिं पारेचा कंडगं नाम संनिवेसं तत्थ एति, तत्थ वासुदेवघरे सामी कोणे ठितो पडिम, गोसालोवि वासुदेवपडिमाए अधिट्ठाणं मुद्दे काउं ठितो, सो बासपडियरओ आगतो तं तहाठित पेच्छति, ताहे चितति--मा लोगो भणिही धम्मिओ रागद्दोसिओत्ति, गाम गंतूण कहेति-एह पेच्छद्द, मा भणिहिह राइतओति, ते आगता, ताहे दिट्ठो पिट्टितो, पच्छा णिवासिज्जति य, अने भणंति -एस पिसाओ, ताई मुको, ताहे निग्गया [305] Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४८७/४८८], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 चारकतया प्रत अहणं श्री समाणा मदणाणाम गामो, तत्थ बलदेवघरे सामी अंतो कोणे पडिम ठितो, सो गोसालो तस्स मुहे सागारित पदातुं ठिओ, आवश्यक स्थवि तहेव कहित, ततो व पिट्टिऊण मुणिउत्तिकाऊण मुको, मुणिो नाम पिसाओ । तत्थ सामीवि पिहिता, ताहे बलदेवप-14 चूणों डिमा णंगलं गहाय उडिता, ते भीया खामियं च ।। उपोद्घात बहुसालगसालवणे कडपूपण पडिम विग्घ सोवसमे । लोहग्गलमि चारिप जियसत्तू उप्पले मोक्यो ।।४-३२१४८९।०/नियुक्ती ततो निग्गता बहुसालग णाम गामो तत्थ गता, तत्थ बहिं सालवणं गाम उज्जाण, तत्थ ठितो, तत्थ य सालज्जा णाम ॥२९॥ वाणमंतरी, सा भगवतो पूर्ण करेति, एवं अम्हं, अनसि आदेसो-जहा सा कडपूयणा वाणमंतरी भगवतो पडिमागयस्स उक्सग्ग करेति, ताहे संता तंता पच्छा महिम करेति, ततो निग्गता गता लोहग्गलं रायहाणि, तत्थ जियसत्तू राया, सो य अन्नण राइणा |सम विरुद्धो, तस्स चारपुरिसेहि गहिता पुच्छिज्जता ण साहंति, तत्थ य चारियत्ति रमो अस्थाणीवरगतस्स उपहाविता, तत्थ | उप्पलो अडियग्गामतो, सो य पुण्यामेव अतिगतो, सो य ते आणिज्जते दट्टण उद्वितो तिक्खुत्तो वंदति, पच्छा सो भणति-ण ४ीएस चारितो, एस सिद्धस्थरायसुतो धम्मवरचकवडी, एस भगवं, लक्खणाणि से पेच्छह, तत्थ सकारेऊण मुको ।। तत्तो य पुरिमताले वग्गुरईसाण अच्चए महिमै । मल्लिजिणायणपडिमा [ ओण्णाए दंतुरगा] वंसकडगंसि बहुगोही ।। ४-३२४९० ॥ ततो पुरिमतालं एति, तत्थ वग्गुरो णाम सेड्डी, तस्स भद्दा भारिया वंझा अवियाउरी जाणुकोप्परमाता, यहूणि देवसतोवाइ-12 दीप अनुक्रम ॥२९॥ [306] Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] मूलं [- /गाथा -], निर्युक्ति: [४९०/४९०], भाष्यं [११४... ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र- [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोषात निर्युकौ ||२९५॥ याणि काउं परिसंता, अमया सगडमुहे उज्जाणियाएं गताणि, तत्थ पासति जुन्नदेउलं सडितपडितं, तत्थ मल्लिसामिणो पडिमा तं गर्मसंति, तेहिं भणितं जदि अम्ह दारओ वा दारिया वा पयाति ता एवं देउलं करेमो, एतन्भचाणि य होमो, एवं सिता गयाणि, तत्थ य अहासंनिहियाए वाणमंतरीदेवयाए पाडिहेरं कतं, आहूतो गन्भो, जं चेव आहूतो तं चैव देवडलं काउमारद्वाणि, अतीव पूर्ज तिसंस करेंति, पव्वइया य अलियंति एवं सो सावओ जातो । इतो व सामी विहरमाणो सगडमुहस्स उज्जाणस्स नगरस्स य अंतरा पडिमं ठितो तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया जहा अभिसंगे जाव जाणविमाणेणं सब्बिड्डीए सामी तिक्खुतो आयाणिपयाहिणं काऊणं बंदति णमंसति, णमंसित्ता जाब पंजलिकडे भगवतो चरितं आगातमाणे सामिमि दिनदिट्ठीए पज्जुवासेमाणे चिट्ठति, वग्गुरो य तं कालं पहातो ओलपडसाडओ सपरिजणो महता इड्डीए विविधकुसुमहत्थगतो तं आयतणमच्चतो जाति, तं च वितिवयमाणं ईसाणिंदो पासति भणति य-भो बम्गुरा ! तुम्भं पच्चक्खतित्थगरस्स महिमं ण करेसि, तो पडिमं अच्चता जासि, जा एस महतिमहावीरवद्धमाणसामी जगनाहेति लोगपूज्जेति, सो आगतो मिच्छादुकट काउं खामेति महिमं करेति । ततो सामी उष्णागं वच्चति, तत्थ अंतरा बघुवरं सपडित्तं एति, ताणि पुण दोषि विरुवाणि दंतिलगाणि य, तत्थ गोसालो भणति - अहो हमो सुसंजोगो, 'ततिल्लो पहराओ जाणति दूरेवि जो जहिं वसति । जं जस्म होति सरिसं तं तस्स चितिज्जयं देति ॥ १ ॥ जाहे ण ठाति ताहे ताहि पिट्टित्ता बद्धो, ताहे बंसीकुडंगे छूढो । तत्थ पडितो उत्ताणओ अच्छति, वाहरात य सामि, तत्थ सिद्धत्थो भणति -सतं कर्ड, तो वाहे सामि अदूरं तुं पडिच्छति, पच्छा ते भगति---णूणं एस एयस्स देवज्जगस्स पीढियाबाहो वा छत्तधरो वा आसि ओसट्टितो, तो णं मुण्ड, ततो मुको, अन्ने मणति-पहिएहिं ओतारिओ [307] पुरिमताले महिमा ॥२९५॥ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४९१/४९१], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | आवश्यकता प्रत सुत्रांक 8 सामि अच्छत दट्टणं । अनार्येगोभूमि वज्जलादेत्ति गोवकोहे य वंसि जिणुदसमो । रायगिह ऽट्ठमवासं भवज्जभूमी बहुवसग्गा ॥४-३४४९१ली बिहारः चूर्णी उपोद्घात ततो विहरतो सामी गोभूमी वच्चति, तत्थ अंतरा अडविषण, सदा गावीओ चरति तेण गोभूमी। तत्थ गोसालो गोवालए नियुक्ती भणति--अरे कज्जलाढा ! एस पंथो कहिं वच्चति ?, वज्जलाढा णाम मेकच्छा ( मेच्छा , ताहे ते गोवा भणति कीस अकोससि?,13 सो भणति-असुगए मुयपुत्ता सुटु अकोसामि, तुम्भे एरिसगा मेच्छा, ताहे तेहिं मिलित्ता पिट्टिऊण बंधित्ता वंसीसु छूढो, तत्थ ॥२९॥ अन्नेहिं पुणो मोइतो अणुकंपाए, ततो विहरता रायगिहं गता। तत्थ अट्ठमं वासारतं, चाउम्मासखमण, विचित्ते य अभिग्गहे, बाहि पारेचा सरदे समतीए दिद्रुत करेति, सामी चितेति-बहुं कर्म ण सका णिज्जरेउं, ताहे सतेमेव अथारियदिहतं पडिकप्पेति, जहा एगम्स कुईचियस्स साली जाता, ताहे सो कप्पडियपंथिए भणति-तुभ हिइच्छितं मनं देमि मम लुणह, पन्छा में जहामुहं बच्चह, एवं सो ओबातेण लुणावति, एवं चेव ममवि बहुं कर्म अच्छति, पतं तच्छारिएहि णिज्जरावेयव्वति य अणारियदेसेसु, ताहे लाढावज्जभूमि सुद्धभूमि च बच्चति, ते णिरणुकंपा णिया य, तत्थ विहरितो, तत्थ सो अणारिओ जणो हीलति निंदति ४ जह बंभचरेसु 'छच्छुकरति आसु समणं कुक्करा दसंतु' नि (८-८३ ) एवमादि, तदा य किर वासारतो, तमि जणवए केणइ दइवनिओगेण लेहट्ठो आसी यसहीवि न लभति । तन्य य छम्मामे अणिच्चजागारियं विहरनि । एम नवमो बासारनो। अणियतवास सिद्धत्वपुरं तिलथंबपुच्छ णिप्फती । उप्पाडेनि अणजो गोसालो बासबहुलाए ॥ ४-३५।४९२ दीप अनुक्रम ॥२९६॥ SCRE [308] Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४९२/४९२], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत सुत्रांक चूर्णी उपोद्घात । नियुक्ती दीप अनुक्रम ततो निग्गता पढमसरयदे, सिद्धत्थपुरं गता, सिद्धत्थपुराओ य कुंमागाम संपत्थिया, तत्थ अंतरा एगो तिलचमओ, तंटा तिलस्तंबः आवश्यक | दण गोसालो भणति-भगवं! एस तिलथंभओ कि निफज्जिहिति नवनि, सामी भणइ निष्फज्जिही, एते य सत्त पुष्पाजीवाशि वैश्याय| ओदाइत्ता एतस्सेव तिलथंभस्स एगाए सिंवलियाए पचायाहिति, तेण असदहतेण अवकमिचा सलेठुओ उप्पाडितो एगते य नोत्पत्तिः | एडिओ, अहासंनिहितेहि य देवहिं 'मा भगवं मिच्छावादी भवतुति वुटुं, आसत्थो बहुला य गाची आगता तेण य पएसेण. हवाए खुरेण निक्खतो, तो पहितो पुप्फा य पच्चायाता, ताहे कुंमागार्म संपता । तस्स चाहिं वेसियायणो बालतवस्सी आतावेति ॥२९॥ | तस्स. पूण वेसियायणस्स का उप्पत्ती। मगहा गोब्बरगामे गोसंखी वेसियाणपाणामा । कुंमग्गामाआवण गोसाले कोहण पउद्यो॥४-३६ । ४९३ ॥ ४| तेणं कालेण तेण समएणं चपाए गयरीए रायगिहस्स य अन्तरा गोबरगामो, तत्थ गोसंबी नाम कुटुंबिओ. जो तेसिआभीराण8 अधिवती, तस्स पंधुमती भज्जा अवियाइणी, इता य तस्स अदरसामंते गामो चोरेहिं हतो. ते हंतूण बंदिग्गहच काअण पधाहता, Pएगा य अचिरप्पड़ता पइंमि मारिते चंडण समं गहिता, सा तं चंडं छहाविता, सो घडो तेण गोसंखिणा गोरूवाण पतेण दिडो, | गहितो य, अप्पाणिज्जिताए महिलिताए दिनो, तत्थ य पगासितं, जहा मम महिलाए गूढो गम्भो आसी, तत्था छमलय मारेत्ताध लोहियगंध करेता प्रतियाणवत्धेण ठिता, सर्व ज इतिकायन्तं कीरति, सोषिताच एवं संवङ्गति सावि से माता चपाए विक्कीपा ॥२९॥ | वेसियाए थेरीए गहिया, एस ममं धूवत्ति, ताए जोगणियाणं उपयास तं सिक्खाविया, सा तत्थ णामनिग्गता मणिया जाता, सोय गोसखियपुचो तरुणो जातो, घयसगडेहिं चपं गतो, वयंसगा य से, सो तत्थ णागरं जणं पेच्छति जहिच्छियं अभिरमतं, तस्सचि CCCES [309] Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४९३/४९३], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री पतं प्रत आवश्यक चूर्णी उपाक्षात सुत्रांक नियुक्ती ना२९८॥ इच्छा जाता अर्हपि ताव रवामि, सो तत्थ गतो वेस, सस्थ सच्चेव से माता अभिरुतिवा, मोल्लं देति, बियाले कटुहंडेऊण अप्पाण वैश्यायनवच्चति, तत्थ तस्स बच्चतस्स अंतरा पाओ अमेज्मेण लिचो, सो जाणति इमो मम पादो ण णज्जति कईपि बुशे, तत्थंतरा एतस्स कुलदेवता, सा चिंतेइ-सा अकिञ्चमायरतु, बोहेमिति तत्थ गोट्ठए गार्षि सवच्छ विउब्वति, विगुरुब्बिऊण अच्छति, | ताहे सो तं पातं तस्स बच्छयस्स उवीर फुसति, ताहे सो वच्छतो भणति-एस ममं अंमो मीढलेलयं पादं उचरिं फुसति, ताहे सा गावी माणुसियाए वायाए भणति-किं तुम पुत्ला ! अद्धिति करेसि', एसो य अज्ज मायाए समं वासं गच्छति, तं एस एरिसर्य अकिच्चं ववसति, अत्रं किल काहिति, ताहे तं सोऊणं तस्स चिंता जाता, भणति-गतो पुच्छीहामि, ताहे पविडो पुच्छति-का तुज्म उप्पची, ताहे भणति-किं तुज्य उप्पत्तीए , सा महिलाभावं दाएति, ताहे सो भणति-अपि एचियं चेच मोल्लं देमि | साह सम्भावं, तीए सवहसाविताए सवं सिहूं, ताहे सो निम्गतो, सग्गामं गतो, अम्मापितरो पुच्छति, ताणि ण साहति, ताहे सो ताव अणसितो ठितो जाव से कहितं, ताहे सो तं मात वेसाओ मोएत्ता पच्छा विरागं गतो, एतावत्था विसयचि पाणामाए पव्वज्जाए पब्वइओ एसा उप्पत्ती॥ सोय विहरतो तकालं कुम्मम्गामे आतावेति, तस्स छप्पदीओ जडाहिंतो आइच्चताविता पडंति, जीवहियाए पडियाओ सीसे छुमति, तै पोसालो दट्टण ओसरिता तत्थ गतो भणति-किं भवं मुणी मुणितो उयाहु जया-IMIR९८॥ | सेज्जातरो ?, कोऽर्थः -'मन ज्ञाने ज्ञात्वा प्रबजितो नेति, अया कि इत्थी पुरिसे , एकसिं दो तिमि वारे, ताहे वेसियायणो | रुडो तेयं निसिरीत, ताहे सामिणा तम्स अणुकंपट्टाए वेसियायणस्स उसिणतेयपडिसाहरणहाए एत्वंतरा सीतलिता लेस्सा णिसि| रिया, सा जंबुद्दीव बाहिरओ बेटेति उसिणा तेयलस्सा, भगवतो सीतलिता तेयल्लेसा अम्भतरओ वेदेति, इतरा तं परिचयंति सा तत्व दीप अनुक्रम ॐx [310] Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४९३/४९३], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सुत्रांक दीप अनुक्रम सीतलाए विज्सविता, ताहे सो मगवतो लद्धिं पासिचा भणति-से गतमेतं भगवं ! गतमेतं भगवं, ण जाणामि जहा तुम्मं सीसो, वेश्याय आवस्यका चुणों खमह, ताहे गोसालो पुच्छति-सामी ! किं एस जयासेज्जातरो पलवति ?, सामिणो कहितं-जहा पन्नत्तीए, ताहे भीतो पुण्डतिउपोत्यात भगवं ! किह सखित्तविउलतेयलेस्सो भवति, भगवं भणति-जे गोसाला! छटुंछ?ण अणिक्खित्तेण तवोकम्मेणं आयावेति, नियुक्ती पारणए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य वियडासएणं जावेति जाव छम्मासा, से णं संवित्तविउलतेयसैस्से भवतिति । अभदा सामी कुंमग्गामाओ सिद्धत्थपुरं संपस्थितो, पुणरवि तिलर्थमस्स अदूरसामंतण जाव चतिवयति ताहे पुच्छइ-भगवं ! जहा न निष्फ॥२९९॥ ण्णो, मगवता कहित-जहा निष्फष्णो, तं एवं वणफडण पउपरिहारो, पउटपरिहारो नाम परावर्त्य परावर्त्य तस्मिन्नेव सरीरके | उववज्जति तं, सो असदहतो गतूर्ण तिलसेंगलियं हत्थे पप्फोडेता ते तिले गणेमाणो भवति-एवं सम्पजीवावि पयोपरिहारंति, णितितवाद धणितमवलबिचात करोत जे भगवता उवदिद्वै, जहा संखितविपुलतेयलेस्सो भवति । वाहे सो सामिस्स मूलाओ ओफ्फिडो सावत्थीए कुंभगारसालाए ठितो, तेयनिसग्गं आआवेति, छहिं मासेहि संखित्तीवपुलतमलेस्सो जातो, कूपडे दासीए विधा-3 IPसितो, पच्छ। छहिसाचरा आगता, ताहे निमित्तउल्ोत्रो से कहितो, एवं सो अजियो जिणपलावी विहरति । एसा से अवस्था । बेमालाए पतिम डिंभमुणिओत्ति तत्थ गणराया। पूरति संखणामी चित्तीणावाए भगिणिसुतो ४-३७१४९४ भगवंपि सालि णगरि संपत्तो, तत्थ संखो णाम गणराया. सिद्धत्थरो मित्तो, सो तं पूजेति, पच्छा वाणियग्गामं पधावितो, तत्थंतरा गडइता णदी, तं सामी गावाए उत्तिओ, ते पाविया सामि भणति-देहि मोल्लं, एवं वादंति, तत्थ संखरनो भाइणेज्जो X ॥२९॥ चित्तो णाम दाकाए गएल्लो पावाकडएण एति, ताहे तेण मोइतो महितो य । स [311] Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४९५/४९५], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम वाणियगामायावण आणंदो ओहि परिसहसहत्ति सावत्थीए वासं चित्ततयो साणुलट्ठि बहिं ॥ ४-३८०४९५ ॥ ॐ भद्राधाः आवश्यक | प्रातमा | ताहे वाणियग्गामं गतो, तस्स पाहिं पडिम ठितो, तत्थ आणंदो नाम समणोवासगो छदैछद्रेण आतावेति, तस्स य ओहि-18 बाण उप्पन, जाव तित्थगरं पेच्छति, तं बंदति णामसति, भणति य-अहो सामी परीसहा अधियासिज्जति, वागरेति य जहा उपाघातात एच्चिरेण कालेणं तुम केवलनाणं उप्पज्जिहिति पूजेति य । पच्छा सामी सावत्थि गतो, तत्थ दसमं वासार विचित्तं तवोकम्म ॥३०॥ ठाणादीहिं। पडिमा भद्दमहाभद्द सव्वतोभद पढमिया चउरो । अव य वीसाऽऽणंदे यहुलिय तह उज्झिति य दिव्वा ॥४-३९।४९६॥ ___ततो साणुलहितं णाम गामं गतो. तत्थ भई पडिम ठाति, केरिसिया भद्दा ', पृथ्वाहुत्तो दिवस अच्छति, पच्छा रचिं| दाहिणहुत्तो अवरेण दिवसं उचरेण रनिं, एवं छद्रेण भत्तेण णिहिता । तहवि ण चेव पारेति, अपारितो चेव महाभई ठाति, सा | पुण पुवाए दिसाए अहोरतं, एवं चउसुवि चत्तारि अहोरत्ता, एवं दसमेण णिहिता । ताहे अपारितो चेव सव्वतोभई पडिम ठाति, | सा पूण सव्वतोभद्दा इंदाए अहोरणे, पच्छा अग्गेयाए, एवं दसमुवि दिसासु सब्बासु, विमलाए जाई उडलोतियाणि दब्बाणि | वाणि शाति, तमाए हिडिल्लाई, चउरो दो दिवसा दो रातिओ, अह चत्तारि दिवसा चत्वारि रातीतो, वीसं दस दिवसा दस राईओ, ॥३००11 |एवं एसा दसहि दिवसेहिं बावीसइमेण णिहाति । पच्छा तासु सम्मत्चासु आणंदस्स गाहावतिस्स घरे बहुलियाए दासीए महाकणसिणीए भायणाणि खणीकरतीए दोसीर्ण छडेउकामाए सामी पविट्ठो, ताए भन्नति-किं भगवं ! एतेण अट्ठो, सामिणा पाणी ह [312] Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४९७/४९७], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 प्रत । चूणौं उपोद्घात सत्राक श्री पसारितो, ताए परमाए सद्धाए दिलं, पंच दिव्वाणि, मत्थओ धोओ, अदासीकता । आवश्यक दभूमी बहमेच्छा पेदालग्गाममागतो भगवं । पोलासचे इयंमी ठितेगराई महापडिम ॥ ४-४०१४९७ ।। II संगम ___ततो सामी दढभूमी गतो, तीसे बाहिं पेढालं नाम उज्जाणं, तत्थ पोलासं चेतिय, तत्थ अट्टमेणं भत्तण अप्पाणएण ईसिंप-18कोपसगो। नियुक्तौदभारगतेण, इसिपम्भारगती नाम ईसि ओणओ काओ, एगपोग्गलनिरुद्धदिही अणिमिसणयणो तत्थवि जे अचित्तपोग्गला तेसु दिहि | | निवेसेति, सचित्तेहिं दिट्ठी अप्पाइज्जति, जहा दुबाए, जहासंभवं सेसाणिवि भासियव्वाणि । अहापणिहितेहिं गत्तहिं सम्विदिएहि | ॥३०१॥ | गुचेहिं दोवि पादे साहटु बग्धारियपाणी एगराइयं महापडिमं ठितो। . | सको य देवराया सभागती भणति हरिसितो वयणं । तिन्निवि लोगऽसमस्या जिणवीरमणं चलेउं जे ॥४-४११४९८॥ सोहम्मकप्पवासी देवो सकस्स सो अमरिसेण | सामाणियसंगमओ येति सुरिंदै पडिणिविट्टो ॥४-४२२४९९।। 1। तेलोकं असमत्थंति वेहए तस्स चालण काउं । अज्जेव पासह इमं मम वसग भट्ठजोगतवं ।। ४-४३१५०० ।। अह आगतो तुरंतो देवो सक्कस्स सो अमरिसेण |कासी य य (ह) उवसग्गं मिच्छादिट्टी पडिनिविहो ।।४-४४४५०१॥ म तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविदे देवराया जहा अवहारे जाव बहहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिखुडे विहरति जाव ॥३०॥ सामि च तहागतं ओहिणा आभाएति, आभीएचा हडतुडचित्ते आणदिए जाव सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं बयासी णमो 151 दूत्वणं अरहताणं जाव सिद्धिगतिणामधेयं ठाणं संपत्ताण, णमोऽस्पुणं समणस्स भगवतो महतिमहावीरवद्धमाणसामिस्स गातकुलव AAAAAAAAS दीप अनुक्रम | संगम-कृत् उपसर्गस्य वर्णनं [313] Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-3 “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 1 अध्ययनं [-] भाष्यं [ ११४... ] मूल [- / गाथा-], निर्युक्तिः [४९८-५०१/४९८-५०१], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [४०],मूलसूत्र-[०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी उपोषात नियुक्तौ ॥३०२॥ रवडेंसयस्स तित्थगरस्स सहसंबुद्धस्स, पुरिसोत्तमस्स पुरिससीहस्स पुरिसवरपुंडरियस्स पुरिसवरगंधहत्थिस्स, अभयद्यस्स जान ठाणं संपावितुकामस्स, वृंदामि णं भगवंत तिलोगवीरं तत्थ गर्त इहगते, पास्तु मे भगवं तत्थ गए इहगवंतिकंड बंदति नम॑सति नर्मसित्ता जाव सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुद्दे संनिसने । तए णं से सके देविंदे सामिगुणातिसय अक्खिप्पमाणदिगए एवं उप्पनंदिजमा हियए० हियए संभंते जाब हरिसवसविसप्यमाणहियए धारायणीमसुरभिकुसुमचंचुमालइयऊसवियरोमकूबे वियसियवर कमलाणणवयणे बहवे सामाणियतायत्तिसगादयो देवा य देवीओ य आमंतता एवं वयासी-हं भो देवा ! समणे भगवं महाबीरे तिलोगमहावीरे निच्चं बोसडकाए चियत्तदेहे जे केति उवसग्गा समुप्पज्जति, तंजहा- दिव्या वा माणुस्सा वा तिरिक्सजोणिया वा पडिलोमा वा अणुलोमा वा, तत्थ पडिलोमा वासेण वा जाब काए आउडेज्जा, अणुलोमा वंदेज्ज जब पज्जुवासेज्ज वा, ते सव्वे सम्म सहति जाव अहियासेति । तए में से भगवं समणे इरियासमिते भासासमिते जाब पारिट्ठावणियास मिते | मणसमिए यतिसमिते कायसमिते मणगुचे वतिगुने कायगुते गुतिदिए गुत्तभयारी अकोहे अमाणे अमाए अलोभ संते पसंते उबसंते पडिणिब्बुडे अण्णासवे अममे आकचण निसेति निरुवलेवे कंसपाती हूव मुकतोये संखे इव निरंगणे जच्चकणगंव जायरूबे आदंसपलिभा इव पागडभावे जीवेचिव अप्पडितगती गगणमिव निरालंबणे वायुरिव अप्पडिप सारयसलिलंब सुद्धहियए पुक्खरपतं व निरुपलेवे कुम्मे इत्र गुतिदिए खग्गिविसाणं व एगजाए विहग इव विप्यमुक्के भारंडपक्खी चिव अप्पमत्ते मंदरो विव अप्पकं सागरो वित्र गंभीरे चंदोविव सोमलेस्से यूरो विव दिसतेये कुंजरोविव सॉडीरे सीहोविव दुरिसे वसभोविन जायत्थामे वसुंधराविव सव्वासविसदे मुहुतहुतासणाविव तेयसा जलते, णत्थि णं तस्स भगवतो कत्थति पडिबंधे भवति, तंजहा [314] संयमिनः श्रीवीरवर्णनं ॥२०३॥ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) भाग-3 "आवश्यक'- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [४९८-५०१/४९८-५०१], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 | श्री प्रत श्रीबीर सत्राक दीप अनुक्रम आवश्यक | दब्बतो जाब भावतो, दन्यतो इह खलु माता मे पिता मे जाव सच्चित्ताचित्तमीसएसु वा दयेसु, एवं तस्स ण भवति, खेतको गामे वा णगर वा रमे वा खेचे वा खले वा घरे वा जाव अंगणे बा, एवं तस्स ग भवति, कालतो- समए वा आवलियाए वा उपोव्यात आणापाणूए वा थोचे वा खणे वा लये वा मुहुने वा दिवसे वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उडुए वा अयणे वा संवच्छरे वा नियुक्ती अन्नतेर वा दोहकालसंजोगे, एवं तस्स ण भवति । भावतो-कोहे वा [क] पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अन्भक्खाणे वा पेसुषे वाट ||३०३|| मापरपरिवादे वा अरातिरतीएवा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले चा, एवं तस्स ण भवति । . से ण भगवं वासावासवज्जं अट्ठ गेम्हहेमंतियाई मासाई गामे एगरादीए णगरे पंचराइए वषगयहस्ससोगअरतिरतिभवपरिचासे जिरहंकारे लहुभूए अगंधे वासीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिलेकंचणे समसुहदुक्खे इहलोयपरलोयअप्पडिवढे जीवियमरणे निरावकंखी संसारपारगामी कमसंगणिग्घातणवाए अन्धुट्टिते, एवं च ण विहरति । तं अहो भगवं तिलोगबीरे तिळोगसारे तिलोगन्महितपरकमे तेलोकं अभिभूत द्विते, ण सका केणइ देवेण दाणवेण वा जाव | तेलोकेण वा प्राणाओ मणागमवि चालेउंतिकदु वंदति णमंसति । इतो य संगमको सोधम्मकप्पबासी देवो सकसामाणिओ अभवसिद्धीओ, सो भणति--अहो देवराया रागण उल्लावेति, को नाम माणुसमेतो देवेण न चालिज्जति ?, अज्जेवण अहं चालेमिति, ताहे सको न वारति, मा जाणिहिति परनिस्साए भगवं तवोकम्म फरतिति । एवं सो आगतो । ॥३०॥ । इतः संगमदेवकृता उपसर्गाः द्वितिय भागे वर्तते... । मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र ४०) "आवश्यक-चूर्णि: [भाग-१]" परिसमाप्ता: [315] Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित - सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः भाग-3 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधितः संपादितश्च “आवश्यक मूलसूत्र” [निर्युक्ति एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णिः (भाग-१)] (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह ) मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकल “आवश्यक” निर्युक्ति एवं चूर्ण: परिसमाप्ताः सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि श्रेणि, भाग-३ [आगम-४०] [316] Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ਹਾਸ ਤੇ ਤਰਸ ਨਾ ਆਈ (ਲ ਕ ਰ ਉਸ ਗਾ ਕੇ ਸ ਸ ਸ ਭਾਹ ਦੀ ਭਾਲ ਸ਼ आगम वाचना शताब्दी वर्ष ਆ ਰਹੀ ਹੈ ਤੇ ਗੁਰੂ ਤੁਮ ਨ ਵ ਲ ਸ ਬਾਰ 1 [17] Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि मा अभिनव-संकलनकर्ता मूल संशोधक THANI mentaine । पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] प्रत-प्राप्ति और पेज सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 982559885519825306275 [318] Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्व र्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघ में श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म० ही है । इस संघ में पूज्य साधू -भगवंत एवं साध्वी - महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है । ऐसे सम्यग्-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है | [319] Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल संशोधक - पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब एगम आगम आगमा आगम आगम आगम -40 “आवश्यक नियुक्ति एवं चूर्णि: [1] आजम आज अभिनव-संकलनकर्ता आजम आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी आगम __ [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] आजम आगम आगम आगम आगम आजम [320]