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________________ आगम (४०) भाग-3 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1 अध्ययनं मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [४९३/४९३], भाष्यं [११४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०].मूलसूत्र-[२१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सुत्रांक दीप अनुक्रम सीतलाए विज्सविता, ताहे सो मगवतो लद्धिं पासिचा भणति-से गतमेतं भगवं ! गतमेतं भगवं, ण जाणामि जहा तुम्मं सीसो, वेश्याय आवस्यका चुणों खमह, ताहे गोसालो पुच्छति-सामी ! किं एस जयासेज्जातरो पलवति ?, सामिणो कहितं-जहा पन्नत्तीए, ताहे भीतो पुण्डतिउपोत्यात भगवं ! किह सखित्तविउलतेयलेस्सो भवति, भगवं भणति-जे गोसाला! छटुंछ?ण अणिक्खित्तेण तवोकम्मेणं आयावेति, नियुक्ती पारणए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य वियडासएणं जावेति जाव छम्मासा, से णं संवित्तविउलतेयसैस्से भवतिति । अभदा सामी कुंमग्गामाओ सिद्धत्थपुरं संपस्थितो, पुणरवि तिलर्थमस्स अदूरसामंतण जाव चतिवयति ताहे पुच्छइ-भगवं ! जहा न निष्फ॥२९९॥ ण्णो, मगवता कहित-जहा निष्फष्णो, तं एवं वणफडण पउपरिहारो, पउटपरिहारो नाम परावर्त्य परावर्त्य तस्मिन्नेव सरीरके | उववज्जति तं, सो असदहतो गतूर्ण तिलसेंगलियं हत्थे पप्फोडेता ते तिले गणेमाणो भवति-एवं सम्पजीवावि पयोपरिहारंति, णितितवाद धणितमवलबिचात करोत जे भगवता उवदिद्वै, जहा संखितविपुलतेयलेस्सो भवति । वाहे सो सामिस्स मूलाओ ओफ्फिडो सावत्थीए कुंभगारसालाए ठितो, तेयनिसग्गं आआवेति, छहिं मासेहि संखित्तीवपुलतमलेस्सो जातो, कूपडे दासीए विधा-3 IPसितो, पच्छ। छहिसाचरा आगता, ताहे निमित्तउल्ोत्रो से कहितो, एवं सो अजियो जिणपलावी विहरति । एसा से अवस्था । बेमालाए पतिम डिंभमुणिओत्ति तत्थ गणराया। पूरति संखणामी चित्तीणावाए भगिणिसुतो ४-३७१४९४ भगवंपि सालि णगरि संपत्तो, तत्थ संखो णाम गणराया. सिद्धत्थरो मित्तो, सो तं पूजेति, पच्छा वाणियग्गामं पधावितो, तत्थंतरा गडइता णदी, तं सामी गावाए उत्तिओ, ते पाविया सामि भणति-देहि मोल्लं, एवं वादंति, तत्थ संखरनो भाइणेज्जो X ॥२९॥ चित्तो णाम दाकाए गएल्लो पावाकडएण एति, ताहे तेण मोइतो महितो य । स [311]
SR No.035053
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 04 Aavashyak 1 Niryukti Evam Churni Aagam 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages320
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size25 MB
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