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आगम
(४०)
भाग-3 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 1
अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि:-1
प्रत
सत्राक
8 जति सुयणाणेण अधिगारो तो उद्देसादीणि एयस्स पयतंति, तो कि अंगपविट्ठस्स अंगबाहिरस्स?, दोहवि, इमं पुण पट्टवणं आवश्यक आवश्यकता पडुच्च अंगवाहिरस्स, जति अंगवाहिरस्स तो किं आवस्सगस्स आवस्सगवतिरित्तस्सी, दोण्हथि, इमं पुण पट्ठवर्ण पहच्च आवस्सगस्साद निक्षेपाः
चूणा. अणुतोगी, आवस्सग किं अंग अंगाई सुअक्खंधो सुयखंधा अज्झयणं अज्झयणाई उद्देसो उद्देसा, आवस्सगं ण णो अंगा श्रुतस्कषणो अंगाई सुयक्खंघो णो सुयक्खंधा णो अज्झयणं अज्झयणा णो उद्देसो णो उद्देसा, तम्हा आवस्सगं णिक्खिविस्सामि सुयं । ॥७८॥णिक्खिाविस्सामि खंध णिक्खिविस्सामि।
से किं तं आवस्सर्य, आवस्सगं समासतो चउविहं-णाम ठवणा० दब्ब० भाव०, णामावस्सय जस्स पंजीवस्स वा हा अजीवस्स वा आवस्सएति णाम कीरति, से तं णामावस्सगं । से कि तं ठवणावस्सगं, २ जनं कहकम्मे वा पोत्थकम्मे वा से सम्भावओ असब्भावओ वा आवस्सएत्ति ठवणा ठप्पति से ठवणावस्सर्ग। से कि तं दवावस्सगं ?, दब्बावस्सगं दुविहं, तंजहा
आगमओ य णोआगमो य, आगमओ जस्स णं आवस्सएत्तिपदं सिक्खितं ठित इच्चादि, सिक्खितं नाम जे अंतं पत्त, ठित दणाम जं से ठितं हियये, जित नाम जं मूले घेतूण अग्गं पावेति, मितं णाम जे अक्खरहिं पदेहि सिलोगेहि मित-एत्तियाई ताई,
| परिजितं नाम जं मूलाओ अग्ग पावेति अगाओ व मूलं पावेति, णामसमं णाम जहा अप्पणो णाम एवं तंपि अझयण, घोससम 31 उदचअनुदत्तस्वरितकंपितद्रुतविलंबितविश्लिष्टापेक्षस्वरनियत, उच्चदात्तं जहा उप्पति वा भूएत्ति वा, अणुदत्त उप्पन्चेति वा ४
॥ ७८।। भूपति वा, सयाद्वारे उप्पनभ्यपरिणया, होणक्खरे उदाहरण-दब्वे अगारीए पुत्तस्स ओसह ऊर्ण दित्तं, भाये विज्जाहरो, दी 'रायगिहे' गाहा० अच्चक्खरे उदाहरणं-दब्वे तदेव अगारी, अहिए भावे 'जो जह वती' गाहा, अहवा-'चंदगुत्त०' गाहा।
दीप अनुक्रम
...अत्र उपोद्घात् नियुक्ति: आरभ्यते, ...आवश्यकस्य नामादि निक्षेपा: वर्णयते
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