Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थलोकवार्तिके
तिस कारण सम्वेदनके स्वरूपकी सिद्धिको चाहनेवाले बौद्धों करके सत्यपन और असत्यपनकी व्यवस्था स्वीकार करना चाहिये । तभी सम्बेदनाद्वैतका सत्यपन और अन्य अन्तरंग बहिरंग पदार्थोका बसयपन स्थिर रह सकेगा। तथा सम्बेदनको साध्यपना और प्रतिभासमानस्त्रको साधनपना मी मानना चाहिये । इसी प्रकार पूर्वपर्यायको कारणपना और उत्तरपर्यायको कार्यपना या अद्वैतको बाध्यपना और अद्वैतको बाधकपना आदि भी स्वीकार करने चाहिये । इस प्रकार माननेपर कोई कोई ज्ञान बहिरंग अर्थीको भी विषय करनेवाले हैं ही। उन घटज्ञान,देवदत्तज्ञान मादिक प्रत्ययोंका सर्वथा निरालम्बपनेकी व्यवस्था करनेका तुम्हारे पास कोई समीचीन योग नहीं है । खाने, पीने,पढने पढाने, रूप, रस, आदिके समीचीन ज्ञान अपने अपने विषय हो रहे बहिरंग पदार्थोसे आलम्बन सहित । नंगे हाथपर अग्निके धरदेने पर हुआ उष्णताका प्रत्यक्ष या दुःखसंवेदन कोरा निर्विषय नहीं है । कीट, पतंग, पालक व बालिका भी इन ज्ञानोंको सविषय स्वीकार करते हैं।
अक्षज्ञानं बहिर्वस्तु वेत्ति न स्मरणादिकं । इत्ययुक्तं प्रमाणेन बाह्यार्थस्यास्य साधनात् ॥ १४ ॥
अब कोई दूसरे विद्वान कह रहे हैं कि मतिज्ञानोंमें इन्द्रियोंसे उत्पन्न हुए ज्ञान तो बहिरंग पदार्थाको जानते हैं किन्तु स्मरण, प्रत्यभिज्ञान आदिक तो बहिरंग पदार्थीको नहीं जानते हैं।
और श्रुतज्ञान भी बहित पदार्थोको विषय नहीं करता है। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार किसीका कहना युक्तियोंसे रीता है। क्योंकि प्रमाणोंकरके इस बहिर्भूत अर्थकी सिद्धि की जा चुकी है। उन वास्तविक बाह्य अर्थोको विषय करनेवाले सभी समीचीन मतिज्ञान और श्रुतज्ञान है। हाँ, जो ज्ञान विषयों को नहीं स्पर्शते हैं, वे मतिज्ञानाभास और श्रुतबानाभास हैं।
श्रुतं तु बाह्यार्थालम्बनं कथमित्युच्यते ।
कोई पूछता है कि श्रुतबान तो बाह्य अर्थोको विषय करनेवाला कैसे है । इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य द्वारा स्पष्ट उत्तर यो वक्ष्यमाणरूपसे कहा जाता है सो सुनो।
श्रुतेनार्थ परिच्छिद्य वर्तमानो न बाध्यते । अक्षजेनेव तत्तस्य बाह्यार्थालंबना स्थितिः ॥१५॥
श्रुतबान करके अर्यकी परिच्छित्ति कर प्रवृत्ति करनेवाला पुरुष अर्थक्रिया करनेमें उसी प्रकार बाधाको नहीं प्राप्त होता है जैसे कि इन्द्रियजन्य मतिज्ञान करके अर्थको जानकर प्रवर्त रहा पुरुष बाधाको प्राप्त नहीं होता है । भावार्थ-चक्षुसे आम्रफळको देखकर प्रवृत्ति करनेसे आम ही पकड़ा जाता है। चखा जाता है, सूंचा जाता है, उसी प्रकार श्रुतज्ञानसे जान लिया गया पदार्थ