Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थोकवार्तिके
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आचार्यों के अभिप्राय से इन छह, सोलह, पच्चीस आदि पदार्थों का मानना भी इष्ट हो रहा ध्वनित हो जाता है । किसीसे व्यर्थ द्वेष करना नयवादियोंको उचित नहीं है । तभी तो सिद्धचक्र पाठमें ' षट्पदार्थवादिने नमः' ' षोडशपदार्थवादिने नमः' 'पंचविंशतितत्त्ववादिने नमः' यों मन्त्र बोलकर सिद्धपरमेष्ठीको अर्ध्य चढाकर स्तुति की गयी है ।
ये प्रमाणादयो भावा प्रधानादय एव वा । ते नैगमादिभेदानामर्था नापरनीतयः ॥ १६ ॥
जो नैयायिकों के द्वारा माने गये प्रमाण, प्रमेय, संशय, आदिक सोलह भाव पदार्थ तत्वभेद रूपसे माने गये हैं, अथवा प्रधान आदिक पच्चीस ही भावतस्त्र इस प्रकार सांख्योंने मूल पदार्थ स्वीकार किये हैं, वे भी नैगम आदिक भेदरूप विशेष नयोंके विषय हो सकते हैं । जैनसिद्धान्तमें निर्णय किये गये द्रव्य और पर्यायसे अन्य तत्त्वोंकी व्यवस्था करनेवाली कोई न्यारी नीति कहीं नहीं प्रवर्त रही है । अर्थात् -१ प्रमाण, २ प्रमेय, ३ संशय, ४ प्रयोजन ५ दृष्टान्त ६ सिद्धान्त ७ अवयव ८ तर्क ९ निर्णय १० वाद ११ जल्प १२ वितंडा १३ हेत्वाभास १४ छल १५ जाति १६ निग्रह स्थान ये नैयायिकों के सोकड पदार्थ मूलपदार्थ नहीं बन पाते हैं । किन्तु द्रव्य और पर्याय भेदप्रभेद हैं । और १ प्रकृति २ महान् ३ अहंकार ४ शद्वतन्मात्रा ५ स्पर्शतन्मात्रा ६ रूपतन्मात्रा • रसतन्मात्रा ८ गन्धतन्मात्रा ९ स्पर्शनइन्द्रिय १० रसना इन्द्रिय ११ त्राण इंद्रिय १२ चक्षु इन्द्रिय १३ श्रोत्र इन्द्रिय १४ वचन शक्ति १५ हाथ १६ पत्र १७ जननेन्द्रिथ १८ गुदेन्द्रिय १२. मन २० आकाश २१ वायु २२ तेज २३ जल २४ पृथ्वी और २५ पुरुष ये सांख्योंके पच्चीस तत्र भी मूळपदार्थ नहीं सिद्ध हो पाते हैं। द्रव्य और पर्यायके ही मेद प्रभेद हैं । अतः नयोंके विशेष प्रभेदोंसे भलें ही इनको न्यारा न्यारा जानकिया जाय किन्तु मूळपदार्थोको जानने की अपेक्षा दो ही मूलनय मानना यथेष्ट है । मूळ पदार्थों अथवा मूळ ज्ञानोंमें अधिक झगडा बढाना व्यर्थ है ।
प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजनदृष्टान्तसिद्धांतावयव तर्कनिर्णयवादजल्पवितंडा हेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानाख्याः षोडश पदार्थाः कैश्चिदुपदिष्टाः, तेपि द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायेभ्यो न जात्यंतरत्वं प्रतिपद्यंते, गुणादयश्च पर्यायान्नार्थंतरमित्युक्तमाचं । ततो द्रव्यपर्यायावेव तैरिष्टौ स्यातां, तयोरेव तेषामंतर्भावान्नामादिवत् ।
प्रमाण, प्रमेय, संशय, आदिक पदार्थ गौतम ऋषिद्वारा न्यायदर्शन में माने गये हैं । प्रमाका करण प्रमाण हैं । उसके प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शद्व ये चार भेद हैं। प्रमाणके विषयको प्रमेय कहते हैं । आत्मा शरीर इन्द्रिय, अर्थ ( बहिरंग इंन्द्रियोंके विषय ) बुद्धि, मन, प्रवृत्ति, दोष,