Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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अब इस प्रकार हेतुका उच्चारण किया जा चुकनेपर यदि प्रतिवादी शास्त्रार्थका ज्ञान रखनेवाले विशेष परिणामोंसे रहित होनेके कारण उस हेतुको दूषित करनेके लिये असमर्थ है, तब तो उत्तरकी अप्रतिपत्तिरूप अप्रतिमासे ही यह प्रतिवादी तिरस्कार करने योग्य है। किन्तु फिर प्रत्युच्चारण नहीं करना स्वरूप अमनुमाषणसे प्रतिवादीका निग्रह नहीं करना चाहिये । सभी वादियोंके यहां " संच शङ्कः " " तथा च धूमवान् ” ऐसे पक्षवृत्तित्व आदिका अनुमाषण माना गया है। अनुवादम ता पुनुरुक्त दोषपना किसीको अमीष्ट नहीं है । कहना यह है कि प्रत्युच्चारण करनेवाला भी वादी उस साध्यसिद्धिमें यदि समीचीन उत्तरका प्रकाश नहीं कर रहा है, तो निगृहीत नहीं होय यों नहीं समझना । किन्तु अपने पक्षको भळे प्रकार साध रहे वादी करके उसका निग्रह अवश्य हो जायगा । भनें ही वह वादी द्वारा कहे गयेका उच्चारण कर दे, यों होता क्या है ! जिससे कि उस अवसरपर प्रतिवादीका अप्रतिमा नामक ही निग्रहस्थान नहीं होवे । अतः अप्रतिमा या अज्ञानमें गर्मित हो जानेसे इस अननुभाषणको स्वतंत्र निग्रहस्थान मानना अच्छा नहीं दीखता है। .
यदप्युक्तं, अविज्ञातं चाज्ञानमिति निग्रहस्थानं, तदपि न प्रतिविशिष्टमित्याह ।
और भी जो नैयायिकोंने गौतम सूत्र द्वारा पन्द्रहवें निग्रहस्थानका यो लक्षण किया कि वादीके कथनका परिषद् द्वारा विज्ञान किये जा चुकनेपर यदि प्रतिवादीको विज्ञान नहीं हुआ है, तो प्रतिवादीका " अज्ञान " इस नामका निग्रहस्थान होगा । आचार्य कहते हैं कि अज्ञान भी कोई विलक्षण विशेषताओंको रखता हुआ बढिया निग्रहस्थान नहीं है। जैसे अन्य कई निग्रहस्थानों में कोरा वचन आडम्बर है, वैसा ही कूडा इसमें भरा है । इसी बातको श्री विद्यानन्द आचार्य वार्तिकों द्वारा कहते हैं।
अज्ञातं च किलाज्ञानं विज्ञातस्यापि संसदा । परस्य निग्रहस्थानं तत्समानं प्रतीयते ॥ २४१॥ सर्वेषु हि प्रतिज्ञानहान्यादिषु न वादिनोः । अज्ञानादपरं किंचिनिग्रहस्थानमांजसम् ॥ २४२॥ तेषामेतत्त्रभेदत्वे बहुनिग्रहणं न किम् ।
अर्धाज्ञानादिभेदानां बहुधात्रावधारणात् ॥ २४३ ॥
वादीके द्वारा कहे गये वाक्यका परिषद् करके विज्ञान हो चुका है। फिर भी प्रतिवादी करके जो कुछ भी नहीं समझा जाना है, वह नैयायिकोंके यहां दूसरे प्रतिवादीका अज्ञान नामक