Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ छोकवार्तिके
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दोषका ही उत्थापन किया जाता है । अतः मतानुज्ञाका हेत्वाभासों में अन्तर्भाव कर लेना चाहिये । आचार्य कहते हैं कि जब यों कहा जाता है तो अनैकान्तिकपनका कथन करना भी हमारे द्वारा नहीं रोका जाता है । क्योंकि जगत् में वचनोंकी युक्तियोंके प्रकारोंका विचित्रपना देखा जाता है । कहीं निषेध मुखसे कार्य के विधानकी प्रेरणा की जाती है । और कहीं विधिमुखसे निषेध किया जा रहा है । कोई हितैषी कि भाई तुम नहीं पढोगे कह कर शिष्यको पढने में उत्तेजित कर रहा है । कोई बहुत ऊधम मचाओ कह कर छात्रोंको उपद्रव नहीं करनेमें प्रेरित कर रहा है। सकटाक्ष या दक्षता पूर्ण बातोंके अवसरपर वचन प्रयोगोंकी विचित्रताका दिग्दर्शन हो जाता है । यहां प्रकरण में भी कण्ठो नहीं कह कर तिस प्रकार वचनभंगी द्वारा विपक्षमें हेतुको दिखलाते हुये अनैकान्तिकपकपर कोई उलाहना नहीं आता है। अपने पक्षमें हेतुके दोषको समझकर पुनः परपक्ष पनके दोषको उठाकर पीछे वादी यदि अपने पक्षको साध देवेगा तो वह जयी हो जावेगा । अन्यथा दोनों भी जय की सम्भावना नहीं है । न्यायदर्शन में पंचम अध्यायके प्रथम आन्हिकके अन्तमें भी इसका विचार किया है । किन्तु वह सब घटाटोप मात्र है । अतः उसकी परीक्षणा करनेमें हमारा अधिक आदर नहीं है ।
यदप्यभिहितमनिग्रहस्थाने निग्रहस्थानानुयोगो निरनुयोज्यानुयोगो निग्रहस्थानमिति तदप्यसदित्याह ।
और भी जो नैयायिकोंने उन्नीसवें निग्रहस्थानका लक्षण यों कहा था कि निग्रहस्थान नहीं उठाने के अवसरपर निप्रहस्थानका उठा देना वक्ताका " निरनुयोज्यानुयोग " नामक निग्रहस्थान है । इस प्रकार न्यायदर्शनका वह लक्षण सूत्र भी समीचीन नहीं है। इस बातको स्वयं ग्रन्थकार सूत्रका अनुवाद करते हुये कहते हैं ।
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यदात्वनिग्रहस्थाने निग्रहस्थानमुच्यते ।
तदा निरनुयोज्यानुयोगाख्यो निग्रो मतः ॥ २६२ ॥ सोप्यप्रतिभयोक्तः स्यादेवमुत्तर विकृतेः ।
तत्प्रकार पृथग्भावे किमेतैः स्वल्पभाषितैः ॥ २६३ ॥
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जिस समय वादी निग्रहस्थानके योग्य नहीं हो रहे प्रतिवाद के ऊपर मिथ्याज्ञानवश किसी निग्रहस्थानको कह बैठता है, उस समय तो वादीका " निरनुयोज्यानुयोग नामक निग्रहस्थान हुआ माना गया है | आचार्य कहते हैं कि वह नैयायिकोंका निग्रहस्थान भी अप्रतिभा करके ही विचारित किया कह दिया गया समझना चाहिये । उत्तर देने में विकार हो जानेसे यह एक प्रकार
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