Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
नास्त्यात्मनः क्रियावत्त्वे साध्ये क्रियाहेतुगुणाश्रयत्वस्य साधनस्य स्वसाध्येन व्याप्तिर्विभुत्वानिष्क्रियत्वसिद्धौ विच्छिद्यते, न च तदविच्छेदे तद्दषणत्वं साध्यसाधनयो
प्तिविच्छेदसमर्थनतंत्रस्यैव दोषत्वेनोपवर्णनात् । तथा चोक्तं न्यायभाष्यकारेण" साधर्म्यणोपसंहारे साध्यधर्मविपर्ययोपपत्तेः साधाण प्रत्यवस्थानं साधर्म्यसमा प्रतिषेध " इति । निदर्शनं, क्रियावानात्मा द्रव्यस्य क्रियाहेतुगुणयोगात् । द्रव्यं लोष्ठः स च क्रियाहेतुगुणयुक्त क्रियावांस्तथा चात्मा तस्मक्रियावानित्येवमुपसंहृत्य परः साधर्येणैव प्रत्यवतिष्ठते । निष्क्रिय आत्मा विभुनो द्रव्यस्य निष्क्रियत्वात् । विभ्वाकाशं निष्क्रियं तथा चात्मा तस्मानिनिष्क्रिय इति । न चास्ति विशेषः क्रियावत्साधात् क्रियायता भवितव्यं न पुननिष्क्रियसाधात् अक्रियेणेति विशेषहेत्वभावात्साधर्म्यसमदूषणामासो भवति ।
देखिये कि आत्माको क्रिया सहितपना साध्य करनेपर क्रियाहेतुगुणश्रयत्व हेतुकी अपने नियत साध्यके साथ जो व्याप्ति बन चुकी है, वह व्यापकपन हेतुसे आत्माका क्रियारहितपना साधनेपर टूट ( नष्ट ) नहीं जाती है । और जबतक उस पहिली व्याप्तिका विच्छेद नहीं होगा तबतक वह उत्तरवर्ती कथन उस पूर्वकथनका दूषण नहीं समझा जा सकता है, क्योंकि साध्य और साधनकी व्याप्तिके विच्छेदका समर्थन करना जिसका अधीन कार्य है, उसको (का) दोषपने करके निरूपण किया जाता है । और तिस ही प्रकार न्यायमाष्यको करनेवाले वात्स्यायन ऋषिने स्वकीय भाष्यमें यों कहा है कि अन्वयदृष्टान्तके साधर्म्य करके हेतुका पक्षमें उपसंहार करचुकनेपर पुनः प्रतिवादी द्वारा साध्यधर्मके विपरीत हो रहे धर्मकी उपपत्ति करनेसे साधर्म्य करके ही दूषण उठाना साधर्म्यसम नामका प्रतिषेध है। इस साधर्म्यसमका उदाहरण यों है कि आत्मा ( पक्ष) क्रियावान् है। ( साध्य ) द्रव्यके उचित क्रियाके हेतु गुणोंका समवाय संबन्धवाला होनेसे ( हेतु) जैसे मिट्टीका डेल या कंकड, पत्थर द्रव्य है । और वह क्रियाके हेतु गुणोंसे समवेत हो रहा संता क्रियावान् है। तिस ही प्रकार अदृष्ट या संयोग, प्रयत्न इन क्रियाके हेतु हो रहे गुणोंको धारनेवाला आत्मा है । तिस कारणसे वह क्रियावान सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार यों वादी पण्डित द्वारा उपसंहार कर चुकनेपर दूसरा प्रतिवादी साधर्म्यकरके ही यों दूषण उठा रहा है कि आत्मानिष्क्रिय है । क्योंकि विभुद्रव्य क्रियारहित हुआ करते हैं । देखिये, व्यापक आकाश द्रव्य क्रियारहित है और तिस ही प्रकार व्यापक द्रव्य यह आत्मा है। तिस कारणसे आत्मा क्रियारहित है। इस प्रकार उक्त दोनों सिद्धान्तोंमें कोई अन्तर नहीं है, जिससे कि क्रियावान् डेलके सद्धर्मापन क्रियाहेतुगुणाश्रयत्वसे बात्मा क्रियावान् तो हो जाय, किन्तु फिर क्रियारहित आकाशके साधर्म्य हो रहे विभुत्वसे निष्क्रिय नहीं हो सके । इस प्रकार कोई विशेष हेतुके नहीं होनेसे यह साधर्म्यसम नामक दूषणामास हो जाता है।