Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 578
________________ तत्वार्य कोकवार्तिके मादि वादियों के साथ शास्त्रार्थ कर भिन्न भिन्न रूपसे उनको स्याद्वादियोंद्वारा तस्यार्थीका अधिगम कराने के लिये उपयोगी हो रहा यह तरवार्याधिगम नामका प्रकरण श्री विद्यानन्द स्वामीने रचा है। प्रथम अध्यायमें किये गये श्री उमास्वामी महाराजके तस्वनिरूपणका प्रदर्शन कर स्वपरप्रबोधार्थ उसके विमर्षणकी सम्मति देते हुये श्री विद्यानन्द आचार्यने प्रथम अध्यायके विवरणकी समाप्ति कर पंचम वाहिकको परिपूर्ण किया है। वीरोमास्वाम्पुपनाध्वगमुनिपसमन्तादिभद्राकलंक-। विद्यानन्दोक्तिभिर्द्राक् छळवितथवची निग्रहस्थान् परीक्ष्य । तस्वार्थज्ञप्तिभेदे जितविजितदशामाकळय्याप्तशास्त्र-। चन्द्रार्कावध्यमिनोनुभवतु शिवदा न्यायसाम्राज्यलक्ष्मीम् ॥ इति श्रीविधानंदि-आचार्यविरचिते तस्वार्थश्लोकवार्तिकालङ्कारे प्रथमोऽध्यायः समाप्तः॥१॥ इस प्रकार सम्पूर्ण दर्शनशास्त्रोंकी ज्ञप्तिको धारनेवाळे श्रीविद्यानन्द आचार्य द्वारा विशेषरूपसे रचे गये " तत्वार्थश्लोकवार्तिक-अलंकार" टीका ग्रन्थमें प्रथम अध्यायका विवरण समाप्त किया गया । नम्रामरेन्द्रमुकुटममाः समुद्योतयज्जिनश्चन्द्रः। निर्दोषो विकलङ्कोऽज्ञानतमोभित प्रबोधयेत्कुमुदं ॥ इस प्रकार सर्वदर्शनाचूडामणि श्री विद्यानन्द स्वामीविरचित तरवार्थ श्लोकवातिकाकार पाद पन्थकी चावली (आगरा) निवासी माणिकचन्द्र [न्यायाचार्य ] कत हिंदी भाषामय "तवार्यचिन्तामणि" टीकामें प्रथम-अध्याय पूर्ण हुआ । भद्रं भूयात्

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