Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
दृष्टांत धर्म साध्ये समासंजयतः स्मृतोत्कर्षसमा जातिः स्वयं, यथा क्रियावानात्माक्रियाहेतुगुणयोगाल्लोष्ठवत् इत्यत्र क्रियावज्जीवसाधने प्रोक्ते सति परः प्रत्यवतिष्ठते । यदि क्रिया हेतु गुणासंगी मांल्लोष्ठवत्तदा कोष्ठवदेव स्पर्शवान् भवेत् । अथ न स्पर्शवांल्लोष्ठवदात्मा क्रियावानपि न स स्यादिति विपर्यये वा विशेषो वाच्य इति ।
बार्तिकों में कहे गये न्यायभाग्य उक्तका ही विवरण जैनों द्वारा इस प्रकार लिखा जाता है कि दृष्टान्त अतिरिक्त धर्मका साध्य ( पक्ष ) में भले प्रकार प्रसंग दे रहे प्रतिवादी के ऊपर स्वयं उत्कर्ष - समा जाति उठ बैठी यानी चली आ रही हैं । जैसे कि आत्मा ( पक्ष ) क्रियावान् है ( साध्य ) । 1 क्रिया के सम्पादक कारण गुणोंका संसर्गी होनेसे ( हेतु ) उछलते, गिरते हुये डेळके समान (अन्वयदृष्टान्त) । इस प्रकार यहां अनुमानमें वादी द्वारा जीवके क्रियासहितपनका मळे प्रकार साधन कह चुकने पर दूसरा प्रतिवादी प्रत्यवस्थान उठाता है कि क्रिया हेतु गुणोंका सम्बन्धी आत्मा यदि डेळके समान क्रियावान् है, तो डेळके समान ही स्पर्शषान् हो जाओ । अब वादी यदि आत्माको डेके समान स्पर्शवान् नहीं मानना चाहेगा तब तो वह आत्मा उसी प्रकार क्रियावान् भी नहीं हो सकेगा । ऐसी दशामें भी यदि वादी आत्माको क्रियावान् ही अकेला माने स्पर्शवान् स्वीकार नहीं करे तो इस विपरीत मार्ग अवलम्बमें उस वादीको कोई विशेष हेतु कहना चाहिये | यहांतक उत्कर्षमा जाति न्यायभाष्य अनुसार कई दी गयी ।
का पुनरपकर्षसमेत्याह ।
फिर यह बताओ कि वह अपकर्षसमा जाति क्या है ! ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द स्वामी न्यायभाष्य अनुसार अनुवाद करते हुये वार्तिकको कहते हैं ।
साध्यधर्मिणि धर्मस्याभावं दृष्टांततो वदन् । अपकर्षसमां वक्ति जातिं तत्रैव साधने ॥ ३४० ॥
४७५
लोष्ठः क्रियाश्रयो दृष्टो विभुः कामं तथास्तु ना । तद्विपर्ययपक्षे वा वाच्यो हेतुर्विशेषकृत् ॥ ३४९ ॥
साधने योग्य साध्यविशिष्ट धर्मीमें दृष्टान्त की सामर्थ्य से अविद्यमान हो रहे धर्मके अभावको कह रहा प्रतिवादी अपकर्षसमा नामकी जातिको स्पष्ट कह रहा है। जैसे कि उस ही प्रसिद्ध अनुमानमें आत्माका क्रियासहितपना वादी द्वारा साधे जानेपर दूसरा प्रतिवादी प्रत्यवस्थान उठाता है। कि क्रियाका आश्रय डेल तो अव्यापक देखा गया है। उसी प्रकार आत्मा भी तुम्हारे मनोनुकूल अव्यापक हो जाओ । यदि तुमको विपरीत पक्ष अभीष्ट है,
यानी
कि डेक दृष्टान्तकी सामर्थ्य से