Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तापाचोकवार्तिके
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कचिचोपपत्तेः प्रतिषेधामावः " इस सूत्रकी वृत्ति में विश्वनाथ भट्टाचार्य कहते हैं कि कहीं कृतकत्व प्रयत्नानन्तरीयकस्व, आदिमें हेतुके धर्म व्याप्ति, पक्षवर्मता आदिक विद्यमान हैं, और कहीं सरय, प्रमेयस्व आदि हेतुओंमें अनित्यपन साध्य के उपयोगी व्याप्ति, पक्षवृत्तित्व आदि हेतुधर्म नहीं पाये जाते हैं । अतः प्रतिवादीद्वारा प्रतिषेध होनेका असम्भव है।
___ यदि तु सर्वेषामर्थानामनित्यता सत्वस्य निमित्तमिष्यते सदापि प्रत्यवस्थानाद निस्याः सर्वे भावा सस्वादिति पक्षः प्राप्नोति । तत्र च प्रतिज्ञार्थव्यतिरिक्त कोदाहरणं सम्भयेन चानुदाहरणो हेतुरस्तु । उदाहरणसाधात साध्यसाधनत्वं हेतुरिति समर्थनात् । पलैकदेशस्य प्रदीपज्वालादेरुदाहरणत्वे साध्यत्वविरोधः साध्यत्वे तूदाहरणं विरुध्यते । न
च सर्वेषां सत्यमनिस्यत्वं साधयति नित्यत्वेपि केषांचित्तवपतीतेः। संपति सिद्धार्थानां -सर्वेषामनित्यतायां कथं शब्दानित्यत्वं प्रतिषिध्यते सवैरिति परीक्ष्यतां । सोयं सर्वस्यानित्यत्वं साधयमेव शब्दानित्यत्वं प्रतिषेधतीति कथं स्वस्था ?
__ भाष्यकार कहते हैं कि तो प्रतिवादीका यदि यह मन्तव्य होय कि सम्पूर्ण अर्थोके सवाषकी उपपत्तिका निमित्तकारण अनित्यत्व ही न्यारा धर्म इष्ट किया गया है । सिद्धान्ती कहते हैं कि यों कल्पना करोगे तो भी प्रतिवादीका प्रत्यवस्थान देनेसे यह पक्ष प्राप्त हो जाता है कि सम्पूर्ण पदार्थ सत्पना हो जानेसे अनित्य हैं और इस प्रकार वादीके उस पक्षमें प्रतिज्ञा विषय अर्थसे व्यतिरिक हो रहा उदाहरण मला कहां सम्भवेगा ! अर्थात्-सत्व हेतुसे सम्पूर्ण पदार्थोंमें अविशेषरूपसे बनित्यपना साधनेपर अन्वयदृष्टान्त या व्यतिरेक दृष्टान्त बनाने के लिये कोई पदार्थ शेष नहीं बचता है
और उदाहरणसे रहित कोई हेतु हो जाओ यह ठीक नहीं पड़ेगा। क्योंकि उदाहरणके साधर्म्य से या उदाहरणकी सामर्थ्यसे साध्यका साधकपना हेतुका प्राण है । इस प्रकार समर्थन किया जा चुका है । अन्तर्याप्तिका अवलम्ब लेकर प्रतिवादी यदि पक्षके एक देश हो रहे प्रदीपककिका, मग्निवाला, विद्युत् मादिका उदाहरणपना स्वीकार करें, तब तो हम कहते हैं कि सबको पक्ष. कोटिमें डालकर उन प्रदीप, ज्याला, सादिक साध्यानका विरोध हो जावेगा। प्रदीपकलिका मादिको पक्षमें प्रविष्ट कर अनित्वपनसे विशिष्टपना साध्य करनेपर तो उनको अन्बय दृष्टान्त बनाना विरुद्ध पड बायगा । तथा एक बात यह भी है कि सम्पूर्ण पदार्थोका विद्यमान हो रहा सब कोई अनित्यत्वको नहीं साध देता है । किन्हीं आकाश आदि पदार्थोके नित्यपना होते हुये भी सरव प्रतीत हो रहा है । अतः नित्यपन या अनित्यपनको साधनेमें सरब हेतु व्यभिचारी है । निस्योंमें सद्भाव हो जानेसे उस हेतुकरके अनित्यपमकी सिद्धि मही हो सकती है । और अनित्य पदार्थो वर्त आनेसे उस हेतु करके नित्यपनकी सिद्धि नहीं हो पाती है। अत्तः प्रतिवादीका सबको अविशेषपनके प्रसंग देने का वाक्य कुछ भी अर्यको नहीं रखता है। हां,