Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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नैयायिकोंके सिद्धान्त अनुसार नित्यसमा जातिका निरूपण किया जाता है कि कृतक होनेसे शब्द अनित्य है । इस प्रकार वादी द्वारा प्रतिज्ञावाक्यके कह चुकनेपर यदि प्रतिवादी शब्दके नित्यपन का प्रत्यवस्थान उठाता है, वह प्रतिवादीका असत् उत्तर नित्यसमा जाति है। प्रतिवादी वक्ताके अज्ञानसे यह नित्यसमा जाति सुलभतापूर्वक प्रवर्तजाती है । " नित्यमनित्यभावादनित्ये नित्यत्वोपपत्ते. नित्यसमः " यह गौतमसूत्र है।
शब्दाश्रयमनित्यत्वं नित्यं वा नित्यमेव वा । नित्ये शब्दोपि नित्यः स्याचदाधारोऽन्यथा क तत् ॥४३८॥ तत्रानित्येप्ययं दोषः स्यादनित्यत्वविच्युतौ । नित्यं शब्दस्य सद्भावादित्येतद्धि न संगतम् ॥ ४३९ ॥ अनित्यत्वप्रतिज्ञाने तनिषेधविरोधतः। स्वयं तदप्रतिज्ञानेप्येष तस्य निराश्रयः ॥ ४४०॥
नित्यसमा जातिका उदाहरण यों है कि शद्धको अनित्य सिद्ध करनेवाले षादीके ऊपर प्रतिवादी प्रश्न उठाता है कि शब्दके आधारपर ठहरनेवाला अनित्यपना धर्म क्या नित्य है ! अथवा क्या अनित्य है ? अर्थात्-शवस्वरूप पक्षमें अनित्यपन साध्य क्या सदा अवस्थायी है ! अथवा क्या शब्दमें अनित्यपना सर्वदा नहीं ठहरकर कभी कभी ठहरता है ! बताओ। प्रथमपक्षके अनुसार यदि शद्वमें अनित्यपन धर्मको सदा तीनों कालतक ठहरा हुआ मानोगे तब तो उस भनित्यपनका अधिकरण हो रहा शब्द भी नित्य हो जायगा । अपने धर्मको तीनों कालतक नित्य ठहरानेवाला धर्मी नित्य ही होना चाहिये । अन्यथा पानी शब्दको कुछ देरतक ही ठहरनेवाला यदि माना जायगा तो सर्वदा ठहस्नेवाग भनित्यपन धर्म भला कहां किसके आधार पर स्थित रह सकेगा ! शब्दको नित्य माननेपर ही अनित्यपन धर्म वहां सदा ठहर सकता है। अन्यथा नहीं । तथा उन दो विकल्पोंमेंसे द्वितीय विकल्प अनुसार शब्दमें रहनेवाले अनित्यपन धर्मको यदि कभी कभी ठहरनेवाला मानोगे तो उस अनित्यषन धर्मके सर्वदा नहीं ठहरकर कदाचित स्थित रहनेवाले अनित्य पक्षमें भी यही दोष शदके नित्य हो जानेका आ पडेगा। क्योंकि जब शमें रहनेवाला अनित्यपन धर्म अनित्य है, तो अनित्यपन धर्मका नाश हो जानेपर शब्दके नित्यपनका सद्भाव हो जानेसे शद्ध नित्य हुआ जाता है । यह नियम है कि जिस वस्तुका अनित्यपन नष्ट हो जाता है, वह वस्तु पिना रोक टोकके नित्य बनी बनाई है । दोनों हाथ ठड्ड हैं। इस न्यायसे दोनों विकल्प अनुसार शब्दका नित्यपना सिद्ध हो जाता है। यह जातिभाषी प्रतिवादीका अभि.