Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोक वार्तिके
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निवेश है । सिद्धान्ती कहते हैं कि इस प्रकार यह प्रतिवादीका कुसित अभिमानपूर्वक भाषण पूर्व अपर संगतिको रखनेवाला नहीं है । प्रतिवादीका असंगत कथन समीचीन उत्तर नहीं है । इसकी परीक्षा यों करनी चाहिये कि प्रतिवादीने शुद्धका अभियान तो स्वीकार कर लिया दीखता है। तभी तो वह अनित्यपन नित्य है ? अथवा क्या अनित्य है ! यह विकल्प उठाया गया है। वादी के मन्तब्य अनुसार जब प्रतिवादी शके अतिकी प्रतिज्ञाको मान चुका है, तो शमें उस अनित्यपनके निषेध करनेका बिरोध पडता है । कोई भी विचारशील पण्डित शद्व में अभिव्यपनको स्वीकार कर पुनः उस अनित्यपनका विषेष नहीं कर सकता है । अतः प्रतिवादीका कथन व्याघात दोषवाका होता हुआ पूर्वापर संगति शून्य है । हमारे प्रकरण प्राप्त शब्द के अनिस्यपनकी सिद्धिमें यह कथन प्रतिबन्धक नहीं है । उत्पन्न हो चुके पदार्थका ध्वंस हो जाना ही अनित्यपन कहा जाता है । उसको अंगीकार कर लेनेपर उसका निषेध नहीं कर सकते हो। यदि तुम प्रतिवादी उन शके erfotoपनको स्वयं स्वीकार नहीं करोगे तो भी यह उस व्यनित्यपनका निषेध करना आश्रय रहित हो जायगा अर्थात्-शद अनित्यवनकी प्रतिज्ञाको नहीं माननेपर ये विकल्प किसके आधारपर उठाये जा सकते हैं कि शहमें रहनेवाला अनित्ययन क्या नित्य है ? अथवा क्या अनित्य है ! an: विकerint उत्थान नहीं होने प्रतिवादी द्वारा शद्व के अभिव्यपनका निषेध करना अवलम्बविकल हो जाता है । प्रतिषेध करनेके लिये षष्ठी विभक्तिवाले प्रतियोगीकी आवश्यकता होती है । " संज्ञिनः प्रतिषेधो न प्रतिषेध्यादृते कचित् " अखंडपद द्वारा कहे गये घटके बिना घटका प्रतिबेध नहीं किया जा सकता है । " प्रतिषेध्ये नित्यमनित्यभावादनित्ये नित्यत्रोपपत्तेः प्रतिषेधाभावः " इस सूत्र द्वारा गौतमऋषिने उक्त अभिप्राय प्रदर्शित किया है ।
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सर्वदामिनित्यत्वमिति प्रश्नोप्यसंभवी । प्रादुर्भूतस्य भावस्य निरोवश्च तदिष्यते ॥ ४४९ ॥ नाश्रयाश्रयिभावोपि व्याघातादनयोः सदा । नित्यानित्यत्वयोरेक वस्तुनीष्टौ विरोधः ॥ ४४२ ॥ ततो नानित्यता शनित्यत्वप्रत्यवस्थितेः ।
परैः शक्या निराकर्तुं वाचालैर्जयलोलुपैः ॥ ४४३ ॥
म्यायमष्यकार कहते हैं जब कि प्रकटरूपसे उत्पन्न हो चुके पदार्थका ध्वंस वह श्रमित्यपन माना जाता है, ऐसी दशा में क्या शब्दका अनित्यपना सर्वदा स्थित
हो जाना हाँ
रहता है ?