Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचन्तामणिः
पक्षस्य हि निषेध्यस्य प्रतिपक्षोभिलष्यते। निषेधो धीधनैरत्र तस्यैव विनिवर्तकः ॥ ४३०॥ प्रतिज्ञानादियोगस्तु तयोः साधर्म्यमिष्यते । सर्वत्रासंभवात्तेन विना पक्षविपक्षयोः ॥ ४३१ ॥ ततोसिद्धिर्यथा पक्षे विपक्षेपि तथास्तु सा।
नो चेदनित्यता शद्वे घटवन्नाखिलार्थगा ॥ १३२॥ न्यायभाष्यकार कहते हैं कि प्रतिवादी द्वारा निषेध करने योग्य वादीके पक्षका निषेध करमा तो यहां बुद्धिरूप धनको रखनेवाळे विद्वानों करके प्रतिपक्ष माना जाता है, जो कि उस प्रतिवादीके पक्ष हो की विशेषरूपसे निवृत्ति करनेवाला चाहा गया । उन दोनों पक्ष प्रतिपक्षोंका साधर्म्य तो प्रतिक्षा, हेतु, मादि अवयवोंका योग हो जाना है। यानी वादीके अनित्यत्व सापक अनुमानमें प्रतिज्ञा, हेतु बादिक विधमान है । और प्रतिवादीके इष्ट प्रतिपक्षमें भी प्रतिज्ञा बादिक अवयव वर्त रहे माने गये हैं। अनुमानके अवयव प्रतिज्ञा, हेतु बादिके उस सम्बन्ध विना सभी स्थकोंपर पक्ष
और विपक्ष के हो जानेका असम्भव है । तिस कारण जैसे प्रतिवादीके विचार अनुसार वादीके प्रतिशादियुक्त पक्षमें असिद्धि हो रही है, उसी प्रकार प्रतिवादीके प्रतिवादियुक्त जमीष्ट विपक्ष भी वह असिद्धि हो जाओ। क्योंकि प्रतिषेष्यके साधर्म्य हो रहे प्रतिवादियुक्तताका सात प्रतिवादीके प्रतिषेधमें भी समान रूपसे पाया आता है। यदि तुम प्रतिवादी यों अपने इएकी असिदि होनेको नहीं मानोगे यामी पक्ष और प्रतिपक्षका प्रतिज्ञादियुक्ततारूप साधर्म्य होते हुये भी वादीके पक्षकी ही बसिद्धि मानी जायगी, मुझ प्रतिवादीके इष्ट प्रतिपक्षकी असिद्धि नहीं हो सकेगी। यों माननेपर तो हम सिदान्ती कहते हैं कि तब तो उसी प्रकार घटके साथ साधर्म्यको प्राप्त हो रहे कृतकस्व मादि हेतुबोंसे शब्दका अनित्यपना हो जामो, किन्तु तिस सत्व करके कोरा साधर्म्य हो जानेसे सम्पूर्ण अर्थोंमें प्राप्त होनेवाली अनित्यता तो नहीं होगी । यह न्यायमार्ग बहुत अच्छा प्रतीत हो रहा है। क्या विशेष व्यक्तियोंमें देखे गये मनुष्यपनके साधर्म्यसे सभी दीन, रोगी, मूर्ख,दरिद्र, पुरुषों में महत्ता, निरोगीपन, विद्वत्ता, धनाढ्यता धर दी जाती है ! अतः यह अनित्यसमा जाति दूषणामास है। प्रतीतिके अनुसार वस्तुव्यवस्था मानी जाती है । तभी प्रामाणिक पुरुषों में बैठनेका अधिकार मिलता है । मिथ्यादूषण उठा देनेसे प्रभावना, पूजा, ख्याति, लाम और जय नहीं प्राप्त हो सकते है।
दृष्टांतेपि च यो धर्मः साध्यसाधनभावतः । प्रज्ञायते स एवात्र हेतुरुक्तोर्थसाधनः ॥ ४३३ ॥