Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
५२६
तत्वार्थ लोकवार्तिके
1
गया प्रतिषेध उचित नहीं है । सामान्य कार्योंके लिये कोई नियत कारणोंका नियम कहा गया है। बात यह है कि शद्व कार्य है, वह कारणोंसे ही उपजेगा । जीवोंके उच्चार्यमाण शद्व में प्रयत्न अनित्यपना साध किया जाता है । और शेष शाखाभं गोत्थ मेघगर्जन आदि शब्दों में उत्पत्तिमख, कृतकत्व आदि हेतु ओंसे अनित्यत्व साध लिया जायगा । देखो, जैसे कार्य तो अवश्य कारणवान् होते हैं । किन्तु कारण कार्यसहित भी होंय और कार्यवान् नहीं भी होंय, कोई नियम नहीं है । उसी प्रकार ज्ञापक पक्षमें समीचीन हेतु साध्यवाला अवश्य होगा । किन्तु साध्य अवश्य सहचरत्व सम्बन्धसे हेतुमान होय ऐसा नियम नहीं है । साध्य व्यापक होता है और हेतु व्याप्य होता है । हेतुमें अन्यथानुपपत्ति गुण ठहरता है । साध्यमें अविनाभाव गुण नहीं वर्तता है । साधमेके बिना साध्य नहीं होय, ऐसा कोई नियम नहीं कह दिया गया है। अग्निकी अनुमिति अन्य आलोक आदि हेतुओं से भी हो सकती है ! हम हेतु, साध्य, या पक्षमें एवकार लगाकर अवधारण करनेके लिये " पर्वतो वन्हि - मान् धूमात् ” या " शब्दोऽनित्यः प्रयत्न जन्यत्वात् इन अनुमानोंका प्रयोग नहीं कर रहे हैं । किन्तु संदेहप्राप्त हो रहे अमित्यत्व, आदिकी सिद्धिके लिये अनुमान वाक्य रच रहे हैं । अन्यथा तुझ प्रतिवादीके द्वारा कहा गया वादी कथित पक्षकी असाधकताका साधन भी नहीं बन सकेगा। क्योंकि Preranath दूसरे साधक भी बर्त रहे हैं। अतः वादीके पक्षका यों प्रतिषेध नहीं हो सकता है ।
"
""
प्रयत्नानन्तरीयकत्वात् कारणादन्यदुत्पत्तिधर्मकत्वादिकारणान्तरमनित्यत्वस्य साध्यधर्मस्य, तवोपि सिद्धिर्न युक्तः प्रतिषेधोयं तत्र कारणानियमवचनात् नाभिज्ञापकर्मतरेण ज्ञाप्यं न भवतीति नियमोस्ति, साध्याभावे साधनस्यानियमव्यवस्थितेः इति ।
नित्यपन साध्यधर्मके हेतु हो रहे प्रयत्नानन्तरीयकपन इस ज्ञापककारणके भिन्न ( न्यारे ) उत्पत्तिधर्मकपन, कृतकपन आदि दूसरे कारण भी विद्यमान हैं। उनसे भी अमित्यपनकी सिद्धि हो सकती है । हम उक्त हेतुसे न्यारे हेतुका अनित्यपनको साधने के लिए निषेध थोडा ही करते हैं । अतः यह प्रतिवादीका उठाया हुआ, यह प्रतिषेध युक्त नहीं है। वहां हमने कारणोंके नियमका वचन नहीं दे दिया है । अच्छी ज्ञप्ति करानेवाले हेतुके बिना जानने योग्य साध्य नहीं होता है, ऐसा कोई नियम नहीं है। हां, साध्यके नहीं होनेपर तो नियमसे साधनके नहीं ठहरने की व्यवस्था है। यहांतक उपलब्धिसमा जातिका विचार कर दिया गया है। अब इसके आगे अनुपलब्धिसमा जातिकी परीक्षा करते हैं ।
तस्मान्न विद्यमानस्यानुपलब्धेः प्रसाधने । निषेध्यानुपलब्धेश्वाभावस्य साधने कृते ॥ ४१७ ॥