Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्याचन्तामणिः
दूषणका लक्षण और घटकावयव पदोंकी सिद्धि करते करते उकता जाओगे । तुम दूषण देना भी भूल जाओगे । वर्ण्यसमा, अवर्ण्यसमा और साध्यसमामें यह समाधान भी लागू हो जाता है कि सायके अतिदेशसे दृष्टान्तमें साध्यका अतिदेश है। उतनेसे ही दृष्टान्तपना बन जाता है । सम्पूर्ण धर्म सर्वथा नहीं मिल जाते हैं । अन्यथा पक्ष, दृष्टान्तका अभेद हो जायगा । अतः वर्ण्यसमा और अवर्ण्यसमा जाति उठाना ठीक नहीं है । साभ्यसमामें सूत्रपठित दृष्टान्तका अर्थ पक्ष करना चाहिये अथवा दृष्टान्त ही अर्थ बना रहो। बात यह है कि दृष्ट न्त या साध्यके आधारभूत पक्षको साध्य नहीं बनाया जाता है। अतः ये उत्कर्षसमा आदिक प्रतिषेध दूषणाभास हैं। ऐसा नैयायिक वखान रहे हैं।
क्रियावानात्मा क्रियाहेतुगुणाश्रयत्वाल्लोष्ठयदित्यादौ दृष्टांतादिसमर्थनयुक्ते साधनधर्मे प्रयुक्त सत्यपि साध्यदृष्टांतयोधर्मविकल्पादुपवर्णिताद्वैधपेण प्रतिषेधस्य कर्तुमलब्धेः किंचित्साधादुपसंहारसिः। तदाह न्यायभाष्यकारः । “अलभ्यः सिद्धस्य निन्हवः सिद्धं प किंचित्साधादुपमानं यथा गौस्तथा गवय " इति । तत्र न लभ्यो गोगवययोधर्मविकल्पश्चोदयितुं । एवं साधनधर्मे दृष्टांतादिसामर्थ्ययुक्ते सति न लभ्यः साध्यदृष्टांतयोधर्मविकलाद्वैधात् प्रतिषेधो वक्तुमिति ।
__ आत्मा क्रियावान् है । क्रियाके हेतु हो रहे गुणोंका आश्रय होनेसे, डेळके समान, या शब्द बनित्य है, कृतक होनेसे, अथवा पर्वत वन्हिमान् है, धूम होनेसे, इत्यादिक अनुमान वाक्योंमें दृष्टान्त आदि सम्बन्धी समर्थनसे युक्त हो रहे साधनधर्मके प्रयुक्त होते संते भी साध्य और दृष्टान्तके उक्त वर्णन किये जा चुके विकल्पसे वैधर्म्य करके प्रतिवादी द्वारा प्रतिषेध किया जाना नहीं प्राप्त हो सकता है। क्योंकि कुछ एक सधर्मापनके मिल जानेसे उपसंहार पूर्वक साध्यकी सिद्धि हो चुकी है। उसी बातको न्यायभाष्यकार वात्स्यायन " किंचित्साधादुपसंहारसिधादप्रतिषेधः" इस सूत्रके भाष्यमें अभ्यसे प्रारम्भ कर वक्तुमिति तक यों स्पष्ट कहते हैं कि सिद्धि हो चुके पदार्थका अपलाप या अविश्वास करना अलभ्य है। जब कि कुछ थोडेसे सधर्मापनसे उपमान सिद्ध हो चुका है । देखिये, जैसे गौ है वैसा गवय ( रोझ ) है। इस प्रकार उपमान उपमेय भाव बन चुकने पर और गवयके धर्मोका विकल्प उठाकर पुनः कुचोध किसीके ऊपर नहीं ढकेल दिया जाता है । इसी प्रकार दृष्टान्त, व्याप्ति, पक्षधर्मता पादिकी सामर्थ्यसे युक्त हो रहे साध्य, ज्ञापक हेतु, स्वरूप धर्मके प्रयुक्त हो चुकनेपर पुनः प्रतिवादीद्वारा साध्य और दृष्टान्तके धर्मविकल्पसे वैधयंकरके प्रतिषेध कहा जाना प्राप्त नहीं हो सकता है।
साध्यातिदेशमात्राच्च दृष्टान्तस्योपपत्तेः साध्यत्वासंभवात् । यत्र हि लौकिकपरीक्षकाणां बुद्धरभेदस्तेनाविपरीतार्थः साध्येऽतिदिश्यते प्रज्ञापनार्थ । एवं च साध्यातिदेशाद दृष्टान्ते कचिदुपपद्यमाने साध्यत्वमनुपपनामिति । तथोद्योतकरोग्याह । दृष्टांतः साध्य इति