Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके
समीचीन दृष्टान्तपनसे स्वीकार कर लिया है। ऐसी दशामें आकाश आदिको प्रतिपक्षका साधक दृष्टान्तपना नहीं बन सकता है। क्योंकि इसमें व्याघात दोष आता है । "पर्वतो वन्हिमान् धूमात्" यहां रसोई घरको बढिया अन्वय दृष्टान्त मान रहा पण्डित सरोवरको अन्वयदृष्टान्त नहीं कह सकता है। रसोई घरको दृष्टान्त कहते ही सरोवरके अन्वयदृष्टान्तपनका विघात हो जाता है। फिर भी चलाकर सरोवरको अन्वयदृष्टान्त यदि कह देगा तो उसके ऊपर व्याघात दोष लागू हो जायगा । जैसे कि किसी पुरुषको मनुष्य कहकर उसको अमनुष्य कहनेवालेके ऊपर प्रहके समान व्याघात दोष लग बैठता है । उसी प्रकार साध्य सिद्धिमें अनुकूल, प्रतिकूल, हो रहे डेल, या
आकाशमसे एकका दृष्टान्तपना स्वीकार कर चुकनेपर बचे हुये दूसरेका अदृष्टान्तपन ही सिद्ध हो जाता है । एक साथ अनुकूल, प्रतिकूल, दोनोंके समीचीन दृष्टान्तपनका तो विरोध है । जब कि यहां जैसा तेरा दृष्टान्त है, वैसा मेरा दृष्टान्त है । यह प्रतिवादीने स्वमुखसे कह दिया है। एता. वता उसने वादीके दृष्टान्तको अंगीकार कर लिया है । ऐसी दशामें प्रतिवादी अब प्रतिकूळ दृष्टान्तको कथमपि नहीं बोल सकता है । व्याधात दोष उसके मुखको मसोस देवेगा।
अथैवं ब्रूते यथायं मदीयो दृष्टान्तस्तथा त्वदीय इति तथापि न दृष्टान्तः कश्चित व्याघातादेव दृष्टान्तयोः परस्परं व्याषातः समानबलत्वात् । तयोरदृष्टान्तत्वे तु । प्रतिदृष्टान्तस्य ह्यदृष्टान्तत्वे दृष्टान्तस्यादृष्टान्तत्वव्याघातः प्रतिदृष्टान्ताभावे तस्य दृष्टान्तत्वो. पपत्तेः दृष्टान्तस्य चादृष्टान्तत्वे प्रतिदृष्टान्तस्यादृष्टान्तत्वव्याघातः दृष्टान्ताभावे तस्य प्रति दृष्टान्ततोपपत्तेः । न चोभयोदृष्टांतत्वं व्याघातादिति न प्रतिदृष्टान्तेन प्रत्यवस्थानं युक्तं ।
सिद्धान्ती ही कहते हैं कि अब यदि प्रतिवादी इस प्रकार कह बैठे कि जैसा यह आकाश मेरा दृष्टान्त है, उसी प्रकार तुझ वादीका डेल दृष्टान्त है । यों कहनेपर भी व्याघातदोष माता है । अतः तो भी दोनोंमेंसे कोई दृष्टान्त नहीं हो सकता है। बात यह है कि पहिले प्रतिवादीने जैसा तेरा दृष्टान्त है, वैसा मेरा दृष्टान्त है, यों कहा था और अब जैसे मेरा दृष्टान्त है, वैसे तेरा दृष्टान्त है, इस प्रकार कहा है । यों कह देनेपर पहिला दिया हुआ वादीके पक्षको पुष्ट करनेवाला व्याघातदोष तो निर्बल पड़ जाता है । तो भी क्या हुआ । व्याघात दोष तदवस्थ रहेगा । आमाके क्रियावत्वको साधनेमें प्रतिकूल हो रहे अपने आकाश दृष्टान्तको समीचीन दृष्टान्त कह रहा प्रतिवादी पुनः लगे हाथ क्रियावत्त्व साधने में अनुकूल हो रहे वादीके डेल दृष्टान्तको दृष्टान्त नहीं कर सकता है । यदि कह देगा तो पूर्वापरविरुद्ध कथन करनेसे इसमें व्याघात दोष आता है। अथवा " यथायं मदीयो न दृष्टन्तस्तथा त्वदीयोपीति " ऐसा पाठ होनेपर पर यों अर्थ कर लेना कि जैसे आत्माके क्रियारहितपनको साधनेमें मेरा आकाश दृष्टान्त प्रयोजफ नहीं हैं, उसी प्रकार तुम वादी का कोई डेढ दृष्टान्त भी आत्माके क्रियावस्वका प्रयोजक नहीं है । सिद्धान्ती कहते हैं कि तो व्याघात