Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 521
________________ तत्वाचिन्तामणिः - तस्य नित्येन गोत्वादिसामान्येन हि नित्यतां । ततः पक्षे विपक्षे च समाना प्रक्रिया स्थिता ॥ ३८३॥ तिस प्रकरणसमा जातिके अवसरपर कोई एक वादी तो शब्द बनित्य है ( प्रतिज्ञा ) मनुष्य के प्रयत्नसे उत्पत्तिवान् होनेसे (हेतु ) घटके समान ( दृष्टान्त ) । इस प्रकार बनिस्पके साथ सधर्मापनसे शब्दकी अनित्यताको साथ रहा है। यह एक पक्षकी प्रवृत्ति हुई । और दूसरा पण्डित पुनः नित्य हो रहे गोव, अश्वत्म, घटस्य आदि सामान्योंकरके उस शब्दके नित्यपनको साथ देवेगा। यह दूसरे प्रतिपक्षकी सिद्धि हुई । तिस कारणसे इस प्रकार होनेपर अनित्यत्व सापक पक्षमें और नित्यत्व साधक विपक्ष समानरूपसे प्रक्रिया व्यवस्थित बन गयी। तत्र हि प्रकरणसमायां जातो कबिदनित्यः शन्दा प्रयत्नानांतरीयकत्वादपटवदित्यनिस्यसापात् पुरुषप्रयत्नोद्भवत्वाच्छन्दस्यानित्यत्वं साधयति । पररा पुनर्गोत्वादिना सामान्येन साधर्म्यात्तस्य नित्यता साधयेत् । ततः पक्षे विपक्षे च प्रक्रिया समानेत्युभयपक्षपरिग्रहेण वादिप्रविवादिनोनित्यत्वानित्यत्वे साधयतः । साधर्म्यसमायां संशयसमायां च नैवमिति ताभ्यां भिमेयं प्रकरणसमा जातिः। वहां प्रकरणसमा जाति में कोई कोई विद्वान् तो शब्द बनित्य है, पुरुषप्रयत्नके अव्यवहित उत्तरकाळमें उत्पन्न होनेसे, घटके समान, इस अनुमानद्वारा अनित्यके साधर्म्य हो रहे पुरुषप्रयत्नजन्य उत्पति होने शब्दकी अनित्यताको साध रहा है और दूसरा प्रतिवादी विद्वान् फिर गोत्व आदि नित्य जातियोंके सधर्मापन ऐन्द्रियकत्वसे उस शब्दकी नित्यताको साध देता है । तिस कारणसे पक्ष पौर विपक्ष दोनोंमें साधनेकी प्रक्रिया समान है। इस प्रकार दोनों पक्षों के परिग्रह करके वादी प्रति. वादियों के यहां नित्यत्व और अनित्यत्व साध दिये जाते हैं । यह प्रकरणकी अतिवृत्ति नहीं करनेसे दूषण उठाना प्रकरणसम प्रतिषेध है । साधर्म्यसमा और वैधर्म्यसमा जातिमें तो इस प्रकार दोनों के साधर्म्यसे दोनों पक्ष प्रतिपक्षोंकी सिद्धि नहीं की गयी है । साधर्म्यसमा साधर्म्यकरके प्रतिपक्षसिद्धि की सम्भावना प्रत्यवस्थान उठाया गया है और संशयसमा उभयके साधर्म्यसे पक्ष, प्रतिपक्षों के संशय बने रहनेका प्रत्यवस्थान उठाया गया है। किन्तु इस प्रकरणसमामें अन्वय सहचर, बोर व्यतिरेक सहचरसे पक्ष, प्रतिपक्ष दोनोंकी प्रवृत्ति सिद्ध हो जानेका प्रत्यवस्थान दिया गया है। इस . कारण उन दोनोंसे यह प्रकरणसमा जाति मिन्न ही है। कथमीशं प्रत्यवस्थानमयुक्तमित्याह । प्रतिवादी द्वारा इस प्रकारका प्रकरणसम नामक प्रत्यवस्थान उठाना किस प्रकार भयुक्त है। ऐनी जिज्ञासा होनेपर न्यायसूत्र और न्यायभाष्यके अनुसार श्री विद्यानन्द आचार्य समाधान कहते हैं।

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