Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
साध्वका साधक है । तिसी प्रकार दृष्टान्त डेल भी दूसरे हेतु या दृष्टांत करके साध्यका साधक नहीं है। किंतु स्वतः सामार्थ्यसे अनित्यत्वका साधक है । अन्यथा पहिले मळे प्रकार कह दी गयी अनवस्थाका प्रसंग समान रूपसे लागू हो जायगा । तिस कारण प्रतिवादीके हो रहे आपके कहे गये आकाश दृष्टांतमें जैसे उसके समर्थक हेतुका कथन करना आवश्यक नहीं है, उसी प्रकार वादीके दृष्टान्तमें भी हेतु वचनकी आवश्यकता नहीं है । अतः आपके यहो वह डेक भी साधकका हेतु ही हो रहा मछा दृष्टान्त हो जाओ। जब प्रतिवादीने डेलको दृष्टान्त स्वीकार कर लिया तो प्रतिवादी आकशको अब प्रतिदृष्टान्त नहीं बना सकता है। " प्रतिदृष्टान्तहेतुत्वे च नाहेतुर्दृष्टान्तः " इस सूत्रके भाष्यमें माष्यकार कहते हैं कि प्रतिदृष्टान्तको कहनेवाले प्रतिवादीने कोई विशेष हेतु तो कहा नहीं है कि इस प्रकारसे मेरा प्रतिदृष्टान्त आकाश तो आत्माके निक्रिय साध्यका साधक है । और बादीका डेल दृष्टान्त आत्माके सक्रियत्वका साधक नहीं है । इस प्रकार प्रतिदृष्टान्त हेतुपने करके वादीका दृष्टान्त बहेतुक नहीं है। यह सूत्र आभिमत सध जाता है। किन्तु वह प्रतिवादीका दृष्टान्त अहेतुक क्यों नहीं होगा । जब कि बादीके साधकका उससे निषेध नहीं किया जा चुका है। अतः ऐसे युक्ति रहित दूषण उठाना प्रतिवादीका उत्तर प्रशस्त नहीं है।
तदाहोद्योतकरः । प्रतिदृष्टान्तस्य हेतुभावं प्रतिपपद्यमानेन दृष्टांतस्यापि हेतुभावोभ्युपगंतव्यः । हेतुभावश्च साधकत्वं स च कथमहेतुर्न स्यात् । यद्यप्रतिषिदः स्यात् अपति सिदश्चायं साधकः। ___उसी बातको उद्योतकर पण्डित यों कह रहे हैं कि अपने प्रतिदृष्टान्तको साध्यकी हेतुतारूपसे समझ रहे प्रतिवादीकरके वादीके दृष्टान्तको भी स्वसाध्यकी हेतुता स्वीकार कर लेनी चाहिये । हेतुभाव हो तो साध्यका साधकपन है। वह भला अन्य कारणोंकी अपेक्षा रखे बिना ही आहेतु क्यों नहीं होगा ! अर्थात्-वादीका दृष्टान्त या हेतुकी नहीं अपेक्षा रखता हुधा प्रकृत साध्यका साधक हो जाता है। यदि यह प्रतिवादीके दृष्टान्तसे प्रतिषिद्ध नहीं हुआ है, जब बाल बाल बच गया है तो अप्रतिषिद्ध हो रहा यह आत्माके सक्रियत्वका साधक हो ही जायगा । ऐसी दशामें प्रतिवादीका उत्तर समीचीन नहीं है।
किं च, यदि तावदेवं ब्रूते यथायं त्वदीयो दृष्टांतो लोष्ठादिस्तथा मदीयोप्पाकाशादिरिति तदा दृष्टांतस्य लोष्ठादेरभ्युपगमान दृष्टान्तत्वं व्याघातत्वात् ।
प्रतिदृष्टान्तसमके दूषणाभासपनमें दूसरी उपपत्ति यह भी है कि यह जातिवादी यदि निर्लज्ज होकर पहिले ही इस प्रकार स्पष्ट कह बैठे कि जिस प्रकार यह तेरा ( वादीका ) डेल, गोली आदि दृष्टांत है, तिसी प्रकार मेरा (प्रतिवादीका ) भी आकाश, चुम्बकपाषाण, काल, भादिक दृष्टान्त है। यों कहनेपर तो सिद्धान्ती कहते हैं कि तब तो प्रतिवादीने लोष्ठ, गोला आदि दृष्टान्तोंको
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