Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
क्रियाका होना असम्भव है । तो तुमने वायुके साथ हो रहे आकाशके संयोगको आकाशमें किया सम्पादनका कारण भला कैसे कह दिया था ? बतायो । प्रतिवादीकी ओर लेकर सिद्धान्ती समाधान करें देते हैं कि यह शंका नहीं करनी चाहिये । क्योंकि वायुके साथ वनस्पतिका संयोग तो वृक्षमें क्रियाका कारण होता हुआ प्रसिद्ध हो रहा है। आकाशमें हो रहा वायुके साथ संयोग भी उस वृक्ष वायुके संयोगका समानधर्मा है । अर्थात्-धमान धर्मवाळे वृक्षवायुसंयोग और आकाशवायुसंयोगकी जाति एक ही है । अब यह कटाक्ष शेष रह जाता है कि उस क्रियाके कारण संयोग करके वृक्षों जैसे क्रिया हो जाती है, उसी प्रकार आकाशमें भी उस संयोग करके देशप्ते देशान्तर हो जाना रूप क्रिया क्यों नहीं हो जाती है ! कारण है तो कार्य अवश्य होना चाहिये । इसका समाधान प्रतिवादीकी ओरसे यों कर दिया जाता है कि जो वह वायु आकाशसंयोग इस प्रकार क्रियाका कारण हो चुका भी वहां आकाशमें क्रियाको नहीं कर रहा है, वह तो आकरणपनसे क्रियाका असम्पादक है, यह नहीं समझ बैठना । किन्तु महापरिमाण करके आकाशमें क्रिया उपजनेका प्रतिबन्ध हो जाता है । सर्वत्र ठसाठस भर रहा आकाश भला कहां जाय ! अर्थात्-बात यह कि कारणोंका बहुभाग फलको उत्पन्न किये बिना यों ही नष्ट हो जाता है। सहकारी सामग्री मिलनेपर यानी अन्य कारणों की बिककता नहीं होनेपर और प्रतिबन्धकोंके द्वारा कारणोंकी सामर्थ्यका प्रतिबंध नहीं होनेपर अल्पभाग कारण ही स्वजन्य कार्योको बनाया करते हैं। प्रतिबन्धकोंके आ जानेपर पदि कारणोंसे कार्य नहीं हुआ तो एतावता कारण आकारण नहीं हो जाता है। बत्ती, तेल, दियासलाई ये दीपकलिकाके कारण हैं । किन्तु प्रबल वायु ( बांधी ) के चलने पर उन कारणोंसे यदि दीपकळिका नहीं उपजसकी तो एतावता वत्ती, आदिकी कारणता समूळ नष्ट नहीं हो जाती है । उसी प्रकार आकाशका वायुके साथ हो रहा संयोग भी आकाशमें क्रिया सम्पादनकी स्वरूपयोग्यता रखता है । किन्तु क्या करें कि वह संयोग बाकाशमें समवेत हो रहे क्रियाप्रतिबन्धक परम महापरिमाण गुणकरके प्रतिबन्ध प्राप्त कर दिया गया है। मतः फलोपधायक नहीं होनेसे उस संयोगके क्रियाकारणपनका अभाव नहीं हो जाता है। अतः बाकाशमें क्रियासम्पादनकी योग्यता रखनेवाला गुण वायु आकाश संयोग है । प्रतिबन्धक पदार्थके होनेसे यदि वहां क्रिया नहीं उपज सके, इसका उत्तरदायित्व ( जिम्मेदारी ) हम (प्रतिवादी ) पर नहीं है । जैसे कि मन्दवायु करके अनन्त डेल, डेठी, कंकडियों, वालुकाकोंमें क्रिया नहीं हो पाती है। गुरुत्व या आधार आधेय दोनोंमें वर्त रहा भाकर्षकपन धर्म तो क्रियाका प्रतिबन्धक हो जाता है। हां, तीन वायु होनेपर वे प्रतिबन्धक पदार्थ डेल आदिकी क्रियाको नहीं रोक पाते हैं।
और यदि तुम शंकाकार यों मान बैठो हो कि आकाशमें क्रियाका कारण यदि वायुसंयोग माना जाता है, तो वहां क्रिया हो जाना दीख जाना चाहिये । इसपर हम सिद्धान्तियोंको यों उत्तर देना है कि तब तो आपके यहां सभी कारण अपनी अपनी क्रियाके द्वारा ही अनुमान करने योग्य हो