Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
सकेंगे। यह प्रसंग प्राप्त होता है । और तैसा हो जानेसे अर्थक्रियाके अभिलाषी जीवोंके किसी एक विशेष कारणका ही उपादान करना नहीं प्राप्त होता है । चाहे कोई भी सामान्य कारण हमारी अभीष्ट क्रियाको साध देगा । तुम्हारे मन्तव्य अनुसार सभी कारण अपनी क्रियाबोंको करते ही हैं। तो फिर लौकिक जनोंको अनेक कारणोंमें इस प्रकार जो संशय हो जाता है कि न जाने यह कारण हमारी अभीष्ट क्रियाको करेगा ! अथवा नहीं करेगा ! यह सन्देह क्यों हुषा । हां, निस शंकाकारके यहां सभी समर्थकारण या असमर्थ कारण बावश्यकरूपसे यदि क्रियाको करनेमें समर्थ हो रहे हैं। तब तो चाहे किसी भी कारण (असमर्थ ) का ग्रहण किया जा सकता है। क्योंकि उसके यहां सभी कारण स्वयोग्य क्रियाओंको करने के लिये उचित प्रतीत हो रहे हैं । अथवा जिस विचारशील प्रतिवादीके यहां पुनः क्रियाको करनेमें मळे प्रकार समर्थ होनेसे उसी विशेष कारणका उपादान करना माना जाता है, उसीके यहां तो सभी सिद्धान्त उचित दीख जाता है। भावार्थ-क्रिया कर देनेसे ही कारणपनेका निर्णय नहीं हुआ करता है। बहुभाग बीज यों ही पीसने, खाने, भूजने, सडने, गळनेमें नष्ट हो जाते हैं । एतावता अंकुर उत्पन्न करनेमें उन बीजोंका कारणपना नहीं मेट दिया जाता है । वृक्षोंमें वासोंमें, लठ्ठधारी ग्रामीणोंके हाथमें या दण्डधारी नागरिकोंके मृदुकरोंमें डण्डा, लठियां, कुबडियां विद्यमान हैं । ये सभी घटको बनाने में कारणपनेकी योग्यता - रखती। किन्तु कुम्हारके हाथमें लगा हुआ, भोंडा डण्डा ही चाकको घुमाता हुआ घडेका फलोपधायक कारण माना जाता है । एतावता अन्य यष्टियोंकी स्वरूपयोग्य कारणता दूर नहीं फेंक दी जाती है । विधवा हो जानेसे युवति कुलस्त्रीकी सन्तान उत्पादन कारणता नहीं मर जाती है। बात यह है कि क्रियावोंको उत्पन्न करें तभी वे कारण माने जाय, यह नियम नहीं मानना चाहिये । देखिये । किसान किन्हीं अपरीक्षित बीजोंमें मुबीज कुबीजपनेका संशय करते हैं। तभी तो परीक्षाके लिये भोलामें थोडेसे बीज बोकर सुबीज कुबीजपनका निर्णय कर लेते हैं । जब कि सभी बीजोंमें अङ्कुर उत्पादन क्रियाकी योग्यता थी तमी तो किसानोंको संशय दुआ,मले ही उनमें से अनेक बीज अंकुरोको नहीं उपजा सकें । छात्रोंको पढाने वाला अध्यापक उत्तीर्ण होने योग्य समझकर बीस छात्रोंको वार्षिक परीक्षामें बैठा देता है। उसमें बारह छात्र उत्तीर्ण हो जाते हैं । और आठ छात्र अनुत्तीर्ण हो जाते हैं। कभी कभी तो उत्तीर्ण होने योग्य छात्र गिर जाते हैं । और अनुत्तीर्ण होने योग्य विद्यार्थी चाटुकारतासे प्रविष्ट हो कर उत्तीर्ण होनेकी बाजीको जीत केते हैं। बात यह कि क्रियाकी योग्यता मात्रसे कारणपनेका ज्ञान कर लिया जाता है। भविष्यमें होनेवाली सभी क्रियायें भला किस किसको दीखती हैं। किन्तु क्रियाओंके प्रथम ही अर्थोंमें कारणपनेका अवभास कर लिया जाता है । हो, प्रतिबंधकोंका अभाव होनेपर और अन्यसहकारी कारणोंकी परिपूर्णता होनेपर समर्थकारण अवश्य ही क्रियाको करते हैं। किन्तु लाखों कारणोंमेसे सम्भवतः एक ही भाग्यशाली कारणको उपर्युक्त योग्यता मिलती है । शेष