Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वार्थकोकवार्तिके
नैवमात्मा ततो नायं निष्क्रियः संप्रतीयते । साधर्म्येणापि तत्रैवं प्रत्यवस्थानमुच्यते ॥ ३३३ ॥ क्रियावानेव लोष्ठादिः क्रियाहेतुगुणाश्रयः । दृष्टास्तादृक्स जीवोपि तस्मात्सक्रिय एव सः ॥ ३३४ ॥ इति साधर्म्यवैधर्म्य समयोर्दुषणोद्भवात् । सधर्मत्वविधर्मत्वमात्रात्साध्य प्रसिद्धितः ॥ ३३५ ॥
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वादीद्वारा वैधर्म्य करके पक्ष में साध्य व्याप्य हेतुका उपसंहार किया जा चुकनेपर पुनः प्रतिवादीद्वारा साध्यधर्म के विपर्ययकी उपपत्ति हो जानेसे वैधर्म्य करके और उससे दूसरे हो रहे साधर्म्य - करके भी जो प्रत्यवस्थान दिया जाता है, वह वैधर्म्यसमा जाति इष्ट की गयी है । उसका दृष्टान्त यह है कि यह आत्मा ( पक्ष ) क्रियारहित ही है ( साध्य ) । क्योंकि आत्मा सर्वत्र व्यापक है ( हेतु ) । जो भी कोई पदार्थ फिर क्रियासहित देखा गया है, वह व्यापकपनसे रहित है । जैसे कि डेल, बाण, बन्दूक की गोली, दौड रहा घोडा आदि पदार्थ मध्यम परिमाणवाले अव्यापक हैं । तिस प्रकारका अव्यापक आत्मा नहीं है । तिस कारणसे आत्मा क्रियारहित है । इस प्रकार वादीद्वारा वैधर्म्म करके उपसंहार कह चुकनेपर निग्रह ( पराजय ) स्थानसे भय खा रहे किन्हीं प्रतिवादियों के द्वारा वैधर्म्य करके ही जो दूषण देना रूप क्रिया की जाती है कि आकाश द्रव्य तो क्रियाहेतुगुणोंसे रहित मळे प्रकार देखा गया है। इस प्रकारका आत्मा द्रव्य तो क्रियाहेतु गुणरहित नहीं है। तिस कारण से यह आत्मा क्रिया रहित नहीं है । यों भले प्रकार प्रतीत हो रहा है। क्रियावान्के वैसे आत्मा निष्क्रिय तो हो जाय, किन्तु फिर क्रियारहितके वैधर्म्यसे आत्मा क्रियावान् नहीं होय इसका नियामक कोई वादीके पास विशेष हेतु नहीं है । यों प्रतिवादी कटाक्ष झाड रहा है, यह बादीद्वारा वैधर्म्य करके आत्माके क्रियारहितपनका विभुत्वहेतुसे उपसंहार किया जा चुकनेपर प्रतिबादीद्वारा वैधर्म्य आत्माको सक्रिय साधनेवाळे वैत्रसमका उदाहरण हुआ । अब साधर्म्यकर के प्रतिवादीद्वारा प्रत्यवस्थान उठाये जानेका उदाहरण कहा जाता है कि उस ही वादीके अनुमान में यानी आत्मा क्रियारहित है, व्यापक होनेसे, यहां प्रतिवादीद्वारा साधर्म्यकरके भी इस प्रकार प्रत्यव - स्थान कहा जाता है, क्रियावान् हो रहे ही डेल, गोळी आदिक पदार्थ क्रियाहेतुगुणों के आधार देखे जाते हैं, उसी प्रकार वह प्रसिद्ध आत्मा भी क्रिया हेतु गुणोंका आश्रय है । तिस कारण वह आत्मा क्रियावान् ही है । इसमें कोई विशेषता नहीं है कि वादी करके कहे गये क्रियावान् के वैधर्म्य विभुत्वसे आत्मा आकाशके समान निष्क्रिय तो होजाय किन्तु फिर प्रतिवादी करके कहे गये
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