Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्वार्थोकवार्तिके .
-
किं पुनश्छलमित्याह।
उपर विवरणमें श्री विद्यानन्द स्वामीने छलका दृष्टान्त दिया है, जो कि नैयायिकोंके यहां माने गये मूलतत्त्व सौलह पदार्थोंमें परिगणित किया गया है। और जिसको श्री विद्यानन्द स्वामीने प्रतिज्ञाहानि धादिमें पहिले गिना दिया है। अब वह छल क्या पदार्थ है ! इस प्रकार शिष्यको जिज्ञासा होनेपर श्रीविद्यानन्द आचार्य नैयायिकोंके अनुसार छलका लक्षण कहते हुये विचार करते हैं।
योरोपोपपत्त्या स्याद्विघातो वचनस्य तत् । छलं सामान्यतः शक्यं नोदाहर्तुं कथंचन ॥ २७७ ॥ विभागेनोदितस्यास्योदाहतिः स त्रिधा मतः । वाक्सामान्योपचारेषु छलानामुपवर्णनात् ॥ २७८ ॥
गौतम सूत्रके अनुसार छलका साधारण लक्षण यह है कि वादी द्वारा स्वीकृत किये अर्थका जो विरुद्ध कल्प है, यानी अर्थान्तरकी कल्पना है, उसकी उपपत्ति करके जो वादी द्वारा कहे गये अर्थका प्रतिवादी करके विधात है, वह उस प्रतिवादीका छल है। सामान्य रूपसे उस छलका उदाहरण कैसे भी नहीं दिया जा सकता है । " निर्विशेषं हि सामान्यं भवेच्छशविषाणवत्" न्यायभाष्यकार कहते हैं कि " न सामान्यलक्षणे छलं शक्यमुदाहर्तुमविभागे तूदाहरणानि " हां, विभागकरके कह दिये गये इस छलका उदाहरण सम्भव जाता है । और वह छलोंका विभाग वाक्छल, सामान्य छळ, उपचार छळ इन भेदोंमें वर्णना कर देनेसे तीन प्रकारका माना गया है।
अर्यस्पारोपो विकल्पः कल्पनेत्यर्थः तस्योपपत्तिः घटना तया यो वचनस्य विशेषेणाभिहितस्य विघातः प्रतिपादकादभिप्रेतादर्थात् प्रच्यावनं तच्छलमिति लक्षणीयं, 'वचनविधातोर्थविकल्पोपपत्या छळं' इति वचनात् । तच्च सामान्यतो लक्षणे कथमपि न पक्यमुदाहर्तु विभागेनोक्तस्य तच्छलस्योदाहरणानि शक्यते दर्शयितुं । स च विभागस्त्रिधा मनोऽक्षपादस्य तु त्रिविधमिति वचनात् । वाक्सामान्योपचारेषुछलानां त्रयाणामेवोपवर्णनात् वाक्छक, सामान्यछळं, उपचारछवं चेति ।
छलके प्रतिपादक गौतमसूत्रका व्याख्यान इस प्रकार है, कि वादीके अभीष्ट अर्थका बारोप यानी विकल्प इसका अर्थ तो अर्थान्तरकी कल्पना है । उस आरोपकी उपपत्ति यानी घटित करना उस करके जो वादीके वचनका यानी विशेष अभिप्राय करके कहे गये वक्तव्यका विशेष युक्तिकरके विघात कर देना अर्थात्-प्रतिपादकसे अभिप्रेत हो रहे अर्थसे वादीको प्रच्युत करा देना, इस प्रकार छलका सामान्य रूपसे लक्षण करने योग्य है। मूल गौतमसूत्रमें इसी प्रकार कथन है कि अर्थके