Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यशोकवार्तिके
मर्थान्तरकी कल्पना करना वाक्छल नामको धारता हुआ भला प्रत्यवस्थान उठानेवाले प्रतिवादीको कैसे अन्यायपूर्वक कहनेकी टेवको प्राप्त करा देगा ! समाधान करो । इस प्रकार कहनेपर आचार्य उत्तर देते हैं कि छळ जब अन्यायस्वरूप है तो छलप्रयोक्ता मनुष्य अन्यायवादी अवश्य हुआ। इस बातको और भी स्पष्ट कर कह देते हैं कि इस प्रतिवादीका दूषण उठाना अन्यायरूप है । सामान्य वाचक शन्दोंके जब अनेक अर्थ प्रसिद्धि हो रहे हैं तो उनमें किसी भी एक अर्थके कथन की कल्पनाका विशेष कथनसे यह उस वादीका प्रत्यवस्थान दिखलाया गया होना चाहिये । विशेष रूपसे हम यह जान पाये है कि इसके पास संख्यामें नौ कम्बल हैं । यह अर्थ तुम वादीद्वारा विवक्षा प्राप्त है। किन्तु इसका कंबल नवीन है, यह अर्थ तो फिर विवक्षित नहीं है । और वह नौ संख्यावाला विशेष अर्थ यहां देवदत्तमें घटित नहीं होता है । तिस कारणसे यह मेरे ऊपर झूठा अमियोग ( जुर्म लगाना ) है । इस प्रकार विपरीत समर्थन करना छलवादीके ही सम्भवता है। आचार्य महाराज न्यायभाष्यका अनुवाद कर रहे हैं कि लोकमें शब्द और अर्थका सम्बन्ध तो अमिधान और अभिधेयके नियमका नियोग करना प्रसिद्ध हो रहा है । इस शब्दका यह अर्थ मभिधान करने योग्य है । इस प्रकार सामान्य शब्दका अर्थ समान है और विशेष शब्दका अर्थ विशिष्ट है । उन शब्दोंका पूर्वकाळमें भी लोकव्यवहारार्थ प्रयोग कर चुके हैं । वे ही शब्द अर्थप्रतिपादनमें समर्थ होनेके कारण इस समय अर्थोंमें प्रयोग किये जाते हैं । वे शब्द पहिले वचनव्यवहारोंमें प्रयोग नहीं किये गये हैं । यह नहीं समझना शब्दोंके प्रयोगका व्यवहार तो वाच्य अर्थका भळे प्रकार ज्ञान हो जानेसे हो जाता है । अर्थका भले प्रकार ज्ञान करानेके लिये शब्दप्रयोग है और अर्थके सम्यग्ज्ञानसे लोकव्यवहार है । तहां इस प्रकार अर्थवान् शब्दके होनेपर अर्थमें शब्दका प्रयोग करना नियत हो रहा है । छिरियाको गावको ले जाओ, घृतको लाओ, ब्राह्मणको भोजन कराओ इत्यादिक शब्द सामान्यके वाचक होते हुये भी सामर्थ्य द्वारा अर्थविशेषोंमें प्रयुक्त किये जाते हैं। जिस विशेष अर्थमें अर्थक्रियाकी प्रेरणा होना सम्भवता है। उसी अर्थमें वाचकपनसे वर्त रहे हैं। अर्थ सामान्य छिरिया, ब्राह्मण आदि सामान्योंमें किसी भी क्रियाकी प्रेरणा नहीं सम्भवती है । विशेषोंसे रहित छिरियासामान्य या ब्राह्मणसामान्य कुछ पदार्य नहीं है। तिस ही कारणसे छिरिया, ब्राह्मण घोडा आदि विशेष पदार्थो ही की लाना, ले जाना, भोजन कराना आदि क्रियायें प्रतीत हो रही है। किन्तु फिर उनके विशेषरहित केवळ सामान्यके तो किसी भी अर्थ क्रियाके हो जाने की सम्भावना नहीं है। और न कोई सामान्यका लक्ष्य कर उसमें अर्थ क्रिया करनेका उपदेश ही देता है। इसी प्रकार यह " नवकंबल" शब्द सामान्य शब्द है। नवसंख्या नव संख्यावान् और नवीन इन दोनों विशेषोंमें नवपना सामान्य अन्वित है । इस प्रकार नवका ओ अर्थ यहां पक्षमें सम्भव रहा है कि इस देवदत्तका दुशाला मवीन है, उस विशेष अर्यमें यह नव शब्द वर्त रहा है। और जो अर्थ यहां सम्भवता नहीं है कि इसके पास संख्या में नौ कम्बल