Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ लोकवार्तिके
aिये नव शद्धके नौ और नया ये दोनों अर्थ संभव रहे हैं, वहां प्रतिवादीका छल बताना न्यायमार्ग नहीं है । सो तुम स्वयं विचार हो ।
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यत्र पक्षे विवादेन प्रवृत्तिर्वादिनोरभूत् । तत्सिद्धचैवास्य धिकारोन्यस्य पत्रे स्थितेन चेत् ॥ २८८ ॥ कैवं पराजयः सिद्धचेच्छलमात्रेण ते मते । संधाहान्यादिदोषैश्च दात्राऽऽदात्रोः स पत्रकम् ॥ २८९ ॥
नैयायिक कहते हैं कि बादी और प्रतिवादीकी पत्रमें स्थित हो रहे विवाद द्वारा जिस पक्षमें प्रवृत्ति हुई है, उस पक्ष की सिद्धि कर देनेसे ही इसका जय और अन्यका धिक्कार होना संभवता है, अन्यथा नहीं, इस प्रकार कहनेपर तो आचार्य कहते हैं, कि यह तुम्हारा मन्तव्य बहुत अच्छा है । किन्तु इस प्रकार माननेपर तुम्हारे मतमें केवल छलसे ही प्रतिवादीका पराजय भला कहां कैसे सिद्ध
जावेगा ? तथा प्रतिज्ञाहानि, प्रतिज्ञान्तर आदि दोषों करके भी पराजय कहां हुआ, जबतक कि अपने पक्ष की सिद्धि नहीं की जायगी तथा गूढपदवाळे पत्रके दाता और पत्रके गृहीताका वह पराजय कहां हुआ ? अतः इसी भित्तिपर दृढ बने रहो कि अपने पक्षकी सिद्धि करनेपर ही वादीका जय और प्रतिवादीका पराजय होगा, अन्यथा नहीं ।
यत्र पक्षे वादिप्रतिवादिनोर्विप्रतिपत्त्या प्रवृत्तिस्तत्सिद्धेरेवैकस्य जयः पराजयोन्यस्य, न पुनः पत्रवाक्यार्थानवस्थापनमिति ब्रुवाणस्य कथं छलपात्रेण प्रतिज्ञाहान्यादिदोषैश्च स पराजयः स्यात् पत्रं दातुरादातुश्चेति चिंत्यतां ।
जिस पक्षमें वादी और प्रतिवादीकी विप्रतिपत्ति ( विवाद ) करके प्रवृत्ति हो रही है, उसकी सिद्धि हो जानेसे ही एकका जय और अन्यका पराजय माना जाता है । किन्तु फिर पत्रमें स्थित हो रहे वाक्य अर्थ की व्यवस्था नहीं होने देना कोई किसीका जय पराजय नहीं है । अथवा केवळ अनेक अर्थपनका प्रतिपादन कर देना ही जय, पराजय, नहीं । इस प्रकार भले प्रकार बखान रहे नैयायिकके यहां केवल छल कर देनेसे और प्रतिज्ञाहानि आदि दोषों करके पत्र देनेवाले और लेनेवालेका वह पराजय कैसे हो जावेगा ? इसकी तुम स्वयं चिन्तना करो अर्थात् - जब स्वकीय पक्षकी सिद्धि और असिद्धि जय पराजयव्यवस्थाका प्राण है, तो केवळ प्रतिवादी द्वारा छळ या निग्रहस्थान उठा देनेसे ही गूढ अर्थवाले पत्रको देनेवाले वादीका पराजय कैसे हो जायगा ? और क्या सहजका मठा (छाछ) है, जो कि लिखित गूढ पत्रको ले रहा प्रतिवादी शट जयको लूट लेवे । विचार करनेपर यह वाक्छलकी उपपत्ति ठीक नहीं जमी ।