Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ श्लोकवातिके
कहीं आकाशमें पिनको प्राप्त करा देता है । तथा कहीं सुख, बुद्धि रूप आदिक गुण और चलना, घूमना आदि क्रियाओंमें नित्यपनका अतिक्रमण कर देता है । तिस कारण सपक्ष और विपक्ष में वृत्ति हो जानेसे अस्पर्शवस्व हेतुको व्यभिचारी मानना युक्त पडता है । तथा ब्राह्मणत्व हेतु जैसे सुशील विद्वान् ब्राह्मण में ज्ञान, चारित्र, सम्पत्तिको प्राप्त करा देता है । और ब्राह्मणके, छोटे बच्चे में साध्यस्त्ररूप उस सम्पत्तिको घटित नही करा पाता है, उसी प्रकार शब्दके अनित्यपनको साधने के लिये प्रयुक्त किया गया प्रमेयत्व हेतु भी कहीं घटादिकमें अनित्यपनको घर देता है और कहीं आकाश, परमाणु आदि विपक्षों में उस साध्यके नहीं रहनेपर भी विद्यमान रह जानेसे अनित्यपनका अतिक्रमण करा देता है । इसी प्रकार प्रकरण में भी ब्राह्मणत्व हेतुका अनैकान्तिकपन उठाया गया है प्रतिवादीने कोई छल नहीं किया। ऐसा हमारे विचार में आया है । व्यर्थमें किसीकी भर्त्सना करना न्याय नहीं ।
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विद्याचरणसंपत्तिविषयस्य प्रशंसनं ।
ब्राह्मणस्य यथा शालिगोचर क्षेत्रवर्णनम् ॥ २९७ ॥ यस्येष्टं प्रकृते वाक्ये तस्य ब्राह्मणधर्मिणि । प्रशस्तत्वे स्वयं साध्ये ब्राह्मणत्वेन हेतुना ॥ २९८ ॥ harariant हेतुरुद्भाव्यो न प्रसह्यते ।
क्षेत्रे क्षेत्रत्ववच्छालियोग्यत्वस्य प्रसाधने ॥ २९९ ॥
यदि नैयायिकों का यह मन्तव्य होय कि छलप्रयोगी प्रतिवादीने वादीके विवक्षित हेतुको नहीं समझ कर यों ही प्रत्यवस्थान उठा दिया है । वास्तवमें देखा जाय तो यह वाक्य उस पुरुषकी प्रशंसा करने के लिये कहा गया था । तिस कारणसे यहां असंभव हो रहे अर्थकी कल्पना नहीं हो सकती थी । ऐसी दशा में प्रतिवादीने असंभव अर्थकी कल्पना की है । अतः उसने छप्रयोग किया है । जैसे कि कलम आदिक शालिधान्योंके प्रवृत्ति विषय खेतकी प्रशंसाका वर्णन करना है कि इस खेतमें धान्य अच्छा होना चाहिये, इसी प्रकार ब्राह्मणमें विद्या, आचरण, संपत्तिरूप विषयकी वादी द्वारा प्रशंसा की गयी है । प्रतिवादी द्वारा उस प्रशंसा अर्थकी हत्या नहीं करनी चाहिये । यों नैयायिकों के अभीष्ट करनेपर आचार्य कहते हैं कि जिस नैयायिकको प्रकरण प्राप्त वाक्य में यों इष्ट है, कि ब्राह्मण स्वरूप पक्ष में ब्राह्मणपन हेतु करके प्रशस्तपना साध्य करनेपर वादी द्वारा स्वयं अनुमान कहा गया माना है । उसके यहां हेतुका अनैकान्तिक दोष उठाने योग्य है । यह किसीके द्वारा भला नहीं सहा जावेगा । जैसे कि खेतमें धान्य के योग्यपनका क्षेत्रत्व हेतु करके प्रशंसनीय साधन करने