Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ श्लोक वार्तिके
नैयायिकोंने प्रथम यों कहा था कि ब्राह्मण पक्षमें विद्या, आचरण सम्पत्तिके विषयमें ब्राह्मrea हेतु करके प्रशंसा करना साधा जारहा है । जैसे कि शाली चावलोंके विषय हो रहे खेत में क्षेत्रत्व हेतु करके साक्षात् प्रशंसा के गीत गाये जाते हैं । किन्तु फिर ब्राह्मणपने करके विद्या, आचरण, सम्पत्तिकी सत्ता तो नियमसे नहीं साधी जाती है। जिससे कि संस्कारहीन बामनमें अतिप्रसंग हो जाय । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार हेतुके अनैकान्तिकपनका स्वयं परिहार कर रह भी यह प्रसिद्ध नैयायिक उस प्रतिवादी द्वारा उठाये गये अनैकान्तिकपनको स्वीकार नहीं कर छप्रयोग बता रहा है । ऐसी दशा में वह न्यायशास्त्रका वेत्ता कैसे कहा जा सकता है । नैयायिक यह केवल उसका नामनिर्देश है । अन्वर्थसंज्ञा नहीं है। नहीं तो न्याय की गद्दी पर बैठकर ऐसी अनीति क्यों करता। हां, वास्तवमें जो छलपूर्ण व्यवहार कर रहा है, उसको कपटी, मायाचारी, भ ही कह दो, किन्तु जयकी प्राप्ति तो अपने पक्षकी भछे प्रकार सिद्धि कर देमेसे ही अंकगत होगी । अन्यथा टापते रह जाओगे ।
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तयोपचारछळमनूद्य विचारयन्नाह ।
तिस ही प्रकार नैयायिकों द्वारा माने गये तीसरे उपचार छलका अनुवाद कर विचार करते हुये श्री विद्यानन्द आचार्य वार्तिकोंको कहते हैं ।
धर्माध्यारोपनिर्देशे सत्यर्थप्रतिषेधनम् ।
उपचारछलं मंचाः क्रोशतीत्यादिगोचरम् ॥ ३०० ॥ मंचा क्रोशति गायंतीत्यादिशब्दप्रयोजनम् । आरोप्य स्थानिनां धर्मं स्थानेषु क्रियते जनैः ॥ ३०९ ॥ गौणं शब्दार्थमाश्रित्य सामान्यादिषु सत्त्ववत् । तत्र मुख्याभिधानार्थप्रतिषेधश्छलं स्थितम् ॥ ३०२ ॥
" धर्मविकल्प निर्देशेऽर्थ सद्भावप्रतिषेध उपचारच्छलम् "" यह न्यायदर्शनका सूत्र है। इसके artist अर्थ विवरण में किया जायगा । सामान्य कथन वार्तिकयोग्य यों है कि धर्मके विकल्प यानी अध्यारोपका सामान्य रूपसे कथन करनेपर अर्थ के सद्भावका प्रतिषेध कर देना उपचार छ है । जैसे कि " मंचाः क्रोशति " " गंगायां घोषः " नीलो घटः "अग्निर्माणवकः" इत्यादिकको विषय करनेवाले वाक्य उच्चारण करनेपर अर्थका निषेध करनेवाला पुरुष छलका प्रयोक्ता है । मंच शद्वका अर्थ मचान ( बडी खाट ) या खेतोंकी रक्षाके किये चार खम्मोंपर बांध लिया गया मेहरा है । मचानपर बैठे हुये मनुष्य गा रहे हैं। इस अर्थमें मचान गा रहे हैं। इस शद्बका प्रयोग हो रहा