Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
""
""
कोई कहता है कि " आढ्यो वै वैधवेयोयं वर्तते नवकंबल : यह मालदार विधवाका छोकरा बहुत धनवान् है, नव कंवल (बढिया दुशाला) वाळा होनेसे । यहां इस अनुमानमें नव और कम्बल शद्वकी कर्मधारय नामक समास वृत्ति करके विशेष रूपसे " नवकंवल शब्द कहा गया है कि इसके पास नवीन कंवल रहता है । फटा, टूटा, पुराना कम्बल कभी देखने में आता नहीं है । इस प्रकारका ही वक्ताका अभिप्राय तांत्रिक रूपसे संभव रहा है । किन्तु प्रतिवादी कषायवश 1 उस अभिप्रेत अर्थसे अन्य अर्थकी कल्पना कर दोष देनेके लिये बैठ जाता है, कि नव कंबल शब्द द्वारा इसके नौ संख्यावाले कंबल होने चाहिये, आठ मी नहीं, इस प्रकार असंभव स्वरूप अर्थकी कल्पना कर प्रत्यवस्थान उठा रहे प्रतिवादीके ऊपर अन्याय पूर्वक बोलने की चांटको निश्चित ही प्राप्त करा देना चाहिये अर्थात् - प्रतिवादीको अन्याय वादी माना जाय करार दिया जाय ) तत्त्वोंकी परीक्षा करनेमें सज्जन पुरुष अधिकार प्राप्त हो रहे हैं । छलपूर्वक कहनेवाले मला तत्त्वोंकी परीक्षा कैसे कर सकेंगे ? अथवा जो सज्जन हैं, वे स्वभावसे छलपूर्वक वाद करनेवाले कैसे हो जायेंगे ! अर्थात् - कभी नहीं ।
४३३
कथं पुनरनियमविशेषाभिहितोर्थः वक्तुरभिप्रायादर्थांतरकल्पना वाक्छलाख्या प्रत्यवस्थातुरन्यायवादितामानयेदिति चेत् छलस्यान्यायरूपत्वात् । तथाहि - तस्य प्रत्यवस्थानं सामान्यशद्धस्यानेकार्थत्वे अन्यतराभिधान कल्पनाया विशेषवचनाद्दर्शनीयमेतत् स्यात् विशेषाज्जानीमोऽयमर्थस्त्वया विवक्षितो नवास्य कंबला इति, न पुनर्नवोस्य कंबल इति । स च विशेषो नास्ति तस्मान्मिथ्याभियोगमात्रमेतदिति । प्रसिद्धश्च लोके 'शद्धार्थ संबंधोभिधानाभिषेयनियमभियोगोस्याभिधानस्यायमर्थोभिधेय इति समानार्थः सामान्यशद्वस्य, विशिष्टोर्थो विशेषशद्वस्य । प्रयुक्तपूर्वाश्वामी शूद्राः प्रयुज्यंतेऽर्थेषु सामर्थ्यान्न प्रयुक्तपूर्वाः प्रयोगश्रार्यः अर्थसंप्रत्ययाद्व्यवहार इति तत्रैवमर्थवत्यर्थशद्वप्रयोगे सामर्थ्यात्सामान्यशद्वस्य प्रयोगनियमः । अजां नय ग्रामं, सर्पिराहर, ब्राह्मणं भोजयेति सामान्यशद्वाः संतोर्थावयवेषु प्रयुज्यंते सामर्थ्यात् । यत्रार्थे क्रियाचोदना संभवति तत्र वर्तते, न चार्थसामान्ये अजादौ क्रियाचोदना संभवति । ततोजादिविशेषाणामेवानयनादयः क्रियाः प्रतीयते न पुनस्तत्सामान्यस्यासंभवात् । एवमयं सामान्यशब्दो नवकंबल इति योर्थः संभवति नवः कंवलोस्येति तत्र वर्तते यस्तु न संभवति नवास्य कंबला इति तत्र न वर्तते प्रत्यक्षादिविरोधात् । सोयममुपपद्यमानार्थकल्पनया परवाक्योपालंभत्वेन कल्प्यते, तत्र्वपरीक्षायां सतां छलेन प्रत्यवस्थानायोगात् । तदिदं छलवचनं परस्य पराजय एवेति मन्यमानं न्यायभाष्यकारं प्रत्याह ।
कोई आचार्य महाराजके ऊपर प्रश्न करता है कि आप फिर यह बताओ कि विशेष नियम किये बिना ही ताका सामान्यरूपसे कह दिया गया अर्थ ( कर्त्ता ) वक्ता के अभिप्रायसे
55