Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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वादी प्रतिवादियों को न्यायपूर्वक सार्थक प्रकृतोपयोगी वाक्य कहने चाहिये । इस प्रकार सामान्य विषयके होते हुये पक्ष और प्रतिपक्षके परिग्रह करनेमें हेतु द्वारा साध्यकी सिद्धि करना प्रकरण प्राप्त हो रहा है। ऐसी दशामें कोई वादी या प्रतिवादी प्रकृत हेतुका प्रमाणकी सामर्थ्यसे समर्थन करनेके लिये मैं असमर्थ हूं, ऐसा निश्चय रखता हुआ वादको नहीं छोडता हुवा प्रकृत अर्थको छोडकर अर्थातर का कथन कर देता है कि शब्दको नित्यत्व साधनेमें अस्पर्शवत्व हेतु प्रयुक्त किया है। हेतु शब्द हिनोति धातुसे तु प्रत्यय करनेपर बनता है। स्वादिगणकी साधू धातुसे साध्य शब्द बनता है। इत्यादिक व्याख्यान करना अर्थान्तर निग्रहस्थान प्राप्त करादेनेका प्रयोजक है।
तत्रापि साधनेशक्ते प्रोक्तांतरवाक् कथम् । निग्रहो दूषणे वापि लोकवद्विनियम्यते ॥ १९४ ॥
असमर्थे तु तन्न स्यात्कस्यचित्पक्षसाधने । निग्रहोतिरं वादे नान्यथेति विनिश्चयः ॥ १९५॥
उस अर्थान्तरनामक निग्रहस्थानके प्रकरणमें भी हमको नैयायिकोंके प्रति यह कहना है कि वादीके द्वारा साध्यको साधनेमें समर्थ हो रहे अच्छे प्रकार साधनके कह चुकनेपर पुनः वादी करके अप्रकृत बातोंका कहना वादीको अर्थान्तर निग्रहस्थानमें गिरानेके लिये उपयोगी होगा। अथवा क्या वादीके द्वारा साध्य सिद्धि के लिये असमर्थ हेतुका कथन कर चुकनेपर पुनः असम्बद्ध अर्थवाले वाक्योंके कहनेपर प्रतिवादीकरके वादीका अर्थान्तर निग्रहस्थान निरूपण किया जायगा ! बताओ। सायमें दूसरा विकल्प यों भी है कि वादीने पक्षका परिग्रह किया और प्रतिवादाने दूषण देकर असम्बन्ध वाक्योंको कहा, ऐसी दशामें वादीद्वारा प्रतिवादीके ऊपर अर्थान्तर निग्रहस्थान उठाया जाता है । यह प्रश्न है कि वादीके पक्षका खण्डन करमेमें समर्थ हो रहे दूषणके कह चुकनेपर प्रतिवादीके ऊपर वादी अर्थान्तर उठावेगा ? अथवा क्या वादीके पक्षका खण्डन करनेमें असमर्थ हो रहे दूषणके देनेपर पुनः प्रतिवादी यदि असंगत अर्थवाले वाक्योंको बोल रहा है। उस दशामें वादीकरके प्रतिवादीका निग्रहकर दिया गया माना जावेगा ! बताओ ! पूर्वोक्त वादीद्वारा समर्थसाधन कहनेपर या प्रतिवादीद्वारा समर्षदूषण देदेनेपर तो निग्रहस्थान नहीं मिलना चाहिये । क्योंकि अपने कर्तव्य साध्यको मळे प्रकार साधकर अप्रकृत वचन तो क्या यदि कोई नाचे तो मी कुछ दोष नहीं है। जैसे कि लोकमें अपने अपने कर्तव्यको साधकर चाहे कुछ भी कार्य किया जा सकता है। इसमें कोई दोष नहीं देता है । अतः लौकिक व्यवस्थाके अनुसार विशेषरूपसे नियम किया जाता है, तब तो अर्थान्तर निग्रहस्थान नहीं है । हां, वादी या प्रतिवादी द्वारा असमर्थ साधन या दूषणके कहनेपर तो किसीका मी वह निग्रहस्थान नहीं होगा। वादमें किसी भी एकके पक्षकी