Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवार्तिके
यथापशद्वतः शद्वप्रत्ययादर्थनिश्चयः । शादेव तथाश्वादिव्युत्क्रमाच्च क्रमस्य वित् ॥ २९४ ॥ ततो वाक्यार्थनिर्णीतिः पारंपर्येण जायते । विपर्यासात्तु नैवेति केचिदाहुस्तदप्यसत् ॥ २१५ ॥
यहां कोई नैयायिक यों कह रहे हैं कि जिस प्रकार अशुद्ध या अपभ्रष्ट शब्दोंसे समीचीन शब्दों का ज्ञान होकर पुनः शुद्ध शब्दोंसे जो अर्थका निर्णय हुआ है, वह शुद्ध शब्दोंसे ही वाक्यार्थ ज्ञान हुआ मानना चाहिये। गाय, गैया, काऊ, ( Cow ) आदि अपभ्रंश शब्दों को सुन कर गो शब्दकी प्रतिपत्ति हो जाती है । पश्चात् शुद्ध गोशब्दसे ही सींग और सास्नावाळी व्यक्ति का प्रतिभास होता है । तिस ही प्रकार अश्व, देवदत्त आदि पदोंके अक्रमसे उच्चारण करनेपर प्रथम
पदोंके क्रमका ज्ञान होता है और उसके पीछे वाक्यके अर्थका निर्णय परम्परासे उत्पन्न किया जाता है । पदोंके विपर्ययते तो कैसे भी वाक्य अर्थकी प्रतिपत्ति नहीं हो पाती है। अनुष्टुभ् आदिक शब्दोंमें या लड्डुको देवदत्त खाता है, आदिक क्रमरहित वाक्यों में पहिले उन पदोंको सुनकर कर्त्ता, कर्म, क्रियारूप क्रम बना लिया जाता है । पश्चात् वाक्यार्थ निर्णय किया जाता है ।
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धूमवत्त्वात् वन्हिमान् पर्वतः " इस प्रकार अवयवोंके क्रमसे रहित दूषित वाक्यको सुनकर पहिले " पर्वतो हिमान् धूमात् " यह शुद्धवाक्य जान लिया जाता है । पश्चात् अवयवोंके क्रमसे सहित उस सत्यवाक्यसे अर्थ की प्रतिपत्ति परम्परासे उपजती है । अशुद्ध वाक्योंसे साक्षात् अर्थज्ञप्ति नहीं हो सकती है । इस प्रकार कोई नैयायिक कह रहे हैं । आचार्य कहते हैं कि उनका वह कहना भी प्रशस्त नहीं है ।
व्युत्क्रमादर्थनिर्णीतिरपशब्दादिवेत्यपि ।
वक्तुं शक्तेस्तथा दृष्टेः सर्वथाप्यविशेषतः ॥ २१६ ॥
आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार क्रमयोजनाकी प्रतीति नहीं होती है, जैसे अपभ्रंश या अशुद्ध शब्दों से कम नहीं होते हुये भी शिशु गंवार या असभ्य पुरुषों अथवा द्विभाषियोंको अर्थका निर्णय हो जाता है, उसी प्रकार कर्त्ता, कर्म या प्रतिज्ञा हेतु आदिका क्रमरहितपन हो जाने से भी अर्थप्रतिपत्ति हो जाती है, यह भी हम कह सकते हैं। क्योंकि उच्चारित किये जिस शब्द से जिस अर्थ में प्रतीति हो रही देखी जाती है, वही शब्द उसका बाचक है, अन्य नहीं । अन्यथा हम यों भी कह सकते हैं कि संस्कृत शब्दसे अपशब्द या व्युत्क्रममें स्मरण किया जाकर उससे अर्थ प्रतीति होती है । तिम्री प्रकार क्रमभिन्न पदोंसे भी शाब्दबोध हो रहा देखा जाता है ।