Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वार्थचोकवार्तिके
एवंभूत नयकरके उसी क्रियारूप परिणामको धार रहा अर्थ तिस प्रकार करके ही यों विशेष रूपसे निश्चय कर लिया जाता है। अतः यह नय अन्य क्रियाओंमें परिणत हो रहे उस अर्थको जाननेके लिए अभिमुख नहीं होता है । अर्थात्-जिस समय पढा रहा है, उसी समय अध्यापक कहा जायगा । भोजन करते समय वह अध्यापक नहीं है । जिस धातुसे जो शब्द बना है, उस धातुके अर्थ अनुसार क्रियारूप परिणमते क्षणों ही वह शब्द कहा जा सकता है । एवंभूत मय अन्य क्रियारूप परिणत हो रहे अर्थसे परान्मुख रहता है ।
समभिरूढो हि शकनक्रियायां सत्यामसत्यां च देवराजार्थस्य चक्रव्यपदेशमभिप्रति, पशोर्यमनक्रियायां सत्यामसत्यां च गोव्यपदेशवत्तथारूढेः सद्भावात् । एवंभूतस्तु शकनक्रियापरिणतमेवार्थ तत्क्रियाकाले शक्रमभिप्रैति नान्यदा । कुत इत्याह ।
कारण कि सममिरूढनय तो जम्बूद्वीपके परिवर्तनकी सामर्थ्य धारनारूप क्रियाके होनेपर अथवा नहीं होनेपर देवोंके राजा हो रहे इन्द्ररूप अर्थका शक इस शब्द करके व्यवहार करनेका अभिप्राय रखता है। जैसे कि सींग, सास्नावाले पशुकी गमन क्रियाके होनेपर अथवा गमन क्रिया के नहीं होनेपर बैठी अवस्थामें भी गौका व्यवहार हो जाता है । क्योंकि तिस प्रकार रूढिका सद्भाव है। यानी दूसरे ईशान, सनत्कुमार आदि इन्द्र या अहमिन्द्र भी जम्बूद्वीपके पलटनेकी शक्तिको धारते हैं। फिर भी शक शब्द सौधर्म इन्द्रमें रूढ हो रहा है । इसी प्रकार " गच्छति स गौः " इस निरुक्तिद्वारा बनाया गया गौ शब्द भी बैठी हुयी चलती हुयी, सोती हुयी, गायमें या खाते हुये, लादते हुये सभी अवस्थाओंको धारनेवाले बैलमें रूढ हो रहा है। " गोवलीवर्द " न्यायसे स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और मपुंसकलिंग तीनों जातिके गौ पकडे जाते हैं । किन्तु एवंभूत नय तो उस प्रकारकी सामर्थ्य रखनेकी क्रिया करने रूप परिणतिको प्राप्त हो रहे अर्थको ही उस क्रियाके अवसरमें "शक" कहनेका अभिप्राय रखता है। पूजा करते समय, अभिषेक करते समय, भोगउपभोग भोगते समय, आदि अन्य कालोंमें "शक" इस नाम कथनका अभिप्राय नहीं रखता है। किस कारणसे यह व्यवस्था बन रही है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य उत्तर कहते हैं।
यो यं क्रियार्थमाचष्टे नासावन्यत्कियं ध्वनिः । पठतीत्यादिशद्वानां पाठाद्यर्थत्वसंजनात् ॥ ७९ ॥
जो वाचकशब्द क्रियाके जिस अर्थको चारों ओरसे व्यक्त कह रहा है, वह शब्द अन्य क्रिया कर रहे अर्थको नहीं कह पाता है। अन्यथा पढ रहा है, खा रहा है, इत्यादिक शद्वोंको पढाना पचाना आदि अर्थके वाचकपनका प्रसंग हो जावेगा । जो पढ रहा छात्र है, वह उसी