Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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प्रतिषेधकल्पना न सर्व स्यात्सदेव कालादिभेदेन भिन्नस्यार्थस्योपलब्धेरन्यथा कालादिभेदानर्थक्यप्रसंगादिति समभिरूढाश्रयात्प्रतिषेधकल्पना न सर्व सदेव स्थात्, पर्यायभेदेन भिन्नस्यार्थस्योपलब्धेरन्यथैकपर्यायत्वप्रसंगात् इति । एवंभूताश्रयात् प्रतिषेधकल्पना न सर्व सदेव तत्क्रियापरिणतस्यैवार्थस्य तथोपपत्तेरन्यथा क्रियासंकरप्रसंगात् इति । तथोभयनय क्रमाक्रमार्पणादुभयावक्तव्यकल्पना, विधिनयाश्रयणात्सहोभयनयाश्रयणाच्च विध्यवक्तव्यकल्पना प्रतिषेधन याश्रयणात् सहो भयनयात्रयणाच्च प्रतिषेधावक्तव्यकल्पना क्रमाक्रमोभयनयाश्रयणात्तदुभयावक्तव्यकल्पनेति पंचसप्तभंग्यः ।
तिमी नैगमनयकी पद्धति अनुसार संग्रहनयका आश्रय करनेसे विधिक कल्पना होगी । सम्पूर्ण प्रतीत किये जा रहे पदार्थ सद्भूत ही हैं। गर्दभके सींग समान असत् पदार्थोंकी प्रतीति नहीं हो पाती है । इस प्रकार संग्रहनयसे सब सत् हैं । " स्यात् सदेव सर्व " ऐसा पहिला भंग बनाना तथा व्यवहारनयके आश्रयसे उसके निषेधकी कल्पना करना " न स्यात् सर्व सदेव ", किसी अपेक्षा सम्पूर्ण पदार्थ केवल सत्रूप ही नहीं हैं। क्योंकि व्यवहारमें द्रव्यपने या पर्यायपने करके पदार्थोकी उपलब्धि हो रही है । द्रव्यगुणपर्याय या उत्पादव्ययधौन्यसे रहित हो रहे कोरे सत् की स्वप्न में भी उपलब्धि नहीं है । अन्यथा यानीं द्रव्य और पर्यायके विना कोरा सत् दीख जायगा तो जीव या घटका उपलम्भ करनेपर उसकी अनादिकाल से अनन्तकाळतक वर्त रही सत्ताके उपलम्म हो जानेका प्रसंग होगा । किन्तु व्यवहारी जनोंको लम्बी चौडी, कोरी, सत्ताका उपलम्भ नहीं होता है । भले ही द्रव्य और पर्यायों में विशेषण हो रहे सत्का ज्ञान हो जाय । अतः व्यवहारनयसे कोरे सत्की निषेध कल्पना की गयी है । इसी प्रकार ऋजुसूत्र नयके आश्रयसे प्रतिषेधकी कल्पना करना " न सर्व स्यात् सदेव " सभी पदार्थ कथंचित् सत्रूप ही नहीं है । क्योंकि वर्तमान पर्यायस्वरूपसे अन्य स्वरूपों करके पदार्थोंकी उपलब्धि नहीं हो रही है । अन्यथा यानी ऋजुसूत्रनयसे वर्तमान पर्यायोंके अतिरिक्त पर्यायोंकी भी विधि दीखने लगेगी, तो अनादि, अनन्त, काळकी पर्यायोंका सद्भाव दीख जाना चाहिये | यह प्रसंग टल नहीं सकता है । श्रतः संग्रहनयसे सत् की विधिको करते
ये सूत्र नयसे प्रतिषेध कल्पना करना अच्छा जच गया। इसी प्रकार शद्वनयके आश्रयसे प्रतिषेध कल्पना कर लेना " न सर्व स्यात् सदेव " सम्पूर्ण पदार्थ कथंचित् सत्रूप ही नहीं हैं । क्योंकि काल, कारक, संख्या आदिके भेदकर के भिन्न भिन्न हो रहे अर्थोंकी उपलब्धि हो रहीं है । अर्थात्-काल आदिकसे भिन्न हो रहा पदार्थ तो जगत् विद्यमान है । शेष कोई कोरा सत् पदार्थ नहीं है । अन्यथा काल, कारक, आदिके मेद करनेके व्यर्थपनका प्रसंग होगा, जो कि इष्ट नहीं है । इसी प्रकार समभिरूढनय के आश्रयसे प्रतिषेध कल्पना कर लेना । सभी पदार्थ कथंचित् सत्
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