Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचोकवार्तिके
अत्र प्रतिज्ञावचनादेवा साधनांगवचनेन वादिनिगृहीते प्रतिज्ञाविरुद्धस्थानिग्रहत्व में - वेति धर्मकीर्तिनोक्तं दूषणमसंगतं गम्यमानः प्राह ।
यहां धर्मकीर्ति नामक बौद्धगुरु कहते हैं कि प्रतिज्ञाका कथन कर देनेसे ही असाधनांगका वादीद्वारा कथन हो जाने करके वादीके निग्रह प्राप्त हो जानेपर पुनः उसके ऊपर प्रतिज्ञाविरुद्ध दोष उठाना तो उचित नहीं है । अतः प्रतिज्ञाविरोधको निग्रहस्थान नहीं मानना चाहिये । आचार्य कहते हैं कि प्रतिज्ञाविरोधके ऊपर धर्मकीर्ति द्वारा कहा गया यह दूषण असंगत है । इस बातको समझाते हुये ग्रन्थकार स्वयं भले प्रकार स्पष्ट कहते है ।
प्रतिज्ञावचनेनैव निगृहीतस्य वादिनः ।
न प्रतिज्ञाविरोधस्य निग्रहत्वमितीतरे ॥ १६९ ॥ तेषामनेकदोषस्य साधनस्याभिभाषणे । परेणैकस्य दोषस्य कथनं निग्रहो यथा ॥ १७० ॥ तथान्यस्यात्र तेनैव कथनं तस्य निग्रहः । किं नेष्टो वादिनोरेवं युगपन्नग्रहस्तव ॥
१७१ ॥
अतः बादी जब
चुका तो पुनः
प्रतिज्ञा के बचन करके ही निग्रहस्थानको प्राप्त हो चुके वादीके ऊपर पुनः प्रतिज्ञाविरोधका निग्रहस्थानपना ठीक नहीं है । अर्थात्-इम बौद्धों के यहां साध्यको नहीं साधनेवाले अंगोंका वादीद्वारा कथन करना बादीका असाधनांग वचन नामक निप्रहस्थान हो जाता माना गया है । हमारे यहां समर्थन युक्त हेतुका निरूपण कर देना ही साध्यका साधक अंग माना गया है। प्रतिज्ञाका कथन करना, दृष्टान्तका निरूपण करना ये सब असाधन अंगोंका कथन है । शब्द अनित्य है, ऐसी प्रतिज्ञा बोल रहा है, एतावता ही वादीका निग्रह हो उसके ऊपर दूसरा निग्रहस्थान उठाना मरे हुये को पुनः मारनेके समान ठीक नहीं है । अतः प्रतिज्ञाविरोध नामका कोई निग्रहस्थान नहीं है । इस प्रकार कोई दूसरे धर्मकीर्ति आदि बौद्ध विद्वान् कह रहे हैं । अब आचार्य कहते हैं कि उन बौद्धोंके यहां अनेक दोषबाले साधनका कथन करनेपर वादीका दूसरे प्रतिवादीकर के जैसे एक दोषका कथन कर देना ही निग्रहस्थान है, तिस ही प्रकार यहां भी उस ही वादीकर के साधन के अंगों से भिन्न अंगका कथन करना उस वादीका निग्रह क्यों नहीं इष्ट कर लिया जाय ! | भावार्थ - वादके ऊपर प्रतिवादी द्वारा दोषोंका नहीं उठाया जाना प्रतिवादीका अदोषोद्भावन निग्रहस्थान है । वादीने यदि व्यभिचार, असिद्ध, बाधित, सत्प्रतिपक्ष इन कई दोषोंसे युक्त अनुमानका प्रयोग किया कि आकाश गन्धवान् है ( प्रतिज्ञा ), स्नेहगुण