Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
रहती है। और नयसप्तभंगीमें अन्य धर्मोकी उपेक्षा रहती है । इन समझा दी गयीं उक्त सभी नयसप्तभंगियोंमें प्रत्येक मंगके साथ कथंचित्को कहनेवाले स्यात्कारका और व्यवच्छेदको करनेवाले एवकारका प्रयोग करना विद्यमान समझो। " स्यात्कारः सत्यलाञ्छनः " सत्यकी छाप स्यात्कार है । दृढताका बोधक एवकार है ।
तासां विकलादेशत्वादेश्च सकलादेशत्वादेस्तत् सप्तभंगीतः सकलादेशात्मिकाया विशेष व्यवस्थापनात् । येन च कारणेन सर्वनयाश्रयाः सप्तधा वचनमार्गाः प्रवर्तते ।
___ उन नय सप्तभंगियोंको विकलादेशशद्वएना है । और विकलज्ञानपना है, तथा विकल अर्थपना आदि है। किन्तु प्रमाण सप्तभंगियोंको सकलादेश शद्बपना आदि है। इस कारण सकलादेश स्वरूप हो रही उस प्रमाणसप्तभंगीसे इस नयसप्तभंगीके विशेष हो जानेकी व्यवस्था करा दी गयी है । अनन्त सप्तमंगियोंके विषय हो रहे अनन्त धर्मसप्तकस्वभाव वस्तुका काल, आत्मरूप, आदि करके अभेदवृत्ति या अभेद उपचार करके प्रकाश करनेवाला वाक्य सकलादेश है। और एक सप्त भंगीके विषय हो रहे स्वभावोंका प्रकाशक वाक्य विकलादेश है । जिस कारणसे कि वस्तु स्वभावों अनुसार सात प्रकारके संशय, जिज्ञासा और प्रश्न उठते हैं, इसी कारण सम्पूर्ण नयोंके अवलम्ब हो रहे सात प्रकारके ही वचनमार्ग प्रवर्त रहे हैं । न्यून और अधिक वाक्योंकी सम्भावना नहीं है।
सर्वे शद्वनयास्तेन परार्थप्रतिपादने । स्वार्थप्रकाशने मातुरिमे ज्ञाननयाः स्थिताः ॥ ९६ ॥ वै नीयमानवस्त्वंशाः कथ्यतेऽर्थनयाश्यते ।
त्रैविध्यं व्यवतिष्ठते प्रधानगुणभावतः ॥ ९७ ॥
तिस कारणसे ये सभी सातों नय दूसरे श्रोताओं के प्रति वाच्य अर्थका प्रतिपादन करनेपर तो शब्दस्वरूप नय हैं और ज्ञान करनेवाले आत्माको स्वार्थीका प्रकाश करनेकी विवक्षा होनेपर ये सभी नय ज्ञानस्वरूप व्यवस्थित हो रहे हैं। " नीयतेऽनेन इति नयः " यह करणसाधन व्युत्पत्ति करनेपर उक्त अर्थ लब्ध हो जाते हैं । स्वयं आत्माको ज्ञान और अर्थका प्रकाश तो ज्ञानस्वरूप नयोंकरके हो सकता है और दूसरों के प्रति ज्ञान और अर्थका प्रकाश होना शब्दस्वरूप नयों करके सम्भवता है । तथा " नीयन्ते ये इति नयाः " यो कर्मसाधन नयशब्दकी निरुक्ति करने पर तो निश्चय कर वस्तुके ज्ञात किये जा रहे अंश वे अर्थस्वरूप नय हैं । इस प्रकार प्रधान और गौणरूपसे ये नय तीन प्रकार होते हुये व्यवस्थित हो रहे हैं । अर्थात्--प्रधानरूपसे ज्ञानस्वरूप ही नय हैं ।