Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ श्लोकवार्तिके
ससे साधुओं के अधीन अच्छी रक्षा कर लेवेगा । या साध्वसः यानी भयसे स्वकीय वर्गको रक्षित रखेगा और वह सभापति अपनी दूसरी प्रभुता सामर्थ्य से तो अलंघनीय या दुःसाध्यपूर्वक लंघनीय आत्मीय aai करके भी स्वर्ग और स्वसिद्धान्तों की रक्षा कर लेता है । अथवा दंडनीति शास्त्रोंको जानने वाळे विद्वान में श्रेष्ठ हो रहा वह सभापति अपनी तीसरी उत्साह शक्तिद्वारा भी शासित प्रजाकी उपसर्गौसे संरक्षा कर सकेगा ।
रागद्वेषविहीनत्वं वादिनि प्रतिवादिनि ।
न्यायेऽन्याये च तद्वत्त्वं सामर्थ्यं प्राश्निकेष्वदः || ३५ ॥ सिद्धांतद्वयवेदित्वं प्रोक्तार्थग्रहणत्वता । प्रतिभादिगुणत्त्वं च तत्त्वनिर्णयकारिता ॥ ३६ ॥ जयेतरव्यवस्थायामन्यथानधिकारता ।
सभ्यानामात्मनः पत्युर्यशो धर्म च वांछतां ॥ ३७ ॥
मध्यस्थ या प्रानिकोंमें वह सामर्थ्य होना चाहिये कि वादी और प्रतिवादी में रागद्वेषसे विहीनपना तथा न्याय और अन्याय के होनेपर न्यायसहितपना और अन्यायसहितपना बखानना तथा वादी प्रतिवादी दोनोंके सिद्धान्तों का ज्ञातापन एवं वादी और प्रतिवादीद्वारा भळे प्रकार कहे गये अर्थका ग्राहकपना तथा नव नव उन्मेषशालिनी बुद्धि, निपुणता, लोकचातुर्य आदि गुणोंसे युक्तपना एवं तवोंके निर्णयका कर्त्तापन इस प्रकारकी शक्तियां प्रानिकों में होनी चाहिये । अर्थात् सभ्यजन किसी वादी या प्रतिवादी में पक्षपात नहीं रखें, रागद्वेषरहित होय, न्यायकी प्रवृत्ति होनेपर न्याय कहें और अन्याय वर्तनेपर अन्याय कहें, दोनोंके सिद्धान्तोंको जाने, तथा कहें हुये अर्थको समझ के, प्रतिमा आदि गुणोंसे युक्त होय, तत्त्वका निर्णय करा सके, तब तो वादी, प्रतिवादीयोंके जय या पराजयकी व्यवस्था करनेमें वे नियामक समझें जायंगे । अन्यथा जय पराजय करने में उन सामर्थ्यरहित प्राश्निकको कोई अधिकार प्राप्त नहीं है । अपने यश और धर्मकी वांछा करनेवाले तथा सभापतिके यश और धर्मको चाहनेवाले सभ्यपुरुषोंकी उक्त प्रकार सामर्थ्य होना अत्यावश्यक है ।
कुमारनंदिनश्चाहुर्वादन्यायविचक्षणाः ।
राजप्राश्निक सामर्थ्यमेवंभूतम संशयम् ॥ ३८ ॥
वाद करनेमें और प्रमाणों करके अर्थ परीक्षणा करनेस्वरूप न्यायमें अत्यन्त प्रकाण्ड विद्वान् श्री कुमारनन्दी भट्टारक तो राजा और प्राश्निकों की इस उक्त प्रकार हुई सामर्थ्यको संशयरहित कह रहे हैं।