Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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हेतुः प्रतिज्ञया यत्र बाध्यते हेतुदुष्टता।
तत्र सिद्धान्यथा संधाविरोधोतिप्रसज्यते ॥ १४८ ॥ ..
हेतु जहाँ प्रतिज्ञा करके बाधित कर दिया जाता है, वहां हेतुका दुष्टपना सिद्ध है । भला प्रतिज्ञा तो दूषित नहीं हो सकती है । निर्दोषको व्यर्थमें दोष लगाना सर्वथा बन्याय है । अन्यथा चाहे निसके दोषको चाहे जिस किसीके माथे यदि मढ दिया जायगा तो प्रतिज्ञाविरोधका भी अतिप्रसंग हो जायगा । अर्थात्- प्रतिज्ञाविरोधको भी हेतुविरोधमें गर्भित कर सकते हैं । या दृष्टान्त, उपनय, निगमनके, विरोधदोष भी निर्दोष प्रतिज्ञापर चढ बैठेंगे। यों तो प्रतिज्ञाविरोधका क्षेत्र बहुत बढ जायगा । कई निग्रहस्थान इसीमें समा जायेगे।
सर्व पृथक्समुदाये भावशद्वप्रयोगतः । इत्यत्र सिद्धया भेदसंधया यदि बाध्यते ॥ १४९ ॥ हेतुस्तत्र प्रसिद्धेन हेतुना सापि बाध्यता । प्रतिज्ञावत्परस्यापि हेतुसिद्धेरभेदतः ॥ १५० ॥ भावशदः समूहं हि यस्यैकं वक्ति वास्तवं । तस्य सर्वं पृथक्तत्त्वमिति संधाभिहन्यते ॥ १५१ ॥
सम्पूर्ण पदार्थ न्यारे न्यारे हैं, ( प्रतिज्ञा)। क्योंकि समुदायमें भाव शद्बका प्रयोग होता है। इस प्रकार इस अनुमानमें प्रसिद्ध हो रही भेदसिद्धिकी प्रतिवाकरके यदि समुदायमें माव शद्बका बोला जाना यह हेतु बाधित कर दिया जाता है, तो प्रमाणोंसे सिद्ध हो रहे हेतुकरके वह प्रतिज्ञा भी बाधित कर दी जाओ । क्योंकि पदार्थोको मिन्न मिन्न साध रही प्रतिज्ञाकी सिद्धि जैसे नैयायिकोंके यहां प्रमाणसे हो रही है, उसीके समान दूसरे अद्वैतवादियोंके यहां अथवा परसंग्रहनयकी अपेक्षा जैनोंके यहां मी पदार्थोके समुदायरूप हेतुकी प्रमाणोंसे सिद्धि हो रही है । कोई भेद (विशेषता ) नहीं है । अथवा समुदायको साधनेपर पदार्थोके पृथग्भाव इस हेतुकरके समुदायको साधनेवाली प्रतिज्ञाका विरोध हो जाता है। एक बात यह भी है, जैनेंद्री नीतिके अनुसार कथंचित् शन्द लगा देनेसे पृथग्भाव करके समुदायका कोई विरोध नहीं पडता है । यह अतिप्रसंग हुआ । अतः उद्योतकरका कहना प्रशस्त नहीं है । जिस अद्वैतवादीके यहां मावशब्द या सत् शब्द वस्तुभूत एक समुदायको कह रहा है, उसके यहां सम्पूर्ण तत्व पृथक् पृथक् हैं । इस प्रकारकी प्रतिज्ञा चारों ओरसे नष्ट हो जाती है। अतः प्रसिद्ध हेतुकरके प्रतिज्ञाका बाधा प्राप्त हो जाना भी प्रतीतिसिद्ध है।